हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 194 ☆ # “श्राद्ध !!” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता श्राद्ध !!”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 193 ☆

☆ # “श्राद्ध !!” # ☆

एक वृद्ध दंपति ने

अपने इकलौते पुत्र को

अपने पास बुलाया

अपने मन की बात समझाया

तुम हमारी इकलौती औलाद हो

इस सारी संपत्ति के मालिक

हमारी मरने के बाद हो

हमने उम्र भर परिश्रम कर

इसे जोड़ा है

माना बहुत ज्यादा नहीं

पर तुम्हारे लिए

पर्याप्त छोड़ा है

हमारी तुमसे एक

शिकायत है

तुमसे कहनीं

जरूरी बात है

 

तुम्हारी पत्नी ने हमारा

कभी सम्मान नही किया

खुशी खुशी, आदरपूर्वक

हमारा नाम नहीं लिया

तीज त्योहारों पर

हमसे कभी

आशीर्वाद नहीं लिया

हमारे साथ बैठकर

परिवार की तरह

सुख दुःख की

चर्चा नहीं किया

बताओ हमने

ऐसा क्या गुनाह किया है ?

हमारे पोते को

हमसे कई बार मिलने

नहीं दिया है ?

 

हमें तिरस्कृत कर

हमारी अवहेलना की है

हम अवांछित हैं

कहकर गाली दी है

हम उम्र के आखिरी

पड़ाव पर

मन मसोसकर जी

रहे हैं

पुत्र प्रेम के मोह में

जीते जी

जहर पी रहे हैं

पता नही

अभी और कितना

अपमानित होना बाकी है

इन सब कृत्यों की

हमारी नजर में

नहीं कोई माफी है

 

जीते जी कुछ मीठे बोल

और प्यार को

कब तक तरसाओगे ?

मरने के बाद

दिखावे का पाखंड कर

पंच पकवान हम पर

क्यों बरसाओगे ?

यह जीवन

आज और कल का

बोलता हुआ दर्पण है

जहां श्रध्दा ना हो

प्यार ना हो

सम्मान ना हो

वो जीते जी 

और मरने के बाद भी

व्यर्थ किया हुआ तर्पण है

 

बेटे-

हमें बहुत कुछ सहना

पड़ रहा है

मजबूरी में दुखी होकर

कहना पड़ रहा है

हमारी अंतिम इच्छा है

तुम मरने के बाद

मां-बाप को कभी

याद नहीं करोगे ?

हमारे मरने के बाद

हमारा कभी

श्राद्ध नहीं करोगे?

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – फूल, खुशबू, चांद, चाहत… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता फूल, खुशबू, चांद,चाहत… ‘।)

☆ कविता  – फूल, खुशबू, चांद, चाहत.. ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆ 

फूल, खुशबू, चांद, चाहत,

ये निशानी हैं तेरी,

चांद की पहली किरण,

तू, जिंदगानी है मेरी,

आसमां के थाल में,

जैसे मोती हों भरे,

झिलमिलाते तारों जैसी,

निखरी जवानी है तेरी,

फूल खुशबू….

 

बादलों की ओट से,

तकती हुई,किरण,

भूले से ना भूलती,

ऐसी कहानी है तेरी,

फूल खुशबू….

 

लालिमा सूरज से लेके,

रंग फूलों में भरे,

शोख सरिता की तरह,

बढ़ती रवानी है तेरी,

फूल खुशबू….

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 191 ☆ स्वप्नातलं विश्व… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 191 ? 

स्वप्नातलं विश्व… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

तिला बोलावं वाटतं

तिला पहावं वाटतं

तिला छेडावं वाटतं

स्वप्नात कधीतरी.!!

*

तिला ऐकावं वाटतं

तिला भांडावं वाटतं

तिला स्पर्शावं वाटतं

स्वप्नात कधीतरी.!!

*

तिच्यात गुंतावं वाटतं

तिच्यात असावं वाटतं

तिच्यात गुंगावं वाटतं

स्वप्नात कधीतरी.!!

*

तिला अनुभवावं वाटतं

तिला स्नेह द्यावं वाटतं

तिला हसवावं वाटतं

स्वप्नात कधीतरी.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 259 ☆ व्यंग्य – मिट्ठू बाबू और तत्वज्ञान ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम विचारणीय व्यंग्य – ‘मिट्ठू बाबू और तत्वज्ञान। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 259 ☆

☆ व्यंग्य ☆ मिट्ठू बाबू और तत्वज्ञान

मिट्ठू बाबू रात को आठ बजे के बाद ‘एन. ए.’ यानी अनुपलब्ध हो जाते हैं। आठ बजे के बाद वे भोजन की ‘तैयारी’ में लग जाते हैं, अर्थात क्षुधा जागृत करने के लिए जो तरल पदार्थ वे नियम से लेते हैं, उसे लेकर इत्मीनान की मुद्रा में बैठ जाते हैं। पत्नी को स्थायी निर्देश प्राप्त है कि आठ बजे के बाद कोई अपरिचित आये तो कह दिया जाए कि वे नहीं हैं, और अगर कोई परिचित हो तो सीधे उनके कमरे में भेज दिया जाए। एक बार पेय पदार्थ सामने आ जाने के बाद आसन छोड़ने से रस भंग हो जाता है।

