हिन्दी साहित्य – संस्थाएं ☆ “जाणीव…वृद्धों का अपना घर” ☆ साभार – श्री संजय भारद्वाज ☆

☆ संस्थाएं ☆ “जाणीव…वृद्धों का अपना घर” ☆ साभार – श्री संजय भारद्वाज ☆

पुराने पत्तों पर नयी ओस उतरती है,

अतीत का चक्र वर्तमान में ढलता है,

सृष्टि यौवन का स्वागत करती है,

अनुभव की लाठी लिए बुढ़ापा साथ चलता है।

बचपन और बुढ़ापा, जीवन की अवस्था के दो ध्रुव हैं। बचपन में कौतूहल है, जिज्ञासा है, प्रश्न अनंत हैं। बुढ़ापे में न कौतूहल, न जिज्ञासा पर चाहें तो परमानंद हैं। पूरी निष्ठा से परमानंदी जीवन जीने का नाम है जाणीव, अ होम फॉर सीनियर सिटिजन्स

जाणीव मूल रूप से मराठी शब्द है जिसका अर्थ है चेतना या भान या अनुभूति। मराठी में इसका उच्चारण ज़ाणीव होता है।

लगभग ढाई दशक पहले 6 घरेलू महिलाओं में जगी चेतना। चेतना, घर से विस्थापित वृद्धों के स्वाभिमानी और आनंदी जीवन जी सकने के लिए सीनियर सिटिजन होम खड़ा करने की। फलत: स्थापित हुआ, जाणीव, अ होम फॉर सीनियर सिटिजन्स।

निराशा को आशा, निरुत्साह को उत्साह में बदलने का नाम है जाणीव। जाणीव, पुणे-अहमदनगर मार्ग पर फुलगांव नामक स्थान पर स्थित है। जाणीव में प्रवेश करते ही लगता है जैसे नंदनवन में कदम रख दिये हों। यह नंदनवन प्राकृतिक सौंदर्य से लकदक है। जाणीव के परिसर में बड़ी संख्या में फलों के वृक्ष हैं। यहाँ आम के बड़े पेड़ हैं तो चीकू के घने पौधे भी हैं।

जामुन की महक है तो अमरूद की खुशबू भी है।

सीताफल है तो साथ में रामफल तो होगा ही।

अपरिमित संभावनाओं के साथ खड़े पीपल और नीम हैं। यहाँ नारियल है, पपीता है, नीबू है। पूरे परिसर में तुलसी के पौधों से भरे  छोटे-छोटे उपवन मानो  वृंदावन हैं।

पौधे हों या पेड़, किसीमें भी रासायनिक खाद का उपयोग नहीं होता। यहाँ सारी उपज सेंद्रिय अर्थात ऑर्गेनिक है।

जाणीव सुंदर वृक्षों से भरा है। यहाँ सघन गुलमोहर हैं, ऊँचे-ऊँचे अशोक हैं। बड़े पत्तों वाला यह पेड़ जिसे स्थानीय स्तर पर देसी बादाम कहा जाता है, यहाँ विराजमान है तो चंपा के वृक्षनुमा पौधे भी अपने पूरे विस्तार के साथ खड़े हैं।फायकस हो या शोभा के अन्य वृक्ष, सभी यहाँ फल रहे हैं, फूल रहे हैं। अनेक प्रजातियों के छोटे-बड़े पौधे और झाड़ियाँ यहाँ की अनुपम प्राकृतिक छटा में चार चाँद लगा रहे हैं।

यूँ देखें तो जीवन का संचित निस्वार्थ भाव से अपनों के लिए लुटानेवाले वृद्ध, घने वृक्षों जैसे ही होते हैं। जाणीव का परिसर फूलों के सौरभ से महकता है। यहाँ रहने वाले वृद्धों के अनुभव की सोंध और यह सौरभ मानो दुग्ध शर्करा योग हैं।

जाणीव में छोटे-छोटे ब्लॉक्स हैं। हर ब्लॉक में चार कमरे हैं। प्रत्येक कमरे में दो लोगों की रहने की व्यवस्था है। हर कमरे के सामने छोटा-सा सिटआउट है, रेस्ट चेयर है। यहाँ बैठकर वृद्ध प्रकृति का सान्निध्य अनुभव कर सकते हैं। कमरे के सामने व्हीलचेयर के लिए ढलान या  दिया गया है। कमरे में बुज़ुर्गों का निजी सामान रखने के लिए वॉर्डरोब है। बुज़ुर्गों की सुविधा के लिए  कमोड सिस्टम है, सहारा लेकर उठ सकने के लिए विशेष तौर से बनाया गया सपोर्ट है।

आश्रम में सौर ऊर्जा या सोलर सिस्टम है जिससे हर कमरे में गर्म पानी की व्यवस्था की गई है। वृद्धों को किसी तरह की असुविधा न हो, इसके लिए हर कमरे के लिए इन्वर्टर का  बैकअप है।

