(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक कुल 148 मौलिक कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत।
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय रचना “आज के संदर्भ में – षड्यंत्रों का दौर…” ।)
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “फिर भरमाया मौसम ने…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 41 ☆ फिर भरमाया मौसम ने… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “बस एक इल्म का साया है…“)
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – बदलाव की बयार।)
दुकान में एक गरीब औरत अपने बच्चे को गोदी में लेकर एक मैली सी साड़ी पहनी हुई सेठ जी के सामने खड़ी हो गई।
उसे देखकर दुकान के मालिक ने कहा – बहन जी आगे जाओ मैं दान देकर थक गया हूं सुबह से अभी तक दुकान में किसी ग्राहक ने कोई सामान की खरीदी नहीं की है?
– कोई बात नहीं सेठ जी आप अपने नौकर से कहिए, मुझे एक अच्छी सी साड़ी दिखाये। मेरे भाई की शादी है मुन्ना के लिए भी कपड़ा लेना है?
तभी सामने से दो नौकर (दुकान के कर्मचारी) आए और उन्होंने कहा – आप यहां पर आ जाइए और इनमें से जो भी आपको अच्छा लगे वह पसंद कर लीजिए। पहले आप यह बताइए कि आपको साड़ी कितने दाम की चाहिए?
– जो सामने गुलाबी वाली रखी है वह कितने की है?
– ये 800 की है क्या इतनी महंगी साड़ी ले पाओगी?
– हां ठीक है पैक कर दो।
– अपने बेटे का कपड़ा लेकर तुरंत काउंटर के पास गई और बोली कपड़े का कितना पैसा हुआ?
सेठ जी ने कहा – बहन जी आपके कपड़े देखकर मुझे लगा कि आप क्या खरीदोगी, जिनके कपड़े देखकर हम लोग दुकान का सारा सामान अच्छा दिखा रहे हैं उनके मुंह देखिए? इन्हें समय की कीमत भी नहीं पता है? इन सब मैडम लोगों को तो दोपहर का टाइम पास करना है।
– अभी मुझे काम पर भी जाना है।
– ठीक बात है बहन आप जब भी कपड़े लेने आओगी मैं आपको डिस्काउंट दूंगा और आप बच्चे का कपड़ा मेरी ओर से उपहार समझ के ले जाइए। आपसे सिर्फ ₹800 ही लेंगे।
– एक काम करने वाला ही दूसरे काम करने वाले की कीमत और समय की कीमत को समझ सकता है।
तभी दुकान में कुछ महिला जो बैठी थी वह एक दूसरे से कहती हैं- चलो! बहना हम चलते अपनी बेइज्जती करने के लिए थोड़ा ना बैठे हैं?
और वे अपनी कार में बैठकर चली जाती है ।
सेठ जी ने बड़ी कृतज्ञता से उस गरीब औरत से कहते हैं – बहन चाय पी लो ।
वह कहती है – नहीं भाई अगले बार आकर पियेंगे अब तो हमारा रिश्ता बन गया है । पेट के लिए भाई बहुत कुछ करना पड़ता है घायल की गति घायल ही जाने…. ।
हमारा शहर अब स्मार्ट सिटी बन गया है इसलिए यह सब मैडम जी लोग के लिए नदी के किनारे नगर पालिका द्वारा एक कैमरा लगा दिया गया है।
माननीय विधायक जी ने ऐलान किया है की जो बहन सबसे सुंदर दिखेगी उसे इनाम दिया जाएगा ।
उसी दौड़ में सब शामिल हैं। सौंदर्यीकरण शहर का हो रहा है लोग भी बदलाव की बयार में बह रहे हैं।
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-११ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(षोडशी शिलॉन्ग)
प्रिय पाठकगण,
आपको हर बार की तरह आज भी विनम्र होकर कुमनो!(मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो!(कैसे हैं आप?)
प्रिय मित्रों, पिछली बार हमने शिलॉन्गका सफर शुरू किया| अब हम शिलॉन्ग में स्थित कुछ और नयनाभिराम स्थल देखेंगे| तो फिर चलिए, बहुत देर तक चलने की तैयारी करें!
