हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 172 – कोरा कागज – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है टेलीपेथी पर आधारित सात्विक स्नेह से परिपूर्ण एक लघुकथा “कोरा कागज ”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 172 ☆

☆ लघुकथा – 📋कोरा कागज 📋 

आजकल मोबाइल के इस आधुनिक युग में लाईक, डिलीट, स्टार, ब्लॉक, शेयर,ओहह यह सब करते-करते मनुष्य भावपूर्ण मन की बातें पत्र लेखन चिट्ठियों को भूल ही गया है।

पत्र सहेज कर रखना, उसे फिर से दोबारा निकाल कर पढ़ना और फिर मन लगाकर कई बार पढ़ना। चाहे वह किसी प्रकार की बातें क्यों ना हो। जाने अनजाने मन को छू जाती थीं। कोरे कागज की बातें।

माया अपने पति सुधीर के साथ रहती थी। यूं तो दोनों का प्रेम विवाह हुआ था। शादी के पहले की सारी चिट्ठियाँ माया और सुधीर ने बहुत ही संभाल, सहेज कर रखा था।

विवाह के बाद सब कुछ अच्छा चल रहा था। अचानक सुधीर का तबादला किसी बड़े शहर में हो गया।

कहते हैं नारी मन बड़ा कांचा होता है। माया को उसके जाने और अकेले रहने में कई प्रकार की बातें सता रही थी। जो भी है सुधीर को जाना तो था ही। अपना सामान समेट वह शहर की ओर बढ़ चला।

माया अपने कामों में लग गई। एक सप्ताह तक कोई खबर नहीं आई। धीरे-धीरे समय बीत गया। अब तो मोबाइल था। फिर भी सुधीर बस हाँ हूं कह… कर काम की व्यस्तता बता बात ही नहीं करता था। माया इन सब बातों से आहत होने लगी।

उसे लगा सुधीर कहीं किसी ऑफिस में सुंदर महिला के साथ – – – – – “छी छी, ये मैं क्या सोचने लगी।” उसने झट कॉपी पेन निकाला और पत्र लिखने बैठ गई।

लिखने को तो वह बहुत सारी बातें लिखना चाह रही थी। परंतु केवल यही लिख सकी – – – ‘सुधीर तुम्हारे विश्वास और तुम्हारे भरोसे में जी रही हूं। पत्र लिखकर पोस्ट करके जैसे ही घर के दरवाजे पर ताला खोलने लगी। सामने पोस्टमेन  खड़ा दिखाई दिया — “मेम साहब आपकी चिट्ठी।” आश्चर्यचकित माया जल्दी-जल्दी पत्र खोल पढ़ने लगी… सुधीर ने लिखा था.. ‘माया तुमसे दूर आने पर तुम्हारी अहमियत और भी ज्यादा सताने लगी है। मुझ पर विश्वास करना।

दुनिया की नजरों से नहीं मन की भावनाओं से देखना मैं सदैव तुम्हारे साथ खड़ा हूं। जल्दी आता हूं।’ कोरे कागज पर लिखी यह बातें..। माया पास पड़ी कुर्सी पर बैठ, अश्रुधार बहने लगी ।तभी मोबाइल की घंटी बजी उठी..

“हेलो” माया ने देखा पतिदेव सुधीर ने ही कॉल था। सुधीर ने कहा… “ज्यादा रोना नहीं जैसा तुम्हारा मन है वैसा ही यह कोरा कागज है। ठीक वैसे ही मैं भी उस पर लिखे अक्षरों का भाव हूँ। हम कभी अलग नहीं हो सकते। मन के कोरे कागज पर हम दोनों का नाम लिखा है। बस बहुत जल्दी आ रहा हूं। तुम्हें लिवा ले जाऊंगा।”

माया सुनते जा रही थी तुम मेरी कोरी कल्पना हो। रंग भरना और सहेजना, उसमें हंसना- मुस्कराना तुम्ही से सीखा है। बस विश्वास और भरोसा करना इस कोरे कागज की तरह। माया सामने लगे आईने पर अपनी सूरत देख मुस्करा उठी।

🙏 🚩🙏

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 60 – देश-परदेश – SHARK TANK ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “SHARK TANK” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 60 ☆ देश-परदेश – SHARK TANK ☆ श्री राकेश कुमार ☆

