मराठी साहित्य – प्रतिमेच्या पलिकडले ☆ “चिल्लर…” ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆

श्री नंदकुमार पंडित वडेर

? प्रतिमेच्या पलिकडले ?

“चिल्लर…” ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर 

… कालपरवापर्यंत ही चलनी नाणी होती बाजारात…

… होतं त्याचं प्रत्येकाचं आपापलं मानाचं मुल्य….

.. दोन पैसै टाकले तर मिळत होती पार्लेची लिमलेटची  गोळी..

… आंबट गोड चवीने तोंड स्स स्स करणारी…

… आणे बाराणे, चवली पावली नि अधेली…

… खुर्दा चिल्लरचा खुळखुळ वाजविणारी…

… नगदी नोटांचा कागदी सुळसुळाट होता कि तेव्हा..

.. फक्त तो धनिकांच्या पेढीवर नि गरिबांकडे लाजाळू…

… तांबा पितळ, शिसे, अल्युमिनियम धातूचीं नाणी

… भाव वधारला धातूंचा नि जमाना लोपला नाण्यांचा…

… शेवटी कागदी नोटाने नाण्यांवर मात केली…

… चिल्लर आता बाजारातून हद्दपार झाली…

… कुठे कधीतरी नजरेस पडते एखादे फुटकळ नाणे…

… सांगत असते आपले भूतकाळाचे गाणे केविलवाणे…

… आता रस्तावरचा भिकारी त्याला झिडकारतो..

… ना बाजारातला व्यापारी गल्ल्यात आसरा देतो…

.. देवाच्या पेटीत गुपचूप दान धर्म केल्याचा टेंभा मिरवतो..

… डोळे बंद असलेला देव भक्ताची दांभिक भक्ती ओळखतो…

… अन माणसाला तू कितीही महान झालास तरीही मजपुढे…

…. आजही चिल्लर आहेस हेच सुचवत असतो.. तसे

… नवी येणारी प्रत्येक पिढी जुन्या पिढीला चिल्लर समजत राहते..

… मुल्य हरवून बसलेली  जुनी पिढी अवमुल्यनाच्या दुखाने अवमानित होऊन जाते…

… होतं त्याचं प्रत्येकाचं आपापलं मानाचं मुल्य…

… चिल्लर असलं म्हणून काय झालं?..

©  नंदकुमार पंडित वडेर

विश्रामबाग, सांगली

मोबाईल-99209 78470 ईमेल –[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 187 ☆ बलि बोल कहे बिन उत्तर दीन्ही… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना बलि बोल कहे बिन उत्तर दीन्ही। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 187 ☆ बलि बोल कहे बिन उत्तर दीन्ही

आम बोलचाल की भाषा के मानक तय होते हैं जिन्हें सुनते ही अपने आप विशिष्ट अर्थ निकलता है। लिखने पढ़ने वालों को इनका उपयोग करते समय सतर्कता बरतनी चाहिए। शब्द ब्रह्म होते हैं जिनका  अस्तित्व ब्रह्मांड में बना रहता है, जो देर सबेर लौट कर आते हैं। इसलिए अनुभवी लोग कहते हैं, तोल मोल के बोल, अच्छा और सच्चा बोलो।

जब तक भाषा पर पकड़ मजबूत न हो अपनी बातों को बोलते समय ध्यान रखना चाहिए। एक बार अनर्थ हो तो उसे अनेकार्थी बनने से कोई नहीं रोक सकता। सब लोग अपनी मर्जी से व्याख्या करते हैं।

कहते हैं क्षमा बड़न को चाहिए छोटो को उत्पात। पर प्रश्न ये है, कि कोई कब तक युवा बना रहेगा कभी तो बुजुर्ग होना होगा, यदि समझदारी नहीं दिखाई तो जिम्मेदारी मिलने से रही। आखिर मुखिया को मुख सा होना चाहिए जो-

पाले पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।

जितने लोग उतनी बातें, पर कुछ मुद्दों में सभी एक सुर से सही का साथ देते हैं और भीड़ में अकेले रह जाने का दर्द तो गलती करने वाले को भुगतना होगा। खैर जब जागो तभी सबेरा समझते हुए क्षमा मांगो और नयी शुरुआत करते हुए सर्वजन हितात सर्व जन सुखाय पर चिंतन करके राष्ट्रप्रेमी विचारों के साथ आगे बढ़ो।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 268 ☆ आलेख – लंदन से 4 – मिस्टर सोशल के फेसबुक अपडेट ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख लंदन से 4 – मिस्टर सोशल के फेसबुक अपडेट

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 267 ☆

? आलेख लंदन से 4 – मिस्टर सोशल के फेसबुक अपडेट ?

