हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 107 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 107 – मनोज के दोहे… ☆

1 मार्गशीर्ष

मार्गशीर्ष शुभ मास यह, मिलता प्रभु सानिध्य।

भक्ति भाव पूजन हवन, ईश्वर का आतिथ्य ।।

2 हेमंत

छाई ऋतु हेमंत की, बहती मस्त बयार।

मोहक लगता आगमन, झूम रहा संसार।।

3 अदरक

अदरक औषधि में निपुण, वात पित्त कफ रोग।

तन को रखे निरोग वह, कर मानव उपयोग।।

4 चाय

विकट ठंड में चाय की, सबको रहती चाह।

अदरक वाली यदि मिले, सब करते हैं वाह।।

5 रजाई

गया रजाई का समय, हल्के कंबल देख।

ठंड नहीं अब शहर में, मौसम बदले रेख।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 153 –☆ “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास) – श्री अश्विनी कुमार दुबे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अश्विनी कुमार दुबे जी द्वारा रचित पुस्तक – “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास)  पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 153 ☆

☆ “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास) – श्री अश्विनी कुमार दुबे ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

कृति चर्चा

पुस्तक चर्चा

पुस्तक – “स्वप्नदर्शी” (भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उपन्यास)

लेखक – श्री अश्विनी कुमार दुबे

प्रकाशक – इंद्रा पब्लिशिंग हाउस, भोपाल

मूल्य – २५० रु, वर्ष २०१७

पृष्ठ – २२४

चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

☆ पुस्तक चर्चा – स्वप्नदर्शी … विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

मन से अश्विनी कुमार दुबे व्यंग्यकार हैं, उपन्यासकार और कथाकार हैं।  दुबे जी को म प्र साहित्य अकादमी, भारतेंदु पुरस्कार, अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार, स्पेनिन सम्मान आदि से समय समय पर सम्मानित किया गया है। यद्यपि रचनाकार का परिचय किसी पुरुस्कार या सम्मान मात्र से बिल्कुल नहीं दिया जा सकता। दरअसल सच ये होता है कि श्री अश्विनीकुमार दुबे के रचना कर्म के समदृश्य बहुविध लेखन करने वाले गंभीर रचनाकर्मी का ध्यान पुरुस्कार और सम्मानो के लिये नामांकन करने की ओर नहीं जाता, वे अपने सारस्वत लेखन अभियान को अधिक वरीयता देते हैं। आजीविका के लिये अश्विनी कुमार दुबे अभियंता के रूप में कार्यरत रहे हैं। उनका रचनात्मक कैनवास वैश्विक रहा है। भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के जीवन पर केंद्रित उनका उपन्यास “स्वप्नदर्शी” बहुचर्चित है। यह उपन्यास केवल व्यक्ति केंद्रित न होकर विश्वेश्वरैया जी के जीवन मूल्यों, संघर्ष और कार्य के प्रति उनकी ईमानदारी तथा निष्ठा को प्रतिष्ठित करता है। भगवान को भी जब रातों रात सुदामा पुरी का निर्माण करवाना हो तो उन्हें विश्वकर्मा जी की ओर देखना ही पड़ता है। बदलते परिवेश में भ्रष्टाचार के चलते इंजीनियर्स को रुपया बनाने की मशीन समझने की भूल घर, परिवार, समाज कर रहा है।  इस आपाधापी में अपना जमीर बचाये न रख पाना इंजीनियर्स की स्वयं की गलती है। समाज व सरकार को देखना होगा कि तकनीक पर राजनीति हावी न होने पावे। मानव जीवन में विज्ञान के विकास को मूर्त रूप देने में इंजीनियर्स का योगदान रहा है और हमेशा बना रहेगा। किन्तु जब अश्विनी जी जैसे अभियंता लिखते हैं तो उनके लेखन में भी वैज्ञानिक दृष्टि का होना लेखकीय गुणवत्ता और पाठकीय उपयोगिता बढ़ाकर साहित्य को शाश्वत बना देता है।