चलते समय यदि सहारा लेना पड़े तो दोनों ओर रेलिंग की व्यवस्था है।

जहाँ आवश्यक हैं, वहाँ पक्के रास्ते बने हैं, शेष स्थान पर मिट्टी है। इसका लाभ यह कि यदि कभी किसी बुजुर्ग का संतुलन बिगड़ जाए तो माटी उनकी रक्षा कर सके।

परिसर में बाउंड्री वॉल के साथ जॉगिंग या वॉकिंग के लिए ट्रैक बना हुआ है। वृद्धजन इस प्राकृतिक वातावरण में परिसर के भीतर ही आनंद से घूम सकते हैं, हल्का व्यायाम कर सकते हैं।

जाणीव के परिसर में विघ्नहर्ता श्रीगणेश का पावन धाम है। इस मंदिर का सौंदर्य और यहाँ विराजमान मूर्ति आँखों में बस जाते हैं। साथ ही  विट्ठल- रखुमाई अर्थात श्रीकृष्ण और रुक्मिणी तथा साईंबाबा भी हैं। मंदिर परिसर में शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर की स्थापना के लिए विशेष तौर पर सद्गुरु वामन राव पै पधारे थे।

मंदिर परिसर में विभिन्न आयोजन होते हैं। पुणे के हिंदी आंदोलन परिवार द्वारा किए जाने वाले तुलसी विवाह का दृश्य मन के भीतर तक उतर जाता है।

जाणीव की रसोई सभी सुविधाओं से सम्पन्न आदर्श आधुनिक रसोई है। यहाँ सुपाच्य, शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था है। प्रातः चाय, तत्पश्चात जलपान,  दोपहर का भोजन, संध्या को चाय-बिस्किट, रात्रि का भोजन.., सारी व्यवस्था बिलकुल घर जैसी।

कहा जाता है, अनुभव से ही जीवन में ज्ञान की प्राप्ति होती है। हर अनुभव प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करने के लिए  जीवन कम पड़ जाता है। ऐसे में काम आती हैं पुस्तकें। ज्ञान का असीम भंडार होती हैं पुस्तकें। जाणीव का अपना पुस्तकालय है। इसमें हिंदी, मराठी, अंग्रेजी की पुस्तकें बड़ी संख्या में हैं। यहाँ वृद्धों के मनोरंजन की अच्छी व्यवस्था भी है।

मुख्य हॉल में टीवी है, जहाँ सब साथ बैठकर दूरदर्शन का आनंद ले सकते हैं।यहाँ कैरम, शतरंज, लूडो जैसे इनडोअर खेलों की सुविधा है।

जाणीव में 24 घंटे एंबुलेंस की व्यवस्था रखी गई है, जिससे किसी भी आपात स्थिति में संबंधित वृद्ध को समुचित उपचार मिल सके। जाणीव में वृद्धों का नियमित हेल्थ चेकअप किया जाता है।

यहाँ का सेवक वर्ग कर्तव्यपरायण और सेवाभावी है। यहाँ  लगभग 100 लोगों की क्षमता वाला एक इको फ्रेंडली सभागार है। सभागृह में तीन तरफ से जालियाँ लगी हुई हैं। इन जालियों के चलते लगता है मानो आप बगीचे में बैठकर कोई आयोजन देख रहे हों।

इस सभागृह में किटी पार्टी, वरिष्ठ नागरिक मेला, बर्थडे सेलिब्रेशन से लेकर कॉरपोरेट इवेंट तक  किए जा सकते हैं। शैक्षिक, साहित्यिक आयोजनों, एक दिन की कॉन्फ्रेंस के लिए भी यह स्थान आदर्श है। भोजन के लिए हॉल के बाहर प्राकृतिक वातावरण में समुचित स्थान उपलब्ध है।

जीवन में ऊँचा और ऊँचा उड़ने की इच्छा रखता है मनुष्य। मनुष्य के मन की इस इच्छा को तन में उतारता है झूला। परिसर में वृद्धों के  सुरक्षित झूलने के लिए सुंदर झूले की व्यवस्था है।

जाणीव में स्थाई या अस्थाई रूप से कुछ समय रहने की व्यवस्था भी है। जाणीव की ढाई दशक की यात्रा शून्य से शिखर का प्रवास है।

जाणीव, अ होम फॉर सीनियर सिटिजन्स की जानकारी लेने अथवा आश्रम की विभिन्न गतिविधियों में सहयोग देने के लिए आप [email protected] पर सम्पर्क कर सकते हैं।

जुड़िए भीतर की चेतना से, जुड़िए जीवन की सार्थकता से, जुड़िए जाणीव से।

साभार – श्री संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – संस्थाएं ☆ “लिटरेरी वॉरियर्स: साहित्य का वैश्विक मंच”/”सृजन का कारवां: लिटरेरी वॉरियर्स” ☆ साभार – सुश्री नीलम सक्सेना ☆

☆ संस्थाएं ☆ “लिटरेरी वॉरियर्स: साहित्य का वैश्विक मंच”/”सृजन का कारवां: लिटरेरी वॉरियर्स” ☆ साभार – सुश्री नीलम सक्सेना ☆

