हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #203 ☆ बाल गीत – मेरे पप्पा… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है बाल गीत – मेरे पप्पाआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 202 ☆

☆ बाल गीत – मेरे पप्पा.. ☆ श्री संतोष नेमा ☆

पप्पा   मेरे    सबसे   प्यारे

लगते मुझको सबसे  न्यारे

पप्पा   मेरे   सबसे    प्यारे

*

घोड़ा  बन  कर मुझे घुमाते

कंधों  पर    अपने    बैठाते

लाते  खूब  खिलौने मुझको

कहते  मुझे  आँख  के  तारे

*

पप्पा ने   चलना सिखलाया

अंदर खुद  विश्वास  जगाया

बच्चे  बन  कर  खुद ही  मेरे

साथ  खेलते   कभी  न  हारे

*

मेरे    पप्पा    सबसे    सच्चे

बच्चों  के  संग  बनते   बच्चे

वे  जीवन  बगिया   के माली

याद  सभी  पल  संग  गुजारे

*

मेरी   सांस  सांस    में  पप्पा

मेरी   बात   बात  में    पप्पा

रग-रग  में  है खून उन्हीं  का

देते     हैं      संतोष     सहारे

पप्पा     मेरे     सबसे    प्यारे

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 210 ☆ मौलिक आधार… ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 210 – विजय साहित्य ?

☆ मौलिक आधार ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते  ☆

(अष्टांक्षरी रचना…)

एक धागा सुखाचा रे

पदोपदी गुंफलेला

आठवांच्या मागावर

ताना बाना सांधलेला,..! १

*

बाल तारूण्य वार्धक्य

एक धागा जरतारी

वस्त्र तीन रंगातले

आत्मरंगी कलाकारी…! २

*

आठवांचे मोरपीस

बंध हळव्या शब्दांचे

भावनांचे कलाबूत

हार काळीज फुलांचे…! ३

*

सुख नाही रे जिन्नस

त्याचा नसावा व्यापार

काळजाच्या वेदनेला

सुख मौलिक आधार…! ४

*

एक धागा सुखमय

ठेवी नात्यांना बांधून

स्वभावाचे दोष सारे

घेती आयुष्य सांधून…! ५

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

हकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ श्रीमद्‌भगवद्‌गीता — अध्याय पाचवा— कर्मसंन्यासयोग — (श्लोक ११ ते २० ) – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ श्रीमद्‌भगवद्‌गीता — अध्याय पाचवा— कर्मसंन्यासयोग — (श्लोक ११ ते २० ) – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।

