हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 258 – मेरी भाषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 258 ☆ मेरी भाषा… ?

सितम्बर माह है। विभिन्न सरकारी कार्यालयों में हिन्दी पखवाड़ा मनाया जा रहा है।

वस्तुत: भाषा सभ्यता को संस्कारित करने वाली वीणा एवं संस्कृति को शब्द देनेवाली वाणी है। कूटनीति का एक सूत्र कहता है कि किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति नष्ट करनी हो तो उसकी भाषा नष्ट कर दीजिए। इस सूत्र को भारत पर शासन करने वाले विदेशियों ने भली भाँति समझा और संस्कृत जैसी समृद्ध और संस्कृतिवाणी को हाशिए पर कर अपने-अपने इलाके की भाषाएँ लादने की कोशिश की।

असली मुद्दा स्वाधीनता के बाद का है। राष्ट्रभाषा को स्थान दिए बिना राष्ट्र के अस्तित्व और सांस्कृतिक अस्मिता को परिभाषित करने की  प्रवृत्ति के परिणाम भी विस्फोटक रहे हैं।

यूरोपीय भाषा समूह के प्रयोग से ‘कॉन्वेंट एजुकेटेड’ पीढ़ी, भारतीय भाषा समूह के अनेक  अक्षरों का उच्चारण नहीं कर पाती। ‘ड़’, ‘ण’  अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। ‘पूर्ण’, पूर्न हो चला है, ‘शर्म ’ और ‘श्रम’ में एकाकार हो गया है। हृस्व और दीर्घ मात्राओं के अंतर का निरंतर होता क्षय, अर्थ का अनर्थ कर रहा है। ‘लुटना’ और ‘लूटना’ एक ही हो गये हैं। विदेशियों द्वारा की गई ‘लूट’ को ‘लुटना’ मानकर हम अपनी लुटिया डुबोने में अभिभूत हो रहे हैं।

लिपि नये संकट से गुजर रही है। इंटरनेट खास तौर पर फेसबुक, एक्स, वॉट्सएप, इंस्टाग्राम पर अनेक लोग देवनागरी के बजाय रोमन में हिन्दी लिखते हैं। ‘बड़बड़’ के लिए barbar/ badbad  (बर्बर या बारबर या बार-बार) लिखा जा रहा है। ‘करता’, ‘कराता’, ‘कर्ता’ में फर्क कर पाना भी संभव नहीं रहा है। जैसे-जैसे पीढ़ी पेपरलेस हो रही है, स्क्रिप्टलेस भी होती जा रही है।

संसर्गजन्य संवेदनहीनता, थोथे दंभवाला कृत्रिम मनुष्य तैयार कर रही है। कृत्रिमता की  पराकाष्ठा है कि मातृभाषा या हिन्दी न बोल पाने पर व्यक्ति संकोच अनुभव नहीं करता पर अंग्रेजी न जानने पर उसकी आँखें स्वयंमेव नीची हो जाती हैं। शर्म से गड़ी इन आँखों को देखकर मैकाले और उसके वैचारिक वंशजों की आँखों में विजय के अभिमान का जो भाव उठता होगा, ग्यारह अक्षौहिणी सेना को परास्त कर वैसा भाव पांडवों की आँखों में भी न उठा होगा।

हिन्दी पखवाड़ा, सप्ताह या दिवस मना लेने भर से हिंदी के प्रति भारतीय नागरिक के कर्तव्य  की इतिश्री नहीं हो जाती। आवश्यक है कि नागरिक अपने भाषाई अधिकार के प्रति जागरुक हों। समय की मांग है कि हिन्दी और सभी भारतीय भाषाएँ एकसाथ आएँ।

बीते सात दशकों में पहली बार भाषा नीति को लेकर  वर्तमान केंद्र सरकार संवेदनशील और सक्रिय दिखाई दे रही है। राष्ट्र और राष्ट्रीयता, भारत और भारतीयता के पक्ष में स्वयं प्रधानमंत्री ने पहल की है। नयी शिक्षा नीति में भारत सरकार ने पहली बार प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने को प्रधानता दी है। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में भी भारतीय भाषाओं का प्रवेश हो चुका है,  यह सराहनीय है।

केदारनाथ सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है, जिसमें वे कहते हैं,

जैसे चींटियाँ लौटती हैं/ बिलों में,

कठफोड़वा लौटता है/ काठ के पास,

वायुयान लौटते हैं/ एक के बाद एक,

लाल आसमान में डैने पसारे हुए/

हवाई-अड्डे की ओर/

ओ मेरी भाषा/ मैं लौटता हूँ तुम में,

जब चुप रहते-रहते/

अकड़ जाती है मेरी जीभ/

दुखने लगती है/ मेरी आत्मा..!

