हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 35 ☆ भोर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “भोर…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 35 ☆ भोर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

आँगनों की धूप

छत की मुँडेरों पर

बैठ दिन को भज रही है।

 

सुबह की ठिठुरन

रज़ाई में दुबकी

रात भरती उसाँसें

लेती है झपकी

 

सिहरते से रूप

काजल कोर बहती

आँख सपने तज रही है।

 

अलस अँगड़ाई

उठा घूँघट खड़ी है

झटकती सी सिर

हँसी होंठों जड़ी है

 

फटकती है सूप

झाड़ू से बुहारे

भोर उजली सज रही है

 

लगा है पढ़ने

सुआ भी चित्रकोटी

चढ़ा बटलोई

मिलाकर दूध रोटी

 

जग गये हैं कूप

पनघट टेरता है

छनक पायल बज रही है।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ न पहले से मौसम, न अब वो फ़ज़ाएँ… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “न पहले से मौसम, न अब वो फ़ज़ाएँ “)

✍ न पहले से मौसम, न अब वो फ़ज़ाएँ … ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जिसे देखिएगा वही ग़म ज़दा है ।

बहारों का अंदाज़ बदला हुआ है ।

##

न पहले से मौसम,न अब वो फ़ज़ाएँ ।

चलन इश्क़ का आज सबसे जुदा है ।

##

न मुंसिफ़ है कोई ,न कोई अदालत ।

मुसलसल गुनाहों का ही सिलसिला है ।

##

सफ़र में अकेला नहीं मैं बलाओं

मिरी हमसफ़र मेरी माँ की दुआ है ।

##

जुदाई की कोई भी सूरत नहीं अब।

मिरी इन लक़ीरों मे तू ही लिखा है ।

##

मुझे तुझसे फ़ुरसत नहीं एक लम्हा ।

मिरा तुझसे अब कोई तो वास्ता है ।

##

है आसां बहुत ज़िन्दगी का सफ़र ये ।

मुझे नेकियों का सिला ये मिला है ।

##

अरुण ढूँढता था ज़माने में जिसको।

वो महबूब उसका मुक़द्दर हुआ है ।

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-५ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-५ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(पिछला मॉलीन्नोन्ग, चेरापुंजी और भी कुछ)

प्रिय पाठकगण,

कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

लिव्हींग रूट ब्रिज

इन सबमें “नव नवीन नयनोत्सव” का नयनाभिराम दृश्य दर्शाने वाला, परन्तु ट्रेकिंग करनेवाले धुरन्धर पर्यटकों को दातों तले चने चबाने के लिए मजबूर करने वाला पुल यानि “चेरापुंजी का डबल डेकर (दो मंजिला) लिव्हींग रूट ब्रिज!” मित्रों, आपके लिए अगर संभव हो तो यह जो (एक के नीचे एक ऋणानुबंध रखनेवाले) चमत्कार का शिखर और मेघालय की शान है, वह “डबल डेकर लिव्हींग रूट ब्रिज” नामक महदाश्चर्य जरूर देखें! परन्तु वहां पहुँचने के लिए जबरदस्त ट्रेकिंग करना पड़ता है| मैंने तो केवल उसका फोटो देखते ही उसे मन ही मन साष्टांग कुमनो कर डाला! ‘Jingkieng Nongriat’ इस नाम का, सबसे लम्बा (तीस मीटर) यह जिन्दा पुल २४०० फ़ीट की ऊंचाई पर है, चेरापुंजीसे ४५ किलोमीटर दूर Nongriat इस गांव में! ये पुल “विश्व विरासत स्थल” के रूप में घोषित किये गए हैं|

मित्रों, ऐसा कोई भी जिन्दा पुल नदीपर लटकता रहता है| नदी के निकट पहुँचने के लिए ऊंचाई पर स्थित पर्वतश्रृंखला से (उपलब्ध) राह से नीचे उतरिये, पुल देखिये, हो सके तो ईश्वर और पथदर्शक (गाईड) का नामस्मरण करते हुए पुल पार कीजिये, वन प्रकृति सम्पदा का आनंद जरूर लें, परन्तु गाईड या स्थानिकों के आदेश का पालन करते हुए ही पानी के निकट जाना, पानी में उतरना आदि कार्यक्रम सम्पन्न करें और फिर पर्वत पर चढ़ाई कीजिये! यह है अधिक थकाने वाला, क्योंकि, उत्साह की कमी और थकावट ज्यादा! साथ में पेय जल तथा जंगल की ही लाठी रहने दें| कैमरा और अपना संतुलन सम्हालिए और जितना बस में हो, उतने ही फोटो खींचिए! (सेल्फी का काम सावधानी से करें| वहाँ जगह जगह पर सेल्फी के लिए डेंजर झोन निर्देशित किये हैं, “लेकिन कौन कम्बख्त ध्यान देता है!!!”)

