हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-४ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-४ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(पिछला मॉलीन्नोन्ग, चेरापुंजी और भी कुछ)

प्रिय पाठकगण,

कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

मुझे यकीन है कि, मॉलीन्नोन्ग का यह सफर आपको आनंददायक लग रहा होगा| इस प्यारे गाँव के बारे में कुछ रह गया था बताना, वह है यहाँ का खाना और नाश्ता, मेरी सलाह है कि यहाँ प्रकृति का ही अधिक सेवन करें। यहाँ काफी घरों में (६०-७०%) ‘होम स्टे’ उपलब्ध है| अग्रिम आरक्षण उत्तम रहेगा! मात्र कुछ एक घरों में ही (मैनें ४-५ देखे) खाना और नाश्ता मिलता है! ज्यादा अपेक्षाऐं न रखें,  इससे अपेक्षाभंग नहीं होगा! ब्रेड बटर, ब्रेड आम्लेट, मॅगी और चाय-कॉफी, बस नाश्ते की लिस्ट ख़त्म! खाने में थाली मिलती है, २ सब्जियां (उसमें एक पर्मनन्ट आलू की), दाल और चावल, एक जगह रोटियां थीं, दूसरी जगह आर्डर देकर मिलती हैं| नॉन वेज थाली में अंडे, चिकन और मटन रहता है| यह घरेलु सर्विंग टाइम बॉउंड है, इसका ध्यान रखें। खाने के और नाश्ते की दरें एकदम सस्ती! कारोबार घर की महिला सदस्यों के हाथों में (मातृसत्ताक राज)! यहाँ सब्जियां निकट के बड़े गांव से (pynursa)लायी जाती हैं, हफ्ते में दो बार भरने वाले बाजार से! मालवाहक होती है बेसिक गाडी मारुती ८००! बड़े गांव में बच्चों को लाना, ले जाना भी इसमें ही होता है| यहाँ सदैव वर्षा होने के कारण दोपहिये वाली गाड़ी का इस्तेमाल नहीं होता, गांव वाले कहते हैं कि, इससे अपघात होने का अंदेशा हो सकता है. यहाँ ATM नही है, नेटवर्क न रहने की स्थिति में जी पे, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड किसी काम के नहीं, इसलिए अपने पास हमेशा नकद राशि होनी चाहिए!

स्काय पॉईंट (Nohwet Viewpoint)

इस क्षेत्र का दौरा करते समय, बांग्लादेश की सीमा का बारम्बार दर्शन होता है। परन्तु बांग्लादेश का एक स्काई पॉइंट बेहद खूबसूरत है। यह पॉइंट मॉलीन्नोन्ग से केवल दो किलोमीटर की दूरी पर है। बांस के पुल पर बड़े मजे से झूलते झूलते यात्रा कीजिये, एक ट्री हाउस पर स्थित इस पॉइंट तक जाइये तथा सामने का नज़ारा विस्मय चकित नज़र से देखिये| यह पॉईंट ८५ फ़ीट ऊँचाई पर है| पूरी तरह बांस से बना और पेड़ों को बांस तथा जूट की रस्सियोंसे कसकर बंधा यह इको फ्रेंडली पॉईंट, सामने के नयनाभिराम नज़ारोंके फोटो तो बनते ही हैं! परन्तु सेल्फी से सावधान मित्रों! यहाँसे सुंदर मॉलीन्नोन्ग तो दिखता ही है, अलावा इसके बांग्लादेश का मैदानी इलाका और जलसम्पदा के भी रम्य दृश्य के दर्शन होते हैं!

सिंगल डेकर और डबल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज

मेघालय पर्यटनका अविभाज्य भाग है जीते जागते पुल! और वे देखने के उपरांत कौतुक के और प्रशंसा के पुल बाँधनेको पर्यटक हैं ही! जीते जागते पुल यानि पुराने पेड़ों की जड़ें एक दूजे में “दिल के तार तार से बंधकर” हवा में अर्थात तैरते हुए (और एकाध रास्ता भटके हुए बच्चे की भांति जमीन में) ऐसी उलझते जाते हैं, और इसका साक्षी होता है नदी का जलपात्र, “जलगंगा के किनारे तुमने मुझे वचन दिया है” यह गीत गुनगुनाते हुए! जैसे जैसे वर्ष बीतते हैं, जल और प्रेम की वर्षा मिलती रहती है, वैसे वैसे ये जड़ एक दूजे को आलिंगन में कस कर जकड लेते हैं, मान लो, जनम जनम का ऋणानुबंध हो! यह दिनों दिन चलता ही रहता है| मित्रों, इसीलिये तो यह “लिव्हिंग रूट ब्रिज” है, अर्थात जीता जागता ब्रिज, कॉन्क्रीट का हृदयशून्य ब्रिज नहीं और इसीलिये हमें यह नज़र आता है प्रेमबन्धन के अटूट पाश जैसा मजबूत जडों का पुल!