विश्व विख्यात लेखिका कवियित्री और लिम्का बुक्स ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर नीलम सक्सेना जी द्वारा नवंबर, 2011 में POETS AND WRITERS DEN नामक समूह की स्थापना की गई। उस समय फेसबुक भी धीरे-धीरे प्रचलित हो रहा था इस समूह को स्थापित करने का उस समय एकमात्र उद्देश्य था साहित्य में रुचि लेने वाले उनके सहपाठी और मित्रों को एक मंच प्रदान करना। प्रारंभिक दिनों में इस समूह में केवल उनके महाविद्यालय के सहपाठी ही थे । समूह को प्रारंभ करते हुए कविता लेखन और कुछ साहित्यिक प्रतियोगिताएं और गतिविधियां आयोजित की गई। धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया ……जैसा कि मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने कहा है कि

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,

लोग साथ आते गए कारवां बढ़ता गया

इसी तरह यह कारवां बढ़ते बढ़ते हजारों तक पहुंच गया समूह के ईमानदार प्रयासों से इसकी लोकप्रियता भी बढ़ती गई और समान रुचि वाले साहित्य प्रेमी जुड़ते चले गए।

फिर आया 2020 जब संपूर्ण विश्व को आपदा का सामना करना पड़ा। कोरोनाकाल में जब सभी इस महामारी से जूझ रहे थे, तब जन्म हुआ साहित्यिक सिपाहियों की ऑनलाइन गतिविधियों का। इस तरह POETS AND WRTERS DEN तब्दील हो गया लिटरेरी वॉरियर्स ग्रुप में। उस समय जब सभी लोग महामारी से जूझ रहे थे तो कठिन मानसिक दौर से जूझने के लिए रचनात्मकता सबसे बेहतरीन माध्यम थी। यह आवश्यक था कि जीवन को सकारात्मक बनाए रखने के लिए रचनात्मकता से जुड़ा जाए। इसी उद्देश्य के साथ फेसबुक पेज पर ऑनलाइन कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। आज जब पीछे मुड़कर देखते हैं तब लगता है कि कुछ सहपाठियों द्वारा शुरू किया गया यह छोटा सा समूह आज विश्व विख्यात है। इसमें लगभग 300000 फॉलोअर्स है और पेज की व्यूअरशिप भी लगभग लाखों तक पहुंच गई है। इस समूह से न केवल भारत के साहित्य प्रेमी बल्कि विदेश में बसे भारतीय साहित्य प्रेमी भी जुड़ते जा रहे हैं।

आज तक लिटरेरी वॉरियर्स ग्रुप के तहत बहुत सारे कार्यक्रम साहित्यिक समारोह आयोजित किए हैं जिसमें प्रमुख हैं साहित्य अकादमी दिल्ली में आयोजित लिटरेचर फेस्टिवल जो कि नवंबर 2023 में आयोजित किया गया था। इसी प्रकार प्रतिष्ठित NCPA सभागृह में लिटरेरी वॉरियर्स ग्रुप के सफल कार्यक्रम आयोजित किया जा चुके हैं। इसके अलावा विश्व पुस्तक मेला लखनऊ में 11 पुस्तकों का विमोचन भी हमारे समूह द्वारा किया गया जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। हाल ही में पुणे के प्रतिष्ठित CME सभागार, पुणे में लिटरेरी वॉरियर्स ग्रुप के दूसरे लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन किया गया। दो दिन के इस समारोह में संपूर्ण भारत से आए साहित्य प्रेमियों ने उत्साह पूर्वक हिस्सा लिया और इस कार्यक्रम को सफल बनाया। कार्यक्रम के दौरान पुस्तक विमोचन, चित्रकला प्रदर्शनी, कविता पाठ और विभिन्न प्रतियोगिताओं के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों का भी आयोजन किया गया।

हम सब ने मिलकर अपने आप को साहित्य के योद्धा घोषित कर दिया है। देखा जाए तो हम सब सिपाही ही थे जो कोरोनाकाल के उस गंभीर दौर में नकारात्मकता से लड़ रहे थे। कलम और भावनाओं का सुहाना सफर यूं ही जारी रहे यही उम्मीद है।

और अंत में…

Here is the story of LWG from our very own Anup Jalan Ji who made this video despite his ill health.

Literary Warriors Group or LWG is a brainchild of well-known author and poetess, Neelam Saxena Chandra, who wanted to bring Indian authors together under the same roof and create a platform for budding writers and poets to express themselves, learn and grow.
Author and translator Anup Jalan Ji was one of the first six members of the group and has seen it grow from six to an amazing 1,300 members.

