हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३० – “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।

ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है एक नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं – “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २० – “सच्चे मानव थे हरिशंकर परसाई जी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २३ – “मेरी यादों में, मेरी मुंह बोली नानी – सुभद्रा कुमारी चौहान” – डॉ. गीता पुष्प शॉ ☆ प्रस्तुती – श्री जय प्रकाश पांडे ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २४ – “संस्कारधानी के सिद्धहस्त साहित्यकार -पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी” – लेखक : श्री अजय कुमार मिश्रा ☆ संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २५ – “कलम के सिपाही – मुंशी प्रेमचंद” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २६ – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २७– “स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी” ☆ श्री अनूप कुमार शुक्ल ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २८ – “पद्मश्री शरद जोशी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २९ – “सहकारिता के पक्षधर विद्वान, चिंतक – डॉ. नंद किशोर पाण्डेय” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

स्व. वसंत काशीकर

☆ कहाँ गए वे लोग # ३० ☆

☆ “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

‘कोरोना ने लील लिया एक चमकते सितारे – रंगकर्मी स्व. बसंत काशीकर को’

वसंत काशीकर जी, नाट्य जगत का जाना पहचाना नाम जिन्होंने अपनी नाट्य कला से संस्कारधानी जबलपुर के साथ पूरे देश मे हर दर्शक के दिल में अमिट छाप छोड़ी। जबलपुर में रंगमंच और रंगकर्म की एक लंबी और समृद्ध परंपरा रही है। नगर में अनेक नाट्य-संस्थाएं काम कर रही हैं और ये एक-दूसरे के समानांतर नहीं, बल्कि साथ-साथ हैं। भौतिकी का सर्वमान्य सिद्धांत है कि समानांतर क्रम में जुड़ने पर परिणामी प्रतिरोध कम हो जाता है और श्रेणी क्रम में यह इंडिजुअल्स के योग के बराबर हो जाता है। प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है। सामने लहर बहुत बड़ी हो तो लोग हाथ जोड़कर श्रृंखलाबद्ध हो जाते हैं। समय के इस मोड़ पर जबलपुर की रंग संस्थाओं ने यही किया है। 

वसंत काशीकर जितने बड़े कलाकार थे उतने ही बड़े निर्देशक भी थे। रंगमंच के सम्पूर्ण क्राफ्ट पर उनकी पकड़ दिखायी देती थी। उन्होंने विवेचना के लिए कोई 30 से भी ज्यादा नाटकों का निर्देशन किया। उनके द्वारा निर्देशित प्रमुख नाटक हैं, मोटेराम का सत्याग्रह, रानी नागफनी की कहानी, पोस्टर, बैरिस्टर, महाब्राह्मण, दूसरी आजादी, सूपना का सपना, मनबोध बाबू, मायाजाल, एक मामूली आदमी, आँखों देखा गदर, मित्र और मौसाजी जैहिंद। सब लोगों के बीच वे मौसाजी जैहिंद बन गए थे। मौसाजी जैहिंद में उनका गजब का अभिनय था। 

काशीकर ने नाटक भी लिखे और कहानियों का नाट्य रूपांतर भी किया। हरिशंकर परसाई के फैंटेसी उपन्यास रानी नागफनी की कहानी और इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर जैसी रचनाओं का उन्होंने प्रभावी रूपांतर किया था। जब वे स्टेट बैंक में अधिकारी थे तो उनके निर्देशन में हरिशंकर परसाई के फैंटेसी उपन्यास रानी नागफनी के नाट्य रूपांतरण हमारा भी सहयोग रहा, नाटक को संगीतमय बनाने में और आंचलिक भाषा में हम लोगों ने मिलकर बीच-बीच में खूब गीत बना कर डाले थे। भोपाल में रवींद्र भवन में मंचन के बाद बेस्ट नाटक का अवार्ड भी मिला था, याद आता है उन दिनों का स्टेट बैंक नाट्य समारोह… 