मिट्ठू बाबू मुझ पर कृपालु हैं। सीधे उनके कमरे तक पहुंचने का स्थायी परमिट मुझे प्राप्त है। मुझे देखकर वे प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें दुख बस यही रहता है कि मैं मदिरा-सेवन में उनका साथ नहीं देता। बस, बैठा बैठा मूंगफली के दाने या नमकीन टूंगता रहता हूं। उन्हें सुख यही रहता है कि मैं तन्मयता से उनकी बात सुनता रहता हूं। मदिरा- प्रेमी को उसकी बकवास सुनने के लिए कोई धैर्यवान श्रोता मिल जाए तो उसका मज़ा दुगुना हो जाता है।

मिट्ठू बाबू के सामने रखी अंग्रेजी शराब की बोतल को देखकर मैं कहता हूं , ‘मिट्ठू बाबू , यह तो बड़ी मंहगी होगी।’

मिट्ठू बाबू लापरवाही से जवाब देते हैं, ‘ज्यादा मंहगी नहीं है। दो सौ की है।’

मेरी आंखें कपार पर चढ़ जाती हैं। विस्मय से कहता हूं, ‘दो सौ रुपये ?’

मिट्ठू बाबू हंस कर जवाब देते हैं, ‘और नहीं तो क्या दो सौ पैसे? अरिस्टोक्रैट है।’

थोड़ी देर में नशे के असर में मिट्ठू बाबू नाना प्रकार का मुख बनाते हुए कहते हैं, ‘भाई देखो, कमाई जैसी हो वैसी खर्च करना चाहिए। दफ्तर में मैं किसी से कुछ मांगता नहीं। लोग अपने आप जेब में रकम खोंसते जाते हैं। शाम तक हजार दो हजार इकट्ठे हो ही जाते हैं। अब भैया, अपन मानते हैं कि इस तरह की कमाई ज्यादा दिन टिकती नहीं, इसलिए इसको तुरत फुरत खर्च करना चाहिए। बस मस्त रहो और मौज करो। दुनिया की ऐसी तैसी।’

मैं उनमें से हूं जिनकी ऐसी तैसी हो रही है, इसलिए श्रद्धा भाव से बैठा उनका भाषण सुनता रहता हूं।

मैं मिट्ठू बाबू से पूछता हूं, ‘मिट्ठू बाबू, यह एक बोतल आपको कितने दिन खटाती है?’

मिट्ठू बाबू झूमते हुए कहते हैं, ‘अकेले को दो दिन, और कोई यार मिल गया तो एक ही दिन में खलास।’

मैं भकुआ सा कहता हूं, ‘यानी सौ रुपये रोज?’

मिट्ठू बाबू मुंह पर चिड़चिड़ाहट का भाव लाकर कहते हैं, ‘यार, हिसाब किताब की बातें करके मजा खराब मत करो। जिन्दगी मौज- मस्ती के लिए है। मौज-मस्ती के बिना पैसा किस काम का? मैं पैसे को मिट्टी से ज्यादा नहीं समझता।’

उनका दर्शन मेरे काम का नहीं है क्योंकि अपने हाथ बिल्कुल साफ रहते हैं। पैसा नाम की जो मिट्टी है वह इतनी देर हाथ में रुकती ही नहीं कि हाथ गन्दा हो।

मिट्ठू बाबू गर्दन एक तरफ लटका कर, आंखें मींचे कहते हैं, ‘देखो भई, जिन्दगी चार दिन की है। साथ कुछ नहीं जाना। इसलिए पैसा जोड़कर क्या करना है? सकल पदारथ हैं जग माहीं। संसार की वस्तुओं का भोग करना चाहिए और बेफिक्र होकर रहना चाहिए।’

ऐसा तत्वज्ञान मैं कई बार इसी तरह के लोगों से प्राप्त कर चुका हूं जिनकी जेब में ऊपरी कमाई के दो चार हजार रुपये रोज अपने आप चले आते हैं। ऐसे लोग बड़े तत्वज्ञानी होते हैं क्योंकि वे सांसारिक चिन्ताओं से ऊपर उठ जाते हैं। उनके प्रवचन सुनने के लिए बच जाते हैं मुझ जैसे मूढ़ लोग जिनकी ऊपरी कमाई नहीं होती।

सामने रंगीन टीवी चालू रहता है। मैं कहता हूं, ‘मिट्ठू बाबू ,यह देखो, सीरिया में कैसी मार-काट मची है।’

मिट्ठू बाबू मुश्किल से अपनी आंखें खोलते हैं,  एक नज़र टीवी पर डालकर ठंडी सांस भरकर कहते हैं, ‘कैसा जीना और कैसा मरना। जीवन खुद माया है। दूसरों के लिए दुखी होने से कोई फायदा नहीं।’

मैं उन्हें चैन से बैठने नहीं देता। एक मिनट बाद ही कहता हूं, ‘यै बर्मा वाले आपस में ही एक दूसरे को मार रहे हैं।’

मिट्ठू बाबू फिर मुश्किल से आंखें खोल कर कहते हैं, ‘हानि लाभ जीवन मरन, जस अपजस बिधि हाथ।’

मुश्किल यह होती है कि मैं नशे में नहीं होता, इसलिए ज़मीन की बातें ही करता हूं। थोड़ी देर बाद फिर कहता हूं , ‘अपने देश की हालत कम खराब नहीं है, मिट्ठू बाबू। उड़ीसा में भुखमरी के मारे लोग अपने बच्चों को बेच रहे हैं।’

मिट्ठू बाबू का शान्त मुखड़ा विकृत हो जाता है। रिमोट उठा कर टीवी बन्द कर देते हैं, फिर कहते हैं, ‘भैया, लगता है तुम मेरा नशा उतारने की सोच कर आये हो। अपन टीवी मनोरंजन के लिए देखते हैं, रोने के लिए नहीं। दुनिया में किस-किस के लिए रोयें? बोर करके हमारी शाम खराब मत करो। इसीलिए कहता हूं कि थोड़ी सी ले लिया करो, इन आलतू-फालतू बातों की तरफ ध्यान ही नहीं जाएगा।’

मैं कहता हूं, ‘मिट्ठू बाबू ,लेने लगूंगा तो बीवी झाड़ू मार कर घर से निकाल देगी।’

मिट्ठू बाबू नशे में ‘ही ही’ हंसते हैं। कहते हैं, ‘तुम रहे भोंदू के भोंदू। जरा मेरा जलवा देखो।’

फिर रौब से चिल्लाते हैं, ‘कहां हो जी?’ 