एलिफेंट जलप्रपात (Elephant falls)
शिलॉन्ग के उत्तर भाग में एक अन्य सर्वांगसुंदर ऐसा स्थान है, जो कि पर्यटकों ने देखना ही चाहिए, ऐसा एलिफेंट फॉल! इस जलप्रपात के निकट हाथी के आकार की एक विशाल चट्टान थी, इसलिए ब्रिटिशों ने इसका नाम रखा एलिफेंट फॉल| परन्तु अब इस निर्झर के पास वह कुंजर सम महाकाय चट्टान नहीं रहा क्योंकि, १८९७ के भूकंप में वह नष्ट हो गया| लेकिन उसका नामकरण जिस नाम से हुआ, वहीं नाम आज भी प्रचलित है! शहर के मध्य से ११ किलोमीटर अंतर पर स्थित यह त्रिस्तरीय जलप्रपात (यह जलप्रपात तीन चरणों में गिरता है) देखने हेतु वर्षा ऋतू में जाना बेहतर है, श्वेत दुग्ध जैसी सैकड़ों फेनिल धाराओं की लयबद्ध सप्तसुरों से पूरे क्षेत्र को निनादित कर देने वाले इस जलप्रपात का प्राकृतिक रमणीय दर्शन मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। एक बार देखने पर दृष्टि हटती ही नहीं| अगर वर्षा ऋतू में जा रहे हैं, तो सीढ़ियों की उतरन ध्यानपूर्वक सम्हालते हुए एक स्तर देखिये, आँखों में समा जाये तो, नीचे उतरिये, दूसरा स्तर देखिये, फिर एक बार नीचे सीढ़ियों की उतरन, और सबसे गहरा तीसरा स्तर, जल का प्रवाह नीचे की ढलान में प्रवाहित होते हुए देखिए। सबसे नीचे इस मनोहरी तथा रमणीय नीलजलप्रपात का एकत्रित जल एक छोटेसे तालाब में समाहित होता है| तालाब के चारों ओर सदाहरित वनसम्पदा सदैव साथ में ही होती है! मित्रों, अब अगला कार्य कठिन ही समझिये, क्योंकि अब सीढ़ियां जो चढ़नी हैं! केवल निर्झर का ही नहीं बल्कि, उसे अनायास बाहुपाश में लेनेवाली नित्यहरित हरियाली का भी मनभावन दर्शन करते चलिए! खिलखिलाता हुआ यह झरना और उससे सटी, साथ देती हुई गहन हरीभरी पर्वतश्रृंखला! यह नेत्रदीपक और ‘पिक्चर परफेक्ट’ दृश्य नेत्रों और कैमरा में कैद कर लीजिये! ऐसा अभूतपूर्व दृश्य देखने के लिए शिलॉन्ग में पर्यटकों की भीड़ बड़ी संख्या में इकठ्ठी हो जाती है, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है!
डॉन बॉस्को संग्रहालय (Don Bosco Museum)
यह संग्रहालय शिलॉन्ग शहर के मध्यबिंदू से ५ किलोमीटर अंतर पर सेक्रेड हार्ट चर्च के विस्तृत परिसर में स्थित है| कलासक्त, इतिहास प्रेमी, नावीन्य की नयी मार्गिका खोजने वाले, मेघालय की संस्कृति के बारे में जानने के लिए उत्सुक, इन सभी प्रकार के युवा और वृद्ध पर्यटकों का इस भवन में प्रेम से स्वागत किया जाता है। प्रारम्भ में ही एक पथदर्शक हमें इस संग्रहालय में ७ मंजिलों में स्थित विविध बड़े कमरों (दर्शक दीर्घाओं) के बारे में संक्षिप्त जानकारी देता हैं| परन्तु बाहर खड़े होकर इस भव्य-दिव्य संग्रहालय की रत्ती भर भी कल्पना नहीं की जा सकती| इस विशाल ७ मंजली इमारत में सत्रह अलग-अलग सुरम्य दर्शक दीर्घाएँ हैं! इसमें क्या नहीं है यह पूछिए! कला भवन (आर्ट गॅलरी), हस्तकला, कलावस्तू, पोशाक, गहने और ईशान्य भारत के विविध जनजातियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों का एक विस्तृत संग्रह यहां भर भर कर रखा गया है। संपूर्ण ईशान्य भारत के विहंगम दृश्यों की एकत्रित रम्य दर्शिका एक ही स्थान पर साध कर रखी है इस दर्शनीय संग्रहालय में!
