मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 32 – मराठी क्षणिकाएं ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  आज प्रस्तुत है  एक तीन मराठी “मराठी क्षणिकाएं ” )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #33☆ 

☆ मराठी क्षणिकाएं ☆ 

 

लेकराला कुशीत घेतल्यावर

मिळणार सुख हे

कित्येक वेळा

निःशब्द करून जातं…..!

♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦

माझ्या

कमावत्या हातात

जेव्हा मी .. .

लेकराचा इवलासा

हात पकडतो ना.. .

तेव्हा खरंच

श्रीमंत झाल्यासारखं वाटतं….!

♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦

हल्ली हल्ली शब्दांचाही

विसर पडू लागलाय

हे आयुष्या तुला संभाळता संभाळता….,

अक्षरांचा हात सुटू लागलाय..

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 34 – ग़ज़ल ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी अतिसुन्दर  “ग़ज़ल .  सुश्री प्रभा जी की  ग़ज़ल वास्तव में जीवन दर्शन है। यह तय है कि हम अकेले हैं और अकेले ही जायेंगे। यही जीवन है। इस सम्पूर्ण जीवन यात्रा का सार उनकी ग़ज़ल की अंतिम पंक्ति में समाया लगता है। यदि किसी को ईश्वर मन है तो उसे ईश्वर ही मानो क्योंकि वह पत्थर हो ही नहीं सकता। अर्थात यह विश्वास की पराकाष्ठा है।  फिर इस जीवन यात्रा में  एक स्त्री का जीवन तब  भी परिवर्तित होता है जब वह अपना घर छोड़ कर नए घर को अपना घर बना लेती है। ऐसी परिकल्पना सुश्री प्रभा जी ही कर सकती हैं ।इस अतिसुन्दर गजल के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। 

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 34 ☆

☆ गझल  ☆ 

 

एकटी जाणार आहे,कोणता वावर नसो

तो जिव्हारी  लागणारा, जीवघेणा  स्वर नसो

 

तू दिलेले सर्व काही सोडुनी आले इथे

कोंडुनी जे मारते ते दुष्टसे सासर नसो

 

शांत वाटे या घडीला , मी इथे आनंदले

धूळ होणे ठरविले , ते  देखणे  अंबर नसो

 

मी कशी स्वप्ने उद्याची रंगवू वा-यावरी ?

वास्तवाचे प्रश्न मोठे त्या भले उत्तर  नसो

 

ही कशाने तृप्तता आली मला या जीवनी

सुख  असो वा दुःख आता त्यामधे अंतर नसो

 

कोणत्याही वादळाची शक्यता टाळू नको

जे मिळे ते युग सुखाचे त्यास मन्वंतर नसो

 

आपल्या ही आतला आवाज  आहे सांगतो

देव ज्याला मानले तो नेमका पत्थर नसो

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ श्री गणेश जयंती विशेष – मोरया रे ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज  प्रस्तुत है श्री गणेश जयंती पर विशेष कविता / गीत   “ मोरया रे।)

☆ श्री गणेश जयंती विशेष – मोरया रे☆

 

मोरया रे मोरया रे बाप्पा मोरया रे

चमक तुझ्या बुद्धीची जणू सूर्या रे ॥ध्रु॥

 

आदि शक्ती आदि भक्ती सर्व कार्या रे

रिद्धी आणि सिद्धी दोन्ही तुझ्या भार्या रे ॥1॥

 

किती खाशी मोदक, मस्तकी दुर्वा रे

लंबोदरामधे तुझ्या जणू दर्या रे ॥2॥

 

धाव घेशी सज्जनांच्या शुभ कार्या रे

दुर्जनांचा वाजवशी तूच बोर्‍या रे ॥3॥

 

लोभस वाटे मजला तुझी चर्या रे

माताही लाभली तुला एक आर्या रे ॥4॥

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ श्री गणेश जयंती विशेष – गणराया तू ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आज प्रस्तुत है  मराठी गीत श्री गणेश जयंती विशेष – गणराया तू । )

 ☆  श्री गणेश जयंती विशेष – गणराया तू ☆

(भावगीत)

एकदंत तू ,वरद विनायक, वंदन हे स्वीकार

कार्यारंभी करतो पूजन तुझाच जय जय कार .