मिस्टर सोशल सोते, जागते, खाते, पीते, मीटिंग में हों, या किसी के घर गए हों, टीवी देख रहे हों या वाशरूम में हों, कोई उनसे बात कर रहा हो या वे किसी से रूबरू हों, वे सदा मोबाइलमय ही रहते हैं । मोबाइल ही उनकी लेखनी है, मोबाइल ही बजरिए फेसबुक उनकी प्रदर्शनी है ।

गुड मॉर्निंग दोस्तों ( बिस्तर पर पड़े पड़े) उनका पहला अपडेट आया ।

सुबह नींद देर से खुली, सूरज पहले ही ऊग आया था, पड़ोसी के मुर्गे की बांग तो सुनाई नहीं दी शायद वह भी आज देर तक सोता रह गया, या क्या पता कल रात उसके जीवन का अंत हो गया हो।

टूथ पेस्ट खत्म हो गया है, आफिस में व्यस्तता इतनी है कि लाना ही भूल जाता हूं। आज तो बेलन चलाकर सीधे टूथ ब्रश पर बचा खुचा पेस्ट निकाल कर काम चला लिया है। शाम को याद से लाना होगा। ( ब्रश करने के बाद चाय पीते हुए )

नाश्ते में उबले अंडे, केवल सफेद भाग और स्प्राउट। आफ्टर आल हेल्थ इज वेल्थ । ( नाश्ते की टेबल से)

तैयार होने के बाद उन्होंने स्वयं को मोबाइल के सेल्फी मोड में निहारा, और एक क्लिक कर लिया । सेल्फी चेंप दी … रेडी फार आफिस ।

तीन मित्रों और बास के मिस्ड काल थे, बातें कर लीं । व्हाट्स एप भी चैक किया,संपर्क में बने रहना चाहिए। नो क्मयूनिकेशन गैप इन लाइफ ।

(आफिस जाते समय कार से)

 टिंग की आवाज हुई एक मेल का नोटिफिकेशन था । उन्होंने बिना विलंब मेल खोला, अरे वाह प्रकाशक ने उनकी आगामी किताब के कवर पेज के तीन आप्शन भेजे थे । तुरंत उन्हें फेसबुक पर पोस्ट करते हुए लिखा । शुभ सूचना, नई किताब का कवर भेजा है प्रकाशक ने।आप ही बताएं किसे फाइनल करूं ?

इसके बाद जब तक कार चौराहे के लाल सिग्नल पर खड़ी रही उन्होंने फटाफट अपनी सुबह से की गई पोस्ट पर आए लाइक्स और कमेंट पर इमोजी के जरिए सबको रिस्पांस किया । सबसे ज्यादा कमेंट सेल्फी वाली पोस्ट पर थे । कुछ मातहत और संपर्क के लोग जिनके काम उनके पास अटके थे, ने गुड मॉर्निंग से लेकर अब तक के सारे पोस्ट लाइक किए थे । वे लोग जैसे उनके फेसबुक कास्ट का इंतजार ही करते रहते हैं कि कब वे कुछ पोस्ट करें और वे लाइक और कमेंट करें । शेयर करने जैसे पोस्ट उनके कम ही होते हैं, क्योंकि उन्हें जमाने से अधिक आत्म प्रवंचना पसंद है। वे सोशल प्लेटफार्म पर शिक्षा लेते नहीं देते हैं।