एक वर्ष पूर्व जब इस कार्यक्रम के आने की चर्चा हुई, तो आरंभ में हमें ऐसा प्रतीत हुआ, इसमें शायद शार्क (मछली) को घर में रखे जाने वाले फिश एक्वेरियम (कांच का बड़ा डिब्बा नुमा) में रखने से संबंधित जानकारी इत्यादि पर चर्चा होगी। जब कार्यक्रम का प्रथम एपिसोड प्रसारित हुआ तब पता चला ये तो हिंदी पुस्तक “व्यापार से धन कमाने के 100 से अधिक आसान तरीके” पर आधारित कार्यक्रम है।

बचपन में हमने इस प्रकार की अनेक पुस्तकें VPP से मंगवाई थी। वो तो बाद में बच्चों ने बताया ये तो अमेरिका में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम का हिंदी अनुवाद है। वैसे कौन बनेगा करोड़पति भी तो विदेशी कार्यक्रम की तर्ज पर बना हुआ है।

कार्यक्रम के संचालकगण देश के  युवा पीढ़ी से हैं, जो आज सफलतम व्यापारी/उद्योगपति बन कर अपने झंडे गाड़ चुके हैं। इनमें से अधिकतर उस जाति से आते हैं, जो कि सदियों से व्यापार करने में अग्रणी रहते हैं। ऐसा कहना अतिश्योक्ति होगी की सिर्फ एक विशेष जाति के लोग ही सफल व्यापारी बन सकते हैं, इस बाबत, हमारे देश में बहुत सारे अपवाद भी हैं।

सयाने लोग कहा करते थे, परिवार या पिता के व्यापार को ही पुत्र सफलता पूर्वक कर सकता है। समय के चक्र ने इस मिथ्या को काफी हद तक परिवर्तित भी कर दिया है।

जब पंद्रह वर्ष पूर्व हमारे बैंक ने बीमा से संबंधित कार्य करना आरंभ किया तो मुझे क्षेत्रीय कार्यालय में कार्यरत रहते हुए शाखा स्तर पर “बीमा विक्रय” के लिए कर्मचारियों का प्रोत्साहित करने का कार्य दिया गया था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने ज्ञान देते हुए एक विशेष जाति के लोगों पर फोकस करने की बात कही थी। जो बाद में सही साबित हुई थी।

कहा जाता है, कुछ गुण वंशानुगत भी प्राप्त होते हैं। हमारे देश के बड़े और सफलतम उद्योगपति बहुतायत में गुजराती, पारसी और राजस्थानी समुदाय से आते हैं। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि देश के अन्य भागों से भी कुछ सफल उद्योगपति आए हैं।

हमारे जैसे वरिष्ठ जन भी इस कार्यक्रम को देखकर ये कह सकते हैं, अन्य सास बहू पर आधारित कार्यक्रम से तो कहीं बेहतर श्रेणी का है।

कार्यक्रम भले ही विदेश की नकल है, पर अक्ल तो देसी ही काम आयेगी।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #214 ☆ चंदन झालो… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 214 ?

चंदन झालो… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

तारुण्याच्या बागेमधल्या हिरव्या वेली

भुंगे आले जेव्हा होती फुले लागली

फुलात नाही, खोडच आहे इथे सुगंधी

खोड चंदनी म्हणजे आहे कोरी हुंडी

झाडाला या म्हणून आहे दृष्ट लागली

मोल तयाचे मोठे आहे त्यास न कळले

काळोखाचा घेत फायदा लुच्चे वळले

सळसळ होता या झाडाला भिती वाटली

दुनिया करते पसंत मजला बरे वाटले

चांगुलपण हे मला भोवले पाय छाटले

चंदन झालो याची मजला सजा भेटली

ईश्वर करतो माझी येथे अशी घाटणी

तुकड्यामधली काया आहे तरी देखणी

झिजून मरणे याची मीही शपथ घेतली

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ काळ आला होता पण… ☆ श्री आशिष बिवलकर ☆

श्री आशिष  बिवलकर

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– काळ आला होता पण…– ? ☆ श्री आशिष  बिवलकर ☆

देशाची प्रगती | श्रमिकांचे काम |

तेच  पुण्यधाम  | त्यांच्यासाठी ||१||

बोगदा बनला | मृत्यूचा  सापळा |

आमंत्रण काळा | देण्यासाठी ||२||

एक्केचाळीस ते  | कठोर श्रमिक |

मृत्यू अनामिक | वाटेवर ||३||

थरथरे भूमी  |  अडकले जीव |

मृत्यूची जाणीव  | मजुरांना ||४||

सेवेला तत्पर | बचाव पथक !