यहाँ इतना कुछ देखने लायक है, कि पर्यटकों का संपूर्ण संतुष्ट होना काफी मुश्किल है! यह सब देखने के लिए एक पूरा दिन भी कम ही होगा! कितना कुछ नजरों में समाहित करें और फोटो भी कितने खींचें! “कुछ तो बाकी रह गया”, हमारी ऐसी अवस्था प्रत्येक मंजिल पर हो जाती है| इसीलिये अगर समय की कमी है तो, आप ब्रोशर को ध्यान से देखकर अपनी पसंद की मंजिलों का चयन कीजिये और जब तक संतुष्ट न हों तब तक उन्हें शांति से देखें। मैंने अपनी पसन्दानुरूप ‘आर्ट गॅलरी’ में मनमाफिक आनंदपूर्वक समय बिताया! इस इमारत का सबसे रोमांचक बिंदु निश्चित रूप से ७ वीं (शीर्ष/ऊपर वाली) मंजिल है “स्काय वॉक”| हम जब वहां पहुँचे तब थोड़े समय पहले बारिश आ चुकी थी, इसलिए मार्ग थोडासा फिसलन भरा था, यहाँ गोल गुम्बद के चारों ओर घूमकर शिलॉन्ग का मनमोहक नज़ारा देखना एक चरम मनोज्ञ अनुभव है। क्या देखना है, उस खास बिंदु पर लिखा है ही, अलावा इसके फोटो खींचना तो अनिवार्य है ही, परन्तु प्रिय मित्रों, सेल्फी लेते वक्त सावधानी बरतें! चौथी मंज़िल पर एक बढ़िया कॅफे है! उसीके बगल में ईशान्य भारत का ख़ूबसूरत दर्शन कराने वाली फिल्म एक छोटेसे सिनेमाघर में अवश्य ही देखना चाहिए। संक्षेप में बताऊँ तो यह भव्य दिव्य संग्रहालय ईशान्य भारत की सांस्कृतिक सम्पन्नता को दर्शाने वाली एक रेखात्मक चित्र-गैलरी ही समझ लीजिये!
कॅथेड्रल ऑफ मेरी हेल्प ऑफ ख्रिश्चनस
शिलॉन्ग में स्थित यह चर्च कॅथोलिक आर्कडिओसीस का कॅथेड्रल और शिलाँग के मेट्रोपॉलिटन आर्चबिशप के आसन के रूप में प्रसिद्ध है| शहर के मध्य बिंदु से केवल २ किलोमीटर दूर यह चर्च पर्यटकों की बहुत ही पसंदीदा जगह है| लगभग ५० वर्ष पूर्व निर्मित यह कॅथेड्रल शिलॉन्ग आर्कडिओसेस के साढे तीन लाख से भी अधिक कॅथलिक लोगों का मुख्य प्रार्थनास्थल है| उसमें पूर्व खासी हिल्स और री-भोई जिलों का भी समावेश है (कुल ३५ चर्च)| यह चर्च Laitumkhrah इस भाग में है| इस चर्च का नाम येशू के Mary the mother के नाम के पर दिया गया है| मदर मेरी के पुतले सहित यह शुभ्र धवल संगमरमर की इमारत अति भव्य और शोभायमान दिखती है| इस चर्च की खासियत है ऊँची कमानें (मेहराब) और बेहतरीन रंगों से सुशोभित कांच की खिड़कियां! कॅथेड्रल के अंदर क्रॉस की कुछ सुंदर टेराकोटा स्टेशन्स हैं, जो येशू के जीवन की घटनाएं दर्शाती हैं| इस भाग में प्रमुख रूप से येशू ख्रिस्त की यातनाएं और मृत्यूविषयक चित्रों के दर्शन होते हैं| ये चित्र जर्मनी की एक कला संस्था ने तैयार किये हैं| साथ ही यहाँ पवित्र शास्त्र और संतों के जीवन के दृश्य चित्रित किये गए हैं| फ्रान्स में १९४७ साल में तैयार किये गए शीशे के अप्रतिम रंगीन दरवाजे इस चर्च की एक और विशेषता है! मुख्य वेदी के सामने बाँयी ओर शिलॉन्ग के पहले मुख्य बिशप ह्युबर्ट डी’रोसारियो की कब्र है| कब्र के आगे और मेरी तथा बाल येशू के पुतले के सामने एक और वेदी है| यहाँ के पवित्र वातावरण में कुछ समय शांति से बैठने का मन जरूर करता है! यहाँ हर महीने में नौ दिन विशेष भक्ति की जाती है| ऊँची पहाड़ी पर स्थित और वहीं उकेरा गया है ग्रोटो चर्च, जो कॅथेड्रल के ठीक नीचे स्थित है, हम इस ग्रोटो चर्च को भी भेंट दे सकते हैं|