स्टेट बैंक द्वारा तीन दिवसीय नाट्य स्पर्धा समारोह का आयोजन होता था। सन 1984 में भारतीय स्टेट बैंक ने प्रदेश में स्थापित अपने क्षेत्रीय कार्यालयों एवं स्थानीय प्रधान कार्यालयों के कर्मचारियों के बीच राजभाषा मास के अंतर्गत नाट्य स्पर्धा की शुरुआत की जो अनवरत 25 वर्षों से अधिक चलती रही।इस नाट्य समारोह के प्रणेता श्री एच, एम, शारदा ( सेवानिवृत्त मुख्य महाप्रबंधक ) थे। उन्होंने अपने रायपुर में पदस्थापना के समय स्टेट बैंक नाट्य मंच की स्थापना की थी। श्री शारदा स्वयं “पारिजात ” नाम से अपना लेखन कार्य करते थे। इस नाट्य समारोह में नाटकों की प्रस्तुति किसी पेशेवर कलाकारों से कम नहीं होती थी। इस समारोह का नगर के नाट्य प्रेमियों में आकर्षण बढ़ता चला गया। स्टेट बैंक का नाट्य समारोह भोपाल के लिए इतना लोकप्रिय हो गया कि प्रतिवर्ष राजभाषा मास आते ही नाट्य प्रेमियों के लिए इसकी प्रतीक्षा और उत्सुकता रहती। नाट्य कर्मी महीनों पहले से उसकी तैयारी में जुट जाते। प्रबंधन की ओर से सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती थी। यह स्पर्धा रायपुर, जबलपुर, ग्वालियर, भोपाल आंचलिक कार्यालयों की शाखाओं एवं स्थानीय प्रधान कार्यालय के कर्मचारियों के मध्य आयोजित होती थी। स्टेट बैंक नाट्य समारोह में सैया भये कोतवाल, निर्णय रुका हुआ, दुलारी बाई, एक था गधा, हमीर की सुबह, सूर्यास्त, चेतना घात, रात्री भोज, कफ़न, मारीच वध, रामलीला, संध्या छाया जैसे आदि लोकप्रिय नाटकों का मंचन किया गया। इन समारोहों में प्रसिद्ध रंगकर्मीं एवं निर्देशक बंसी कौल, राजेंद्र गुप्ता, हबीब तनवीर, प्रभात गांगुली, एम, के, रैना, अलखनंदन, राजीव वर्मा, जयंत देशमुख, आलोक चटर्जी, जावेद जैदी, सतीश मेहता, संजय मेहता, अनूप जोशी, पापिया आंटी, सरोज शर्मा, स्वस्तिक चक्रवर्ती जैसे स्वनामधन्य नाट्य जगत की हस्तियां साक्षी बनी और निर्णायक की भूमिका रही है। स्टेट बैंक नाट्य समारोह ने जो कलाकार भोपाल के नाट्य जगत को दिए वे आज भी सक्रिय है। बसंत काशीकर के निर्देशन में जबलपुर आंचलिक कार्यालय का नाट्य दल इस समारोह में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेता था और डंके की चोट में अनेक पुरस्कार सम्मान लेकर नाट्य समारोह से लौटता था। नाटकों में संगीत, गायन और मंच सज्जा भी बैंक कर्मियों द्वारा ही की जाती थी। जबलपुर आंचलिक कार्यालय के नाटक को देखने खूब भीड़ उमड़ती थी। इस नाट्य समारोह ने बड़े बड़े रंगकर्मी और नाट्य निर्देशक दिए जिन्होंने फिल्मी दुनिया में भी खूब नाम कमाया।

मराठी संस्कृति और संस्कारों के कारण काशीकर का कला के प्रति स्वाभाविक रुझान था। सादगी भरा जीवन था और उनका मित्र संसार बड़ा था। परस्परता उनका स्वभाव था। अहंकार और अकड़ न थी। सहजता थी। जुटकर काम करने की आदत थी। प्रायः यह देखने में आता है कि जो कला के किसी क्षेत्र में गहरे उतर जाते हैं, वे अपने अन्य दायित्वों की तरफ पीठ कर लेते हैं, पर उन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों से कभी मुख नहीं मोड़ा। जब वे अभिनय करते थे, तो उनका सर्वांग बोलने लगता था। संवाद भर उनके किरदार को नहीं खोलते थे, बल्कि उनका अंग-संचालन और हाव-भाव भी किरदार को जीवंत बनाने के काम में सन्नद्ध हो जाया करते थे। लेखक की रचना को मंच पर साकार करने और उसकी व्यंजनाओं को डिकोड करने का काम उन्होंने अंजाम दिया। कला की जीवन के साथ संगति बैठाई। यह कठिन काम है, पर काशीकर ने यह काम दिल से ईमानदारी से करके दिखाया।

नाट्य जगत का चमकता सितारा जिसने अपनी नाट्य कला से संस्कारधानी जबलपुर के हर दर्शक के दिल में अमिट छाप छोड़ी । प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत के विभिन्न प्रांतों में जाकर अपनी कला से लोगों को सम्मोहित करने वाला हसमुख स्वभाव के धनी भाई बसंत काशीकर को दिनांक १४ मई २०२१ को कोरोना ने लील लिया और वे नश्वर देह त्याग कर परमपिता में समाहित हो गये।

श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 193 ☆ # “रिटायरमेंट के बाद” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “रिटायरमेंट के बाद”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 193 ☆