अब इन जडोंकी मूल कथा बताती हूँ! लगभग १८० वर्षों पूर्व मेघालय के खासी जमात के जेष्ठ व श्रेष्ठ लोगों ने नदीपात्र के आधे अंतर तक लटकते आए रबर के (Ficus elastica tree) पेड़ों के जड़ों को अरेका नट पाम(Areca nut palm) जाति के खोखली छड़ों में डाला, उसके पश्चात् उनकी जतन से देखभाल की| फिर वे जड़ें (अर्थात हवा में तैरते हुए) लम्बाई में वृद्धिंगत होते हुए दूसरे किनारे तक पहुंच गईं| और वह भी अकेले अकेले नहीं, बल्कि एक दूजे के गले में और हाथों में हाथ डालकर| इस प्रकार मानव का भार वहन करने वाला अलगथलग ऐसा जिंदादिल पुल आदमी की कल्पनाशक्ति से साकार हुआ! हमने देखे हुए सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज को मजबूती प्रदान करने हेतु भारतीय सेना ने बांस के सहारे टिकाव तैयार किये हैं| ये आश्चर्यजनक पुल देखने हेतु पर्यटकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है! इसीलिये ऐसे सहारों की आवश्यकता है, ऐसा बताया गया| अगर नदी पर ऐसा एक हवा में तैरता पुल हो, तो वह सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज होगा, परन्तु एक के ऊपर एक (अर्थात हवा में तैरते हुए) ऐसे दो पुल हो तो वह होगा डबल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज!!! मैने केवल डबल-डेकर बस देखी थी, परन्तु यह अनोखी चीज़ यानि खासी लोगोंकी खासमखास जड़ों की डबल इन्वेस्टमेंट ही समझ लीजिए! खासी समाज के इन सनातन बायो-इंजीनियरोंको मेरा साष्टांग कुमनो! ऐसे कुछ पुल १०० फ़ीट लम्बे हैं| उन्हें सक्षमता से साकार होने को १५ से २५ वर्ष लग सकते हैं| एक बार ऐसी तैयारी हो गई, तो आगे के ५०० वर्षों की फुर्सत हो गई समझिये! यहाँ की कुछ एक जड़ें पानी से लगातार संपर्क होने के कारण सड़ जाती हैं, परन्तु चिंता की कोई बात नहीं, क्यों कि दूसरी जड़ें बढ़ती रहती हैं और पुराने जड़ों की जगह लेकर पुल को आवश्यक स्थिरता प्रदान करती हैं| यहीं वंशावली खासियत है जिंदा रूट ब्रिजकी! अर्थात यह स्थानिक बायो इंजिनिअरींग का उत्तम नमूना ही कहना होगा| कुछ विशेषज्ञों के मतानुसार इस क्षेत्र में (ज्यादातर चेरापुंजी और शिलाँग) ऐसे सैकड़ों ब्रिज हैं, पर उन तक पहुंचना खासी लोगों के ही बस की बात है! केवल थोडे ही पुल पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं क्योंकि, वहां तक पहुंचनेवाली जंगल की राह है हमारी सत्वपरीक्षा लेने वाली, कभी फिसलन भरी सीढ़ियाँ, कभी छोटी बड़ी चट्टानें, तो कभी गीली मिट्टी की गिरती हुए ढलान!

अगले भाग में सफर करेंगे चेरापुंजी के डबल डेकर (दो मंजिला) लिव्हींग रूट ब्रिज की और आप देखेंगे सिंगल लिव्हींग रूट ब्रिज साक्षात मेरी नजरों से! आइये, तब तक हम और आप सर्दियों की सुर्ख़ियों से आनन्द विभोर होते रहें!

फिर एक बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!

*गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ, उन्हें सुनकर और देखकर आपका आनंद द्विगुणित होगा ऐसी आशा करती हूँ!

मेघालय की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किया हुआ परंपरागत खासी नृत्य

“पिरपिर पिरपिर पावसाची, त्रेधा तिरपिट सगळ्यांची” बालगीत

गायिका-शमा खळे, गीत वंदना विटणकर, संगीत मीना खडीकर, नृत्य -अल्ट्रा किड्स झोन

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 2 – उलझन ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा – उलझन।) 

☆ लघुकथा –  उलझन ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

वर्षा ने अपनी मां से पूछा – मां क्या हो गया, किसका फोन था? कहीं आप की सखी का तो नहीं। हद हो गई अब तो?

