हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 28 – मूक मौन ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मूक मौन।)

☆ लघुकथा – मूक मौन श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जिंदगी में हर किसी की ख्वाहिश पूरी नहीं होती सब कुछ उसे अदृश्य नाटक की तरह होता है जैसे हम एक पेड़ पर चढ़ने जा रहे हैं आम तो खाना चाहते हैं पर उसे पेड़ पर रहने वाले चींटे, चींटियों एवं पक्षियों के घोंसले सभी के जनजीवन उसमें पलता है। हम उनके घर में जाएंगे तो वह अपनी सुरक्षा के लिए हमारे ऊपर हमला करेंगे ठीक उसी तरह जिस तरह हम घर से बाहर जाते हैं तो अपने घर को ताला देते हैं। इस तरह जीवन भी सबके शहरों से चलता है हर किसी को देखा तो एक दुनिया दिखती है प्रकृति भी मुख मौन होकर हमें बहुत कुछ देती है। हम क्या लेते हैं यह हमारे ऊपर है हम तो सिर्फ लड़ाई झगड़ा और स्वयं के स्वांग में उलझे हैं…।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 196 – तुलादान ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “तुलादान”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 196 ☆

🌻लघु कथा🌻 ⚖️ तुलादान ⚖️

अपने पुत्र के प्रतिवर्ष के जन्म दिवस पर तुला दान करके पिताजी गदगद हो दान स्वरूप अन्न, वस्त्र, फल, बर्तन, सूखे मेवे बाँटा करते थे।

आज पिताजी के दशगात्र  में विदेश में रहने वाला बेटा घर के सारे पुराने पीतल, काँसे के बर्तनों को निकाल कर पंडित जी के सामने तराजू पर रखकर कह रहा था… जो कुछ भी करना है,  इससे ही करना है। आप अपना हिसाब- किताब, दान- दक्षिणा सब इसी से निपटा लीजिएगा।

जमीन के सारे कागजात मैंने विक्रय के लिए भेजें हैं। इन फालतू के आडंबर और मरने के बाद मुक्ति – मोक्ष के लिए मैं विदेशी रुपए खर्च नहीं कर सकता।

मुझे वापस जाना भी है। पंडित जी ने सिर्फ इतना कहा… ठीक है मरने बाद पिंडदान होता है और पिंडदान के रूप में आप कुछ नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं।

आज आप स्वयं बैठ जाइए क्योंकि आपके पिताजी आपके लिए  सदैव तुलादान करते थे मैं समझ लूंगा यह वही है।

पास खड़ा उनका पुत्र भी कहने लगा.. बैठ जाइए पापा मुझे भी पता चल जाएगा कि भविष्य में ऐसा करना पड़ता है। तब मैं पहले से आपके लिए तुलादान की व्यवस्था करके रख लूंगा। बेटे ने देखा तराजू के तोल में वह स्वयं एक पिंड बन चुका है।

चुपचाप कमरे में जाता दिखा। पंडित जी मुस्कुराते हुए घर की ओर चल दिए।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – “सरकार के कान में” ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल ☆

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। क्षितिज लघुकथा रत्न सम्मान 2023 से सम्मानित। अब तक 450 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं बारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं  (वार्षिक)  का  सम्पादन  एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है, जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। आज प्रस्तुत हैआपकी  एक विचारणीय लघुकथा – “सरकार के कान में“.)

☆ लघुकथा – सरकार के कान में ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल 

‘अरे बाबा क्यों इतने जोर शोर से चिल्ला रहे हो?’ कबाड़ी से एक बुजुर्ग ने पूछा.

‘आपके गेट के सामने बोर्ड जो लगा है – गेट के बाहर से चिल्लाएं. कबाड़ी फेरी वालों का अंदर आना मना है.’

‘वह तो ठीक है पर इतने जोर से चिल्लाने के लिए थोड़े ही लिखा है. ससुरे कान बज उठे.’

