हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 60 ☆ ऐतिहासिक लघुकथा – वीरांगना ऊदा देवी ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भूली बिसरी ऐतिहासिक लघुकथा  ‘वीरांगना ऊदा देवी’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को एक अविमस्मरणीय ऐतिहासिक लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 60 ☆

☆ ऐतिहासिक लघुकथा – वीरांगना ऊदा देवी ☆

16 नवंबर 1857 की बात है अंग्रेजों को पता  चला कि  लगभग दो हजार विद्रोही भारतीय सैनिक  लखनऊ के सिकंदरबाग में ठहरे हुए हैं। अंग्रेज  चिनहट की हार से बौखलाए हुए थे और भारतीयों से बदला लेने की फिराक में थे। अंग्रेज अधिकारी कोलिन कैम्पबेल के नेतृत्व में  सैनिकों ने  सिकंदरबाग़ को घेर लिया। देश के लिए मर मिटनेवाले  भारतीय सैनिक आने वाले संकट से अनजान  थे। अवध के छ्ठे बादशाह वाजिद अली शाह ने महल में रानियों की सुरक्षा के लिए  स्त्रियों की एक सेना बनाई थी। ऊदा देवी  इस सेना की सदस्य थीं. अपने साहस और बुद्धिबल  से जल्दी ही नवाब की बेगम  हज़रत महल की महिला सेना की प्रमुख बना दी गईं। साहसी ऊदा जुझारू स्वभाव की थीं, डरना तो उसने जाना ही नहीं था और निर्णय लेने में तो वह एक पल भी ना गंवाती थीं।

सिकंदरबाग में  अंग्रेज सैनिक भारतीय सैनिकों के लिए काल बनकर आ रहे थे. वीरांगना ऊदा देवी हमले के वक्त वहीं थीं। देश के लिए जान न्यौछावर करनेवाले  इन वीर जवानों को वे अपनी आँखों के सामने मरते नहीं देख सकती थीं। उसने पुरुषों के कपडे पहने.  हाथ में बंदूक ली और  गोला-बारूद लेकर वह पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं।  पेड़ पर से लगातार गोलियों से हमलाकर उसने अंग्रेज़ सैनिकों को सिकंदरबाग़ में  प्रवेश नहीं करने दिया। दरवाजे पर ही रोके रखा।

ऊदा देवी ने अकेले ही ब्रिटिश सेना के दो बड़े अधिकारियों और 36 अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। यह देखकर अंग्रेजी अधिकारी बौखला गए वे  समझ ही नहीं सके कि कौन और कहाँ से उनके सैनिकों को मार रहा है। तभी एक अंग्रेज सैनिक की निगाह पीपल के पेड़ पर गई। उसने देखा कि पेड़ की डाली पर छिपा बैठा  कोई लगातार गोलियां बरसा रहा है। बस फिर क्या था। अंग्रेज़ सैनिकों ने निशाना साधकर उस पर गोलियों की बौछार कर दी।  एक गोली ऊदा देवी को लगी और वह  पेड़ से नीचे गिर पड़ीं। अँग्रेज़ अधिकारियों को बाद में पता चला कि  सैनिक के  वेश में वह भारतीय सैनिक कोई और नहीं बल्कि वीरांगना ऊदा देवी थी। अंग्रेज़ अधिकारी ने ऊदा देवी के शौर्य  और पराक्रम  के सम्मान  में अपना हैट उतारकर उन्हें सलामी दी थी।।

 

 

—————————-

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 77 – हाइबन- रंग बदलती की टीटोडी ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- रंग बदलती की टीटोडी। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 77☆

☆ हाइबन- रंग बदलती की टीटोडी ☆

इसे आम भाषा में बड़ी टिटोडी कहते हैं। मगर यह टिटोडी नहीं है। इसे ग्रेट थिकनी कहते हैं। यह टिटोडी से बड़ी तथा अनोखी होती है।

यह पत्थरों के बीच छूप कर अपनी जान बचाती है। इसके लिए कुदरत ने इसे अजीब क्षमता दी है। यह जिस पत्थर के बीच छुपती है अपने को उसी रंग में रंग लेती है।

इसकी इसी विशेषता के कारण इसका दूसरा नाम स्टोन कर्ली है। यह हमेशा जोड़े में रहती है।इसकी रंग बदलने की विशेषता एक कारण यह कम दिखाई देती है।

गर्म पत्थर~

सांप के हमले से

छुटी टिटोडी।

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

16-02-2021

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ बोध कथा – कल्पक योजना ☆ अनुवाद – अरुंधती अजित कुळकर्णी

☆ जीवनरंग ☆ बोध कथा – कल्पक योजना ☆ अनुवाद – अरुंधती अजित कुळकर्णी ☆ 

||कथासरिता||

(मूळ –‘कथाशतकम्’  संस्कृत कथासंग्रह)

?लघु बोध कथा?