देखो ! अब हम लोग उनके बच्चों को बर्दाश्त नहीं करेंगे, गाली देकर बात करते हैं, और हमारे पूरे घर को अस्त-व्यस्त कर देते हैं । सारा दिन खाने की फरमाइश करते हैं कभी मैगी, तो कभी पास्ता और कोल्ड ड्रिंक और न जाने क्या-क्या? देखो मैं कुछ नहीं बनाऊंगी। मुझसे मदद की उम्मीद मत करना!

आंटी को तो मॉल घूमना फिरना और शॉपिंग करना रहता है और हमारे पास अपने बच्चों को छोड़कर चली जाती हैं।

डैडी देखो मां को…,

बात को काटते हुए रितेश ने कहा- क्या हो गया ? फिर से तो अपनी सहेली की नौकरानी बन रही है।

क्या करोगी बेटा तुम्हारी मां खुद बेवकूफ है, और हम सब को पूरे समाज में बेवकूफ साबित करती है, पता नहीं कब तुम्हारी मां को अक्ल आएगी, मैं जा रहा हूं ऑफिस।

सुरीली ने कहा रुको- “पराठा सब्जी बना है, तुम टिफिन लेकर जाओ।”

रितेश ने कहा रहने दो, तुम्हें तो घर फूंक कर तमाशा देखने में मजा आता है।

वर्षा ने अपनी मां को गुस्से में बोला देखो मां तुम्हारे कारण डैडी भी नाराज होकर बिना टिफिन लिए चले गए?

इस समस्या का मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूं तुम कुछ मत करो बस बिस्तर पर चुपचाप लेट जाओ।

मैं तुम्हारे पैर में पट्टी बांध देती हूं, लेकिन तुम्हारी दोस्त जब आएगी तब तुम चुपचाप आंख बंद करके सोती रहना।

इतने में बाहर से रितु की चिल्लाने की आवाज आई, कहां हो नीचे मेरा ऑटो खड़ा …..?”

वर्षा बोली- “आंटी अंदर आइये, मुझे आपसे मदद चाहिए। आंटी देखिए न मम्मी को पता नहीं अचानक क्या हो गया है ? पैर में लग गई और अचानक बेहोश हो गई है। मुझे मम्मी को डॉक्टर के पास लेकर जाना है। क्या आप मम्मी को डॉक्टर के पास लेकर चलेंगी मेरे साथ, क्योंकि पापा न जाने कहां चले गए हैं, उनका फोन भी नहीं लग रहा है?

यह सब सुनकर रितु ने कहा- अरे! मैंने सुबह फोन किया था तो एकदम ठीक थी।

वर्षा ने कहा – हां आंटी लेकिन उसी के बाद जब काम करने मम्मी किचन में गई तो उनका पैर फिसल गया आंटी आप तो मम्मी की अच्छी दोस्त हैं आप प्लीज मदद करेंगी।

रितु ने कहा- मुझे एक बहुत जरूरी काम से जाना है। मैं जरूर उन्हें लेकर अस्पताल जाती। ऐसी हालत में छोड़ कर नहीं जाती। तुम ऐसा करो अपने पापा को फोन लगाने की कोशिश करते रहो? ठीक है अपना और मम्मी का ख्याल रखना, मैं चलती हूं। अपने बच्चों को लेकर रितु जल्दी से चली गई।

संध्या उठी वर्षा से बोली – हे प्रभु ! क्या अच्छे लोगों की दुनिया नहीं है?

दुनिया में नेकी का फायदा सभी लोग‌ उठाते हैं वर्षा तुमने सारी उलझन दूर कर दी इसी खुशी में शाम को पार्टी करेंगे।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 210 ☆ परदेशी पाहुणा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 210 ?

परदेशी पाहुणा ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

परदेशातला मुलगा,

दहा दिवसांसाठी घरी येतो…

अर्थात ऑफिस च्या कामासाठी,

इथेही चालूच असतं त्याचं …

ऑफिस, मित्र, आप्तेष्टांना भेटणं,

तरीही तो घरात असतो,

त्याच्या जुन्या आवडी निवडीसह,

कुठले भारतीय पदार्थ,

खायचे असतात त्याला ?

तिथे न मिळणारे ?

“हल्ली सगळीकडे

सगळं मिळत,

आईबाप सोडून”

एक घिसापीटा डायलॉग …

अनेकजण ऐकवतात!