अपनी भाषाओं के अरुणोदय की संभावनाएँ तो बन रही हैं। नागरिकों से अपेक्षित है कि वे इस अरुण की रश्मियाँ बनें।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्रीगणेश साधना सम्पन्न हुई। पितृ पक्ष में पटल पर छुट्टी रहेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 205 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 205 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 205) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 205 ?

चलो अब ख़ामोशियों

की गिरफ़्त में चलते हैं…

बातें गर ज़्यादा हुईं तो

जज़्बात खुल जायेंगे..!!

☆☆

Let’s get arrested now in

the regime of silence …

If we kept talking anymore

Emotions may get revealed…!!

☆☆☆☆☆

बादलों का गुनाह नहीं कि

वो  बेमौसम  बरस  गए!!

दिल  हलका  करने का

हक  तो  सबको हैं ना!!

☆☆

It’s not the crime of clouds

If they rained unseasonally!

After all everyone is entitled

To lighten burdened sorrows

☆☆☆☆☆

काश नासमझी में ही

बीत जाए ये ज़िन्दगी

समझदारी ने तो हमसे

बहुत कुछ छीन लिया…

☆☆

Wish  life could pass

In  imprudence only

Wiseness alone

did snatch a lot…

☆☆☆☆☆

दिल ना चाहे फिर भी यारो

मिलते जुलते रहा करो…

करो शिकायत गुस्से में ही

कुछ ना कुछ तो कहा करो…

☆☆

Heart may not desire still

Friends keep on meeting

Complain even in anger only

But at least say something…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 205 ☆ हम हैं अभियंता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है हम हैं अभियंता…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 205 ☆

☆ हम हैं अभियंता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

(छंद विधान: १० ८ ८ ६ = ३२  x ४)

हम हैं अभियंता नीति नियंता, अपना देश सँवारेंगे

हर संकट हर हर मंज़िल वर, सबका भाग्य निखारेंगे

पथ की बाधाएँ दूर हटाएँ, खुद को सब पर वारेंगे

भारत माँ पावन जन मन भावन, श्रम-सीकर चरण पखारेंगे

*

अभियंता मिलकर आगे चलकर, पथ दिखलायें जग देखे

कंकर को शंकर कर दें हँसकर मंज़िल पाएं कर लेखे

शशि-मंगल छूलें, धरा न भूलें, दर्द दीन का हरना है

आँसू न बहायें , जन-गण गाये, पंथ वही तो वरना है

*

श्रम-स्वेद बहाकर, लगन लगाकर, स्वप्न सभी साकार करें

गणना कर परखें, पुनि-पुनि निरखें, त्रुटि न तनिक भी कहीं वरें

उपकरण जुटाएं, यंत्र बनायें, नव तकनीक चुनें न रुकें

आधुनिक प्रविधियाँ, मनहर छवियाँ,  उन्नत देश करें

*

नव कथा लिखेंगे, पग न थकेंगे, हाथ करेंगे काम काम सदा

किस्मत बदलेंगे, नभ छू लेंगे, पर न कहेंगे ‘यही बदा’

प्रभु भू पर आयें, हाथ बटायें, अभियंता संग-साथ रहें

श्रम की जयगाथा, उन्नत माथा, सत नारायण कथा कहें

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (23 सितंबर से 29 सितंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (23 सितंबर से 29 सितंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आप लोगों के प्यार और समर्थन के कारण समय के गति के साथ साप्ताहिक राशिफल की श्रृंखला लगातार आगे बढ़ रही है। आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय आप लोगों के समक्ष 23 सितंबर से 29 सितंबर 2024 अर्थात विक्रम संवत 2081 शक संवत 1946 के अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी से अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के साथ उपस्थित हो रहा हूं।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा वृष राशि का रहेगा। 24 तारीख को 3:44 दिन से मकर राशि में गोचर करेगा। 26 तारीख को 9:34 रात से चंद्रमा का प्रवेश कर्क राशि में होगा और 28 तारीख को 5:49 रात अंत से चंद्रमा सिंह राशि का हो जाएगा।

इस सप्ताह सूर्य और बुध कन्या राशि में भ्रमण करेंगे। इसके अलावा पूरे सप्ताह मंगल मिथुन राशि में, गुरु वृष राशि में और शुक्र तुला राशि में रहेंगे। वक्री शनि पूरे सप्ताह कुंभ राशि में और बक्री राहु पूरे सप्ताह मीन राशि में गोचर करेंगे।

आईये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं। 23 सितंबर से 29 सितंबर 2024 तक के सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल

मेष राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आएंगे। आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी बहुत परेशानी हो सकती है। धन आने के मार्ग में कुछ परेशानी रहेगी। दुश्मनों की संख्या में कमी आएगी। अगर आप जरा सा भी प्रयास करेंगे तो दुश्मनों को आप पराजित कर सकते हैं। भाग्य आपका थोड़ा बहुत साथ देगा। दुर्घटनाओं से सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 सितंबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। 23 और 24 तारीख को आपके पास धन आ सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। आपकी संतान की उन्नति हो सकती है। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। कार्यालय में कार्य करने के दौरान सतर्क रहें। गलत रास्ते से धन आ सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख के 3:00 बजे तक और 29 तारीख का समय उत्तम है। अपने सभी लंबित कार्यों को 23 और 24 तारीख के 3:00 बजे तक करने का प्रयास करें। सफलता मिलेगी। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

आपके जीवनसाथी और माता जी का का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी तकलीफ हो सकती है। आपके सुख में वृद्धि होगी। आपको संतान से सहयोग प्राप्त होगा। कार्यालय में वाद विवाद से बचें। व्यापार में उन्नति होगी। इस सप्ताह आपके लिए 24 तारीख के शाम से 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 23 और 24 तारीख के दोपहर तक आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गरीबों के बीच में तिल का दान करें। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर पूजा करें सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और आपके माता जी का स्वास्थ्य पहले से ठीक रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। सुख संबंधी कोई सामग्री आप खरीद सकते हैं। व्यापार ठीक चलेगा। भाग्य से बहुत कम मदद मिलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 27, 28 तारीख उत्तम है। 24, 25 और 26 तारीख को कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने के अच्छे संयोग हैं। व्यापार में वृद्धि होगी। कार्यालय में आपको कष्ट हो सकता है। जीवनसाथी के कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है। संतान से सहयोग प्राप्त होगा। शत्रु पराजित होंगे। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 की दोपहर तक तथा 29 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 23 और 24 तारीख की दोपहर तक आपको सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। 27 और 28 तारीख को आपको किसी भी कार्य को करने में पूरी सावधानी बरतें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आपका दिन विष्णुसहस्त्रनाम का जाप करें सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

यह सप्ताह आपके लिए उत्तम है। भाग्य से आपके सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। धन आने की पूरी उम्मीद है। आपका आपके जीवनसाथी का और आपके माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपको कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 24 के सायंकाल से लेकर 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 29 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान करें और शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

यह सप्ताह आपके लिए ठीक-ठाक है। अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि हो सकती है। भाग्य से सहयोग नहीं मिल पाएगा। कचहरी के कार्यों में अगर आप सावधानी से कार्य करेंगे तो सफल होंगे। भाइयों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। आपके सुख में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 तारीख लाभदायक हैं। 23 और 24 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आपका दिन प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने की अच्छी उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। सुख में थोड़ी कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 की दोपहर तक तथा 29 तारीख लाभकारी हैं। 23 और 24 की दोपहर तक आपके सभी कार्य सफल होंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गोपाल सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके व्यापार में उन्नति होगी। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन आने की उम्मीद है। भाग्य से लाभ हो सकता है। पेट के पीड़ा में थोड़ी कमी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 24 के सायंकाल से 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका अच्छे से साथ देगा। शेयर में और लॉटरी में पैसा लगाने का ही अच्छा समय है। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। बच्चों से सहयोग नहीं मिल पाएगा। शत्रु समाप्त हो सकते हैं। परंतु उसके लिए आपको प्रयास करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 27 और 28 तारीख परिणाम दायक हैं। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। आपके सुख में कमी आ सकती है। गलत रास्ते से धन आने की उम्मीद है। दुर्घटनाओं से आपको सतर्क रहना चाहिए। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख के दोपहर तक तथा 29 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 27 और 28 तारीख को आपको सावधान रहकर के ही कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

व्यापार में उन्नति होगी। जीवनसाथी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। आपके और आपकी माता जी के स्वास्थ्य में तकलीफ हो सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कार्यालय में आपको सफलताएं मिल सकती हैं। इस सप्ताह आपके लिए 24 के सायंकाल से 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 29 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “धरोहर” (कथा संग्रह) – संपादक : सुश्री रत्ना भदौरिया ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “धरोहर” (कथा संग्रह) – संपादक : सुश्री रत्ना भदौरिया ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