उनकी पत्नी अवतरित होती हैं। मिट्ठू बाबू लटपटाती आवाज़ में डपटते हैं, ‘जरा आकर देख नहीं सकतीं क्या? ये घंटे भर से बैठे हैं। चाय नहीं भेज सकतीं?’

पत्नी दबे स्वर में ‘अभी लाती हूं ‘ कहकर विदा हो जाती हैं।

मिट्ठू बाबू ओंठ फैला कर कहते हैं, ‘देखा? मजाल है जो कोई चूं कर ले। घर में शेर की तरह रहना चाहिए।’

मैं मिट्ठू बाबू को उनकी मर्दानगी के लिए दाद देता हूं।

कुछ ऐसा हुआ कि दो-तीन महीने मिट्ठू बाबू से भेंट नहीं कर पाया। इस बीच सुना कि दफ्तर में उनकी शिकायतें हुईं जिसके फलस्वरूप उन्हें ऐसे सूखे विभाग में स्थानान्तरित कर दिया गया जहां उल्लुओं और चमगादड़ों का साम्राज्य है। पान भी अपनी गांठ से खाना पड़ता है। सुना कि मिट्ठू बाबू भारी कष्टों से गुज़र रहे हैं।

एक दिन उनके घर पहुंचा तो वे मातमी मुद्रा में सिर लटकाये बैठे थे। बोतल गायब थी। पहले मलूकदास की तत्वज्ञानी मुद्रा में पांव कुर्सी पर धरे बैठते थे। आज पांव ठोस ज़मीन पर थे और चेहरा विशुद्ध दुनियादार जैसा था।

मैंने पूछा, ‘क्या हाल है?’

उन्होंने मरी आवाज़ में उत्तर दिया, ‘हाल क्या बतायें! किसी ने झूठी शिकायत कर दी और मुझे पटक दिया सड़ियल विभाग में। मेरा तो दुनिया पर से भरोसा ही उठ गया।’

मैंने कहा, ‘फिकर मत करो, मिट्ठू बाबू। सब ठीक हो जाएगा। बोतल कहां गयी?’

मिट्ठू बाबू बोले, ‘अरे भैया, बोतल दो सौ की आती है। इतने पैसे कहां से लाएं? कभी ले भी आते हैं तो दाम याद आते ही आधा नशा उतर जाता है। बीवी अलग खाने को दौड़ती है। बोतल देखते ही चंडी बन जाती है।’

मैंने कहा, ‘क्या बात करते हो यार! तुम्हारा रौब-दाब कहां गया?’

मिट्ठू बाबू आह भर कर बोले, ‘ऊपरी आमदनी खत्म होते ही रौब-दाब की कमर टूट गयी। जो आदमी गिरस्ती न चला सके उसका रौब-दाब कैसा? जो देखो वही चार बातें सुना कर जाता है।’

फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘बाजार का यह हाल है कि गेहूं पच्चीस रुपये किलो बिक रहा है।’

मैंने कहा, ‘यह भाव तो कई साल से चल रहा है।’

वे बोले, ‘मुझे पता नहीं था। किराने वाले के यहां से आ जाता था, मैं भाव-ताव देखता ही नहीं था। बीवी को पैसे दे देता था। अब बहुत दिन बाद भाव-ताव देख रहा हूं तो तबीयत बहुत परेशान रहती है।’

मैं चलने को उठा तो वे बोले, ‘रुको। तुम्हारे साथ मन्दिर तक चलता हूं। आजकल नियम से मन्दिर जाता हूं। सोचता हूं अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे।’

तभी भीतर से उनकी पत्नी निकलीं। तेज स्वर में बोलीं, ‘कहां जा रहे हो?’

मिट्ठू बाबू मिमिया कर बोले, ‘बस यहीं मन्दिर तक। अभी आता हूं।’

वे उसी स्वर में बोलीं, ‘कहीं इधर-उधर बोतल खोलकर मत बैठ जाना, नहीं तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा।’

मिट्ठू बाबू कानों को हाथ लगाकर बोले, ‘अरे राम राम। कैसी बातें कर रही हो। बोतल के लिए पैसे किसके पास हैं? बस मैं अभी गया और अभी आया।’

पत्नी मुड़कर भीतर चली गयीं और वे चेहरे पर बड़ी बेचारगी का भाव लिये मेरे साथ बाहर आ गये।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 259 – श्राद्ध पक्ष के निमित्त ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 259 ☆ श्राद्ध पक्ष के निमित्त… ?

पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक श्राद्धपक्ष चलता है। इसका भावपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और कर्तव्य का निर्वहन है। व्यवहार पक्ष देखें तो पितरों को  खीर, पूड़ी व मिष्ठान का भोग इसे तृप्तिपर्व का रूप देता है। जगत के रंगमंच के पार्श्व में जा चुकी आत्माओं की तृप्ति के लिए स्थूल के माध्यम से सूक्ष्म को भोज देना लोकातीत एकात्मता है। ऐसी सदाशय व उत्तुंग अलौकिकता सनातन दर्शन में ही संभव है। यूँ भी सनातन परंपरा में प्रेत से  प्रिय का अतिरेक अभिप्रेरित है। पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने की ऐसी परंपरा वाला श्राद्धपक्ष संभवत: विश्व का एकमात्र अनुष्ठान है।

इस अनुष्ठान के निमित्त प्राय: हम संबंधित तिथि को संबंधित दिवंगत का श्राद्ध कर इति कर लेते हैं। अधिकांशत: सभी अपने घर में पूर्वजों के फोटो लगाते हैं। नियमित रूप से दीया-बाती भी करते हैं।

दैहिक रूप से अपने माता-पिता या पूर्वजों का अंश होने के नाते उनके प्रति श्रद्धावनत होना सहज है। यह भी स्वाभाविक है कि व्यक्ति अपने दिवंगत परिजन के प्रति आदर व्यक्त करते हुए उनके गुणों का स्मरण करे। प्रश्न है कि क्या हम दिवंगत के गुणों में से किसी एक या दो को आत्मसात कर पाते हैं?

बहुधा सुनने को मिलता है कि मेरी माँ परिश्रमी थी पर मैं बहुत आलसी हूँ।…क्या शेष जीवन यही कहकर बीतेगा या दिवंगत के परिश्रम को अपनाकर उन्हें चैतन्य रखने में अपनी भूमिका निभाई जाएगी?… मेरे पिता समय का पालन करते थे, वह पंक्चुअल थे।…इधर सवारी किसी को दिये समय से आधे घंटे बाद घर से निकलती है। विदेह स्वरूप में पिता की स्मृति को जीवंत रखने के लिए क्या किया? कहा गया है,

यद्यष्टाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो: जनः।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।

अर्थात श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण देता है, दूसरे मनुष्य उसी का अनुसरण करते हैं। भावार्थ है कि अपने पूर्वजों के गुणों को अपनाना, उनके श्रेष्ठ आचरण का अनुसरण करना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

विधि विधान और लोकाचार से पूर्वजों का श्राद्ध करते हुए अपने पूर्वजों के गुणों को आत्मसात करने का संकल्प भी अवश्य लें। पूर्वजों की आत्मा को इससे सच्चा आनंद प्राप्त होगा।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्रीगणेश साधना सम्पन्न हुई। पितृ पक्ष में पटल पर छुट्टी रहेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 206 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 206 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 206) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 206 ?

☆☆☆☆☆

खामोशियां बोल देती है

ज़िनकी बातें नहीं होती…

दोस्ती उनकी भी क़ायम है

ज़िनकी मुलाक़ातें नहीं होती…

☆☆

Silence converses with them 

who don’t talk to each other…

Friendship flourishes of those too,  

Who don’t  even get to meet…

☆☆☆☆☆

बेदाग़ रख महफूज़ रख

मैली न कर तू ज़िन्दगी…

मिलती नहीं इँसान को…

किरदार की चादर नई…

☆☆

Keep it spotless, keep it secure

Your life don’t you ever stain

For man does not receive again

A fresh mask for his character

☆☆☆☆☆

क्या कहना उनका जो हवाओं में 

सलीक़े से  ख़ुशबू घोल देते हैं 

फ़िज़ाएँ मुश्कबार हो जाती हैं   

फ़क़त जिनके खयाल से…

☆☆

What  to say about her who

infuses aroma in the winds

Whose thought alone turns

Whole environment fragrant

☆☆☆☆☆

बस इतना सा असर होगा

हमारी यादों का

कि कभी कभी तुम बिना

बात मुस्कुराओगे…

☆☆

The only effect of my

Memories will be that

Sometimes without any

Reason you will smile…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 206 ☆ हम अभियंता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है हम अभियंता…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 206 ☆

☆ हम अभियंता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हम अभियंता!, हम अभियंता!!

मानवता के भाग्य-नियंता…

*

माटी से मूरत गढ़ते हैं,

कंकर को शंकर करते हैं.

वामन से संकल्पित पग धर,

हिमगिरि को बौना करते हैं.

नियति-नटी के शिलालेख पर

अदिख लिखा जो वह पढ़ते हैं.

असफलता का फ्रेम बनाकर,

चित्र सफलता का मढ़ते हैं.

श्रम-कोशिश दो हाथ हमारे-

फिर भविष्य की क्यों हो चिंता…

*

अनिल, अनल, भू, सलिल, गगन हम,

पंचतत्व औजार हमारे.

राष्ट्र, विश्व, मानव-उन्नति हित,

तन, मन, शक्ति, समय, धन वारे.

वर्तमान, गत-आगत नत है,

तकनीकों ने रूप निखारे.

निराकार साकार हो रहे,

अपने सपने सतत सँवारे.

साथ हमारे रहना चाहे,

भू पर उतर स्वयं भगवंता…

*

भवन, सड़क, पुल, यंत्र बनाते,

ऊसर में फसलें उपजाते.

हमीं विश्वकर्मा विधि-वंशज.

मंगल पर पद-चिन्ह बनाते.

प्रकृति-पुत्र हैं, नियति-नटी की,

आँखों से हम आँख मिलाते.

हरि सम हर हर आपद-विपदा,

गरल पचा अमृत बरसाते.

