नेशनल जॉग्राफ़ी और एनीमल प्लैनेट पर हमेशा ही जानवरों को देखना और उनके बारे में जानकारी हासिल करते रहना मेरा पुराना शौक है। फिर कहीं मन में एक उत्साह था कि किसी दिन इन्हें अपनी नजरों से भी देखें। वैसे तो जब चाहो इन पशुओं के दर्शन चिड़ियाघर में तो कभी भी हो सकते हैं पर मेरी तमन्ना थी कि इन प्राणियों को प्राकृतिक खुले स्थान में ही इन्हें देखूँ। और यह इच्छा ईश्वर ने बहुत जल्दी पूर्ण भी कर दी।
सितंबर का महीना सवाना में माइग्रेशन मन्त कहलाता है। हमने इसी कालावधि के दौरान कीनिया जाने का निर्णय लिया।
कीनिया, तानजेनिया , आदीसाबाबा या किसी भी अफ्रीकन देशों में यात्रा करने से पूर्व पर्यटकों को yellow fever से बचाव करने के लिए इंजेक्शन लेने की बाध्यता होती है। यह इंजेक्शन सरकारी अस्पताल से लेनी पड़ती है। इसके बाद जो प्रमाणपत्र सरकार की ओर से मिलता है उसे यात्रा के दौरान अपने साथ रखने की आवश्यकता भी होती है। उन दिनों इस इंजेक्शन के लिए मुम्बई जाना पड़ता था। इस इंजेक्शन की अवधि दस वर्ष की होती है। आजकल बड़े शहरों में यह सुविधा उपलब्ध है।
सन 2012 सितंबर हम मुम्बई से इथियोपिया के लिए रवाना हुए। आदिसाबाबा वहाँ की राजधानी है। हम पहले वहाँ उतरे, बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को देखकर अच्छा लगा कि अपने देश में सब प्रकार के काम वे ही संभाल रहे हैं। हँसमुख, मिलनसार तथा विदेशियों के साथ आतिथ्यपूर्ण उनका व्यवहार हमें अच्छा लगा। दो घंटे के हॉल्ट के बाद हम मोम्बासा के लिए रवाना हुए।
इथियोपिया से जब हवाई जहाज़ ने उड़ान भरी तो कुछ समय बाद ही पायलट ने अनाउंस किया कि हम किलमिनजारो के पास से गुज़रते हुए जाएँगे अतः सभी यात्री अपने -अपने कैमरे संभाल लें। साथ ही वे जानकारी भी दे रहे थे कि अफ्रीका का यह सबसे ऊँचा पर्वत है जहाँ बर्फ भी पड़ती है। जलवायु परिवर्तन के कारण अब इसके ऊपर से बर्फ की मात्रा कम होती जा रही है। कीबो मावेनज़ी और शीरा ये किलमिनज़ारो के तीन मुख्य ज्वालामुखीय मुख हैं। इस पर्वत की ऊँचाई 5895 मीटर है और यह संसार का एकमात्र ऐसा पर्वत है जो केवल एक मात्र चोटी के साथ खड़ा है। यह पर्वत तानज़ेनिया के भूभाग पर है। हमने जानकारी के साथ -साथ खूब तस्वीरें भी खींची। यह इस यात्रा के दौरान मिला हुआ पहला बोनस था जिसकी हमने अपेक्षा भी नहीं की थी।