कथा २०. कल्पक योजना

यवन देशात ‘महमूद सुलतान’ नावाचा राजा होता. परदेशात जाऊन युद्ध करण्याच्या त्याच्या स्वभावामुळे त्याच्या प्रजेला खूप त्रास होत होता. त्यामुळे देश ओसाड, रिक्त झाला. जनता देश सोडून जाऊ लागली. तेव्हा त्याच्या मंत्र्याने ‘काहीतरी उपाय करून राजाची विवेकबुद्धी जागृत केली पाहिजे’ असा पक्का निर्धार केला. त्यामुळे जेव्हा जेव्हा तो राजाशी संवाद साधत असे, तेव्हा तेव्हा तो म्हणत असे, “मी पूर्वी एका सिद्धपुरुषाची सेवा केली होती. त्याच्या कृपेमुळे मी पक्ष्यांची भाषा शिकलो. पक्षी जे बोलतात ते सगळे मला कळते.”

एकदा शिकारीहून परत येताना राजाने मार्गात एका वृक्षावर बसलेल्या घुबडांचे बोलणे ऐकून मंत्र्याला उद्देशून म्हटले, “अरे, तू पक्ष्यांची भाषा जाणतोस ना? तर हे दोन घुबड काय बोलत आहेत ते मला सांग.” खरोखरच ते बोलणे समजत आहे असे भासवत मंत्र्याने काही वेळ ते कूजन ऐकले आणि राजाला म्हणाला, “महाराज, आपण ते बोलणे ऐकणे योग्य नाही.” “जे काही असेल ते पण तू मला सांगितलेच पाहिजेस” असा आग्रह राजा करू लागला तेव्हा विनयपूर्वक मंत्री सांगू लागला.

“महाराज, या दोन घुबडांपैकी एका घुबडाला कन्या तर दुसऱ्याला पुत्र आहे. दोघांचाही त्यांच्या विवाहासाठी प्रयत्न चालू आहे. पुत्र असलेल्या घुबडाने दुसऱ्या घुबडाला शेवटी विचारले की ‘माझ्या पुत्राला कन्या देताना पन्नास उजाड गावे देणार का?’ ‘देवाच्या कृपेने आमचे सुलतान महमूद सुखाने राज्य चालवीत आहेत. तेव्हा आमच्याकडे उजाड गावांना काहीही तोटा नाही. आपण पन्नास उजाड गावे मागीतलीत, मी पाचशे देईन’ असे कन्या असलेले घुबड म्हणाले.”

मंत्र्याचे बोलणे ऐकून दुःखी झालेल्या राजाने तत्काळ उजाड गावांचे नूतनीकरण केले व विनाकारण युद्धे करणे थांबवून प्रजेला सुखी केले.

तात्पर्य –चातुर्याने आखलेली योजना सफल होतेच.

अनुवाद – © अरुंधती अजित कुळकर्णी

≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/म्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – मोर्चा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि –  लघुकथा – मोर्चा ☆

आज फिर एक घटना घटी थी। आज फिर वह उद्वेलित हुआ था। घटना के विरोध में आयोजित होने वाले मोर्चों, चर्चाओं, प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए हमेशा की तरह वह आज भी तैयार था। कल के मोर्चा, प्रदर्शन की योजना बनी। हर प्रदर्शन में उसकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती। उसके दिये नारे मोर्चों की जान थे। रोड मैप बनाने में सुबह से शाम हो गई। वह थककर चूर हो गया।