अश्विनी जी के विश्वेश्वरैया जी पर केंद्रित उपन्यास “स्वप्नदर्शी” में पाठक देख सकते हैं कि किस तरह वैचारिक तथ्य तथ्यो को भाषा, शैली और शब्दावली का प्रयोग कर अश्विनी जी ने अपनी लेखकीय प्रतिभा का परिचय दिया है। उन्होंने विषय वस्तु को शाश्वत, पाठकोपयोगी, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। यह जीवनी केंद्रित उपन्यास वर्ष २०१७ में प्रकाशित हुआ है अर्थात पाठक को  इसमें लेखन यात्रा में एक परिपक्व लेखक की अभिव्यक्ति देखने मिलती है। इसके लेखन के दौरान अश्विनी जी मधुमेह और उच्च रक्तचाप की बीमारियों से ग्रसित रहे हैं पर उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से उपन्यास की सामग्री संजोई और कल्पना के रंग भरकर उसे जीवनी परक उपन्यास के रोचक फार्मेट में पाठको के लिये प्रस्तुत किया है। मेरे पढ़ने में आया स्वप्नदर्शी  विश्वेश्वरैया जी पर केंद्रित पहला ही उपन्यास है। किसी के जीवन पर लिखने हेतु रचनाकार को उसके समय परिवेश और परिस्थितियों में मानसिक रूप से उतरकर तादात्म्य स्थापित करना वांछित होता है। स्वप्नदर्शी में अश्विनी जी ने विश्वेश्वरैया जी के प्रति समुचित न्याय करने में सफलता पाई है। उपन्यास से कुछ पंक्तियां उधृत हैं, जिन से पाठक अश्विनी कुमार दुबे के लेखन में उनकी वैज्ञानिक दृष्टि की प्रतिछाया का आभास कर सकते हैं।

” तुम्हें खुली आँखों से देखना और जिज्ञासु मन से समझना है। अपनी जिज्ञासा को कभी मरने मत देना “

” सिर्फ कृषि कार्यों पर निर्भर रहकर हम अपनी गरीबी दूर नहीं कर सकते, निर्धनता से लड़ने के लिये हमें अपने उद्योग और व्यापार को बढ़ाना होगा “

” इंग्लैँड में एक प्रतिष्ठित नागरिक ने विश्वेश्वरैया जी से उपहास की दृष्टि से पूछा जब सारी दुनिया अस्त्र शस्त्र बना रही थी, तब अपका देश क्या कर रहा था ? विश्वेश्वरैया जी ने तपाक से उत्तर दिया तब हमारा देश आदमी बना रहा था। उन्होंने स्पष्ट किया कि विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी इसी दौर के भारतीय हैं जिन्होंने दुनिया को शाश्वत दिशा दी है। विश्वेश्वरैया जी के इस जबाब का उस अंग्रेज के पास कोई उत्तर नहीं था “

” चमत्कारों में मेरा भरोसा नहीं है। मैं आदमी के हौसलों का कायल हूं। मैने एक स्थान देखा है जहाँ विशाल बांध बनाया जा सकता है ” …. ये मैसूर के निकट सुप्रसिद्ध कृष्णराज सागर बांध के विश्वेश्वरैया जी द्वारा किये गये रेकनाइसेंस सर्वे का वर्णन है। 

“शेष अंत में”, “जाने अनजाने दुख” और “किसी शहर में” स्वप्नदर्शी के अतिरिक्त अश्विनी कुमार दुबे  के अन्य उपन्यास हैं। यह पठनीय उपन्यास है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 61 – देश-परदेश – कुत्ता ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 61 ☆ देश-परदेश – कुत्ता ☆ श्री राकेश कुमार ☆

शब्द लिखने में थोड़ा संकोच हो रहा था, परंतु जब हमारे बॉलीवुड ने इस शब्द को लेकर तीन घंटे की फिल्म ही बना डाली, तो हमारी आत्मा ने  भी अपनी आपत्ति वापिस ले कर हमें अनुमति प्रदान कर दी इस शब्द पर चर्चा करनी चाहिये।

वैसे आजकल फिल्मों में नए नामों की कमी देखते हुए या समाज किसी विशेष नाम को लेकर बवंडर खड़ा करने से तो ऐसे शब्द ही ठीक हैं। अब ये तो होगा नहीं कि अखिल भारतीय कुत्ता समाज उनके नाम के दुरुपयोग को लेकर न्यायालय या स्वयं सड़कों पर उतर आएंगे।