प्रयत्न अथक | देवदूत ||५||

प्रत्येक चेहरा | सुटकेचा भाव |

पुनर्जन्म  ठाव | याची देही ||६||

संकट मोचन | आला होता काळ !

नाही आली वेळ  | बिब्बा म्हणे ||७||

© श्री आशिष  बिवलकर

बदलापूर

मो 9518942105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 165 – गीत – और अब क्या चाहिये… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत –और अब क्या चाहिये।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 165 – गीत – और अब क्या चाहिये…  ✍

मिल गया मोती सरीखा मन

और अब क्या चाहिये।

 

कुसुम कुसुमित रूप के, रसके

सैकड़ों इस बाग में देखे

सुमन सुरभित कब कहाँ किसने

पलझरों के भाग में लेखे ।

सुमन ने सादर बुलाया है और अब क्या चाहिये।

 

अनगिनत है लोग जिनके

पास तक कोई भी जाता नहीं

एक टूटे गीत के मानिन्द हैं

कोई भी गाता नहीं।

खुद बाँसुरी आई अधर तक और अब क्या चाहिये।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 164 – “शायद आज पूर्ण हो पाये…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  शायद आज पूर्ण हो पाये...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 164 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “शायद आज पूर्ण हो पाये...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सुबह-सुबह उसके घर की

छप्पर धुंधुआती है –

जबभी ,भोजन मिलने की

आशा जग जाती है

 

लगती चिडियाँ खूब फुदकने

छपर पर सहसा

ताली खूब बजाता पीपल

जैसे हो जलसा

 

सारे जीव प्रसन्न तो दिखें

मुदित वनस्पतियाँ

पूरे एक साल में ज्यों

दीवाली आती है

 

घर के कीट पतंग सभी

यह सुखद खबर पाकर

एक दूसरे को समझाने

लगे पास जाकर

 

यह सुयोग इतने दिन में

गृहस्वामी लाया है

जिस की सुध ईश्वर को

मुश्किल से आपाती है

 

यों सारा पड़ोस खुश होकर

आशा में डूबा

शायद आज पूर्ण हो पाये

अपना मंसूबा

 

जो रोटीं उधार उस दिन

की हैं,  वापस होंगीं

ठिठकी यह कल्पना,

सभी की , जोर लगाती है

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-10-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 215 ☆ “चुनावी अखाड़े का एक दिन…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य – चुनावी अखाड़े का एक दिन…”)

व्यंग्य – चुनावी अखाड़े का एक दिन…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

पेट में भूख कुलबुला रही है और चुनाव परिणाम की चिंता में प्यास से गला सूख रहा है, मोटरसाइकिल रोकी , सड़क किनारे एक ढाबे में रुके, साधारण सा ढाबा था, पर भीड़ थी, क्योंकि टीवी में चुनाव परिणाम आने वाले थे।

इस ढाबे का मालिक मामा उसूलों वाला है, हर बात में पटर पटर करता है , चुनाव के छै महीने पहले थाली की कटोरी में पूरी सब्जी भर देता है, उपदेश देने में होशियार है,पर खुद अंदर से लोभी है।

भोजन मंगाया तो पाया थाली में पूरी भरी दो कटोरियों में आलू मिली सब्जियां और दो कटोरी में पानी वाली दाल…… हर कटोरी में सब्जी के साथ आलू। हो सकता है कुछ सब्जी कल की बासी भी मिला दी हो। हर राजनैतिक दल के पास अलग अलग जायके और मसाले वाली सब्जी होती है।

