हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 198 ☆ # “टूटे दिल की पुकार…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता टूटे दिल की पुकार…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 198 ☆

☆ # “टूटे दिल की पुकार…” # ☆

जिंदगी में मुझे मिली

मात बार बार

वो जीतते रहे

हम देखते रहे हार

 

वो हुनरमंद हैं  

पर रूढ़ियों में बंद हैं

तोड़ना दिलों को

उनका है कारोबार

 

वो नभ में उड़ रहे हैं

सितारों से जुड़ रहे हैं

उन्हें धरा पर बसने वालों से

नहीं कोई सरोकार

 

कभी कलियां मिलीं  

कभी सूनी गलियां मिलीं

हम ढूंढते रहे उनको

जिनपर था ऐतबार

 

उनको पाने के लिए

प्यार जताने के लिए

अपना बनाने के लिए

बेच दिया घर-बार

 

ना वो हमे पा सके

ना हम उनको पा सके

हमारी बेबसी पर

हंस रहा संसार

 

जीवन के इस मोड़ पर

सब गये छोड़कर

यादों के सहारे

जीना कितना है दुश्वार

 

नहीं किसी से गिला   

जो था नसीब में वो मिला

पतझड़ के मौसम में

मौत का है इंतज़ार

 

माशूक को दिल तोड़ने की अदा ना देना

प्यार में किसी को ऐसी सजा ना देना

जो तड़पते रहे उम्र भर

ऐ मेरे परवरदिगार  /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 265 ☆ कथा-कहानी – एक बेचेहरा आदमी ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम कहानी – ‘एक बेचेहरा आदमी’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 265 ☆

☆ कथा-कहानी ☆ एक बेचेहरा आदमी

 ‘कैसी मंहगाई है कि चेहरा भी,
बेच के अपना खा गया कोई।’

  – कैफ़ी आज़मी

जोगिन्दर कॉलेज के दिनों से वैसा ही था— काइयां, ख़ुदगर्ज़ और रंग बदलने में माहिर। कॉलेज में वह अपनी ज़रूरत के हिसाब से दोस्तियां बदलता रहता था। इम्तिहान के दिनों में वह ज़हीन लड़कों पर अपना प्रेम बरसाता था, और फिर जुलाई से फरवरी तक के लिए उनके प्रति तटस्थ हो जाता था।

कॉलेज में उसने राजनीति भी की थी। शुरू में वह कुछ छात्र-नेताओं का चमचा बना रहा।  इस मामले में भी वह निष्ठावान नहीं था। नेता की ताकत के घटते ही वह अपनी निष्ठा भी बदल लेता था। उसका हाल कुछ कुछ उन आदिम कबीलों की स्त्रियों जैसा था जो अपने गांव के बीच में गोल बनाकर गप लड़ातीं,अपने कबीले और किसी दूसरे कबीले के पुरुषों के बीच होती लड़ाई को आराम से देखती थीं, और विजेता कबीले के पुरुषों के साथ खुशी-खुशी हो लेती थीं।

फिर धीरे-धीरे वह कुशल छात्र-नेता बन गया। वहां भी वह प्राचार्य के सामने हंगामा करके दूसरे छात्रों को प्रभावित करता था और फिर स्थिति जटिल होने पर धीरे से खिसक लेता था। छात्रों को धोखे में रखकर वह अन्ततः अपना ही उल्लू सीधा करता था। धीरे-धीरे उसने शहर के राजनितिज्ञों से अपने सूत्र बना लिये और फिर उनकी मदद से एक प्राइवेट संस्थान में घुस गया। सरकारी नौकरी में घुस जाना भी उसके लिए मुश्किल नहीं था, लेकिन वह किसी भी कीमत पर शहर नहीं छोड़ना चाहता था।

उस प्राइवेट संस्थान में उसने तेज़ी से तरक्की की। उसकी मेज़ें बड़ी तेज़ी से बदलीं। पुरानी घटिया टेबिल से वह नयी चमकदार टेबिल पर आया और फिर जल्दी ही वह टेलीफोन वाली टेबिल पर पहुंच गया, जिसके पीछे गद्देदार आरामदेह कुर्सी थी।इस दौड़ में उसके कई सीनियर उससे पीछे रह गये और वह दफ्तर में ईर्ष्या और द्वेष का पात्र बन गया। इसके साथ ही उसके आसपास कुछ चापलूसों चुगलखोरों का समूह भी तैयार हुआ जो उसकी स्थिति का लाभ उठाना चाहते थे।