आफिस पहुंचने से पहले वे सर्फिंग करते हुए दस बीस अनजाने फेसबुक के दोस्तों को लाइक्स भी बांट देते हैं, जन्मदिन पर बधाई दे देते हैं । यह सोशल बोनी कहलाती है, क्योंकि सद्भावना प्रतिक्रिया में ये लोग भी उनकी पोस्ट लाइक्स करते ही हैं, जो पोस्ट की रीच को रिच कर उन्हें टेकसेवी बनाती है।

जब यह सब निपट गया, और फिर भी आफिस टाइम ट्रैफिक जाम के चलते उन्हें कार्यालय पहुंचने में विलंब लगा तो उन्होंने खिड़की से नजर बाहर घुमाई, और सीधे फेसबुक पर उनकी कविता जन्मी…

ट्रैफिक में रेंगती हुई कार

कार के अगले दाहिने कोने पर

ड्राइवर, स्टीयरिंग संभाले हुए

पिछले बाएं कोने पर

गद्देदार सीट पर मैं

विचारों की कश्मकश

लक्ष्य बड़े हैं

फेसबुक दोस्त महज पांच हजार हैं

और मुझे अपने विचार पहुंचाने हैं

सारी दुनियां में

हर हृदय तक

उन्हें लगा एक अच्छी कविता बन चुकी है। बिना देर किए उन्होंने रचना फेसबुक पर चिपका दी । साथ में एक तुरंत लिया हुआ ट्रैफिक का फोटो भी । कमेंट आने शुरू हो गए। जब त्रिवेंद्रम से सुश्री स्वामीनाथन का लाइक आया तो उन्हें आभास हो गया कि वास्तव में रचना बढ़िया बन गई है। उन्होंने रचना कापी की और एक भक्त संपादक को अखबार के रविवारीय परिशिष्ट के लिए, फोटो सहित मेल कर दी । साथ ही अपनी आगामी किताब के कलेवर के लिए भी डाक्स में सेव कर ली ।

आफिस आ गया था, वे मुस्कराते हुए कार से उतरे और सोशल मीडिया से रियल लाइफ में एंटर हो गए ।

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

लंदन से 

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #38 ☆ कविता – “इंसान…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 39 ☆

☆ कविता ☆ “इंसान…☆ श्री आशिष मुळे ☆

इंतज़ार मे दोनों बैठें है कब से

के मै कुछ बन जाऊ

कहता है मेरा ज़मीर मुझसे

इंसान हूँ इंसान ही रहने वाला हूँ

 

कहता है एक खामोशी से

के तू जानवर है

कहे दूसरा जोरों से

नहीं तू तो दिव्य है

 

वैसे तो मुझमें ये दोनों बसते है

लेकिन वो मै नहीं हूँ

बसता है विवेक भी मुझमें

कहता है हरपल के मै आदमी हूँ

 

मुझे जानवर बनना पड़ता है

दिव्य कुछ करने के लिए

कभी दिव्य भी बन जाता हूँ

बस रोजी रोटी के लिए

 

मगर ना मै जानवर हूँ

ना मै दिव्य हूँ

जानवरों की दिव्य दुनिया का

मै तो बस एक इंसान हूँ

 

मै तो बस एक इंसान हूँ

जानवरों को भी पालता हूँ

मै तो बस एक इंसान हूँ

राह दिव्यों को भी दिखाता हूँ

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #163 – आलेख – अजंता एलोरा से संख्यात्मक रूप से समृद्ध धामनार की गुफाएं ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक ज्ञानवर्धक आलेख – अजंता एलोरा से संख्यात्मक रूप से समृद्ध धामनार की गुफाएं)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 163 ☆

☆ आलेख – अजंता एलोरा से संख्यात्मक रूप से समृद्ध धामनार की गुफाएं ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

प्राचीनकाल में मालवा प्रांत शिक्षा, दीक्षा और धर्म का प्रचार का सबसे बड़ा व प्रभावी केंद्र रहा है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार वर्तमान दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग वाला रास्ता प्राचीन काल में व्यापारियों का भारत में व्यापार करने का प्रमुख मार्ग रहा है। इसी मार्ग की चंदनगिरी पहाड़ी पर धम्मनगर बसा हुआ था। यह वही इतिहास प्रसिद्ध धम्मनगर है जहां एक ही शैल को तराश कर धर्मराजेश्वर मंदिर, ब्राह्मण, बौद्ध और जैनन गुफाएं बनी हुई है।