योगिन: कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ।।११।।

*

त्यागुनी आसक्ती  अंतःकरण शुद्धीस्तव कर्मा आचरत

स्वभाव जाणुनी देहमनबुद्धीचा कर्मयोगी कर्मा आचरत ॥११॥

*

युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।

अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ।।१२।।

*

त्यागुनी कर्मफला कर्मयोगी शांति करितो प्राप्त

त्याग न करता फलाकांक्षेने लोभी बद्ध बंधनात ॥१२॥

*

सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी ।

नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ।१३।।

*

कर्मासी जो आचरितो समर्पित वृत्तीने 

नवद्वार नगरी स्थित  तो परमात्म स्वरूपाने॥१३॥

*

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु: ।

न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ।।१४।।

*

परमेशे ना निर्मिले कर्तृत्व कर्मफल वा कर्म

प्रकृती स्वभावे घडत जाते कर्त्या द्वारे कर्म ॥१४॥

*

नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभु: ।

अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तव: ।।१५।।

*

ब्रह्मात्मा कधी न करतो पाप वा पुण्य

अज्ञानाने झाकोळूनी जाते जसे ज्ञान

जीवन हा निर्मल नितळ अथांगसा डोह

कर्म करिता मनुजा मात्र लोभवितो मोह ॥॥१५॥

*

ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः ।

तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ।।१६।।

*

तिमीर हटता अज्ञानाचा उजळे तत्वज्ञान 

सूर्यप्रकाशाने सृष्टी जैशी येत उजळून

अनावृत होता ज्ञान झुगारुन  झापड अज्ञान

विश्वात्म्याचे स्वरूप स्पष्ट मानव घेइ जाणून॥१६॥

*

तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: ।

गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: ।।१७।।

*

तद्रुप बुद्धी तदाकार मन परमात्म्याशी अद्वैत

आत्मज्ञाने ते निष्पाप मोक्ष तयांना हो प्राप्त ॥१७॥

*

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।

शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: ।।१८।।

*

विद्या-विनयाची ज्याने बाणविली अंगी वृत्ती

कुंजिर श्वा गो चांडाळाशी असते त्याची समदृष्टी ॥१८॥

*

इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन: ।

निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिता: ।।१९।।

*

इह जन्मी संसारजेता समदृष्टी जयाची स्थित

ब्रह्मासम ते दोषरहित ब्रह्माठायी असती स्थित ॥१९॥

*

न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् ।

स्थिरबुद्धिरसंमूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थित: ।।२०।।

*

मोद नाही प्रियप्राप्तीने ना उद्विग्नता अप्रियाने

स्थितप्रज्ञ ब्रह्मवेत्ता नित्य स्थित ब्रह्मी ऐक्याने ॥२०॥

अनुवादक : © डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

एम.डी., डी.जी.ओ.

मो ९८९०११७७५४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 183 ☆ नहि पावस ऋतुराज यह… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “नहि पावस ऋतुराज यह…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 183 ☆ नहि पावस ऋतुराज यह ☆

स्वतंत्र होने पर जो आदर सम्मान मिलता है, वो पिंजरे में रहने पर नहीं मिल सकता। वैचारिक समृद्धता से परिपूर्ण व्यक्ति सही योजना के साथ टीम वर्क पर कार्य करता है और अपनी उपयोगिता को सिद्ध करते हुए सुखद वातावरण निर्मित करता जाता है। संगठन के साथ जुड़ाव होने पर एकता की शक्ति स्वाभाविक रूप से झलकती है। दूसरी तरफ अपने आपको बंधनो में बांध कर कम्फर्ट जोन में रहने वाला कोई भी नयी योजना को शुरू करने में झिझकता है। यदि किसी तरह कुछ करने भी लगे तो उसका परिणाम आशानुरूप नहीं होता। कारण साफ है, जमीनी स्तर पर कैसे कार्य होता है ये पिंजरे में बैठकर समझा नहीं जा सकता है।

जैसी संगत वैसी रंगत के कारण, बंधनों को अपना सुरक्षा कवच मानने वाले लोगों को ही अपना सलाहकार बना कर बड़ी काल कोठरी बनाने लगते हैं, जिसमें कोई भूलवश भले आ जाए पर जल्दी ही छटपटाने लगता है और मौका मिलते ही भाग जाता है। आने- जाने की प्रक्रिया तो भावनाओं की परीक्षा है जिससे सभी को गुजरना पड़ता है। मजे की बात तो ये है कि उम्रदराज लोग भी सही और गलत में भेद करने की हिम्मत जुटा रहे हैं और खुलकर अपने विचारों पर बोल रहे हैं। सत्य की राह पर चलने का सुख जब मिले तभी चल पड़ें। कहते हैं, राह और राही दोनों सही होते हैं तो भगवान भी मदद करने को आतुर हो उठते हैं।

बसंत ऋतु का आगमन, पतझड़ का होना, नई कोपलों का बनना, बौर का फूलना, फागुनी रंग, चैत्र की आहट सब जरूरी है। योग्य नेतृत्व के छाया तले, निश्चित रूप से सभी को फलने- फूलने का मौका मिलेगा।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 260 ☆ व्यंग्य – पुरस्कार ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – पुरस्कार)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 260 ☆

? व्यंग्य – पुरस्कार ?

