हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 37 ☆ पतंगों से दिन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “पतंगों से दिन…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 37 ☆ पतंगों से दिन… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

खो गये हैं

नभ में उड़ते

पतंगों से दिन।

*

हाथों से

छूटी अचानक

डोर कच्ची सी

कब बड़ी

हो गई जाने

पीर बच्ची सी

*

भर रहे हैं

मन में दहशत

लफंगों से दिन।

*

रिश्ते-नाते

जैसे कोई

राह पथरीली

हो गये

संबंध थोथे

हवा जहरीली

*

भागते हैं

अपनेपन से

दबंगों से दिन।

*

आईनों से

पूछते हैं

अतीतों के रूप

चुभ रही है

आजकल की

चिलचिलाती धूप

*

चलो खोजें

जंगलों में

कुरंगों से दिन।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ रूबरू आ गए और चल भी दिए… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “रूबरू आ गए और चल भी दिए“)

✍ रूबरू आ गए और चल भी दिए… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

दर्द के गांव में आना जाना रहा

नाता अश्कों से अपना पुराना रहा

भूख और प्यास ख़ामोश सहते रहे

ऐ गरीबी तेरा मू छिपाना रहा

रूबरू आ गए और चल भी दिए

पल में आना हुआ पल में जाना रहा

मीठी बातों से जज़्बों में गर्मी भरी

इस तरह अपना मकसद भुनाना रहा

एक दिन रो लिए एक दिन हँस लिए

ज़िंदगी का बस इतना फ़साना रहा

इक वफादार की बेवफ़ा कह दिया

बात कुछ भी न थी बस सताना रहा

सारी दुनिया है खानाबदोशों का घर

हर घड़ी इक बदलता ठिकाना रहा

अरुणिमा हर घड़ी दर्द सहती रही

एक नादाँ को रस्ते पे लाना रहा

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 5 – श्राद्ध ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा – श्राद्ध।) 

☆ लघुकथा – श्राद्ध ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

चतुर्वेदी जी की पूजा खत्म ही हुई थी ।

दरवाजे पर लगातार जोर-जोर से थप-थप की आवाज आ रही थी उसकी थपथपाहट में बेचैनी का एहसास हो रहा था। दरवाजा खुलते ही खुलते ही एक युवक की शक्ल दिखाई दी, उसे देखते ही चतुर्वेदी जी ने कहा अरे  तुम तो जाने पहचाने लग रहे? बेटा तुम मेरे मित्र के बेटे हो तुम्हारी शक्ल में मुझे मेरा मित्र दिखाई दे रहा है।

अंकल प्रणाम आपने मुझे पहचाना मैं पांडे जी का बेटा हूं।

खुश रहो बेटा ।

मैं तुम्हें खूब पहचानता हूँ, तुम्हें देखकर मेरी आत्मा तृप्त हो गई। बुरा मत मानना बेटा तुम तो मुंबई भाग गये थे, अपने बूढ़े लाचार पिता को छोड़कर। अकेले  हम दोस्तों के सहारा छोड़ दिया था,  तू तो घर भी बेचने वाला था। यदि हम लोग पांडे का साथ ना देते तो क्या होता क्या तूने कभी सोचा?

मेरे मित्र पंडित बेचारा तेरी याद में   मर गये ।

हम लोगों के खबर देने पर ही तो तू आया था उनके क्रिया कर्म करने को।

अरे अंकल गुस्सा क्यों होते हो?

हां मैं समझ रहा हूं तुम्हें मेरी बात बुरी लग रही है?

आपने भी तो पिताजी की तरह भाषण देना शुरू कर दिया। पिताजी की बरसी है मंदिर में पूजा पाठ रखा है और भंडारा भी रखा है आपको बुलाने आया हूं आप सब मित्र को लेकर आ जाइएगा?

सब व्यवस्था मैंने कर ली है। गया जी जहां पर पितृ लोगों का तर्पण पंडित जी लोग करते हैं।  उनका तर्पण भी कर दिया, परसों ही लौटा हूं।

चतुर्वेदी जी ने कहा -चलो अच्छा किया!

भगवान ने तुझे अकल तो दी जो तूने कुछ काम किया?

चलो ! मैं अपने मित्र मंडली के साथ तुमसे मिलाता हूं।

तुम्हारा भंडारा देखता हूं ?

जीते जी तो नहीं कुछ किया तुमने?

आज की युवा पीढ़ी  अच्छी नौटंकी कर लेती हैं, वृद्धावस्था तो सभी को आती है उम्र के इस पड़ाव में आज मैं हूं कल तुम होंगे मेरी यह बात को गांठ बांध लेना।

उसे युवक ने बड़ी शीघ्रता से हाथ जोड़कर कहा अंकल तो मैं मंदिर में आपका इंतजार करूंगा?

चतुर्वेदी जी जब शाम के 4:00 बजे मंदिर में अपने मित्र मंडली के साथ पहुंचते हैं। सभी लोग बहुत खुश थे और कह रहे थे बाबा पांडे जी का बेटे ने एक काम तो अच्छा किया है। तभी अचानक उनकी दृष्टि मंदिर के आंगन में पड़ती है और वह सभी भौंचक्का  रह जाते हैं।

वहां पर पंचायत बैठी थी और उनका बेटा घर बेचने की तैयारी में लगा था कि कौन ज्यादा पैसे देगा उसे ही वह घर बेचेगा।

वाह बेटा बहुत अच्छा काम किया शाबाश!