संख्यात्मक दृष्टि से देखें तो अजंता एलोरा और धम्मनार की गुफाओं में सर्वाधिक गुफाएं यहीं धम्मनगर में स्थित है। दिल्ली मुंबई मार्ग के रास्ते में शामगढ़ रेल मार्ग से 22 किलोमीटर दूर स्थित चंदवासा गांव है। इसी गांव से 3 किलोमीटर अंदर जंगल में धम्मनगर जिस का वर्तमान नाम धमनार है, स्थित है। यहां के जंगल में स्थित चंदनगिरी पहाड़ियों के 2 किलोमीटर हिस्से में गुफाएं फैली हुई है।

इतिहासकार जेम्स टाड़ सन 1821 में यहां आए थे। तभी उन्होंने अश्वनाल की आकृति की श्रृंखला में बनी 235 गुफाओं की गणना की थी। तभी से यह दबी, छुपी और पर्यटन आकाश से विलुप्त हुई गुफाएं अस्तित्व में आई है। चूंकि ये गुफाएं चंबल अभ्यारण व आरक्षित वन क्षेत्र में होने से यहां ठहरने, खाने-पीने और आवास की व्यवस्था नहीं होने से यह पर्यटन क्षेत्र में विकसित नहीं हो पाई।

इसी कारण से इस क्षेत्र की अधिकांश गुफाएं रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील हो गई है। इतिहासकार जेम्स फर्गुसन ने यहां आकर गुफाओं की गणना की थी। उन्हें यहां की 170 गुफाएं महत्वपूर्ण लगी। इसी के बाद पुरातत्व विभाग ने इनकी गणना की। जिनकी संख्या 150 से अधिक निकली। इनमें से 51 गुफाओं को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया है।

जैसा कि पूर्व में बताया गया है यह क्षेत्र चंबल अभ्यारण में होने से यहां पर सुबह से शाम तक ही गुफाओं के दर्शन करने के लिए आया जा सकता है। यदि आप भूले-भटके संध्या के समय आ गए तो आपको 22 किलोमीटर दूर शामगढ़ जाकर विश्राम व खानपान आदि का लुफ्त उठाना पड़ेगा।

गुफाओं की संख्या व इतिहास की दृष्टि से देखें तो धम्मनगर की गुफा संख्या की दृष्टि से अजंता-एलोरा से सर्वाधिक ठहरती है। चूंकि अजंता की गुफाएं 200 से 600 ईसा पूर्व में निर्मित हुई थी। यहां बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रण और बारीकी शिल्पकार की गई है। वहीं एलोरा की गुफाएं पांचवी से सातवीं शताब्दी के बीच निर्मित हुई थी, जिनमें से 17 हिंदू धर्म की गुफाएं, 12 बौद्ध धर्म की गुफाएं तथा 5 जैन धर्म की गुफाएं पाई गई है। इस तरह एलोरा में 34 गुफाएं विश्व धरोहर घोषित की गई है।

चूंकि कालक्रम के अनुसार अजंता से चौदह शताब्दी बाद धम्मनार की गुफाएं निर्मित हुई है। यह आठवीं और नौवीं शताब्दी में निर्मित गुफाएं हैं। जबकि अजंता की गुफाएं 200 से 600 ईसा पूर्व में निर्मित हुई थी। उन्हीं की तर्ज, शैली, वास्तुकला और उसी तरह के एक शैल पर उत्कीर्ण करके बनाए गई हैं। इसलिए उनसे संख्या में ज्यादा होने के कारण उनसे उत्कृष्ट थी।