वरिष्ठ व्यंग्यकार को बड़ा नगद  पुरस्कार मिला था। दिलवाने वाले प्रकाशक के साथ सेलिब्रेट कर रहे थे। एक एक पैग लेने के बाद वरिष्ठ व्यंग्यकार ने प्रकाशक से कहा प्रकाशन के लिए होड़ की दौड़ है। व्यंग्य खतरे में है। काजू खाते हुए प्रकाशक ने हामी भरी। उसने कहा प्रूफ पढ़े बिना अप्रूव कर देते हैं। सोशल मीडिया के स्व संपादित त्वरित प्रकाशन से संपादन पर विराम लग गया है।

गिलास में सोडा मिलाकर अगला पैग बनाते हुए चर्चा बढ़ी, व्यंग्य लोकप्रिय विधा है। शीर्षक और कुछ अदल बदल कर वही लेख, अलग अलग प्रकाशनों से नई नई किताबों के रूप में छप रहे हैं। पैसे वाले लेखकों के लिए पुस्तक प्रकाशन अब निवेश है। नाम, सम्मान और पुरस्कार के लिए ये इन्वेस्टमेंट धड़ल्ले से किया जा रहा है।  पुरस्कार सैटिंग है।

प्रकाशक बोला ज्यादातर व्यंग्य लेखन, साहित्य, कला और बहुत हुआ तो राजनेताओं, पोलिस के गिर्द लिखे जा रहे हैं, शायद लेखक स्वयं पर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता।

लेखक ने बात बढ़ाई, साफगोई का अभाव बड़ा संकट लगता है। धर्म पर कुछ लिख दो बिना समझे ही फतवे लेकर भीड़ खड़ी मिलती है, भावनाए बहुत जल्दी आहत हो रही हैं। इसलिए व्यंग्यकार मेन प्लेटफार्म की जगह बाई पास से निकल जाना चाहता है।

प्रकाशक हंसा …जहां उसे यश तो मिल जाए पर खतरे न हो।

फिर गंभीर होकर बोला ये तो सब ठीक है, आपकी कोई भी नई पांडुलिपि दीजिए, सरस्वती  पुरस्कार वालों से आपके लिए बात हो गई है।

वरिष्ठ लेखक की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने कहा, अरे अब क्या नया क्या पुराना, साहित्य तो साहित्य है। तुम तो ज्ञान  पुरस्कार के लिए जो किताब छापी थी उसी मैटर को हर पैरा के लघु व्यंग्य कथा बनाकर छाप लो और पुस्तक जमा करवा दो। पर यार इस बार कवर धांसू होना चाहिए, और हां संस्कृति सचिव से भूमिका जरूर लिखवा लेना।

दोनो मुस्कराते हुए अगला पैग गटकने लगे।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #35 ☆ कविता – “तेरी फितरत…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 35 ☆

☆ कविता ☆ “तेरी फितरत…☆ श्री आशिष मुळे ☆

जीने जाऊ गर तेरे पीछे

मुझे जिंदगी नहीं दोगे

आदत तेरी ऐसी

के मौत भी नहीं दोगे

*

उसूल तेरे ऐसे

सारा खेल तुम खेलते हों

हम खेलने जाए गर

तो जितने नहीं देते हों

*

क्या करें हम

ये कभी बताते नहीं हों

गर हातों पर हात रखें बैठे

तो नामर्द कहते हों

*

सब समझ कर

नासमझ बनते हों

खुलकर कहने जाऊ

तो वाहायात कहते हों

*

अब सब छोड़ बस फ़कीर ही बनूं

उससे तुम्हारी ही जीत हों

मगर फितरत नाज़ुक तुम्हारी

अब हम जो नहीं…

तो ख़ुद पर कहर बरसाते हों..