मोम्बासा में उतरने से पूर्व ही हमने अपने फोन में वहाँ के सिमकार्ड डाल लिए थे। यह सिमकार्ड हमें अपने देश के ही ट्रैवेल एजेंट से मिला था। इस सुविधा के कारण एयरपोर्ट पर उतरते ही साथ वहाँ के ट्रैवेल एजेंट ने हमें फोन किया और एक्जिट गेट के पास हमारे नाम का प्लैकार्ड लिए वे स्वागत के लिए तैनात मिले। हँसमुख, मिलनसार जाति। स्त्री-पुरुष में कोई भेद न रखनेवाली जाति।
हम खाली हाथ ही एक्जिट गेट पर पहुँचे क्योंकि हमारे दो सूटकेस दूसरे फ्लाइट में चले गए थे जो दूसरे दिन शाम तक पहुँचने वाले थे। हम हमेशा अपनी दवाइयाँ और दो जोड़े कपड़े अपने हैंडबैग में लेकर ही चलते हैं। ऐसे समय पर ये अनुभव बड़े काम आते हैं।
हमारे रहने के लिए एक अत्यंत सुंदर होटल में व्यवस्था थी यह सारी व्यवस्था ऑनलाइन एजेंट द्वारा ही की गई थी। ये सारी ऑनलाइन बुकिंग बलबीर कई वर्षों से करते आ रहे हैं जिस कारण हम आराम से अपनी इच्छानुसार विश्वभ्रमण कर पाते हैं।
यहाँ के होटल का मैनेजर मूल रूप से भारतीय था जो चार पीढ़ी पहले गुजरात से युगांडा में रहने आया था। इदियामीन के भय से पलायन कर अब इनका परिवार मोम्बासा में आ बसा था।
दूसरे दिन हमें अपने सूटकेस के मोम्बासा पहुँचने का संदेश मिला,जिसे लेने के लिए हमें एयरपोर्ट जाना पड़ा। एयरपोर्ट शहर से बहुत दूर था। हमने होटल के मैनेजर से कोई गाड़ी मँगवाने के लिए कहा। होटल के मैनेजर ने गाड़ी मँगवाई। हमने दाम देना चाहा तो उसने कहा, अपने देशवासी आज मेरे इस देश में मेरे मेहमान हैं , इसे हमारी तरफ से सहायतार्थ योगदान समझें। उसने हाथ जोड़कर कहा तो हम मना न कर सके। यहाँ यह कहना ज़रूरी समझती हूँ कि कीनिया एक ग़रीब देश है फिर भी मेहमाननवाज़ी में वे पीछे नहीं रहते।
यह इस यात्रा के दौरान मिला हुआ दूसरा बोनस था।
तीसरे दिन प्रातः पाँच बजे हम होटल से रवाना हुए और एक लोकल एयरपोर्ट पहुँचे। वहाँ से हम एक छोटे – से 6 सीटर विमान द्वारा मसाईमारा सवाना के लिए रवाना हुए। यह विमान 17000 फुट की ऊंँचाई से अधिक ऊपर उड़ नहीं सकता इसलिए जब हम सवाना की तरफ पहुँचे तो हमें मारा रिवर में दरियाई घोड़े और मुँह खोलकर अपने शरीर को धूप में सेंकते हुए ढेर सारे मगरमच्छ नज़र आए। मन आनंदित हुआ, अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था ! मानो आँखें सपना देख रही थीं। विमान थोड़ा और नीचे उतरा तो खुले मैदान में हमें ज़ीब्रा और विल्डरबीस्ट घास चरते हुए दिखाई दिए। कुछ हाथियों के झुंड भी हमें पेड़ों की शाखाओं को तोड़ते और पत्तों को खाते हुए दिखाई दिए।
अचानक विमान नीचे उतरा। ना कोई एयरपोर्ट और न ही कोई रनवे ! मैदान के बीचोबीच!!