इसकी उत्कृष्टता को कई कारणों से समझा जा सकता है। एक तो यहां भी परंपरा के अनुसार ब्राह्मण धर्म गुफाएं हैं। इसके लिए धर्मराजेश्वर का मंदिर लेटराइट पत्थर को तराश कर बनाया गया है। फर्क इतना है कि अजंता-एलोरा का कैलाश मंदिर दक्षिण भारती द्रविड़ शैली में बना हुआ है जबकि धर्मराजेश्वर का मंदिर उत्तर भारतीय नागरिक शैली में उत्कीर्ण है। दोनों मंदिरों में मुख्य मंदिर के साथ-साथ 7 लघु मंदिर हैं। यहां पर द्वार मंडप, सभा मंडप, अर्ध मंडप, गर्भ ग्रह और कलात्मक उन्नत शिखर जो कलशयुक्त है, उत्कीर्ण हैं।

दूसरा इसे व्यापारक्रम से भी समझा जा सकता है। यहां समुद्र मार्ग से व्यापार करने वाले व्यापारी इसी मार्ग से गुजरते थे। उनके लिए यहां ठहरने, विहार करने और विश्राम की उत्तम व्यवस्था थी। इस दौरान वे धर्म की शिक्षा-दीक्षा के लिए भी समय निकाल लिया करते थे।

प्राचीन काल में धर्म के प्रचार-प्रसार, शिक्षा-दीक्षा, विहार-आहार और पूजा-पाठ, प्रार्थना-अर्चना आदि कार्य प्रमुख केंद्र था। यहीं से विभिन्न प्रांत, प्रदेश, देश, विदेश में धर्म के प्रचार-प्रसार, शिक्षा-दीक्षा के लिए अनुयाई जाते-आते थे। इस कारण भारत की ह्रदय में स्थित होने से यह स्थान संपूर्ण भारत के लिए महत्वपूर्ण केंद्र था।

गुफाओं की समृद्धि के आधार पर देखें तो यहां की गुफाओं में बौद्ध धर्म, जैन धर्म से संबंधित धर्म की शिक्षा का चित्रण, भित्ति पर शिल्पकारी और गौतम बुद्ध की प्रतिमाएं विभिन्न मुद्रा में ऊपरी उकेरी गई है। यहां बुद्ध की बैठी, खड़ी, लेटी, निर्वाण, महानिर्वाण शैली की कई प्रतिमा लगी हुई है। इन गुफाओं में स्तुप, चैत्य, विहार और महाविहार की उत्तम व्यवस्था थी।

इसके लिए यहां उपासना गृह, पूजा स्थल, अर्चना के कक्ष तथा ध्यान केंद्र के लिए उपयुक्त स्थान बने हुए हैं। यहां पर निर्माण मुद्रा में बैठी गौतम बुद्ध की बड़ी-बड़ी मूर्तियां उकेरी गई है। इस जैसी मूर्तियां अजंता-एलोरा में भी देखी जा सकती है।

यहां की गुफाओं में से सात नकाशीदार गुफाएं हैं। इन 51 क गुफाओं में स्तुप, चैत्य, मार्ग और आवास बने हुए हैं। शैल उत्कीर्ण खंभे, लंबा-चौड़ा दालान, आवास श्रृंखला, ध्यान केंद्र, उपासना केंद्र, पूजा-अर्चना स्थल की एक लंबी श्रृंखला है।

इसके बारे में कहा जाता है कि जब ओलिवर वंश का शासन था तब यहां शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र मालव में था। उस समय पूरे मालवा प्रांत में उल्लेखनीय शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी। यहां पर उत्कृष्ट वास्तु व भवनकला, पच्चीकारी व पत्थर पर मीनाकारी के उत्कृष्ट शिक्षा-दीक्षा, पूरी वैज्ञानिक रीतिनिति व योजना को मूर्त देकर दी जाती थी। इसी समय यहां के राष्ट्रकूट शासन ने हिरण्यगर्भ यज्ञ किया था। जिसने बौद्ध धर्म के अनुयाई जो पूर्व में हिंदू धर्म से धीरे-धीरे बौद्ध धर्म में पर दीक्षित हुए थे उन्हें ब्राह्मण धर्म में परिवर्तित किया गया था।

चूंकि एलोरा की 17 हिंदू गुफा, 12 बौद्ध गुफा, 7 जैन गुफा कालक्रम अनुसार हिंदुओं के बौद्ध धर्म से जैन धर्म के क्षेत्र में विकसित होने हुए आगे बढ़ने की कथा कहती है। वहां हिरण्यगर्भ यज्ञ की बात सही प्रतीत होती है।

