(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “समन्वय कर…”।)
☆ तन्मय साहित्य #214 ☆
☆ कविता – समन्वय कर…☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “जीवन दर्शन…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 38 ☆ जीवन दर्शन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा…“)
नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख “देशभक्ति और राष्ट्रहित…“।)
☆ आलेख # 91 – देशभक्ति और राष्ट्रहित…☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
एक देशभक्ति वो होती है जिसके जज्बे में खुद की परवाह न कर जवान देश के लिये रणभूमि में शहीद होते हैं.
एक देशभक्ति वह भी होती है जंहा आप अपने परिवार का महत्वपूर्ण सदस्य और अपने कलेजे का टुकड़ा देश को समर्पित करते हैं और जिसके शहीद होने पर असीमित दुख और तकलीफों के बावजूद हमेशा गर्वित ही होते हैं, कभी पछतावा नहीं होता.
एक देशभक्ति वह भी है जंहा आपको लगता है कि ईमानदारी और समर्पण की भावना से जहां हैं जैसे हैं, अगर देश के लिये कुछ कर सकें तो ये खुद का सौभाग्य ही है.
पर देशभक्ति वो तो नहीं है और हो भी नहीं सकती जहां ये खुद को लगने लगे कि राजनीति से जुड़े किसी व्यक्ति या किसी दल का समर्थन कर आप खुद को देशभक्त समझने लगें और बाकी अन्य विचार रखने वालों की देशभक्ति पर सवाल उठाने लगें, लांछन लगाने लगें.
कम से कम अभी तक ऐसा नहीं हुआ है कि देश के सर्वोच्च और अतिमहत्वपूर्ण व जिम्मेदार पदों पर बैठे राजनयिकों की निष्ठा पर सवाल खड़े किये गये हों. देश की नीतियों में जरूर समयानुसार परिवर्तन हुये हैं पर राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण सदा अखंड ही रहा है. नेतृत्व की क्षमता विभिन्न मापदंडों पर अलग अलग हो सकती है पर हर नेतृत्व, राष्ट्रहित और राष्ट्रभक्ति की कसौटी पर खरा उतरा है.
इसलिये मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से टारगेटेड दुष्प्रचार कुल मिलाकर ओछेपन और असुरक्षा की भावना ही दर्शाता है. मात्र चुनाव के नाम पर अगर राजनीति का स्तर इसी तरह गिरता रहा तो आम नागरिक की बात तो छोड़ दीजिये, सीमा पर युद्ध के लिये प्राणोत्सर्ग तक करने को तैयार सैनिक इनसे क्या प्रेरणा पायेगा. बेहतर यही है कि राजनैतिक शुचिता इतनी तो रहे कि लोग राजनेताओं से कुछ तो प्रेरणा पा सकें, उन की निष्पक्ष प्रशंसा कर सकें.
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-८ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(मावफ्लांग का पवित्र जंगल)
लेखक-डॉ. मीना श्रीवास्तव
प्रिय पाठकगण,
आपको हर बार की तरह आज भी कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)
पिछले भाग में मैंने वादा किया था कि, हम चलेंगे मावफ्लांग (Mawphlang) के सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स में! आइये तैयार हो जाइये एक रोमांचक और अद्भुत प्रवास के लिए! सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स अर्थात पवित्र जंगलों या उपवनों को कुछ विशिष्ट संस्कृतियों में विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है| पूरे विश्व की विविध संस्कृतियों में ये पवित्र उपवन उनके