संपादक : रत्ना भादौरिया

कथा संग्रह : धरोहर 

प्रकाशक : वान्या पब्लिकेशंज, कानपुर

मूल्य : 700 रु पेपरबैक

पृष्ठ : 296

☆ “धरोहर : जीवन की सांध्य बेला की मार्मिक कहानियां” – कमलेश भारतीय ☆

युवा रचनाकार रत्ना भादौरिया, जो प्रसिद्ध कथाकार मन्नू भंडारी की परिचारिका के रूप में काम करते करते खुद लेखन कार्य आरम्भ कर दिया । अब रत्ना भादौरिया ने एक कहानी संग्रह संपादित किया है ‘धरोहर’ जो जीवन की सांध्य बेला से जुड़ीं 41 कहानियों का खूबसूरत संकलन है । आज जब इस पर कुछ कहने जा रहा हूँ तो संयोगवश पितृपक्ष चल रहा है । हम परंपरा के तौर पर अपने पित्तरों को याद कर रहे हैं । नवांशहर में मेरे बचपन के दोस्त बृजमोहन के पिता पंडित लोकानंद‌ इन दिनों के लिए परिवारजनों से कहा करते थे कि अरे ! जीते जी मुझे खीर पूरी, हलवा खिला लो, बाद में कौन देखेगा क्या करते हो ? सचमुच यह प्रसंग याद आया और ये इसी प्रसंग से जुड़ी कहानियो़ं का संकलन है । जीते जी तो घोर उपेक्षा मां बाप की और मृत्यु भोज पर खर्च दिखावे का ! डाॅ इंद्रनाथ मदान भी कहते थे दिखावे के लिए अखबारों में स्मृति दिवस मनायेंगे लेकिन जीते जी ? अपनी प्रतिष्ठा का यह दोगलापन ! हमारे देश में संयुक्त परिवार का चलन खत्म होता जा रहा है और एकल परिवार फल फूल‌ रहे हैं, ऐसे में वृद्धाश्रमों की व्यवस्था आ गयी है । ये सब इन 41 कहानियों की आत्मा में है । सभी कहानियों में वृद्धों की परिवार में दिन प्रतिदिन घटती अहमियत और घोर उपेक्षा को सामने आता है ! सूरज प्रकाश की कहानी ‘ये हत्या का मामला  है’ दिल दहला देने वाली कहानी है कि एक रिटायर्ड प्रिंसिपल पिता का अंत दोस्त के पास लावारिस की तरह होता है क्योंकि बेटे ने मकान बेचकर महानगर में घर लिया और फिर अचानक एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाने पर बहू सब कुछ बेचकर मायके चली गयी ससुर को लावारिस छोड़कर ! यही है आज का सच, यही है सांध्य बेला का अंतिम सत्य ! कल्पना मनोरम की कहानी ‘आखिरी मोड़ पर’ भी याद रहने वाली मार्मिक कहानी है । कैसे एक बेटा मां को वृद्धाश्रम में छोड़कर इंग्लैंड चला गया और सुहानी उस मां को ढूंढ निकालती है और इंग्लैंड ले आती है और उसी संबंधी बेटे को बुलाती है पर मां उसके साथ जाने से इंकार कर देती है । सूरज सिंह नेगी की ‘आम की गुठली’ बहुत भावुक कर देती है । कोई चाहे तो मेरी कहानी ‘भुगतान’ भी पढ़ सकता है, जो एक वृद्ध नौकर की वह इच्छा है, जो मर कर भी अधूरी रहती है । विवेक मिश्रा की एल्बम भी दिल को छू जाती है।

पूनम मनु, सुमन केशरी,योगिता यादव, सुधांशु गुप्त, राजीव सक्सेना, अनिता रश्मि, रिंकल शर्मा, लता अग्रवाल, संतोष सुपेकर, सुधा भार्गव नीरू मित्तल, इंदु गुप्ता, नागेंद्र जगूड़ी, निर्देश निधि आदि की कहानियां भी पठनीय हैं, स्मरणीय हैं ।

रत्ना भादौरिया का श्रम सार्थक है और चयन बहुत खूबसूरत । इस युवा रचनाकार को ढेर सारी शुभकामनाएं । संग्रह पठनीय और सहेज कर रखने लायक है ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #253 – 138 – “राब्ता है उन से दिल मुझसे लगाते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल राब्ता है उन से दिल मुझसे लगाते हैं…” ।)

? ग़ज़ल # 138 – “राब्ता है उन से दिल मुझसे लगाते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

चाय पीने को  कलारी में  बुलाते हैं,

ये क्यों मेरी ज़ब्त को आजमाते हैं।

*

वो वस्ल का ख़्वाब दिखलाते रहे मुझे,

राब्ता है उन से दिल मुझसे लगाते हैं।

*

मौलवी की कोशिश यह रही हमेशा ही,

वो खुदा के नाम पर झगड़ा कराते हैं।

*

बैर ज़िंदा रखते हैं नाम पर मज़हब के,

फ़ेसबुक पर दुश्मनी का मंत्र बताते हैं।

*

आतिश सभालो भभकती हो शमा जब भी,

आग भड़का  वो तुम्हारा   घर जलाते हैं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 131 ☆ गीत – ॥ अहम वाणी व्यवहार से रिश्तों के किले ढह जाते हैं ॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 131 ☆

☆ गीत ॥ अहम वाणी व्यवहार से रिश्तों के किले ढह जाते हैं ॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