अब मैं समझ गया तुम्हारा प्रेम का कारण?

अंकल जी आपको तो पता है कि बिना कारण कुछ काम नहीं होता भगवान ने भी तो यही सिखाया है हमें कि हर मनुष्य को काम करना चाहिये।

मैं तो कहता हूं अंकल आप भी मेरे साथ शहर चलो?

आपका भी घर बेच देता हूं, इस भावुकता में कुछ नहीं रखा है मैं आपके रहने की व्यवस्था हरे राम कृष्ण मंदिर में कर देता हूं आराम  हरि भजन करना। रोज खाना बनाने की कोई टेंशन नहीं रहेगी वहां आपको योग  कराएंगे और सात्विक भोजन भी मिलेगा और महीने में एक बार डॉक्टर आपका चेकअप भी करेगा।

मेरी चिंता तो छोड़ तो अपनी चिंता कर और यह बात बता बेटा हरे राम कृष्ण मंदिर में कितने लोगों को तूने उनकी जायदाद बेचकर रखा है क्या अब वहां से भी तुझे कुछ मिलने लगा क्या कमीशन?

  मेरी एक बात को ध्यान से  सुन  तू कमाता है तो क्या अपनी कमाई का सारा हिस्सा तू ही खाता है प्रकृति और पशु पक्षी से तूने कुछ नहीं सीखा तुझसे अच्छे तो वे है।

मेरा मित्र तो अब इस दुनिया से चला गया जाने किस रूप में अब वह है उसकी यादें यहां है खैर तेरे पिताजी हैं तुम जैसा चाहो वैसे उनका श्राद्ध करो तुम्हारा उनसे खून का रिश्ता है पर मुझे ऐसा श्रद्धा नहीं करना है।

उमा मिश्रा© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-७ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-७ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(चेरापुंजी की गुफायें और बहुत कुछ कुछ!)

प्रिय पाठकगण,

आपको बारम्बार कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

अब हम चेरापूंजी तक आए हैं, तो पहले यहाँ के गुह्य स्थानों के अन्वेषण करने चलें! यहाँ हैं कई रहस्यमयी गुंफायें! चलिए अंदर, देखें और ढूंढें अंदर के अँधेरे में आखिरकार क्या छुपा है!      

मावसमई गुफा (Mawsmai Cave)

मेघालय की एक खासियत यानि भूमिगत गुफाओं का विस्तीर्ण मायाजाल, कुछ तो अभीतक मिली ही नहीं, तो कुछ में चक्रव्यूह की रचना, अंदर चले जाओ, लेकिन बाहर आने की कोई गैरंटी नहीं! कुछेक की राहें एकदम ख़ास, सिर्फ ख़ासियोंके बस की! अब तो सुना है एक ३५ किलोमीटर लम्बी गुफा की खोज हुई है! हम बस सुनते रहें ये फ़साने, मित्रों! मावसमई गुहा सोहरा (चेरापुंजी) से पत्थर फेंक अंतर पर (स्टोन्स थ्रो) और इसी नाम के छोटेसे गांव में है (शिलाँग से ५७ किलोमीटर)| यह गुम्फा कभी सुंदर, आश्चर्यचकित करनेवाली, कभी भयंकर, कभी भयचकित करनेवाली, ऐसा कुछ जो मैंने बस एक बार ही देखा, रोमांचकारी तथा रोमहर्षक! यहाँ हम गए तब (मेरे भाग अच्छे थे इसलिए) यात्रियों का जमघट था, फायदा यह कि वापस जाना मुश्किल, और उसमें गुफा के अंदर का सफर केवल २० मिनट का|  अब तक मेरा साथ निभानेवाले ट्रेकर्स शूज, बाहर ही रखे| नंगे पैर और खाली दिमाग से जाने का फैसला किया| मोबाइल का कोई उपयोग नहीं था, क्योंकि यहाँ खुद को ही सम्हालना बड़ा कठिन था| छोटे बड़े पाषाण, कहीं पानी, शैवाल, कीचड़, अत्यंत टेढ़ी मेढ़ी राह, कभी संकरी, कभी एकदम बंद होने की कगार पर, कभी तो एकदम झुककर जाओ, नहीं तो माथे पर पाषाणों का भीषण प्रहार झेलना पक्का! कुछ जगहों पर अंदर के दियों का प्रकाश, तो कुछ जगहों पर हमने (टॉर्च) का थोडासा प्रकाश डालना चाहिए, इसलिए एकदम अँधेरे में डूबी हुईं! मैं ट्रेकर नहीं हूँ, परन्तु इस गुफा का यह संपूर्ण अंतर मैंने कैसे पार किया, यह मैं अबतक खुद भी समझ नहीं पा रही हूँ! (पाठकों, इस लेख के अंत में गुफा के सौंदर्य का (!) किसी एक ने यू ट्यूब पर डाला विडिओ जरूर देखिये!)