सलिल’ स्नेह नर्मदा निनादित,

ऊर्जा-पुंज अनादि-अनंता…

हम अभियंता…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (30 सितंबर से 6 अक्टूबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (30 सितंबर से 6 अक्टूबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जिंदगी की कश्ती पर समय के थपेड़े बीच-बीच में लगाते रहते हैं। समय के यह थपेड़े कब लगेंगे और कब समय हमारी कश्ती को आगे बढ़ाने में सहयोग करेगा इसी को बताने के लिए मैं पंडित अनिल पाण्डेय आपको आज 30 सितंबर से 6 अक्टूबर 2024 अर्थात विक्रम संवत 2081 शक संवत 1946 के अश्वनी कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी से अश्विनी शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के साथ उपस्थित हुआ हूं।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा सिंह राशि में रहेगा। 1 तारीख को 4:25 सायं काल से कन्या राशि का हो जाएगा। चंद्रमा 3 तारीख को 4:10 रात अंत से तुला राशि में प्रवेश करेगा और 6 तारीख को 3:21 दिन से वृश्चिक राशि में गोचर करने लगेगा।

इस पूरे सप्ताह सूर्य और बुध कन्या राशि में, मंगल मिथुन राशि में, गुरु वृष राशि में और शुक्र तुला राशि में गोचर करेंगे। इसके अलावा वक्री शनि कुंभ राशि में और बक्री राहु मीन राशि में भ्रमण करेंगे।

आईये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के बहुत अच्छे प्रस्ताव आएंगे। यह सप्ताह आपके जीवन साथी के लिए उत्तम है। धन आने की मात्रा में थोड़ी कमी आ सकती है। व्यापार उत्तम चलेगा। संतान से आपके सहयोग मिल सकता है। इस सप्ताह आपके लिए चार-पांच और 6 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। एक, दो और तीन तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले तिल का दान करें और शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव की आराधना करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी और माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। इस सप्ताह आपके पास धन के आने की मात्रा में कमी हो सकती है। भाग्य आपका साथ दे सकता है। कार्यालय में आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 30 सितंबर और 1 अक्टूबर लाभदायक है। चार, पांच और छः तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों के लिए यह सप्ताह काफी अच्छा रहेगा। आपके सुख और व्यापार में वृद्धि होगी। आपके घुटने में पीड़ा हो सकती है। स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या बढ़ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 1 अक्टूबर के शाम से दो और तीन तारीख हितकारी है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या आ सकती है। भाग्य से आपको कम मदद मिलेगी। भाइयों के साथ संबंध उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 4, 5 और 6 तारीख के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है। व्यापार में वृद्धि होगी। लाभ में वृद्धि होगी। बहनों के साथ अच्छा संबंध रहेगा। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। दुश्मनों को आप आसानी से पराजित कर सकेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 30 सितंबर एवं 1 अक्टूबर उत्तम है। रविवार को दोपहर के बाद आपको कुछ कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि प्रतिदिन मंदिर जाकर गरीबों के बीच में चावल का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

कन्या राशि

यह सप्ताह आपके लिए काफी हद तक ठीक रहेगा। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। भाग्य से मामूली सहयोग प्राप्त होगा। धन प्राप्त होने की अच्छी उम्मीद है। व्यापार अच्छा चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए एक अक्टूबर के सायंकाल से दो और तीन तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 30 सितंबर और एक अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य करने के पहले पूरी सावधानी बरतना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। जीवनसाथी को कुछ समस्या हो सकती है। भाग्य से आपको कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी। कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है। इस सप्ताह आपके लिए चार-पांच और 6 तारीख उत्तम है। 6 तारीख के दोपहर के बाद संभवत आपको कुछ धन मिल सकता है। एक दो और तीन अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य सचेत रहकर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक ठाक रहेगा। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। धन प्राप्त होने का अच्छा योग है। दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए। माता जी को कष्ट हो सकता है। आपके जीवन साथी को भी शारीरिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 30 सितंबर और 1 अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। इस सप्ताह चार-पांच और 6 तारीख को आपको कोई भी कार्य सतर्क होकर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके माताजी और जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कुछ खराबी आ सकती है। भाग्य से आपको थोड़ी बहुत मदद मिल सकती है। धन आने का योग है। आपके पेट में कोई तकलीफ रह सकती है। इस सप्ताह आपके लिए एक दो और तीन तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए ठीक है। 6 तारीख के दोपहर के बाद से भी आपके कुछ कार्य संपन्न हो सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। शत्रुओं को प्रयास करने के बाद आप पराजित कर सकते हैं। संतान से आपके सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा आ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए चार-पांच और 6 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 30 सितंबर तथा 1 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आप को भाग्य से अच्छी मदद मिल सकती है। परंतु आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। आपको अपने संतान से सहयोग नहीं मिल पाएगा। आपके सुख में भी कमी होगी। धन आने की मात्रा में कमी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 30 सितंबर और 1 अक्टूबर के दोपहर तक का समय ठीक है। 1 अक्टूबर के दोपहर के बाद से और दो तथा तीन तारीख को आपको कोई कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गरीबों के बीच में उड़द की दाल का दान करें। शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए उत्तम है। आपके व्यापार में वृद्धि होगी। आपके सुख में थोड़ी कमी हो सकती है। भाइयों के साथ संबंध में तनाव आएगा। कचहरी के कार्यों में सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए दो और तीन अक्टूबर किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। चार-पांच और 6 तारीख को आपको सतर्क रहना चाहिए। 6 तारीख को दोपहर के बाद से आपको भाग्य से थोड़ी मदद मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ ‘लोग भूल जाते हैं’ – श्री कमलेश भारतीय ☆ समीक्षक – सुश्री सीमा जैन ☆

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘लोग भूल जाते हैं’ – श्री कमलेश भारतीय ☆ समीक्षक – सुश्री सीमा जैन ☆