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 194 ☆ बाल गीत – मुन्ना खाएँ ले चटकारे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 194 ☆

☆ बाल गीत – मुन्ना खाएँ ले चटकारे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सेब बेसनी बड़े करारे।

मुन्ना खाएँ ले चटकारे।।

मिर्च मसाला बड़ा चटपटा।

जिह्वा चाहे  खूब खटमिठा।

दिव्या को भी साथ खिलाकर,

मुन्ना जी खुश होते प्यारे।

सेब बेसनी बड़े करारे।।

 *

साथ खेलते छूई – छुआ।

तभी आ गई प्यारी बुआ।

बच्चो खेलो मिलजुल करके,

नहीं झगड़ते लाल दुलारे।

सेब बेसनी बड़े करारे।।

 *

गेंद से खेलें लप्पी – लप्पा।

कभी पी रहे पानी – पप्पा।

सुन लो कविता हमसे बुआ,

बड़े सुरीले कंठ हमारे।

सेब बेसनी बड़े करारे।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 42 ☆ ओ चिड़िया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “ओ चिड़िया…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 42 ☆ ओ चिड़िया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

ओ चिड़िया

आँगन मत झाँकना

दानों का हो गया अकाल

 

धूप के लिबासों में

झुलस रही छाँव

सूरज की हठधर्मी

ताप रहा गाँव

ओ चिड़िया

दिया नहीं बालना

बेच रहे रोशनी दलाल।

 

मेंड़ के मचानों पर

ठिठुरती सदी

व्यवस्थाओं की मारी

सूखती नदी

ओ चिड़िया

तटों को न लाँघना

धार खड़े करेगी सवाल।

 

अपनेपन का जंगल

रिश्तों के ठूँठ

अपने अपनों पर ही

चला रहे मूँठ

ओ चिड़िया

सिर जरा सँभालना

लोग रहे पगड़ियाँ उछाल।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कहें लोग कहने कई शेर लेकिन… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “कहें लोग कहने कई शेर लेकिन“)

✍ कहें लोग कहने कई शेर लेकिन… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

नहीं कोई क़ीमत रही अब बशर की

ये दुनिया फ़क़त हो गई माल- ओ- ज़र की

 *

है जिन के दिलों में तअस्सुब उन्होंने

फ़ज़ा चंद पल में उजाड़ी नगर की

 *

सभी को दे साया समर फूल अपने

फरिश्तों सी फ़ितरत लगे है शज़र की

 *

वो रूठा तो मुझ से बहारें भी रूठी

बताऊँ किसे क्या है हालत इधर की

 *

गली में रक़ीबों के फेरे पे फेरे

अलग होगी रंगत तुम्हारे उधर की

 *

चटानों में वो चींटियों को ग़िज़ा दे

करूँ फ़िक़्र में क्यों गुज़र की बसर की

 *

न गिरने दे मुझको न ही मुझको थामे

यही बात खटके मेरे हम सफ़र की

 *

कहें लोग कहने कई शेर लेकिन

न मफ़हूम में बात होती असर की

 *

लुभाते तो है फूल कलियां मुझे पर

अलग ही कसक होती उनके अधर की

 *

जो बातों से ही छोड़ दे तख़्त नाज़िम

हमें चाह बिलकुल नहीं है ग़दर की

 *

गुनाहों का सरताज़ बगुला भगत था

खुली असलियत आज उस मोतबर की

 *

मुरादें सभी उसके  दर से हों पूरी

जरूरत भटकने की क्यों दर -ब-दर की

 *

बना मेरा मुरशिद मेरा इल्म सीखा

जरूरत नहीं अब उसे राहबर की

 *

बढ़ाते बताओ भला कैसे गणना

अगर खोज भारत न करता सिफ़र की

 *

सदारत से मुझको बचाना खुदाया

फ़ज़ीयत बड़ी हो रही है सदर की

 *

जो दरिया में देखा नहीं है उतरकर

अरुण वो न समझेगा ताकत भँवर की

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-१२ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-१२ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(षोडशी शिलॉन्ग)

प्रिय पाठकगण,

आपको विनम्र होकर अन्तिम बार कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