जोगिन्दर की तरक्की की वजह यह थी कि वह शुरू से ही दफ्तर के काम के बजाय मालिक के बंगले के चक्कर लगाने को महत्व देता था। सवेरे-शाम उसका स्कूटर मालिक के बंगले के पोर्च में देखा जा सकता था। मालिक से बहुत से निजी काम वह इसरार करके ले लेता और फिर  उन्हें कराने के लिए दौड़ता रहता था। दफ्तर में जोगिन्दर की रणनीति का पता सबको चल गया था, इसलिए उसके अफसर उससे छेड़छाड़ नहीं करते थे।

जोगिन्दर ने अपने सूत्र खूब फैला रखे थे, इसीलिए उसे कोई भी काम करा लेने में दिक्कत नहीं होती थी। वह खुशामद से लेकर पैसे तक फेंकता चलता था, इसीलिए उसका काम कहीं रुकता नहीं था। झूठी आत्मीयता दिखाने और बात करने में वह सिद्ध था। जिससे काम कराना हो उसकी पारिवारिक समस्याओं और निजी दिक्कतों से वह बात शुरू करता था और फिर धीरे-धीरे मुद्दे की बात पर आता था। उनके भी बहुत से काम वह साध देता था। इसीलिए उसका संपर्क-क्षेत्र निरन्तर व्यापक होता जाता था। लगता था कोई काम उसके लिए असंभव नहीं है। लेकिन आदमी के पद से हटते ही जोगिन्दर की प्रेम की टोंटी उसके लिए कस जाती थी।

जब कभी वह मिलता, उसके चेहरे पर  आत्मसंतोष की चमक दिखती थी। अपने रंग-ढंग के प्रति कोई मलाल उसके चेहरे पर नज़र नहीं आता था। मैं जानता था कि वह अपनी कारगुज़ारियों से बहुतों का हक छीन रहा है, बहुतों को दुखी कर रहा है, लेकिन उसे इन सब बातों की परवाह नहीं थी।

वह कभी-कभी कॉफी हाउस में टकरा जाता था और फिर थोड़ा वक्त उसके साथ गुज़र जाता था। मेरी तरफ से कोई कोशिश न होने पर भी वह बात को अपनी ज़िन्दगी के ‘स्टाइल’ पर ले आता था और फिर उसे उचित ठहराने के लिए तर्क देने लगता। ऐसे मौकों पर वह किसी अपराध-बोध से ग्रस्त लगता था। वह कहता, ‘ज़िन्दगी के साथ एडजस्ट करना ज़रूरी है। सर्वाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट का ज़माना है। जो आज के ज़माने में अपने को ढाल नहीं पता वह उसी तरह खत्म हो जाता है जैसे अनेक आदिम जीव खत्म हो गये।’

कई बार मेरे साथ राजीव भी होता। वह मेरे मुकाबले ज़्यादा असहिष्णु है। वह नाखुश होकर कहता, ‘फ़िटेस्ट से तुम्हारा मतलब क्या है? फ़िट कौन है?’

जोगिन्दर का चेहरा उतर जाता, लेकिन वह हार नहीं मानता था। कहता, ‘फ़िट से मेरा मतलब है कि अब मैटीरियलिज़्म का ज़माना है। पैसे की कीमत है। पैसे के बिना सोसाइटी में कोई इज़्ज़त नहीं होती। ‘वैल्यूज़ फैल्यूज़’ की बातें अब बेमतलब हो गयी हैं। इस बात को समझना चाहिए।’

राजीव भीतर दबे गुस्से से पहलू बदलकर कहता, ‘पैसे तो सभी कमाते हैं, लेकिन सवाल यह है कि कितना, किस तरह से और कितनी तेज़ी से पैसा चाहिए। बहुत ज़्यादा और बहुत तेज़ी से पैसा चाहिए तो वह गलत तरीके से ही मिल सकता है। सर्वाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट का सिद्धान्त आदमी पर लागू नहीं होता। आदमी का काम सिर्फ गलत चीजों के हिसाब से अपने को ढालना ही नहीं, ज़माने को बिगड़ने से रोकना भी है। तुम अपने तरीकों को जस्टिफाई करने के लिए ये सब गलत तर्क मत दो।’

जोगिन्दर अपनी उंगलियों को तोड़ने मरोड़ने लगता और उसकी नज़रें झुक जातीं। वह अक्सर जवाब देता, ‘बिना पैसे के ज़िन्दगी की ज़रूरतें पूरी नहीं हो सकतीं। ज़िन्दगी में थोड़ा बेरहम और स्वार्थी होना ही पड़ता है।’