विशेषताओं समेत आज भी अपनी गहन हरीतिमा से भरपूर वैभव के साथ अस्तित्व में हैं| हालाँकि हमें वे सुंदर लॅण्डस्केप्स (सिर्फ देखने योग्य या चित्र या फोटो खींचने के पर्यटन के मात्र सुन्दर साधन) के रूप में दिखते हों, लेकिन कुछ पंथियों या धर्मियों के लिए इन सबसे परे वे बहुत ही महत्वपूर्ण पवित्र स्थल हैं| इसमें भी खासमखास कुछ विशिष्ट वृक्ष तो अत्यंत पवित्र माने जाते हैं| इस समुदाय के लोग इस वनदेवी को प्राणों से भी बढ़कर जतन करते हैं| इसी देखभाल के कारण यहाँ की वृक्षलताएँ हजारों वर्ष पुरातन होकर भी सुरक्षित हैं|
इस पर्वतीय राज्य के वनवैभव में कुछ महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परम्पराओं की उत्पत्ति है| खासी समाज को अतिप्रिय इस मावफ्लांग के पवित्र जंगल ने प्राचीन गुह्य इतिहास, रहस्यमय दंतकथाएं और विद्याओंको को अपनी विस्तीर्ण हरितिमा में छुपाकर रखा है| यहाँ की ऊँची नीची प्राकृतिक सीढ़ियां और पगडंडियां, छोटे बड़े वृक्ष-समूह, उनके बाहुपाश में घिरकर लिपटी लताएं, चित्रविचित्र पुष्पभार, पेड़ों पर और उनके नीचे फैले हुए फल, विस्तीर्ण पर्णराशी, जगह जगह बिखरे पाषाण (एकाश्म/ मोनोलिथ), बीच में ही विविध सप्तकों में कूजन से वन की शांति भंग करने वाले पंछी, यहाँ वहां स्वछंद हो उड़ने वाली रंग-बिरंगी तितलियाँ, यत्र तत्र तथा सर्वत्र जल के प्रवाही प्रवाह, हर कोई जैसे किसी रहस्यमयी उपन्यास के पात्र के समान, मानों प्रत्येक पात्र कहना चाहता हो, “मुझे कुछ कहना है”! यहाँ के आदिवासियों का सारा जीवन इन्हीं जंगलों में निहित है, इनका रक्षक और इन्हें भयभीत करने वाला जंगल एक ही है!
शिलॉंग शहर से केवल २६ किलोमीटर दूर है मावफ्लांग का सॅक्रेड ग्रूव्ह! हमारी उपवन /जंगल की कल्पना यानि मजबूत पथरीली, काँक्रीट या संगमरमर की सीढ़ियां, रास्ते, बैठने के लिए बेंच, कृत्रिम फव्वारे, स्विमिंग पूल, रेस्तरां, इत्यादी इत्यादी! प्यारे पाठकों, यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं| जंगल जैसे का वैसा! नीचे की पर्णसम्पदा भी अस्पर्श, यहाँ की किसी भी चीज को मानव का स्पर्श वर्जित है! अर्थात हमारे वन में चलने के कारण हुए उसके बेमर्जी से हो उतना ही! मित्रों, यहीं है वह अनामिक, अभूतपूर्व, अप्रतिम, अलौकिक, अनुपम, अनाहत, अनोखा और अस्पर्शित सौंदर्य! हमें हमारे गाईड ने (उम्र २१ वर्ष) इस जंगल का ह्रदयस्पर्शी विलक्षण ऐसा संदेश बतलाया, “यहाँ आइये, यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा का वैभव अपने नेत्रों में जी भर कर समाहित कर लीजिये (परन्तु कुछ भी लूटने की कोशिश कदापि मत कीजिये!), यहाँ से लेकर जाना चाहते हैं, तो इस सौंदर्य की स्मृतियाँ ले जाइये और उन्हें जतन कीजिये, हृदय में या अधिक से अधिक कैमरे में! यहाँ से एक सूखी पत्ती तो छोड़िये, एक तिनका भी उठाकर मत ले जाइये! मित्रों, ऐसी सख्ती रहने के उपरांत ‘वनों की कटाई’ जैसे शब्दों का हम सपने में भी स्मरण नहीं करेंगे! पेड़ों की क्या हम ऐसी परवाह करते हैं? पत्तों और फूलों को तोड़ने और पेड़ों को घायल करने का उद्योग इतना सरेआम होता है कि क्या कहें! (हमारे लिए हर महीना सावन होता है, पूजा को पत्ते या फूल नहीं चाहिए क्या!!!)