वैसे धम्मनगर की गुफाएं विश्व की उत्कृष्ट बौद्धविहार की गुफाएं, धर्म की उपासना का केंद्र, शिक्षा-दीक्षा के महत्वपूर्ण स्थल के साथ प्राचीन व्यापारी मार्ग का महत्वपूर्ण स्थान थी। इसमें दो राय नहीं है। आप यहां इंदौर, भोपाल, उदयपुर से हवाई जहाज से होकर शामगढ़ पहुंच सकते हैं। मंदसौर से 75 किलोमीटर दूर शामगढ़ से 22 किलोमीटर तथा चंदवासा से 3 किलोमीटर जंगल में स्थित इस स्थान पर बस व निजी साधन द्वारा आप सकुशल आ सकते हैं।

 –0000–

 © ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

29-01-2023

संपर्क – पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 197 ☆ बाल कविता – आओ मुर्गी आओ जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 197 ☆

बाल कविता – आओ मुर्गी आओ जी ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

आओ मुर्गी आओ जी।

अपने बच्चे लाओ जी।।

दाना लाए गेहूँ , मक्का

खूब मजे से खाओ जी।।

 *

नाम हमारे राम , राधिका

अपना नाम बताओ जी।।

 *

पेट भरे जब दाना खाकर

अपने गीत सुनाओ जी।।

 *

कहाँ गए हैं मुर्गे राजा

उनकी बाँग सुनाओ जी।।

 *

क्या उड़ सकतीं खुले गगन में

उड़कर हमें दिखाओ जी।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ हातगुण… ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? हातगुण?  सुश्री वर्षा बालगोपाल 

हात टेकले प्रारब्धापुढे

पण संकटे मुळी जाईना

हात जोडता परमेश्वरा

आत्मबल मनीचे खचेना॥

*

हात पसरता कोणापुढे

मदत काडीचीही मिळेना

हात देता अडीला नडीला

कोडकौतूक ओघ थांबेना॥

*

हात सोडता संकटकाळी

कृतघ्नतेचा  ठसा पुसेना

हात धरता घट्ट हातात

जन्मांतरीची गाठ सुटेना॥

*

हात फिरता डोईवरूनी

आत्मविश्वास उरात दाटे

हात मोडला ना बाधा तरी

ना पायाला बोचतील काटे॥

*

हात उचलणे नाही नीती

थोडा संयम असावा अंगी

हात चालवावा कार्यक्षेत्रात

सफलता मिळणार जंगी॥

*

हात गुण असती अनेक

त्यातीलच हे असती काही

हात लाभता मनास मग

कार्यगतीस थांबा नाही॥

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #222 – व्यंग्य कविता – ☆ मृत्युपूर्व शवयात्रा की जुगाड़… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है होली पर एक व्यंग्य कविता मृत्युपूर्व शवयात्रा की जुगाड़…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #222 ☆

☆ मृत्युपूर्व शवयात्रा की जुगाड़… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(होली पर एक व्यंग्य कविता)