 

दिवस भर भर

सरकतात पुढे !

निघण्याच्या दिवशी

त्याचे आवडीचे पोहे करताना आठवतं ,

तो चार वर्षांचा असताना म्हटलेलं,

“आई ,आज जगदीश च्या डब्यातले

पोहे खाल्ले, मस्त होते,

लिंबू पिळलेले!”

 

आज त्याच्यासाठी पोहे करताना,

तेच आठवलं,

म्हटलं हसून…

“आज जगदीश च्या आई सारखे,

पोहे केलेत!”

मुलं कितीही मोठी झाली,

दूर देशी गेली,

 तरी,

तरी आपल्या हाकेच्या अंतरावरच

असतं त्यांचं शैशव,

आपण खूप जपून ठेवलेलं !!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -२ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

? मी प्रवासिनी ?

☆ मनोवेधक  मेघालय…भाग -२ ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆

(मनमोहिनी मॉलीन्नोन्ग, डिव्हाईन, डिजिटल डिटॉक्स (divine, digital detox)

प्रिय वाचकांनो,

कुमनो! (मेघालयच्या खासी या खास भाषेत नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कसे आहात आपण?)

मावलीन्नोन्ग (Mawlynnong) हे अगम्य नाव असलेले गाव पृथ्वीतलावर आहे, हे माझ्या गावीही नव्हते! तिथे गेल्यानंतर या गावाचे नाव शिकता-शिकता चार दिवस लागले (१७ ते २० मे २०२२), अन गावाला रामराम करायची वेळ येऊन ठेपली. शिलाँग पासून ९० किलोमीटर  दूर असलेले हे गाव. तिथवर पोचणारी ही वाट दूर होती, घाटा-घाटावर वळणे घेता घेता गावलेले हे अगम्य अन “स्वप्नामधील गाव” आता मनात बांबूचं घर करून बसलय! त्या गावाकडचे ते चार दिवस ना माझे होते ना माझ्या मोबाइलचे! ते होते फक्त निसर्गराजाचे अन त्याच्याबरोबर झिम्मा खेळणाऱ्या पावसाचे! आजवर मी बरेच पावसाळे पाहिलेत! मुंबईचा पाऊस मला सगळ्यात भारी वाटायचा! पन या गावाच्या पावसानं पुरती वाट लावली बगा म्हमईच्या पावसाची! अन तिथल्या लोकांना त्याचे अप्रूप वगैरे काही नाही! बहुदा त्यांच्यासाठी हा सार्वजनिक शॉवर नित्याची बाब असावी! आता मेघालय मेघांचे आलय (hometown म्हणा की) मग हे त्याचेच घर झाले की, अन आपण तिथे पाहुणे असा एकंदरीत प्रकार! तो तिथं एन्ट्री देतोय हेच त्याचे उपकार, शिवाय झिम्मा खेळून पोरी दमतात, अन घडीभर विसावा घेतात, असा तो मध्ये मध्ये कमी होत होता. आम्ही नशीबवान म्हणून त्याची विश्रांतीची वेळ अन आमची तिथली निसर्गरम्य ठिकाणे पाहायची वेळ कशी का कोण जाणे पण चारही दिवस मस्त मॅच झाली! रात्री मात्र त्याची अन विजेची इतकी मस्ती चालायची, त्याला धुडगूस, धिंगाणा, धम्माल, धरपकड, अन गावातल्या (आकाशातल्या नव्हे) विजेला धराशायी करणारीच नावें शोधावी लागतील!       

मॉलीन्नोन्ग सुंदरी: सॅली!