राजीव का गुस्सा उसके चेहरे पर झलक जाता। बात को खत्म करते हुए वह कड़वाहट से कहता, ‘ठीक कहते हो। पैसा ज़रूर चाहिए। सवाल सिर्फ यह  है कि वह आदमी की तरह कमाया जाए या केंचुए,लोमड़ी और सुअर की तरह।’

ऐसे मौकों पर जोगिन्दर का चेहरा लाल हो जाता और वह जल्दी कॉफी खत्म करके उठ जाता।

लेकिन हमारी बहसों से उसकी दिनचर्या और उसकी ज़िन्दगी में कोई फर्क नहीं पड़ा। वह बराबर अपने मालिक के बंगले के चक्कर लगाता था और फिर उसके काम के लिए शहर में दौड़ता रहता था। हर चार छह महीने में उसके पास नया स्कूटर होता। उसके हाथों में अंगूठियों की संख्या भी बराबर बढ़ रही थी।

धीरे-धीरे उसका शरीर बेडौल हो रहा था। उसकी तोंद बेतरह बढ़ रही थी और उसकी आंखों के नीचे की खाल झूलने लगी थी। ये सब उसकी अनियंत्रित जीवन-शैली के सबूत थे।

फिर एक बार मुझे भ्रम हुआ जैसे उसके माथे के पास का कुछ हिस्सा पारदर्शी हो गया हो। मैंने उसे बार-बार देखा, लेकिन वह हिस्सा  मुझे नज़र नहीं आया। अगली बार मुझे लगा जैसे उसके चेहरे का कुछ और हिस्सा गायब हो गया हो। इस बार मुझसे उससे पूछे बिना नहीं रहा गया।

उसने कुछ चिन्तित भाव से उत्तर दिया, ‘तुम ठीक कह रहे हो। कोई अजीब बीमारी है। मुझे भी शुरू में पता नहीं चला। दफ्तर में लोगों ने बताया, तब शीशे में गौर से देखा। डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन बीमारी उनकी समझ में नहीं आ रही है। रोग बढ़ रहा है। लोगों ने बाहर जांच कराने का सुझाव दिया है।’

अब वह जब भी मिलता, उसके चेहरे का कुछ और हिस्सा गायब मिलता। अन्ततः वह एक अजूबा बनने लगा। लोग उसके पास से गुज़रने पर रुक कर उसे देखने लगते।

फिर  वह कई दिन तक नहीं दिखा। एक दिन बाज़ार में किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। देखा, एक मोटा आदमी था, लेकिन गर्मी के बावजूद ऊनी टोपा पहने था और आंखों पर काला चश्मा। गरज़ यह कि पूरा चेहरा ढका था।

आवाज़ से मैं जान गया कि वह जोगिन्दर था। बोला, ‘मुंबई गया था, लेकिन वहां डॉक्टरों ने रोग लाइलाज बतलाया। चेहरा अब पूरी तरह गायब हो गया है, इसीलिए मुझे ‘इनविज़िबिल मैन’ की तरह यह टोपा और चश्मा पहनना पड़ा। टोपे चश्मे के बिना धड़ के ऊपर कुछ नहीं रहता।’

फिर कुछ रुक कर बोला, ‘मैंने रोग का कारण समझ लिया है, लेकिन मुझे कोई अफसोस नहीं है। ज़िन्दगी में कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। नो रिग्रेट्स। अगर बाकी सब कुछ ठीक-ठाक चले जो चेहरे के बिना काम चल सकता है।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 265 – वासुदेव: सर्वम् ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆   संजय उवाच # 265 ☆ वासुदेव: सर्वम्… ?

अपौरूषेय आदिग्रंथ ऋग्वेद का उद्घोष है-

॥ सं. गच्छध्वम् सं वदध्वम्॥

(10.181.2)

अर्थात साथ चलें, साथ (समूह में) बोलें।

ऋग्वेद द्वारा प्रतिपादित सामूहिकता का मंत्र मानुषिकता एवं एकात्मता का प्रथम अधिकृत संस्करण है।

अथर्ववेद एकात्मता के इसी तत्व के मूलबिंदु तक जाता है-

॥ मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा।

सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया॥2॥

(3.30.3)

अर्थात भाई, भाई से द्वेष न करे, बहन, बहन से द्वेष न करे, समान गति से एक-दूसरे का आदर- सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें।

