श्री हरभगवान चावला
( ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी का हार्दिक स्वागत है। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक विषय पर आधारित लघुकथा ‘मिलन’। हम भविष्य में भी ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आपकी विशिष्ट रचनाओं को साझा करने का प्रयास करेंगे।)
संक्षिप्त परिचय
प्रकाशन –
- पाँच कविता संग्रह ‘कोई अच्छी ख़बर लिखना’, ‘कुंभ में छूटी औरतें’, ‘इसी आकाश में’, ‘जहाँ कोई सरहद न हो’, ‘इन्तज़ार की उम्र’ ; एक कहानी संग्रह ‘हमकूं मिल्या जियावनहारा ।
- सारिका, जनसत्ता, हंस, कथादेश, वागर्थ, रेतपथ, अक्सर, जतन, कथासमय, दैनिक भास्कर, दैनिक ट्रिब्यून, हरिगंधा आदि में रचनाएँ प्रकाशित ।
- कुछ संग्रहों में रचनाएँ शामिल ।
पुरस्कार/सम्मान –
- एक बार कहानी तथा एक बार लघुकथा के लिए कथादेश द्वारा पुरस्कृत ।
- कविता संग्रह ‘कुंभ में छूटी औरतें ‘ को वर्ष 2011-12 के लिए तथा कविता संग्रह ‘इसी आकाश में’ को 2016-17 के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान ।
सम्प्रति : राजकीय महिला महाविद्यालय, रतिया से बतौर प्राचार्य सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन ।
☆ लघुकथा – मिलन ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
अस्सी वर्षीय किसान पतराम दो महीने से राजधानी के बॉर्डर पर दिए जा रहे किसानों के धरने में शामिल था। आज उसकी अठहत्तर वर्ष की पत्नी भतेरी उससे मिलने पहुंँची थी। दोनों ने जैसे ही एक-दूसरे को देखा, उनकी चेहरे की झुर्रियों में पानी यूंँ बह आया, जैसे चट्टानों के बीच झरने बह आए हों। एक नम चट्टान ने पूछा, “कैसे हो सतपाल के बापू?”
“मैं मज़े में हूंँ, तू बता, पोता-पोती ठीक हैं?” दूसरी नम चट्टान ने जवाब दिया।
“वहांँ तो सब ठीक हैं, तुम ठीक नहीं लग रहे हो।”
“मुझे क्या हुआ है? हट्टा-कट्टा तो हूंँ।”
“दाढ़ी देखी है अपनी? फ़क़ीर जैसे दिख रहे हो।”
“देखो, गाली मत दो। दाढ़ी का क्या है, मुझे कौन सा ब्याह करना है?”
“करके तो देखो, फिर बताती हूंँ तुम्हें।” भतेरी की आंँखों में उतरी तरल लालिमा देख पतराम को अपने ब्याह का दिन बरबस याद आ गया। उसने महसूस किया कि भतेरी के कंधे पर रखा उसका हाथ कांँप रहा है।
“अच्छा, अब घर कब लौटोगे?”
“जंग जीतने के बाद ही लौटना होगा अब तो, या फिर शहीद हो जायेगा तुम्हारा बूढ़ा।” भतेरी ने पतराम के मुंँह पर हाथ रख दिया।
“अच्छा एक बात बताओ, अगर मैं शहीद हो गया तो तुम क्या करोगी?”
“करना क्या है, तुम्हारा बुत लगवा दूंँगी गांँव में और शान से रहूंँगी जैसे एक शहीद की विधवा रहती है।” कहते ही भतेरी बहुत ज़ोर से हंँसी। हंँसी के इस हरे पत्थर के पीछे पानी का एक सोता था जो पत्थर के हटते ही आह की तरह फूट पड़ा। भतेरी पानी में तरबतर एक छोटी सी चिड़िया होकर पतराम के सीने में दुबकी थरथरा रही थी। पतराम उसकी पीठ को थपथपाते उसे सांत्वना दे रहा था। अचानक उसने भतेरी को अपने से अलग किया, “अब हट जाओ, देखो लोग हंँस रहे हैं।” झटके से अलग होकर दोनों ने देखा- कोई नहीं हंँस रहा था, सबके चेहरों पर गर्व और आंँखों में आँसू दिपदिपा रहे थे।
(इस लघुकथा का आधार एक सच्ची घटना है। इसमें प्रयुक्त कल्पना को मेरी असीम श्रद्धा ही मानें। पूरी विनम्रता के साथ इस लघुकथा को मैं उस महान योद्धा दम्पत्ति को सादर नमन करते हुए समर्पित करता हूंँ। )
© हरभगवान चावला
सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा, सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440