मात्र वहां जिन जिन का स्मरण कर सकती थी उन्हीं भगवानों का नाम लेते लेते, मेरी सहायता करने दौड़ी आयी दो लड़कियां (हैद्राबाद की)! उनसे मेरी जान न पहचान, मेरी फॅमिली पीछे थी,  इन लड़कियों और उनकी माताओंने जैसे मेरा पूरा भार अपने ऊपर वहन कर लिया! एक छोटीसी बच्ची को जैसे हाथ पकड़ कर चलना सिखाया जाता है, उससे भी अधिक ममता दिखाते हुए उन्होंने मुझे अक्षरशः चलाया, उतारा और चढ़ाया| जैसे मैं वहां अकेली थी और ये दोनों बिलकुल राम लक्ष्मण के जैसे एक आगे और एक पीछे, ऐसा मेरा साथ निभा रही थीं! मित्रों, बाहर आकर मेरे आँखोमें गंगाजमनी जल भरा था, ऐसी भावुक हो उठी थी मैं! मेरी फॅमिलीने उनके प्रति आभार प्रकट किये, हमारा हमेशा का सेलेब्रेशन खाने के इर्द-गिर्द घूमता है, इसलिए मैंने उन्हें गुफा से बाहर आते ही कहा “चलो कुछ खाते हैं!” उन्होंने इतना सुन्दर उत्तर दिया, “नानी, आप बस हमें blessings दीजिये!” १४-१५ साल की ये लड़कियां, ये उनके संस्कार बोल रहे थे! (ग्रुप फोटो में बैठी हुईं दाहिने तारफ की दोनों)! उन्हें कहाँ ज्ञान था कि गुफा के संपूर्ण गहन, गहरे गर्भगृह में मैं उन्हीं को मन ही मन ईश्वर मान कर चल रही थी, आशीर्वाद देनेकी मेरी औकात कहाँ थी? मित्रों, आपकी कभी यात्रा के दौरान में ऐसे ईश्वरों से भेंट हुई है? इस वक्त यह लिखते हुए भी उन दोनों बड़ी ही प्यारीसी खिलती कलियों जैसी अनजान बच्चियों को मैं भावभीने ह्रदय से जी भर कर बहुत सारे blessings दे रही हूँ!!! जियो!!!  

आरवाह गुहा (Arwah Cave)

चेरापुंजी बस स्थानक से ३ किलोमीटर अंतर पर है आरवाह गुफा, यह बड़ी गुफा Khliehshnong इस क्षेत्र में है| इसमें खास देखने लायक है चूना पत्थर (लाइमस्टोन) की रचनाएँ और जीवाश्म, अत्यंत घनतम जंगल से घिरी हुई, साहसी ट्रेकर्स तथा पुरातत्व तत्वों पर प्रेम करने वालों के लिए तो बेशकीमत खजाना ही समझिये! यह गुफा मावसमई गुफा से बड़ी है, लेकिन उसका थोड़ासाही हिस्सा पर्यटकोंको देखने के लिए खुला है| ३०० मीटर देखने के लिए २०-३० मिनट लगते हैं| परन्तु यहाँ गाईड जरुरी है, गुफा में गहरे तिमिर का साम्राज्य, तो कहीं कहीं अत्यंत संकरे सुरंग से, कभी फिसलन भरे पथरीले रास्ते से, तो कभी पानी के शीतल प्रवाह के बीच से आगे सरपट सरकते हुए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है! डरावने माहौल में और टॉर्च के धीमे उजाले में अनेक कक्ष दिखाई देते हैं, उनमें गुम्फा की दीवारों पर, छतपर और पाषाणों पर जीवाश्म (मछलियां, कुत्तेकी खोपड़ी इत्यादी) नजर आते हैं|  यहाँ के चूना पत्थर(लाइमस्टोन) की रचनाएँ और जीवाश्म लाखों वर्षों पूर्व के हो सकते हैं|  प्रिय पाठकों, यह जानकारी मेरे परिवारजनों द्वारा प्रदान की गई है|  गुफा तक ३ किलोमीटर सीढ़ियों का रास्ता, संपूर्ण क्षेत्र में घनी हरितिमा का वनवैभव, मैं गुफा के द्वार के मात्र ५० मीटर अंतर पर ही रुक गई| मुझे गुफा का दर्शन अप्राप्य ही था| इस सिलसिले में वहां का गाइड और हमारे आसामी(ऐसा-वैसा बिलकुल नहीं हाँ!) ड्रायव्हर अजय, इन दोनों की राय बहुत महत्वपूर्ण थी! घर की मंडली गुफा के दर्शन कर आई, तबतक मैं एक व्ह्यू पॉईंट से नयनाभिराम स्फटिकसम शुभ्र जलप्रपात, मलमल के पारदर्शी ओढ़नी जैसा कोहरा, गुलाबदान से छिड़के जाने वाले गुलाबजल के नाजुक छींटे की फुहार जैसी वर्षा की हल्की बूंदा बांदी और मद्धम गुलबदन संध्याकालीन क्षणों का अनुभव ले रही थी! मित्रों, जिनके लिए यह करना मुमकिन है, वे अवश्य इस दुर्गम गुफा का रहस्य जानने की कोशिश करें!

रामकृष्ण मिशन, सोहरा

यहाँ की पहाड़ी की चोटी पर रामकृष्ण मिशन का कार्यालय, मंदिर, संस्था का स्कूल और छात्रावास बहुत ही खूबसूरत हैं। वैसे ही यहाँ उत्तरपूर्व भागोंकी विभिन्न जनजातियों, उनकी विशिष्ट वेशभूषा, उनकी बनाई कलाकृतियों और बांस की कारीगरी से उत्त्पन्न वस्तुओं की जानकारी देनेवाला एक संग्रहालय बहुत सुंदर है| साथ ही मेघालय की तीन प्रमुख जनजातियां, गारो, जैंतिया तथा खासी जनजातियों पर केंद्रित कलाकृतियां, मॉडेल्स और उनकी विस्तृत जानकारी एक कमरे में संग्रहित है, वह भी देखते ही बनती है| रामकृष्ण मिशन के कार्यालय में यहाँ की खास चीजों, अलावा इसके, रामकृष्ण परमहंस, शारदा माता और स्वामी विवेकानंद के फोटो और अन्य वस्तुएं तथा परंपरागत चीजों की बिक्री भी होती है| हमने यहाँ बहुतसी सुन्दर चीज़ें खरीदीं| 