LITERARY WARRIORS GROUP की कहानी श्री अनूप जालान जी की जुबानी

Instagram Link 👉 https://www.instagram.com/reel/DC_BflhtMqY/?utm_source=ig_web_copy_link&igsh=MzRlODBiNWFlZA==

साभार – सुश्री नीलम सक्सेना 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

संस्थाएं / Organisations ☆ हिन्दी परिपक्वता हेतु समर्पित संस्था हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर ☆

 ☆  संस्थाएं / Organisations  ☆ 

☆  हिन्दी परिपक्वता हेतु समर्पित संस्था – हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर ☆  

साहित्यिक गतिविधियों की बात करें  तो पूरे मध्य प्रदेश में संस्कारधानी जबलपुर का नाम सबसे पहले लिया जाता है। देश में प्रयागराज (इलाहाबाद) के पश्चात जबलपुर ही एक ऐसा शहर  है जहाँ लगभग हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं के राष्ट्रस्तरीय साहित्यकारों ने अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित की है। सुभद्रा कुमारी चौहान, भवानी प्रसाद तिवारी, द्वारिका प्रसाद मिश्र, हरिशंकर परसाई जैसे दिग्गजों को कौन नहीं जानता। जबलपुर के ही कामता प्रसाद गुरु की व्याकरण ने हिंदी को जो आयाम और दिशा दी है, उसके लिए सम्पूर्ण राष्ट्र उनके प्रति सदैव कृतज्ञ रहेगा। वर्तमान तक पहुँचते पहुँचते हिन्दी साहित्य का सृजन-प्रवाह धीमा तो नहीं हुआ परन्तु हिन्दी व्याकरण, शाब्दिक शुद्धता तथा रस-छंद-अलंकार की ओर अपेक्षानुरूप ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

बिना व्याकरण ज्ञान, बिना हिन्दी शब्दों की शुद्धता तथा हिन्दी साहित्य के अथाह सागर में बिना डुबकी लगाए ही लोग हिन्दी के मोती अर्जित करना चाहते हैं। बिना परिश्रम के कवि और लेखक बनना चाहते हैं। अपनी प्रायोजित प्रसिद्धि पाना चाहते हैं। ये लोग अल्पकालिक प्रसिद्धि की चाह में तरह-तरह के हथकण्डे अपनाने से भी परहेज नहीं करते। स्तरहीन लेखन से स्वयं को श्रेष्ठ दिखाना चाहते हैं, जबकि श्रेष्ठ होना और श्रेष्ठता प्रदर्शित करने में बहुत अंतर होता है। परस्पर पीठ थपथपाने का प्रचलन आज इतना अधिक हो गया है कि श्रेष्ठ साहित्य और साहित्यकार हाशिये पर जाते दिख रहे हैं। गहन अध्ययन, समयदान व चिंतन-मनन के पश्चात लिखे श्रेष्ठ और सद्साहित्य को आज पाठकों के लाले पड़ने लगे हैं। लोग स्तरहीन, त्रुटिपूर्ण और अर्थहीन साहित्य पढ़ कर ही सुखानुभूति करने लगा है। उपरोक्त टीस और अकुलाहट की परिणति ही “हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर” है।

हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर अपनी विशिष्ट साहित्य गतिविधियों को रचनात्मक स्वरूप प्रदान करने हेतु कटिबद्ध है। छद्म प्रचार-प्रसार से परे प्रतिवर्ष अपने स्थापना दिवस पर एक गरिमामय कार्यक्रम के साथ पूरे वर्ष हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य एवं विभिन्न विधाओं की गोष्ठियों के माध्यम से यह साहित्य संगम अपनी वेबसाइट “हिन्दी साहित्य संगम डॉट कॉम” हिन्दी ब्लॉग “हिन्दी साहित्य संगम डॉट ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम तथा व्हाट्सएप समूह “हिन्दी साहित्य संगम” के माध्यम से हिन्दी रचना संसार में निरंतर सक्रियता बनाए हुए है। इस संस्था में सदस्यता शुल्क का कोई प्रावधान नहीं है। संस्कारधानी के इन्द्र बहादुर श्रीवास्तव, रमेश सैनी, मनोज शुक्ल, राजेश पाठक ‘प्रवीण’, राजीव गुप्ता, रमाकान्त ताम्रकार, अरुण यादव, विजय तिवारी ‘किसलय’ जैसे लोग इस संस्था के आधार स्तंभ हैं। छोटे-छोटे समूहों में एकत्र होकर अथवा ऑन लाइन  हिन्दी साहित्य प्रेमियों को हिन्दी की बारीकियों, हिन्दी शब्दों की संरचना, हिन्दी व्याकरण, छंद-रचना तथा काव्य में रुचि रखने वाले नवागंतुक साहित्यकारों को निःशुल्क  हर समय मार्गदर्शन दिया जा रहा है। प्रादेशिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का लाभान्वित होना संस्था की सार्थकता का परिचायक है। ‘हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर’ के संस्थापक विजय तिवारी किसलय विगत 30 वर्ष से तन-मन-धन से हिन्दी साहित्य प्रेमियों को शुद्ध हिन्दी, स्तरीय हिन्दी साहित्य, हिन्दी काव्य एवं छांदिक मार्गदर्शन प्रदान करते आ रहे हैं। हिन्दी के प्रति कृतज्ञभाव रखने वाले श्री किसलय को हिन्दी सेवा में ही परमानंद प्राप्त होता है। भविष्य में इनकी अभिलाषा है कि शुद्ध हिन्दी, हिन्दी व्याकरण, छांदिक ज्ञान तथा हिन्दी भाषा में सृजन की जानकारी प्रदान करने वाली नियमित कार्यशालाएँ प्रारम्भ कर सकें। इनका कहना है कि आज केवल वही राष्ट्र विकसित और श्रेष्ठ हैं जिनकी अपनी भाषा है और जहाँ के लोग अपनी भाषा पर गौरवान्वित होते हैं। हमें भी अपनी हिन्दी को अपनाने का संकल्प लेना होगा। यहॉं ध्यातव्य  है कि विश्व की समस्त भाषाओं में सबसे ज्यादा शब्द भंडार हमारी हिन्दी भाषा का ही है, बस हमें उन्हें अपनाने और प्रसारित करने का बीड़ा भर उठाना है और यह कार्य हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर निश्छल भाव से भविष्य में भी करता रहेगा।

