(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना…“)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 91 ☆
हाथों को मिलाना है महज रस्म निभाना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
(वरिष्ठ साहित्यकारडॉ सत्येंद्र सिंह जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में 40 वर्ष राजभाषा हिंदी के शिक्षण, अनुवाद व भारत सरकार की राजभाषा नीति का कार्यान्वयन करते हुए झांसी, जबलपुर, मुंबई, कोल्हापुर सोलापुर घूमते हुए पुणे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद से 2009 में सेवानिवृत्त। 10 विभागीय पत्रिकाओं का संपादन, एक साझा कहानी संग्रह, दो साझा लघुकथा संग्रह तथा 3 कविता संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी झांसी, जबलपुर, छतरपुर, सांगली व पुणे महाराष्ट्र से रचनाओं का प्रसारण। जबलपुर में वे प्रोफेसर ज्ञानरंजन के साथ प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे और झाँसी में जनवादी लेखक संघ से जुड़े रहे। पुणे में भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मानवता के प्रति समर्पित चिंतक व लेखक हैं। अप प्रत्येक बुधवार उनके साहित्य को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “जल है तो कल है…“।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # 5 ☆
लघुकथा – जल है तो कल है… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆
जल की उपयोगिता और आवश्यकता बताने के लिए तरह तरह के नारे लगाए जा रहे हैं। रणजीत जब भी घर में देखता है कि नल चल रहा है और उसकी मम्मी बर्तन घिस रही है। यानी पानी बेकार बह रहा है। वह चीख पड़ता है, “मम्मी, प्लीज़, नल तो बंद कर दो, पानी बेकार बह रहा है। अगर ऐसे ही पानी बहाना है तो यह स्लोगन क्यों टाँग रखा है, “जल है तो कल है।”
रणजीत घर से बाहर निकल जाता है। उसका मन उदास हो जाता है। अभी वह दस वर्ष का है और सोचता है ” जब मैं जवान होऊंगा तो पानी की हालत क्या होगी। क्या हम प्यासे ही मर जाएंगे?” वह अपनी गर्दन झटकता है, “नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। अपने भविष्य के लिए कुछ करना होगा।” सोहन की आवाज़ सुनकर वह होश में आता है। सोहन पूछता है,”कहाँ खोए हुए थे।” विचारमग्न अवस्था में रणजीत ने सोहन से पूछा, ” तुम्हारे घर में ऐसा होता है कि नल चलता रहे और पानी बहता रहे।” सोहन बोला, “हाँ होता है, माँ बर्तन माँजती है तो नल चलता रहता है। ऐसे ही नहाते समय भी होता है कि हम साबुन लगा रहे होते हैं पर नल चलता रहता है। लेकिन हुआ क्या?”
