हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 69 – देश-परदेश – मृत्यु:! …शाश्वत सत्य ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 69 ☆ देश-परदेश – मृत्यु:! …शाश्वत सत्य ☆ श्री राकेश कुमार ☆

मृत्यु शब्द सुनकर ही हम सब भयभीत हो जाते हैं। ये भी हो सकता है, इस टाइटल को देखकर ही कुछ लोग इस लेख तक को डिलीट कर देंगे। कुछ बिना पढ़े ही हाथ जोड़ने वाला इमोजी चिपका देंगें।

अधिकतर सभी समूहों में किसी का भी मृत्यु समाचार साझा किया जाता है, तो हमारे संस्कार हाथ जोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। अनेक बार हम उस व्यक्ति के परिचय में भी नहीं होते हैं। अधिकतर में वो समूह के सदस्य भी नहीं होते हैं।

सदस्यों की संवेदनाएं और सहानुभूतियां उसी समूह तक ही सीमित रह जाती हैं। सड़क मार्ग में जब किसी भी धर्मावंबली की शव यात्रा हमारे मार्ग के करीब से भी गुजरती है, तो प्रायः सभी राहगीर खड़े होकर सम्मान प्रकट करते हैं। ये हमारे संस्कारों में भी हैं, दूसरा हम सब को मृत्यु से डर भी लगता है।

कल हमारे बहुत सारे समूहों में सुश्री पूनम पांडे जी का कैंसर से युवा आयु में मृत्यु का समाचार प्रेषित हुआ। हमने भी ॐ शांति, RIP जैसे चलित शब्दों से अपनी संवेदनाएं प्रकट कर शोक व्यक्त कर एक अच्छे सामाजिक प्राणी का परिचय दिया।

कुछ सदस्यों ने तो उनके सम्मान में कशीदे भी लिख दिए थे। उनको अव्वल दर्जे की सामाजिक, सर्वगुण सम्पन्न, महिला शक्ति/ अभिमान, मिलनसार, व्यक्तित्व ना जाने उनके व्यक्तित्व की तारीफ के अनेक पुल बांधे। एक ने तो उनको पदमश्री सम्मान दिए जाने की अनुशंसा भी कर दी थी।

आज जानकारी मिली की उनकी मृत्यु का झूठा समाचार व्यवसाय वृद्धि के लिए किया गया था। मृत्यु को भी पैसा कमाने का साधन बना कर, उन्होंने एक नया पैमाना स्थापित कर दिया है।

हमारे यहाँ ऐसा कहा जाता है, जब किसी के जीवित रहते हुए, अनजाने या गलती से मृत्यु का समाचार प्रसारित हो जाता है, तो उसकी आयु में और वृद्धि हो जाती हैं। हालांकि सुश्री पांडे के मामले में इस प्रकार की गलत जानकारी जान बूझकर फैलाई गई थी। शायद “जिंदा लाश” शब्द से सुश्री पूनम को प्रेरणा मिली होगी।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #223 ☆ आत्मबोध… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 223 ?

☆ आत्मबोध… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

जरी कधीही केले माझे स्वागत नाही

तरी फूल ते काटेरी मज बोचत नाही

*

कुंतलातला गजरा आहे तिला शोभतो

नको लपेटू हाती गजरा शोभत नाही

*

झाड फळांनी बहरुन आले पोरे जमली

शिशिर पाहुनी कुणीच आता थांबत नाही

*

वस्त्र तोकडे रात्री पोरी नाचत होत्या

असा अवेळी मोर कधीही नाचत नाही

*

घरोघरी बघ बर्गर पिज्जा येतो आता

कुणीच कृष्णा लोणी आता चाखत नाही

*

आत्मबोध अन नंतर चिंतन व्हावे त्याचे

श्रद्धा नाही तिथे देवही पावत नाही

*

रीत सांगते संध्यास्नाना नंतर भोजन

असले बंधन कुणी फारसे पाळत नाही

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ भावुक कॅमेरामन… ☆ श्री आशिष बिवलकर ☆