‘अरे आपके कान कच्चे हैं तो हम का करें. ई सड़क पर तो हम जुलूस बनाकर भी चिल्लाएं तो भी ससुरी ई सरकार के कान में जूं नहीं रेंगती.’

‘एक कान आपके हैं, एक कान सरकार के, दोनों के कान में कितना अंतर है जी-‘ कहकर फेरीवाला आगे बढ़ गया. बुज़ुर्गवार उसे ठगे से खड़े देखते रह गए.

– अप्रैल-जून २०११ छै शब्द से साभार

❤️

© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपादक प्रतिनिधि लघुकथाएं

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संभावना ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – संभावना ? ?

-देखता हूँ कि रोज़ सुबह बिना लांघा आप बालकनी में गमले में रखे पौधों में पानी डालते हैं।

-जी डालना ही चाहिए।  इन पौधों को गमले में हमने लगाया है तो इन्हें समुचित जल, प्रकाश, खाद देना हमारा कर्तव्य बनता है। ये पौधे अपनी हर आवश्यकता के लिए हम पर निर्भर हैं।

-बात तो आपने पते की कही है। अच्छा एक बात और बताइए।

-पूछिए।

-यह इधर वाला जो गमला है, इसमें तो बहुत दिनों से कोई पौधा नहीं है। फिर इसकी मिट्टी में पानी क्यों डालते हैं आप?

-हाँ, इस गमले में कोई पौधा नहीं है। लेकिन इसकी माटी में पहले वाले पौधे के कुछ बीज पड़े होने की संभावना अवश्य है। हो सकता है कि उनमें से कोई बीज अंकुरण की तैयारी में हो। मैं गमले की मिट्टी नहीं, उसमें निहित संभावना के बीज सींचता हूँ।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 💥 श्री हनुमान साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – मानसिकता… ☆ सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ☆

सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री नरेन्द्र कौर छाबड़ा जी पिछले 40 वर्षों से अधिक समय से लेखन में सक्रिय। 5 कहानी संग्रह, 1 लेख संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 पंजाबी कथा संग्रह तथा 1 तमिल में अनुवादित कथा संग्रह। कुल 9 पुस्तकें प्रकाशित।  पहली पुस्तक मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ को केंद्रीय निदेशालय का हिंदीतर भाषी पुरस्कार। एक और गांधारी तथा प्रतिबिंब कहानी संग्रह को महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी का मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार 2008 तथा २०१७। प्रासंगिक प्रसंग पुस्तक को महाराष्ट्र अकादमी का काका कलेलकर पुरुसकर 2013 लेखन में अनेकानेक पुरस्कार। आकाशवाणी से पिछले 35 वर्षों से रचनाओं का प्रसारण। लेखन के साथ चित्रकारी, समाजसेवा में भी सक्रिय । महाराष्ट्र बोर्ड की 10वीं कक्षा की हिन्दी लोकभरती पुस्तक में 2 लघुकथाएं शामिल 2018)

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा मानसिकता

? लघुकथा – मानसिकता… ? सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ?

बंदरों का एक झुंड जंगल से निकल उछल कूद मचाता सड़क के करीब आ गया. इतने में ही दूर से तेज रफ्तार से आती कार देख सभी कूद कर सड़क पार कर गए लेकिन एक बंदर पीछे रह गया. दुर्भाग्यवश वह कार की चपेट में आ गया. कार तो निकल गई पर बंदर अचेत हो गया था. सभी साथी बंदर उसके पास पहुंचे. चारों ओर से उसे घेर कर बैठ गए और उसके ठीक होने का इंतजार करने लगे. तभी एक बंदर ने समीप के पेड़ से पत्तों से भरी टहनी तोड़ी और उससे पंखे की तरह हवा करने लगा. कुछ ही देर में वह बंदर होश में आ गया. सभी खुशी से नाचते कूदते जंगल की ओर चल पड़े.