रणजीत ने धीरे से कहा, ” यार ऐसे ही चलता रहा तो हम बड़े होकर प्यासे ही मर जाएंगे। हमारे लिए तो पानी बचेगा ही नहीं। सब कहते हैं, जल है तो कल है, पर कल की चिंता तो किसी को है ही नहीं।” सोहन बोला, ” हाँ रणजीत मैंने जगह जगह लिखा देखा है, जल है तो कल है, पर पानी बरबाद करते रहते हैं। मैंने बड़े लोगों के मुँह से सुना है कि जमीन में पानी का लेवल नीचे चला गया है, पीने के पानी का संकट बढता जा रहा है।” रणजीत बोला, ” यही तो मेरी चिंता है पर हम छोटे बच्चे हैं, करें क्या?” सोहन बोला, “कहते तो तुम ठीक हो। क्या स्कूल में अपनी मिस से बात करें। वो बहुत अच्छी हैं और बड़ी भी हैं, हमारी बात सुनेंगी और कुछ करेंगी भी। घर में तो किसी से कहना बेकार है। ऐसी बातों को फालतू समझते हैं।” “तो मिला हाथ, कल मिस से बात करेंगे।” सोहन गर्व से बोला। लेकिन दोनों बच्चों ने और प्रयास किए और अपनी क्लास के बच्चों को भी बताया। पूरी क्लास के बच्चे मिस से बात करने को तैयार हो गए।
जब मिस से बात की तो वह बहुत प्रभावित हुई और उसने कहा कि शुरूआत घर से ही होनी चाहिए। उसने कहा ” घर जाकर एक तख्ती पर लिखना “हमारी रक्षा करो, जल है तो कल है, और हम ही कल हैं।” और दो दो या चार बच्चे वह तख्ती लेकर अपनी सोसायटी में मेन गेट के पास ऐसे खड़े होना कि आने जाने वाले सभी लोग तख्ती देख पढ सकें।”… “और हाँ अगले दिन तख्ती लेकर स्कूल में आ जाना।” बच्चों ने ऐसा ही किया। लोग रुकते और तख्ती पढकर अपने घर चले जाते। रणजीत जब अपने घर पहुँचा तो उसकी मम्मी ने बड़े लाड़ से अपने पास बिठाया और दोनों कानों पर हाथ रखकर कहने लगी ” सॉरी रणजीत, ऐसी गलती अब नहीं होगी।” ऐसा ही कुछ सोहन के यहाँ भी हुआ। रणजीत अपनी सफलता पर बहुत खुश हुआ। अगले दिन रणजीत की क्लास के बच्चे स्कूल पहुँचे तो अपने अपने घर के अनुभव मिस को सुनाए। अब मिस ने स्कूल छूटने के समय उन बच्चों को एक कतार में खड़ा कर दिया जहाँ बच्चों को लेने पेरेंट्स आते हैं। सभी बच्चों के पेरेंट्स ने पढा। दूसरे दिन स्कूल के सभी बच्चे तख्ती बनाकर ले आए। और तख्ती हाथ में लेकर स्कूल से निकलने लगे।
मिस ने बच्चों को समझाया कि जब किसी चौराहे पर लाल बत्ती देखकर तुम्हारी गाड़ी रुक जाए तो गाड़ी से उतर कर सबको तख्ती दिखलाओ। धीरे धीरे तख्ती की खबर मीडिया तक पहुँची। और अखबारों तथा चैनलों पर इसकी चर्चा होने लगी। रणजीत और सोहन बहुत खुश थे कि उन्होंने अपने कल के लिए कुछ तो किया। अपना कल बचाने की दिशा में एक छोटा सा कदम।
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मिस मैचिंग।)
एक रिसोर्ट में पार्टी हैं ऑफिस के सभी लोग अपने परिवार के साथ आ रहे हैं। मेरे बॉस सुशांत सर ने कहा है कि तुम्हें जरूर आना है। तुम ठीक 1:00 बजे पहुंच जाना अरुण ने फोन पर कहा। घर के काम और सभी की सेवा में रोज लगी रहती हो देखना देर नहीं होनी चाहिए?