☆ # “रिटायरमेंट के बाद” # ☆

रिटायरमेंट के पहले

हर व्यक्ति में

बहुत सारी दबी हुई

इच्छाएं, तमन्नाएं

अधूरे सपने, अधूरी आशाएं

होती हैं   

जो उसे

हरदम, हरपल

अंदर ही अंदर

कचोटती हैं  

वह रिटायरमेंट के

दिन का

बेसब्री से इंतज़ार करता है

सकुशल रिटायर होने क लिए

ईश्वर से प्रार्थना

हर रोज करता है

उसकी आंखों में

अनगिनत सुंदर

सपने होते हैं  

कुछ पाने के लिए

राह देखते

घर मे अपने होते हैं

वह एक एक दिन

बड़ी बेसब्री से बिताता है

अपने रिटायरमेंट की तारीख

घर मे और मित्रों मे

खुशी खुशी बताता है

 

जब रिटायर होकर

घर जाता है तब

खूब खुशीयां मनाता है

लेकिन उसका यह सुंदर सपना

अल्प समय में टूट जाता है

घर और बाहर

लगता है जैसे

कुछ छूट जाता है

जब घर में हर कोई उससे

दूरी बनाता है

वह सबके लिए अवांछित

हो जाता है

पत्नी की आंखों में

पहले सा प्यार नहीं होता

बहू-बेटे का सम्मानपूर्वक

व्यवहार नही होता

अड़ोस-पड़ोस वाले

देखकर मुंह फेर लेते हैं

संगी साथी भी तवज्जो

नही देते हैं

वह एकांत प्रिय हो जाता है

उसे अकेलापन

अंदर ही अंदर खाता है

तब उसे नौकरी करना

और रिटायरमेंट होने का

फर्क समझ मे आता है

 

दिन में रात का और रात में

दिन का इंतजार करता है

पल पल जीता है

पल पल मरता है

और कुछ लोग –

कोई क्लब में,

कोई बार में,

कोई चकाचौंध वाले

संसार में

ढूंढता है

कुछ पल का सुकून

किसी को

ईश्वर को पाने की

होती है धुन

कुछ लोग अवसाद में

डूब जाते हैं

कुछ लोग हताशा मे

टूट जाते हैं

 

कुछ किस्मत के मारे

निराशा मे डूबकर

दिल ही दिल मे घुट कर

अपनों के तानों से

रोज के अपमानों से

हार जाते हैं

वक्त की मार खाते हैं

और बेजान, बेवजह जीते हुए

समय पूर्व बूढ़े होकर

चुपचाप मर जाते हैं

और

कुछ लोग

जिंदादिली से जीते हुए

सुबह शाम

थोड़ा थोड़ा पीते हुए

अपने रूचि मे व्यस्त होकर

सामाजिक

रचनात्मक

कार्यों मे खोकर

कुछ ऐसा अनोखा

उत्कृष्ट कर जाते हैं

जिससे लोगों के दिलों मे

घर कर जाते हैं

और

मरने के बाद भी

अपना नाम अमर

कर जाते हैं/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – यादें… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता यादें…‘।)

☆ कविता  – यादें… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆ 

चांद तारों से पता, पूछता हूं मैं तेरा,

तेरी खुशबू से पता, पूछता हूं मैं तेरा,

तेरी बातें, तेरी यादें, याद आती हैं मुझे,

तेरी गलियों से पता, पूछता हूं मैं तेरा,

चांद तारों से…

*

तुझसे बिछड़े, जाने, कितने, जमाने हो गए,

तुझको यादों में छुपा, तेरे फसाने खो गए,

अब तसव्वर में बसा, बस, चेहरा तेरा,

चांद तारों से…

*

कितना पानी बह गया, कब हम  मिले,

कह न पाया, बात, बढ़ते रहे फासले,

आजा कह दूं बात, कह रहा दिल मेरा,

चांद तारों से..

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 190 ☆ प्रेम… प्रेमकाव्य… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 190 ? 

☆ प्रेम… प्रेमकाव्य… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

(अष्टाक्षरी…)

प्रेम… प्रेमकाव्य…

प्रेम काय असतं…

 

प्रेम एक, अडीच अक्षराचं पत्र

प्रेम एक, मंत्रमुग्ध करणार स्तोत्र

प्रेम म्हणजे, आकर्षण

प्रेम म्हणजे, समर्पण.!!

 *

प्रेम एक, निर्मळ सरिता

प्रेम एक,  मुक्त कविता.!!

 *

नकोत प्रेमात वासना

असाव्या फक्त संवेदना.!!

 *

नुसते शरीराचे, आकर्षण नसावे

प्रेमाने प्रेमाला, हस्तगत करावे.!!

 *

विचार करावा, कोमल मनाचा

प्रेमात राहून, मन जिंकण्याचा.!!

 *

नकोत नुसते, गलिच्छ इशारे

प्रेमासाठी मन, शुद्ध ठेवा रे.!!

 *

गंध असल्यावर

फुले हातात असतात

गंध संपल्यावर

फुले कचऱ्यात सापडतात.!!

 *

प्रेमाचे सूत्र

मुळीच असे नसते

असे असेल तर

प्रेम लगेच संपते.!!

