श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – भीख।)
☆ लघुकथा – भीख ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
ऑफिस जाने की बहुत जल्दी मैं गोपाल ने चौराहे पर लाल बत्ती देखे कर बहुत जोर से गुस्सा मैं बड़बड़ने लगा पता नहीं क्यों लोग चौराहे पर खड़े हो जाते हैं।
10 वर्ष का लड़का उसके स्कूटर को पूछने लगा और उसने कहा कि साहब ₹50 देकर पुण्य कमा लो।
गोपाल ने कहा मुझे अगर पुण्य कमाने का शौक होता तो मैं मंदिर में जाता यहां नहीं आता?
हरी बत्ती जलती हुई और वह गाड़ी स्टार्ट किया तभी उसके कान में एक संवाद सुनाई दिया तू भी धंधा में नया नया आया है स्कूटी की तरफ नहीं जाते हैं कार,बड़ी गाड़ी की तरफ जाते हैं वह लोग ही पैसे देते हैं यह लोग तो बस ऐसा ही ज्ञान देते हैं।
गोपाल को अपमानित सामाजिक श्रेष्ठता बौद्ध का दर्द ज्यादा दरिया दिल दिखाते हुए उसने उस लड़के को बुलाकर ₹100 दिए।
उस लड़के ने कहा बाबूजी आप ही अपना रुपया रख लो शायद आप के काम आए ऐसा कह कर जेब में डाल दिया।
अपनी भी विवशता थी और अपमान से हृदय छलनी हो गया था और उन्होंने तुरंत स्कूटर स्टार्ट करके अपने ऑफिस की ओर कूच किया।
गोपाल ने सोचा- पहले लोग भीख देने पर दुआ देते थे पर अब भिखारियों की भी तरक्की हो गई है उनका भी स्तर और ठाट बाट बढ़ गया है यह नौकरी से अच्छा धंधा है…..।
तभी उसे बॉस ने अपने केबिन में बुलाया – ऑफिस आने का यही समय है क्या?
गोपाल -दोनों हाथ जोड़कर अपने बॉस से माफी की भीख मांगने लगा सर मुझे कुछ आवश्यक कार्य के कारण आज ऑफिस आने में देर हो गई…..।
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