सामने टी वी लगा है और चुनाव परिणाम इसी में आने वाले हैं।टी वी चैनल वाला ऐंकर बार बार थोड़ी देर में  बम्फर….. बम्फर… और कांटे की टक्कर… जरूर कह रहा है पर कोई बढ़त – अढ़त नहीं दिखा रहा है,बार बार कहता है ‘अभी कहीं जाइएगा नहीं …. बस हम तुरंत खास खबर लेकर आ रहे हैं’…

ऐसा कहकर लाखों के विज्ञापन दिखा रहा है। ये टी वी चैनल वाले ‘आज तक’ कहके खबरें दिखाते हैं और विकास और विश्वास के झटके को ‘दस तक’ ले जाते हैं फिर तीन तेरह का चक्कर चलाकर टाइम पास करते हैं और रोज धमकी देते हैं कि

‘आप अपना बहुत ख्याल रखिएगा’

टीवी से धमकी भी मिल रही है और हम थाली का खाना खाए जा रहे हैं। टी वी चैनल में चुनाव परिणाम आने के कारण विज्ञापन के रेट आसमान छू रहे हैं फिर भी ये बाबा चैन नहीं ले रहा है खाना चालू करने के बाद अभी तक सौ बार टी वी में दौड़ दौड़ के ऊधम मचा चुका है।

टी वी चैनल वाले भी अजीब हैं, रात को खाना खाने बैठो तो बार बार ‘दस्त तक – दस्त तक’ करने लगते हैं। ब्रेकिंग न्यूज की पट्टी चल रही है,

“बस थोड़ा देर में चुनावी रुझान सिर्फ इसी चैनल पर” आगे लिखा आ रहा है “सबका साथ सबका विकास का रास्ता जीत से चालू होता है ” बाजू वाला कह रहा है कि इस बार आदिवासियों ने जिनसे पैसा लिया है उनको वोट नहीं दिया।

थाली की कटोरी में सब्जी खतम हो गई है, कटोरी चिल्ला रही है, कोई ध्यान नहीं दे रहा है, लटके झटके के साथ नेपथ्य में ठहाके लग रहे है। ढाबे के ग्राहक चुनावी रुझान देखने तड़फ रहे हैं। गर्म रोटी देते हुए बैरा बड़बड़ा रहा है, लाड़ली बहना का डंका बजा रहे हैं और लाड़ले भैया को अंगूठा दिखा रहे हैं।

थाली की कटोरी में अब पानी वाली दाल भर बची है……. टी वी विज्ञापनों में फटी जीन्स से झांकते अंग दिख रहे हैं। अचानक टी वी वाले का चेहरा प्रगट होता है कह रहा है – चुनावी परिणाम थोड़ी देर में……… जब तक रुझान के पहले कुछ खास लोगों की चर्चा देखिये…….

टी वी में एक बिका हुआ चर्चित पत्रकार चुनाव के बारे में बता रहा है – इस बार के क्रांतिकारी चुनाव में 100 प्रतिशत से ज्यादा पारदर्शिता  रही है, जो सांसद, मंत्री अपने को तीसमारखां समझते थे उनको भी विधायकी की लाइन में लगवा दिया गया।

चुनाव की पारदर्शिता के बारे में जनता को जानने का अधिकार है हालांकि ये पब्लिक है ये सब जानती है।

ये देखो इनकी बदमाशियां पहले खूब विज्ञापन चलाया अब  टाइमपास करने के लिए एंकर एक महिला को पकड़ लाए।

महिला मुस्कुराते हुए बोली – यह देश हमेशा से उसूलों का देश नहीं रहा… असल में यह तो था भले मानुषों का देश,  लेकिन फंस गया नेताओं के चक्कर में।  नेता होशियार तो होते ही हैं मौके – बे – मौके होशियारी दिखाते भी हैं और चुनाव के समय होशियारी दिखाने का अच्छा मौका मिल जाता है। एंकर बीच में टोकने लगा तो महिला बोली – देखिए मुझे पूरा बोलने नहीं दिया जा रहा है……

सब चिल्ल पों कर रहे हैं कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा है……

झड़पें बढ़ रहीं हैं अरे…. अरे ये टोपीधारी……. चलिए अच्छा टोपी वालों की बात सुन लीजिए…. हां… हां.. बोलिए…… देखिए  रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलियुग आयेगा जब चुनाव जिताने का ठेका राम जी के पास हो जाएगा।