प्राची ने अपनी सास से कहा कि मां मुझे ऑफिस की पार्टी में जाना है घर का सारा काम हो चुका है मैं 11:00 बजे निकलती हूं तभी समय पर वहां पहुंच पाऊंगी।
सास ने हां कर दी बोली तुम जाओ तुम्हारे पति को बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है। उसने जीवन में कोई काम अच्छा नहीं किया। लेकिन, तुम्हें चुनकर हमारे लिए यह काम सबसे अच्छा किया है।
वह तैयार होकर पीले परिधान में जाती है पर उसका उसे शूट के साथ का दुपट्टा नहीं मिल रहा था इसलिए उसने लाल रंग का दुपट्टा डाला और एक पीला शॉल लेकर घर से बाहर निकली।
उसे विचार आया कि क्यों ना मैं सिटी बस में बैठकर आराम से जाती हूं, एंजॉय करते हुए जैसे कॉलेज में अपनी सखियों के साथ जाती थी। बस में बैठकर उसने कंडक्टर से कहा जब सिटी पार्क आएगा तो मुझे बता देना ।
बस पूरी खचाखच भरी थी उसमें कुछ बेचने वाले भी चढ़ गए थे। कई लोग खरीद भी रहे थे। उसने भी दो कान के झुमके और चूड़ियां खरीद लिया।
फिर सोचने लगी की कॉलेज के दिन कितने अच्छे थे तब अरुण मेरा कितना ख्याल भी रखते थे लेकिन यह नहीं पता था कि वह अकाउंटेंट और गणित में इतना खो जाएंगे। एक-एक चीज का हिसाब किताब रखेंगे। अब तो पल-पल और सांसों का भी हिसाब किताब रखते हैं।
काश! मैं भी कुछ काम करती लेकिन घर में सब लोगों के चेहरे पर खुशी देखकर मुझे एक शांति मिलती है।
तभी फोन की घंटी बाजी। उसने उठाया और कहा हेलो इतनी देर से मैं तुम्हें फोन कर रहा हूं तुम फोन उठा क्यों नहीं रही हो, घर से निकली या नहीं?
हां मैं घर से निकल चुकी हूं आप चिंता मत करो सिटी पार्क में आपको मिल जाऊंगी। आधे घंटे में मैं वहां पहुंच जाऊंगी। अरे तुम तो जल्दी आ गई। ठीक है मैं भी ऑफिस से वहां पर पहुंच जाता हूं। वह जैसे ही बस से उतरती है तो देखती है कि अरुण वहीं पर खड़ा है। तुमने झूठ क्यों कहा कि तुम देर से पहुंचोगे।
यह तुमने क्या पहन रखा है?
आज के दिन पीला कलर का कपड़ा पहनना चाहिए और मुझे दुपट्टा नहीं मिल रहा था ? आजकल फैशन भी यही है?
अरुण धीरे से मुस्कुराया। तुम अच्छी लग रही हो।
मैं या मेरे कपड़े प्राची ने कहा।
तुम्हारे कपड़े भी हमारी तरह है हम लोग भी अलग होकर एक है मिस मैचिंग।
प्राची ने कहा – जिस तरह खिचड़ी संक्रांति में सब कुछ डालकर बनती है हम लोग भी ऐसे हैं।
दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर रिसोर्ट में जल्दी जल्दी जाने लगते हैं।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 221 – कथा क्रम (स्वगत)…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “क्या चिड़ियों के नये घोंसले...”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 221 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “क्या चिड़ियों के नये घोंसले...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆
पद : प्राचार्य,सी.पी.गर्ल्स (चंचलबाई महिला) कॉलेज, जबलपुर, म. प्र.
विशेष –
39 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव। *अनेक महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के अध्ययन मंडल में सदस्य ।
लगभग 62 राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध-पत्रों का प्रस्तुतीकरण।
इंडियन साइंस कांग्रेस मैसूर सन 2016 में प्रस्तुत शोध-पत्र को सम्मानित किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान शोध केंद्र इटली में 1999 में शोध से संबंधित मार्गदर्शन प्राप्त किया।
अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘एनकरेज’ ‘अलास्का’ अमेरिका 2010 में प्रस्तुत शोध पत्र अत्यंत सराहा गया।