 

तिलकुंदाचे केले लाडू, गुंफीयेला जास्वंदीचा हार

दुर्वादल ते लक्ष अर्पिले , देवा  आळवीत ओंकार.

 

सहस्त्र रूपे ,तुझी दयाळा ,  सृजनशील दरबार

माघ चतुर्थी ,जन्मोत्सव हा, शोभे निर्गुण निराकार.

 

गाणपत्य तू ,बुद्धी दाता, करीशी चराचरी संचार

कृपा असावी आम्हावरती ,  कर जीवन हे साकार .

 

अक्षर अक्षर दैवी देणे, मूर्त शारदा शब्दाकार

गणराया तू, ईश गुणांचा, देवा कलागुण स्वीकार .

 

तुला पूजिले, देहमंदिरी , देना  जीवनाला आधार

जन्मा आला, जगत नियंता ,देवा शब्दपुष्प स्वीकार .

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #34 – मानवतेचा झेंडा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है गणतंत्रता दिवस के अवसर पर रचित मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण एक विचारणीय कविता  “मानवतेचा झेंडा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 34☆

☆ मानवतेचा झेंडा ☆

(सर्व भारतीयांना प्रजासत्ताक दिनाच्या हार्दिक शुभेच्छा ! )

 

मानवतेचा झेंडा घेउन फिरतो मी तर

जोडू हृदये मने जिंकुया ध्यास निरंतर

 

काल फुलांच्या झाडाखाली जरा पहुडलो

कोण शिंपुनी देहावरती गेले अत्तर

 

देशोदेशी नेत्यांच्या या इमले माड्या

प्रत्येकाच्या वाट्याला ना येथे छप्पर

 

शूर विरांच्या कर्तृत्वावर संशय घेती

जी जी करुनी अतिरेक्यांचा करती आदर

 

देशभक्त हे मुसलमान तर शानच आहे

रोहिंग्यांचा फक्त बांधुया बोऱ्याबिस्तर

 

देशासाठी धर्म बाजुला ठेवू थोडा

मिळून सारे कट्टरतेला देऊ टक्कर

 

ईद दिवाळी मिळून सारे करू साजरी

खिरीत हिंदू लाडुत मुस्लीम होवो साखर

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 33 – चार दिशेची चार पाखरे ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  कविता  “चार दिशेची चार पाखरे” । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 33 ☆ 

 ☆ चार दिशेची चार पाखरे

 

सोडून कट्टी कर ना ग बट्टी, हट्ट सखे हा सोड ना।

प्रेमा मध्ये नको दुरावा, बरी नव्हे ही खोड ना।।धृ।।

 

चार दिशेची चार पाखरे, जमलो या काव्यांगणी।

सुखदुःखांच्या अनेक लहरी, मनास गेल्या छेडुनी।

क्षणात हसणे क्षणात रुसणे  मैत्रीस या तोड ना।।१।।

 

ताई, माई, दादा, भाऊ, जमले सारे दोस्त ग।

काव्य मैफिली इथे रंगल्या अफलातून या मस्त ग।

चढाओढी अन् कुरघोडीची कधी न जमली जोड ना।।२।।

 

हाती हात नि पक्की साथ काव्य रसाची सारी रात।

भिन्न रंग- रूप धर्म जरी, मधे ना आली केव्हा जात।

असेल चुकला भाऊ अवखळ… अंतरंग परि गोड ना।।३।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होत आहे रे # 18 ☆ वंशाचा दिवा ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है. श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होत आहे रे ”  की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी  एक विचारणीय काव्य अभिव्यक्ति  वंशाचा दिवा । इस कविता के सन्दर्भ में उल्लेखनीय  एवं विचारणीय है कि – वंश का  दीप कौन?  पुत्र या पुत्री ? आप  स्वयं निर्णय करें ।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को नमन।)  

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 18 ☆

 

☆ वंशाचा दिवा ☆

(काव्यप्रकार:- मुक्तछंद)

 

वंशाचा दिवा लावा वंशाचा दिवा !