आधुनिक विज्ञान जब मनुष्य के क्रमिक विकास की बात करता है तो शनै:-शनै: एक से अनेक होने की प्रक्रिया और सिद्धांत प्रतिपादित करता है। उससे हजारों वर्ष पूर्व भारतीय दर्शन और ज्ञान के पुंज भारतीय महर्षि एकात्मता का विराट भारतीय दर्शन लेकर आ चुके थे। महोपनिषद का यह श्लोक सारे सिद्धांतों और सारी थिअरीज की तुलना में विराट की पराकाष्ठा है।

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

(अध्याय 4, श्लोक 71)

अर्थात यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।

मनुष्य की सामाजिकता और सामासिकता का विराट दर्शन है भारतीय संस्कृति।  ’ॐ सह नाववतु’ गुरु- शिष्य द्वारा एक साथ की जाती प्रार्थना में एकात्मता का जो आविर्भाव है वह विश्व की अन्य किसी भी सभ्यता में देखने को नहीं मिलेगा। कठोपनिषद में तत्सम्बंधी श्लोक देखिये-

॥ ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥19॥

अर्थात परमेश्वर हम (शिष्य और आचार्य) दोनों की साथ-साथ रक्षा करें, हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए, हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें, हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो, हम दोनों परस्पर द्वेष न करें।

इस तरह की सदाशयी भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है। निर्मल मन से निर्मल भविष्य का उदय होता है। उदय और अस्त का परम अद्वैत दर्शन है श्रीमद्भागवत गीता। गीता में स्वयं योगेश्वर कहते हैं-

यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।

न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्॥

(गीता 10।39)

अर्थात, हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज है, वह मैं ही हूँ। मेरे बिना कोई भी चर-अचर प्राणी नहीं है।

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि ॥

(11/ 7)

अर्थात, हे अर्जुन! तू मेरे इस शरीर में एक स्थान में चर-अचर सृष्टि सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को देख और अन्य कुछ भी तू देखना चाहता है उन्हे भी देख।

एकात्म भाव का विस्तृत विवेचन करते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।

तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥

(6।30)

अर्थात् जो सबमें मुझको देखता है और मुझमें सबको देखता है, उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता।’

इस अदृश्य का यह सारगर्भित दृश्य समझिये इस उवाच से-

यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु।

प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम॥

अर्थात जैसे पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) संसार के छोटे-बड़े सभी पदार्थों में प्रविष्ट होते हुए भी उनमें प्रविष्ट नहीं हैं, वैसे ही मैं भी विश्व में व्यापक होने पर भी उससे संपृक्त हूँ।

संपृक्त श्रीमद्भागवत के इस अनहद नाद को सुनिए-

अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत् सदसत परम।

पश्चादहं यदेतच्च योडवशिष्येत सोडस्म्यहम

 (2।9।32)

अर्थात सृष्टि के पूर्व भी मैं ही था, मुझसे भिन्न कुछ भी नहीं था और सृष्टि के उत्पन्न होने के बाद जो कुछ भी यह दिखायी दे रहा है, वह मैं ही हूँ। जो सत्, असत् और उससे परे है, वह सब मैं ही हूँ तथा सृष्टि के बाद भी मैं ही हूँ एवं इन सबका नाश हो जाने पर जो कुछ बाकी रहता है, वह भी मैं ही हूँ। 

सांगोपांग सार है, ‘वासुदेव: सर्वम्।’ चर हो या अचर, वासुदेव के सिवा जगत में दूसरा कोई नहीं है। अत: कहा गया, चराचर में एक ही आत्मा देख, एकात्म हो।…इति।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 212 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 212 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 212) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 212 ?

☆☆☆☆☆

वो मेरे दिल से बाहर

निकलने का रास्ता न ढूंढ़ सके

दावा करते थे जो मेरी

रग-रग से वाक़िफ़ होने का…

☆☆

Couldn’t even find a way 

to get out of my heart

One who used to claim

of knowing me inside out…

☆☆☆☆☆

हिचकियों को ना भेजो

अपना मुखबिर बनाकर

हमें और भी काम है

तुम्हें याद करने के सिवाय…

☆☆

Do not send hiccups as

your snooping informer

Have got plenty of other work

than remembering you…!

☆☆☆☆☆

पुरानी होकर भी खास 

होती जा रही है…

मोहब्बत बेशर्म है जनाब     

बेहिसाब होती जा रही है…!

☆☆

Getting older but becoming 

Distinctively  more special…

Love is brazenly shameless sir!

Growing incalculably day by day!

☆☆☆☆☆

सिमटते जा रहे हैं दिल

और ज़ज्बातों के रिश्ते..