एन.एस.एस.में लगभग 12 वर्षों तक प्रमुख के रूप में कार्य किया।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में अनेक वर्षों तक काउंसलर ।
आकाशवाणी से चिंतन एवं वार्ताओं का प्रसारण।
लगभग 110 से अधिक आलेख, संस्मरण एवं कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
प्रकाशित पुस्तकें- 1.दृष्टिकोण (सम्पादन) 2 माँ फिट तो बच्चे हिट 3.संचार ज्ञान (पाठ्य पुस्तक-स्नातक स्तर)
(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व “मानवीय मूल्यों को समर्पित- पूर्व महाधिवक्ता स्व.यशवंत शंकर धर्माधिकारी” के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
☆ “जिनकी रगों में देशभक्ति का लहू दौड़ता था – स्व. सवाईमल जैन” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆
गौर वर्ण, ऊंची कद काठी वाले जबलपुर के पूर्व विधायक स्व. सवाईमल जी का व्यक्तित्व भी ऊंचा, गरिमापूर्ण और देशभक्ति के जज्बे से परिपूर्ण था। 30 नवम्बर 1912 में संस्कारधानी में श्री पूसमल एवं श्रीमती लक्ष्मी देवी जैन के परिवार में जन्मे सवाईमल जी की कर्मभूमि जबलपुर ही रही। आप बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि के थे । तत्कालीन समय में देश की गुलामी, शासकाें के मनमाने अत्याचारों ने उनके मन को उद्वेलित कर दिया। उनके मन में विरोध की चिंगारी सुलग उठी जिसने शीघ्र ही विद्रोह का रूप धारण कर लिया, उन्हें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने प्रेरित एवं विवश किया । 1930 के जनआंदोलन में उन्होंने सक्रियता के साथ भाग लिया, फलस्वरूप उन्हें स्कूल की शिक्षा से हाथ धोना पड़ा यद्दपि बाद में उन्होंने बी.कॉम. के साथ कानून की पढ़ाई भी की। देश-प्रेम की अटूट भावना के साथ वे जन आंदोलन में निरंतर भाग लेते रहे । मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्हें एक वर्ष के लिए जेल जाना पड़ा । जेल से बाहर आते ही वे पुनः आजादी प्राप्त करने की गतिविधियों और तरकीबों में जुट गए । 1932 के जन आंदोलन में उन्हें पुनः गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इस बार उन्हें 6 महीने का कठोर कारावास एवं 20 रु. का जुर्माना भी लगाया गया। श्री सवाईमल जी अत्यंत स्वाभिमानी थे। सश्रम करवास के बाद उन्होंने जुर्माना भरने से इनकार कर दिया । इस कारण उनकी सजा डेढ़ माह के लिए और बढ़ा दी गई । शरीर जहाँ कष्ट में तप रहा था, वहीं संकल्प और मजबूत होता जा रहा था। उनका स्वाभिमान और आत्मविश्वास मानो कह रहा हो –
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हमसे ज़माना है ज़माने से हम नहीं।
देश प्रेम की ऊर्जा से भरे युवा सवाईमल जी ने1939 के त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और इसी बीच उनकी सक्रियता ने उन्हें पुनः 6 माह के लिए नागपुर जेल में भेज दिया। जेल से रिहा होते ही पुनः पूरी शिद्दत और जुनून के साथ आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। राष्ट्र को परतंत्रता से मुक्त कराने उन्होंने युवाओं की टोली बनाई। नई-नई तरकीबों के साथ उन्होंने अपनी गतिविधियां जारी रखीं । अच्छे नेतृत्व के साथ वे स्वतंत्रता प्राप्ति की रणनीति बनाकर कार्य करने लगे । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिगत हो गए किंतु अब तक वे अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बन चुके थे अन्ततः क्रांतिकारी सवाईमल जी को गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार उन्हें 1 साल 10 माह 24 दिन की कठोर यातना के साथ कारागार में दिन बिताने पड़े। उनके संघर्ष की यात्रा चलती रही। उन जैसे वीर सपूतों के प्रयास से देश स्वतंत्र हुआ ।