वॉर्ड्’स लेक (Ward’s Lake)
यह सुंदर मानवनिर्मित तालाब शहर के मध्यभाग में राजभवन के निकट स्थित है| आसपास रम्य उपवन होने के कारण इस तालाब का परिसर सदैव छोटे बड़े लोगों से भरपूर भरा होता है| यहाँ का एक आकर्षण है, स्वचलित विभिन्न आकारों की नौकायन नौकाएँ। पैरों की मदद लेकर आराम से नियंत्रित की जाने वाली इन नौकाओं में सुख चैन से विहार कीजिये, साथ ही हरीभरी वृक्षलताओं का दर्शन करते करते नौकायन करते रहिये| तालाब के ऊपर इस पार्क तथा बोटॅनिकल गार्डन को जोड़ने वाला पुल है, इसके नीचे से नौका आगे ले जाएँ| इस तालाब में बगुलों की श्वेत पंक्तियाँ तैरती रहती हैं| नौका के निकट आते ही वें बिखर जाती हैं| सूरज के ढ़लते ही नौकायन बंद होता है, उसके बाद ही उनका संपूर्ण तालाब में स्वच्छंद विहार आरम्भ होता है! कुल मिलाकर यहीं सच है कि, कोई भी जानवर या पक्षी इंसानों पर भरोसा नहीं करता! नौकायन का आनंद उपभोगने के बाद इस तालाब के चारों ओर फैले उपवन की पगडंडियों पर बढ़िया चहलकदमी या सिर्फ रिलैक्स करने का भी मज़ा उठाइये। प्राकृतिक परिवेश और अत्यधिक साफ-सफाई इस पार्क को अवश्य ही देखने लायक बनाती है!
थंगराज गार्डन
यह विशाल उपवन भी बहुत सुरम्य है| विविध प्रकार के पेड़पौधों और फूलों की क्यारियों से फूला, प्राकृतिक सौंदर्य से अभीभूत या स्थान सचमुच ही देखने लायक है| अंदर प्रवेश करते ही क्या देखना चाहिए, इसका मार्गदर्शक बोर्ड नजर आता है| गार्डन में टहलते हुए आप देखेंगे कि, विशिष्ट स्थान पर स्थित वृक्षलताओं की जानकारी देने वाले बोर्ड हर जगह दिखाई देते हैं। उपवन को घेरा डालने वाली पगडंडियां और उनका बाड़(compound), नीचे नजर डालेंगे तो शिलॉन्ग का विहंगम नजारा देखते ही बनता है| सीढ़ियां चढ़नेपर विविध रंगों की वृक्षराजी दृष्टिगत होती है| यहाँ फोटो खींचने लायक बहुतसी सिनेमास्कोप जगहें हैं, साथ ही अंदर शीशे के घर में एक सुंदर नर्सरी (ग्रीनहाऊस) है!
प्रिय मित्रों, हमने आराम से चहलकदमी करते हुए शिलाँग का अद्भुत सफर किया| अभी भी ‘मुझे कुछ कहना है’| वह हम अगले अर्थात अन्तिम भाग में जानेंगे| फ़िलहाल कलम को विराम देती हूँ!
खुबलेई! (khublei)(यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)
टिप्पणी –
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें व्यक्तिगत हैं!
*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ| (लिंक अगर न खुले तो, गाना/ विडिओ के शब्द यू ट्यूब पर डालने पर वे देखे जा सकते हैं|)
Shillong city |Capital of Meghalaya | Informative Video
PYNNEH LA RITI || by kheinkor composed by apkyrmenskhem
आपल्याला दर वेळी प्रमाणे आजही लवून कुमनो! (मेघालयच्या खास खासी भाषेत नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)
मंडळी, मागील वेळेस आपण शिलॉन्गची सफर करायला सुरुवात केली. आता शिलॉन्गमधील अजून कांही नयनरम्य स्थळांना भेट देऊ या. चला तर मग भरपूर चालायची तयारी करून!