खासी समाजात मातृसत्ताक पद्धत अस्तित्वात आहे. महिला सक्षमीकरण हा तर इथला बीजमंत्र. घर, दुकान, घरगुती हॉटेल अन जिथवर नजर जाईल तिथे स्त्रिया,  त्यांच्या साक्षरतेचे प्रमाण ९५-१००%. आर्थिक गणित याच सांभाळणार! बाहेर काम करणाऱ्या प्रत्येकीच्या गळ्यात स्लिंग बॅग(पैसे घेणे अन देणे यासाठी सुटसुटीत व्यवस्था). आम्ही देखील एक दिवस एका घरात अन तीन दिवस अन्य घरात वास्तव्य केले! तिथल्या मालकीणबाईंचे नाव Salinda Khongjee, (सॅली)! ही मॉलीन्नोन्ग सुंदरी म्हणजे इथल्या गोड गोजिऱ्या यौवनाची प्रतिनिधीच जणू! चटपटीत, द्रुत लयीत कामे उरकणारी, चेहेऱ्यावर कायम मधुर स्मित! इथल्या सगळ्या स्त्रिया मी अश्याच प्रकारे कामे उरकतांना बघितल्या! मी अन माझ्या मुलीने या सुंदर सॅलीची छोटी मुलाखत घेतली.(ही माहिती छापण्याकरता तिची परवानगी घेतली आहे) तिचं वय अवघे २९! पदरात, अर्थात जेन्सेम मध्ये (खासी पोशाखाचा सुंदर आविष्कार म्हणजे जेन्सेम, jainsem)  दोन मुली, ५ वर्षे अन ४ महिने वयाच्या, तिचा पती, Eveline Khongjee (एव्हलिन), वय अवघं २५ वर्षे! आम्ही ज्या घरात होम स्टे करून राहिलो ते घर सॅलीचं, अन ती राहत होती ते आमच्या घराच्या डाव्या बाजूचं घर परत तिचच! आमच्या घराच्या उजव्या बाजूचं घर तिच्या नवऱ्याच माहेर अर्थात तिच्या सासूचं अन नंतर वारसा हक्कानं तिच्या नणंदेचं! तिची आई हाकेच्या अंतरावर राहते. सॅलीचे शिक्षण स्थानिक अन थेट शिलाँगला जाऊन बी ए दुसऱ्या वर्षापर्यंत. (वडिलांचे निधन झाल्याने फायनल राहिले!) लग्न झालं चर्च मध्ये (धर्म ख्रिश्चन).  इथे नवरा लग्नानंतर आपल्या बायकोच्या घरी जातो! आता तिचा नवरा आमच्या घराच्या समोरून (त्याच्या अन तिच्या) माहेरी अन सासरी जातांना बघायला मजा यायची. सॅली पण काही हवं असेल तर पटकन आपल्या सासरी जाऊन  कधी चहाचे कप, तर कधी ट्रे अशा वस्तू जेन्सेमच्या आत लपवून घेऊन जातांना बघायची मजा औरच! सर्व आर्थिक व्यवहार अर्थातच सैलीकडे बरं का! नवरा बहुतेक मेहनतीची अन बाहेरची कामे करायचा असा मी निष्कर्ष काढला! घरची भरपूर कामे अन मुलींना सांभाळून देखील सॅलीनं आम्हाला मुलाखत देण्याकरता वेळ काढला, त्याबद्दल मी तिची ऋणी आहे! मुलाखतीत राहिलेला एक प्रश्न मी तिला शेवटी, शेवटच्या दिवशी हळूच विचारलाच, “तुझं लग्न ठरवून की प्रेमविवाह?” त्यावर ती लाजून चूर झाली अन “प्रेमविवाह” अस म्हणत स्वतःच्या घरात अक्षरशः पळून गेली!                          

सॅलीकडून मिळालेली माहिती अशी:

गावकरी गावचे स्वच्छतेचे नियम कसोशीने पाळतात. समजा स्वच्छता मोहिमेत भाग नाहीच घेतला तर? गावाचे नियम मोडल्याबद्दल गावप्रमुखाकडून शिस्तभंगाची कारवाई केली जाते! तिने सांगितले, “माझ्या आजीने अन आईने गावाचे नियम पाळण्याचे मला लहानपणापासून धडे दिलेत”. इथली घरे कशी चालतात त्याचे उत्तर तिने असे दिले: “होम स्टे” हे आता उत्पन्नाचे चांगले साधन आहे! याशिवाय शाली अन जेन्सेम बनवणे  किंवा बाहेरून आणून विकणे, बांबूच्या आकर्षक वस्तू बनवणे अन त्या पर्यटकांना विकणे. इथली प्रमुख पिके म्हणजे तांदूळ,  सुपारी  आणि अननस, संत्री, लीची अन केळी  ही फळं! प्रत्येक स्त्री समृद्ध, स्वतःचं घर, जमीन आणि बागा असलेली! कुटुंबानं धान अन फळे स्वतःच पिकवायची.  तिथे फळविक्रेतीने ताजे अननस कापून बुंध्याच्या सालीत सर्व्ह केले, ती अप्रतिम चव अजून रेंगाळतेय जिभेवर!  याचे कारण “सेंद्रिय शेती”! फळे निर्यात करून पैसे मिळतात, शिवाय पर्यटक “बारो मास” असतातच! (मात्र लॉकडाऊन मध्ये पर्यटन थंडावले होते.)