श्री सवाईमल जी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1952 से 1964 तक नगर निगम के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया । इस बीच वे जबलपुर नगर के दो बार महापौर भी निर्वाचित हुए । 1970 के उपचुनाव में वे जबलपुर पश्चिम क्षेत्र से विधायक चुने गए पुनः 1972 में विधायक बनकर उन्होंने अपने क्षेत्र के विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया ।
शहर के सामाजिक, व्यापारिक संस्थाओं में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा । प्रांत के प्रसिद्ध औद्योगिक प्रतिष्ठान परफेक्ट पॉटरी कंपनी के उच्च प्रशासनिक पदों पर कार्य किया एवं वित्तीय सलाहकार भी रहे । शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें विशेष रुझान था । शैक्षणिक संस्थाओं के उन्नयन हेतु भी उन्होंने अनेक कार्य किए । महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति जिसके द्वारा प्रथम प्रतिष्ठित चंचलबाई महिला महाविद्यालय संचालित हुआ वे उसके 1977 से 1994 तक निरंतर अध्यक्ष रहे तथा उसे नई ऊंचाईयां दी।
1960 में सोवियत संघ एवं 1976 में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में विदेश यात्रा की । भारत सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में उनके विशेष योगदान हेतु स्वतंत्रता दिवस की 25 वीं वर्षगांठ पर उनको ताम्रपत्र प्रदान कर सम्मानित किया ।
देश के गौरव श्री सवाईमल जैन जी का 82 वर्ष की आयु में 09 जनवरी 1994 को देहांत हो गया। उनके लिए केवल यही कहा जा सकता है कि –
जो शख्स मुल्क में लाता है इंकलाब
उसका चेहरा जमाने से जुदा होता है।
राष्ट्रभक्त, राष्ट्रपुत्र स्व. सवाईमल जैन जी को शत-शत नमन ….
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मिलकर बात करो…”।)
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘दो हैसियतों का किस्सा‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 272 ☆
☆ व्यंग्य ☆ दो हैसियतों का किस्सा ☆
बब्बन भाई पुराने नेता हैं। राजनीति के सभी तरह के खेलों में माहिर। लेकिन इस बार वे विवाद में पड़ कर सुर्खियों में आ गये। बात यह हुई कि अपनी जाति के एक सम्मेलन में जोशीला भाषण दे आये कि हमें अपनी जाति की रक्षा करना चाहिए, अपनी जाति के अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए, हमारी जाति का गौरवशाली इतिहास है, हमारी जाति की जानबूझकर उपेक्षा की जा रही है।
अखबारों ने उनके भाषण को उछाल दिया और उनकी लानत-मलामत शुरू कर दी कि बब्बन भाई जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता ने अपनी जाति की वकालत क्यों की। विरोधियों को मौका मिल गया। उन्होंने वक्तव्य दे दिया कि बब्बन भाई जातिवादी, संकीर्ण विचारों वाले हैं और कहा कि वे अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
इसी हल्ले-गुल्ले की पृष्ठभूमि में मैं बब्बन भाई के दर्शनार्थ गया। बब्बन भाई उस वक्त कुछ खिन्न मुद्रा में तख्त पर मसनद के सहारे अधलेटे थे। सामने मेज़ पर पानदान था और उसकी बगल में दो टोपियां तहायी रखी थीं— एक सफेद और दूसरी पीली।
मैंने उनके बारे में उठे विवाद का ज़िक्र किया तो बब्बन भाई कुछ दुखी भाव से बोले, ‘दरअसल बंधुवर, इस प्रकार के विवाद नासमझी से पैदा होते हैं। अखबार वाले यह नहीं समझते कि आदमी की दो हैसियत होती हैं, एक उसकी निजी हैसियत और दूसरी सामाजिक या सार्वजनिक हैसियत। अब मैं सार्वजनिक जीवन में आ गया तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि मेरी निजी हैसियत खत्म हो गयी। यही नासमझी सारे विवाद की जड़ में है।’
मैंने कहा, ‘लेकिन बब्बन भाई, क्या निजी हैसियत और सामाजिक हैसियत अलग-अलग हो सकती है?’