रास्ते में एक बंदर ने कहा- “ इंसान हमें अपना पूर्वज मानता है. अब बताओ आज जो घटना हमारे साथ घटी वही किसी इंसान के साथ घटी होती तो क्या होता?” एक बंदर जो सबसे बुजुर्ग व समझदार था बोला- “ घायल इंसान के आसपास खड़े लोग अपने मोबाइल निकाल कर वीडियो बनाते सेल्फी लेते और आगे बढ़ जाते.

© नरेन्द्र कौर छाबड़ा

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – चोर ☆ श्री सदानंद आंबेकर ☆

श्री सदानंद आंबेकर

(श्री सदानंद आंबेकर जी की हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में विशेष अभिरुचि है। उनके ही शब्दों में – “1982 में भारतीय स्टेट बैंक में सेवारम्भ, 2011 से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर अखिल विश्व गायत्री परिवार में स्वयंसेवक के रूप में 2022 तक सतत कार्य। माँ गंगा एवं हिमालय से असीम प्रेम के कारण 2011 से गंगा की गोद एवं हिमालय की छाया में शांतिकुंज आश्रम हरिद्वार में निवास। यहाँ आने का उद्देश्य आध्यात्मिक उपलब्धि, समाजसेवा या सिद्धि पाना नहीं वरन कुछ ‘ मन का और हट कर ‘ करना रहा। जनवरी 2022 में शांतिकुंज में अपना संकल्पित कार्यकाल पूर्ण कर गृह नगर भोपाल वापसी एवं वर्तमान में वहीं निवास।” आज प्रस्तुत है श्री सदानंद जी  की एक विचारणीय लघुकथा “चोर। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्री सदानंद जी की लेखनी को नमन।) 

☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – चोर ☆ श्री सदानंद आंबेकर ☆

सतीश कार्यालय से घर आया तब तक सायंकाल का अंधेरा उतर चुका था। घर में आते ही पत्नी ने चिंता से पूछा – आज इतनी देर कैसे हो गई ?

अपने बैग को अलमारी में रखते हुये सतीश ने कहा – “अरे आज जैसे ही बस से उतरा तो अपनी सडक की अंतिम दुकान में एक ग्यारह बारह साल के गरीब लडके को दुकानदार ने पारले बिस्किट का पैकेट चुराते हुए पकड लिया। वहीं उसकी अच्छी धुनाई हो रही थी, मैंने भी दस पांच हाथ तो जड ही दिये उस चोट्टे को। देखो तो कैसे दिलेरी से चोरी करते हैं ये लोग… बढिया से ठोक कर फिर उसे भगा दिया। बस उसी मार कुटाई में आने में थोडी देर हो गई।”

हाथ पैर धोकर वह चाय पीने बैठा ही था कि अंदर से उसकी छोटी बेटी ने आकर पिता से पूछा पापा, मेरे लिये सफेद कागज लाये या आज फिर भूल गये ?

उसके सिर पर हाथ फिराते हुये उसने कहा – “अरे बिटिया आज तो दफ्तर जाते ही कागज का पूरा पैकेट निकाल कर बैग में रख लिया था। बस अभी देता हूं।”

यह सुनकर बेटी ने पूछा – “पापा, ऑफिस से क्यों लाये ? क्या आपके साहब से इसके लिये पूछा था ?”

यह सुनकर हंसते हुये सतीश बोला- “अरे बच्चे, इसमें उनसे पूछने की क्या आवश्यकता है, मैंने कोई चोरी की है क्या ?”

 ©  सदानंद आंबेकर

म नं सी 149, सी सेक्टर, शाहपुरा भोपाल मप्र 462039

मो – 8755 756 163 E-mail : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 27 – सुख शांति ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – सुख शांति)

☆ लघुकथा – सुख शांति श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

आज घर में बड़ी चहल-पहल और रौनक है क्या बात है मां अरुण ने गंभीर स्वर में अपनी मां से कहा।