इस समय इसी प्रकार के नाम ही चलन में हैं, कुछ दिन पूर्व भेड़िया नाम से भी फिल्म आई थी। पुराने समय में भी हाथी मेरे साथी, कुत्ते की कहानी आदि  जानवरों के नाम से फिल्में आ चुकी हैं।

साधारण बोलचाल की भाषा में कुत्ते शब्द का प्रयोग किसी को निम्न, गिरा हुआ, लालची आदि प्रवृत्ति के द्योतक के रूप में बहुतायत से किया जाता हैं। गली के कुत्ते, कुत्ता घसीटी जैसे शब्द भी इसी प्रवृति के प्रतीक हैं।

साम, दाम, दंड और भेद या वो व्यक्ति जो कठिन कार्य को भी येन केन प्रकारेण पूर्ण करने में महारत रखते हैं, उनको भी “बड़ी कुत्ती चीज़” है के तमगे से नवाजा जाता है।

पालतू, सजग और वफादार प्राणी होते हुए भी जब लोग खराब व्यक्ति को कुत्ता कहते हैं, तो लगता है, हम इंसानों में ही कुछ कमी है, जो हमेशा किसी की भी बुरी बातों से उसे स्मृति में रखता है।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 173 – दहकते अंगारे – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक लघुकथा “दहकते अंगारे ”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 173 ☆

☆ लघुकथा – 👁️दहकते अंगारे 👁️ 

भोर होते ही महिमा घर का सारा काम निपटाकर, जल्दी-जल्दी जाकर, स्नान घर में कपड़े से भरी बाल्टी लेकर बैठी। जोर से आवाज आई—- “कहाँ मर गई हो??” परमा की कर्कश आवाज और दहकते लाल अंगारे जैसे आँखों की कल्पना से ही महिमा कंपकंपा उठती थी।

“अभी आई” – कहते ही वह उठी थी कि परम ने आकर पानी से भरी बाल्टी को सर से उड़ेलते हुए कहा – – – “अब तुम भीगें-भीगें ही दिन भर घर में रहोगी और घर का सारा काम करोगी।”

यह कह कर वह चला गया। आज महिमा को दिसंबर की कड़कती ठंड में पानी से भरी बाल्टी से भींग कर भी ठंड का एहसास नहीं हो रहा था।

क्योंकि आज परमा ने अपनी दहकते अंगारों से उसे देखा नहीं था। वह उसकी कल्पना से ही सिहर उठती थी।

जोर से दरवाजा बंद होने की आवाज से महिमा समझ गई की परमा अपने ऑफिस के लिए निकल चुका है।

घर में सास-ससुर एक कमरे में अपना-अपना काम कर चुपचाप बैठे थे। वह भीगे कपड़ों में ही दिन भर घर का काम करती रही। पता नहीं कब परमा आ जाए और उसे लात घूसों से सराबोर कर दे। अभी वह सोच ही रही थी कि ना जाने क्या हुआ सब कुछ अंधेरा।

धम्म की आवाज से वह जमीन पर गिर चुकी थी। होश आया पता चला वह एक अस्पताल में है। डॉक्टर, नर्स ने घेर रखा है। उसके बदन को गर्म करने के लिए दवाइयाँ और इंजेक्शन दिए जा रहे हैं। लगातार ठंड और पानी की ठंडक के कारण उसे ठंड लग चुकी थी। डॉक्टर ने  कहा – “अब कैसी हो??” महिमा ने कहा — “कोई ऐसी दवाई नहीं जिसे अपने पास रखने पर अंगारों जैसे दहकते आँखों से ठंडक दिला सके।”

बिना मौत के मौत के मुँह में जाती निर्दोष बहू को देखते सास ससुर थोड़ी देर बाद जंजीरों से बंधे परमा को लेकर पुलिस बयान के लिए आ गई। आज उसके दहकते आँखों के अंगारों से निकलते आँसू महिमा के कलेजे को मखमली ओस की ठंडक पहुंचा रहे थे।

दूसरी तरफ मुँह फेरते ही परमा बोल उठा – – – “मुझे माफ कर दो।” परंतु वह चुपचाप अपने सास ससुर का मुँह देख रही थी। जिनके दोनों हाथ बहु के सिर पर फिरते चले जा रहे थे।

🙏 🚩🙏

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #215 ☆ दोरी होती… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 215 ?