घोर कलि-काल है, मूल्यों का पतन हो रहा है झटकेबाजी चरम सीमा पर है,

थाली का खाना खतम हो गया है,भूख मिटी नहीं है, रुझान आने चालू हो गए हैं, ढाबे में भीड़ बढ़ गई है ,उधर गाय भूखी खड़ी है और सबको चुनाव परिणाम देखने की पड़ी है।

गजब हैं ये चैनल वाले एक जगह का रुझान दिखाते हैं फिर मंदिर दिखाने लगते हैं, सब टकटकी निगाहों से टीवी देख रहे हैं और भूखी गाय की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।

टी वी देखने वाले परेशान हो गए हैं ज्यादा चिल्ल – पों देखते हुए फिर से विज्ञापन चला दिया गया है। इधर भूखी गैया ढाबे में घुसकर ऊधम मचाने लगी है सब लोग इधर-उधर भाग रहे हैं। ढाबे वाले ने टी वी पर सुना कि ……. अभी कहीं जाईयेगा नहीं….. थोड़ी देर में चुनावी परिणाम  आने वाले हैं  फिर नया ऐंकर प्रगट हुआ और ढाबे की लाईट गोल हो गई…

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 156 ☆ # नवपुरुष # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी समसामयिक घटना पर आधारित एक भावप्रवण कविता “# नवपुरुष #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 156 ☆

☆ # नवपुरुष #

पथिक पथ पर चला अकेला

ना कोई साथी, ना कोई मेला

अपनी धुन मे हैं मनमौजी

अपनी तरह का वह अलबेला

उसे राह में –

कहीं धूप तो कहीं छांव मिली

ठंडी ठंडी पुरवाई, गांव गांव मिली

कहीं ताल तो कहीं तलैया

कहीं नदी तो कहीं नाव मिली

कहीं कहीं मिली –

फूलों से सजे बागों में

प्रीत के बंधे धागों में

कली कली उन्माद में डूबी

भ्रमर के प्रणय पागों में

कहीं कहीं राह में –

सहज, सरल इन्सान मिले

धर्म भीरु से प्राण मिले

सत्य को ओढ़ते, बिछाते

सत्यनिष्ठ सत्यवान मिले

कहीं कहीं –

पसीना बहाते श्रमवीर मिले

कहीं खेत जोतते कर्मवीर मिले

कहीं अपना सर्वस्व वंचितों को सौंपकर

परमार्थ साधते दानवीर मिले

कहीं कहीं स्वयं-भू बने महापुरुष मिले

कहीं कहीं मिडिया से बने युगपुरुष मिले

कहीं कहीं “मैं” की चादर ओढ़े हुए

पाखंडी, बहुरूपिए नवपुरुष मिले/

 © श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 151 ☆ अभंग – कृपा करी कृष्णा… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 151 ? 

☆ अभंग – कृपा करी कृष्णा… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

कृपा करी कृष्णा, शिणलो भागलो

आणिक थकलो, इहलोकी.!!

सुख प्राप्ती साठी, सदैव झटलो

नाहीच विटलो, अकर्मात.!!

स्वार्थी उपायात, धन्यता मानली

व्यर्थ मी खर्चिली, देह बुद्धी.!!

आता मात्र स्वामी, देई तुझे सुख

दिसावे श्रीमुख, सुमंगल.!!

कवी राज म्हणे, अनंत सुमंत

तूच नितिमंत, महाराजा.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – बोलकी मुखपृष्ठे ☆ “सुवर्णसुखाचा निर्झरू” ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल

? बोलकी मुखपृष्ठे ?

☆ “सुवर्णसुखाचा निर्झरू” ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल 

आकाशात तांबूस आभा ••• तोच तांबूल रंग जमीनीवर सांडलेला••• या दोघांना सांधणारी डोंगराची रांग•••डोंगर माथ्यावर चमचमणारी सोनेरी किरणे असलेला सोन्याचा गोळा•••

अहाहा नेत्रसुख देणारे हे सुंदर चित्र••• उगवत्या सूर्याचे आहे का मावळतीच्या सूर्याचे आहे हे समजणे कठीण. 