हमें विमान से नीचे उतारा गया। कुछ दूरी पर हिरणों के झुंड निर्विकार चित्त से घास चर रहे थे। मनुष्य को देखने का उन्हें कोई उत्साह नहीं था। अचानक खुले मैदान पर हमें उतारकर विमान जैसे अचानक उतरा था वैसे ही अचानक चार यात्रियों को लेकर उड़ान भरकर निकल गया।
मन में क्षण भर के लिए घबराहट- भी हुई कि कहीं हम पर शेरों ने आक्रमण कर दिया तो ? पर यह डर मनुष्य के हृदय का डर था। शेर अधिकतर अंधकार होने पर ही शिकार करते हैं। दिन में अठारह घंटे वे सोते हैं। एक और सच्चाई तो यह है कि पशु अकारण किसी पर हमला नहीं करते और मनुष्य उनके भोजन की सूची में भी नहीं हैं।
खैर ,हमारे स्वागत में चारों तरफ से खुली हुई लाल कपड़े से ढकी सीटों वाली जीप और चालक हमें लेने के लिए तैयार खड़े थे। यह उस रिसोर्ट द्वारा भेजा गया था जहाँ पर हम पाँच दिन रहने जा रहे थे। हमारे साथ एक फ्रेंच परिवार भी था। जीप का चालक मसाई जाति का था। वहीं का निवासी था। कामचलाऊ अंग्रेजी बोल लेता था। उसने हमें ऊपर से मारा नदी में खड़े दरियाई घोड़े और मगरमच्छों का दर्शन कराया। वे नीचे पानी में और पास की कीचड़ वाली जगह पर थे। और हम काफी ऊपर खड़े थे ताकि हम आराम से उन्हें देख सकें वरना दरियाई घोड़े आक्रमण करने में बहुत होशियार होते हैं। यह दर्शन हमारे लिए तीसरा बोनस साबित हुआ।
हम अपने होटल की ओर रवाना हुए। जाते समय कई विल्डरबीस्ट और ज़ीब्रा हमें नज़र आए। हमें देख कर भी उन्होंने हमें अनदेखा कर दिया। हमें उनमें रुचि थी, उन्हें हममें नहीं। कुछ दूरी पर हमें जिराफ़ का परिवार नजर आया और इन सब के बीच में दौड़ते हुए बबून भी दिखाई दिए।
एक अलग प्रकार के भयमिश्रित रोमांच के साथ हम अपने रिसोर्ट पहुंँचे। हमें जीप चालक ने जानकारी देते हुए बताया कि लाल कपड़े मसाई जाति के लोगों का वस्त्र है। वे गाय पालते हैं और उन्हें चराने के लिए खुले मैदानों पर ले जाते हैं। उनके पास अपनी सुरक्षा के लिए तीर- धनुष्य और भाला होता है। किसी समय वे जानवरों का शिकार करते थे। पर अब नहीं क्योंकि उन जानवरों को देखने के लिए हज़ारों की संख्या में पर्यटक आते हैं और मसाई लोगों को जीविका मिलती है। जंगली पशु उन लाल कपडे़वालों से दूर रहते हैं। पर्यटकों की सुरक्षा हेतु गाड़ी में भी इसीलिए लाल कपड़े रखे जाते हैं। उसने हमें दस फीट की दूरी से शेर के झुंड का दर्शन करवाने का आश्वासन दिया और कहा कि न तो हम उन्हें देखकर शोर मचाएँ न गाड़ी से नीचे उतरने का प्रयास ही करें। यह स्थान उन जानवरों के लिए है। वे अपनी टेरिटरी में किसी और का हस्तक्षेप बिल्कुल सहन नहीं करते। हम सबने चालक की हर बात गाँठ बाँध ली।