तुझे तो घर की और ना किसी की चिंता है बस तू अपने ऑफिस जा और वहां का ही काम कर।

नाराज क्यों होती हो देखो ऑफिस से थका आया हूं कम से कम एक कप चाय ही पिला दो।

हां अभी चाय बनाती हूं आज घर में सत्यनारायण की पूजा है आसपास के सभी लोग आ रहे हैं खाना बनाने के लिए हलवाई को बुलाया है, वह भोग और सब बना देगा। तेरे हाथों से पूजा करवा देती हूं जिससे घर में सुख शांति तो रहेगी और लक्ष्मी भी आएगी।

मां क्या मजाक कर रही हो घर की लक्ष्मी मेरी पत्नी जो कि तुम्हारी बहू है पोती को लेकर मायके चली गई है तुम्हारे रोज-रोज के पूजा पाठ के कामों से थका कर। तुम्हारे इन्हीं सब नाटक के कारण पिताजी भी अपने दोस्तों के साथ बाहर चले जाते हैं अब क्या चाहती हो मैं भी चला जाऊं? पता नहीं तुम कैसी सुख शांति चाहती हो?

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – गरीब की गरीबी – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है  मारीशस में गरीब परिवार  में बेटी की शादी और सामजिक विडम्बनाओं पर आधारित लघुकथा गरीब की गरीबी।) 

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी ☆ — गरीब की गरीबी — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

संदर्भ : मॉरिशस में गरीब परिवार की बेटी की शादी और सामाजिक विडंबनाओं पर आधारित यह लघुकथा यहाँ के अनेक घरों का एक आईना है। 

बेटी की शादी की दौड़ धूप में लगे हुए माँ – बाप थक कर चूर हो गए थे। बेटी ससुराल गई। माँ – बाप अपनी बेटी के लिए कल्पना लोक में खोये हुए थे। भगवान बेटी के नाम जीवन भर का सुख लिख दे। परिवार के जो एक दो लोग रह गए थे वे शाम होने से पहले चले गए थे। पंडाल तोड़ा जा चुका था। कुरसियाँ घर के किनारे में रखी हुई थीं। कल सुबह यह सब वापस चला जाता। पति – पत्नी को आज की रात बहुत सावधानी बरतनी पड़ती। इधर चोरियाँ बढ़ गई हैं। इन चीजों को चुराने वाले मौके की ताक में रहते हैं। वे जानते हैं शादी पूरी हो जाने पर लोग अपनी समस्या का निदान मान कर रात को सोते हैं तो थकान के कारण नींद उन्हें बहुत दबोचती है। वे इधर खुर्राटे ले रहे हों और उधर आंगन में चोर सब कुछ चुरा कर ले जाने की ताक में हों।

बच्चे सो गए थे। पति पत्नी की आँखों में नींद होने के बावजूद वे बैठे हुए थे। बाहर की चीजों के लिए उन्हें जागना तो था। पर इससे कहीं अधिक अपने भविष्य की आपदाओं का लेखा – जोखा आवश्यक मान कर उन्हें अपनी आँखों की नींद को भूल जाना था। जहाँ तक हो सका शादी के लिए अपनी कमाई से आपूर्ति करते रहे और कर्ज ने भी गर्दन तक की सवारी कर ली। सोनार को थोड़ा देना अभी बाकी था। इधर उधर के सारे कर्ज को मिलाएँ तो वह बोझिल ही था।

दोनों इन्हीं बातों में खोये हुए थे कि दामाद का फोन आया। उसने कहा, “आप की बेटी जो उपहार ले कर आई है एक उपहार में सिन्दूर, नींबू, धान, राख, सरसों, कबूतर का सिर वगैरह मिला है। हमारे यहाँ हलचल मची हुई है। सब डरे हुए हैं। शादी तो हमारे लिए जंजाल बन गई। कहीं ऐसा न हो यहाँ से जोड़े मुर्दे निकलें।”

दामाद को पता था यहाँ एक नामी ओझा रहता है। वह कह रहा था उस ओझा को ले कर अभी ही आएँ। दामाद ने न कह कर भी एक तरह से कह ही तो दिया उपहार में मिली ये सारी समस्याएँ आप लोगों की ओर से हैं तो आप लोग ही संभालें।

अपनी बेटी होने से माँ – बाप उसके लिए अपनी जान लड़ाते। सवाल पैदा हुआ इतनी रात को उस ओझा के घर जाना होता। उससे कहें तो क्या वह अभी जाने के लिए तैयार होगा? कौन नहीं जानता वह दस बीस हजार की बात करता है। जाने के लिए टैक्सी भी देखनी पड़ती। टैक्सी वाला ना नुकर करते दाम दोगुना कहता। यह सब मानो अग्नि परीक्षा हो !