सौदा करने में जो माहिर है

बस वही कामयाब है…

☆☆

Shrinking are the relationships

of the hearts and emotions…

Just the experts in bargaining,

Are the ones who’re successful!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 212 ☆ गीत – समा गया तुम में  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय गीत – समा गया तुम में )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 212 ☆

☆ गीत – समा गया तुम में ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

समा गया है तुममें

यह विश्व सारा

भरम पाल तुमने

पसारा पसारा

*

जो आया, गया वह

बचा है न कोई

अजर कौन कहिये?

अमर है न कोई

जनम बीज ने ही

मरण बेल बोई

बनाया गया तुमसे

यह विश्व सारा

भरम पाल तुमने

पसारा पसारा

*

किसे, किस तरह, कब

कहाँ पकड़ फाँसे

यही सोच खुद को

दिये व्यर्थ झाँसे

सम्हाले तो पाया

नहीं शेष साँसें

तुम्हारी ही खातिर है

यह विश्व सारा

वहम पाल तुमने

पसारा पसारा

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (18 नवंबर से 24 नवंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (18 नवंबर से 24 नवंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आज मैं आपको सबसे पहले इस सप्ताह अर्थात 18 नवंबर से 24 नवंबर 2024 में जन्म लेने वाले बच्चों के भविष्य के बारे में बताऊंगा। उसके उपरांत इस सप्ताह के राशिवार राशिफल की चर्चा की जाएगी।

इस सप्ताह के प्रारंभ में 18 तारीख को रात के 00 बजे से प्रातः काल 7:28 a.m. तक जन्म लेने वाले बालक की राशि वृषभ होगी। यह बालक अपनी पूरी आयु में सुख सुविधाओं का अच्छा उपभोग करेंगे।

18 नवंबर को 7:28 a.m. से लेकर 20 तारीख को 12:52 p.m. तक के बच्चों की राशि मिथुन होगी। ये बालक भाग्यशाली होंगे।

 20 तारीख के 12:52 p.m. से लेकर 22 तारीख को 8:28 p.m.तक जन्म लेने वाले बच्चों कर्क राशि के होंगे। इन बालकों को अपनी संतान से बहुत सुख मिलेगा।

 इसके उपरांत इस सप्ताह के अंत तक जन्म होने वाले बच्चों की जन्म राशि सिंह रहेगी। यह बालक उच्च अधिकारी हो सकते हैं।

 आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

 इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। भाग्य भी थोड़ा बहुत आपका साथ दे सकता है। सुख सुविधाओं में कमी आएगी। समाज में प्रतिष्ठा में भी कमी आएगी। इस सप्ताह आपके लिए 20 तारीख के दोपहर के बाद से लेकर 21 और 22 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें। मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको थोड़ी सी मानसिक परेशानी हो सकती है। आपके जीवनसाथी और पिताजी का स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा। माता जी को थोड़ा सा कष्ट हो सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 नवंबर हितवर्धक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मिथुन राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में प्रगति होगी। भाग्य आपका एकाएक साथ दे सकता है। आपका व्यापार ठीक चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 नवंबर के दोपहर तक का समय अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। आपके शत्रु आपको परेशान करने का प्रयास कर सकते हैं। इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20 तारीख की दोपहर से 21 और 22 तारीख किसी भी कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। 18, 19 और 20 तारीख की दोपहर तक आपको कोई भी कार्य पूर्ण सावधानी के साथ करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का जल और दूध से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी, आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। आपके सुख में वृद्धि होगी। शत्रुओं को आप आसानी से परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 20, 21 और 22 नवंबर को आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई बहनों के साथ संबंध थोड़ा ठीक हो सकता है। आपके शत्रु इस सप्ताह शांत रहेंगे। भाग्य से आपको मदद मिलेगी। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 23 और 24 तारीख को आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपको धन की अच्छी प्राप्ति हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। आपको अपनी संतान से सहायता प्राप्त होगी। इस सप्ताह आपके लिए 20 तारीख के दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका आपकी माता जी का और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 20, 21 और 22 तारीख को भाग्य आपका साथ दे सकता है। इस सप्ताह आपको 18, 19 और 20 तारीख को सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। दुर्घटनाओं से सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। 20 की दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख को आपको सतर्क रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। व्यापार में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में सतर्क रहें। लंबी यात्रा का योग भी बन सकता है। आपके जीवनसाथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20 की दोपहर के बाद से 21 और 22 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए परिणाम दायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। सुख संबंधी सामग्रियों को आप खरीद सकते हैं। शत्रुओं से आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 23 और 24 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 20, 21 और 22 तारीख को आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। व्यापार में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्य सावधानी पूर्वक करें। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 18, 19 और 20 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए लाभ वर्धक है। 23 और 24 तारीख को आपको सावधानी पूर्वक कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “मेरे शब्दों में छुपकर मुस्कुराते हो तुम” (काव्य संग्रह) – कवयित्री : सुश्री पल्लवी गर्ग ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “मेरे शब्दों में छुपकर मुस्कुराते हो तुम” (काव्य संग्रह) – कवयित्री : सुश्री पल्लवी गर्ग ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆

पुस्तक : मेरे शब्दों में छुपकर मुस्कुराते हो तुम (काव्य संग्रह )

कवयित्री : पल्लवी गर्ग

प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर

मूल्य 225, पृष्ठ ; 132 (पेपरबैक)

☆ “काव्यगंध‌ से महकतीं कवितायें – पल्लवी गर्ग की मुस्कुराते हो तुम” – कमलेश भारतीय ☆

मेरे लिए पल्लवी गर्ग की कविताओं से  गुजरना यूं तो फेसबुक और पाठक मंच पर अक्सर होता है लेकिन कविताओं को एकसाथ पढ़ने का सुख कुछ और ही होता है। पल्लवी ने बड़े चाव से अपना ताज़ा प्रकाशित काव्य संग्रह ‘मेरे शब्दों में छुपकर मुस्कुराते हो तुम’ भेजा तो वादा किया कि सिर्फ पढ़ूंगा ही नहीं, अपने मन पर इसकी छाप भी लिखूंगा। कुछ दिन इसके पन्ने पलटता रहा, पढ़ता रहा, एक दो यात्राओं में यह मेरे साथ ही चलता रहा। शीर्षक इतना लम्बा कि कमलेश्वर की कहानी का शीर्षक याद आ गया- उस दिन वह मुझे ब्रीच केंडी पर मिली थी’ जैसा ! इसलिए प्रकाशक ने भी मुस्कुराते हो तुम बोल्ड कर दिया, जैसे यही शीर्षक हो !

प्रसिद्ध लेखक व ‘अन्विति’ के संपादक राजेंद्र दानी की भूमिका से यह विश्वास हो गया कवितायें पढ़कर कि कविताओं में ‘काव्यगंध’ है और मुझे भी ऐसी ही महक आई कविताओं को पढ़ते पढ़ते ! खुशी इसलिए भी हुई कि बहुत लम्बे समय बाद ताज़गी भरी छोटी छोटी कवितायें पढ़ने को मिलीं, सार्थक भी और स़देशवाहक भी। आपको बानगी दिखाता हूं :

परत दर परत

मन को उधेड़ना तब

सामने रफ़ूगर अच्छा हो तब

(रफ़ूगर)

……

प्रेम वह कमाल है

जिसमें दूरियां पाटी न जा सकें

नजदीकियां आंकीं न जा सकें !

(प्रेम)

…….

रुचता है मुझे हिमालय पर जाना

उसकी उत्ताल भुजाओं में

शिशु सा समा जाना !

(यात्रा)

…….

हाथ तो पकड़ लिया उसने

काश जान जाता

हाथ पकड़ने और थामने का अंतर !

(अंतर)

…….

धूप का एक टुकड़ा

तुम्हरी यादों की तरह

नजदीक आया

हटाने की कोशिश भी की

पर वह ढीठ भी तुम सा !

(धूप का टुकड़ा)

……

वक्त के बेहिसाब घाव दिखते हैं

तुम्हारी आंखों में

किसी दिन उन पर

प्रेम का मरहम लगायेंगे !

(वक्त के घाव)

……

पल्लवी गर्ग लिखती हैं कि मन के कोने तो बरसों से हर बात पी जाने के अभ्यस्त हो चुके होते हैं, यकायक उनमें एक कांप उठती है ! शून्य, चीत्कार, दर्द, मुस्कुराहट और अश्रु सब उफन पड़ते हैं! पल्लवी की कविताओं में ये सब मिल जायेंगे जगह जगह ! बस, दबे पांव आई पल्लवी की कवितायें उसकी पहली ही कविता नीलकुरिंजी की तरह ! कोई शोर नहीं, कोई प्रचार नहीं लेकिन ये कवितायें पाठकों के मन में खिल जायेंगीं, ऐसा मेरा विश्वास है।

बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित पल्लवी !