रामकृष्ण परमहंस मंदिर में सम्पन्न हुई सांध्यकालीन आरती हम सब को एक अलग ही भक्तिरस से आलोकित वातावरण में ले गई| हमारे सौभाग्यवश उस आरती की परमपावन बेला मानों हमारे लिए ही संयोग से समाहित थी, अत्यंत प्रसन्नता से हमने इस पवित्र वास्तूका दर्शन किया! कुल मिलाकर देखें तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि, यह अत्यंत रमणीय, भावभीना और भक्तिरस से परिपूर्ण स्थान पर्यटकोंने अवश्य देखना चाहिए| (संग्रहालय की समयसारिणी की अग्रिम जानकारी लेना जरुरी है)

मेघालय दर्शन के अगले भाग में आपको मैं ले चलूंगी मावफ्लांग Mawphlang,सेक्रेड ग्रोव्हज/ सेक्रेड वूड्स/ सेक्रेड फॉरेस्ट्स में और उसके आसपास के अद्भुत प्रवास के लिए! तैयार हैं ना आप पाठक मित्रों?

तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)    

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें  और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!    

*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ|

मेघालय, मेघों की मातृभूमि! “सुवर्ण जयंती उत्सव गीत”

(Meghalaya Homeland of the Clouds, “Golden Jubilee Celebration Song”)

मावसमई गुफा (Mawsmai Caves) 

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 213 ☆ मकर संक्रांत ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 213 ?

मकर संक्रांत ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सण आवडता संक्रांतीचा,

अनेक पदर असलेला !

आठवतो…

लहानपणीचा,

काळ्या गर्भ रेशमी ताग्याचा,

वडिलांनी मला आणलेला,

खऱ्या जरीचा– परकर पोलक्यासाठी !

 

आणि आईची चंद्रकळाही !

तीळगुळ वडी, आईचं हळदीकुंकू,

अत्तरदाणी गुलाबदाणी !

 

तिचं काचेच्या बांगड्याचं वेड !

आडव्या खोक्यातले चुडे!

अंगणातील सडा रांगोळी!

आजीचा आशीर्वाद,

“जन्म सावित्री व्हा, सोन्याचे चुडे ल्या!”

 

सुगडं, ओंब्या, ओवसा !

“सीतेचा ओवसा जन्मोजन्मीचा

ओवसा”म्हणत,

सासूबाईंनी दिलेला वसा !

डोईवरचा पदर,

हातभार चुडे..उंबरठ्यात पाय अडे!

 

पण मी “नारी समता मंच” मधे

जायला लागले,

आणि सोडून दिली,

नावापुढे सौ.ची उपाधी लावणं,

हळदीकुंकवाला केला राम राम!

आणि

समजला संक्रांतीचा खरा अर्थ,

नात्यात गोडी असेल तरच

जगणं सार्थ…नाहीतर सारंच व्यर्थ,

संक्रांत आता माझ्या लेखी,

फक्त तिळगुळाच्या देवाणघेवाणीचा !

   समृद्ध जीवनानुभवाचा,

  सण– कर्मकांडाच्या पलिकडचा!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ मकर संक्रांत… ☆ सौ.मंजुषा सुधीर आफळे ☆

सौ. मंजुषा सुधीर आफळे

? कवितेचा उत्सव ?

मकर संक्रांत… ☆ 🖋 सौ. मंजुषा सुधीर आफळे ☆

उत्तम पोषण

गोडवा गुळाचा

क्रांती संक्रमण

आधार जगाचा

मऊ मुलायम

तिळाची स्निग्धता

अक्षय हृदयात

निस्वार्थ जपता

स्नेह वृद्धिंगत

होईल सर्वांचा

मकर संक्रांत

सण शुभेच्छांचा

निरोगी मनात

उच्च सुविचार

गोड उच्चारण

विनम्र आचार

आनंद देईल

प्रेमळ  वर्तन

सत्यात येणार

आजचे कवन.

© सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मनोवेधक मेघालय…भाग -५ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -५ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

(चेरापुंजीच्या गुहा आणखीन बरंच कांही बाही!)

प्रिय वाचकांनो,

परत परत कुमनो! (मेघालयच्या खासी या खास भाषेत नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)

मेघालय आणि इतर स्थानांची सफर वेगळ्याच विश्वात, अगदी आकाशातील मेघात घेऊन जाणारी आहे! मी तिथे आपल्या सोबत परत एकदा पर्यटन करते आहे याचा “आनंद पोटात माज्या माईना” असं होतंय! मी भरून पावले! येथील अगदी खासम-खास वैशिष्ठे म्हणजे जिवंत मूळ पूल, जिथे आपण फिरलोय आणि अजून एक (हाये की), जिथे आपण आज आश्चर्यजनक प्रवास करणार आहोत! मैत्रांनो, आता चेरापुंजीला आलोच आहोत तर, आधी इथल्या गुह्य ठिकाणांचे अन्वेषण करायला निघू या! इथे आहेत कित्येक रहस्यमयी गुंफा! चला आत, बघू या अन शोधू या काय दडलंय या अंधारात!

