हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 178 ☆ बाल कविता – चले सैर को लंगूर ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 178 ☆

बाल कविता – चले सैर को लंगूर ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

आज सैर को चला रौब से

      एक अजूबा-सा लंगूर।

ऑटो उसको खूब सुहाया

       खुशियाँ मन में हैं भरपूर।।

 

घूमेगा वह शहर गुलाबी

       देखेगा वह जंतर – मंतर।

महल – किले भी वह घूमेगा

     खुशियों का देगा निज मंतर।।

 

बाग बगीचे वह देखेगा

     जो होगा मन के अनुकूल।

मनभावन खुशबू से महके

        प्यारे – मोहक सुंदर फूल।।

 

शादी होगी बच्चे होंगे

         उनको खूब घुमाएगा।

सपनों की खुशदिल दुनिया में

      सबसे प्यार बढ़ाएगा।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #175 ☆ … ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 175 ☆ कामगार…! ☆ श्री सुजित कदम ☆

परवा आमच्या कारखान्यातला

कामगार मला म्हणाला

आपण आपल्या हक्कासाठी

आदोलन करू.. मोर्चा काढू..

काहीच नाही जमल तर

उपोषण तरी करू…

पण..

आपण आपल्या हक्कासाठी

आता तरी लढू

बस झाल आता हे असं लाच्यारीने जगणं

मर मर मरून सुध्दा काय मिळतं आपल्याला

तर दिड दमडीच नाणं..

आरे..

आपल्याच मेहनतीवर खिसे भरणारे..

आज आपलीच मज्जा बघतात

आपण काहीच करू शकणार

नाही ह्या विचारानेच साले आज

आपल्या समोर अगदी ऐटीमध्ये फिरतात

आरे..

हातात पडणार्‍या पगारामध्ये धड

संसार सुध्दा भागत नाही…!

भविष्याच सोड उद्या काय

करायच हे सुद्धा कळत नाही

महागड्या गाडीतून फिरणार्‍या मालकांना

आपल्या सारख्या कामगारांच जगण काय कळणार..

आरे कसं सांगू..

पोरांसमोर उभ रहायचीही

कधी कधी भिती वाटते

पोर कधी काय मागतील

ह्या विचारानेच हल्ली धास्ती भरते

वाटत आयुष्य भर कष्ट करून

काय कमवल आपण..

हमालां पेक्षा वेगळं असं

काय जगलो आपण..!

कामगार म्हणून जगण नको वाटतं आता..!

बाकी काही नाही रे मित्रा..

म्हटल..एकदा तरी

तुझ्याशी मनमोकळ बोलाव

मरताना तरी निदान कामगार

म्हणून जगल्याच समाधान तेवढ मिळावं…!

म्हणूनच म्हटलं

आपण आपल्या हक्कासाठी

आदोलन करू… मोर्चा काढू…

नाहीच काही जमल तर

उपोषण तरी करू…पण

आपण आपल्या हक्कासाठी आता तरी लढू..

© श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ आरसा ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक  

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ? आरसा श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

मज पारखून आणले 

बाजारातून लोकांनी,

दोरा ओवून कानातूनी 

टांगले खिळ्यास त्यांनी !

येता जाता, मज समोर 

कुणी ना कुणी उभा राही,

चेहरा पाहून पटकन 

कामास आपल्या जाई !

पण घात दिवस माझा 

आला नशिबी त्या दिवशी,

खाली पडता खिळ्यावरून

शकले उडाली दाही दिशी !

होताच बिनकामाचा 

लक्ष मजवरचे उडाले,

सावध होवून सगळे 

मज ओलांडू लागले !

रीत पाहून ही जनांची

मनी दुःखी कष्टी झालो,

नको पुनर्जन्मी आरसा 

विनवू जगदीशा लागलो !

विनवू जगदीशा लागलो !

© प्रमोद वामन वर्तक

दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.)