मॉलीन्नोन्ग से रास्ता है सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज देखने का! मेघालय की यह अनोखी संरचना पहली बार देखने के बाद और उस पुल पर चलते हुए मुझे सचमुच ही यह अहसास हुआ जैसे मैं अपने पैरों से किसी का दिल तार तार करते हुए जा रही हूँ! हमने सिंगल रूट ब्रिज देखा, वहाँ जाने के दो रास्ते हैं, मॉलीन्नोन्ग से जाने वाला कठिन, बहुत ही फिसलन भरा और टेढ़ामेढ़ा, ऐसा जहाँ सीढ़ियां तथा बॅरिकेड भी नहीं, रास्ते में छोटे बड़े चट्टान भरे हैं! मैनें वह बड़े मुश्किल से पार किया| दूसरे ही दिन एक और ब्रिज देखने की तैयारी से मालिनॉन्ग के बाहर निकले! Pynursa पार किया, यहाँ के होटल में खाने के लिए काफी सारी चीजें दिखीं| इस बड़े गांव में ATM तो है, लेकिन वह कभी बंद रहता है, कभी मशीन में पैसे नहीं होते| इसीलिये अपने साथ नकद राशि जरूर रखें! ‘Nohwet’ इस स्थान से नीचे बॅरिकेड सहित अच्छी तरह बनी हुई सीढ़ियों से उतर कर देखा तो अचरज से देखते ही रहे हम, कल का ही सिंगल रूट ब्रिज नज़र आया! यह डबल दर्शन लुभावना तो था ही, परन्तु यहाँ लेकर आने वाला यह आसान सा रास्ता (आपको मालूम हो इसलिए) भी मिल गया!

हमने Mawkyrnot नामक गांव से रास्ता पकड़ते हुए एक और सिंगल रूट ब्रिज देखा| यह गांव पूर्व खासी पर्वतों के Pynursla सब डिव्हिजन यहाँ बसा हुआ है| नदी किनारे पहुँचने को अच्छी बनी हुई बैरिकेड समेत सीढ़ियां हैं| करीबन १००० से भी अधिक सीढ़ियां उतरकर हम नीचे पहुंचे| पुल के नाम पर (नदी के ऊपर हवा में तैरता हुआ) ४-५ बांसों का बना हुआ झूलता पुल देख मैं इसी किनारे पर रुक गई! मेरे परिवार के सदस्य (बेटी, दामाद और पोती) स्थानीय गाईडकी सहायता से उस-पार पहुंचे और वहां का प्रकृति दर्शन करने के बाद वहां से (करीब २० मीटर अन्तर पर बने) दूसरे वैसे ही पुल से इस-पार वापस आ गए| उनके आने तक मैंने इधर ईश्वर का नाम लेते हुए जैसे-तैसे उनके और पुल के फोटो खींचे| इस स्थानीय गाइड ने सीढ़ियां चढ़ने और उतरने में मेरी बहुत मदद तो की ही, परन्तु मेरा मनोबल कई गुना बढ़ाया| इस अत्यंत नम्र और शालीन लड़के का नाम है Walbis, उम्र केवल २१ साल! दोपहर के भोजन के पश्चात् मेरे घर वालों को इससे भी अधिक कठिनतम शिलियांग जशार (Shilliang Jashar) इस गांव के बांस के ब्रिज पर जाना था, परन्तु मैंने गाइड की सलाह और मेरी सीमित क्षमता को ध्यान में रख कर उस पुल की राह को अनदेखा किया|

डॉकी/उम्न्गोट (Dawki/Umngot) नदीपर नयनरम्य नौकानयन

हम सैली के सुन्दर “साफी होम कॉटेज (Safi home cottage) को अलविदा करते हुए अगले सफर पर निकल पड़े| हम मॉलीन्नोन्ग से लगभग ३० किलोमीटर दूर डॉकी (Dawki) के तरफ निकले| मित्रों, मुंबई से गुवाहाटी की यात्रा हवाई जहाज से तय करने के बाद मेघालय का पूरा सफर हमने कार से ही किया| यह ध्यान रखें कि, यहाँ रेल यात्रा नहीं है| यह गांव मेघालय के पश्चिम जयन्तिया हिल्स जिले में है| डॉकी(उम्न्गोट) नदी पर एक कर्षण सेतु (traction bridge) बना है| १९३२ में अंग्रेजों ने इस पुल का निर्माण किया| इस नदी का जल इतना स्वच्छ है कि, कभी कभी अपनी नाव हवा में तैरने का आभास हो सकता है| यहाँ का नयनाभिराम दृश्य तथा नौका विहार यहीं प्रमुख आकर्षण है! यह गांव भारत और बांग्ला देश की सीमा पर है! नदी भी दोनों देशों में इसी तरह विभाजित हुई है। एक ही नदी पर विहार करती हैं बांग्लादेश की मोटर बोट और भारत देश की नाविकों द्वारा ‘चप्पा चप्पा’ चलाई गई सरल बोट! यह है दोनों देशों को जोड़ने वाला एक रास्ता! जाते हुए दोनों देशों की चेक पोस्ट दिखती हैं| डॉकी यह भारत की चेकपोस्ट तो तमाबील है बांग्ला देश की चेकपोस्ट!