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-३ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-३  ☆ श्री सुरेश पटवा ?

सतपुड़ा पर्वतमाला दक्कन पठार के उत्तरी विस्तार को और हिन्द महासागर दक्षिणी छोर को परिभाषित करती है। पश्चिमी घाट, पश्चिमी तट से मिलकर दक्षिणी पठार की एक सीमा को चिह्नित करते हैं। पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच हरी-भरी भूमि की संकीर्ण पट्टी कोंकण क्षेत्र है; वही दिखने लगा है। पश्चिमी घाट दक्षिण की ओर बढ़ते हुए, कर्नाटक तट के साथ मालनाड (केनरा) क्षेत्र का निर्माण करते हैं, और नीलगिरि पहाड़ों पर समाप्त होते हैं, जो पश्चिमी घाट का पूर्वी विस्तार है। नीलगिरी लगभग उत्तरी केरल और कर्नाटक के साथ तमिलनाडु की सीमाओं पर एक अर्धचंद्राकार रूप में फैली हुई पर्वत श्रृंखलाएँ हैं, जिसमें पलक्कड़ और वायनाड पहाड़ियाँ और सत्यमंगलम पर्वतमालाएँ शामिल हैं। तमिलनाडु- आंध्र प्रदेश सीमा पर तिरूपति और अनाईमलाई पहाड़ियाँ इस श्रेणी का हिस्सा हैं। इन सभी पर्वत श्रृंखलाओं द्वारा सी-आकार से घिरा विशाल ऊंचा क्षेत्र है। पूर्व में पठार की सीमा पर कोई बड़ी ऊंचाई नहीं है। धरातल पश्चिमी घाट से पूर्वी तट तक धीरे-धीरे ढलान पर है। इसीलिए कृष्णा और कावेरी नदियाँ पश्चिम से पूर्व दिशा में बहकर बंगाल की खाड़ी में समाहित होती हैं।

हवाई जहाज़ ने पश्चिमी तट को अलविदा कह दक्कन के पठार का रुख़ किया है। आसमान साफ़ होने से हरीभरी भूमि पर जलाशय और नदियाँ सूर्य की तीखी किरणों से चमकती दिख जाती हैं। बीच में कुछ छोटी बस्तियाँ और खेतों की रंगोली भी दिखती हैं। दक्कन का पठार महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों के बड़े हिस्से को परिभाषित  करता है, जबकि केरल, तेलंगाना और आंध्र समुद्र तटीय क्षेत्र हैं। भूगोलवेत्ता बताते हैं कि दक्कन के इस विशाल ज्वालामुखीय बेसाल्ट बेड का निर्माण विशाल डेक्कन ट्रैप विस्फोट से 67 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस काल के अंत में हुआ था। कई हज़ार वर्षों तक चली ज्वालामुखीय गतिविधि से परत दर परत बनती गई। जब ज्वालामुखी शांत हो गए, तो उन्होंने ऊंचे इलाकों का एक क्षेत्र छोड़ दिया, जिसके शीर्ष पर आमतौर पर एक मेज की तरह समतल क्षेत्रों का विशाल विस्तार निर्मित हुआ। इसलिए इसे “टेबल टॉप” के नाम से भी जाना जाता है। भूविज्ञानियों ने डेक्कन ट्रैप का निर्माण करने वाला ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट हिन्द महासागर में वर्तमान रियूनियन द्वीप के नीचे स्थित होने की परिकल्पना की है।

हमारे एक साथी ने हमसे पूछा कि हम लोग हुगली कब पहुँचेंगे। हमने उन्हें बताता कि हम हुबली जा रहे हैं, हुगली नहीं। उन्होंने फिर पूछा हुबली जा रहे हैं या हुगली, स्थान का सही नाम क्या है। उनको बताया कि भैया हुबली दक्षिण भारत में एक जगह का नाम है जहां हम जा रहे हैं। वहाँ से वातानुकूलित बस में बैठ कर बेल्लारी ज़िले के हॉस्पेट पहुँचेंगे। जबकि हमारी गंगा मैया मुर्शिदाबाद से आगे कलकत्ता पहुँच कर हुगली नाम से जानी जाती हैं। उनके दिमाग़ की बत्ती जली तो बोले- हाँ मुझे पता था, कन्फर्म कर रहा था।