पुस्तक: लोग भूल जाते हैं

लेखक: कमलेश भारतीय

प्रकाशक: न्यूवर्ल्ड पब्लिकेशन्स 

पृष्ठ संख्या : 88 

मूल्य: 213/- रुपये

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

कमलेश भारतीय जी हिन्दी पत्रकारिता व साहित्य जगत के जाने माने हस्ताक्षर हैं। लेकिन साहित्य के क्षेत्र में वह अधिकतर कथा और लघु कथा के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाते रहे थे। यदा कदा उनकी कविताएं भी पढ़ने को मिलती रहीं जो कि बहुत दमदार होतीं थीं। “लोग भूल जाते हैं” उनका पहला काव्य संग्रह है जिसे उन्होंने अपने मित्रों की आग्रह पर छपवाया है। इस संग्रह की 56 कविताएं बहुत ही प्रभावशाली हैं।

यह कविताएँ कवि की परिपक्व सोच और जीवन के अनुभवों का निचोड़ होने के साथ-साथ एक सहज अभिव्यक्ति करती हुयी भी दिखाई देती है। बदलती जीवन शैली और उसकी विषमताओं में घिरे हुए कवि का अपने गांव, उसकी पगडंडियों और उसकी मिट्टी की खुशबू के प्रति आकर्षण भी दिखाई देता है। इसकी झलक मिलती है “महानगर, कुछ क्षणिकाएँ” तथा “देर गए जब चांदनी रात में” जैसी कविताओं में !

“गांव तक जाने वाली पगडंडियां/ सब सड़क बन गयीं/ और सादगी बुहार कर फेंक दी/ कैसे लौटाऊँ/ अपना वह भोला सा, मासूम सा/गांव…?”

या फिर देखिए यह क्षणिका:

“गांव ने उलाहना दिया/ महानगर के नाम/ मेरे सपूत छीन लिए/ दिखा मृगतृष्णा की छांव”

कुछ कविताएं पिता को समर्पित हैं जैसे कि संग्रह की पहली कविता “जादूगर नहीं थे पिता” जिसमें कवि कहता है:

“जादूगर नहीं थे पिता/पर किसी बड़े जादूगर से कम भी नहीं थे!/ सुबह घर से निकलते समय/ हम जो जो फरमाइशें करते/ शाम को आते ही/ अपने थैले से सबको मनपसंद चीज हंस-हंसकर सौंपते जाते!/ जैसे कोई जादूगर का थैला हो/ और उसमें से कुछ भी निकाला जा सकता हो!/

पिता बन जाने पर/ समझ में आया कि जादूगर की हंसी के पीछे/ कितनी पीड़ा छिपी होती है। “

इसी प्रकार कविता “पिता को याद करते हुए” में कवि बचपन में ही पिता को खो देने के अवसाद का बड़ा भावुकता से वर्णन करता है और कहता है:

मेरे सपने में जब भी आप आते हो/ मैं यही विनती करता हूं/लौट आओ ना पिता/मुझे मेरा बचपन दे दो/आप थे तो बचपन था… अब आप नहीं हो/ तो बचपन कहां?”

संग्रह की अनेकों रचनाओं में हमारे राजनीतिक और सामाजिक जीवन के अनेक पहलुओं पर कवि का दृष्टिकोण खुलकर हमारे सामने आता है! इनमें से कुछ कविताएं संग्रह की बेहतरीन कविताएँ हैं, ऐसा निस्संकोच कहा जा सकता है। इस क्रम में “राजा को क्या पसंद है, ” “आजकल हर रोज सुबह, ” “जनता बनाम रोटी, ” “संपादक के नाम, ” “अपनी आवाज डूबने से पहले, ” “वाह बापू, ” “न जाने कब” जैसी कविताओं का उल्लेख किया जा सकता है। इस श्रेणी की कविताओं में अक्सर कवि व्यंग्यात्मक शैली अपना कर अपनी बात रखता है। उदाहरण के तौर पर यह पंक्तियां देखिए:

“संपादक जी, इक बात कहूं/ बुरा तो नहीं मानोगे जी/आपका अखबार स्याही से नहीं/ लहू से छपता है जी/ कहीं गोली ना चले/ बम ना फटे आगजनी ना हो/ तब आप क्या करेंगे जी?”

इसी प्रकार कविता “न जाने कब” में कवि पंजाब में आतंकवाद के दिनों में एक आम व्यक्ति की स्थिति को इस प्रकार अभिव्यक्त करता है:

“न जाने कब, कहां/ किस मोड़ पर/ मेरी लाश बिछा दी जाएगी/ आप चौंकिए नहीं/मेरी किसी से कोई दुश्मनी नहीं! पर सड़क के एक किनारे/ त्रिशूल/ और दूसरे किनारे तलवार/ मेरी इंतजार में हैं!/ ना जाने कब, क्यों/ त्रिशूल या तलवार/ मेरी दुश्मन हो जाए। “

इसी प्रकार कविता “वाह बापू”में आज के नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कवि कहता है:

वाह बापू/क्या मंत्र दिया नेताओं को/ वे कुछ भी बुरा नहीं देखते/ कहीं ट्रक से कुचल कर/ सबूत मिटाने की कोशिश/ या फिर कोमल सी लड़की से/ लगातार यौन शोषण/ वे कुछ भी नहीं देखते/ सचमुच पुलिस, है मूकदर्शक/ और कोर्ट है बंधे हाथ/ वे कुछ भी नहीं सुनते/ चाहे कितने ही प्रदर्शन कर लो/ या फिर कितनी ही मोमबत्तियां जला लो/ वे बिल्कुल नहीं पिघलते”