मित्रों, इस नौकाविहार का स्वर्गसुख कुछ अलग ही है, ह्रदय और नेत्रों में सकल संपूर्ण संचय कर लें ऐसा! नाविक द्वारा चलायी हुई विलंबित ताल जैसी डोलते डोलते धीरे धीरे आगे सरकती हुई नौका, यहाँ वहाँ नौका से टकराकर निर्मल से भी निर्मल और संगीतमय बने जल-तरंग, दोनों किनारों पर नदी को मानों कस कर जकड़ने वाले वृक्षवल्लरियों की हरितिमा के बाहुपाश! निर्मल नीर के कारण उनकी छाया हरियाली सी, तो उससे सटकर नीलमणी सी या मेघाच्छादित गहरे रंग की छाया, बीच बीच में नदी के तल के अलग अलग पाषाण भी अपनी छटा बिखेर रहे थे! सारांश में कहूं तो सिनेमास्कोपिक पॅनोरमा! कहीं भी कॅमेरा लगाइये और प्रकृति के रंगों की क्रीडा छायांकित कर लीजिये! बीच में इस सिनेमास्कोप सिनेमा का चाहे तो इंटर्वल समझ लीजिये, छोटा सा रेतीला किनारा, वहां भी मॅगी, चिप्स तथा तत्सम पदार्थों की सर्विस देने के लिए एक मेघालय सुंदरी हाज़िर थी| कोल्ड ड्रिंक को अति कोल्ड बनाने के लिए नदी के किनारे छोटेसे फ्रिज जैसा जुगाड करने वाला उसका पति खास ही था ! नदी किनारे पर छोटे बड़े पर्यटक सुन्दर पत्थर (और क्या कहूं) या चट्टान इकठ्ठा करने में जुट गए| वापसी की यात्रा बिलकुल भी सुहा नहीं रही थी, परन्तु नाविक को “ना-ना” कहते हुए भी आखिरकार उसने नांव किनारे लगा ही दी|

टाइम प्लीज!!!      

प्रिय पाठकों, यूँ समझिये एक घडी आपकी कलाई पर बंधी है और एक आसानी से दिखने वाली घडी आप के स्मार्ट फोन पर मौजूद है, होगी तो जरूर! आप जो आसान होगा वहीं देखेंगे ना! परन्तु अगर आप बांग्ला देश की सीमा के आसपास घूम रहे हों, तो मजेदार किस्सा देखने को मिलेगा| हमें स्थानीय लोगों ने बतलाया इसलिए अच्छा हुआ, वर्ना बहस तो होनी ही थी| बांग्ला देश की (केवल) घडी हमारे देश से ३० मिनट आगे है और अपुन के स्मार्ट फ़ोन को (अनचाहे वक्त पर ही) ज्यादा स्मार्टनेस दिखाने की आदत तो है ही! उसने अगर उस देश का नेटवर्क पकड़ा तो स्मार्ट फ़ोन की घडी आगे और कलाई वाली घडी यहाँ का समय बताएगी! इसलिए ऐसे स्थानों पर (बांग्ला देश की सीमा के आसपास) भारत के सुजान तथा देशभक्त नागरिक के नाते आप कलाई वाली घडी की मर्जी सम्हालें और स्मार्ट फ़ोन को थोड़ा कण्ट्रोल में रखें! हमने काफी जगहों पर यह अनुभव लिया! थोडासा और किस्सा अभी भी बाकी है जी! बांग्ला देश की सीमा और हमारे बीच के अंतर के अनुसार स्मार्ट घडी तय करती है कि वह कितनी आगे जाएगी|

अगले भाग में हम साथ साथ सफर करेंगे मेघजल से सरोबार चेरापूंजी ! आइये, तब तक हम और आप सर्दियों की रजाई को ओढ़ आनन्द विभोर होते रहें!

फिर एक बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!

टिप्पणी

  • लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
  • गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ, उन्हें सुनकर और देखकर आपका आनंद द्विगुणित होगा ऐसी आशा करती हूँ!

https://photos.app.goo.gl/ECQMhQH2MeDsvZjD9

डॉकी नदी पर नौकानयन

https://photos.app.goo.gl/FkaX8dvATm2vCDkF9

डॉकी नदीकिनारे पर बनाया हुआ टेम्पररी फ्रिज, एक लोकल जुगाड!

क्रमशः -6

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

८ जून २०२२     

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 241 ⇒ एक लोटा जल… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आड़े तिरछे लोग…।)

?अभी अभी # 241 ⇒ एक लोटा जल… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

सन् १९७१ में के. ए.अब्बास की एक फिल्म आई थी, दो बूंद पानी, जिसमें परवीन सुल्ताना और मीनू पुरुषोत्तम का एक बड़ा प्यारा सा गीत था ;

पीतल की मोरी गागरी,

दिल्ली से है मोल मंगाई !

यहां विरोधाभास देखिए, कहां दो बूंद पानी और कहां पीतल की गागरी, यानी वही ऊंट के मुंह में जीरा।

एक लोटा जल, हमारा आदर्श सनातन माप है, एक लोटे जल में प्यासे की प्यास भी बुझ जाती है, और रसोई के भी कई काम निपट जाते हैं। लाठी में गुण की तो बहुत बात कर गए गिरधर कविराय, लेकिन कभी किसी भले आदमी ने एक लोटा जल के महत्व पर प्रकाश नहीं डाला।।

लोटा और बाल्टी किस घर में नहीं होते। बचपन में सुबह नहाते वक्त ठंडा गरम, जैसा भी जल उपलब्ध हो, जब लोटे से स्नान किया जाता था, तो मुंह से ॐ नमः शिवाय निकल ही जाता था। एक पंथ दो काज, खुद का स्नान और शिव जी का अभिषेक भी। आत्म लिंग शिव तो सर्वत्र व्याप्त और विराजमान है, मुझमें भी और तुझ में भी।