मृत्यु पूर्व, खुद की

शवयात्रा पर करना तैयारी है

बाद मरण के भी तो

भीड़ जुटाना जिम्मेदारी है।

*

जीवन भर एकाकी रह कर

क्या पाया क्या खोया है

हमें पता है, कलुषित मन से

हमने क्या-क्या बोया है,

अंतिम बेला के पहले

करना कुछ कारगुजारी है।

मृत्युपूर्व खुद की शवयात्रा

पर करना………

*

तब, तन-मन में खूब अकड़ थी

पकड़  रसुखदारों  में  थी

बुद्धि, ज्ञान, साहित्य  सृजन

प्रवचन, भाषण नारों में थी,

शिथिल हुआ तन, बोझिल मन

इन्द्रियाँ स्वयं से हारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

होता नाम निमंत्रण पत्रक में

“विशिष्ट”, तब जाते थे

नव सिखिए, छोटे-मोटे तो

पास फटक नहीं पाते थे,

रौबदाब तेवर थे तब

अब बची हुई लाचारी है।

मृत्युपूर्व……

*

अब मौखिक सी मिले सूचना

या अखबारों में पढ़ कर

आयोजन कोई न छोड़ते

रहें उपस्थित बढ़-चढ़ कर,

कब क्या हो जाये जीवन में

हमने बात विचारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

हँसते-मुस्काते विनम्र हो

अब, सब से बतियाते हैं

मन-बेमन से, छोटे-बड़े

सभी को गले लगाते हैं,

हमें पता है,भीड़ जुटाने में

अपनी अय्यारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

मालाएँ पहनाओ हमको

चारण, वंदन गान करो

शाल और श्रीफल से मेरा

मिलकर तुम सम्मान करो,

कीमत ले लेना इनकी

चुपचाप हमीं से सारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

हुआ हमें विश्वास कि

अच्छी-खासी भीड़ रहेगी तब

मिशन सफल हो गया,खुशी है

रामनाम सत होगा जब,

जनसैलाब दर्शनीय, इतना

मर कर भी सुखकारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

हम न रहेंगे, तब भी

शवयात्रा में अनुगामी सारे

राम नाम है सत्य,

साथ, गूँजेंगे अपने भी नारे,

जीतेजी उस सुखद दृश्य की

हम पर चढ़ी खुमारी है

मृत्युपूर्व……………

*

शव शैया से देख भीड़

तब मन हर्षित होगा भारी

पद्म सिरी सम्मान प्राप्ति की

कर ली, पूरी तैयारी,

कहो-सुनो कुछ भी,पर यही

भावना सुखद हमारी है।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 46 ☆ समिधा हवन की… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समिधा हवन की…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 46 ☆ समिधा हवन की… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

लिख रहा मौसम कहानी

दहकते अंगार वन की।

*

धरा बेबस

जन्मती हर ओर बंजर

हवाओं के

हाथ में विष बुझे ख़ंजर

*

ऋतुएँ तो बस आनी-जानी

रहीं गढ़ती व्यथा मन की।

*

पर्वतों से

निकलकर बहती नदी है

डूब जिसमें

बह रही शापित सदी है

*

बह गया आँखों का पानी

प्रतीक्षा में एक सपन की।

*

साँस पर

छाया हुआ कुहरा घना है

प्रदूषण

इस सृष्टि की अवमानना है

*

यह चराचर जगत फ़ानी

बन गया समिधा हवन की।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अ’ता करेंगे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अता करेंगे“)

✍ कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अ’ता करेंगे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जारी है जंग सबकी, रख धार ज़िन्दगीं की

है मौथरी बहुत ही,  तलवार ज़िन्दगीं की

 *

मजबूर कोई इंसां मज़लूम कोई इंसां

हटती नहीं है सर से तलवार ज़िन्दगीं की

 *

इक रोज मौत आकर,  ले जाएगी हमें भी

टूटेगी एक दिन ये, दीवार ज़िन्दगीं की

 *

किस्मत की पाँव जब भी, मंजिल के पास पहुँचे

हर बार आई आगे,  दीवार ज़िन्दगीं की

 *

कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अता करेंगे

थमने पे आएगी कब,  तकरार ज़िन्दगीं की

 *

माँ बाप पा रहे हैं,  बच्चों से तर्बियत अब

कैसी अजीब है ये,  रफ़्तार ज़िन्दगीं की

 *

इल्मो अदब न आया,  तर्ज़े सुखन न आयी

सहनी पड़ेगी हमको,  फटकार ज़िन्दगीं की

 *

पज़मुर्दा हक़ शनासी, कल्बो ज़मीर बेहिस

लगती न कैसे भारी, दस्तार ज़िन्दगीं की

 *

मरते हुए बशर भी,  जीने को बेकरां है

रहती नहीं है किसको,  दरकार ज़िन्दगीं की

 *

हम भागकर कहाँ अब, जायेगें अपने सच से

सर पर रखी हुई,  दस्तार ज़िन्दगीं की

 *

जब राहे-इश्क़ पर हो,  तुम गामज़न अरुण तो

इक़रार ही समझना,  इनकार ज़िन्दगीं की

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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