मित्रों, हमने पिछले भाग में शिलॉन्ग की यात्रा की। परंतु सफर कोई भी हो, शॉपिंग किये बगैर वह पूर्णत्व प्राप्त नहीं कर सकती। हर स्थान पर कुछ न कुछ विशिष्ट चीजें होती हैं ही, उनकी खोज बीन कहाँ और कैसे करना है इसका जन्मजात ज्ञान महिला मण्डली को बिलकुल होता ही है| इसलिए पुरुषमंडली को अब लम्बी लम्बी दूरियाँ काटना और शॉपिंग की बैग उठाना, इन गतिविधियों के लिए मानसिक एवं शारीरिक रूप से तैय्यारी करते हुए सजग रहना है| 

शॉपिंग

डॉन बॉस्को संग्रहालय के भीतर एक दुकान है, वहां मेघालय की स्मरणिका के रूप में काफी कुछ खरीदा जा सकता है| ग्राहकों के लिए इस दुकान में बजट के अनुसार बांस, बेंत की चीज़ें, स्वेटर, शॉल और अन्य बहुत सारी वस्तुएं उपलब्ध हैं! हमने यहाँ बहुत सारी चीजें खरीदीं| परन्तु यहाँ का मुख्य सस्ता और मनभाया बाज़ार है पोलिसबाज़ार! शहर के बीचोंबीच भरनेवाला यह बाजार हमेशा भीड़-भाड़ से भरा होता है! फुटपाथ पर लगी ज्यादातर दुकानें स्वयंसिध्दा स्त्रियां ही चलाती हैं| अत्यंत सक्षम, आत्मविश्वास से समृद्ध परन्तु मृदुभाषी ऐसी विविध आयु की स्त्रियों को देखकर मुझे विलक्षण आश्चर्य मिश्रित कौतुहल हुआ| मित्रों, आपको फिर एक बार याद दिलाती हूँ, इस स्त्री-सक्षमता के दो प्रमुख कारण हैं, आर्थिक स्वातंत्र्य और साक्षरता! यहाँ की लड़कियों को “चिंकी” इस नाम से चिढ़ाने वाले लोगोंने यहाँ प्रत्यक्ष आकर देखना चाहिए और आत्मचिंतन करते हुए खुद को प्रश्न पूछना चाहिए कि, प्रत्येक क्षेत्र में यहाँ की स्त्रियां अव्वल क्यों हैं? यहाँ बार्गेनिंग करने की काफी कुछ गुंजाईश है, इसलिए महिलावर्ग शॉपिंग के मनमाफिक आनंद का उपभोग ले सकती हैं! शॉपिंग करने पर थकावट आयी हो तो एक बढ़िया कॅफे और बेकरी है(Latte love cafe), वहां sangeet sunte hue आराम से बैठिये और क्षुधाशांति कीजिये! हमने यहाँ के पोलीस बाजार में बहुत खरीददारी की, कपडे, स्वेटर, शॉल, बेंत की चीज़ें और बहुत कुछ!

अब मैं ऐसे दो रेस्तरां के बारे में बताती हूँ, जो मुझे भाए थे| एक था डॉकी से सोहरा के प्रवास में खोजा हुआ, खाना और नाश्ता इत्यादि के लिए काफी चॉईस था, साथ ही प्राकृतिक तथा स्वच्छ वातावरण और बहुत ही अदब से पेश आने वाला हॉटेल स्टाफ! रेस्तरां का नाम था ‘Ka Bri War Resort’| दूसरा था सोहरा (चेरापुंजी) का प्रसिद्ध रेस्तरां, ‘Orange Roots’| यह पर्यटकों का पसंदीदा रेस्तरां है| यहाँ हमेशा ही भीड़ लगी रहती है, बाहर ही प्रवेशद्वार से सटे हुए एक ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ मेन्यू पढ़ लीजिये और ऑर्डर देकर ही अंदर जाइये। आप कहाँ बैठे है, इसकी जानकारी दरवाजेपर खड़ी रिसेप्शनिस्ट को दे दीजिये! अंदर सर्वत्र स्त्री साम्राज्य, आपके सामने कुछ ही देर में स्वादिष्ट खाना अथवा नाश्ता आ जायेगा| अलावा इसके प्रवेशद्वार के बाहर एक छोटी दूकान भी है, विभिन्न स्वाद वाली चाय (पाउडर और पत्ती), मसाले (ज्यादातर कलमी) और अन्य सामान यहाँ उपलब्ध है।