अहो प्रत्येक घरात लागायलाच हवा !

सुनेला मुलगा व्हायलाच हवा !

अशी होती समाजात हवा !!

 

आज काळ बदलला मते बदलली!

मुलगी झाली घरे आनंदली !

सासरच्यांची मते बदलली !

मुलगी झाली घरी लक्ष्मी आली !!

 

मुलगा तर हवाच हवा !

त्याशिवाय कां येणार जावई नवा!

मुलगी तर हवीच हवी !

कारण सूनही घरी यायला हवी !!

 

मुलामुलीत नको भेद !

जुन्या अपेक्षांना देऊया छेद !

संत म्हणती अमंगळ  भेदाभेद !

ऐकूनी त्यांचे बोल मिळतो आनंद !!

 

जुनी परंपरा जपावी खरी !

आजच्या काळाची गरजही न्यारी !

मुलगा काय अन् मुलगी काय!

अहो जुन्याला म्हणूया बाय बाय !!

 

मुलगा घेतो आईबाबांची काळजी!

मुलगी तर घेते सर्वांचीच काळजी !

मुलगा काय किंवा मुलगी काय बुवा !

दोन्हीही असतात वंशाचा दिवा !!

 

©®उर्मिला इंगळे

सतारा, महाराष्ट्र

दिनांक:-25 -1-2020

9028815585

 

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मराठी साहित्य ☆ कविता ☆ स्वच्छतेचा देवदूत. . . ! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आज प्रस्तुत है राष्ट्र संत बाबा गाडगे जी महाराज पर उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति स्वच्छतेचा देवदूत. . . ! )

 

 ☆  स्वच्छतेचा देवदूत. . . !  ☆

(श्री विजय सातपुते जी की फेसबुक वाल से साभार )

( अष्टाक्षरी )

चिंध्या पांघरोनी बाबा धरी मस्तकी गाडगे

डेबुजी या बालकाने दिले स्वच्छतेचे धडे. . . . !

 

विदर्भात कोते गावी ,जन्मा आली ही विभूती.

हाती खराटा घेऊन ,स्वच्छ केली रे विकृती. . . !

 

वसा लोकजागृतीचा ,केला समाज साक्षर

श्रमदान करूनीया ,केला ज्ञानाचा जागर.

 

झाडूनीया माणसाला ,स्वच्छ केले  अंतर्मन.

धर्मशाळा गावोगावी ,दिले तन, मन, धन. . . . !

 

देहश्रम पराकाष्ठा, समतेची दिली जोड

संत अभंगाने केली ,बोली माणसाची गोड.. . !

 

धर्म, वर्ण, नाही भेद ,सदा साधला संवाद

घरी दारी, मनोमनी , गोपालाचा केला नाद. . . !

 

स्वतः कष्ट करूनीया , सोपी केली पायवाट

संत गाडगे बाबांचा  ,वर्णीयेला कर्मघाट .. . . !

 

स्वच्छतेचा देवदूत ,मन ठेवतो निर्मळ

राष्ट्रसंत बाबा माझा ,प्रबोधन परीमल.. . . !

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 31 – गेली कित्येक वर्षे…! ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  आज प्रस्तुत है  एक हृदयस्पर्शी कविता  “गेली कित्येक वर्षे…!” )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #31☆ 

☆ गेली कित्येक वर्षे…! ☆ 

 

शहरात गेल्यापासून

तुम्ही पार विसरून गेलात मला..,

आज इतक्या वर्षानंतर

तुम्ही मला घर म्हणत असाल की नाही

ठाऊक नाही…

पण मी अजूनही सांभांळून ठेवलंय..,

घराचं घरपण

तुम्ही जसं सोडून गेलात तसंच . . .