साभार : डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

ब्लॉग : हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर (hindisahityasangam.blogspot.com)

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

संस्थाएं / Organisations ☆  मुश्किल हालात में भी हम हैं न…. हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी  ☆  

  ☆  संस्थाएं / Organisations  ☆ 

  ☆  मुश्किल हालात में भी हम हैं न…. हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी    ☆  

 

आज के संवेदनहीन एवं संवादविहीन होते समाज में भी कुछ संवेदनशील व्यक्ति हैं, जिन पर समाज का वह हिस्सा निर्भर है जो स्वयं को असहाय महसूस करता है। ऐसे ही संवेदनशील व्यक्तियों की संवेदनशील अभिव्यक्ति का परिणाम है “हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी” जैसी संस्थाओं का गठन। इस संस्था की नींव रखने वाले समाज-सेवा को समर्पित आदरणीय श्री देवेंद्र सिंह अरोरा  (अरोरा फुटवेयर, जबलपुर के संचालक) एक अत्यंत संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी हैं, जो यह स्वीकार करने से स्पष्ट इंकार करते हैं कि- वे इस संस्था की नींव के पत्थर हैं। उनका मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति जो इस संस्था से जुड़ा है वह इस संस्था की नींव का पत्थर है। उनकी यही भावना संस्था के सदस्यों को मजबूती प्रदान करती है।

 

आज जब सारा विश्व अदृश्य शत्रु ‘कोरोना’ से संघर्ष कर रहा है। हमारे देश में भी लॉकडाउन  लोग अपने अपने घरों में कैद हो गए हैं। आज हमारे पास घर हैं, राशन है और आपातकालीन व्यवस्था है।

उनका क्या जिनके पास छत ही नहीं है, अनाज तो दूर की बात है? उनका क्या जिनके पास छत है किन्तु, खाने को नहीं है? उनका क्या जो रोज कमाते और रोज खाते हैं? ऐसे और भी जरूरतमन्द लोग हैं जो रोज़मर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं कर सकते? फिर भूख … भूख होती है….हर इंसान को लगभग 6-8 घंटे में लगती ही है….फिर क्या अमीर क्या गरीब?   लेकिन भूख क्या होती है उससे पूछिये जिसके पास कुछ भी नही है।

किन्तु, आज भी मानवता जीवित है। मानवीय संवेदनाएं जीवित हैं। ऐसे कुछ लोग और ऐसे लोगों से बनी हुई संस्थाएं हैं, जो निःस्वार्थ भाव से अपनी जान जोखिम में डाल कर ऐसे लोगों के लिए दिन रात उनकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति में जुटे हैं। ऐसे भी कुछ लोग हैं जो ऐसी संस्थाओं को तन-मन-धन से सहयोग कर रहे हैं। साथ ही हमारे पुलिस मित्र जो 24×7 अपनी सेवाएँ दे रहे हैं उन्हें भी समय समय पर अपना पूर्ण सहयोग प्रदान कर रहे हैं।

ऐसी कई सेवभावी संस्थाएं सारे राष्ट्र में निःस्वार्थ भाव से तन मन धन से समाजसेवा में लगी हुई हैं। मेरी जानकारी में ऐसी ही एक संस्था जबलपुर में कार्यरत है जिसकी जानकारी ई-अभिव्यक्ति नें 1 नवंबर को 2018 प्रकाशित की थी जिसे आप निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं:-

संस्थाएं – “हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी”

संस्था के अनुसार – “हमारी कोशिश होती है कि हम हर हाल और हर परिस्थिति में भी लोगों के काम आ सकें। हमारे सदस्यों का यही जज़्बा हमें बनाता है……हेल्पिंग हैंड्स”

वर्तमान परिस्थितियों में संस्था के श्री विनोद शर्मा जी के अनुसार – जब 21 दिन के कर्फ्यू की तरह के लाक डाउन की घोषणा कर दी गई है। ऐसे हालात में हमे उनकी भी चिंता करनी है जो गरीब और बेबस है। उनके पास खाने को कुछ भी नही है। हेल्पिंग हैंड्स की कार्यसमिति ने  ऐसे लोगो की मदद का निर्णय लिया है। ऐसे हालात में गरीबों बेबसों के लिए भोजन की व्यवस्था/खाने के पैकेट बांटने के लिए हमने प्रशासन से बात की। चूंकि मेडिकल प्रोटोकाल और कर्फ्यू दोनों है अतः प्रशासन ने कहा कि खाने के पैकेट आप हमारे पास तक पहुचाइए हम उन जरूरतमंद लोगों तक पहुँचा देंगे।