शिलॉन्ग के निवासी होटल 

हमने ‘D Blanche Inn’ इस शिलॉन्ग में स्थित होटल में २ दिन वास्तव्य किया| इस सुन्दर होटल का परिवेश दर्शनीय था। चारों ओर हरियाली और नीले पहाड़ थे और होटल परिसर में खूबसूरत वृक्षलताएँ और फूल खिले थे। होटल साफ सुथरा और सुख सुविधाओंसे परिपूर्ण था। खाना और नाश्ता उपलब्ध था | दूसरा था ‘La Chumiere’ गेस्ट हाऊस, पुराने ज़माने के किसी धनी व्यक्ति के विशाल दो मंजिला बंगले को अब गेस्ट हाउस में परिवर्तित कर दिया गया है! बंगले के कमरे बड़े और सुख सुविधायुक्त हैं| बंगले का संपूर्ण परिसर हरियाली और विभिन्न प्रकारके सुंदर और रंगबिरंगे फूलों से सुशोभित है| मैंने यहाँ के बगीचे में आराम से टहलते हुए सुबह चाय का मज़ा लिया| बंगले में ही ऑर्डर देकर खाना और नाश्ता उपलब्ध था, दोनों ही बहुत स्वादिष्ट थे| मेरे घर के लोग जब डेविड स्कॉट ट्रेल करने के लिए सुबह ८ से शाम के ५ बजने तक बाहर गए थे, तब मैं इस बंगले में बड़े ही आराम से रिलॅक्स कर रही थी|  

खासी लोगोंकी खास खासी भाषा

मेघालय की तीन जनजातियों की खासी (Khasi), गारो (Garo), जैंतिया (Jaintia) तथा अंग्रेजी ये सरकारमान्य भाषा हैं| खासी भाषा के बारे में हमें सॅक्रेड फॉरेस्ट के गाईड ने बताया कि एक ख्रिश्चन धर्मगुरू ने इस भाषा के लिए 23 अंग्रेजी मूल-अक्षरों का (चित्र दिया है) उपयोग करके खासी भाषा के लिए एक अलग लिपि बनाई! अब यह लिपि खासी भाषा के लिए मेघालय में हर जगह (यहां तक कि स्कूलों और कॉलेजों में भी) प्रयोग की जाती है। इसके अलावा यहां अंग्रेजी का प्रयोग प्रचलित है।