 *

वासनांध प्रेमाला

हवस म्हणतात

त्यात मग कुठे

बलात्कार होतात.!!

 *

म्हणून सांगतो

प्रेम अपराध नसतो

निर्मळ प्रेम

मनाचे मन जोपासतो.!!

मात्र प्रेमात पडून, वेळ निभावणे

गरज संपली की, साथ सोडणे.!!

 *

हा मात्र अक्षम्य, गुन्हा ठरतो

एखाद्याचा मृत्यू, हकनाक होतो.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 258 ☆ व्यंग्य – मनुष्यों में आहार-श्रृंखला ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम विचारणीय व्यंग्य – ‘मनुष्यों में आहार-श्रृंखला । इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 258 ☆

☆ व्यंग्य ☆ मनुष्यों में आहार-श्रृंखला 

आदमी अपनी उपलब्धियों की कितनी ही डींग मार ले, कभी न कभी उसे प्रकृति की अद्भुत व्यवस्था के सामने नतमस्तक होना पड़ता है। प्रकृति की ऐसी ही एक व्यवस्था ‘फूड-चेन’ यानी आहार-श्रृंखला है जिसके अनुसार पोषक-तत्व और ऊर्जा एक जीव से दूसरे जीव में स्थानांतरित होती है। जब एक जीव दूसरे को अपना भोजन बनाता है तो पोषक-तत्वों और ऊर्जा का स्थानांतरण पहले जीव से दूसरे जीव में हो जाता है। सन्देह होता है कि कहीं इस प्रकृति-प्रदत्त ऊर्जा को ही हम ‘आत्मा’ कह कर तो नहीं पुकारने लगे,जिसे भगवद्गीता में अच्छेद्य,अदाह्य, अक्लेद्य और अशोष्य कहा गया है।

विज्ञान के अनुसार ऊर्जा न तो निर्मित की जा सकती है, न ही वह नष्ट होती है। वह केवल जीवों के बीच में हस्तांतरित होती है। ऊर्जा के इस हस्तांतरण के कई स्तर होते हैं। सबसे निचले स्तर पर पौधे होते हैं जिन्हें उत्पादक या प्रोड्यूसर कहा जाता है क्योंकि ये सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर अपना भोजन तैयार करते हैं। इस प्रक्रिया को ‘फोटोसिंथेसिस’ कहते हैं। इनके ऊपर उपभोक्ताओं की अनेक श्रेणियां होती है जिन्हें प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक उपभोक्ता कहा जाता है। उदाहरण के लिए, घास उत्पादकों की श्रेणी में आती है, उसे खाकर एक टिड्डा पोषक-तत्व और ऊर्जा प्राप्त करता है। टिड्डे को चूहा, चूहे को सांप और सांप को उकाब या गरुड़ खाता है। इस प्रकार ऊर्जा के स्थानांतरण का क्रम चलता रहता है और आहार-श्रृंखला का निर्माण होता जाता है। श्रृंखला के अन्तिम छोर पर ‘स्केवेंजर्स’ यानी सियार और लकड़बग्घे जैसे सफाई करने वाले जीव और  ‘डीकंपोज़र्स’ यानी मरे पशुओं को खाकर मिट्टी में बदल देने वाले फंगस और बैक्टीरिया जैसे जीव होते हैं।

जब ‘डीकंपोज़र्स’ जीव के शरीर को मिट्टी में परिवर्तित कर देते हैं तो ऊर्जा पुनः मिट्टी की शक्ल में प्रकृति की व्यवस्था में लौट आती है और चक्र पूरा हो जाता है।
मनुष्य भी इसी प्रकार ऊर्जा प्राप्त करता है। वह शाकाहारी भी होता है और मांसाहारी भी। इसलिए उसे प्राथमिक उपभोक्ता या द्वितीयक (अथवा  तृतीयक)उपभोक्ता कहा जा सकता है।

लेकिन मनुष्य अन्य जीवों की तुलना में अधिक बुद्धि-संपन्न प्राणी है, प्रकृति के द्वारा निर्मित आहार-श्रृंखला से उसका पेट नहीं भरता। इसलिए उसने अपने लिए प्रकृति की आहार- श्रृंखला से इतर आहार-श्रृंखला निर्मित की है जो उसे अधिक पोषण और ऊर्जा प्रदान करती है। इस श्रृंखला को ‘उत्कोच-श्रृंखला’ कहा जा सकता है। इस आहार-श्रृंखला के उपभोक्ता कुछ खास पदों पर बैठे खुशकिस्मत लोग होते हैं जब कि इसमें उत्पादक विभिन्न व्यवसायों में लगे बहुसंख्यक लोग होते हैं।