अहम वाणी व्यवहार से रिश्तों के किले ढह जाते हैं।

लेकिन आपके ही  मीठे बोल से सारे शिकवे बह जाते हैं।।

******

अपनों के साथ सही गलत का भेद नहीं खोलना चाहिए।

रिश्तों में कटुता बचाने के लिए दिल  से बोलना चाहिए।।

उनके रिश्ते कभी नहीं टूटते संबंधों में कुछ  सह जाते हैं।

अहम वाणी व्यवहार से रिश्तों के किले ढह जाते हैं।।

******

नई सुबह नई उमंग के साथ   रिश्तों में नई ऊर्जा लाईए।

रिश्तों को धीरे – धीरे मरने से   आप खुद ही   बचाईए।।

जिन रिश्तों में अपनत्व स्नेह प्रेम वह सदैव वैसे रह पाते हैं।

अहम वाणी व्यवहार से रिश्तों के किले ढह जाते हैं।।

*****

नई कहानी नई रवानी बदलता है रिश्तों का रुप स्वरूप।

स्वार्थ से दूर आपसी अपनेपन से रिश्ते निभते अभूतपूर्व।।

वास्तविक रिश्तों में मौन से भी बहुत कुछ कह पाते हैं।

अहम वाणी व्यवहार से रिश्तों के किले ढह जाते हैं।।

****

जब हमारा मन साफ होता तो हमारी वाणी शुद्ध होती है।

मन मस्तिष्क में नफरत तो बोली भी अशुद्ध      होती है।।

नाराजगी दूर करते ही हमारे रिश्ते फिर से चहचहातें हैं।

अहम वाणी व्यवहार से रिश्तों के किले ढह जाते हैं।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 195 ☆ आत्मचिंतन से विमुख ये आज का संसार ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “आत्मचिंतन से विमुख ये आज का संसार। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 195 ☆ आत्मचिंतन से विमुख ये आज का संसार ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मै कौन हूं आया कहां से और है जाना कहाँ?

इन सरल प्रश्नों के उत्तर कठिन है पाना यहां ।

 *

आदमी उलझा है बहुत जाति  के व्यवहार में

लाभ-हानि की जोड़-बाकी में फँसा बाजार में ।

 *

है कहाँ सुधी आप की  , मन में भरी है कामना

स्नेह और सद्भाव कम है द्वेष की है भावना ।

 *

दृष्टि ओछी आज की है कल की न परवाह है

व्यर्थ ही अभिमान है सुनता न कोई सलाह है।

 *

चाह उसकी सदा होती स्वार्थ औ सम्मान की

है कहाँ अवकाश इतना सोचे आत्म ज्ञान की ।

 *

खुद से शायद कम है उसको धन के ज्यादा प्यार है

इसी से आत्म अध्ययन को न कोई तैयार है।

 *

ध्यान मन में आत्म सुख है और निज परिवार है

आत्मचिन्तन से विमुख  आजकल संसार है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #250 ☆ न्याय की तलाश में ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख न्याय की तलाश में। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 250 ☆

☆ न्याय की तलाश में ☆

‘औरत ग़ुलाम थी, ग़ुलाम है और सदैव ग़ुलाम ही रहेगी। न पहले उसका कोई वजूद था, न ही आज है।’ औरत पहले भी बेज़ुबान थी, आज भी है। कब मिला है..उसे अपने मन की बात कहने का अधिकार  …अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता…और किसने उसे आज तक इंसान समझा है।

वह तो सदैव स्वीकारी गई है–मूढ़, अज्ञानी, मंदबुद्धि, विवेकहीन व अस्तित्वहीन …तभी तो उसे ढोल, गंवार समझ पशुवत् व्यवहार किया जाता है। अक्सर बांध दी जाती है वह… किसी के खूंटे से; जहां से उसे एक कदम भी बाहर निकालने की इजाज़त नहीं होती, क्योंकि विदाई के अवसर पर उसे इस तथ्य से अवगत करा दिया जाता है कि इस घर में उसे कभी भी अकेले लौट कर आने की अनुमति नहीं है। उसे वहां रहकर पति और उसके परिवारजनों के अनचाहे व मनचाहे व्यवहार को सहर्ष सहन करना है। वे उस पर कितने भी सितम करने व ज़ुल्म ढाने को स्वतंत्र हैं और उसकी अपील किसी भी अदालत में नहीं की जा सकती।