बब्बन भाई आश्चर्य से बोले, ‘क्यों नहीं हो सकती भाई? मैं एक जाति, धर्म में पैदा हुआ। मैंने जाति, धर्म को चुना तो है नहीं। तो जन्म के कारण मेरी धार्मिक, जातिगत हैसियत तो अपने आप बन गयी न? और जब हैसियत बन गयी तो धर्म से, जाति से अलग कैसे रहूंगा भला?’
मैंने कहा, ‘लेकिन आपकी पार्टी तो धर्मनिरपेक्ष और जातिवाद के खिलाफ होने की घोषणा करती है।’
बब्बन भाई मसनद पर मुट्ठी पटक कर बोले, ‘मैं भी वही मानता हूं, एकदम सौ प्रतिशत ।लेकिन सार्वजनिक हैसियत में। सार्वजनिक हैसियत में तो मैं पार्टी के सिद्धान्तों से टस से मस नहीं होता। आपने अभी पंद्रह दिन पहले राजनगर में दिये गये मेरे भाषण की रिपोर्ट नहीं पढ़ी?’
मैंने कहा, ‘बब्बन भाई, यह तो भारी घालमेल है। एक ही शरीर में दो आत्माएं कैसे रहती हैं?’
बब्बन भाई जैसे आहत हो गये, बोले, ‘भैया, कूवत हो तो दो क्या पच्चीस आत्माएं रह सकती हैं। अब आप न समझ सको तो मेरा क्या दोष?’
फिर बोले, ‘वैसे आप जैसे कनफ्यूज़्ड लोगों को समझाने के लिए मैंने रास्ता निकाल लिया है।’
वे उन दो टोपियों की तरफ इशारा करके बोले, ‘ये टोपियां देख रहे हैं न? इनमें से सफेद टोपी मेरी सार्वजनिक हैसियत की टोपी है और पीली टोपी निजी हैसियत की। जब मेरा दृष्टिकोण व्यापक, मानवीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय होता है तब मैं सफेद टोपी लगाता हूं। तब धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक-सामाजिक समानता और राष्ट्रीय हितों पर ऐसा भाषण देता हूं कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
‘जब जाति और धर्म की भावना ठाठें मारने लगती है, समानता राष्ट्रीयता की बातें मूर्खता लगने लगती हैं, दूसरे धर्म और दूसरी जातियां अपने खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं, तब पीली टोपी लगा लेता हूं। तब जाति और धर्म पर प्राण न्यौछावर करने की बात करता हूं। उस दिन मैं अपनी जाति की सभा में पीली टोपी लगाये था, लेकिन अखबार वालों ने जबरदस्ती बदनाम कर दिया।’
मैंने कहा, ‘ये तो जैकिल और हाइड वाली कहानी हो गयी।’
बब्बन भाई बोले, ‘ जैकिल और हाइड वाली कहानी कहां हुई,भाई?जैकिल तो दवा पीकर हाइड बनता था। हमारे दोनों रूप तो हमारे जन्म और हमारे सेवा-भाव से पैदा हुए हैं। फिर हाइड तो जैकिल की दुष्ट आत्मा थी। मेरे तो दोनों ही रूप शुभ हैं— एक राष्ट्र के लिए तो दूसरा धर्म और जाति के लिए।’
मैंने कहा, ‘कई बार जाति और धर्म का हित राष्ट्र के खिलाफ चला जाता है।’
वे बोले, ‘बकवास है। यह सब तुम जैसे लोगों के दिमाग का फितूर है। जब समूह का भला होगा तो राष्ट्र का भी भला होगा।’
मैंने कहा, ‘लेकिन विभिन्न समूहों में आपस में विरोध हो तो?’
बब्बन भाई बोले, ‘तो जो समूह ताकतवर हो उसका भला होना चाहिए। इसी में राष्ट्र का हित है। सरकार को भी ऐसे ही समूह का साथ देना चाहिए।’
मैंने कहा, ‘छोटी जातियों के बारे में आपका विचार क्या है?’