गरीब की गरीबी आखिर किससे देखी न गई?

***

© श्री रामदेव धुरंधर

15 – 06 — 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #236 ☆ लघुकथा – सत्य की राह ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा सत्य- की- राह)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 236 – साहित्य निकुंज ☆

☆ सत्य- की- राह ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

सलोनी ने अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ अनमोल से शादी की थी। माता-पिता ने भी ज़्यादा कुछ नहीं बोला उन्होंने मंदिर में शादी कर दी। सलोनी के अलावा उनकी चार बेटियाँ और है। उन्होंने सोचा कोई बात नहीं अगर यह चाहती है तो उसे अपनी इच्छा करने दो जो होगा देखा जाएगा। 4 वर्ष हो गए शादी को एक बेटी भी है जिन्दगी खुशहाल है।

अनमोल और सलोनी दोनों की उम्र करीब 22-23 वर्ष की है। अनमोल किसी छोटी कंपनी में काम करता है और अपनी रोजी-रोटी दिल्ली में चलाता है। अभी कुछ दिन पहले परिवार की एक शादी में उससे मुलाकात हुई।

अवकाश के दिन पुरानी कंपनी के बॉस उसके घर आए और उससे कहा – “कि तुमने काम क्यों छोड़ा है इतना बढ़िया काम इतना अच्छा पैसा तुम्हें कहाँ मिलेगा।” अनमोल ने कहा – “नहीं सर मैंने दूसरी कंपनी ज्वाइन कर ली है मैं वह काम नहीं कर सकता।” थोड़ी देर बाद सलोनी चाय बनाकर लाती है और बॉस को नमस्ते कर अंदर चली जाती है। तभी उन्होंने मेरी बीवी को देखा और मुझसे कहा- “इतना बढ़िया खजाना तुमने घर में छुपा रखा है इसे क्या शोकेस में सजाओगे।” सर जब हमने शादी की थी तब मेरा मकसद कुछ और था लेकिन जैसे ही सलोनी की संगत मुझे मिली मेरा मन बदल गया मेरी आत्मा ने मुझे धिक्कारा लड़कियाँ सप्लाई करने का मैं यह ग़लत काम कभी नहीं करूंगा। ठीक है ठीक है तुमने जो सोचा सही सोचा होगा। अगर कभी मन परिवर्तन हो तो तुम्हारे लिए दरवाजे खुले हैं।

अनमोल मन ही मन सोच रहा था कहीं सलोनी ने हम दोनों की बातें न सुन ली हो।

बॉस के जाने के बाद सलोनी अपनी बेटी को लेकर बाहर आती है और कहती है- “आज मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रही हूँ मैं गंदगी में जाने से बची और तुमने सत्य की राह पर चलने का निर्णय लिया।” अनमोल सलोनी की बात सुनकर निशब्द—-हो गया।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – पैसों का पेड़ ☆ श्री सदानंद आंबेकर ☆