संस्था को इस काम के लिए प्रशासन द्वारा दो कर्फ्यू पास भी जारी किये गए। संस्था की ओर से उपाध्यक्ष श्री प्रवीण भाटिया एवं सचिव श्री देवेंद्र सिंह अरोरा पैकेट्स पुलिस ठाणे तक पहुंचा देते हैं । प्रशासन और पुलिस की पेट्रोलिंग टीम को मालूम है कि इस हालात में कहां-कहां जरूरतमंद लोग हैं? क्योंकि सारी सूचना वही पहुँच रही है। अब प्रशासन और पुलिस की टीम इन पैकेट्स को बांटने की व्यवस्था कर रही है। यह पूरी एक चेन है। व्यक्ति अकेले कुछ भी नही होता। जब सब मिल कर कोई काम करते हैं तब कुछ भी असंभव नही होता।

संस्था के ही एक सदस्य डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ जी कहते हैं – “इस कोरोना महामारी के आपद काल में मन निश्छल रखते हुए सबका कर्त्तव्य व दायित्व है कि हम मानवीय धर्म का पालन करें। धीरज रखें और समाज में मित्र भाव से परपीड़ाओं के यथोचित समाधान में सहयोगी बनें।“

धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी

आपद काल परखिअहिं चारी

एवं

परहित सरिस धर्म नहीं भाई,

परपीड़ा सम नहीं अधमाई.

जैसी सूक्तियों को चरितार्थ करें। हमारी हेल्पिंग हैंड्स सोसायटी ने  “फ़ॉर एवर वेलफेयर” वाक्य को सत्य साबित किया है।

हम सब देख ही रहे हैं कि जिस उदारता से हमारे सदस्यगण आगे बढ़कर सहयोग की घोषणा किये जा रहे हैं, इसकी कृतज्ञता हेतु कोई शब्द नहीं है।

हम तो बस इतना जानते हैं कि जबलपुर में हमारी संस्था “हेल्पिंग हैंड्स” और सदस्यों का जज़्बा यूँ ही बरकरार रहे। संस्था एक मिसाल कायम करे।

हेल्पिंग हैंड्स में न कोई छोटा न बड़ा सब सिर्फ भावना से जुड़े हैं। हमारे सदस्यों की नेक कामों के लिए भावना गंगा की तरह निर्मल और हिमालय की ऊंची है और वे दुनिया के सबसे नेक इंसान हैं।

(अधिक जानकारी  एवं हैल्पिंग  से जुडने के लिए आप श्री देवेंद्र सिंह अरोरा जी से मोबाइल 9827007231 पर अथवा फेसबुक पेज   https://www.facebook.com/Helping-Hands-FWS-Jabalpur-216595285348516/?ref=br_tf पर विजिट कर सकते हैं।)

 ☆  यह काम संस्था लगातार तब तक करेगी जब तक स्थिति सामान्य नही हो जाती ☆  

(हम ऐसी अन्य सामाजिक एवं हितार्थ संस्थाओं की जानकारी अभिव्यक्त करने हेतु कटिबद्ध हूँ।  यदि आपके पास ऐसी किसी संस्था की जानकारी हो तो उसे शेयर करने में हमें अत्यंत प्रसन्नता होगी।)

 ☆  ई- अभिव्यक्ति  की और से मानवता की सेवा में निःस्वार्थ और नेक इंसानों की टीम “हेल्पिंग  हैंड्स” के जज्बे को सलाम!  ☆

Please share your Post !

Shares

संस्थाएं / Organisations – ☆ हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी ☆ – डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’

 ☆ हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी ☆ 

डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय

(www.e-abhivyakti.com की ओर से मानव कल्याण एवं समाज सेवा के लिए निःस्वार्थ भाव से समर्पित संस्था “हेल्पिंग हेण्ड्स फॉरएवर वेलफेयर सोसायटी” के सदस्यों का उनके चतुर्थ स्थापना दिवस के अवसर पर हार्दिक अभिनंदन।   इस विशेष अवसर  पर  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’ जी के आख्यान को उद्धृत करने में प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।)  

 

हेल्पिंग हेण्ड्स फॉरएवर वेलफेयर सोसायटी का आज हम सभी चतुर्थ स्थापना दिवस मनाने हेतु आत्मीय एवं पारिवारिक रूप से एकत्र हुए हैं। आप सभी को हृदयतल से बधाई।

संस्था “यथा नाम तथा गुणो” का पर्याय है। ‘हेल्पिंग हैंड्स’ अर्थात ‘मददगार हाथ’ आज प्राणपण से समाजसेवा में अहर्निश तत्पर हैं। यह सब मैं संस्था से जुड़कर देख पा रहा हूँ। मैं आज केवल संस्था के उद्देश्य “परोपकारी भाव” से संबंधित अपने विचार आप सब के साथ बाँटना चाहता हूँ। उपस्थित विद्वतजनों से 5 मिनट शांति एवं ध्यान चाहूँगा।