हमारा सामान हमारे लिए आरक्षित कमरे में ले जाया गया। यह मारा नदी से काफी ऊपर बनाए गए आवासीय व्यवस्था थी। लकड़ी से बने एक – एक विशाल प्लेटफार्म पर भारी भरकम सख्त – मजबूत टेंट लगाए गए थे। टेंट के भीतर सभी असबाब मजबूत लकड़ी से बने थे। टेंट के भीतर एक अलमारी, एक विशाल पलंग, मेज़- कुर्सी, तथा स्वच्छता गृह बनाया हुआ था। टेंट को बंद करने के लिए मोटे ज़िप लगे थे। और उस पर एक और मोटा कपड़ा लगाया हुआ था। टेंट के भीतर हवा के लिए जालीदार खिड़की सी बनी हुई थी। किसी पशु के लिए सीढ़ी चढ़कर टेंट तक आना सहज न था। इसलिए सारे टेंट ऊँचे प्लेटफार्म पर ही बनाए हुए थे। टेंट के सामने खुली जगह थी जहाँ से नदी में डुबकी लिए हुए आलसी दरियाईघोड़ों की आँखें दिखाई दे रही थीं।
हमें बताया गया था कि रात के नौ के बाद बिजली बंद कर दी जाती है क्योंकि दरियाई घोड़े रात होने पर अँधेरे में टेंट के आसपास घास खाने आते हैं। कई बार वे अपनी पीठ रगड़ने के लिए टेंट लगाए गए भारी भरकम खंभों का उपयोग करते हैं। घास खाते हैं तो खूब आवाज़ करते हैं। मुँह खोलते हैं तो दो बड़े नुकीले दाँत दिखाई देते हैं। भयंकर से दिखते हैं।
हर यात्री को सुरक्षा के लिए टॉर्च दिया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर टेंट के भीतर बने झरोखों से टॉर्च दिखाए जाने पर पास ही सुरक्षा के लिए तैनात मसाई मदद के लिए पहुँच जाते हैं।
दोपहर के समय खुले मैदान पर एक बबूल के वृक्ष के नीचे अस्थाई रसोई की व्यवस्था के तहत हमें भोजन खिलाया गया। हम छह लोग थे। कई प्रकार के फल, सलाद, उबले आलू, तथा मांसाहारी पदार्थ परोसे गए।
यह सितंबर का महीना था। वर्षा समाप्त हो चुकी थी और सवाना हरा-भरा था। एक जिराफ़ पास के एक विशाल बबूल के वृक्ष के पत्ते इत्मीनान से सूँथ-सूँथकर खा रहा था। पास ही कुछ छोटे -बड़े बबून घूम रहे थे। हमें बताया गया था कि हम उन्हें किसी प्रकार का कोई भोजन न डालें। हमारा भोजन उनका भोजन न था।
हम सभी जानवरों के क्रियाकलापों को नज़दीक से देखना चाहते थे इसलिए
भोजन करते ही साथ कई जीप उन्हें देखने के लिए तीन बजे के क़रीब निकल पड़ीं।
हर जीपचालक के पास वॉकी- टॉकी था। वे एक दूसरे को जानवरों का पता बताते चलते रहे। एक पेड़ पर हमें जिराफ का मृत शावक दिखाई दिया। उसकी निचली टहनी पर एक बड़ा तेंदुआ सोया हुआ था। ये पशु अपने शिकार को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें मारने के बाद पेड़ पर टाँग देते हैं। फिर फुर्सत से खाते रहते हैं। ऐसा दृश्य एनिमल प्लेनेट में टी वी पर अवश्य देखा था पर आज साक्षात सामने ही अपनी आँखों से देख रहे थे।
इसके तुरंत बाद किसी ने हमारे चालक को सिंह के एक झुंड की खबर दी। हम उत्साहपूर्वक उन्हें देखने गए। एक विल्डरबीस्ट का शिकार कर दल का लीडर एक सिंह उसका पूरा आनंद ले रहा था और दस – बारह सिंहनियाँ पास में ही मांस खाने के लिए प्रतीक्षा कर रही थीं। हमने खुले में दस फीट की दूरी से इन हिंस्र पशुओं को देखने का आनंद लिया। हमसे स्पष्ट कहा गया था कि हम न तो ऊँची आवाज़ में बोलेंगे न गाड़ी से नीचे उतरेंगे। हम सबने आलस में अंगड़ाई लेती शेरनियाँ देखीं। शेर महाराज को भोजन का अकेले में आनंद लेते हुए देख हम सब रोमांचित हो उठे। सच में एक राजा के समान!