या गावात सर्वात प्रेक्षणीय काय, तर इथली हिरवाई, हा रंग इथला स्थायी भाव! पानाफुलांनी डवरलेल्या स्वच्छ रस्त्यांवर मनमुराद भटकंती करावी. प्रत्येक घरासमोर रम्य उपवनाचा भास व्हावा असे विविधरंगी पानांनी अन फुलांनी फुललेले ताटवे, घरात लहान मोठ्या वयाची गोबरी मुले! त्यांच्यासाठी पर्यटकांना टाटा करणे अन फोटोसाठी पोझ देणे हे नित्याचेच! मंडळी, हा अख्खा गावाच फोटोजेनिक, कॅमेरा असेल तर हे टिपू की ते टिपू ही भानगडच नाहीय! पण मी असा सल्ला देईन की आधी डोळ्यांच्या कॅमेऱ्याने डोळे भरून ही निसर्गाच्या रंगांची रंगपंचमी बघावी अन मग निर्जीव कॅमेऱ्याकडे प्रस्थान करावे! गावकुसाला एक ओढा आहे (नाला नाही हं!). त्याच्या किनारी फेरफटका मारावा! पाण्यात हुंदडावे पण काहीबाही खाऊन कचरा कुठेही फेकला तर? मला खात्री आहे की, नुकत्याच न्हायलेल्या सौंदर्यवतीसम प्रतीत होणारे हे रम्य स्थान अनुभवल्यावर तिळाइतका देखील कचरा तुम्ही कुठेही टाकणार नाही! इथे एक “balancing rock” हा निसर्गदत्त चमत्कार आहे, फोटो काढावा असा पाषाण! ट्री हाउस, अर्थात झाडावरील घर, स्थानिकांनी उपलब्ध साहित्यातून बांधलेले, तिकीट काढून बघायचं, बांबूनिर्मित वळणदार वळणाच्या वर वर जाणाऱ्या आवृत्त्या संपल्या की झाडावरील घरात जाऊन आपण किती वर आहोत याचा एहसास होतो! खालच्या अन घरातल्या परिसराचे फोटो हवेतच! शहरात घरांसाठी जागा नसेल तर हा उपाय विचारणीय, मात्र शहरात तशी झाडे आहेत का हो? इथे तीन चर्च आहेत. त्यापैकी एक “चर्च ऑफ द एपिफॅनी”, सुंदर रचना आणि बांधकाम, तसेच पानाफुलांनी बहरलेला संपूर्ण स्वच्छ परिसर. आतून बघायची संधी मिळाली नाही, कारण चर्च ठराविक दिवशी अन ठराविक वेळी उघडते!

मित्रांनो, जर तुम्हाला टीव्ही, इंटरनेट, व्हाट्सअँप अन चॅटची सवय असेल (मला आहे), तर इथे येऊन ती मोडावी लागणार! आम्ही या गावात होतो तेव्हा ९०% वेळा गावची वीज गावाला गेलेली होती! एकला सोलर-दिवा सोडून बाकी दिवे नाहीत, गिझर नाही, नेटवर्क नाही, सॅलीकडे टीव्ही नाही! आधी मला वाटले, आता जगायचे कसे? पण हा अनुभव अनोखाच होता! निसर्गाच्या कुशीतली एक अद्भुत अविस्मरणीय अन अनवट अनुभूती! माझ्या सुदैवाने घडलेला डिव्हाईन, डिजिटल डिटॉक्स!

प्रिय वाचकहो, मॉलीन्नोन्गची महती अजून गायची आहे, तर आतापुरते खुबलेई!  (Khublei) म्हणजेच खास खासी भाषेत धन्यवाद!)

डॉ. मीना श्रीवास्तव                                       

टीप – लेखात दिलेली माहिती लेखिकेचे अनुभव आणि इंटरनेट वर उपलब्ध माहिती यांच्यावर आधारित आहे. इथले फोटो (एखादा अपवाद वगळून)आणि वीडियो व्यक्तिगत आहेत!