महापुण्य उपकार है, महापाप अपकार।

स्वार्थ के दायरे से निकलकर व्यक्ति जब दूसरों की भलाई के विषय में सोचता है, दूसरों के लिये कार्य करता है, वही परोपकार है। इस संदर्भ में हम कह सकते हैं कि भगवान सबसे बड़ा परोपकारी है, जिसने हमारे कल्याण के लिये संसार का निर्माण किया। प्रकृति का प्रत्येक अंश परोपकार की शिक्षा देता प्रतीत होता है। सूर्य और चाँद हमें  प्रकाश देते हैं। नदियाँ अपने जल से हमारी प्यास बुझाती हैं। गाय-भैंस हमारे लिये दूध देती हैं। बादल धरती के लिये झूमकर बरसते हैं। फूल अपनी सुगन्ध से दूसरों का जीवन सुगन्धित करते हैं।

परोपकारी मनुष्य स्वभाव से ही उत्तम प्रवृत्ति के होते हैं। उन्हें दूसरों को सुख देकर आनंद मिलता है।

परोपकार करने से यश बढ़ता है, दुआयें मिलती हैं, सम्मान प्राप्त होता है।

तुलसीदास जी ने कहा है-

‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधभाई।’

प्रकृति भी हमें परोपकार करने के हजारों उदाहरण देती है जैसे :-

परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः।

परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थं इदं शरीरम् ॥

अपने लिए तो सभी जीते हैं किन्तु वह जीवन जो औरों की सहायता में बीते, सार्थक जीवन है। उदाहरण के लिए किसान हमारे लिए अन्न उपजाते हैं, सैनिक प्राणों की बाजी लगा कर देश की रक्षा करते हैं। परोपकार किये बिना जीना निरर्थक है। स्वामी विवेकानद, स्वामी दयानन्द, गांधी जी, रवींद्र नाथ टैगोर जैसे महान पुरुषों के जीवन परोपकार के जीते जागते उदाहरण हैं। ये महापुरुष आज भी वंदनीय हैं।

न्यूटन के गति का  तीसरा नियम भी कहता है:-

For every action, there is an equal and opposite reaction.

ठीक वैसे ही कर्म का फल भी मिलता है अर्थात- जैसी करनी, वैसी भरनी।

यों रहीम सुख होत है, उपकारी के संग।

बाँटनवारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग ॥

जब कोई जरूरतमंद हमसे कुछ माँगे तो हमें अपनी सामर्थ्य के अनुरूप उसकी सहायता अवश्य करना चाहिए। सिक्खों के गुरू नानकदेव जी ने व्यापार के लिए दी गई सम्पत्ति से साधु-सन्तों को भोजन कराके परोपकार का सच्चा सौदा किया।

एक बात और है। परोपकार केवल आर्थिक रूप में नहीं होता; वह मीठे बोल बोलना, किसी जरूरतमंद विद्यार्थी को पढ़ाना, भटके को राह दिखाना, समय पर ठीक सलाह देना, भोजन, वस्त्र, आवास, धन का दान कर जरूरतमंदों का भला कर भी किया सकता है।

पशु और पक्षी भी अपने ऊपर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं। फिर मनुष्य तो विवेकशील प्राणी है। उसे तो पशुओं से दो कदम आगे बढ़कर परोपकारी होना चाहिए। परोपकार अनेकानेक रूप से कर आत्मिक आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। जैसे-प्यासे को पानी पिलाना, बीमार या घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाना, वृद्धों को बस में सीट देना, अन्धों को सड़क पार करवाना, गोशाला बनवाना, चिकित्सालयों में अनुदान देना, प्याऊ लगवाना, छायादार वृक्ष लगवाना, शिक्षण केन्द्र और धर्मशाला बनवाना परोपकार के ही रूप हैं।

आज का मानव दिन प्रति दिन स्वार्थी और लालची होता जा रहा है। दूसरों के दु:ख से प्रसन्न और दूसरों के सुख से दु:खी होता है। मानव जीवन बड़े पुण्यों से मिलता है, उसे परोपकार जैसे कार्यों में लगाकर ही हम सच्ची शान्ति प्राप्त कर सकते हैं। यही सच्चा सुख और आनन्द है। ऐसे में हर मानव का कर्त्तव्य है कि वह भी दूसरों के काम आए।

उपरोक्त तथ्यों से आप सबको अवगत कराने का मेरा केवल यही उद्देश्य है कि यदि हमें ईश्वर ने सामर्थ्य प्रदान की है, हमें माध्यम बनाया है तो पीड़ित मानवता की सेवा करने हेतु हमें कुछ न कुछ करना ही चाहिए और सच कहूँ तो इसके लिए संस्कारधानी में हेल्पिंग हैंड्स से अच्छा और कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता।