शिव जी ने गंगा को अपनी जटा में स्थान दिया और जटाशंकर कहलाए। नर्मदा नदी का हर कंकर एक शंकर है, जिसका हर पल नर्मदा मैया की लहरों द्वारा अभिषेक होता है। महाकाल उज्जैन में रोज प्रातः भस्म आरती होती है, और तत्पश्चात् शिव जी का अभिषेक होता है। जिसका लाइव दर्शन व्हाट्सएप पर करोड़ों श्रद्धालु नियमित रूप से करते हैं।।

सब एक लोटा जल की महिमा है। सभी मंदिरों में आपको शिवजी और नंदी महाराज भी प्रतिष्ठित मिलेंगे। श्रद्धालु जाते हैं, एक लोटा जल से शिवजी का अभिषेक करते हैं, और नंदी के कान में भी कुछ कहने से नहीं चूकते।

कर्पूरगौरं करूणावतारं

संसारसारं भुजगेन्द्रहारं।

सदा वसन्तं हृदयारविन्दे

भवं भवानि सहितं नमामि।।

पूजा आरती कहां इस मंत्र के बिना संपन्न होती है।

संत महात्मा जगत के कल्याण का बीड़ा उठाते हैं, कथा, सत्संग, प्रवचन, निरंतर चला ही करते हैं। कुछ लोग सुबह एक लोटा जल सूर्यनारायण को भी नियमित रूप से अर्पित करते हैं। जल ही जीवन है, एक लोटा जल के साथ यह जीवन भी आपको समर्पित है। तेरा तुझको अर्पण। ईश्वर और प्रकृति में कहां भेद है।।

सीहोर के संत ने तो एक लोटा जल की मानो अलख ही जगा दी है। चमत्कार को नमस्कार तो हम करते ही हैं। शिवजी को समर्पित एक लोटा जल का चमत्कार देखिए, उनके प्रवचन में लाखों भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है। साधारण सी बात असाधारण तरीके से समझाए वही तो होते हैं, संत ही नहीं राष्ट्रीय संत।

आप इनकी महिमा और करुणा तो देखिए, लाखों भक्तों को मुफ्त में रुद्राक्ष वितरित कर रहे हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ संभाले नहीं संभल रही है। बेचारे शिक्षकों को भी स्वयंसेवक बन अपनी सेवा देनी पड़ रही है।।

आप भी शिव जी को एक लोटा जल तो चढ़ाते ही होगे। उनकी कथाएं शिव पुराण पर ही आधारित होती हैं। संसार में अगर दुख दर्द ना होता, तो कौन ईश्वर और इन संतों की शरण में जाता। भक्ति, विवेक और वैराग्य अगर साथ हो, तो शायद इंसान इतना हर जगह ना भटके। आखिर किसी की शरण में तो जाना ही पड़ेगा इस इंसान को ;

लाख दुखों की एक दवा

सिर्फ एक लोटा जल ….

पहले किसी प्यासे को एक लोटा जल पिलाइए, उसका दुख दर्द मिटाइए, फिर प्रेम से शिवजी को भी जल चढ़ाइए।।

कितने भोले होते हैं ये भोले भंडारी के कथित देवदूत, इतनी यश, कीर्ति और प्रचार के बावजूद बस इतना ही विनम्र भाव से गाते रहते हैं ;

मेरा आपकी कृपा से

सब काम हो रहा है।

करते हो तुम भोले,

मेरा नाम हो रहा है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 3 – जूठन ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा – जूठन।) 

☆ लघुकथा –  जूठन ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जूठन समेटकर  एहतियात से पन्नी में भर रही थी। मैंने उसे बड़े गुस्से की नजरों से देखा

” मैं गुस्से में बोली यह क्या जाहिल पन है?”

तुम्हें शर्म नहीं आती है ऐसा करते हुए।

उस काम वाली बाई के ऊपर मेरी बातों का कोई असर नहीं हो रहा था। वह मेरी बातों को अनसुना सा कर रही थी।

बड़े ही इत्मीनान से वह सारी जूठन पन्नी में गांठ लगाते हुए बोली मेम साहब घर में मेरी मां बीमार है बहन और 5 साल की छोटी बेटी भी है।

उन्हें आज भरपेट खाना खिलाऊंगी आज खाने में बहुत सारे पकवान है मैं तो भगवान से यही प्रार्थना करती हूं कि आप और आपके बच्चे रोज इसी तरह खाना बनाने को काहे लेकिन वह खाना खाते कहां है प्लेट में थोड़ा सा लेते हैं यह पतीले का खाना जूठन कहां हुआ। छोड़ें में साहब आप लोग खाने की कीमत कहां समझोगे?

हम जैसे भूखे मरते लोगों का पेट तो भरेगा, और यह अच्छा खाना मिलेगा।  हमारी किस्मत में ऐसा परोसा  भोजन नहीं है। आप के कारण हमें यह सब अच्छी चीजें भी खाने को मिल जाती हैं।

मैं अवाक रह गई उसकी बातें सुनकर मैं स्वयं को बहुत बौना महसूस कर रही थी। उसकी आंखों में खुशी झलक रही थी।

जल्दी पहुंचने का उतावलापन उसकी आंखों में दिख रहा था। और तुरंत सारा सामान एक झोले में भरकर वह घर की ओर जाने लग गई मैं भी उसे दरवाजे में खड़ी हो कर देखती रह गई जब तक वह मेरी आंखों से ओझल नहीं हो गई।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 211 ☆ आनंदी आनंद गडे ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 211 ?