मनुष्य के द्वारा निर्मित इस आहार- श्रृंखला में उत्पादक से ऊर्जा और पोषण का संग्रह सबसे निचले अधिकारी या सबसे ऊपर के अधिकारी के द्वारा किया जाता है। इसके बाद ऊर्जा का स्थानांतरण उचित अंशों में नीचे से ऊपर की ओर या ऊपर से नीचे की ओर होता है। इस क्रम में थोड़ी बहुत हिंसा या क्रूरता उत्पादक के साथ ही होती है। उसके बाद पोषक-तत्वों का हस्तांतरण प्रेमपूर्वक, ईमानदारी से होता है, जबकि अन्य जीवों में उपभोग के प्रत्येक स्तर पर हिंसा और क्रूरता का व्यवहार होता है। इस दृष्टि से मनुष्य के द्वारा निर्मित आहार-श्रृंखला प्रकृति की आहार- श्रृंखला की तुलना में अधिक  मानवीय कही जा सकती है।

मनुष्यों की आहार-श्रृंखला में ‘स्केवेंजर्स’ भी होते हैं जो आहार-ग्रहण की प्रक्रिया के सबूतों को मिटाते हैं। इसी प्रकार इसमें ‘डीकंपोज़र्स’ होते हैं जो मरे-गिरे मनुष्य को अपना भोजन बनाकर उसे मिट्टी बना देते हैं।

मनुष्य को इस श्रृंखला में अपने संचित पोषक-तत्वों को चोरों, लुटेरों,ई.डी.,इनकम टैक्स जैसे शिकारियों से बचाना पड़ता है। इनसे बच गये तो फिर मनुष्य को यह सुविधा मिलती है कि अपने पोषक-तत्वों को अपनी सन्तानों को हस्तांतरित कर सके और अपनी तरह उनके जीवन को भी खुशहाल बना सके।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 258 – मेरी भाषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 258 ☆ मेरी भाषा… ?

सितम्बर माह है। विभिन्न सरकारी कार्यालयों में हिन्दी पखवाड़ा मनाया जा रहा है।

वस्तुत: भाषा सभ्यता को संस्कारित करने वाली वीणा एवं संस्कृति को शब्द देनेवाली वाणी है। कूटनीति का एक सूत्र कहता है कि किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति नष्ट करनी हो तो उसकी भाषा नष्ट कर दीजिए। इस सूत्र को भारत पर शासन करने वाले विदेशियों ने भली भाँति समझा और संस्कृत जैसी समृद्ध और संस्कृतिवाणी को हाशिए पर कर अपने-अपने इलाके की भाषाएँ लादने की कोशिश की।

असली मुद्दा स्वाधीनता के बाद का है। राष्ट्रभाषा को स्थान दिए बिना राष्ट्र के अस्तित्व और सांस्कृतिक अस्मिता को परिभाषित करने की  प्रवृत्ति के परिणाम भी विस्फोटक रहे हैं।

यूरोपीय भाषा समूह के प्रयोग से ‘कॉन्वेंट एजुकेटेड’ पीढ़ी, भारतीय भाषा समूह के अनेक  अक्षरों का उच्चारण नहीं कर पाती। ‘ड़’, ‘ण’  अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। ‘पूर्ण’, पूर्न हो चला है, ‘शर्म ’ और ‘श्रम’ में एकाकार हो गया है। हृस्व और दीर्घ मात्राओं के अंतर का निरंतर होता क्षय, अर्थ का अनर्थ कर रहा है। ‘लुटना’ और ‘लूटना’ एक ही हो गये हैं। विदेशियों द्वारा की गई ‘लूट’ को ‘लुटना’ मानकर हम अपनी लुटिया डुबोने में अभिभूत हो रहे हैं।

लिपि नये संकट से गुजर रही है। इंटरनेट खास तौर पर फेसबुक, एक्स, वॉट्सएप, इंस्टाग्राम पर अनेक लोग देवनागरी के बजाय रोमन में हिन्दी लिखते हैं। ‘बड़बड़’ के लिए barbar/ badbad  (बर्बर या बारबर या बार-बार) लिखा जा रहा है। ‘करता’, ‘कराता’, ‘कर्ता’ में फर्क कर पाना भी संभव नहीं रहा है। जैसे-जैसे पीढ़ी पेपरलेस हो रही है, स्क्रिप्टलेस भी होती जा रही है।

संसर्गजन्य संवेदनहीनता, थोथे दंभवाला कृत्रिम मनुष्य तैयार कर रही है। कृत्रिमता की  पराकाष्ठा है कि मातृभाषा या हिन्दी न बोल पाने पर व्यक्ति संकोच अनुभव नहीं करता पर अंग्रेजी न जानने पर उसकी आँखें स्वयंमेव नीची हो जाती हैं। शर्म से गड़ी इन आँखों को देखकर मैकाले और उसके वैचारिक वंशजों की आँखों में विजय के अभिमान का जो भाव उठता होगा, ग्यारह अक्षौहिणी सेना को परास्त कर वैसा भाव पांडवों की आँखों में भी न उठा होगा।