मावसमई गुहा (Mawsmai Cave)

मेघालयची एक खासियत म्हणजे भूमिगत गुहांचे विस्तीर्ण मायाजाल, काही तर अजून गवसलेल्या नाहीत, तर काहींमध्ये चक्रव्यूहाची रचना, आत जा, बाहेर यायचं काय खरं नाय! काहींच्या वाटा खास, फक्त खासींना ठाव्या! आत्ता म्हणे एक ३५ किलोमीटर लांब गुहा सापडलीय इथे! ऐकावे ते नवल नाहीच मैत्रांनो! मावसमाई गुहा सोहरा (चेरापुंजी) पासून दगडफेकीच्या अंतरावर (स्टोन्स थ्रो) आणि याच नांवाच्या लहान गावात आहे (शिलाँगपासून ५७ किलोमीटर). ही गुहा कधी सुंदर, आश्चर्यचकित करणारी, कधी भयंकर, कधी भयचकित करणारी, असं काही, जे मी एकदाच पाहिलं, रोमांचकारी अन रोमहर्षक! इथे आम्ही गेलो तेव्हा (माझ्या नशिबाने) प्रवास्यांचे जत्थेच होते, फायदा हा की परत जाणे कठीण, त्यातच गुहेची सफर केवळ २० मिनिटांची, आतापर्यंत साथ देणारे ट्रेकर्स शूज बाहेरच ठेवलेत. अनवाणी पायांनी अन रिकाम्या डोक्याने जायचे ठरवले. मोबाइलचा उपयोग शून्य, कारण इथे स्वतःलाच सांभाळणे जिकिरीचे! लहान मोठे पाषाण, कुठे पाणी, शेवाळे, चिखल, अत्यंत वेडीवाकडी वाट, कधी अरुंद कधी निमुळती, कधी खूप वाकून जा, नाही तर कपाळमोक्ष ठरलेला! काही ठिकाणी आतल्या दिव्यांचा उजेड, तर काही ठिकाणं आपण (विजेरीचा) थोडा तरी उजेड पाडावा म्हणून अंधारलेली! मी ट्रेकर नव्हे, पण गुहेचं हे सगळं अंतर कसं पार केलं हे ‘कळेना अजुनी माझे मला!!!’ (मंडळी या लेखाच्या शेवटी गुहेच्या सौंदर्याचा (!) कुणीतरी यू ट्यूब वर टाकलेला विडिओ जरूर बघा! कुणाला काय अन कोण सुंदर वाटेल याचा नेम नाय!)

मात्र तिथे आठवतील त्या देवांचे नाव घेत असतांनाच माझ्या मदतीला धावून आल्या दोन मुली (हैद्राबाद इथल्या). ना ओळख ना पाळख! माझी फॅमिली मागे होती. या मुली अन त्यांच्या आयांनी माझा जणू ताबाच घेतला! एखाद्या लहान मुलीला जसे हात धरून चालायला शिकवावे त्याहीपेक्षा मायेनं त्यांनी मला अक्षरशः चालवलं, उतरवलं अन चढवलं. जणू काही मीच एकटी तिथे होते! अन या अगदी राम लक्ष्मणासारख्या एक पुढती अन एक मागुती, अशा दोघी माझ्या बरोबर होत्या! मित्रांनो, बाहेर आल्यावर तर “माझे डोळे पाण्याने भरले” अशी अवस्था होती, माझ्या फॅमिलीने त्यांचे आभार मानले.  आपले नेहमीचे सेलेब्रेशन खाण्याभोवती फिरते, म्हणून मी त्यांना गुहेतून बाहेर आल्याबरोबर म्हटलं “चला काही खाऊ या!” त्यांनी इतकं भारी उत्तर दिलं, “नानी, आप बस हमें blessings दीजिये!” १४-१५ वर्षांच्या त्या मुली, हे त्यांचे संस्कार बोलत होते! (ग्रुप फोटोत बसलेल्या उजवीकडील दोघी)! त्यांना कुठं माहित होतं की गुहेच्या संपूर्ण गहन, गहिऱ्या अन गर्भार कुशीत मी त्यांनाच देव समजत होते, आशीर्वाद देण्याची पत कुठून आणू? मंडळी, तुम्ही प्रवासात कधी अश्या देवांना भेटलात का? आत्ता हे लिहितांना देखील त्या दोन गोड साजऱ्या अन गोजिऱ्या अनोळखी मुलींना मी गहिवरून खूप खूप blessings देतेय!!! जियो!!! 

आरवाह गुहा (Arwah Cave)