आनंदी आनंद गडे ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

या वर्षाअखेर ठरवलं आम्ही भावंडांनी

थर्टी फर्स्टला भेटायचं,

 

गेली काही वर्षे,

एका वेगळ्याच मैत्रीणींच्या

ग्रुप मधे,

करायचे साजरा हा आनंदोत्सव!

 

तेवीस साल सरता सरता,

 नात्यातले,

“अनिल- सुनील”

अचानक निघून गेले,

आणि मन धसकलं,

आपल्याहून लहान असलेले निघून गेले !

 

पुढील वर्षा अखेर आपण

असू ,नसू!

 

ए जिंदगी के मेले,

दुनिया में कम न होंगे….

अफसोस हम न होंगे

 

हे तर अंतिम सत्य…..

सत्तरी जवळ आली आणि,

तब्येतीच्या तक्रारी सुरू……

लागोपाठ दोघांनाही

 थंडीतली दुखणी,

नवरा गावाला आणि

मी दिवसभर दुखण्यानं आडवी !

गावावरून आल्यावर

 “आता माझी पाळी” म्हणत,

नवराही आडवा– अर्थात कुरबुरी किरकोळच!

 

पण बाईचं दुखणं गौण

आणि बाप्याचं मोठंच

असतं नेहमी !

 

दुखणं झटकून बाहेर पडले

 सकाळी,

मैत्रीणींच्या घोळक्यात,

संध्याकाळी ,

तळ्यात मळ्यात करता करता ,

माहेरच्या गोतावळ्यात!

आपल्या आयुष्याच्या

प्रत्येक क्षणावर , लिहिलेलं

असतं जणू….

आज जगायचं….रडे..रडे…..कि

आनंदी आनंद गडे!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मनोवेधक मेघालय…भाग -३ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -३ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मनमोहिनी मॉलीन्नोन्ग व मेघालयाच्या कुशीतले लिव्हिंग रूट ब्रिज)

प्रिय वाचकांनो,

कुमनो! (मेघालयच्या खासी या खास भाषेत नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)

मॉलीन्नोन्गच्या निमित्याने आपणा सर्वांना ही सफर आनंददायी वाटत आहे, याचा मला कोण आनंद होत आहे!

तर मॉलीन्नोन्गबद्दल थोडके राहून गेले सांगायाचे, ते म्हणजे इथले जेवण अन नाश्ता. माझा सल्ला आहे की इथं निसर्गाचेच अधिक सेवन करावे. इथे बरीच घरे (६०-७०%) होम स्टे करता उपलब्ध आहेत, अग्रिम आरक्षण केले तर उत्तम! मात्र थोडकी घरे (मी पाहिली ती ४-५) जेवण व नाश्ता पुरवतात! जास्त अपेक्षा ठेऊ नयेत, म्हणजे अपेक्षाभंग होणार नाही! ब्रेड बटर, ब्रेड आम्लेट, मॅगी अन चहा-कॉफी, इथे नाश्त्याची यादी संपते! तर जेवणात थाळी, २ भाज्या (त्यातली एक पर्मनन्ट बटाट्याची), डाळ अन भात, पोळ्या एका ठिकाणी होत्या, दुसरीकडे ऑर्डर देऊन मिळतात. जेवणात नॉनवेज थाळीत अंडी, चिकन आणि मटन असतं. हे घरगुती सर्विंग टाइम बॉउंड बरं का. जेवणाचे अन नाश्त्याचे दर एकदम स्वस्त! कारभार कारभारणीच्या हातात! इथे भाज्या जवळच्या मोठ्या गावातून (pynursa) आणतात,  आठवड्यातून दोनदा भरणाऱ्या बाजारातून! सामानाची ने-आण करण्यासठी बेसिक गाडी मारुती ८००!. मुलांची मोठ्या गावात शिक्षणाकरता ने-आण करण्यासाठी पण हीच, पावसाळी वातावरण नेहमीचेच अन दुचाकी मुळे अपघात होऊ शकतात, म्हणून गावकरी वापरत नाहीत, असं कळलं. इथे ATM  नाही, नेटवर्क नसल्यामुळे जी पे, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड वगैरे उपयोगाचे नाहीत. म्हणून आपल्याजवळ रोख रक्कम हवीच!              

स्काय पॉईंट (Nohwet Viewpoint)

या भागात फिरतांना बांगला देशाची सीमा वारंवार दर्शन देते. मात्र बांगलादेशाचे दर्शन घडवणारा एक स्काय पॉईंट अतिशय सुंदर आहे. मॉलीन्नोन्गपासून केवळ दोनच किलोमीटर असलेला हा पॉईंट न चुकता बघावा. बांबूने बनलेल्या पुलावरचा प्रवास मस्त झुलत झुलत करावा, एका ट्री हाऊस वरील ह्या पॉईंटवर जावे अन समोरचा नजारा बघून थक्क व्हावे. हा पॉईंट ८५ फूट उंच आहे, संपूर्ण बांबूने बनवलेला अन झाडांना बांबू तसेच जूटच्या दोरांनी मजबूत बांधलेला हा इको फ्रेंडली पॉईंट, समोरील नयनरम्य नजाऱ्यांचे फोटो काढणे आलेच! मात्र सेल्फी पासून सावधान, मित्रांनो! येथून सुंदर मावलींनॉन्ग दिसतेच शिवाय बांगलादेशची सपाट जमीन व जलसंपदा यांचेही प्रेक्षणीय दृश्य दिसते!                   