दोरी होती… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

मी दुःखाला उगा कशाला चिवडत बसलो

दोरी होती साप म्हणूनी बडवत बसलो

शांत जळाची पारदर्शिता तळ दाखवते

भंग शांतता करून पाणी ढवळत बसलो

डाग चांगले असे ऐकले कुठेतरी मी

कारण नसता चिखल मातिला तुडवत बसलो

नवीन ढाबळ नवीन पक्षी जमा जाहले

विद्रोही पक्षांणा दाणे भरवत बसलो

लोहारच मी दागदागिने मला न जमले

युद्धासाठी बर्ची भाले बनवत बसलो

इंग्रज गेले मोगल गेले काळ लोटला

अजून त्यांचे कित्ते आपण गिरवत बसलो

अधुनिकतेची खोटी स्वप्ने बघता बघता

संस्काराच्या नात्यालाही फसवत बसलो

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 166 – गीत – लौटाता हूँ रथ सपनों का… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – लौटाता हूँ रथ सपनों का।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 166 – गीत – लौटाता हूँ रथ सपनों का…  ✍

लौटाता हूँ रथ सपनों का

शायद आगे राह नहीं है।

 

तिमिर वनों में भटक रहा था

तभी किरन सी पड़ी दिखाई

मावस ने ही जाते जाते

परिचय देकर कहा- ‘जुन्हाई’।

चाँदनिया चंदा की रानी, मुफलिस की दरगाह नहीं हैं

लौटाता हूँ रथ सपनों का, शायद आगे राह नहीं है।

 

नहीं दोष कुछ और किसी का

मैं ही ऐसा करमजला हूँ

जब भी कदम बढ़े हैं आगे

मैं खुद अपनी ओर चला हूँ

कोई आये कोई जाये मंजिल को परवाह नहीं है।

लौटाता हूँ रथ सपनों का शायद आगे राह नहीं है।

 

क्या है मन में कह न सकूँगा

यद्यपि बड़ी विकलता है

बार बार कहता है कोई

प्यास कंठ की दुर्बलता है

प्यासा ही रहने दो प्रियवर सहज विनय है आह नहीं है

लौटाता हूँ रथ सपनों का शायद आगे राह नहीं है।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 165 – “लुकाछिपी करती किंवदन्ती…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  लुकाछिपी करती किंवदन्ती...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 165 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “लुकाछिपी करती किंवदन्ती ...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

उसके घर अनाज आया

सब की उम्मीद जगी

अपनी पुस्तक मे लिखते हैं

पंकज रोहतगी

 

आगे लिखते, लगी झाँकने

छिप छिप आंगन में

सब कुछ छोड़ घरेलू बिल्ली

जो थी प्रवचन में

 

कुछ कुछ अच्छा ही होगा अब

घर के मौसम में

यह सारे बदलाव देखती

है घर की मुरगी

 

चिडियाँ मुदिता दिखीं

फूस के छप्पर में अटकीं

दीवारें खुश हुई जहाँ पर

छिपकलियाँ लटकी

 

लुकाछिपी करती किंवदन्ती

दरवाजे बाहर

देख नहीं पायी पेटों में

कैसी आग लगी

 

आज समूचे घर में उत्सव

सा माहौल बना

किसी पेड़ का पहले था

जैसे बेडौल तना

 

वही सुसज्जित , छायादार

वृक्ष में था बदला

जिसने घर की खुशियों में

जोड़ी है यह कलगी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

08-10-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नामकरण..(2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – नामकरण..(2) ? ?

हार्ट अटैक..,

ब्रेन डेड..,

मृत्यु के

नये नाम गढ़ रहे हम,

सोचता हूँ,

संवेदनशून्यता को

मृत्यु कब घोषित करेंगे हम?

फिर सोचता हूँ,

ऐसा हुआ तो

जनसंख्या का अनुपात

कितना बिगड़ जाएगा,

जन्म लेनेवालों की तुलना में

मृतकों का आँकड़ा

बेतहाशा बढ़ जाएगा..!