एलिफेंट धबधबा (Elephant falls)
शिलॉन्गच्या उत्तर भागातील एक अन्य सर्वांगसुंदर असे ठिकाण म्हणजे पर्यटकांनी बघितलेच पाहिजे असे एलिफेंट धबधबा (एलिफेंट फॉल्स)! या जलप्रपाताला खेटून हत्तीच्या आकारासारखा एक विस्तीर्ण खडक होता, म्हणून ब्रिटिशांनी याचे नांव एलिफेंट फॉल्स असे ठेवले. मात्र आता या निर्झराजवळील तो कुंजरासम भलामोठा खडक नाही, कारण तो १८९७ मधील भूकंपात नष्ट झाला. मात्र या निर्झराचे बारसे ज्या नांवाने झालय तेच नांव आजही प्रचलित आहे! शहराच्या मध्यापासून ११ किलोमीटर अंतरावर असलेला हा त्रिस्तरीय धबधबा (हा धबधबा तीन टप्प्यांमध्ये पडतो) बघायला वर्षाऋतूत जावे, फेसाळणाऱ्या शत शत दुग्ध धारांच्या लयबद्ध सप्तसुरांनी अवघा परिसर निनादून टाकणाऱ्या या निर्झराचे प्राकृतिक रमणीय दर्शन अतिशय मोहून टाकणारे. एकदा बघितल्यावर दृष्टी खिळवून टाकणारे. पावसाळ्यात जात असाल तर पायऱ्यांची उतरण काळजीपूर्वक सांभाळून एक स्तर बघा, डोळ्यात साठवा, खाली उतरा, दुसरा स्तर बघा, परत खाली पायऱ्यांची उतरंड अन सर्वात खोल असा तिसरा स्तर पाण्याच्या प्रवाहात प्रवाहित होतांना बघा. सर्वात खाली या मनोहरी अन रमणीय नीलजलप्रपाताचे एकत्रित जल एका छोट्याशा तलावात साठते. तलावाभोवती हिरवी वनराई सतत सोबत असतेच! मित्रांनो, पुढचे कार्य त्रासदायक, कारण आता पायऱ्या चढायच्या आहेत! केवळ निर्झराचं दर्शन नव्हे तर त्याला अनायास कवेत घेणाऱ्या सदाहरित हिरवाईचे बाहुपाश आहेतच! खळाळणारा हा जलप्रपात अन त्याला लगटून सोबतीला हिरवेगार डोंगर! हे नेत्रदीपक अन ‘पिक्चर परफेक्ट’ दृश्य नेत्रात अन कॅमेऱ्यात कैद करून ठेवा! असे हे अभूतपूर्व दृश्य बघण्यासाठी शिलॉन्गमध्ये पर्यटक मोठ्या संख्येने गर्दी करतात यात नवल ते काय!
डॉन बॉस्को संग्रहालय (Don Bosco Museum)
हे संग्रहालय शिलॉन्ग शहराच्या मध्यबिंदू पासून ५ किलोमीटर अंतरावर सेक्रेड हार्ट चर्चच्या आवारात आहे. कलासक्त, इतिहास प्रेमी, नाविन्याची वाट चोखाळणाऱ्या, मेघालयच्या संस्कृतीविषयी जाणून घेण्यास उत्सुक असणाऱ्या अशा सर्व प्रकारच्या आबालवृद्ध पर्यटकांचे या वास्तूत प्रेमाने स्वागत होते. आरंभीच एक पथदर्शक आपल्याला या संग्रहालयाच्या ७ मजल्यात स्थित विविध दालनांची थोडक्यात माहिती देतो. मात्र बाहेर उभे राहून या भव्य-दिव्य संग्रहालयाची पुसटशी कल्पना देखील येत नाही. या विशाल ७ मजली इमारतीत सतरा वेगवेगळ्या नयनरम्य गॅलरी आहेत! त्यांत काय नाही ते विचारा! कलाभवन (आर्ट गॅलरी), हस्तकला, कलावस्तू, पोशाख, दागिने आणि ईशान्य भारतातील विविध जमातींनी वापरलेली शस्त्रे यांचा विस्तृत संग्रह इथे खच्चून भरलेला आहे. संपूर्ण ईशान्य भारताच्या विहंगम दृश्यांची पर्वणी एकाच ठिकाणी साधून देणारे दर्शनीय असे हे संग्रहालय!