चेरापुंजी बस स्थानकापासून ३ किलोमीटर अंतरावर आहे आरवाह गुहा, ही मोठी गुहा Khliehshnong या परिसरात आहे. यात खास बघण्यासारखे काय तर चुनखडीच्या रचना आणि जीवाश्म! अत्यंत घनदाट जंगलाने वेढलेली, साहसी ट्रेकर्स अन पुरातत्व तत्वांच्या प्रेमात असलेल्यांसाठी पर्वणीच जणू! ही गुहा मावसमई गुहेपेक्षा मोठी, पण हिचा थोडाच भाग पर्यटकांना बघायला मिळतो. ३०० मीटर बघायला २०-३० मिनिटे लागतात. मात्र यात गाईड हवाच, गुहेत गडद अंधाराचे साम्राज्य, तर कुठे कुठे अत्यंत अरुंद बोगद्यातून, कधी निसरड्या दगडांच्या वाटेतून, तर कधी पाण्याच्या प्रवाहातून सरपटत पुढे जातांना त्रेधा उडणार! भितीदायक वातावरणात अन विजेरीचा प्रकाश पाडल्यावर अनेक कक्ष दिसतात, त्यांत गुहेच्या भिंतींवर, छतावर आणि पाषाणांवर जीवाश्म (मासे, कुत्र्याची कवटी इत्यादी) आढळतात. यातील चुनखडीच्या रचना व जीवाश्म लाखों वर्षांपूर्वीचे असू शकतात. मंडळी, ही माझ्या घरच्या लोकांनी पुरवलेली माहिती बरं कां! गुहेपर्यंत ३ किलोमीटर पायऱ्यांचा रस्ता, आजूबाजूला घनदाट हिरवे वनवैभव, मी गुहेच्या द्वाराच्या अवघ्या ५० मीटर अंतरावरच थांबले. मला गुहेचे दर्शन अप्राप्यच होते. या बाबत तिथला गाईड आणि आमचा आसामी (असा तसा नसलेला हा असामी!) ड्रायव्हर अजय, यांचे मत फार महत्वाचे! घरची मंडळी गुहेत जाऊन दर्शन घेऊन आली, तवरीक मी एका व्ह्यू पॉईंट वरून नयनाभिराम स्फटिकासम शुभ्र जलप्रपात, मलमली तलम ओढणीसम धुके, गुलाबदाणीतून शिंपडल्या जाणाऱ्या गुलाबजलाच्या नाजूक शिड्काव्यासारखी पावसाची हलकी रिमझिम अन मंद गुलबक्षी मावळत अनुभवत होते. मित्रांनो, ज्यांना शक्य आहे त्यांनी या अगम्य गुहेचे रहस्य जाणण्याचा जरूर प्रयत्न करावा! 

रामकृष्ण मिशन, सोहरा

येथील टेकडीच्या माथ्यावर रामकृष्ण मिशनचे कार्यालय, मंदिर, संस्थेची शाळा आणि वसतिगृह फार देखणे आहेत. तसेच इथे उत्तरपूर्व भागातील विविध जमातींची माहिती, त्यांचे विशिष्ट पेहराव, त्यांच्या कलाकृती आणि बांबूंच्या वस्तू असलेले एक संग्रहालय अतिशय सुंदर आहे. त्याचप्रमाणे मेघालयातील गारो, जैंतिया आणि खासी जमातींवर लक्ष केंद्रित करणाऱ्या कलाकृती, मॉडेल्स आणि त्यांची सखोल माहिती असलेली खोली देखील फार प्रेक्षणीय आहे. रामकृष्ण मिशनच्या कार्यालयात इथल्या खास वस्तूंचे तसेच रामकृष्ण परमहंस, शारदा माता व स्वामी विवेकानंद यांचे फोटो अणि अन्य वस्तू, तथा परंपरागत वस्तूंची विक्री देखील होते. आम्ही येथे बऱ्याच सुंदर वस्तू खरेदी केल्या.

सायंकाळी रामकृष्ण परमहंस मंदिरात झालेली आरती सर्वांना एका वेगळ्याच भक्तिपूर्ण वातावरणात घेऊन गेली. आरतीची परमपावन वेळ जणू कांही आमच्यासाठीच दैवयोगाने जुळून आली व अत्यंत आनंदाची गोष्ट ही की, आम्हाला या पवित्र वास्तूचे दर्शन झाले! एकंदरीत हे अतिशय रम्य, भावस्पर्शी आणि भक्तिरसाने परिपूर्ण स्थान पर्यटकांनी नक्की बघावे असे मला वाटते. (संग्रहालयाच्या वेळांची माहिती काढणे गरजेचे आहे.)

मेघालय दर्शनच्या पुढच्या भागात, मी तुम्हाला मावफ्लांग, पवित्र ग्रोव्ह्स/ सेक्रेड वूड्स/ पवित्र जंगलात आणि त्याच्या आजूबाजूला असलेल्या अद्भुत स्थळांकडे घेऊन जाईन. मंडळी, आहात ना तयार? 

सध्यातरी खुबलेई! (khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)

टीप- लेखात दिलेली माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेट वर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो आणि वीडियो (काही अपवाद वगळून) व्यक्तिगत आहेत!

 

मेघालय, मेघों की मातृभूमि! “सुवर्ण जयंती उत्सव गीत”

(Meghalaya Homeland of the Clouds, “Golden Jubilee Celebration Song”)

मावसमई गुफा (Mawsmai Caves) 

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 36 – यह कसक पुरानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – यह कसक पुरानी है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 36 – यह कसक पुरानी है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

पीड़ाओं पर और अधिक, छा रही जवानी है 

सदा टीसती रहती है, यह कसक पुरानी है

गम मेरा सच्चा साथी है साथ नहीं छोड़ा 

मुझसे हर पल, खुशियों ने की, आना-कानी है

तेरी यादों की बगिया है अब तक हरी-भरी 

इसमें सींचा गया सदा, आँखों का पानी है

साथ तुम्हारे ही, बहार ने भी मुँह मोड़ लिया 

तुम रहते हो जहाँ, वहाँ की फिजा सुहानी है

जहर पचाना सीख गया मैं, धन्यवाद उनको 

मुझे मिटा देने की जिनने मन में ठानी है

कहीं प्रीति तो कहीं घृणा-नफरत ही पलती है 

यमुना की जलधार कहीं रावी का पानी है

केवल तुम ही नहीं दुखी आचार्य, और भी हैं 

झोपड़ियों की नहीं, ‘खुशी’ महलों की रानी है

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 112 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 112 – मनोज के दोहे… ☆