श्री आशिष  बिवलकर

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– भावुक कॅमेरामन– ? ☆ श्री आशिष  बिवलकर ☆

कृतार्थ हा भाव  | आसवे लोचनी |

कॅमेऱ्याचा धनी | सुखावला ||१||

*

राघवाची मूर्ती | वसे गाभाऱ्यात |

छबी कॅमेऱ्यात | टीपण्यासी ||२||

*

सुवर्ण क्षणांचे |  थेट प्रक्षेपण |

पाही भक्तगण | दूरवर ||३||

*

कॅमेऱ्याच्या मागे | माणूसच उभा |

हृदयाचा गाभा  | भक्तीमय  ||४||

*

मंगल सोहळा | टीपण्याचे  भाग्य |

जन्माचे सौभाग्य | याची देही ||५||

*

ज्याची त्याची झाली | कृतार्थ लोचने |

राघव दर्शने | त्रिलोकात ||६||

*

भावनांना केली | मोकळी ही वाट |

सोहळ्याचा थाट | टिपतांना ||७||

© श्री आशिष  बिवलकर

बदलापूर

मो 9518942105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 175 – गीत – बैठ गया जब तेरे पास…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम गीत – बैठ गया जब तेरे पास।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 175 – गीत  –  बैठ गया जब तेरे पास…  ✍

बैठ गया जब तेरे पास

शंका शूल जाले, बन घास।

दिन में सोया सपना देखा

अपने बीच खिंची है रेखा

तब बड़ी देर तक मैं रोया

आँसू से ही आनन धोया

 *

मन बेहद हो गया उदास

बैठ गया जब तेरे पास

शंका शूल जाले बन घास

सपनों ने तोड़ा उपवास।।

 *

तरस रहा मन देखा तूने

मुरझ रहा मन देखा तूने

जब तुमने उठकर बाँह गही

शंका तब बिल्कुल नहीं रही।

 *

गाने लगी कंठ की प्यास

बैठ गया जब तेरे पास

शंका शूल जले बन घास

जुड़े सभी टूटे विश्वास।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 173 – “पेड़ सभी बन गये बिजूके…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  पेड़ सभी बन गये बिजूके...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 173 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “पेड़ सभी बन गये बिजूके...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

अधबहियाँ छाँव

के सलूके

पहिन धूप ढूंढती-

छेद कुछ रफू के

 

आ बैठी रेस्तराँ

 दोपहरी

देख रही मीनू को

टिटहरी

 

हैं यहाँ तनाव

फालतू के

 

स्वेद सनी गीली

बहस सी

सभी ओर असुविधा

उमस सी

 

मैके में मौसमी

बहू के

 

श्वेत- श्याम धरती

के द्वीपों

गरमी है खुले

अन्तरीपों

 

पेड़ सभी बन गये

बिजूके

 

इधर- उधर भटकी

छायायें

अब उन्हें कहो कि

घर चली जायें

 

बादल शौकीन

कुंग-फू के

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

25-11-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 223 ☆ “क्यों भागें अब लड़कियां” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – “क्यों भागें अब लड़कियां)

☆ कविता  क्यों भागें अब लड़कियां☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

अब लड़कियां

घर से नहीं भागतीं

क्योंकि उन्होंने

पढ़ ली है कविता

कवि आलोक धन्वा की,

अब पृथ्वी घूमती हुई

चलीआती है उनके

बैचेन पैरों के पास,

अब वे उड़ाती है पतंग

हवा की धारा के खिलाफ

बेकार पड़ी चीजों को

वे बटोर लेतीं हैं

फटे जीन्स की जेब में

हरियाली की तरह

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ तिरंगे में लिपटे बेटे की माँ… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता तिरंगे में लिपटे बेटे की माँ…’।)

☆ कविता – 🇮🇳 तिरंगे में लिपटे बेटे की माँ… ☆

देश की सीमा पर ,शहीद बेटे को, तिरंगे में लिपटा देख कर,मां की आखों से आंसू नहीं गिरते, वो एकटक अपने शहीद बेटे को तिरंगे में लिपटा देखती रहती है, मां की अभिव्यक्ति……

*********

सज के तिरंगे में, आया है मेरा लाल,

कोई नजर उतारो.