इतने में हमारे चालक को खबर दी गई कि कहीं दो चीते भी नज़र आए हैं। हमारे चालक ने गाड़ी घुमाई और हम उस दिशा में चल पड़े। काफी दूर जाने पर एक ऊँची चट्टान पर हमें दो चीते दिखाई दिए। वे एक दूसरे को प्यार से चाट रहे थे। तेंदुए और चीते में फर्क है। चीते की आँखों के नीचे दो धारियां होती हैं।
हमें लौटते हुए विलंब हो रहा था, सूर्यास्त भी हो रहा था। एक जगह पर चालक ने गाड़ी रोक दी और कहा सामने देखिए। मैदान में हमें ज़मीन में बनाए गए बिलों में से लकड़बग्घे निकलते हुए दिखे। ये पूरा कुनबा साथ रहता है। एक वयस्क मादा बच्चों को संभालती है। खुले मैदान के बीचोबीच जीप रुकी और हमने लकड़बग्घों के झुंड को देखा।
दूसरे दिन सुबह- सुबह हम रवाना हुए मारा रिवर देखने के लिए जहांँ पर नदी के इस पार से उस पार पशु जाया करते हैं। इसे वे माइग्रेशन कहते हैं। यह माइग्रेशन हर साल होता है जब भारी वर्षा के पश्चात मारा रिवर एकदम उफनती हुई दिखाई देती है , तब नदी के इस पार से उस पार पशु जाते हैं। यह माइग्रेशन मौसम के अनुसार घास चरने और नवजात शावकों को जन्म देने का मौसम होता है।
हम बड़े उत्साह से नदी किनारे पहुंँचे। कुछ दूरी से हमने देखा कि बड़ी संख्या में विल्डर बीस्ट खड़े थे और धीरे-धीरे कवायद करती हुई उनकी बढ़ती संख्या नदी के किनारे जमा हो रही थी। हमें जीप चालक ने बताया कि जब हजारों की संख्या में विल्डरबीस्ट जमा हो जाते हैं तब वे एक साथ नदी को पार करने का कार्य करते हैं। नीचे नदी में काफी सारे मगरमच्छ घूम रहे थे। यह उनका ब्रेकफास्ट टाइम था। वे पशुओं के माइग्रेशन की ताक में रहते हैं।
विल्डरबीस्ट अभी पानी में छलाँग मारने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। उधर बड़ी संख्या में दौड़ते हुए और कई विल्डरबीस्ट जमा हो रहे थे। सारा वातावरण पशुओं के दौड़ने के कारण धूल से भरता जा रहा था। उन सबके रंभाने की आवाज़ से वातावरण गुंजायमान हो रहा था। हम कुछ दूरी पर अपने कैमरे संभालकर दिल थाम कर बैठे थे कि कब वह अद्भुत दृश्य देखने को मिलेगा। दूसरी तरफ बड़ी संख्या में ज़ीब्रा दिखाई दे रहे थे जो पानी पीने के लिए नदी पर आना चाहते थे लेकिन मगरमच्छों को देखकर भयभीत हो रहे थे।
फिर अचानक एक अद्भुत घटना घटी। हमने देखा एक विल्डर बिस्ट ने पानी में छलाँंग लगाई , उसके छलांँग लगाने के एक मिनिट बाद ही हजारों की संख्या में अनेकों विल्डरबीस्टों ने भी नदी में छलाँग लगाई परंतु उस एक मिनट के अंतर में पहला विल्डरबीस्ट भूखे मगरमच्छों का शिकार हो गया। पानी लाल – सा हो गया और मगरमच्छों में माँस के लोथड़े छीनने की स्पर्धा शुरू हो गई।
उधर अपने योग्य भोजन पाकर मगरमच्छ व्यस्त हो गए ,इधर अन्य विल्डरबीस्ट मौका पाकर नदी पार कर गए। समस्त वातावरण में भयंकर कोलाहल मचा था, पानी की छींटे ऊपर तक आ रही थीं, ऐसा लग रहा था मानो महायुद्ध छिड़ा हो। घंटे भर बाद सारे विल्डरबीस्ट और उनके बाद ज़ीब्रा नदी पार कर गए। अब नदी शांत हो गई। मगरमच्छ भरपेट भोजन कर अब धूप सेंकने तट पर आ गए और अपना जबड़ा खोलकर बैठ गए।