शिलॉन्ग हवाईअड्डा

हमारा अंतिम डेस्टिनेशन शिलॉन्ग हवाईअड्डा (एयर पोर्ट) था, अजय ने हमें वहां छोड़ा| हवाईअड्डे के कोने में मेघालय की संस्कृति दर्शानेवाली छोटी सी सुंदर झोंपड़ी बनाई गयी थी, साथ ही वहां बांस की चीजें रखी थीं, खास फोटो खींचने के लिए! हमने वहां तुरंत फोटो खींचे| हमारा आरक्षण शिल्लोंग से कोलकोता तथा वहां से मुंबई ऐसे दो हवाईजहाजों का था| यहाँ से इंडिगो एअरलाईन्स का हवाईजहाज दोपहर ४ बजे जाने वाला था, परन्तु ४.४५ बजे ज्ञात हुआ कि गहरे कोहरे के कारण या वह यहाँ नहीं उतर पायेगा| हम उदास और हताश थे, तभी इंडिगो के स्टाफ ने हमें बुलाया और बताया “हम आप लोगों के लिए गुवाहाटी से दिल्ली या कोलकोता और आगे मुंबई ऐसे २ हवाईजहाजों में आप के सफर की व्यवस्था करेंगे”| हम तुरंत ही उनकी सूचना का पालन करते हुए उनकी ही कॅब से गुवाहाटी हवाईअड्डे पर पहुंचे (लगभग ३ घंटों में ११० किलोमीटर) और अंत में गुवाहाटी से दिल्ली और दिल्ली से मुंबई ऐसे रात्रि १० बजे पहुँचने की बजाय दूसरे दिन सुबह ६ बजे घर पहुंचे| हमें जरूर असुविधा हुई, परन्तु मैं इंडिगो एअर लाईन्स के स्टाफ की आभारी हूँ, उन्होंने अत्यंत तत्परता से, खुद होकर हमारा यह पूरा सफर निःशुल्क उपलब्ध किया| हम गुवाहाटी से मुंबई ऐसा सीधा हवाईजहाज का सफर करते तो शायद बेहतर होता, ऐसा बाद में महसूस हुआ| परन्तु आखिरकार हमारी यह यात्रा भी सफल और संपूर्ण हुई और ११ दिनों के बाद होम स्वीट होम इस प्रकार पुनश्च फिर एक बार मुझे मेरे ही घर से नए सिरे से नयी नयी प्रीत हुई|

हमने मेघालय का थोडा ही (बहुतांश उत्तर की ओर का) भाग देखा, परन्तु संपूर्ण समाहित हो कर! इसका अधिकांश श्रेय मैं मेरे जमाई उज्ज्वल (बॅनर्जी) और मेरी पोती अनुभूती के नियोजन को (इसमें होम स्टे और गेस्ट हाऊस में बड़ा मज़ा आया, साथ ही उपलब्ध समय में अच्छे स्पॉट्स देखे) और साथ ही मेरी बेटी आरती को दूंगी| जाते हुए मेरे मन में दुविधा थी कि यह सफर मैं कर पाऊँगी या नहीं, लेकिन इन तीनों ने मुझे इतना संभाला, मैं तो कहूँगी, कदम कदम पर! इसीलिये मेघालय मुझे इतना जँचा और इतना भाया| अर्थात अपने इतने निकटस्थ व्यक्तियों के प्रति आभार प्रकट कैसे और क्यों करना, इस दुविधा में हम अक्सर वह करते ही नहीं, परन्तु मैं इन तीनों का बहुत शुक्रिया अदा करती हूँ! यहीं सच है क्यों कि, यह मेरे दिल के अंदर की आवाज़ है!!!

प्रिय पाठक गण, मेघालय के ११ दिनों की यात्रा का वर्णन इतना लम्बा होगा और उसके १२ भाग लिखूँगी ऐसा मैंने सपने में भी सोचा नहीं था| परन्तु अब इस यात्रा को विराम देनेका समय आ गया है!   

अगली यात्रा के वर्णन का अवसर जब आयेगा तब आपसे अवश्य भेंट होगी, तब तक फ़िलहाल अन्तिम बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)

प्रिय मित्रों, मेरी मेघालय यात्रा की श्रंखला के सब भाग आप तक पहुँचाने वाले ‘www.e-abhivyakti.com’ के प्रमुख सम्पादक श्री हेमंत बावनकर तथा उनकी टीम का दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ ! 

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!

*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ, (लिंक अगर न खुले तो, गाना/ विडिओ के शब्द यू ट्यूब पर डालने पर वे देखे जा सकते हैं|)

खासी, गारो और जैंतिया जनजातियों का फ्यूजन नृत्य

What A Wonder #Meghalaya | Meghalaya Tourism Official

*** इस संपूर्ण प्रस्तुति में समावेश किये चित्र एवं गानों की लिंक केवल अभ्यास मात्र तक ही सीमित हैं|     

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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