सेक्रेड ग्रोव्हस में इनके लिये कोई जगह नहीं, उल्टा “ऐसा करोगे तो मृत्यु हो सकती है, से लेकर कुछ कुछ होता है”, यहीं शिक्षा इन जनजातियोंको की पीढ़ी दर पीढ़ी को दी गई है| यहाँ स्थानीय लोग एक सीदे सादे नियम का पालन करते हैं (हमें भी यह करना होगा!), “इस जंगल से कुछ भी बाहर नहीं जाता”| अगर आप मृत लकड़ी या मृत पत्ती चुराते हैं तो क्या होगा, यह प्रश्न आप करेंगे! दंत कथाएं बताती हैं, “जो कोई भी जंगल से कुछ भी ले जाने की हिम्मत करता है, वह रहस्यमय तरीके से बीमार पड़ता है, कभी कभी तो प्राण पखेरू उड़ जाने तक की नौबत आ जाती है|” इसीलिये यहाँ कुछ वृक्ष १००० वर्षों से भी अधिक जीवित हैं, प्राकृतिक ऊर्जा, जल, खाद सब कुछ है उनके पास, सौभाग्य से एक ही चीज़ नहीं, मानव की भूखी और क्रूर नज़र!!!
यह वनसंपदा धार्मिक कारणों से ही सही, सुरक्षित रखी है यहाँ की तीनों जनजातियोंने! यहाँ जैवविविधता उत्तम प्रकार से जतन की गई है, वनस्पती तथा पेड़ों की प्रजातियों की विस्तृत श्रेणियां (यह ध्यान रहे कि, इनमें दुर्लभ प्रजातियां भी शामिल हैं) फल फूल रही हैं, निर्भय हो कर जी रही हैं! मंत्रमुग्ध करने वाला यह हराभरा पर्जन्य-वन-वैभव इतना कैसे निखरता है? इसका कारण है, इसकी उष्णकटिबंधीय उत्पत्ति, यहाँ बरसात में पवन और पानी दोनों ही दीवाने हो जाते हैं, हर्ष और मोद की मानों बाढ़ आ जाती है! तूफानी हवा का बवण्डर और आसमान से घनघोर घटाओं से बरसती घमासान जलधाराओं का नृत्यविलास! इसी अर्थ का एक मराठी गीत है, “घन घन माला नभी दाटल्या कोसळती धारा!”
प्रिय मित्रों, यहाँ टाइम का ध्यान रखना अत्यावश्यक है (सुबह ९ से शाम ४.३०). देरी से जंगल में जाने वाले और जंगल में से देरी से लौटने वाले को माफ नहीं किया जाता! हमें ऐसे जंगल की आदत नहीं है, इसलिए यहाँ भटकना ठीक नहीं| देखने लायक बहुत कुछ रहकर भी यकीनन आप की आँखें वह देख नहीं पाएगी| यहीं के प्रशिक्षित स्थानिक मार्गदर्शक/ गाईड का कोई विकल्प नहीं| आपका यह गाईड यहाँ की महज समृद्ध वनसंपदा ही नहीं दिखाएगा, परन्तु यह ध्यान रहे कि, वह यहाँ का वनरक्षक और सांस्कृतिक वारिस भी है! यह पथप्रदर्शक रोमहर्षक प्रकार से इस जंगल का राज़ सुलझाकर बताएगा, साथ ही, खासी जनजाति की धार्मिक और सांस्कृतिक श्रद्धा तथा इस जंगल का संबंध विस्तारपूर्वक बतलाएगा! प्रिय पाठकों, वह यहाँ की एक एक पत्ती को देखते हुए यहीं बड़ा हुआ है! यहाँ की दंतकथाएं उसीके प्रभावपूर्ण निवेदन में सुनिएगा मित्रों| मजे की बात यह है कि सभी गाइड एक ही जबानी बोलते हैं (समान प्रशिक्षण!), हमारा युवा गाइड एकदम धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल रहा था| उसने हमें खासी भाषा के बारे में भी कुछ ज्ञान दिया।
अब इस वनसम्पदा की नयनाभिराम और विस्मयकारक चीजें देखते हैं!