सारी तैयारी कर बिस्तर पर लेटा। आँखों में मोर्चा ही था। बड़ी देर लगी नींद को अपनी जगह बनाने में। फिर स्वप्न में भी मोर्चा ही आ डटा। वह नारे उछालने लगा। भीड़ उसके नारे दोहराने लगी। नारों की गति बढ़ने लगी। एकाएक मानो दिव्य प्रकाश फूटा। अलौकिक दृष्टि मिली। इस दृष्टि में भीड़ के चेहरे धुंधले होने लगे। इस दृष्टि में मोर्चे के आयोजकों के पीछे खड़ी आकृतियाँ धीरे-धीरे उभरने लगीं। लाइव चर्चाओं से साधी जाने वाली रणनीति समझ में आने लगी। प्रदर्शनों के पीछे की महत्वाकांक्षाएँ पढ़ी जा सकने लगी। घटना को बाजार बनाने वाली ताकतों और घटना के कंधे पर सवार होकर ऊँची छलांग लगाने की हसरतों के चेहरे साफ-साफ दिखने लगे। इन सबकी परिणति में मृत्यु, विकलांगता, जगह खाली कराना, पुरानी रंजिशों के निबटारे और अगली घटना को जन्म दे सकने का रॉ मटेरिअल सब, स्लाइड शो की तरह चलने लगा। स्वप्न से निकलकर वह जागृति में आ पहुँचा।

सुबह उसके घर पर ताला देखकर मोर्चे के आयोजक मायूस हुए।

उधर वह चुपचाप पहुँचा पीड़ित के घर। वहाँ सन्नाटा पसरा था। नारे लगाती भीड़ की आवाज़ में एक कंधे का सहारा पाकर परिवार का बुजुर्ग फफक-फफक कर रो पड़ा।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार#2 – समाधान ☆ श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं।  आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।” )

 ☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार#2 – समाधान ☆ श्री आशीष कुमार☆

एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।

एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।

बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।

फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो।

एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो ?

पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ निर्णय ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

☆ लघुकथा ☆ निर्णय ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆ 

भवन निर्माण कार्य जोर-शोर से चल रहा था। सुगिया वहा ईंट-गारा ढोनेके काम में लगी थी। हमेशा की तरह काम पूरा होने के बाद मुकादम के सामने पैसे लेने के लिए खड़ी थी। हिसाब देते हुए मुकादम ने एकबारगी उसका हाथ थाम लिया और बोला, ‘कितना नरम मुलायम है ये तेरा हाथ, एकदम मक्खन जैसा। ईंट-गारा ढोने के बावजूद भी कितना नाजुक…. चल मेरे साथ…सुगिया उसकी बदतमीजी सह न सकी। उसकी बात खतम होने से पहले ही उस के पंजे से हाथ छुड़ाकर वह घर की ओर दौड़ पड़ी।

झुग्गी में पहुँची तो मर्द को उसकी राह ताकते पाया। बिना दारू के उसका गला सूख रहा था। उस ने रोते हुए सारी घटना अपने मर्द से कह सुनायी। फिर … फिर क्या? वो तो बरस ही पड़ा उसके ऊपर। झापड, लात, घूसें… चप्पल लेकर भी पीटता रहा वो और बड़बड़ाता रहा, ‘हाथ पकडा तो क्या हुआ? क्या लूट गया? बडी आयी पतिव्रता।‘

उस दिन झुग्गी में बर्तन भूखे… पतीली, थाली भूखी… बच्चे भूखे… वो और पति भी भूखे…

दूसरे दिन सुगिया काम पर गई। आज रोजी लेते वक्त उसने स्वयं ही मुकादम का हाथ थाम लिया। चार दिन का पैसा कमर के बटुए में खोस लिया। मुकादम उसे बिल्डिंग के अधूरे हिस्से में ले गया, जो बिल्कुल वीरान था।

सुगिया घर लौटकर अपने बिस्तर पर लेटी। आज भी झुग्गी में बर्तन भूखे… पतीली, थाली, भूखी… बच्चे भूखे… वो और पति भी भूखे… बिस्तर पर लेटी हुई वो सोचने लगी, दोनों में क्या सहनीय? शराबी पति से मार खाना? या फिर मुकादम का बोझ उठाना, जो उसे नोच- नोच कर खाना चाहता है

© श्रीमती उज्ज्वला केळकर

सम्पादिका (ई- अभिव्यक्ति मराठी)

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन के पास, सांगली 416416 मो.-  9403310170

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 76 – हाइबन- नक्शे का मंदिर ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- नक्शे का मंदिर। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 76☆

☆ हाइबन- नक्शे का मंदिर ☆

नक्शे पर बना मंदिर! जी हां, आपने ठीक पढ़ा। धरातल की नीव से 45 डिग्री के कोण पर बना भारत के नक्शे पर बनाया गया मंदिर है। इसे भारत माता का मंदिर कह सकते हैं। इस मंदिर की छत का पूरा नक्शा भारत के नक्शे जैसा हुबहू बना हुआ है। इसके पल में शेष मंदिर का भाग है।

इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता है । भारत के नक्शे के उसी भाग पर लिंग स्थापित किए गए हैं जहां वे वास्तव में स्थापित हैं । सभी बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन इसी नक्शे पर हो जाते हैं।

कांटियों वाले बालाजी का स्थान कांटे वालों पेड़ की अधिकता के बीच स्थित था। इसी कारण इस स्थान का नाम कांटियों वाले बालाजी पड़ा।  रतनगढ़ के गुंजालिया गांव, रतनगढ़, जिला- नीमच मध्यप्रदेश में स्थित भारत माता के इस मंदिर में बच्चों के लिए बगीचे, झूले, चकरी आदि लगे हुए हैं । इस कारण यह बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

कटीले पेड़~

नक्शे पर सेल्फी ले

फिसले युवा।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

09-09-20

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आत्मकथा ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

लघुकथा

☆ संजय दृष्टि – आत्मकथा ☆

बेहद गरीबी में जन्मा था वह। तरह-तरह के पैबंदों पर टिकी थी उसकी झोपड़ी। उसने कठोर परिश्रम आरम्भ किया। उसका समय बदलता चला गया। अपनी झोपड़ी से 100 गज की दूरी पर आलीशान बिल्डिंग खड़ी की उसने। अलबत्ता झोपड़ी भी ज्यों की त्यों बनाये रखी।

उसकी यात्रा अब चर्चा का विषय है। अनेक शहरों में उसे आइकॉन के तौर पर बुलाया जाता है। हर जगह वह बताता है,” कैसे मैंने परिश्रम किया, कैसे मैंने लक्ष्य को पाने के लिए अपना जीवन दिया, कैसे मेरी कठोर तपस्या रंग लाई, कैसे मैं यहाँ तक पहुँचा..!” एक बड़े प्रकाशक ने उसकी आत्मकथा प्रकाशित की। झोपड़ी और बिल्डिंग दोनों का फोटो पुस्तक के मुखपृष्ठ पर है। आत्मकथा का शीर्षक है ‘मेरे उत्थान की कहानी।’

कुछ समय बीता। वह इलाका भूकम्प का शिकार हुआ। आलीशान बिल्डिंग ढह गई। आश्चर्य झोपड़ी का बाल भी बांका नहीं हुआ। उसने फिर यात्रा शुरू की, फिर बिल्डिंग खड़ी हुई। प्रकाशक ने आत्मकथा के नए संस्करण में झोपड़ी, पुरानी बिल्डिंग का मलबा और नई बिल्डिंग की फोटो रखी। स्वीकृति के लिए पुस्तक उसके पास आई। झुकी नजर से उसने नई बिल्डिंग के फोटो पर बड़ी-सी काट मारी। अब मुखपृष्ठ पर झोपड़ी और पुरानी बिल्डिंग का मलबा था। कलम उठा कर शीर्षक में थोड़ा- सा परिवर्तन किया। ‘मेरे उत्थान की कहानी’ के स्थान पर नया शीर्षक था ‘मेरे ‘मैं’ के अवसान की कहानी।’

‘मैं’ के अवसान से आरंभ होता है सच्चा उत्थान।

©  संजय भारद्वाज

(प्रात: 6:57 बजे, 23.12.2019)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 78 – लघुकथा – हैप्पी वेलेंटाइन डे ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत एक भावुक एवं सार्थक लघुकथा  “हैप्पी वेलेंटाइन डे। इस लघुकथा के माध्यम से  आदरणीया श्रीमती सिद्धेश्वरी जी ने कई सन्देश देने का सफल प्रयास किया है । एक ऐसी ही अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 78 ☆

? लघुकथा – हैप्पी वेलेंटाइन डे ❤️

 “हैप्पी वैलेंटाइन डे!” फोन पर आवाज सुनकर हर्षा चहक उठी। शहर के हॉस्टल में थी। इस दिन को वह कैसे भूल सकती है।

आज ही के दिन तो वह मम्मी के साथ गांव के हर कुआं (well) पर जाकर (rose) गुलाब का फूल चढ़ाती है। क्योंकि इसी दिन तो उसका वैलेंटाइन डे हुआ था। उसके अपने बापू ने तो फिर से छोरी आ गई कहकर कुएं में गेरने (गिराने) ले गए थे।

वह तो भला हो उस सिस्टर दीदी का जिन्होंने रात के अंधेरे में ही समय रहते, हर्षा को गिराने से बचा ही नहीं लिया, अपितु अपना घर, पूरा जीवन बेटी बनाकर रख, अपना नाम और पहचान दी।

सिस्टर दीदी यानी मम्मी फोन पर!!!! और हॉस्टल में हर्षा अपनी पढ़ाई पूरी कर रही थी।

दोनो की आंँखों से शायद आँसू बह रहे थे। पर खुशी के थे। हर्षा ने फोन पर “हैप्पी वैलेंटाइन डे मम्मी” कहकर अपनी विश पूरी की। वैसे मम्मी और हर्षा का तो रोज वैलेंटाइन डे होता है। पर आज कुछ खास है।

विश यू आल ए वेरी हैप्पी वैलेंटाइन डे!!!