हिन्दी पखवाड़ा, सप्ताह या दिवस मना लेने भर से हिंदी के प्रति भारतीय नागरिक के कर्तव्य  की इतिश्री नहीं हो जाती। आवश्यक है कि नागरिक अपने भाषाई अधिकार के प्रति जागरुक हों। समय की मांग है कि हिन्दी और सभी भारतीय भाषाएँ एकसाथ आएँ।

बीते सात दशकों में पहली बार भाषा नीति को लेकर  वर्तमान केंद्र सरकार संवेदनशील और सक्रिय दिखाई दे रही है। राष्ट्र और राष्ट्रीयता, भारत और भारतीयता के पक्ष में स्वयं प्रधानमंत्री ने पहल की है। नयी शिक्षा नीति में भारत सरकार ने पहली बार प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने को प्रधानता दी है। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में भी भारतीय भाषाओं का प्रवेश हो चुका है,  यह सराहनीय है।

केदारनाथ सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है, जिसमें वे कहते हैं,

जैसे चींटियाँ लौटती हैं/ बिलों में,

कठफोड़वा लौटता है/ काठ के पास,

वायुयान लौटते हैं/ एक के बाद एक,

लाल आसमान में डैने पसारे हुए/

हवाई-अड्डे की ओर/

ओ मेरी भाषा/ मैं लौटता हूँ तुम में,

जब चुप रहते-रहते/

अकड़ जाती है मेरी जीभ/

दुखने लगती है/ मेरी आत्मा..!

अपनी भाषाओं के अरुणोदय की संभावनाएँ तो बन रही हैं। नागरिकों से अपेक्षित है कि वे इस अरुण की रश्मियाँ बनें।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्रीगणेश साधना सम्पन्न हुई। पितृ पक्ष में पटल पर छुट्टी रहेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 205 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 205 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 205) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 205 ?

चलो अब ख़ामोशियों

की गिरफ़्त में चलते हैं…

बातें गर ज़्यादा हुईं तो

जज़्बात खुल जायेंगे..!!

☆☆

Let’s get arrested now in

the regime of silence …

If we kept talking anymore

Emotions may get revealed…!!

☆☆☆☆☆

बादलों का गुनाह नहीं कि

वो  बेमौसम  बरस  गए!!

दिल  हलका  करने का

हक  तो  सबको हैं ना!!

☆☆

It’s not the crime of clouds

If they rained unseasonally!

After all everyone is entitled

To lighten burdened sorrows

☆☆☆☆☆

काश नासमझी में ही

बीत जाए ये ज़िन्दगी

समझदारी ने तो हमसे

बहुत कुछ छीन लिया…

☆☆

Wish  life could pass

In  imprudence only

Wiseness alone

did snatch a lot…

☆☆☆☆☆

दिल ना चाहे फिर भी यारो

मिलते जुलते रहा करो…

करो शिकायत गुस्से में ही

कुछ ना कुछ तो कहा करो…

☆☆

Heart may not desire still

Friends keep on meeting

Complain even in anger only

But at least say something…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 205 ☆ हम हैं अभियंता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है हम हैं अभियंता…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 205 ☆

☆ हम हैं अभियंता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

(छंद विधान: १० ८ ८ ६ = ३२  x ४)

हम हैं अभियंता नीति नियंता, अपना देश सँवारेंगे

हर संकट हर हर मंज़िल वर, सबका भाग्य निखारेंगे

पथ की बाधाएँ दूर हटाएँ, खुद को सब पर वारेंगे

भारत माँ पावन जन मन भावन, श्रम-सीकर चरण पखारेंगे

*

अभियंता मिलकर आगे चलकर, पथ दिखलायें जग देखे

कंकर को शंकर कर दें हँसकर मंज़िल पाएं कर लेखे

शशि-मंगल छूलें, धरा न भूलें, दर्द दीन का हरना है

आँसू न बहायें , जन-गण गाये, पंथ वही तो वरना है

*

श्रम-स्वेद बहाकर, लगन लगाकर, स्वप्न सभी साकार करें

गणना कर परखें, पुनि-पुनि निरखें, त्रुटि न तनिक भी कहीं वरें

उपकरण जुटाएं, यंत्र बनायें, नव तकनीक चुनें न रुकें

आधुनिक प्रविधियाँ, मनहर छवियाँ,  उन्नत देश करें

*

नव कथा लिखेंगे, पग न थकेंगे, हाथ करेंगे काम काम सदा

किस्मत बदलेंगे, नभ छू लेंगे, पर न कहेंगे ‘यही बदा’