गेल्या कित्येक वर्षात

अनेक उन पावसाळ्यात

मी तग धरून उभा राहतोय

कसाबसा…. तुमच्या शिवाय…

रोज न चुकता

तुमच्या सर्वांचीआठवण येते …

पण खरं सांगू . . .

आता नाही सहन होत

हे ऊन वा-याचे घाव …

माझ्या छप्परांनीही आता

माझी साथ सोडायचा निर्णय घेतलाय…

माझा दरवाजा तर

तुमची वाट पाहून पाहून

कधीच माझा हात सोडून

निखळून पडलाय….!

माझ्या समोरच अंगण तुळशीवृंदावन

सगळंच कसं दिसेनास झालंय आता…

माझ्या भिंतीनी माझा श्वास

मोकळा करून देण्या आधी

एकदा तरी . . .  फक्त एकदा तरी ….

मला भेटायला याल अशी आशा आहे…!

तूमचं घर तुमची वाट पाहतय…!

गेली कित्येक वर्षे …. . . !

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 33 – मी ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनकी अतिसुन्दर कविता  “मी.  सुश्री प्रभा जी की कविता अनुवंश एक विमर्श ही नहीं आत्मावलोकन भी है।  यह कृति सक्षम है  सुश्री प्रभा जी के व्यक्तित्व  की झलक पाने के लिए। यह गंभीर काव्य विमर्श है ।  और वे अनायास ही इस रचना के माध्यम से अपनी मौलिक रचनाओं एवं मौलिक कृतित्व  पर विमर्श करती हैं। अभिमान एवं स्वाभिमान में एक धागे सा अंतर होता है और  पूरी रचना में अभिमान कहीं नहीं झलकता । झलकती है तो मात्र कठिन परिश्रम, सम्पूर्ण मौलिकता और विरासत में मिले संस्कार ।  इस बेबाक रचना  के लिए बधाई की पात्र हैं। 

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 33 ☆

☆ मी ☆ 

 

मी नाही देवी अथवा

समई देवघरातली!

मला म्हणू ही नका

कुणी तसले काही बाही !

 

कुणा प्रख्यात कवयित्री सारखी

असेलही माझी केशरचना,

किंवा धारण केले असेल मी

एखाद्या ख्यातनाम कवयित्री चे नाव

पण हे केवळ योगायोगानेच !

मला नाही बनायचे

कुणाची प्रतिमा किंवा प्रतिकृती,

मी माझीच, माझ्याच सारखी!

 

एखाद्या हिंदी गाण्यात

असेलही माझी झलक,

किंवा इंग्रजी कवितेतली

असेन मी “लेझी मेरी” !

 

माझ्या पसारेदार घरात

राहातही असेन मी

बेशिस्तपणे,

किंवा माझ्या मर्जीप्रमाणे

मी करतही असेन,

झाडू पोछा, धुणीभांडी,

किंवा पडू ही देत असेन

अस्ताव्यस्त  !

कधी करतही असेन,

नेटकेपणाने पूजाअर्चा,

रेखितही असेन

दारात रांगोळी!

 

माझ्या संपूर्ण जगण्यावर

असते मोहर

माझ्याच नावाची !

मी नाही करत कधी कुणाची नक्कल

किंवा देत ही नाही

कधी कुणाच्या चुकांचे दाखले,

कारण

‘चुकणे हे मानवी आहे’

हे अंतिम सत्य मला मान्य!

म्हणूनच कुणी केली कुटाळी,

दिल्या शिव्या चार,

मी करतही नाही

त्याचा फार विचार!

 

कुणी म्हणावे मला

बेजबाबदार, बेशिस्त,

माझी नाही कुणावर भिस्त!

मी माणूसपण  जपणारी बाई

मी मानवजातीची,

मनुष्य वंशाची!

मला म्हणू नका देवी अथवा

समई देवघरातली!

मी नाही कुणाची यशोमय गाथा

मी एक मनस्वी,

मुक्तछंदातली कविता!

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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