दरियाई घोड़े अपने पूरे शरीर को पानी में डुबोकर केवल अपनी आँखों को पानी के ऊपर रखकर सारे दृश्य का अवलोकन करने लगे। यहाँ एक और नई बात की जानकारी मिली कि अब घास खानेवाले दरियाई घोड़ा मांसाहारी होने लगे हैं। वे भी मौका पाकर माइग्रेट करनेवाले पशुओं के मांस का बड़े मज़े से स्वाद लेते हैं। वे अत्यंत आक्रामक और भयंकर प्राणी हैं।
तीसरे दिन हम मसाई विलेज देखने गए। उस गाँव की मुखिया एक वृद्धा स्त्री थी। हमारे आने की खबर मिलते ही साथ वे गीत गाने लगीं। शब्द तो हम पकड़ न पाए पर संयुक्त स्वर में उत्साह था,आतिथ्य की झलक थी और थी गीत में मिठास। हमें इस तरह का अद्भुत स्वागत बहुत भाया। मुखिया के दो बेटों ने गाँव के द्वार पर ऊँची -ऊँची छलाँग लगाकर हमारा स्वागत किया। यही उनकी प्रथा और संस्कृति है।
बीस से चालीस परिवार गोलाई में मिट्टी और लकड़ी से घर बनाते हैं। हर घर में जानवरों की चौड़ी चमड़ी लगी हुई है जिसपर वे सब सोते हैं। घर के भीतरी हिस्से में बुजुर्ग सोते हैं और बच्चों को लेकर युवा दरवाज़े की ओर वाले कमरे में सोते हैं।
गाँव के मुखिया के घर में प्रातः दो पत्थरों को घिसकर आग जलाई जाती है फिर यही आग लकड़ी की सहायता से दूसरे घरों तक पहुँचाई जाती है। यह प्रतिष्ठा , प्रभुत्व और एकता का प्रतीक माना जाता है।
भोजन में वे भूना मांस और गाय का कच्चा दूध पीते हैं। घर के भीतर लकड़ी और मिट्टी के कुछ पात्र रखे हुए दिखाई दिए। गाँव की युवा स्त्रियाँ लकड़ी से पशुओं की तराश कर मूर्ति बनाते हैं। वृद्धा पशुओं की खाल से वस्त्र और हड्डियों से माला बनाती हैं। पास की छोटी क्यारियों में औषधीय वनस्पतियाँ उगाती हैं। गाँव के पुरुष मवेशियों को चराने के लिए ले जाते हैं। प्यास लगने पर गाय के गले में तीर से छेद कर थोड़ा खून निकालकर पीते हैं। फिर उस स्थान पर वनस्पतियाँ हाथ से मसलकर लगा देते हैं। ऐसा करने पर रक्त का प्रवाह थम जाता है और घाव नहीं होता। इसके बारे में टीवी पर जानकारी मिली थी अब साक्षात देखने को भी मिला। गाँव की मुखिया ने मेरे गले में अपने गले का हार डाला इसका अर्थ उनकी प्रसन्नता व्यक्त करना है ऐसा हमें बताया गया। मुझे मसाई महिलाओं के साथ नृत्य करने का अद्भुत मौका मिला। यह इस यात्रा के दौरान मिला चौथा बोनस था।
मसाई में वैसे तो गर्मी के मौसम में पानी की कमी होती है, पर भारी वर्षा के बाद नदी भर उठती है। तब प्राणियों के प्रजनन की भी तैयारी शुरू होती है। मसाई की महिलाएँ भी गाढ़े लाल रंग के वस्त्र पहनती हैं। घुटने के नीचे का हिस्सा खुला रहता है। बाकी शरीर एक बड़े वस्त्र से ढका रहता है। वे अपने घर के आसपास जो औषधीय पौधे उगाती हैं उन्हें सुखाकर धुआँ निर्माण करते हैं और उससे अपने घुंघराले बाल और शरीर को स्नान कराने जैसे धुएँ से भर देते हैं। इन पौधों के जलने से एक सुगंध उत्पन्न होती है इसके कारण उनके शरीर स्वच्छ हो जाते हैं। सिर के घुंघराले बालों में जूँ नहीं पड़ते।