नयनरम्य जंगल की पगडंडी (फॉरेस्ट ट्रेल)
यहाँ की टेढ़ी मेढ़ी राहें पर्यटकों को अगोचर लगेगी ऐसी ही हैं! यहाँ पर टहलते हुए वृक्षलताओं के अनायास सजे हुए मंडप या छत के नीचे से जाते जाइये| यह सदाहरित घनतिमिर बन आप के ऊपर अपनी प्रेमभरी छत्रछाया का आँचल फैलाते हुए सूर्यकिरणों का स्पर्श तक होने नहीं देगा! यहाँ की पतझड़ की सुन्दर और अद्भुत रंगावली हरे और हल्दी जैसे पीत वर्ण से सजी होती है! यह घना वनवैभव निरंतर हवा के झोकों के संगीत पर दोलायमान होकर झूमते और लहराते रहता है! ये पगडंडियां हमें लेकर जाती हैं यहाँ की सांस्कृतिक परंपरा के विश्व में!
वर्षा ऋतु में अगर मूसलाधार बारिश हो रही हो तो, यह यात्रा कई गुना दुर्गम हो जाती है! यहीं सुगम्य राहें अब फिसलन और काई से भर जाती हैं! (हमारे अनुभव के बोल हैं ये!) हम लोगों ने आधे से भी अधिक बन देखा, परन्तु बाद में पगडण्डी पर भी चलना कठिन हुआ, अलावा इसके कि, नदी को लांघकर ही आगे जाना होगा, वापसी का और कोई रास्ता नहीं, ऐसी जानकारी गाइड ने दी और फिर हम वापस आए| प्रिय पाठकों, सितम्बर- अक्टूबर के महीनों में इस परिसर को भेंट देना उत्तम रहेगा!
एकाश्म/ मोनोलिथ्स
इस बन का रहस्य वर्धित करनेवाले अनाकलनीय स्थानोंपर एकाश्म/मोनोलिथ्स (monoliths) स्थित हैं| मोनोलिथ यानि एक खड़ा विशाल पाषाण या एकाश्म/ एकल शिला! गाईडने बतलाया कि, एकाश्म खासी लोगों के पूजास्थान हैं| वे इनका उपयोग पशु बलि देने के लिए करते हैं| हम जिस सहजता से मंदिर में जाकर घण्टी बजाते हैं उसी प्रकार ये लोग पशु बलि देते हैं| यहाँ पर एक मोनोलिथ फेस्टिव्हल (उत्सव) भी होता है, आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत तथा वैभव के दर्शन करने का यह उत्तम अवसर होता है| उस समय ऐसा प्रतीत होता है, मानों यह सकल जंगल जीवंत हो अपनी कहानी खुद बखान कर रहा हो!
खासी हेरिटेज गांव
गांव के लोगों की हस्तकला का दर्शन और उनकी झुग्गी झोपड़ियों से बना यह गांव प्रदर्शन हेतु तैयार किया जा रहा है! इसका काम विविध स्तरों पर जारी है ऐसा गांववालों ने बताया|
लबासा, जंगलकी देवता
लबासा, यह है शक्तिशाली देवता, इसी जंगल में संचार करनेवाली, इस प्रदेश के सकल लोगों का उद्धार करनेवाली और उनका श्रद्धास्थान! इसीलिये देखिये न इसकी कृपा से गांव वालों की समस्त उपजीविका जंगल के इर्द गिर्द घूम रही है| बीमारी हो, नसीब का फेरा हो या रोजमर्रा की कोई भी परेशानी हो, यह देवता उनके विश्वास का प्रमुख आधार हैं। किंवदंती है कि, आदिवासी लोगों की रक्षा के लिए यह देवता बाघ या तेंदुए का रूप ले सकती है। देवता को प्रसन्न करने हेतु मुर्गे या बकरे की बलि दी जाती है। इसी जंगल में गांववाले अपने मृतकों को जलाते हैं|
अगले भाग में चलेंगे एक अत्यंत कठिन ट्रेल पर!
तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei)यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)
डॉ. मीना श्रीवास्तव
टिप्पणी
*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ|
https://photos.app.goo.gl/nbRv3RzAUpaEY12V7
सेक्रेड ग्रूव्हस- प्रवास का आरम्भ हमारे गाईड के साथ!