हम साढ़े चार बजे हुबली पहुँच गए । समूह के दो यात्री हैदराबाद उड़ान से पहुँच रहे थे। उनकी उड़ान शाम को पाँच बजे हुबली पहुँची। उनके पहुँचने पर साढ़े पाँच बजे हुबली से हम्पी के लिए रवाना हुए। दक्षिण के टेबल टॉप पर खिली धूप में चमकते नज़ारे देखते बनते हैं। हुबली से चले क़रीब एक घंटा हो चला है। दोपहर के बाद की चाय की याद सताने लगी है। कुछ साथी नींद निकालकर अंगड़ाई लेने लगे हैं। हुबली से चालीस किलोमीटर चलकर शीरगुप्पी नामक स्थान पर भारत फ़ैमिली रेस्टोरेंट पर निस्तार से फ़ारिग हो चाय निपटाई। फोटो और सेल्फी के ज़रूरी काम निपटा बस में सवार हो फिर चल दिए।

रास्ते में बाजरा, ज्वार, कपास और मूँगफली के हरे भरे खेत दिखाई देते हैं। चारों तरफ़ हरियाली का आलम है। यह इलाक़ा मराठों और हैदराबाद रियासत के बीच लंबे समय तक झगड़े की जड़ रहा। बीच-बीच में गढ़ियो के खंडहर दिखते हैं। हमारी हुबली से हम्पी यात्रा के रास्ते में ज़िला मुख्यालय कोप्पल आया, जिसे बाईपास से पार किया। कोप्पल जिला कर्नाटक का सर्वश्रेष्ठ बीज उत्पादन केंद्र है। यहां कई राष्ट्रीय बीज कंपनियों के फूल, फल, सब्जियों और दालों के बीज उत्पादन केंद्र स्थापित किए गए हैं।

क्रमशः… 

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 138 ☆ मुक्तक – ।। किसीके अंधेरे का चिराग बनके देखो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 138 ☆

☆ मुक्तक – ।। किसीके अंधेरे का चिराग बनके देखो।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

किसी के अंधेरे  का चिराग बन  कर देखिए।

किसी की आँखों का ख्वाब बन कर  देखिए।।

दर्द दूसरों का  भी    अपना कर   जरा देखो।

किसी   मुश्किल का  जवाब बन  कर देखिए।।

[2]

गिरते हुए को जरा   संभाल कर    देखो  तुम।

अपनी नज़र के  जरा    पार  भी   देखो  तुम।।

हाथ बढ़ाओगे तो  आँसुओं में मुस्कान मिलेगी।

किसी का दर्द  लेकर    जरा उधार देखो तुम।।

[3]

दूसरों के गमों को जो समझें वो इंसान होता है।

तकलीफ में दे  साथ    वही  एहसान  होता है।।

नेकी कर   दरिया  में   डाल देना ही है   जरूरी।

जला कर  हाथ जो बचाए वो भगवान होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 203 ☆ राम का नित ध्यान है… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “राम का नित ध्यान है। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 203 ☆ राम का नित ध्यान है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

पुण्य सलिला सरयू तट पर बसी शांति प्रदायानी

जन्म नगरी राम की है अयोध्या अति पावनी

*

स्वप्न पावन तीर्थ पुरियों में प्रथम जो मान्य है

सकल भारतवर्ष की है प्रिय सतत सन्मानिनी

*

सहन की जिसने उपेक्षा विधर्मी प्रतिकार की

सहेजे चुप रही मन में भावना उद्धार की

*

न्याय सदियों बाद पा रही नूतन सृजन

मन में आकाँक्षा सजाए राम के दरबार की

*

एक लंबी प्रतीक्षा के बाद आई है अब वह घड़ी

राम भक्तों के मन में भी मची है दर्शनों को हड़बड़ी

*

चाहते सब पूर्ण हो अब राम मंदिर का सृजन

जहां कर दर्शन प्रभु का पाए मन शांति बड़ी

*

राम हैं आदर्श जग के अपने सद व्यवहार से

सबके प्रिय औ’ पूज्य भी हैं सहज पावन प्यार से

*

विश्व को अनुराग उन पर उनके नित आदर्श पर

सभी मानव जाति को उनका सतत आधार है

*

सभी को सुख शांति दाई राम जी भगवान हैं

जिनको हर धर्मावलंबी व्यक्ति एक समान है

*

भेद छोटे बड़े का कोई दृष्टि में उनकी नहीं

हर एक की जीवन दशा पर सदा उनका ध्यान है

*

सदा सबका हो भला कोई ना कहीं विकार हो

दीन दुखियों का सदा कल्याण हो उद्धार हो

*

🙏💐जगत में सुख शांति सद्भावना विश्वास से प्राणियों के मनों में शुभकामना हो प्यार हो💐🙏

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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