मसाई गाँव के बच्चे पास के कनाडियन स्कूल में पढ़ने जाते हैं। यहाँ कनाडा सरकार ने मसाई जनता को सिविलाइज्ड बनाने की जिम्मेदारी ली है साथ ही उनके बच्चों को पौष्टिक भोजन, औषधि आदि भी दी जाती है। साथ ही साथ प्रकृति की पूजा करने वाली यह मसाई जाति की अगली पीढ़ी अंग्रेज़ी तो सीख ही रही है साथ में ईसाई धर्म में परिवर्तित भी होती जा रही है। अगर देखा जाए तो वे अपनी जड़ों से ,मूल संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं।
चौथे दिन दिन हम गैंडे देखने गए। अफ्रीकी गैंडों की नाक के ऊपर दो खड्गनुमा सींग होते हैं। ये वास्तव में बाल हैं और इसमें औषधीय गुण होते हैं। इसी कारण चोरी -छिपे इन पशुओं का शिकार किया जाता है। गैंडे घासखोर प्राणी हैं इसलिए जहाँ ऊँची घास होती है वे उसी इलाके में पाए जाते हैं। वन सुरक्षा या रेंजर गैंडे प्रजाति की सुरक्षा में सतर्कता से तैनात रहते हैं। उस दिन केवल हम दोनों ही थे। हम सुबह पाँच बजे ही निकल गए। हमारे साथ पैक्ड नाश्ता और फ्लास्क में भरकर गर्म कॉफी की व्यवस्था दी गई थी। साथ ही कुछ फल, तश्तरियाँ ,पानी की बोतलें, काँटे -चम्मच,छुरी, बटर, सॉफ्ट ड्रिंक के टेट्रापैक एक बड़े से थर्मोकोल के बक्से में पैक कर के दिया गया।
काफी यात्रा के बाद जीप चालक हमें ऐसे स्थान पर ले गया जहाँ नज़दीक से हम गेंडों को देख सकें। गेंडे भी आक्रमक होते हैं। वे अकेले ही घूमते हैं। मादा गैंडा अपने बच्चे के साथ दिखाई देती है। नर मादा केवल तब साथ होते हैं जब प्रजनन या मैथुन क्रीड़ा का मौसम होता है।
हमने दो गर्भवती मादाएँ देखीं जो सुरक्षा के घेरे में रखी गई थीं। हम उन्हें गाड़ी से उतरकर पास जाकर देख सके क्योंकि उनका सेवक उनके साथ ही था। यह एक अद्भुत रोमांचक और अविस्मरणीय अनुभव था हमारे लिए। गेंडे की गर्भावस्था पंद्रह से सोलह माह तक चलती है। शिशु के जन्म के बाद वह तुरंत खड़ा हो जाता है और माँ का ही दूध पीता है। माँ अपने शावक को दो वर्ष तक दूध पिलाती है।
इतनी नज़दीक से गैंडों को देखना इस यात्रा के दौरान मिला पाँचवा बोनस था। लौटते समय दस बज चुके थे। हम एक ऊँची चट्टान के ऊपर जा बैठे। चालक ने दरी बिछाई, फिर साथ लाए गए थर्मोकोल के बक्से से निकालकर हम तीनों ने नाश्ता खाया। चालक ने मसाई लोगों के जीवन के बारे में कई जानकारियाँ दीं। जैसे एक कबीले के लोग अपने कबीले की लड़की से विवाह नहीं कर सकते। दूसरे दूर गाँव की लड़की ब्याहकर लाई जाती है। लड़की अपने साथ दहेज़ के रूप में गायें लाती हैं। नई दुल्हन का कबीले में स्वागत होता है और कई दिनों तक उत्सव मनाया जाता है। उसने यह भी कहा कि आजकल लड़के पढ़ लिखकर , अंग्रेज़ी सीखकर कंप्यूटर पर काम करना सीखने लगे हैं। पर पढ़े लिखे लड़के कबीला छोड़कर अलग शहरों में पक्का घर बनाकर रहते हैं तथा नौकरी करते हैं। इस कारण अब मसाई कबीले घटते जा रहे हैं।