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ हॉर्न (अनुवादीत कथा) ☆ मूळ कथा – हॉर्न – श्री विजय कुमार ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

☆ जीवनरंग ☆ ☆ हॉर्न (अनुवादीत कथा) ☆ मूळ कथा – हॉर्न – श्री विजय कुमार ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर

विनोद आणि राजन दोघेही गडबडीत होते. त्यांना हॉस्पिटलमध्ये पोचायची घाई होती. तिथे त्यांचा एक मित्र जीवन-मरणाच्या सीमारेषेवर होता. रस्त्याच्या दुर्घटनेत तो जखमी झाला होता. त्याच्याजवळ कुणीच नव्हते.. कुणा अज्ञात इसमाने याला तिथे पोचवले होते. त्यामुळे पैशाची जुळणी करणं, रक्त देण्याची व्यवस्था करणं यासाठी त्या दोघांची उपस्थिती तिथे आवश्यक होती.त्यामुळे गर्दीच्या रस्त्यावरही त्यांची गाडी वेगाने चालली होती.

अचानक रस्त्यावर त्यांच्यापुढे त्यांना एक वरात जात असलेली दिसली.वरातीत खूप लोक होते. त्यांनी जवळ जवळ सगळा रसताच काबीज केला होता. दोन चाकी, तीन चाकी वहानं काशी-बशी जागा काढत जात होती. परंतु कार कोणतीही मोठी वाहाने जाणं शक्यच नव्हतं॰

राजनने जोरजोरात अनेकदा हॉर्न वाजवला. पण बेंड-बाजाचा मोठा आवाज आणि वरातीत सामील झाल्याची एक प्रकारची नशा, वरातीततल्या ओकांना काही म्हणता काही ऐकू येत नव्हतं. राजन रागारागाने म्हणाला, ‘वाटते, या लोकांच्या अंगावर सरळ गाडी घालावी. तिकडे इकडे आमचा मित्र मरणाच्या दारात उभा आहे आणि इकडेया लोकांचं नाच-गाणं चालू आहे, जसा काही यांच्या बापाचाच रास्ता आहे. राजनच्या रागाचा पारा चढत असलेला पाहून विनोद खाली उतरला. तो म्हणाला, ‘हॉर्न वाजवण्याचा काही फायदा होणार नाही.विनाकारण भांडण मात्र होईल. तू थांब. मी बघून येतो.वरातीजवळ पोचताच तो जोशात नृत्य करत वरातीमध्ये सामील झाला. बाकीचे सगळे आपापला नाच थांबवून त्याच्याकडे आश्चर्याने बघत राहिले. विनोद म्हणाला, ‘अरे थांबलात का? नाचा… नाचा… भरपूर नाचा… अशी संधी वारंवार थोडीच मिळते. आता माझ्याकडेच बघा ना, माझा मित्र हॉस्पिटलमध्ये पडलाय. मृत्यूशी झूंज देतोय., तरीही मी नाचतोय. खुशीच्या वेळी खूश आणि दु:खाच्या वेळी दु:खी व्हायला हवं॰

गर्दीत एकदम शांतता पसरली. विनोद हात जोडून पुढे म्हणाला, ‘माझ्या बंधुंनो आणि भगिनींनो, माझी एक विनंती आहे. थोडासा रास्ता येणार्‍या- जाणार्‍यासाथी मोकळा ठेवा. आपल्यामुळे तिकडे कुणी जीव गमावून बसू नये. धन्यवाड’ एवढा बोलून तो कारकडे गेला. आता त्यांची गाडी त्वरेने हॉस्पिटलकडे जाऊ लागली.

 

मूळ कथा – ‘हॉर्न ’ –   मूळ  लेखक – श्री विजय कुमार, 

सह संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका), अंबाला छावनी 133001, मोबाइल 9813130512

अनुवाद – श्रीमती उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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