सीमा पर मस्तक ऊंचा कर,सोया   है मेरा लाल,

कोई नजर उतारो.

बचपन से ही वर्दी में वो,

घर में खेला करता था,

जान देश की,देश को दूंगा,

सबसे कहता फिरता था,

आज उसी वर्दी में आया,

करके ऊंचा भाल,

कोई नजर उतारो.

सदा कहा करता था मां,

तेरा कर्ज उतारूंगा,

सीने पर गोली खाऊंगा,

तुझको न लजाऊंगा,

सीने पर झंडा लेकर,

सोया है मेरा लाल,

कोई नजर उतारो.

ईश्वर तुमने कोख में मेरी,

कमी अगर न की होती,

मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने,

सारे बेटे दे देती,

रक्त भरी सीमा की मिट्टी,

पाकर हुई निहाल,

कोई नजर उतारो,

सज के तिरंगे में,आया है मेरा

लाल,

कोई नजर उतारो,

कोई नजर उतारो…

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 163 ☆ # दिल और दिमाग # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# दिल और दिमाग #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 163 ☆

☆ # दिल और दिमाग #

दिल और दिमाग में

आजकल द्वंद

चलता रहता है

दिल कुछ और चाहता है

दिमाग कहीं

और बहता है

दोनों अजीब सी

कशमकश में हैं

दोनों असमंजस में हैं

दोनों अपने अपने

इरादों पर अटल है

दोनों निष्पाप, निश्छल है

दोनों एक ही विषय पर

अलग अलग राय

रखतें हैं

दोनों इसी द्वंद में

दिन-रात

लगे रहते हैं

दिल,

आजकल

हवा के

रूख को देखकर

अपनी जिद को

दूर फेंककर

दिमाग का

गुलाम हो गया है

अपनी अस्मिता

खो गया है

और

दिमाग

अपनी कामयाबी पर

जश्न मना रहा है

फूला नहीं समा रहा है

और

दिल की गुलामी पर

ठहाके लगा रहा है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 159 ☆ हे शब्द अंतरीचे… माझी आई… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 159 ? 

☆ हे शब्द अंतरीचे… माझी आई… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆/

(चाल :- आये हो मेरे ज़िन्दगी में तुम बहार बनके (राजा हिंदुस्थानी))

माझी आई माझी आई, दिला जन्म तिने मजला

माझी आई माझी आई, दिला जन्म तिने मजला

कसा होऊ उतराई, दिला जन्म तिने मजला… धृ

*

खूप कष्ट तिला झाले, खूप त्रास तिला झाला

नऊ मास तिने मजला, पोटात वाढविला

सांगा तुम्ही हो मजला, तिला काय देऊ आजला…१

*

दिनरात काम केले, संसार चालविला

माझ्याच साठी आई, संसार पूर्ण केला

किती प्रेम मला दिले, शब्द न स्फुरती मजला…२

*

शब्द निःशब्द होता,  अश्रूंचा बांध फुटला

वात्सल्य तुझे आई,  चाफ्यास बहर आला

आयु हे माझे सर्व,  अर्पण करतो तुजला…३

*

अशी माझी आई जननी, ऋणानुबंध फुलला

आई-विना कुठे मग, शोभा ये अंगणाला

वसंत ऋतु जीवनी, आई मुळेच आला…४

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – बोलकी मुखपृष्ठे ☆ “गोष्टी गावां शहरांकडील” ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल

? बोलकी मुखपृष्ठे ?