पति नामक जीव तो सदैव श्रेष्ठ होता है, भले ही वह मंदबुद्धि, अनपढ़ या गंवार ही क्यों न हो। वह पत्नी से सदैव यह अपेक्षा करता रहा है कि वह उसे देवता समझ उसकी पूजा-उपासना करे; उसका मान-सम्मान करे; उसे आप कहकर पुकारे; कभी भी गलत को गलत कहने की जुर्रत न करे और मुंह बंद कर सब की जी-हज़ूरी करती रहे…तभी वह उस चारदीवारी में रह सकती है, अन्यथा उसे घर से बाहर का रास्ता दिखाने में पल भर की देरी भी नहीं की जाती। वह बेचारी तो पति की दया पर आश्रित होती है। उसकी ज़िन्दगी तो उस शख्स की धरोहर होती है, क्योंकि वह उसका जीवन-मांझी है, जो उसकी नौका को बीच मंझधार छोड़, नयी स्त्री का जीवन-संगिनी के रूप में किसी भी पल वरण करने को स्वतंत्र है।

समाज ने पुरुष को सिर्फ़ अधिकार प्रदान किए हैं और नारी को मात्र कर्त्तव्य। उसे सहना है; कहना नहीं…यह हमारी संस्कृति है, परंपरा है। यदि वह कभी अपना पक्ष रखने का साहस जुटाती है, तो उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं होता। उसे चुप रहने का फरमॉन सुनाया दिया जाता है। परन्तु यदि वह पुन: जिरह करने का प्रयास करती है, तो उसे मौत की नींद सुला दिया जाता है और साक्ष्य के अभाव में प्रतिपक्षी पर कोई आंच नहीं आती। गुनाह करने के पश्चात् भी वह दूध का धुला, सफ़ेदपोश, सम्मानित, कुलीन, सभ्य, सुसंस्कृत व श्रेष्ठ कहलाता है।

आइए! देखें, कैसी विडंबना है यह… पत्नी की चिता ठंडी होने से पहले ही, विधुर के लिए रिश्ते आने प्रारम्भ हो जाते हैं। वह उस नई नवेली दुल्हन के साथ रंगरेलियां मनाने के रंगीन स्वप्न संजोने लगता है और परिणय-सूत्र में बंधने में तनिक भी देरी नहीं लगाता। इस परिस्थिति में विधुर के परिवार वाले भूल जाते हैं कि यदि वह सब उनकी बेटी के साथ भी घटित हुआ होता…तो उनके दिल पर क्या गुज़रती। आश्चर्य होता है यह सब देखकर…कैसे स्वार्थी लोग बिना सोच-विचार के, अपनी बेटियों को उस दुहाजू के साथ ब्याह देते हैं।

असंख्य प्रश्न मन में कुनमुनाते हैं, मस्तिष्क को झिंझोड़ते हैं…क्या समाज में नारी कभी सशक्त हो पाएगी? क्या उसे समानता का अधिकार प्राप्त हो पाएगा? क्या उस बेज़ुबान को कभी अपना पक्ष रखने का शुभ अवसर प्राप्त हो सकेगा और उसे सदैव दोयम दर्जे का नहीं स्वीकारा जाएगा? क्या कभी ऐसा दौर आएगा… जब औरत, बहन, पत्नी,  मां, बेटी को अपनों के दंश नहीं झेलने पड़ेंगे? यह बताते हुए कलेजा मुंह को आता है कि वे अपराधी पीड़िता के सबसे अधिक क़रीबी संबंधी होते हैं। वैसे भी समान रूप से बंधा हुआ ‘संबंधी’ कहलाता है। परन्तु परमात्मा ने सबको एक-दूसरे से भिन्न बनाया है, फिर सोच व व्यवहार में समानता की अपेक्षा करना व्यर्थ है, निष्फल है। आधुनिक युग यांत्रिक युग है, जहां का हर बाशिंदा भाग रहा है…मशीन की भांति, अधिकाधिक धन कमाने की दौड़ में शामिल है ताकि वह असंख्य सुख-सुविधाएं जुटा सके। इन असामान्य परिस्थितियों में वह अच्छे- बुरे में भेद कहां कर पाता है?

यह कहावत तो आप सबने सुनी होगी, कि ‘युद्ध व प्रेम में सब कुछ उचित होता है।’ परन्तु आजकल तो सब चलता है। इसलिए रिश्तों की अहमियत रही नहीं। हर संबंध व्यक्तिगत स्वार्थ से बंधा है। हम वही सोचते हैं, वही करते हैं, जिससे हमें लाभ हो। यही भाव हमें आत्मकेंद्रितता के दायरे में क़ैद कर लेता है और हम अपनी सोच के व्यूह से कहां मुक्ति पा सकते हैं? आदतें व सोच इंसान की जन्म-जात संगिनी होती हैं। लाख प्रयत्न करने पर भी इंसान की आदतें बदल नहीं पातीं और लाख चाहने पर भी वह इनके शिकंजे  से मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। माता-पिता द्वारा प्रदत्त संस्कार जीवन-भर उसका पीछा नहीं छोड़ते। सो! वे एक स्वस्थ परिवार के प्रणेता नहीं हो सकते। वह अक्सर अपनी कुंठा के कारण परिवार को प्रसन्नता से महरूम रखता है तथा अपनी पत्नी पर भी सदैव हावी रहता है, क्योंकि उसने अपने परिवार में वही सब देखा होता है। वह अपनी पत्नी तथा बच्चों से भी वही अपेक्षा रखता है, जो उसके परिवारजन उससे रखते थे।