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #201 – कविता – ☆ होकर खुद से अनजाने… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “होकर खुद से अनजाने…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #201 ☆

☆ होकर खुद से अनजाने… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

पल पल बुनता रहता है ताने-बाने

भटके ये आवारा मन चौसर खाने।

*

बीत रहा जीवन

शह-मात तमाशे में

साँसें तुली जा रही

तोले माशे में

अनगिन इच्छाओं के

होकर दीवाने……..।

*

कुछ मिल जाए यहाँ

वहाँ से कुछ ले लें

रैन-दिवस मन में

चलते रहते मेले

रहे विचरते खुद से

होकर अनजाने……।

*

ज्ञानी बने स्वयं

बाकी सब अज्ञानी

करता रहे सदा ये

अपनी मनमानी

किया न कभी प्रयास

स्वयं को पहचानें……।

*

अक्षर-अक्षर से कुछ

शब्द गढ़े इसने

भाषाविद बन अपने

अर्थ मढ़े इसने

जाँच-परख के नहीं

कोई हैं पैमाने…….।

*

 रहे अतृप्त सशंकित

 सदा भ्रमित भय में

 बीते समूचा जीवन

 यूँ ही संशय में

 समय दूत कर रहा

 प्रतीक्षा सिरहाने..।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 26 ☆ धूप… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 26 ☆ धूप… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

डर गई है धूप

घर के मुखौटों से

खिड़कियों से लौट जाती है।

 

एक चेहरा

धुंध में लिपटा हुआ

अँधेरे में हाँफता है

कोई जैसे

तंग गलियों से निकल

रोशनी में झाँकता है

कब हँसी है धूप

बैठी मुँडेरों पर

दिन गुजरता शाम गाती है।

भूख चूल्हा

सुलगता है पेट में

रोटियाँ सिकती रहीं हैं

मंडियों तक

दलालों के जाल में

मछलियाँ फँसती रहीं हैं

बाज़ारों में हो

रहे नीलाम रिश्ते

बेबसी बस कुनमुनाती है।

व्यक्तिवादी

सोच का ले आइना

देखते अपनी ही सूरत

गढ़ रहे हैं

अपने हाथों स्वयं की

अहंकारी एक मूरत

खेलते हैं खेल

जो मिल सभागारों में

उन्हें कुछ न शर्म आती है

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ फिर से दुनिया को बना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “फिर से दुनिया को बना “)

✍ फिर से दुनिया को बना… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

मुझको सागर न सही कतरा अता कर मौला

तिश्नगी कुछ तो घटा हौठ भिगा कर मौला

तीरगी के है अलावा नहीं तक़दीर में कुछ

रोशनी कर दे मेरा ज़िस्म जला कर मौला

ज़ुल्म मज़लूम पँ होते है तेरी दुनिया में

फिर से दुनिया को बना इसको मिटा कर मौला

मैं भी वंदा हूँ तुम्हारा ही भले नेक नहीं

अपनी औलाद को क्या मिलना सता कर मौला

आँख से काम न ले कान से सुनता केवल

ऐसे कानून से रख मुझको बचा कर मौला

जिसने गुलशन के लिए जान तसद्दुक कर दी

है वो सादाब चमन उसको भुलाकर मौला

साँप को घर से निकाला तो घुसा है अजगर

हाथ मलता है अरुण चोट ये ख़ा कर मौला

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 85 – प्रमोशन… भाग –3 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आलेखों की एक नवीन शृंखला “प्रमोशन…“ की अगली कड़ी।

☆ आलेख # 85 – प्रमोशन… भाग –3 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