प्रभु भू पर आयें, हाथ बटायें, अभियंता संग-साथ रहें

श्रम की जयगाथा, उन्नत माथा, सत नारायण कथा कहें

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (23 सितंबर से 29 सितंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (23 सितंबर से 29 सितंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आप लोगों के प्यार और समर्थन के कारण समय के गति के साथ साप्ताहिक राशिफल की श्रृंखला लगातार आगे बढ़ रही है। आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय आप लोगों के समक्ष 23 सितंबर से 29 सितंबर 2024 अर्थात विक्रम संवत 2081 शक संवत 1946 के अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी से अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के साथ उपस्थित हो रहा हूं।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा वृष राशि का रहेगा। 24 तारीख को 3:44 दिन से मकर राशि में गोचर करेगा। 26 तारीख को 9:34 रात से चंद्रमा का प्रवेश कर्क राशि में होगा और 28 तारीख को 5:49 रात अंत से चंद्रमा सिंह राशि का हो जाएगा।

इस सप्ताह सूर्य और बुध कन्या राशि में भ्रमण करेंगे। इसके अलावा पूरे सप्ताह मंगल मिथुन राशि में, गुरु वृष राशि में और शुक्र तुला राशि में रहेंगे। वक्री शनि पूरे सप्ताह कुंभ राशि में और बक्री राहु पूरे सप्ताह मीन राशि में गोचर करेंगे।

आईये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं। 23 सितंबर से 29 सितंबर 2024 तक के सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल

मेष राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आएंगे। आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी बहुत परेशानी हो सकती है। धन आने के मार्ग में कुछ परेशानी रहेगी। दुश्मनों की संख्या में कमी आएगी। अगर आप जरा सा भी प्रयास करेंगे तो दुश्मनों को आप पराजित कर सकते हैं। भाग्य आपका थोड़ा बहुत साथ देगा। दुर्घटनाओं से सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 सितंबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। 23 और 24 तारीख को आपके पास धन आ सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। आपकी संतान की उन्नति हो सकती है। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। कार्यालय में कार्य करने के दौरान सतर्क रहें। गलत रास्ते से धन आ सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख के 3:00 बजे तक और 29 तारीख का समय उत्तम है। अपने सभी लंबित कार्यों को 23 और 24 तारीख के 3:00 बजे तक करने का प्रयास करें। सफलता मिलेगी। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

आपके जीवनसाथी और माता जी का का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी तकलीफ हो सकती है। आपके सुख में वृद्धि होगी। आपको संतान से सहयोग प्राप्त होगा। कार्यालय में वाद विवाद से बचें। व्यापार में उन्नति होगी। इस सप्ताह आपके लिए 24 तारीख के शाम से 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 23 और 24 तारीख के दोपहर तक आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गरीबों के बीच में तिल का दान करें। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर पूजा करें सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और आपके माता जी का स्वास्थ्य पहले से ठीक रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। सुख संबंधी कोई सामग्री आप खरीद सकते हैं। व्यापार ठीक चलेगा। भाग्य से बहुत कम मदद मिलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 27, 28 तारीख उत्तम है। 24, 25 और 26 तारीख को कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने के अच्छे संयोग हैं। व्यापार में वृद्धि होगी। कार्यालय में आपको कष्ट हो सकता है। जीवनसाथी के कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है। संतान से सहयोग प्राप्त होगा। शत्रु पराजित होंगे। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 की दोपहर तक तथा 29 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 23 और 24 तारीख की दोपहर तक आपको सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। 27 और 28 तारीख को आपको किसी भी कार्य को करने में पूरी सावधानी बरतें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आपका दिन विष्णुसहस्त्रनाम का जाप करें सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

यह सप्ताह आपके लिए उत्तम है। भाग्य से आपके सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। धन आने की पूरी उम्मीद है। आपका आपके जीवनसाथी का और आपके माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपको कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 24 के सायंकाल से लेकर 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 29 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान करें और शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

यह सप्ताह आपके लिए ठीक-ठाक है। अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि हो सकती है। भाग्य से सहयोग नहीं मिल पाएगा। कचहरी के कार्यों में अगर आप सावधानी से कार्य करेंगे तो सफल होंगे। भाइयों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। आपके सुख में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 तारीख लाभदायक हैं। 23 और 24 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आपका दिन प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने की अच्छी उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। सुख में थोड़ी कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 की दोपहर तक तथा 29 तारीख लाभकारी हैं। 23 और 24 की दोपहर तक आपके सभी कार्य सफल होंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गोपाल सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके व्यापार में उन्नति होगी। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन आने की उम्मीद है। भाग्य से लाभ हो सकता है। पेट के पीड़ा में थोड़ी कमी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 24 के सायंकाल से 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका अच्छे से साथ देगा। शेयर में और लॉटरी में पैसा लगाने का ही अच्छा समय है। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। बच्चों से सहयोग नहीं मिल पाएगा। शत्रु समाप्त हो सकते हैं। परंतु उसके लिए आपको प्रयास करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 तारीख परिणाम दायक हैं। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। आपके सुख में कमी आ सकती है। गलत रास्ते से धन आने की उम्मीद है। दुर्घटनाओं से आपको सतर्क रहना चाहिए। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख के दोपहर तक तथा 29 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 27 और 28 तारीख को आपको सावधान रहकर के ही कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