सिंगल डेकर अन डबल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज मेघालय पर्यटनाचा अविभाज्य भाग आहेत जिवंत पूल! अन ते पाहिल्यावर कवतिकाचे आणि प्रशंसेचे पूल बांधायला पर्यटक मोकळे!  म्हणजे जुन्या झाडांची मुळे एकमेकात “गुंतता हृदय हे” सारखी हवेत, अर्थात अधांतरी (आणि एखाद-दुसरी चुकलेल्या पोरांसारखी जमिनीत) अशी गुंतत गुंतत जातात, अन हे सगळं घडतं नदीपात्राच्या साक्षीनं, “जलगंगेच्या काठावरती वचन दिले तू मला” असं गुणगुणत! जसजशी वर्षे जातात, जलाचा अन प्रेमाचा शिडकावा मिळतो, तसतशी ही मुळे जन्मोजमीच्या ऋणानुबंधासारखी एकमेकांना घट्ट कव घालतात अन दिवसागणिक घालताच राहतात, मित्रांनो, म्हणूनच तर हे “लिव्हिंग रूट ब्रिज”, अर्थात जिवंत ब्रिज आहेत, काँकिटचे हृदयशून्य ब्रिज नव्हे, अन यामुळेच आपल्याला दिसतो तो प्रेमाच्या घट्ट पाशासारखा मजबूत जीता जागता मूळ पूल!

आता या मुळांच्या पुलाची मूळ कथा सांगते! साधारण १८० वर्षांपूर्वी मेघालयच्या खासी जमातीतील जेष्ठ व श्रेष्ठ लोकांनी नदी पात्राच्या अर्ध्या अंतरापर्यंत अधांतरी आलेली रबराच्या (Ficus elastica tree) झाडांची मुळे, अरेका नट पाम (Areca nut palm) जातीच्या पोकळ छड्यांमध्ये घातली, नंतर त्यांची निगा राखून काळजी घेतली. मग ती मुळे, (अर्थातच अधांतरी) वाढत वाढत विरुद्ध किनाऱ्यापर्यंत पोचलीत. तीही एकेकटी नाहीत तर एकमेकांच्या गळ्यात अन हातात हात गुंफून. या रीतीने माणसांचे वजन वाहून नेणारा आगळावेगळा असा या जिवंत पूल माणसाच्या कल्पनाशक्तीतून तयार झाला! आम्ही पाहिलेल्या सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिजला मजबूत बनवण्यासाठी भारतीय लष्कराने बांबूचे टेकू तयार केलेत. हे आश्चर्यकारक पूल पाहण्याकरता पर्यटकांची संख्या वाढतेच आहे! म्हणूनच असे आधार आवश्यक आहेत, असे कळले. नदीवर असा एक अधांतरी पूल असेल तर तो असेल सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज, मात्र एकावर एक (अर्थात अधांतरी) असे दोन पूल असतील तर तो असेल डबल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज!!! मी केवळ डबल-डेकर बस पाहिल्या होत्या, पण हे प्रकरण म्हणजे खासी लोकांची खासमखास मूळची डबल गुंतवणूक! खासी समाजाच्या त्या सनातन बायो इंजिनीयर्सला माझा साष्टांग कुमनो! असे कांही पूल १०० फूट लांब आहेत. ते सक्षमरित्या साकार व्हायला १५ ते २५ वर्षे लागू शकतात, एकदाची अशी तयारी झाली, की मग पुढची ५०० वर्षे बघायला नको! यातील कांही मुळे पाण्याच्या सतत संपर्कामुळे सडतात, मात्र काळजी नसावी, कारण इतर मुळे वाढत जातात अन त्यांची जागा घेऊन पुलाला आवश्यक अशी स्थिरता प्रदान करतात. हीच वंशावळ खासियत आहे जिवंत रूट ब्रिजची! अर्थात हा स्थानिक बायो इंजिनिअरींगचा उत्तम नमुनाच म्हणायला हवा. काही विशेषज्ञांच्या मते या परिसरात(बहुदा चेरापुंजी आणि शिलाँग) असे शेकडो ब्रिज आहेत, मात्र त्यांच्यापर्यंत पोचणे हे खासी लोकांचच काम! फार थोडे पूल पर्यटकांसाठी उपलब्ध आहेत, कारण तिथं पोचायला जंगलातील वाट आपली सत्वपरीक्षा पाहणारी, कधी निसरड्या पायऱ्या तर कधी दगड धोंडे तर कधी ओल्या मातीची घसरण!