© संजय भारद्वाज 

(13:05 बजे, 09.12.23)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ शेष कुशल # 35 ☆ व्यंग्य – “समस्याएँ कम नहीं हैं मैकदा घर में बनाने में” ☆ श्री शांतिलाल जैन ☆

श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक विचारणीय व्यंग्य  “समस्याएँ कम नहीं हैं मैकदा घर में बनाने में”।) 

☆ शेष कुशल # 35 ☆

☆ व्यंग्य – “समस्याएँ कम नहीं हैं मैकदा घर में बनाने में” – शांतिलाल जैन 

कागजों में वे शिद्दत से कुछ ढूंढ रहे थे. पूछा तो बोले – पुराने इनकम टैक्स रिटर्न्स की कॉपी ढूंढ रहा हूँ. वजह ये कि कुछ दिनों पहले उत्तराखंड सरकार ने ‘होम मिनी बार’ योजना के अंतर्गत के लायसेंस देने की जो शर्तें रखीं हैं उनमें पहली शर्त यही रही कि पाँच साल के इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल किए हुए होने चाहिए. वे आशावान हैं कि अपनी छत के नीचे आसवपान की जो योजना देवभूमि में लागू होने जा रही है वो एक दिन मध्यप्रदेश में भी लागू की जा सकती है. घर में मधुशाला उनका ड्रीम था, जल्द ही सच होता दीख रहा है. ये तो आचार संहिता लग गई श्रीमान वरना इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कॉलोनी में कोई आगंतुक पूछ रहा होता – भाईसाहब, ये श्रीवास्तवजी कहाँ रहते हैं ?

कौनसे वाले श्रीवास्तवजी ? वोई जिनके घर में एक मैकदा है ? आप ऐसे करें आगे से बायीं ओर की दूसरी गली में मुड़ जाईए. जैसे ही मुड़ेंगे मदहोश बयार आने लगेगी, राईट साईड में जिस मकान के बाहर जोर का भभका आने लगे बस वहीं रहते हैं श्रीवास्तवजी.’ बहादुरशाह ज़फर होते तो ग़ज़ल का मिसरा बदल लेते – ‘जिस तरफ उसका घर उसी तरफ मैकदा.’

खैर यह जब होगा तब होगा,  फ़िलहाल समस्या ये भी है कि घर के किस हिस्से में बनाई जाए मधुशाला. वास्तुवाले कह रहे हैं ईशान कोण ठीक रहेगा, दारू में बरकत रहती है. पूर्व दिशा की ओर बैठकर पीने से सुरूर अच्छा चढ़ता है. बीम के नीचे नहीं पीना चाहिए, अटैक आने का खतरा रहता है. सो उत्तर-पूर्व का कमरा तय रहा. किचन लगा हुआ ही है, एक इंट्री इधर से भी दे देते हैं – आईस, चखना वगैरह लाने में ठीक रहेगा.

मैंने पूछा – ‘उल्टियाँ कहाँ करोगे ?’

वे बोले – ‘उस कार्नर में, दो तीन बड़े और गहरे आकार के वाश-बेसिन लगवाने से हो जाएगा.’  मैंने धीरे से मुआयना किया, इसी रूम के पीछे जो गली पड़ती है गिरने के लिए उसकी नाली मुफीद पड़ेगी. वे बोले – ‘पूजा घर पीछे माँ के रूम में शिफ्ट कर देते हैं और गेट पर बायोमेट्रिक्स लॉक भी लगवा लेते हैं.’

‘वो किसलिए ?’ – मैंने पूछा.

बोले – रूल है गौरमिंट का. होम मिनी बार में 21 वर्ष से कम के फेमेली मेम्बर्स की पहुँच नहीं रहनी चाहिए. चुन्नू, चिंकी और चिंटू के थम्ब इम्प्रैशन से खुलेगा नहीं – ‘द हाउस ऑफ़ वाईंस’. विक्की के इक्कीस बरस में चार महीने कम पड़ रहे हैं. लायसेंस आने तक वह भी पीने योग्य हो जाएगा.

मैंने पूछा –‘एट ए टाईम,  कित्ता माल रख सकोगे?’