इसी प्रकार संग्रह की कुछ कविताएं कवि के अपने दायित्व के बारे में हैं जिन में कवि अपने दोस्तों से कहता है कि वह उसे जगाए रखें ताकि वह अपने दायित्व से विमुख न हो! कविता “साहित्यकार की वसीयत में” वह एक साहित्यकार की संघर्षपूर्ण परिस्थितियों का इन पंक्तियों में बखूबी वर्णन करता है:

मेरे शव पर एक भी फूल ना चढ़े/ ध्यान रखना मेरे दोस्त!/ मैंने फूलों के लिए नहीं/ सिर्फ कांटों की चुभन के लिए जन्म लिया था/ ना थैलियां भेंट करना मेरी पीढियों को/ थैलियां किसी काम की नहीं/ मैं जीवन भर कर्ज़ तले दबा/ कराहता रहा और सिसकता रहा”

इसी प्रकार एक छोटी कविता में कवि कहता है:

मेरे काले दिनों के/ संघर्ष के साथी/ मुझे जगाए रखना!/ मैं सच का साथ देना बंद करने लगूँ/ या अन्याय के खिलाफ आवाज/ ना उठा सकूं/ तुम मुझे जगाए रखना/ ताकि मैं संघर्ष करता रहूं/ और काली शक्तियों के खिलाफ/ लड़ता रहूं। “

कवि के दायित्व को प्रखरता से रखती हुई एक और रचना है “मेरी कविता” जिसमें कवि कहता है:

“मेरी कविता/ जरा होशियार रहना/बदलते वक्त से/ कहीं ऐसा ना हो कि/ शब्द हो जाएं चापलूस/ और तुम किसी बड़े सेठ की/ खुशी के लिए/ छोड़ दे विरोध/ बन जाए गलत राह की हमसफर…”

संग्रह की कुछ अन्य कविताएं कवि की गहन संवेदनशीलता की परिचायक हैं जैसे कि किताबें नामक यह रचना जिसमें कवि किताबों के प्रति अपना प्रेम इस प्रकार व्यक्त करता है:

किताबें/ मुझे प्रेमिकाओं जैसी लगती हैं/ जिन दिनों बहुत उदास होता हूं/ ये मेरे पास आती हैं/ और मुझे गले से लगा लेती हैं!”

“डायरी के बहाने” कविता में कवि डायरी में लिखे नाम और पतों को देखकर उससे जुड़े लोगों को याद करता है तो कविता “बसंत” में अपने आसपास पसरी अव्यवस्थाओं और समस्याओं की बात करते हुए बसंत की सार्थकता की कामना करता है:

बसंत तुम आए हो/पर मैं तुम्हारे फूलों का/ क्या करूं?/ मेरी तो हर गली उदास है!/ कहीं कर्फ्यू तो कहीं आग लगी है/ बसंत मेरे नन्हे मुन्ने के होठों पर/ मुस्कान खिला दो/ जरा मेरे शहरों से कर्फ्यू तो हटा दो। / जरा मेरी गलियों में/ रौनक तो लौटा दो। “

संग्रह की अंतिम कविता “कपोतों की व्यथा” भी अत्यंत सटीक है जिसमें कवि शांति सद्भावना के प्रतीक स्वरूप नेताजी के कर कमल से खुले आकाश में छोड़े गए दो श्वेत कपोतों के बारे में जानना चाहता है कि यह बेचारे श्वेत कपोत कब तक पिंजरे में बंद रखे गए? और अंत में व्यंग्यात्मक शैली में कवि कहता है:

पिंजरे में बंद करने/और खुला छोड़ने वाले हाथ/ सच कहूं?/ मुझे बिल्कुल एक ही लगे। “

कुल मिलाकर एक बहुत ही प्रभावशाली और सशक्त काव्य संग्रह के लिए कमलेश भारतीय जी बधाई के पात्र हैं। आशा है कि वह कहानियों के साथ साथ अपना काव्य लेखन भी इसी तरह जारी रखेंगे और जल्द ही अपने एक और काव्य संग्रह से हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध करेंगे।

समीक्षक – सुश्री सीमा जैन 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख ☆ स्व. लता मंगेशकर ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज प्रस्तुत है  स्व लता मंगेशकर जी  पर आपका आलेख )

(२८ सप्टेंबर १९२९- ६ फेब्रुवारी २०२२)

? आलेख ☆ स्व. लता मंगेशकर ☆ श्री सुरेश पटवा ?

पथिक ने स्टेट बैंक सेंट्रल आफिस में पोस्टिंग के दौरान दो-तीन साल मुंबई में गुज़ारे हैं। वह कभी-कभी लता जी के दर्शन हेतु गिरगांव चौपटी से होता हुआ पेद्दर रोड़ पर जाकर खड़ा हो जाता था। एक दिन शनिवार को लता जी ने भीड़ को उनके अपार्टमेंट से हाथ हिलाकर अभिवादन किया। पथिक भीड़ में मौजूद था। उसने उनकी ज़िंदगी के सफ़े खोलना शुरू किए।

भारत में ऐसा कोई आदमी नहीं होगा जिसने लता मंगेशकर के गीतों में डूबकर अपने प्रेम, आनंद, दुःख, हताशा, विदाई को न जिया हो। आज़ाद भारत का एक अजूबा थीं लता। आदमी तो आदमी पशु भी उनके गायन के दीवाने हैं।