अब हम रिसोर्ट की ओर लौटने लगे, इतने में चालक को वॉकी -टॉकी में एक कॉल आया। उसने तुरंत गाड़ी घुमाई और हमें ऊँचे ऊँचे वृक्षों के बीच ले गया। वहाँ कुछ वृक्षों पर और कुछ नीचे मैदान पर विशाल गिद्धों का झुंड दिखाई दिया जो तीव्र गति से किसी मरे ज़ीब्रा के बचे- खुचे मांस नोचकर खा रहे थे। अद्भुत दृश्य था। आपस में लड़ भी रहे थे और खाते जा रहे थे। यह हमारी यात्रा के दौरान मिला छठवाँ बोनस था।
पाँचवे दिन हम सभी को दोपहर के भोजन के बाद मसाई के विशाल मैदान का चक्कर लगाने के लिए ले जाया गया। बड़ी संख्या में हाथी के झुंड, जिराफ़ उनके बच्चे , ज़ीब्रा दिखाई दिए। दोपहर को तेज़ धूप थी। एक अद्भुत दृश्य देखने को मिला अधिकतर ज़ीब्रा जोड़े में दिखाई दिए और दोनों दो दिशाओं में मुख किए खड़े थे। चालक ने समझाया कि जब ज़ीब्रा एक जगह पर खड़े होते हैं तब आगे और पीछे से किसी आक्रमण से बचने के लिए वे इस तरह खड़े होते हैं। ऐसा करके वे अपने को सुरक्षित कर लेते हैं मुश्किल पड़े दो दौड़ने लगते हैं। हम जब आवास की ओर लौटने लगे तो हमें बड़ी संख्या में शुतुरमुर्ग के झुंड दिखाई दिए। वे तीव्र गति से बस दौड़ रहे थे। जीपचालक ने उनके पीछे जीप दौड़ाई तो उन्होंने अपनी गति बढ़ा दी। हमने ही फिर चालक को उनका पीछा करने से मना किया। हमें यह अनुचित लगा।
हम अब अपने आवास की ओर लौटने लगे। भारी संख्या में विशाल मोटे सींगवाले जंगली भैंस जुगाली करते हुए बैठे थे। उनका आकार विशाल ,तगड़े और भयंकर दिख रहे थे। भोजन के बाद वे सब बैठ जाते हैं और जुगाली करते हैं। वे भी सब झुंड में रहते हैं।
उस दिन शाम को सभी पर्यटकों के लिए शुतुरमुर्ग नृत्य का आयोजन किया गया था। यह नृत्य मसाई जाति के पुरुष ही दिखाते हैं। साथ ही मसाई जाति के नृत्य संगीत आदि का आयोजन भी था।
छठवें दिन ही सुबह को आठ बजे हम उसी स्थान पर लौटकर आए जहाँ हम उतरे थे। कुछ ही समय में विमान आया और हमने अपनी आँखों में अति मनमोहक वन्य जीवन के सुखद दृश्य को सदा के लिए समाहित कर नई ऊर्जा ,नए दृष्टिकोण, नई जानकारी लिए अपनी उड़ान भरी!!
माइग्रेशन के इस दृश्य को देखकर तीन बातें मैंने अपने जीवन में सीखी –
- अपने जीवन में कुछ कठिन निर्णय स्वयं को ही लेने पड़ते हैं।
- समाज में रहने के लिए कभी – कभी भय को पीछे छोड़कर अगुआ भी बनना पड़ता है जो दूसरों के लिए आदर्श बन जाता है।
- अपने कौम, अपने देश के लिए शहीद भी होना पड़ता है।
मनुष्य के जीवन में साधारण से महान बनने की यह यात्रा कठिन अवश्य होती है पर सुखदाई भी।
आज कैमरे में कैद तस्वीरें आनंद दे जाते हैं।