बैंक की इस शाखा के उस दौर के स्टाफ में मुख्यतः अधिकारी वर्ग और अवार्ड स्टाफ में क्रिकेट का शौक उसी तरह के अनुपात था जैसा आम तौर पर पाया जाता है, याने खेलने वाले कम और सुनने वाले ज्यादा. देखने वाले बिल्कुल भी नहीं थे क्योंकि मैच और खिलाड़ियों के दर्शन, दूरदर्शन सेवा न होने से, उपलब्ध नहीं थे. ये वो दौर था जब 1983 में विश्वकप इंग्लैंड की जमीं पर खेला जा रहा था और तत्कालीन मीडिया का यह मानना था कि भारत की टीम पिछले दो विश्व कप के समान ही उसमें सिर्फ खेलने के लिए भाग ले रही थी जबकि उस दौर की सबसे सशक्त क्रिकेट टीम “वेस्टइंडीज” विश्वकप पाने के प्रबल आत्मविश्वास के साथ इंग्लैंड आई थी. पर 23 जून 1983 की रात को हुआ वो, जिसने कपिलदेव के जांबाजों की इस टीम को विश्वकप से नवाज दिया. पूरा देश इस अकल्पनीय विजय से झूम उठा और क्रिकेट का ज़ुनून न केवल देश में बल्कि बैंक पर भी छा गया. वो जो रस्मीतौर पर सिर्फ स्कोर पूछकर क्रिकेट प्रेमी होने का फर्ज निभा लेते थे, अब क्रिकेट की बारीकियों पर और खिलाड़ियों पर होती चर्चा में रस लेने लगे. कपिलदेव और मोहिंदर नाथ के दीवानों और गावस्कर के स्थायी प्रशंसकों में पिछले रिकार्ड्स और तुलनात्मक बातें, बैंक की दिनचर्या का अंग बन गईं. और ऐसी चर्चाओं का अंत हमेशा खुशनुमा माहौल में तरोताज़ा करने वाली चाय के साथ ही होता था. कभी ये बैंक वाली चाय होती तो कभी बाहर के टपरे नुमा होटल की. ये टपरेनुमा होटल वो होते हैं जहाँ बैठने की व्यवस्था तो बस कामचलाऊ होती है पर चाय कड़क और चर्चाएं झन्नाटेदार और दिलचस्प होती हैं. क्रिकेट के अलावा चर्चा के विषय उस वक्त के करेंट टॉपिक भी हुआ करते थे पर उस समय राजनीति और राजनेता इतने बड़े नहीं हुए थे कि दिनरात उनपर ही बातें करके टाइम खोटा किया जाये. सारे लोग उस समय जाति और धर्म को घर में परिवार के भरोसे छोड़कर बैंक में निष्ठा के साथ काम करने और अपनी अपनी हॉबियों के साथ क्वालिटी टाईम बिताने आते थे. इन हॉबीज में ही कैरम, टेबलटेनिस, शतरंज और करेंट अफेयर्स पर बहुत ज्ञानवर्धक चर्चाएं हुआ करती थीं. क्रिकेट के अलावा ऑपरेशन ब्लूस्टार भी उस दौर की महत्वपूर्ण घटना थी और बीबीसी के माध्यम से इसके अपडेट्स कांट्रीब्यूट करने में प्रतियोगिता चलती थी. यहाँ पर, वो जो चेक पोस्ट करते थे याने एकाउंट्स सेक्शन और वो जो चैक पास करते थे (अधिकारी गण)और वो भी जो इन चैक्स का नकद भुगतान करते थे याने केश डिपार्टमेंट, सब एक साथ या कुछ समूहों में इन परिचर्चाओं का आनंद लिया करते थे. एक टीम थी जिसमें लोग अपने रोल के दायरे से ऊपर उठकर, मनोरंजन नामक मजेदार टाइमपास रस में डूब जाते थे. ऐसी शाखाओं में काम करना, एक और परिवार के साथ दिन बिताने जैसा लगता था हालांकि दोनों की भूमिका और जिम्मेदारियों में फर्क था जो कि स्वाभाविक ही था.

इस शाखा में दिन और रात के हिसाब से परे सिक्युरिटी गार्ड भी थे जो अपनी तयशुदा भूमिका निभाने के अलावा भी बहुत सारी जानकारियों के मालिक थे, वाट्सएपीय ज्ञान इन्हीं की प्रेरणा से अविष्कृत और परिभाषित हुआ. इनमें कुछ अच्छे थे तो कुछ बहुत अच्छे. अब जैसा कि होता है कि बहुत अच्छों की कसौटी पर प्रबंधन को भी कसौटी पर परखे जाने के लिए चौकस या तैयार होना पड़ता है तो वैसा हिसाब हर जगह की तरह यहाँ भी था. ऐसा भी था कि प्रबंधन के अलावा ये यूनियन का भी काम बढ़ाने वाले होते थे. ये लोकल सेक्रेटरी का बहुत टाईम खाया करते थे.