या सर्वात “नव नवल नयनोत्सव” घडवणारा, पण ट्रेकिंग करणाऱ्या भल्या भल्या पर्यटकांना जेरीस आणणारा पूल म्हणजे “चेरापुंजीचा डबल डेकर (दोन मजली) लिव्हींग रूट ब्रिज!” मंडळी आपण शक्य असल्यास हे (एकाखाली एक ऋणानुबंध असलेले) चमत्काराचे शिखर अन मेघालयची शान असलेले “डबल डेकर लिव्हींग रूट ब्रिज” नामक महदाश्चर्य जरूर बघावे!  मात्र तिथे पोचायला जबरदस्त ट्रेकिंग करावे लागते. मी मात्र त्याचे फोटो बघूनच त्याला मनोमन साष्टांग कुमनो घातला! ‘Jingkieng Nongriat’ हे नाव असलेला, सर्वात लांब (तीस मीटर) असा हा जिवंत पूल २४०० फूट उंचीवर आहे, चेरापुंजीहून ४५ किलोमीटर दूर Nongriat या गावात! हे पूल “जागतिक वारसा स्थळ” म्हणून घोषित केलेले आहेत. 

मित्रांनो असा कुठलाही जिवंत पूल नदीवर लटकत असतो, नदीजवळ पोचायला वरच्या पर्वतराजीतून (उपलब्ध) वाटेने खाली उतरा, पूल बघा, जमत असेल तर देवाचे अन गाईडचे नाव घेत घेत तो पूल पार करा, वनसृष्टीचा आनंद घ्या.  गाईडच्या किंवा स्थानिकांच्या आदेशाप्रमाणेच पाण्याजवळ जाणे, उतरणे वगैरे कार्यक्रम उरका अन पर्वताची चढण चढा! हे जास्त दमवणारे, कारण उत्साह कमी अन थकवा जास्त! सोबत पेयजल अन जंगलातलीच काठी असू द्यावी.  कॅमेरा अन आपला तोल सांभाळत, जमेल तसे फोटो काढा! (सेल्फीचे काम जपून करावे, तिथे जागोजागी सेल्फी करता डेंजर झोन निर्देशित केले आहेत, “पण लक्षात कोण घेतो!!!”)    

मॉलीन्नोन्गपासून रस्ता आहे सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज बघायचा! मेघालयातील हे अप्रूप पहिल्यांदा बघितल्यावर त्या पुलावर चालतांना आपण कुणाच्या हृदयावर घाला घालीत आहोत असा मला खराखुरा भास झाला! आम्ही सिंगल रूट ब्रिज बघितला, तिथे जायला दोन रस्ते आहेत, मॉलीन्नोन्गपासून जाणारा कठीण, बराच निसरडा, वेडावाकडा, पायऱ्या अन कठडे नसलेला, रस्त्यात लहान मोठे दगड. मी मुश्किलीने तो पार केला.  दुसऱ्याच दिवशी एक अजून ब्रिज बघायच्या तयारीने मालिनॉन्ग मधून बाहेर पडलो, Pynursa पार केलं, इथल्या हॉटेल मध्ये बरेच पदार्थ होते. या मोठ्या गावात ATM तर आहे, पण कधी बंद असते, कधी मशीन मध्ये पैसे नसतात, म्हणून आपल्याजवळ कॅश हवीच! Nohwet या ठिकाणून खाली चांगल्या कठड्यांसहित असलेल्या पायऱ्या उतरून पोचलो तर काय, कालचाच सिंगल रूट ब्रिज दिसला की! हे डबल दर्शन सुखावणारे होते, पण इथे येणारा हा (आपल्या माहितीसाठी) सोपा मार्ग गावला.

आम्ही Mawkyrnot या गावातून वाट काढत अजून एक सिंगल रूट ब्रिज बघितला. हे गाव पूर्व खासी पर्वतातील Pynursla सब डिव्हिजन येथे वसलेले आहे. नदीकाठी पोचायला चांगल्या बांधलेल्या अन कठडे असलेल्या १००० च्या वर पायऱ्या उतरून आम्ही खाली पोचलो. पुलाच्या नावाखाली (पण नदीच्या वर तरंगत असलेला) ४-५ बांबूचा बनलेला झुलता पूल पाहून, मी याच किनारी थांबले! माझ्या घरची मंडळी (मुलगी, जावई अन नात) स्थानिक गाईडची मदत घेऊन उस-पार पोचलेत अन तिथले निसर्ग दर्शन घेऊन तिथून (बहुदा २० मीटर अंतरावरच्या) दुसऱ्याच तत्सम पुलावरून इस-पार परत आलेत. तवरीक मी इकडे देवाचे नाव घेत, जमेल तसे त्यांचे अन पुलाचे फोटो काढले. या स्थानिक गाईडने मला पायऱ्या उतरणे अन चढणे यात खूप मदत तर केलीच पण माझे मनोबल कित्येक पटीने वाढवले. या अतिशय नम्र अन होतकरू मुलाचे नाव Walbis, अन वय अवघे २१! दुपारी जेवणानंतर माझ्या घरच्या मंडळींना या पेक्षाही जास्त काठिण्यपातळी असलेल्या शिलियांग जशार (Shilliang Jashar) या गावातील बांबू ब्रिजवर जायचे होते, मी मात्र गाईडच्या सल्ल्यानुसार व माझ्या आवाक्यानुसार त्या पुलाच्या वाटेकडे वळलेच नाही.   