व्यापार में उन्नति होगी। जीवनसाथी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। आपके और आपकी माता जी के स्वास्थ्य में तकलीफ हो सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कार्यालय में आपको सफलताएं मिल सकती हैं। इस सप्ताह आपके लिए 24 के सायंकाल से 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 29 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “धरोहर” (कथा संग्रह) – संपादक : सुश्री रत्ना भदौरिया ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “धरोहर” (कथा संग्रह) – संपादक : सुश्री रत्ना भदौरिया ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

संपादक : रत्ना भादौरिया

कथा संग्रह : धरोहर 

प्रकाशक : वान्या पब्लिकेशंज, कानपुर

मूल्य : 700 रु पेपरबैक

पृष्ठ : 296

☆ “धरोहर : जीवन की सांध्य बेला की मार्मिक कहानियां” – कमलेश भारतीय ☆

युवा रचनाकार रत्ना भादौरिया, जो प्रसिद्ध कथाकार मन्नू भंडारी की परिचारिका के रूप में काम करते करते खुद लेखन कार्य आरम्भ कर दिया । अब रत्ना भादौरिया ने एक कहानी संग्रह संपादित किया है ‘धरोहर’ जो जीवन की सांध्य बेला से जुड़ीं 41 कहानियों का खूबसूरत संकलन है । आज जब इस पर कुछ कहने जा रहा हूँ तो संयोगवश पितृपक्ष चल रहा है । हम परंपरा के तौर पर अपने पित्तरों को याद कर रहे हैं । नवांशहर में मेरे बचपन के दोस्त बृजमोहन के पिता पंडित लोकानंद‌ इन दिनों के लिए परिवारजनों से कहा करते थे कि अरे ! जीते जी मुझे खीर पूरी, हलवा खिला लो, बाद में कौन देखेगा क्या करते हो ? सचमुच यह प्रसंग याद आया और ये इसी प्रसंग से जुड़ी कहानियो़ं का संकलन है । जीते जी तो घोर उपेक्षा मां बाप की और मृत्यु भोज पर खर्च दिखावे का ! डाॅ इंद्रनाथ मदान भी कहते थे दिखावे के लिए अखबारों में स्मृति दिवस मनायेंगे लेकिन जीते जी ? अपनी प्रतिष्ठा का यह दोगलापन ! हमारे देश में संयुक्त परिवार का चलन खत्म होता जा रहा है और एकल परिवार फल फूल‌ रहे हैं, ऐसे में वृद्धाश्रमों की व्यवस्था आ गयी है । ये सब इन 41 कहानियों की आत्मा में है । सभी कहानियों में वृद्धों की परिवार में दिन प्रतिदिन घटती अहमियत और घोर उपेक्षा को सामने आता है ! सूरज प्रकाश की कहानी ‘ये हत्या का मामला  है’ दिल दहला देने वाली कहानी है कि एक रिटायर्ड प्रिंसिपल पिता का अंत दोस्त के पास लावारिस की तरह होता है क्योंकि बेटे ने मकान बेचकर महानगर में घर लिया और फिर अचानक एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाने पर बहू सब कुछ बेचकर मायके चली गयी ससुर को लावारिस छोड़कर ! यही है आज का सच, यही है सांध्य बेला का अंतिम सत्य ! कल्पना मनोरम की कहानी ‘आखिरी मोड़ पर’ भी याद रहने वाली मार्मिक कहानी है । कैसे एक बेटा मां को वृद्धाश्रम में छोड़कर इंग्लैंड चला गया और सुहानी उस मां को ढूंढ निकालती है और इंग्लैंड ले आती है और उसी संबंधी बेटे को बुलाती है पर मां उसके साथ जाने से इंकार कर देती है । सूरज सिंह नेगी की ‘आम की गुठली’ बहुत भावुक कर देती है । कोई चाहे तो मेरी कहानी ‘भुगतान’ भी पढ़ सकता है, जो एक वृद्ध नौकर की वह इच्छा है, जो मर कर भी अधूरी रहती है । विवेक मिश्रा की एल्बम भी दिल को छू जाती है।

पूनम मनु, सुमन केशरी,योगिता यादव, सुधांशु गुप्त, राजीव सक्सेना, अनिता रश्मि, रिंकल शर्मा, लता अग्रवाल, संतोष सुपेकर, सुधा भार्गव नीरू मित्तल, इंदु गुप्ता, नागेंद्र जगूड़ी, निर्देश निधि आदि की कहानियां भी पठनीय हैं, स्मरणीय हैं ।

रत्ना भादौरिया का श्रम सार्थक है और चयन बहुत खूबसूरत । इस युवा रचनाकार को ढेर सारी शुभकामनाएं । संग्रह पठनीय और सहेज कर रखने लायक है ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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