1 धुंध

धुंध बढ़ा है इस कदर, दिखे न सच्ची राह।

राजनीति में बढ़ रही, धन-लिप्सा की चाह।।

2 कुहासा

घोर कुहासा रात भर, पथ में सोते लोग।

मानवता को ढूँढ़ते, आश्रय का शुभ-योग।।

3 कोहरा 

मीलों छाया कोहरा, नहीं सूझती राह ।

प्रियतम-बाट निहारती, घर जाने की चाह।।

4 बर्फ

जमती रिश्तों में बर्फ, हटे बने जब बात।

रिश्तों में हो ताजगी, अच्छी गुजरे रात।।

5 शरद

शरद-काल मनमोहता, पंछी करें किलोल।

फूल-खिलें बगिया-हँसे, प्रकृति लगे अनमोल।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 253 ☆ श्रद्धा सुमन – रवि रतलामी :एक साथ ही हिंदी के तकनीकी कंप्यूटर दां, व्यंग्यकार और संपादक ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका आलेख श्रद्धा सुमन – रवि रतलामी :एक साथ ही हिंदी के तकनीकी कंप्यूटर दां, व्यंग्यकार और संपादक )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 254 ☆

? श्रद्धा सुमन – रवि रतलामी :एक साथ ही हिंदी के तकनीकी कंप्यूटर दां, व्यंग्यकार और संपादक  ?

स्व. रवि रतलामी

(जन्म ५ अगस्त १९५८, देहावसान ७ जनवरी २०२४)

वर्ष 2006 में ‘रवि रतलामी का हिन्‍दी ब्लॉग’ को माइक्रोसॉफ्ट भाषा इंडिया ने सर्वश्रेष्‍ठ हिन्‍दी ब्‍लॉग के रूप में सम्मानित किया था। यह समाचार मैंने टी वी पर देखा था। यह समय था जब हिन्दी ब्लागिंग अपने शैशव काल में थी। मैं मण्डला जैसे छोटे स्थान से बी एस एन एल के नेटवन फोन कनेक्शन से रात रात भर हिन्दी ब्लाग लिखा करता था, रात में इसलिये क्योंकि तब इंटरनेट की स्पीड कुछ बेहतर होती थी। स्वाभाविक था कि मेरा ध्यान भोपाल के इस माइक्रो साफ्ट से सम्मानित ब्लागर की ओर गया। इंटरनेट के जरिये उनका फोन ढ़ूंढ़ना सरल था, मैंने उन्हें फोन किया और हम ऐसे मित्र बन गये मानो बरसों से परस्पर परिचित हों। मैं तब विद्युत मण्डल में कार्यपालन अभियंता था, और रवि जी विद्युत मण्डल से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर इंटरनेट में हिन्दी के क्षेत्र में भोपाल से फ्री लांस कार्य कर रहे थे। सरस्वती के पुजारियों की यह खासियत होती है कि वे पल भर में एक दूसरे से आत्मीयता के रिश्ते बना लेते हैं। मैं रवि जी से व्यक्तिगत रूप से बहुत अधिक नहीं मिला हूं पर हिन्दी ब्लागिंग के चलते हम ई संपर्क में बने रहे हैं। रवि जी रचनाकार नामक हिन्दी ब्लाग चलाते थे, जिसमें बाल कथा, लघुकथा, व्यंग्य, हास्य, कविता, आलेख, गजलें, नाटक, संस्मरण, उपन्यास, लोककथा, समीक्षा, कहानी, चुटकुले, ई बुक्स, विज्ञान कथा आदि शामिल होते थे। मेरी कुछ किताबें, नाटक, व्यंग्य, कवितायें, लेख, संस्मरण आदि रचनाकार में प्रकाशित हैं। प्रारंभ में रचनाकार में रवि जी ने यह व्यवस्था रखी थी की एक रचना जो नेट पर कहीं एक बार छपे उसका लिंक ही अन्य जगह दिया जाये बनिस्पत इसके कि अनेक जगह वही रचना बार बार प्रकाशित की जाये। पर बाद में इस द्वंद में माथा पच्ची करना बंद कर दिया गया था। रचनाकार का ट्रेफिक बढ़ाने के लिये हमने व्यंग्य लेखन को लेकर कुछ प्रतियोगितायें भी आयोजित कीं। पुरस्कार स्वरूप मेरी, मेरे पिताजी प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की तथा अन्य लेखको की किताबें विजेताओ को प्रदान की गईं।