इन परिस्थितियों में हम भूल जाते हैं कि आजकल हर पांच वर्ष में जैनेरेशन-गैप हो रहा है। पहले परिवार में शिक्षा का अभाव था। इसलिए उनका दृष्टिकोण संकीर्ण व संकुचित था.. परन्तु आजकल सब शिक्षित हैं; परंपराएं बदल चुकी हैं; मान्यताएं बदल चुकी हैं; सोचने का नज़रिया भी बदल चुका है… इसलिए वह सब कहां संभव है, जिसकी उन्हें अपेक्षा है। सो! हमें परंपराओं व अंधविश्वासों-रूपी केंचुली को उतार फेंकना होगा; तभी हम आधुनिक  युग में बदलते ज़माने के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकेंगे।

एक छोटी सी बात ध्यातव्य है कि पति स्वयं को सदैव परमेश्वर समझता रहा है। परन्तु समय के साथ यह धारणा परिवर्तित हो गयी है, दूसरे शब्दों में वह बेमानी है, क्योंकि सबको समानाधिकार की दरक़ार है, ज़रूरत है। आजकल पति-पत्नी दोनों बराबर काम करते हैं…फिर पत्नी, पति की दकियानूसी अपेक्षाओं पर खरी कैसे उतर सकती है? एक बेटी या बहन पूर्ववत् पर्दे में कैसे रह सकती है? आज बहन या बेटी गांव की बेटी नहीं है; इज़्ज़त नहीं मानी जाती है। वह तो मात्र एक वस्तु है, औरत है, जिसे पुरुष अपनी वासना-पूर्ति का साधन स्वीकारता है। आयु का बंधन उसके लिए तनिक भी मायने नहीं रखता … इसीलिए ही तो दूध-पीती बच्चियां भी, आज मां के आंचल के साये व पिता के सुरक्षा-दायरे में सुरक्षित व महफ़ूज़ नहीं हैं। आज पिता, भाई  व अन्य सभी संबंध सारहीन हैं और निरर्थक हो गए हैं। सो! औरत को हर परिस्थिति में नील-कंठ की मानिंद विष का आचमन करना होगा…यही उसकी नियति है।

विवाह के पश्चात् जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचने पर भी, वह अभागिन अपने पति पर विश्वास कहां कर पाती है? वह तो उसे ज़लील करने में एक-पल भी नहीं लगाता, क्योंकि वह उसे अपनी धरोहर समझ दुर्व्यवहार करता है; जिसका उपयोग वह किसी रूप में, किसी समय अपनी इच्छानुसार कर सकता है। उम्र-भर साथ रहने के पश्चात् भी वह उसकी इज़्ज़त को दांव पर लगाने में ज़रा भी संकोच नहीं करता, क्योंकि वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ व ख़ुदा समझता है। अपने अहं-पोषण के लिए वह किसी भी सीमा तक जा सकता है। काश! वह समझ पाता कि ‘औरत भी एक इंसान है…एक सजीव, सचेतन व शालीन प्राणी; जिसे सृष्टि-नियंता ने बहुत सुंदर, सुशील व मनोहरी रूप प्रदान किया है… जो दैवीय गुणों से संपन्न है और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है।’ यदि वह अपनी जीवनसंगिनी के साथ न्याय कर पाता, तो औरत को किसी से व कभी भी न्याय की अपेक्षा नहीं रहती।

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© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆ संजय दृष्टि – एकलव्य (खण्डकाव्य)– कवि- मेजर सरजूप्रसाद ‘गयावाला’ ☆ समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

? संजय दृष्टि –  समीक्षा का शुक्रवार # 14 ?

? एकलव्य (खण्डकाव्य)– कवि- मेजर सरजूप्रसाद ‘गयावाला’ ?  समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ?

पुस्तक का नाम- एकलव्य

विधा- खण्डकाव्य

कवि- मेजर सरजूप्रसाद ‘गयावाला’

प्रकाशन- क्षितिज प्रकाशन, पुणे

? पारंपरिक पर युगधर्मी रचना  श्री संजय भारद्वाज ?