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मोल।)
☆ लघुकथा – मोल ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
करुणा भाभी आज आप सैर करने के लिए आई है क्या?
हाँ आज सोचा बहुत दिन हो गया तुम लोगों से मिले तो आज अपने कॉलोनी का ही चक्कर लगा लेती हूँ।
यह घर को जंगल क्यों बना कर रखा है तुमने? मालती ये कद्दू और बरबटी का पेड़ क्यों लगा कर रखा है, क्यों?
आखिर ये चार पाँच वाला कद्दू कितने का होगा।
भाभी आपको लेना है तो ऐसी ले लीजिए, जो पैसे की क्या बात है?
तुम समझ नहीं रही हो मैं तो यह कहना चाह रही हूं कितनी सी सब्जी होगी?
कितने पैसे बचा कर तुम कितनी अमीर होगी?
आप बिल्कुल सच कह रही हैं ।
आपको पता ही है कि मैं सब्जियों के छिलके और सब्जियों को घर के सामने की क्यारी में ही डालती हूँ। मैं अपना पूरा खाली समय पेड़ पौधों के साथ ही रहती हूँ। दुनिया में हर चीज का मोल फायदा और नुकसान देखकर मैं आपकी तरह नहीं करती। इन फूलों की तरह मेरा घर भी हरा भरा है और आप यूं ही खाली सड़कों पर सुबह-शाम भटकती हो ।
तभी अंदर से आवाज आई मां अब बाहर क्या कर रहे हो अंदर आओ किसे जीवन के नफा नुकसान का ज्ञान दे रही हो आंटी बहुत समझदार हैं।
आप तो दिन भर घर में रहते हो आप को दुनिया का क्या पता कि आजकल फैशन में क्या चल रहा है?
तुम सब ठीक ही कह रहे हो आजकल फास्ट फूड का जमाना है मेरी इन सब्जियों को कौन पूछेगा, लेकिन मोल समझने वाला ही समझेगा, क्योंकि खग की भाषा खग ही जानते है।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆.आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – वो पहले प्यार के लमहे…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 37 – वो पहले प्यार के लमहे… ☆ आचार्य भगवत दुबे
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक ज्ञानवर्धक आलेख – अयोध्या का राम मन्दिर : निर्माण की तकनीकी विशेषतायें।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 255 ☆
आलेख – अयोध्या का राम मन्दिर : निर्माण की तकनीकी विशेषतायें
करोड़ों हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक अयोध्या के राम जन्म भूमि मन्दिर के लिये सदियों के संघर्ष के बाद अंततोगत्वा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से परिसर का आधिपत्य हिन्दुओ को मिला। स्वाभाविक रूप से मंदिर निर्माण के लिये अपार धन संग्रह सहज ही हो गया। अब एक ऐसे मंदिर का निर्माण होना था जो युगों युगों तक जन जन के लिये भावनात्मक ऊर्जा का केंद्र बना रहे। विशिष्ट हो और समय के अनुरूप वैश्विक स्तर का हो। मुख्य वास्तुविद चंद्रकांत बी. सोमपुरा ने न्यूनतम समय में श्रेष्ठ डिजाइन तैयार की। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर के निर्माण में रुचि ले रहे थे। मोदी जी की एक विशेषता स्वीकार करने योग्य है कि वे शिलान्यास ही नही करते न्यूनतम तय समय में उस योजना का उद्घाटन भी करते हैं। अर्थात प्राण पन से योजना को पूरा करने में वांछित कार्यवाही समय से करते रहते हैं। मंदिर निर्माण के लिये सुप्रसिद्ध कंपनी लार्सन एंड टुब्रो को कार्य सौंपा गया। राष्ट्रीयता से ओत प्रोत प्रतिष्ठित कंपनी टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड को परियोजना प्रबंधन का काम दिया गया। राम मंदिर निर्माण का कार्य रामजन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के द्वारा करवाया जा रहा है। आई आई टी चेन्नई, आई आई टी बॉम्बे, आई आई टी गुवाहाटी, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की, एन