रवि जी ने कहीं लिखा है “जन्म से छत्तीसगढ़िया, कर्म से रतलामी. बीस साल तक विद्युत मंडल में सरकारी टेक्नोक्रेट के रुप में विशाल ट्रांसफ़ॉर्मरों में असफल लोड बैलेंसिंग और क्षेत्र में सफल वृहत् लोड शेडिंग करते रहने के दौरान किसी पल छुद्र अनुभूति हुई कि कुछ असरकारी काम किया जाए तो अपने आप को एक दिन कम्प्यूटर टर्मिनल के सामने फ्रीलांस तकनीकी-सलाहकार-लेखक और अनुवादक के ट्रांसफ़ॉर्म्ड रूप में पाया. इस बीच कंप्यूटर मॉनीटर के सामने ऊंघते रहने के अलावा यूँ कोई खास काम मैंने किया हो यह भान तो नहीं लेकिन जब डिजिट पत्रिका में पढ़ा कि केडीई, गनोम, एक्सएफ़सीई इत्यादि समेत लिनक्स तंत्र के सैकड़ों कम्प्यूटर अनुप्रयोगों के हिन्दी अनुवाद मैंने किए हैं तो घोर आश्चर्य से सोचता हूँ कि जब मैंने ऊँधते हुए इतना कुछ कर डाला तो मैं जागता होता तो पता नहीं क्या-क्या कर सकता था?”। वे स्वयं इतने सिद्ध कम्प्यूटर टेक्नोक्रेट थे कि उनका विकी पीडिया पेज तो सहज में होना ही चाहिये था, पर आत्म प्रशंसा और स्व केंद्रित व्यक्तित्व नहीं था उनका। वे सहज, सरल, और उदार व्यक्तित्व के सुलभ इंटेलेक्चुल मनुष्य थे। वे अचानक चले गये हैं, उनके साथ ही उनके मन में चल रहे ढ़ेरों कार्यो का भ्रूण पतन हो गया है। उनके अनेकानेक तकनीकी लेख भारत की प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी पत्रिका आईटी तथा लिनक्स फॉर यू, नई दिल्ली, भारत (इंडिया) से प्रकाशित हो चुके हैं। हिंदी कविताएँ, ग़ज़ल, एवं व्यंग्य लेखन उनकी रुचि की विधायें थीं। उनकी रचनाएँ हिंदी पत्र-पत्रिकाओं दैनिक भास्कर, नई दुनिया, नवभारत, कादंबिनी, सरिता इत्यादि में प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदी दैनिक चेतना के पूर्व तकनीकी स्तंभ लेखक रह चुके हैं। वे अभिव्यक्ति पोर्टल के लिए विशेष रूप से ‘प्रौद्योगिकी’ स्तंभ लिखते रहे हैं। हिंदी की सर्वाधिक समृद्ध आनलाइन वर्गपहेली का सृजन भी उनका महत्वपूर्ण कार्य था।

आन लाइन सोशल मीडिया पर स्व संपादसित लेखन का सफर आरकुट, हिन्दी ब्लागिंग, फेसबुक, इंस्टाग्राम वगैरह वगैरह प्लेटफार्म से शिफ्ट होते हुये व्हाट्सअप तक आ पहुंचा है। पर बोलकर लिखने की सुविधा, यूनीकोड हिन्दी के अंतर्निहित तकनीकी पक्षो को जिन कुछ लोगों ने आकार दिया है उनमें रविशंकर श्रीवास्तव उर्फ रवि रतलामी का भी बड़ा योगदान रहा है। वे जितने योग्य तकनीकज्ञ थे उससे ज्यादा समर्थ संपादक भी थे, और कहीं ज्यादा बड़े व्यंग्यकार। रचनाकार में उन्होंने समकालीन अनेकानेक व्यंग्यकारो को समय समय पर प्रकाशित किया है। रचनाकार में प्रकाशित व्यंग्यकारो कि सूची में राकेश सोहम, हनुमान मुक्त, प्रदीप उपाध्याय, राम नरेश, अनीता यादव, राजीव पाण्डेय, सुरेश उरतृप्त, वीरेंद्र सरल, ओम वर्मा, विवेक रंजन श्रीवास्तव से लेकर नरेंद्र कोहली, यशवंत कोठारी, प्रेम जनमेजय तक कौन शामिल नहीं है। जहां तक रवि जी के व्यंग्य लेखन का प्रश्न है उन्होंने सक्षम व्यंग्यकार के रूप में अपनी छबि बनाई थी। उनकी किताब व्यंग्य की जुगलबंदी अमेजन किंडल पर उपलब्ध है। जिसमें शामिल कुछ व्यंग्य शीर्षक हैं ” आपका मोबाइल ही आपका परिचय है, बापू की लखटकिया लंगोटी, नोटबंदी, जीडीपी और आर्थिक विकास, बाबागिरी, तकनीक और हवापानी, असली अफवाह, गठबंधन की बाढ़, चीनी यात्री ट्रेनत्सांग की वर्ष 2000 की भारत यात्रा, जीएसटी बनाम, भारतीय खेती की असली कहानी, साहित्यिक खेती, टॉपरों से भयभीत, मानहानि के देश में, बिना शीर्षक, मेरा स्मार्टफोन कैसा हो? बिलकुल इसके जैसा हो…., कड़ी निंदा पर कुछ नोट शीट्स, लाल बत्ती में परकाया प्रवेश, ईवीएम में छेड़छाड़ के ये है पूरी आईटीयाना तरीके, लेखकीय और साहित्यकीय मूर्खता, आपने कभी गरमी खाई है ?, जम्बूद्वीप में सन् ३०५० के चुनाव के बाद, आधुनिक अभिव्यक्ति और एक व्यंग्य है “बुढ़ापे या बीमारी से नहीं मैं मरा अपनी शराफत से” सचमुच उनका दुखद देहावसान बुढ़ापे या बीमारी से नही अचानक हार्ट अरेस्ट से हो गया . रवि रतलामी जी के कार्यों का मूल्यांकन हिन्दी जगत को करना शेष ही रह गया और वे हमसे बिछड़ गये। उन्हें तकनीकी जगत, ब्लागिंग की दुनियां, व्यंग्य जगत और हिन्दी जगत के नमन।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

सेवानिवृत मुख्य अभियंता

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]; [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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