डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित प्रेरक लघुकथा अजीजन बाई। यह लघुकथा हमें हमारे इतिहास के एक भूले बिसरे स्त्री चरित्र की याद दिलाती है। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस प्रेरणास्पद लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 64 ☆
☆ अजीजन बाई ☆
वह प्रसिद्ध नर्तकी थी, उसे घुंघरू पहना दिए गए थे। महफिल में उसका नृत्य देखने दूर – दूर से लोग आया करते थे। बात सन् 1857 की है जब स्वतंत्रता सेनानी मातृभूमि की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा रहे थे। अजीजन बाई उदास थी, तबले की थाप और घुंघरुओं की आवाज अब उसे अच्छी नहीं लग रही थी। उसने घुंघरू उतार दिए। जहाँ कभी महफिलें गुलजार हुआ करती थीं, वहाँ अजीजन क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्वाधीन भारत के सपने संजोने लगी। उसका प्रेम अब देशभक्तों पर लुट रहा था। उसने अपने बेशकीमती गहने, धन-दौलत सब भारत माता के आँचल में खुशी -खुशी न्यौछावर कर दिए।
अजीजन की मस्तानी टोली अंग्रेजों की छावनी में जाकर उनका मनोरंजन करने के बहाने वहां की गुप्त सूचनाएं स्वतंत्रता सेनानियों तक पहुंचाया करती थी। वे घायल क्रांतिकारियों की देखभाल करतीं, उन्हें भोजन और जरूरी सामान पहुँचातीं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बिठूर के युद्ध में हार जाने पर नाना साहब और तात्या टोपे तो बच निकले, अजीजन पकड़ी गई। अंग्रेज अधिकारी ने शर्त रखी कि यदि वह स्वतंत्रता सेनानियों की योजनाओं के बारे में बता दे तो उसे माफ कर दिया जाएगा। अजीजन मुस्कुराते हुए बोली – जानकारी देने का तो सवाल ही नहीं है और माफी तो अंग्रेजों को हमारे देशवासियों से मांगनी चाहिए जिन पर उन्होंने अत्याचार किए हैं। हम तो अपनी मातृभूमि का कर्ज उतार रहे हैं बस। इतना सुनते ही अपमान से तिलमिलाए अंग्रेज अधिकारी ने अजीजन के शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया।
अजीजन पूरे भारत देश की अज़ीज़ हो गईं।
© डॉ. ऋचा शर्मा
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