वे बोले – उत्तराखंड सरकार ने तो अधिकतम नौ लीटर इंडियन फॉरेन लिकर, 18 लीटर फॉरेन लिकर, 9 लीटर वाइन और 15.6 लीटर बीयर स्टोर करने की परमिशन दी है. एम.पी. में इससे तो कुछ बढ़कर ही समझो. ओवरऑल लिमिट हंड्रेड लीटर्स की हो जाए तो सोने में सुहागा. संयुक्त परिवार है, रिश्तेदारी है, यारी दोस्ती है इतना स्टॉक रखना तो बनता है. कल को आप ही मिलने आए तो पूछना तो पड़ेगा कि ट्वंटी एमएल चलेगी शांतिबाबू.  मैंने कहा – आपको पता है मैं पीता नहीं हूँ.  बोले – वो मैंने एक बात कही. हम नहीं पूछते तो आप कहते – लो साब श्रीवास्तव के घर गए और उनने दो घूँट का पूछा तक नहीं. बहरहाल, कंपोजिट लायसेंस मिल गया तो थोड़ी देसी भी रख लेंगे – घर में नौकर-चाकर भी तो हैं.

मैंने कहा – ‘आबकारी नीति के अनुसार ड्राई-डे पर मिनी होम बार बंद रखना पड़ेगा.’

वे बोले – मना तो ट्रेन में भी होती है. तो क्या कोल्ड्रिंक में लेकर गए नहीं कभी ? श्रीवास्तव को आप जानते नहीं हो शांतिबाबू, सरकार डाल-डाल तो श्रीवास्तव पात-पात. उनके चेहरे पर किला फतह करने के भाव आए.

इस बीच खबर आई कि उत्तराखंड सरकार ने कुछ दिनों के लिए अपना निर्णय स्थगित कर दिया है. श्रीवास्तवजी आशावान हैं निरस्त तो नहीं किया ना! अच्छा है तब तक पुराने आईटीआर भी ढूंढ लेंगे और बाकी तैयारियाँ पूरी करके रख लेंगे. मुझे मेराज फैजाबादी याद आए – ‘मैकदे में किसने कितनी पी, खुदा जाने. मयकदा तो मेरी बस्ती के कई घर पी गया..’

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© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 216 ☆ “कौन बनेगा मुख्यमंत्री?” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य – “कौन बनेगा मुख्यमंत्री?)

व्यंग्य – “कौन बनेगा मुख्यमंत्री?☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय  

सच में ये मीडिया वाले इतने निष्ठुर हो गए हैं कि आम आदमी की पीड़ा को भूलकर विज्ञापन और अपने फायदे में लगे रहते हैं। सेलेब्रिटी, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि की तरफ देखते रहते हैं। एक चैनल के पत्रकार से कहा कि गंगू के यहां की गाय बियानी है बछड़ा के तीन आंखें हैं तो जाकर फोटो-ओटो, वीडियो-ईडिओ बना लो… लोगों को पता चलेगा तो दान दक्षिणा, चढ़ावा-चढ़ोत्री खूब होगी बेचारे गंगू की गरीबी दूर हो जाएगी। बेरोजगारों को रोजगार मिल जाएगा, नारियल अगरबत्ती, चिरौंजीदाना, प्रसाद, पकोड़ा, चाय-पान की दुकानें लग जाएंगी, श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ेगी… पर वो पत्रकार सुनता ही नहीं, कहता है अभी ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ के बहाने टीवी चैनल वालों को ज्यादा कमाई हो रही है।

आजकल हर मंत्री और बड़े नेताओं की बयानबाजी से चैनल और अखबार को बहुत फायदा मिल रहा है भरपूर विज्ञापन के साथ कुछ गोपनीय फायदे भी हो जाते हैं। सब तरफ झूठ और झटके का माहौल है। कुछ साल से झूठ के पांव इतने लम्बे और मजबूत हो गए कि मीडिया के कैमरे झूठ के पांव से दौड़ने लगे हैं। आजकल नेता लोग नशे में कुछ भी बोल देते हैं फिर होश आने पर बयानों में तोड़-फोड़ का आरोप लगाकर गंगा में नहा लेते हैं। अभी सबसे बड़ी बात है, सबसे बड़ा सस्पेंस मुख्यमंत्री कौन होगा है ।