☆ “गोष्टी गावां शहरांकडील” ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल 

गोष्टी गावां शहरांकडील हे पुस्तकाचे नाव आणि मुखपृष्ठावर दोन चित्रे एक गावाचे एक शहराचे यावरून सहजच सगळ्यांना समजते गाव आणि शहर यामधील गोष्टी लेखक सांगणार आहेत

पण नीट विचार करता लक्षात येते की गाव आणि शहर दाखवले असले तरी यावर विचार करण्यासारख्या बऱ्याच गोष्टी आहेत

१) अगदी पहिल्यांदा एक खेळ आठवला ज्यामध्ये दोन चित्रातील फरक ओळखा असे लिहिलेले असते आणि प्रामुख्याने फरक लक्षात येतो तो म्हणजे एक गाव आहे एक शहर आहे

२) मग रेखाटनावरून लक्षात येते ते गावाची बैठक आणि शहराची ठेवण

३) अजून विचार करता गावातील नैसर्गिकता आणि शहरातील कृत्रिमता प्रामुख्याने जाणवते

४) गावाकडचे वातावरण आणि शहराचे वातावरण हे देखील चटकन लक्षात येते

५) थोडा अजून विचार करता लक्षात येते की गावाकडची संस्कृती आणि शहराची संस्कृती या दोन संस्कृतीमध्ये असलेला फरक दाखवायचा आहे

६) अजून खोल विचार करता असे लक्षात येते की गावाची जागा आता शहराने घेतलेली आहे आणि ही खूप चिंताजनक गोष्ट आहे

७) गावाचे प्रतिबिंब मनात शहराचे रूप घेऊन येते आणि हा एक प्रगतीचा आरसा वाटतो

८) जमिनीची ओढ संपून आकाशाला हात लावण्याची वृत्ती निर्माण झालेली असल्याने छोटी बैठी घर जाऊन गगनचुंबी इमारती आलेल्या आहेत हे जरी समाधानकारक असले तरी तितकेच घातकही आहे

९) गाव आणि शहर या दोन्ही राहणीमानामध्ये पडलेला फरकही उद्धृत होतो

१०) नाईलाजाने शहराकडे आलेला आजोबा आपल्या नातवाला आमच्या वेळी की नाही असे म्हणून जेव्हा गोष्टी सांगतो तेव्हा त्याच्या नजरेसमोर येणार गाव आणि आत्ताच शहर हे हे त्याच्या दोन डोळ्यात दिसणारे चित्र स्पष्ट केलेले आहे

११) बारकाईने पाहता असे लक्षात येते की गावाकडच्या झाडांचा रंग आणि शहरातील झाडांचा रंग यामध्ये फरक दाखवलेला आहे तो म्हणजे नैसर्गिक रित्या वाढलेली झाडे किती छान दिसतात आणि कृत्रिम रित्या वाढवलेली झाडे जरी वाढली तरी ती कशी खुरटी खुरटलेलीच दिसतात

१२) गावाकडील मोकळी जागा मोकळे वातावरण हिरवी जमीन शहरातील कोंडतं वातावरण गजबजीत जागा आणि सिमेंट जंगल

१३) मोकळ्या हवेमुळे निर्माण झालेली प्रसन्नता कोंदट हवेने प्रदूषण वाढल्याने निर्माण झालेला तणाव

१४) लेखकाच्या दृष्टीचा पडलेला गाव आणि शहरावरचा प्रकाशझोत

अशा अनेक कल्पनांना वाव देणारे साधेसे चित्र पण अतिशय चिंतनीय. विचारशील असे हे चित्र. रमेश नावडकर यांनी चितारलेले विषय पूरक असे असून साध्या गोष्टीतूनही सामाजिक भान जागे करणारे असे आहे त्याची निवड प्रकाशक उषा अनिल प्रकाशनच्या उषा अनिल शिंदे यांनी केली आणि लेखक नारायण कुंभार यांनी त्याला मान्यता दिली म्हणून त्यांचे मन:पूर्वक आभार

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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