श्री सदानंद आंबेकर

(श्री सदानंद आंबेकर जी की हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में विशेष अभिरुचि है। उनके ही शब्दों में – “1982 में भारतीय स्टेट बैंक में सेवारम्भ, 2011 से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर अखिल विश्व गायत्री परिवार में स्वयंसेवक के रूप में 2022 तक सतत कार्य। माँ गंगा एवं हिमालय से असीम प्रेम के कारण 2011 से गंगा की गोद एवं हिमालय की छाया में शांतिकुंज आश्रम हरिद्वार में निवास। यहाँ आने का उद्देश्य आध्यात्मिक उपलब्धि, समाजसेवा या सिद्धि पाना नहीं वरन कुछ ‘ मन का और हट कर ‘ करना रहा। जनवरी 2022 में शांतिकुंज में अपना संकल्पित कार्यकाल पूर्ण कर गृह नगर भोपाल वापसी एवं वर्तमान में वहीं निवास।” आज प्रस्तुत है श्री सदानंद जी  की एक विचारणीय लघुकथा “पैसों का पेड़। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्री सदानंद जी की लेखनी को नमन।) 

☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – पैसों का पेड़ ☆ श्री सदानंद आंबेकर ☆

नरेन्द्र और सुरेन्द्र एक पिता के दो पुत्र , सगे भाई,

नरेन्द्र ने शहर  से  इंजीनियरिंग किया,
सुरेन्द्र ने गांव के कॉलेज से बीए

नरेन्द्र ने एसएसबी की परीक्षा पास की और दिल्ली के केंद्रीय सचिवालय में राजपत्रित अधिकारी बन गया
सुरेन्द्र ने बूढे होते पिता की लगभग पांच बीघे की खेती संभाल ली

नरेन्द्र ने अपने अधिकारी मि थॉमस की बेटी जेनिफर से शादी कर ली
सुरेन्द्र ने पास के ही गांव में मामा के साले की बेटी से शादी कर ली

नरेन्द्र के घर कुछ समय बाद दो जुडवां बेटे हुये
सुरेन्द्र के यहां एक बेटा जन्मा

नरेन्द्र ने बैंक से ऋण लेकर दिल्ली में बंगला खरीदा जिसमें तीन एसी लगे थे
सुरेन्द्र ने गांव में ही सस्ते में दो एकड जमीन और ले ली और घर की छत पक्की करवा कर आसपास नीम पीपल जामुन के पेड लगवा लिये

नरेन्द्र ने बेटों को महंगे स्कूल में भर्ती किया और उनके लिये नौकर रखा
सुरेन्द्र ने बेटे को गांव की पाठशाला में भेजा और उसकी हर वर्षगांठ पर नई खरीदी जमीन पर दशहरी आम के पांच पौधे लगाये

नरेन्द्र की तीस वर्ष बाद सेवा निवृत्ति तक उसके दोनों बेटे पढने विदेश चले गये
सुरेन्द्र के अधेड होते होते उसके बेटे ने पिता की खेती और आम के बगीचे में लगे सौ पेडों का काम संभाल लिया

नरेन्द्र सेवानिवृत्ति के बाद दिन भर घर पर रहने लगा, कोई काम नहीं होने से खिन्नता के कारण नित्य ही पत्नी से चिकचिक होने लगी
सुरेन्द्र के खेती और अमराई का काम बेटा देखता और वह पूरे दिन आम की ठंडी छांह में शुद्ध वायु का सेवन करता साथ ही रखवाली भी करता

नरेन्द्र के नौकरी से छूटते ही घर के खर्चे, विदेश से दोनों बेटों की पैसों की मांग दिन ब दिन बढने लगी, सीमित आय में घर चलाना मुश्किल हो गया। तंग आकर उसने बच्चां से कहा मैं अब तुम्हारी मांगे पूरी नहीं कर सकता, यहां क्या पैसे पेडों पर उग रहे हैं ?

सुरेन्द्र के बगीचे में इस बार सौ पेडों पर लगभग दो ट्राली आम हुये। बेटा उन्हें मंडी में बेचकर आया और रुपयों का बंडल पिता के हाथ में रख दिया। इतने रुपये देखकर पिता बोला –  बेटे, ये पैसे पेडों पर उगे हैं, इन्हें संभाल कर रखना।

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©  सदानंद आंबेकर

म नं सी 149, सी सेक्टर, शाहपुरा भोपाल मप्र 462039

मो – 8755 756 163 E-mail : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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