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 32 – उत्तेजक हो रही सभ्यता… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – उत्तेजक हो रही सभ्यता।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 32 – उत्तेजक हो रही सभ्यता… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

उत्तेजक हो रही सभ्यता 

घूमे अंग उघार 

उगल रही है अतः लेखनी

शब्द नहीं अंगार 

 

होड़ लगी है किसने कितने 

कपड़े पहने झीने 

ललचाती श्वानों की जिव्हा 

यौवन का रस पीने 

चैनल सभी परोस रहे हैं

टी. वी. पर व्याभिचार 

 

कौये और हंस में 

कोई अन्तर नहीं रहा 

कोका और पेप्सी में 

अब चातक नहा रहा 

करता है पथभ्रष्ट सभी को

भड़कीला बाजार

 

सांस्कृतिक संकल्पों को 

तृष्णा ने तोड़ा है 

हरियाली चर रहा 

पुष्ट दौलत का घोड़ा है 

विश्वग्राम बन गया, बेचने

विध्वंसक हथियार

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 109 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 109 – मनोज के दोहे… ☆

1 रतजगा

सैनिक करता रतजगा, सीमा पर है आज।

दो तरफा दुश्मन खड़े, खतरे में है ताज।।

2 प्रहरी

उत्तर में प्रहरी बना, खड़ा हिमालय राज।

दक्षिण में चहुँ ओर से, सागर पर है नाज।।

3 मलीन

मुख-मलीन मत कर प्रिये,चल नव देख प्रभात।

जीवन में दुख-सुख सभी, घिर आते अनुपात।।

4 उमंग

पुणे शहर की यह धरा, मन में भरे उमंग।

किला सिंहगढ़ का यहाँ, विजयी-शिवा तरंग।।

5 चुपचाप

महानगर में आ गए, हम फिर से चुपचाप।

देख रहे बहुमंजिला, गगन चुंबकी नाप ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 248 ☆ व्यंग्य – शरद जोशी और लघु व्यंग्य ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य – शरद जोशी और लघु व्यंग्य)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 248 ☆

? व्यंग्य – शरद जोशी और लघु व्यंग्य ?

लघु व्यंग्य से आशय यही होता है कि उसका विस्तार अधिक न हो, किंतु न्यूनतम शब्दों में व्यापक कथ्य संप्रेषित किया गया हो। क्षणिकाओ में यही लघु व्यंग्य कविता के स्वरूप में तो लघुकथाओ के ट्विस्ट में गद्यात्मक रूप में पत्र पत्रिकाओ में बाक्स मैटर के रूप में खूब पढ़ने मिलता है। व्यंग्य लेखों में अनेक पैराग्राफ स्वयं में स्वतंत्र लघु व्यंग्य होते हैं। कुछ व्यंग्यकार स्तंभ की मांग के अनुसार घटना विशेष पर टिप्पणियों में लघु व्यंग्य रचना में स्वयं को समेट लेते हैं। इसे व्यंग्य आलोचना में वन लाइनर, पंच, हाफ लाइनर आदि के टाइटिल दिये जाते हैं। छोटे व्यंग्य लेख जिनमें प्रस्तावना, विस्तार तथा कथ्य के शिक्षाप्रद कटाक्ष के साथ लेख का अंत होता है, भी लघु व्यंग्य की श्रेणि में रखे जा सकते है।

शरद जोशी के समकाल में लघु व्यंग्य जैसी कोई श्रेणि अलग से नहीं की गई थी, यद्यपि सरोजनी प्रीतम उन दिनों कादम्बनी में अपनी क्षणिकाओ में लघु व्यंग्य के प्रहार नियमित रूप से करती दिख रही थीं।

आज शरद जोशी के साहितय का पुनरावलोकन लघु व्यंग्य के माप दण्ड पर करें तो हम पाते हैं कि उनके स्तंभ प्रतिदिन में तात्कालीन सामयिक घटनाओ पर अनेक लघु व्यंग्य उन्होने किये थे। उनकी  पुस्तक यथा संभव में १०० व्यंग्य लेख सम्मिलित हैं, जिनमें से अनेक अंश स्वतंत्र लघु व्यंग्य कहे जा सकते हैं।

शरद जी के चर्चित व्यंग्य लेखों में से एक रेल दुर्घटनाओ पर है जिसमें वे लिखते हैं “भारतीय रेल हमें मृत्यु का दर्शन समझाती है और अक्सर पटरी से उतरकर उसकी महत्ता का भी अनुभव करा देती है. कोई नहीं कह सकता कि रेल में चढ़ने के बाद वह कहां उतरेगा स्टेशन पर, अस्पताल में या श्मशान में ” अपने आप में यह लघुता में किया गया बड़ा कटाक्ष है।

इसी तरह उनके समय से आज तक भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, उन्होने लिखा “हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे”,  अतिथि तुम कब जाओगे, जीप पर सवार इल्लियां आदि शीर्षक स्वयं में ही लघु व्यंग्य हैं। आपातकाल के दौरान पंचतंत्र की कथाओ के अवलंबन उनकी लिखी लघुकथायें गहरे कटाक्ष करती हैं “शेर की गुफा में न्याय” ऐसी ही एक लघुव्यंग्य कथा है।