इतिहास और पुराण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दिखने में एक जैसे पर दोनों के बीच स्पष्ट अतंर-रेखा है। इतिहास, अतीत में घट चुकी घटनाओं को प्रमाणित दस्तावेज़ो के रूप में सुरक्षित रखने का माध्यम है। दस्तावेज़ों में लेशमात्र परिवर्तन भी कठिन होता है। इसके विरुद्ध पुराण दस्तावेज़ों में विश्वास नहीं करता। फलत: इतिहास ठहरा रहता है जबकि पुराण सार्वकालिक हो जाता है।

संभावनाओं की चरम परिणिति है पुराण। यही कारण है कि पौराणिक आख्यानों की मीमांसा मनुष्य युगानुरूप करते आया है। इतिहास का ढाँचा प्रमाणों के चलते तयशुदा है, पुराण का ‘स्केलेटन’ व्यक्ति अपनी वैचारिकता और कल्पना के आधार पर बदलता रहता है।

मेजर सरजूप्रसाद ‘गयावाला’ का खण्डकाव्य ‘एकलव्य’ स्केलेटन का ताज़ा परिवर्तित रूप है। इसमें समकालीन जीवनमूल्यों के आधार पर एकलव्य कथा की मीमांसा की गई है।काव्यशास्त्र में दी गई कल्पना की छूट के आधार पर प्रचलित तथ्यों से छेड़छाड़ किये बिना गुरु द्रोणाचार्य का बचाव भी किया गया है।

परंपरा और विधा के शिल्प के अनुरूप अनेक चिंतन सूत्र इस खण्डकाव्य में दिखते हैं। जाति व्यवस्था की तार्किक मीमांसा करते हुए कवि लिखता है-

वंश कुल नहीं जाति कहाती, जाति उसका गुण है।

विष की जाति पाप, पीयूष की जाति पुण्य है।

विवेकहीन विद्या भस्मासुर को जन्म देती है। भारतीय संस्कृति का ये उद्घोष कुछ यों शब्द पाता है-

विद्या विवेक बिन आएगी।

जग में अशान्ति फैलाएगी।  

इसी क्रम में जन संहारक आविष्कार की भी निंदा की गई है।

अनुशासन इस रचना की प्राणवायु है। कवि की सैनिक पृष्ठभूमि ने इस विचार के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। कवि अनुशासन को जीवन का आभूषण मानता है-

अनुशासन जीवन का भूषण।

अनुशासन जीवन का पोषण।

प्रकृति अनुशासन से बंधी हुई है। सूर्योदय से पुन: सूर्योदय तक के प्राकृतिक किया-कलाप इसके साक्षी हैं-  

प्रकृति भी बँधी अनुशासन में, अपवाद बहुत कम होता है।

दिवस में जन्तु रत रहता, रजनी में कैसे सोता है।

अनुशासन केवल प्रजा पर नहीं, राजा पर भी समान रूप से लागू होता है। दोनों को अपनी-अपनी सीमा में रहने की सलाह दी गई है-

राजा-प्रजा अनुशासित हों।

सीमा के अन्दर भाषित हों।

असमंजम की स्थिति में गुरु द्रोण द्वारा अपने मन के गुरु से संवाद अर्थात् स्वसंवाद का प्रसंग है। यह प्रसंग ‘अहं ब्रह्यास्मि’ के सत्य को गहराई से रेखांकित करने का प्रयास करता है।

अपनी विचारधारा और कल्पना के तरकश में रखे तर्क के तीरों की सहायता से कवि ने द्रोणाचार्य को महिमा मण्डित किया है। एकलव्य का अंगूठा कटवाने को भी न्यायोचित ठहराया है। ये तार्किकता पाठक के लिए अदरक के समान है जो किसी के लिए पाचक है तो किसी के लिए वायु का कारक। निर्णय अपनी प्रकृति अनुरूप पाठक को स्वयं करना है।

खण्डकाव्य गुरु की महिमा के गान से ओतप्रोत है। वंदना के सर्ग में माँ को भी विशेष मान दिया गया है। नायक एकलव्य का वर्णन कुछ स्थानों पर खण्डकाव्य के पारंपरिक शिल्प के चलते अतिरंजना का शिकार हुआ है।

प्रशंसनीय है कि एकलव्य के सामाजिक परिवेश का वर्णन करते हुए कवि ने संथाली रीति-रिवाज़ों  का ध्यान रखा है। तथापि इनके वर्णन में आदिवासी और शहरी समाज के रिवाज़ों का मेल परिलक्षित होता है।

कवि की भाषा में प्रवाह है, आँचालिकता है, परंपरा का बोध है, नवीनता का शोध है। उसकी अपनी विचारधारा है, अपने तर्क हैं अपनी शैली है। इन सबके बल पर कवि अपनी बात प्रभावी ढंग से कहने में सफल रहा है।

‘जितना छोटा होगा, उतना अधिक पढ़ा जाएगा’ के आधुनिक जीवनमूल्यों के अनुरूप ये रचना लिखी गई प्रतीत होती है। इसलिए ‘एकलव्य’ परंपरा का निर्वाह करता युगधर्मी लघु खण्डकाव्य कहा जाएगा। 

© संजय भारद्वाज  

नाटककार-निर्देशक

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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