ये शाखा, सामने वाली शाखा और सेठ जी की गद्दी का कारोबार सब बहुत मजे से आनंदपूर्वक चल रहा था. लड्डुओं की मिठास यदाकदा समयानुकूल और विभिन्न कारणों के साथ मिलती रहती थी. पर बैंक को और ऊपरवाले को ये आनंद एक लिमिट से ऊपर मंजूर नहीं हुआ और उन्होंने चेक पोस्ट करने वालों Accounts वालों और उन चैक्स का भुगतान करने वालों Cash वालों की पदोन्नति की प्रक्रिया प्रारंभ करने का निर्णय ले लिया. प्रमोशन का सर्कुलर आने पर क्या हुआ इसका मनोरंजक संस्मरण अगले एपीसोड में. कृपया इंतजार करें. प्रमोशन टेस्ट अगर मौलिक और मनोरंजक रचनाओं पर कमेंट्स करने पर आधारित होता तो आप में से 80% तो कभी पास ही नहीं हो पाते. 😃😃😃

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 201 ☆ आल्या गौराई गं सखे ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 201 ?

आल्या गौराई गं सखे ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

एक गौरी जन्मा आली

जेष्ठ नक्षत्री या दिनी

रूपवती, गुणवती

बुध्दीवान, सुनयनी ॥

 

भाद्रपद मासोत्तम

गौरी जेवणाचा दिन

जन्म झाला देहू गावी

योग हा मणीकांचन ॥

 

आली गौराई गं सखे

घरी सोन पावलांनी

माझी सून – सोनसळी

सुकोमल, सुकेशिनी ॥

 

कधी गौरी, कधी दुर्गा

परी रूपे पार्वतीची

माझी लेक, माझी सून

दोन्ही कृपा गौराईची ॥

 

एक प्रीती दूजी प्रिया

नियतीचीच किमया

सुलक्षणी, सुस्वरूप

अरूंधती, अनसूया ॥

 

गौरायांचे घरोघरी

होते नित्य आगमन

सून आणि लेक छान

आहे गौराई समान ॥

 

करू सन्मान दोघींचा

सोनपावलांना जपू

गौराईचा वसा असा

 सखे, जगताला अर्पू ॥

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 22 – आश्वासन शहदीले हैं… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – आश्वासन शहदीले हैं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 22 – आश्वासन शहदीले हैं ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

केशर की क्यारी में ऊगे

संस्कार पथरीले हैं 

 

बातों में तो रस मलाई है 

किन्तु आचरण क्रूर कसैले 

उपदेशों में अमृत वर्षा 

दुष्प्रचार हैं घृणित विषैले 

तन से तो दिखते सन्यासी

मन से बहुत रसीले हैं 

 

है कितना पाखण्ड आजकल 

राजनीति के गलियारों में 

नेता बाहुबली शामिल हैं 

चोर, डाकुओं, हत्यारों में 

इन धोखेबाजों के सारे

आश्वासन शहदीले हैं 

 

आदमखोर मगरमच्छों को 

पाला है मीठी झीलों ने 

उनको ही आहार बनाया 

जब पानी माँगा भीलों ने 

जिन्हें केंचुआ समझा हमने

वे विषधर जहरीले हैं

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 99 – मनोज के दोहे…हिन्दी ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 99 – मनोज के दोहे… हिन्दी ☆

दोहे लिखे मनोज ने, भाषा सहज सुबोध।

समझ सभी को आ सकें, हटें सभी अवरोध ।।

 

हिन्दी हिन्दुस्तान की, भारत को अभिमान।

भाषाओं में श्रे़ष्ठतम, संस्कृत का अभियान।।

 

धरा कनाडा में बड़ा, सरन घई का नाम।

हिंदी के प्रति हैं खड़े, करें अनोखे काम।।

 

वसुधा की संपादिका, स्नेहा जी का नाम।

ग्रंथों की हैं लेखिका, देश कनाडा धाम।।

 

अखिल विश्व हिंदी समिति, संयोजक गोपाल।

हिंदी का ध्वज ले चले, तिलक सजा है भाल।।

 

अनगिन लेखक हैं वहाँ, हिंदी के विख्यात।

साहित्य-कुंज, प्रयास में, लिखते हैं दिनरात।।

 

हिंदी को अपनाइए, बढ़ी जगत में शान।

मोदी ने भाषण दिए, हम सबको अभिमान ।।

 

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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