प्रिय वाचकहो, पुढील प्रवासात आपण डॉकी आणि चेरापुंजी येथे अद्भुत प्रवास करणार आहोत. तयारीत ऱ्हावा

तर आतापुरते खुबलेई! (khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)

टीप – लेखातील माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेटवर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो आणि वीडियो (काही अपवाद वगळून) व्यक्तिगत आहेत!

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 34 – कण-कण जहरीला है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कण-कण जहरीला है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 33 – कण-कण जहरीला है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

परवशता में छोड़ गाँव 

हम शहर चले आये 

एक बार टूटे रिश्ते

फिर कभी न जुड़ पाये 

हमने मेहनत कर

खेतों में अन्न उगाया है 

हम मजदूरों से 

मालिक ने वैभव पाया है 

बदले में श्रमिकों ने

अक्सर कोड़े ही खाये 

राशन की दुकानों में भी 

बड़ी कतारें हैं 

लाचारी की नाव

और जर्जर पतवारें हैं 

तृष्णा की भँवरों में

बेबस डूबे उतराये 

दम घुटता है यहाँ 

जहाँ कण-कण जहरीला है 

उजले कागज पर हो जाता 

काला-पीला है 

अस्मत के आभूषण तक

हम बचा नहीं पाये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 110 – जीवन का लेखा-जोखा है… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना  “जीवन का लेखा-जोखा है…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 110 – जीवन का लेखा-जोखा है ☆

जीवन का लेखा-जोखा है।

जिन्दा रहे तभी चोखा है।।

सही राह पर जब हम चलते,

सच्ची दौलत का खोखा है।।

गीता में उपदेश लिखा सुन,

रिश्ते-नाते सब धोखा है।

जब-जब श्रम सम्मानित होता,

बहे-पसीने को सोखा है।

जीवन-धन सबने है पाया,

सबका  भाग्य  अनोखा है।

तन का मकाँ बनाया उसने,

इन्द्रियाँ-आँख झरोखा है।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 175 – झरोखा – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक संवेदनशील लघुकथा झरोखा”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 175 ☆

☆ लघुकथा – 🏠 झरोखा 🏠 

मन को भाए आनंदित, हर्षित, उमंग, और प्रेम से भरा बहुत ही सुंदर शब्द झरोखा। बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर उनकी बातें सुनने में झरोखे में ही पूरी  रात की चर्चा हो जाती है। मन को अति प्रेमिल रोशन करती वह रोशनदान जिसे झरोखा कहें, न जाने कितने प्रेम गीत इस झरोखे पर बने और जीवन पर आधारित कहानी बनी।

रोमांचित करता झरोखा आज नवल किशोर को बहुत ही झकझोर रहा था। एक समय था जब उसके प्रेम में पागल वह दीवानी बस झरोखे से ही उसे देखा करती। न बातचीत ना कोई संदेश न और न मोबाइल का चलन कि झटपट मैसेज लिख दिया जाए। दिन का उजाला कोई देख न ले इस बात से, वह झरोखा सिर्फ पर्दा हिलता नजर आता।

सांझ ढले दीप जले कभी टिक-टाक बिजली का बटन जब जल बुझ जाए, झरोखा अपनी कहानी बनाना शुरु करती।

यूं ही मस्ती भरी शाम रात ढलते न जाने कितना समय निकल गया। नवल किशोर बस उस झरोखे का दीदार करते रहता था।

बस एक झलक और फिर टकटकी। यही पूरे दिन रात का काम हुआ करता था। पेशे से वकील न जाने कितने केस के बारे में पढ़ता और मनन करता।

परंतु जीवन का यह  झरोखा किसी जज के ऑर्डर की तरह मन की और भी व्याकुलता को बढ़ा रहा था।

आज वह ठान चुका था कि इस झरोखे पर वह जबरदस्त बिल पास करेगा। चाहे अंजाम कुछ भी हो।

नए वर्ष का जश्न गाँव, शहर, गली, मोहल्ला, सिटी सभी जगह अपने शबाब पर था। नवल किशोर खास समय के इंतजार में था। शहर में पढ़ा लिखा। भोर होते ही चल पड़ा उस झरोखे की ओर।

नए वर्ष की शुभकामना और बधाइयाँ  कुछ बात कह दूंगा। द्वार खुला एक वयोवृध्द दादा जी ने दरवाजा खोला— नवल किशोर प्रणाम करके ‘नूतन वर्ष मंगलमय हो’ – – अभी वह कुछ कह भी नहीं पाया कि रंग विहीन श्वेत फटी साड़ी में लिप्त वह झरोखा में जिसे देखा करता।

आज देखते ही आँखें बाहर होने लगी। अपने आप को संभाल वह उसे देखने लगा और देखते-देखते उसकी आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी।

हाथों में सिंदूर का डिब्बा था। मुट्ठी बंद, खोलती, बंद करती वह यही कह रही थी – – – “क्या अब भी आप???” बस इतना सुनना था उंगली से उसका मुँह बंद करते हुए नवल किशोर ने– सिंदूर ले माँथे पर लगा कहने लगा – – “अब यह झरोखा मेरे जीवन की रोशनी होगी सदा सदा के लिए। नूतन वर्ष में हमारे नये जीवन की शुरुआत करते!!!!!”

🙏 🚩🙏

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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