आई टी सूरत, एन जी आर आई हैदराबाद जैसे संस्थान परियोजना के डिजाईन सलाहकार हैं। इन सबको समवेत स्वरूप में जोड़कर न्यूनतम समय में निर्माण कार्य पुरा करना बड़ी चुनौती थी। दिन रात आस्था और विश्वास के साथ समर्पित भाव से जुटे रहने का ही परिणाम है कि तय समय में मंदिर मूर्त रूप ले सका है। यह सिविल इंजीियरिंग का करिश्मा है , क्योंकि पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिये सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है , बल्कि लाक एड की आधार पर ग्रूव कटिंग से पत्थरों को जोड़ा गया है। कुल 70 एकड़ क्षेत्रफल की जमीन ट्रस्ट के पास है। मंदिर का क्षेत्रफल 2.77 एकड़ है। भारतीय नागर शैली में निर्माण हो रहे इस मंदिर की लंबाई 380 फीट , चौड़ाई 250 फीट तथा ऊँचाई 161 फीट है। मंदिर में स्थापित की जा रही राम लला की नई मूर्ति मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई है। मंदिर में नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप इस तरह कुल 5 मंडप हैं। मंदिर की परिधि (परिकोटा) के चारों कोनों पर सूर्यदेव, माँ भगवती, भगवान गणेश और भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण किया जाएगा। उत्तरी दिशा में देवी अन्नपूर्णा का मंदिर होगा और दक्षिणी दिशा में भगवान हनुमान का मंदिर होगा। मंदिर परिसर के भीतर, अन्य मंदिर महर्षि वाल्मिकी, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, राजा निशाद, माता शबरी और देवी अहिल्या के होंगे। मंदिर परिसर में सीता कुंड नामक एक पवित्र कुंड भी होगा। परियोजना के अंतर्गत दक्षिण-पश्चिम दिशा में नवरत्न कुबेर पहाड़ी पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा और जटायु की एक प्रतिमा स्थापित की जाएगी। धार्मिक आस्था का प्रतीक होने के साथ-साथ, श्री राम मंदिर एक अद्भुत वास्तुशिल्प कृति है। भारत की आध्यात्मिक विरासत और भगवान राम की अमर प्रसिद्धि के जीवित प्रमाण के रूप में, यह मंदिर अयोध्या को भारत की आध्यात्मिक राजधानी बनाने में अहम भूमिका निभाएगा।
राम मंदिर की नींव के डिजाइन में 14 मीटर मोटे रोल्ड कॉम्पैक्ट कंक्रीट को परतदार बनाकर कृत्रिम पत्थर का आकार दिया गया है। फ्लाई ऐश और रसायनों से बने कॉम्पैक्ट कंक्रीट की 56 परतों का उपयोग किया गया है।
नमी से बचाव के लिए राम मंदिर के आधार पर 21 फुट मोटा ग्रेनाइट का चबूतरा प्लिंथ) बनाया गया है। मंदिर की नींव के डिजाइन में कर्नाटक और तेलंगाना के ग्रेनाइट पत्थर और बांस पहाड़पुर (भरतपुर, राजस्थान) के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। मंदिर परियोजना में दो सीवेज शोधन संयंत्र, एक जल शोधन संयंत्र , विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था , की गई है। यह तीन मंजिला मंदिर भूकंपरोधी है। इसमें 392 स्तंभ और 44 दरवाजे हैं। दरवाजे सागौन की लकड़ी से बने हैं और उन पर सोने की परत चढ़ायी गई है। मंदिर संरचना की अनुमानित आयु 2500 वर्ष आकलित की गई है। मूर्तियाँ 6 करोड़ वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाओं से बनी हैं, जो गंडकी नदी , नेपाल से लाई गई हैं। मंदिर में लगाया गया घंटा अष्टधातु सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, सीसा, टिन, लोहा और पारे से बनाया गया है। घंटे का वजन 2100 किलोग्राम है। घंटी की आवाज 15 किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकेगी ऐसा अनुमान है। इस मंदिर में बहुत कुछ विशिष्ट और विश्व में प्रथम तथा रिकार्ड है।