बब्बन भाई बोले, ‘सार्वजनिक हैसियत से बोलूं या निजी हैसियत से?’
मैंने कहा, ‘पहले सार्वजनिक हैसियत में बोलिए।’
उन्होंने झट से सफेद टोपी पहन ली और गंभीर मुद्रा बनाकर एक सुर में शुरू हो गये — ‘नीची जातियों का उत्थान हमारा कर्तव्य है। नीची जातियों ने सदियों अपमान और तकलीफ की जिन्दगी गुजारी है। हमारा कर्तव्य है कि उन्हें सुविधाएं देकर राष्ट्र की मुख्यधारा में लायें और अपने पूर्वजों की गलतियों का प्रायश्चित करें। हमें गांधी बाबा के दिखाये रास्ते पर चलना है और इस काम में कोई विरोध हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।’
मैंने कहा, ‘अब निजी हैसियत से हो जाए।’
उन्होंने फौरन सफेद टोपी उतार कर पीली टोपी पहन ली। टोपी पहनने के साथ उनकी भवें तन गयीं और स्वर ऊंचा हो गया। गरज कर बोले, ‘ये छोटी जातियां जो हैं, हमारे सिर पर बैठ गयी हैं। ये हमारी सरकार की गलत नीतियों का परिणाम है। आदमी की श्रेष्ठता जन्म से भगवान निश्चित कर देता है। जो श्रेष्ठ है वही श्रेष्ठ रहना चाहिए, उसमें सरकारी हस्तक्षेप महापाप है। पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं, इसी तरह आदमियों में भी अन्तर अनिवार्य है। सभी उच्च जातियों को चाहिए कि एक होकर अपनी श्रेष्ठता और पवित्रता की रक्षा करें और सरकार पर दबाव डालें कि जो व्यवस्था सनातन काल से चली आयी है उसमें बेमतलब हेरफेर करने की कोशिश न करे।’
वे एकदम से चुप हो गये जैसे चाबी खतम हो गयी हो।
मैंने कहा, ‘कमाल है, बब्बन भाई। आपसे तो गिरगिट भी मात खा गया। धन्य हैं आप।’
बब्बन भाई कुछ लज्जित होकर बोले, ‘मजाक छोड़िए। कम से कम आपको यकीन तो हुआ कि आदमी की निजी और सामाजिक हैसियत अलग-अलग हो सकती है।’
आठ दिन बाद सुना कि एक सभा में भाषण देते बब्बन भाई पर विरोधियों ने हमला बोल दिया। उनकी खासी धुनाई हो गयी। देखने गया तो वे जगह जगह पट्टियां बांधे लेटे थे। चेहरा सूजा था।
मैंने पूछा, ‘किस हैसियत से पिटे, बब्बन भाई?’
बब्बन भाई कराह कर बोले, ‘यह भी कोई पूछने की बात है? सार्वजनिक हैसियत में पिटा। मंच पर राजनीतिक भाषण दे रहा था। सफेद टोपी पहने था।’
मैंने कहा, ‘निजी हैसियत में पिटना कौन सा होता है?’
बब्बन भाई आंखें मींचे हुए बोले, ‘जब जमीन-जायदाद, चोरी-चकारी, बलात्कार के मामले में पिटाई हो तो वह निजी हैसियत में पिटना होता है।’
मैंने कहा, ‘रुकिए, बब्बन भाई, अभी आपकी तकलीफ दूर करता हूं।’
मैंने उन्हें पीली टोपी पहना दी, कहा, ‘मैंने आपकी हैसियत बदल दी है। अब आपकी तकलीफ कम हो जाएगी।’
बब्बन भाई ने नाराज़ होकर टोपी उतार फेंकी। बोले, ‘तकलीफ की भी कोई हैसियत होती है क्या? टोपी बदलने से क्या तकलीफ चली जाएगी? मसखरी करने के लिए यही वक्त मिला था तुम्हें?’