इथे इतके काही बघण्यासारखे असल्याने पर्यटकांचे संपूर्ण समाधान होणे जरा कठीणच! हे सर्व बघण्याकरता एक दिवस देखील कमी पडणार! किती म्हणून नजरेत साठवावे अन फोटो तरी किती काढावेत! “काही बघायचे राहून गेले”, अशी प्रत्येक मजल्यावर आपली अवस्था होते. म्हणूनच आपल्याकडे वेळ कमी असल्यास, पत्रकात बघून आपल्याला आवडतील ते मजले चोखंदळपणे निवडावेत अन ते समाधान होईपर्यंत शांतपणे बघावेत. मी माझ्या आवडीनुसार आर्ट गॅलरीत मनसोक्त रमले! या इमारतीचा सर्वात उत्कंठावर्धक बिंदू अर्थात सर्वात वरचा मजला, “स्काय वॉक”. आम्ही गेलो तेव्हा नुकताच पाऊस पडल्याने मार्ग जरा निसरडा होता, गोल घुमटाभोवती फिरत शिलॉन्गचे मनमोहक दर्शन घ्यायचे, इथे हा चरम मनोज्ञ अनुभव घ्यायलाच हवा, काय बघायचे ते त्या त्या पॉईंट वर लिहिले आहेच, शिवाय फोटो काढणे आलेच, पण सेल्फी काढतांना जपून बरं का मंडळी! चौथ्या मजल्यावर एक छानसे कॅफे आहे! याच्याच बाजूला ईशान्य भारताचं बहारदार दर्शन घडवणारी चित्रफीत एका छोट्या चित्रपट थिएटर मध्ये दाखवल्या जाते, ती आवर्जून बघावी अशीच आहे. थोडक्यात सांगायचे झाले तर, हे भव्य दिव्य संग्रहालय ईशान्य भारताची सांस्कृतिक संपन्नता सांगणारे रेखीव चित्र-दालनच समजा ना!
कॅथेड्रल ऑफ मेरी हेल्प ऑफ ख्रिश्चनस
शिलॉन्ग येथील हे चर्च कॅथोलिक आर्कडिओसीसचे कॅथेड्रल चर्च आणि शिलॉन्गच्या मेट्रोपॉलिटन आर्चबिशपचे आसन म्हणून प्रसिद्ध आहे. शहराच्या मध्यबिंदू पासून केवळ २ किलोमीटर दूर असलेलं हे चर्च पर्यटकांचे अत्यंत आवडते ठिकाण आहे. सुमारे ५० वर्षांपूर्वी हे बांधलेले कॅथेड्रल शिलॉन्ग आर्कडिओसेसच्या साडेतीन लाखांहून अधिक कॅथलिक लोकांचे मुख्य प्रार्थनास्थळ आहे. त्यात पूर्व खासी हिल्स आणि री-भोई जिल्ह्यांचा समावेश आहे (एकंदर ३५ चर्च). हे चर्च Laitumkhrah या भागात आहे. या चर्चचे नांव येशूच्या Mary the mother यांच्यावरून दिलेले आहे, मदर मेरीच्या पुतळ्यासह ही पांढरी शुभ्र संगमरवरी इमारत अति भव्य आणि शोभिवंत दिसते. या चर्चची खासियत म्हणजे उंच कमानी आणि सुंदर रंगांनी सुशोभित काचेच्या खिडक्या! कॅथेड्रलच्या आत, क्रॉसची काही सुंदर टेराकोटा स्टेशन्स आहेत, जी येशूच्या जीवनातील घटना दर्शवतात. या भागात प्रामुख्याने येशू ख्रिस्ताच्या यातना व मृत्यूविषयक चित्रांचे दर्शन होते, ही चित्रे जर्मनी येथील एका कला संस्थेने तयार केली आहेत. या सोबतच येथे पवित्र शास्त्र आणि संतांच्या जीवनातील दृश्ये चित्रित केली आहेत. फ्रान्स येथे १९४७ ला तयार केलेली अप्रतिम रंगीत तावदाने हे या चर्चचे आणखी एक वैशिष्ट्य! मुख्य वेदीसमोर डावीकडे शिलॉन्गचे पहिले मुख्य बिशप ह्युबर्ट डी’रोसारियो, यांची कबर आहे. कबरीच्या पुढे अन मेरी आणि बाल येशूच्या पुतळ्यासमोर आणखी एक वेदी आहे. येथील पवित्र वातावरणात कांही वेळ शांतपणे बसावेसे वाटते! इथे दर महिन्याला नऊ दिवस विशेष भक्ती केली जाते. एका टेकडीवर उंचावर असलेल्या, त्याच टेकडीवर कोरलेल्या आणि कॅथेड्रलच्या अगदी खाली स्थित असलेल्या ग्रोटो चर्चला देखील आपण भेट देऊ शकतो.
