डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – ‘गंगा-स्नान और भ्रष्टाचार-मुक्ति का नुस्खा‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 281 ☆
☆ व्यंग्य ☆ गंगा-स्नान और भ्रष्टाचार-मुक्ति का नुस्खा ☆
कुंभ की गहमा-गहमी है। सब तरफ आदमियों के ठठ्ठ दिखायी पड़ते हैं। जनता- जनार्दन और वीआईपीज़, वीवीआईपीज़ के घाट अलग-अलग हैं। जनता के घाटों पर भारी भीड़ है। वीआईपीज़ के घाटों पर भीड़ कम है, वहां गाड़ियां आराम से दौड़ रही हैं। वीआईपीज़ को कुछ लोग घेर कर सुरक्षित स्नान करा रहे हैं। कुछ भगवाधारी भी वीआईपीज़ को घेर कर उन पर चुल्लू से पानी डाल रहे हैं। शायद ये वे महन्त होंगे जिनके अखाड़े में वीआईपीज़ जजमान हैं। इन वीआईपीज़ को धरती पर तो स्वर्ग हासिल हो चुका, अब सन्त महन्त उन्हें ऊपर वाले स्वर्ग में जगह दिलाने की कोशिश में लगे हैं। महन्तों के द्वारा अपने देशी-विदेशी चेलों की सुविधा का पूरा ख़याल रखा जा रहा है। वीआईपी- घाटों पर पुलिस की व्यवस्था चाक-चौबन्द है। मीडिया वाले सब तरफ पगलाये से दौड़ रहे हैं— कभी फोटो के लिए तो कभी श्रद्धालुओं के बयान के लिए।
अचानक घाटों से कुछ काले काले थक्के तैरते हुए आने लगे। लोग कौतूहल से उन्हें देखने लगे। थक्कों ने श्रद्धालुओं को छुआ तो उनके शरीर में जलन होने लगी। उनसे अजीब बदबू भी निकल रही थी।
खबर फैली कि ये पाप के थक्के थे जो तैर कर आ रहे थे। अधिकारियों और पुलिस वालों में भगदड़ मच गयी। जल्दी ही पानी में रबर की चार-पांच नावें उतरीं और थक्कों को समेट कर जल्दी-जल्दी पॉलिथीन के थैलों में डाला जाने लगा। जनता-घाटों पर लोग ठगे से इन थक्कों को देख रहे थे।
थोड़ी देर में घाटों पर कुछ अधिकारी ध्वनि-विस्तारक लिये हुए पहुंच गये। घोषणा होने लगी कि जनता भ्रम में न पड़े, ये थक्के पाप के नहीं, पुण्य के थे। यह भी कहा गया कि थक्कों से बदबू नहीं, ख़ुशबू निकल रही थी। शायद ठंडे पानी में स्नान के कारण लोगों पर ज़ुकाम का असर हो गया होगा, इसीलिए वे ख़ुशबू को बदबू समझ रहे थे।
एक युवक घाट के पास सिर लटकाये बैठा था। एक अधिकारी उसके पास पहुंचा, पूछा, ‘स्नान हो गया?’
युवक ने जवाब दिया, ‘हो गया।’
अधिकारी बोला, ‘तो अब आगे बढ़िए। यहां क्यों बैठे हैं?’
युवक कुछ सोचता सा बोला, ‘जाता हूं।’
अधिकारी ने फिर पूछा, ‘क्या बात है? कुछ परेशानी है?’
युवक बोला, ‘सर, हमें बताया जा रहा है कि यहां 60 करोड़ से ज्यादा लोग डुबकी लगा गये, पापमुक्त हो गये। लेकिन मैंने आज ही अखबार में पढ़ा है कि 2024 के भ्रष्टाचार सूचकांक में हमारा देश 180 देशों में 93 नंबर से खिसक कर 96 पर पहुंच गया, यानी तीन सीढ़ी नीचे खिसक गया। एक तरफ पाप धुल रहे हैं, दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के मामले में हमारी जगहंसाई हो रही है।’
अधिकारी हंसा, बोला, ‘वाह महाराज! काजी जी दुबले क्यों, शहर के अंदेशे से। आपके पाप तो धुल गये? चलिए, आगे बढ़िए।’
युवक चलते-चलते बोला, ‘सर, मैं यह सोचकर परेशान हो रहा हूं कि कहीं पाप धोने की सुविधा मिलने का गलत असर तो नहीं हो रहा है। अपराधी प्रवृत्ति के लोग सोचने लगें कि अपराध करके भी पाप-मुक्त हुआ जा सकता है। यानी पाप धोने की सुविधा से कहीं अपराधों को प्रोत्साहन तो नहीं मिल रहा है?
‘दूसरी बात यह कि अपराधी के पाप तो गंगा-स्नान से धुल जाएंगे, लेकिन इससे उनको क्या मिलेगा जिनके प्रति अपराध हुआ है? अपराधी तो कुंभ-स्नान करके पवित्र और स्वर्ग का अधिकारी हो जाएगा लेकिन जिसकी हत्या हुई है या जिसके साथ बलात्कार हुआ है या जिसके घर चोरी-डकैती हुईं है उसे क्या मिलेगा? क्या यह न्याय-संगत है कि पाप करने वाला निर्दोष और पवित्र हो जाए और उसके सताये हुए लोग उसके दुष्कर्मों का परिणाम भोगते रहें?’
अधिकारी कानों को हाथ लगाकर बोला, ‘बाप रे, तुम्हारी बातें तो बड़ी खतरनाक हैं। मेरे पास इनका जवाब नहीं है।’
युवक बोला, ‘सर, मेरे खयाल से हमें ऐसी दवा की ज़रूरत ज़्यादा है जिसको लेने से हमारे दिमाग में पाप और अपराध की इच्छा पैदा ही न हो। पोलियो वैक्सीन की तरह बचपन में ही सभी को इस दवा की डोज़ दे दी जाए। तभी हम भ्रष्टाचार और अपराध की बीमारी से बच पाएंगे।’
अधिकारी हाथ जोड़कर बोला, ‘भैया, हम छोटे आदमी हैं। हमें ये सब बातें मत बताओ। किसी ने सुन लिया तो हमारी पेशी हो जाएगी।’
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