अंत में मैं अपने इस दोहे के साथ अपनी बात समाप्त करना करना चाहता हूँ।

किसलय जग में श्रेष्ठ है, मानवता का धर्म।

अहम त्याग कर जानिये, इसका व्यापक मर्म।।

संस्था की सफलता एवं सार्थकता हेतु मंगलभाव एवं सभी का धन्यवाद।

 

साभार – डॉ. विजय तिवारी ‘किसलय’ 

≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡ ≡

संस्था के सदस्यों के निःस्वार्थ समर्पण की भावना को देखते हुए हमें यह संदेश प्रचारित करना चाहिए कि व्यर्थ खर्चों पर नियंत्रण कर भिक्षावृत्ति को  हतोत्साहित करते हुए ऐसी संस्था को तन-मन-धन से  सहयोग करना चाहिए जो ‘अर्थ ‘की अपेक्षा समाज को विभिन्न रूप से सेवाएँ प्रदान कर रही है । हम आप सबकी ओर से श्री अरोरा जी एवं  संस्था के सभी  समर्पित सदस्यों का हृदय से सम्मान करते हैं  जो अपने परिवार  एवं  व्यापार/रोजगार/शिक्षा (छात्र  सदस्य)  आदि दायित्वों  के साथ मानव धर्म को निभाते हुए  समाज  के असहाय सदस्यों की सहायता करने हेतु तत्पर हैं।  

(अधिक जानकारी  एवं हैल्पिंग हेण्ड्स – फॉरएवर वेल्फेयर सोसायटी  से जुडने के लिए आप श्री देवेंद्र सिंह अरोरा जी से मोबाइल 9827007231 पर अथवा फेसबुक पेज  https://www.facebook.com/Helping-Hands-FWS-Jabalpur-216595285348516/?ref=br_tf पर विजिट कर सकते हैं।)

(हम  ऐसी अन्य सामाजिक एवं हितार्थ संस्थाओं की जानकारी अभिव्यक्त करने हेतु कटिबद्ध हैं ।  यदि आपके पास ऐसी किसी संस्था की जानकारी हो तो उसे शेयर करने में हमें अत्यंत प्रसन्नता होगी।)

 

Please share your Post !

Shares

संस्थाएं – व्यंग्यम (व्यंग्य विधा पर आधारित व्यंग्य पत्रिका/संस्था), जबलपुर

संस्थाएं – व्यंग्यम (व्यंग्य विधा पर आधारित व्यंग्य पत्रिका/संस्था), जबलपुर

 

विगत दिवस साहित्यिक संस्था व्यंग्यम द्वारा आयोजित 23वीं व्यंग्य पाठ गोष्ठी में सभी ने परम्परानुसार अपनी नई रचनाओं का पाठ किया.  इस संस्था की प्रारम्भ से ही यह परिपाटी रही है कि प्रत्येक गोष्ठी में व्यंग्यकर सदस्य को अपनी नवीनतम व्यंग्य रचना का पाठ करना पड़ता है । इसी संदर्भ में इस व्यंग्य पाठ गोष्ठी में सर्वप्रथम जय प्रकाश पांडे जी ने ‘सांप कौन मारेगा,  यशवर्धन पाठक ने  ‘दादाजी के स्मृति चिन्ह’, बसंत कुमार शर्मा जी ने ‘अंधे हो क्या’, राकेश सोहम जी ने ‘खा खाकर सोने की अदा’, अनामिका तिवारीजी ने ‘हम आह भी भरते हैं’,  रमाकांत ताम्रकार जी ने ‘मनभावन राजनीति बनाम बिजनेस’, ओ पी सैनी ने ‘प्रजातंत्र का स्वरूप’, विवेक रंजन श्रीवास्तव ने ‘अविश्वासं फलमं दायकमं’, अभिमन्यु जैन जी ने ‘आशीर्वाद’, सुरेश विचित्रजी ने ‘शहर का कुत्ता’, रमेश सैनी जी ने ‘जीडीपी और दद्दू’, डा. कुंदनसिंह परिहार जी ने ‘साहित्यिक लेखक की पीड़ा’ व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया.

इस अवसर पर बिलासपुर से पधारे व्यंग्यम पत्रिका के संस्थापक संपादक व्यंंग्यकार महेश शुक्ल जी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही. श्री महेश शुक्ल ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में व्यंग्यम पत्रिका के बारे में बताया – उस वक्त पत्रिका प्रकाशन का निर्णय कठिन था और हम सब रमेश चंद्र निशिकर, श्रीराम आयंगर, श्रीराम ठाकुर दादा , डा.कुंदन सिंह परिहार, रमेश सैनी आदि मित्रों के सहयोग से यह पत्रिका व्यंंग्यकारो में कम समय ही चर्चित हो गई थी. उस समय महेश शुक्ल ने अपने से संबंधित परसाई जी के संस्मरण सुनाए. इस अवसर पर बुंदेली के लेखक द्वारका गुप्त गुप्तेश्वर की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। गोष्ठी का संचालन रमेश सैनी और आभार प्रदर्शन व्यंंग्यकार एन एल पटेल ने किया.

  • साभार श्री जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर 

 

Please share your Post !

Shares