वॉर्ड्’स लेक (Ward’s Lake)
हा सुंदर मानवनिर्मित तलाव शहराच्या मध्यभागी राजभवनजवळच स्थित आहे. “अवती भवती रम्य उपवने” असल्याने या तलावाचा परिसर सदैव लहान मोठ्या माणसांनी फुललेला असतो. इथले एक आकर्षण म्हणजे स्वचलित वल्हवणाऱ्या विविध आकाराच्या नौका. पायांनी आरामात नियंत्रित करणाऱ्या या बोटीतून तलावात विहार करावा, सोबतच हिरव्यागार वृक्षवेली अन पुष्पवाटिकांचे दर्शन घेत घेत नौकानयन करावे. तलावाच्यावर पार्क आणि बोटॅनिकल गार्डन यांना जोडणारा पूल आहे, त्याखालून नौका पुढे घ्यावी. या तलावात बगळ्यांची माळफुले तरंगत असतात, नौका जवळ आली की ती विखुरतात. सांजवेळी नौकानयन बंद झाल्यावरच संपूर्ण तलावात त्यांचा स्वच्छंद विहार सुरु होतो! एकंदरीत, माणसांवर कुणीही प्राणी अथवा पक्षी विश्वास ठेवत नाहीत हेच खरे! नौकानयनाचा आनंद लुटल्यावर येथील तलावाभोवती असलेल्या उपवनातील पायवाटांवर मस्त फेरफटका मारा किंवा नुसतेच रिलॅक्स करायला देखील मजा येईल. निसर्गरम्य वातावरण आणि कमालीची स्वच्छता, याकरता हा पार्क आवर्जून बघावा असाच आहे!
थंगराज गार्डन
हे विशाल उपवन पण फार नयनरम्य आहे. विविध वृक्षराजींनी अन फुलांच्या ताटव्यांनी बहरलेले हे निसर्ग शोभेने सजलेले ठिकाण खरोखरी बघण्यासारखे आहे. आत शिरताच काय बघावे याचे मार्गदर्शन करणारा फलक दिसतो. गार्डनमध्ये फिरतांना त्या त्या ठिकाणच्या वृक्षवेलींची माहिती देणारे फलक जागोजागी दिसतात. उपवनाला वेढा घालणाऱ्या पायवाटा अन त्यांचे कुंपण, खाली नजर टाकली की शिलॉन्गचे विहंगम रूप दिसते. पायऱ्या चढल्या की विविध रंगांची वृक्षराजी दृष्टीस पडते. इथे फोटो काढण्याकरता बरीच सिनेमास्कोप ठिकाणे आहेत, आत काचेच्या घरात एक सुंदर नर्सरी (ग्रीनहाऊस) आहे!
Shillong city |Capital of Meghalaya | Informative Video
PYNNEH LA RITI || by kheinkor composed by apkyrmenskhem
प्रिय मैत्रांनो, आपण शिलॉन्गची अद्भुत सफर अगदी रमतगमत केली. अजून कांही सांगायचे शिल्लक राहिले आहेच. ते आपण पुढील अर्थात अंतिम भागात जाणून घेऊ! आत्तापुरता विराम देते!
खुबलेई! (khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)
टीप-
*लेखात दिलेली माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेट वर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो (कांही अपवाद वगळून) व्यक्तिगत आहेत!
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆.आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – मिल गया, जिन्दगी का सहारा मुझे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 40 – मिल गया, जिन्दगी का सहारा मुझे… ☆ आचार्य भगवत दुबे