यहां मंच के बीच में एक सजी-धजी कुर्सी रखी है कुर्सी में मुख्यमंत्री लिखा है… सब देख रहे हैं कि सच में ‘मुख्यमंत्री’ लिखा है। भीड़ में कुर्सी की सजावट की चर्चा है। पर्यवेक्षक के आने में थोड़ा देर है, सस्पेंस है, रोमांच है और इसे बढ़ाने में चैनल के चिल्लाने वाले एंकर खासकर महिलाएं खूब मजा ले रहीं हैं। तरह-तरह के तरीकों से झूठ-मूठ का सस्पेंस घुसेड़ने की तरकीबें चल रहीं हैं। गंगू के पेट में भूख कुलबुला रही है, दिमाग में टेंशन है, हाल-बेहाल हैं, पर ऐसे में सस्पेंस और रोमांचक क्षणों का स्वाद लेना ही पड़ेगा, बीच में भाग नहीं सकते। 

भीड़ से आवाज आयी – जिन्हें मुख्यमंत्री बनना है वे सब आने में देर क्यों कर रहे हैं ? 

पीछे से किसी ने कहा – दिल्ली गए थे डांट पड़ी है मन उदास है…

हलचल मची, वे सब आ गये शायद… सच में आ गए पर वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तरफ नहीं गए सामने तरफ की पब्लिक वाली कुर्सी में धंस गए…। पूरे हाल में सन्नाटा छा गया, प्रश्न उछल – कूद करने लगे… सब परेशान। अपने तरफ से सब अंदाज लगाने लगे अचानक ये पुराने मुख्यमंत्री को क्या हो गया? अभी तक तो कुर्सी देख कर दौड़ लगा देते थे पर आज… कुर्सी से मोह भंग…।

आकाशवाणी हुई – क्या आज मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली रहेगी? कुर्सी में कोई नहीं बैठेगा ? क्या आनंद की अनुभूति उदासी के साथ होगी?…

टी आर पी के चक्कर में मीडिया हैरान-परेशान दिखा। उनसे कुर्सी में बैठने का निवेदन हुआ पर वे टस से मस नहीं हुए। खड़े होकर उदास स्वर में बोले – “मैं तो जा रहा हूँ मेरी कुर्सी पर कोई भी बैठ सकता है…”

मुख्यमंत्री का ये बयान ‘धजी का सांप’ बन के फन काड़ के खड़ा हो गया। खबरिया चैनलों ने इसे गंभीर संकेत समझ लिया। बवडंर उठा और तूफान बनकर चैनलों में बहस में तब्दील हो गया। दिन भर सोशल मीडिया में अफवाहों का दौर चला। लोगों ने भावी मुख्यमंत्री के नामों का अंदाजा भी लगाना शुरू कर दिया। 

एक पर्यवेक्षक ने  अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पर कमाल की बयानबाजी कर दी, पद के दावेदारों के मन ही मन में लड्डू फूटने लगे। अध्यक्ष की कुर्सी मिलते ही बड़ी भारी कुर्सी हिल गई। अध्यक्ष गोटी फिट करने में तेज हैं और लगा कि लक जो है तो लकलका रहा है…

मीडिया उतावलेपन और एक दूसरे को पीछे छोड़ने के फेर में पगला गया। राजनैतिक सरगर्मियां बढ़ गईं, बयानबाजी का बाजार लग गया। विपक्षी नेताओं के ट्वीट आने लगे। अफवाहों ने अचानक एक दावेदार को मुख्यमंत्री बनाकर परोस दिया। विपक्ष ने कहा कि पुराने वाले अब  हताश होकर निराश हो गये हैं तभी तो सजी-सजी सजाई कुर्सी में नहीं बैठे। मीडिया जो भी खबरें दे रहे थे  कन्फ्यूजन से भरी। आंखों में इमेज झोंक कर सच-झूठ एक साथ बोल रहे थे, कुर्सी का मोह बड़ा खराब होता है। ज्यादा हो-हल्ला मचता देख पुराने मुख्यमंत्री ने ट्विटर पर ट्वीट कर दिया कि हम ‘मिशन 29’ में बिजी हैं हमें मुख्यमंत्री की कुर्सी अभी सपने में दिख रही है, और मन में लड्डू फूट रहे हैं, तो हम क्या करें…

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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