पण काय सांगते हे चित्र? फक्त सकाळ किंवा संध्याकाळ झाली आहे एवढेच  ? नक्कीच नाही. 

१.झरा म्हटले तरी एक सदा पुढे जाणारा चैतन्याचा स्रोत जाणवतो. पण या सोनेरी रंगामुळे हा झरा रुपेरी न रहाता सोन्याचा होऊन जातो. 

२.झर्‍याचा उगम नेहमीच डोंगरमाथ्यावरून होतो.  हा सोन्याचा झरा पण डोंगर माथ्यावर उगम पावला आहे. 

३.  पुढे पुढेच वाहणारा हा स्रोत अनेक आशेची, यशाची, प्रगतीची रोपटी वाढवतो आणि याच रोपट्यांचे डेरेदार वृक्षात परिवर्तन होणार असल्याची ग्वाही देतो. हे सांगताना या सोनेरी वाटेवर चितारलेली छोटी झुडुपे आणि वर मोठ्या झाडाची फांदी एक समाधानकारक लहर मनात निर्माण करते.

४. जमीन आणि आकाश सांधणारे डोंगर खूप मोठा आशय सांगतात. जमिनीवर घट्ट पाय रोऊन उभे राहिले तरी आकाशा एवढी उंची गाठता येते.

५. तुमच्या मनात आले तर तुम्ही आकाशाला गवसणी घालू शकता .ते सामर्थ्य तुमच्यामधे आहे .फक्त त्याची जाणिव सूर्यातील उर्जेप्रमाणे तुम्ही जागवा.

६. सूर्यातून ओसंडणारी ही आभा दिसताना जरी लहान दिसली तरी तिचा विस्तार केवढा होऊ शकतो हे प्रत्यक्ष तुम्ही जाणा.

७. जैसे बिंब तरि बचके एवढे।

     परि प्रकाशा त्रैलोक्य थोकडे।

     शब्दांची व्याप्ति तेणें पाडे।

     अनुभवावी।। (श्रीज्ञानेश्वरी : ४-२१३)

ज्ञानेश्वरीतील या ओवी प्रमाणे तुम्ही स्वत: जरी लहान वाटलात तरी तुमच्यातील सामर्थ्य तुमचे कर्तृत्व यामुळे तुम्ही मोठे कार्य निश्चित करू शकता या आदर्शाची आठवण करून देणारा हा दीपस्तंभ अथवा तेवती मशाल वाटतो .

८. त्यापुढे आलेला देवळाचा भाग , देवळाची ओवरी, त्यावर विसावलेला माणूस ••• हे सगळे जे काही माझे माझे म्हणून मी गोळा केले आहे ते माझे नाही .हे या परमात्म्याचे आहे याची जाणिव मला आहे हे मनापासून या भगवंताच्या दरबारात बसून मी भगवंताला सांगत आहे. असा अर्थ प्रतीत करणारे हे चित्र वाटते .

०९. देवाला जाताना नेहमी पाय धुवून जावे. तर मी देवळात जाताना या सुवर्णसुखाच्या झर्‍यात पाय धुवून मी तुझ्याकडे आलो आहे .हे सांगत आहे.

१०. हे सगळे नक्की काय आहे हे सांगायला सोन्यासारख्या पिवळ्या धम्मक अक्षरांनी लिहिलेले सुवर्णसुखाचा निर्झरू हे शिर्षक.

११. यातील निर्झरू या शब्दाने त्यातील लडिवाळपणा जाणवतो. आणि हा निर्झर सुवर्णाचाच नाही तर तसेच सुख देणारा आहे हे सांगतात.

१२. ना सकाळ ना रात्र, ना जमिनीवर ना आकाशात, ना मंदिरात ना मंदिराबाहेर, ना दृष्य ना अदृष्य अशा परिस्थीतीत नरसिंहासारखे  ना बालपणी ना वृद्धापकाळी घडलेले हे परमात्म्याचे दर्शन आहे असे वाटते .

अशा छान मुखपृष्ठासाठी सुनिल मांडवे यांना धन्यवाद.

अशा छान मुखपृष्ठाची निवड केल्याबद्दल प्रकाशक सुनिताराजे पवार आणि लेखक  एकनाथ उगले यांचे आभार

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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