मुंबई और पूना के बीच गायों का एक उच्च तकनीक से सज्जित वातानुकूलित फार्म हाउस है जिसमें गायों को काजू किसमिस बादाम पिस्ता खिलाया जाता है। उन्हें लता जी के गाने सुनाए जाते हैं। वहाँ एक प्रयोग किया गया। जिस दिन उन्हें लता गाने नहीं सुनाए उन्होंने दूध रोक लिया।

लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है।

लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और सम्मानित गायिका हैं, जिनका छ: दशकों का पार्श्व गायन उपलब्धियों से भरा पड़ा है। लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है।

लता का जन्म मराठा परिवार में, मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के नज़दीक महू में पंडित दीनानाथ मंगेशकर के मध्यवर्गीय परिवार की सबसे बड़ी बेटी के रूप में 28 सितंबर, 1929 को हुआ। उनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक थे। इनके परिवार से भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपनी आजीविका के लिये चुना।

हालाँकि लता का जन्म महू में हुआ था लेकिन उनकी परवरिश महाराष्ट्र में हुई। लता ने पाँच साल की उम्र से पिता के साथ एक रंगमंच कलाकार के रूप में अभिनय करना शुरु कर दिया था।

जब उनके पिता की 1942 में हृदय रोग से मृत्यु हो गई। उस समय इनकी आयु मात्र तेरह वर्ष थी. भाई बहिनों में बड़ी होने के कारण परिवार की जिम्मेदारी का बोझ उनके कंधों पर आ गया था. दूसरी ओर उन्हें अपने करियर की तलाश भी थी। उन्हें बहुत आर्थिक किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु की वज़ह से पैसों के लिये उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में काम करना पड़ा।

नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक और मंगेशकर परिवार के करीबी दोस्त मास्टर विनायक (विनायक दामोदर कर्नाटकी) ने उनके परिवार के देखभाल की ज़िम्मेदारी को निभाया। उन्होंने लता को एक गायक और अभिनेत्री के रूप में अपना काम शुरू करने में मददगार की भूमिका निभाई।

लता ने “नाचू या गाड़े, खेलो सारी मणि हौस भारी” गीत गाया था, जिसे सदाशिवराव नेवरेकर ने वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म किटी हसाल (1942) के लिए संगीतबद्ध किया था, लेकिन उस गीत को अंतिम कट से हटा दिया गया था। विनायक ने उन्हें नवयुग चित्रपट की मराठी फिल्म पहिली ‘मंगला-गौर’ (1942) में एक छोटी भूमिका दी, जिसमें उन्होंने “नताली चैत्रची नवलई” गाया, जिसे दादा चंदेकर ने संगीतबद्ध किया था। उन्होंने मराठी फिल्म गजभाऊ (1943) के लिए उनका पहला हिंदी गीत “माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू” गाया था।

जब मास्टर विनायक की कंपनी ने अपना मुख्यालय 1945 में मुंबई स्थानांतरित कर दिया तब लता भी मुंबई पहुँच गईं। उन्होंने भिंडीबाजार घराने के उस्ताद अमन अली खान से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की। उन्होंने वसंत जोगलेकर की हिंदी भाषा की फिल्म ‘आप की सेवा में’ (1946) के लिए “पा लगून कर जोरी” गाया, जिसे दत्ता दावजेकर ने संगीतबद्ध किया था। फिल्म में नृत्य रोहिणी भाटे ने किया था जो बाद में एक प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना बनीं। लता और उनकी बहन आशा ने विनायक की पहली हिंदी भाषा की फिल्म ‘बड़ी माँ’ (1945) में छोटी भूमिकाएँ निभाईं। उस फिल्म में, लता ने एक भजन “माता तेरे चरणों में” भी गाया था। विनायक की दूसरी हिंदी भाषा की फिल्म ‘सुभद्रा’ (1946) की रिकॉर्डिंग के दौरान उनका संगीत निर्देशक वसंत देसाई से परिचय हुआ।

अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फ़िल्म ‘पाहिली मंगलागौर’ (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें, माझे बाल, चिमुकला संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946), माँद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थी। बड़ी माँ, में लता ने नूरजहाँ के साथ अभिनय किया और उसके छोटी बहन की भूमिका आशा भोंसले ने निभाई। उन्होंने खुद की भूमिका के लिये गाने भी गाये और आशा के लिये पार्श्वगायन किया।

1945 में उस्ताद ग़ुलाम हैदर (जिन्होंने पहले नूरजहाँ की खोज की थी) अपनी आनेवाली फ़िल्म के लिये लता को एक निर्माता के स्टूडियो ले गये। फ़िल्म में कामिनी कौशल मुख्य भूमिका निभा रही थी। वे चाहते थे कि लता उस फ़िल्म के लिये पार्श्वगायन करे। लेकिन गुलाम हैदर को निराशा हाथ लगी। 1947 में वसंत जोगलेकर ने अपनी फ़िल्म आपकी सेवा में लता को गाने का मौका दिया। इस फ़िल्म के गानों से लता की खूब चर्चा हुई। इसके बाद लता ने मज़बूर फ़िल्म के गानों “अंग्रेजी छोरा चला गया” और “दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने” जैसे गानों से अपनी स्थिती सुदृढ की। हालाँकि इसके बावज़ूद लता को उस खास हिट की अभी भी तलाश थी।

1949 में लता को ऐसा मौका फ़िल्म “महल” के “आयेगा आनेवाला” गीत से मिला। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म अत्यंत सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये मील का पत्थर सिद्ध हुई। इसके बाद लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज वो चली गईं।

हाड़ जले लकड़ी जले, जले जलावन हार ।
कौतिकहारा भी जले, कासों करूं पुकार ॥

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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