नेताओं पर व्यंग्य करते हुए शरद लिखते हैं, ‘उनका नमस्कार एक कांटा है, जो वे बार-बार वोटरों के तालाब में डालते हैं और मछलियां फंसाते हैं. भ्रष्टाचार की व्यापकता पर वे लिखते हैं ‘सारे संसार की स्याही और सारी जमीन का कागज भी भ्रष्टाचार का भारतीय महाकाव्य लिखने को अपर्याप्त है। वे लेखन में प्रसिद्धि का शाश्वत सूत्र बता गये हैं “जो लिखेगा सो दिखेगा, जो दिखेगा सो बिकेगा-यही जीवन का मूल मंत्र है “। हम पाते हैं कि वर्तमान लेखन में यह दिखने की होड़ व्यापक होती जा रही है। किताबों की उम्र बहुत कम रह गई है, क्योकि किताबें छप तो बहुत रही हैं पर उनमें जो कंटेंट है वह स्तरीय नहीं रह गया है।  लघु कटाक्ष में बड़े प्रहार बात कर सकने की क्षमता  ही लघु व्यंग्य है, जो शरद जी की लेखनी में यत्र तत्र सर्वत्र दिखता है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 63 – देश-परदेश – उल्लुनामा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 63 ☆ देश-परदेश – उल्लुनामा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

बचपन में घर के बड़े बजुर्ग, शिक्षक आदि और जवानी में उच्च अधिकारी उल्लू, गधा इत्यादि की उपाधि से हमें नवाज़ा करते थे।

इन दोनों जीवों को समाज ने हमेशा तिस्कृत दृष्टि से ही दुत्कारा है। व्यापार जगत में भी इनके नाम से कोई भी वस्तु (ब्रैंड) नहीं बन सकी है।

शेर, ऊंट, मुर्गा इत्यादि के नाम से तो बीड़ी भी खूब प्रसिद्ध हुई हैं। लेकिन कभी भी उल्लू या गधे के नाम से कोई भी प्रतिष्ठान कार्यरत सुनने में नहीं आया।

“यहां गधा पेशाब कर रहा है” कुछ इस प्रकार के लिखे हुए शब्द दीवार पर अवश्य देखने को मिल जाते हैं। समय की मांग को देखते हुए, हो सकता है, इस वाक्य को हवाई जहाज के अंदर भी लिखा जा सकता है।

उपरोक्त फोटू में प्रथम बार “समझदार उल्लू (wise owl)” के नाम से पेड़ पर बांधे जाने वाले झूले विक्रय के लिए उपलब्ध देखने को मिला, वैसे उल्लू भी अधिकतर पेडों पर ही पाए जाते हैं। लक्ष्मी देवी की सवारी भी तो उल्लू ही है।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #217 ☆ तुझ्यासारखा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 217 ?

तुझ्यासारखा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

कधी वागतो अवखळ वारा तुझ्यासारखा

वादळ होता करतो मारा तुझ्यासारखा

अंधारी ती रात्र छळाया मला लागली

कुठेच नव्हता प्रसन्न तारा तुझ्यासारखा

अवकाळीच्या वर्षावाने चिंब नहाते

देतच नाही तो गुंगारा तुझ्यासारखा

काय शिकवले सांगशील का वाऱ्या त्याला

त्यानेही केला पोबारा तुझ्यासारखा

मी माहेरी आले आहे तुला सोडुनी

अन् बापाचा चढला पारा तुझ्यासारखा

कष्ट सोसुनी घास आणतो अमुच्यासाठी

गोड वाटतो बाबा चारा तुझ्यासारखा

आश्रमातला मनुष्य होता मला भेटला

वाटत होता तो म्हातारा तुझ्यासारखा

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 168 – गीत –क्यों कर पालिश करती हो ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – क्यों कर पालिश करती हो।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 168 – गीत – क्यों कर पालिश करती हो…  ✍

सुन्दर सुन्दर नाखूनों पर

क्यों कर पालिश करती हो।

रूपभार से झुकी देह पर

भार भला क्यों धरती हो।

 

साज बाज की उसे जरूरत

जिसके पास कमी होती

वो क्यों पत्थर करे इकट्ठे

जिसके पास रखा मोती

अनबींधे मोती सा यौवन, पास रखे क्यों डरती हो

 

साधारण शृंगार तुम्हारा

सच, विशेष सा लगता है।

चन्द्रानन को देख देखकर

मन में ज्वार उमगता है.

औ हँसे चंदनिया, कैसे धीरज धरती हो

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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