हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 136 ☆ # पिता… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पिता… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 136 ☆

☆ # पिता… #

बचपन में उंगली पकड़कर

चलना सिखाना

कंधों पर बिठाकर दौड़ लगाना

रोज स्कूल ले जाना, लाना

मम्मी से छुपाकर चाकलेट खिलाना

आगे बढ़ने की राह दिखाना

टेबल रोज याद कराना

कभी गिर गये तो दौड़कर उठाना

बहादुर बच्चा है कहकर समझाना

यह सब बातें मासूम

जिसके संग जीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

स्कूल, कालेज में सब की सुनो  

खेलो कूदो पर शिक्षा को प्रथम चुनो

अपना ध्यान लक्ष्य पर रखो

खूब पढ़ाई करो

कामयाबी का स्वाद चखो

हर परीक्षा में प्रथम आया करो

मेरिट के मार्क लाया करो

नई नई बातें सीखने की आदत डालोगे, तभी तो सीखोगे

जीतने की आदत डालोगे

तभी तो जीतोगे

यह शिक्षा देते देते

जिसका हर पल बीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

बेटे की कामयाबी पर वो

फूला नहीं समाता है

यार दोस्तों में,

समाज में प्रतिष्ठा पाता है

बेटे की शादी पर

जश्न मनाता है

बहू को बेटी बनाकर

घर में लाता है

पोते के आगमन पर

खुशियां मनाता है

जीवन सफल हो गया

सब को बताता है

पत्नी के संग तीर्थयात्रा पर

जाता है

ईश्वर को भेंट

खुशी खुशी चढ़ाता है

भगवान का चरणामृत  

आंख मूंदकर पीता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है

 

जीवन के आखिरी पड़ाव पर

जीर्ण-शीर्ण काया की नाव पर

बहू-बेटे से दूर हो जाता है

अकेले पन से चूर हो जाता है

असाध्य बीमारियाँ घेर लेती हैं

हर व्यक्ति मुंह फेर लेते हैं  

जिंदादिल आदमी भी

बन जाता है बेचारा

वृद्ध पत्नी का ही होता है सहारा

मौत के इंतज़ार में

जिसकी सजी हुई चिता है

वह शख्स इस दुनिया में

सिर्फ एक पिता है/

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 137 ☆ अभंग – तुझी माझी मैत्री… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 137 ? 

☆ अभंग – तुझी माझी मैत्री… ☆

तुझी माझी मैत्री, मध गोड जसा

शुभ्र मऊ ससा, आकर्षक.!!

 

तुझी माझी मैत्री, लोणचे आंब्याचे

सदैव कामाचे, सर्व ऋतू.!!

 

तुझी माझी मैत्री, चांदणे टिपूर

आहे भरपूर, जागोजागी.!!

 

तुझी माझी मैत्री, भारी अवखळ

तैसीच चपळ, स्फूर्तिवंत.!!

 

तुझी माझी मैत्री, अशीच टीकावी

कधी नं सुटावी, मैत्री-गाठ.!!

 

तुझी माझी मैत्री, नाव काय देऊ

किती सांग गाऊ, मैत्री गीत.!!

 

तुझी माझी मैत्री, राज हे मनीचे

शब्द अंतरीचे, भावनिक.!!

 

कवी राज म्हणे, तुझी माझी मैत्री

मज आहे खात्री, सर्वोत्तम.!!

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ चांगदेव पासष्ठी – भाग-13… ☆भावानुवाद- सुश्री शोभना आगाशे ☆

सुश्री शोभना आगाशे

? इंद्रधनुष्य ?

☆ चांगदेव पासष्ठी – भाग-13…  ☆भावानुवाद-  सुश्री शोभना आगाशे ☆

मजकरवी गुरूमाऊली निवृत्तीने

न केवळ तुज उपदेशिले प्रेमाने

मजला ही दिधलासे आत्मानंद

स्वानुभवाच्या खाऊचा परमानंद॥६१॥

 

आता या कारणे आत्मज्ञान मिळता

डोळसपणे आपण परस्परा पाहता

दोघांमधला भेदाभेद न उरला

शाश्वत भेटी आत्मानंद पावला॥६२॥

 

ज्ञानामृत या पासष्ट ओव्यामधले

ज्याने त्यां दर्पण करुनि चाखिले

निश्चये पावेल शाश्वत आत्मसुख

सोडुनि देता अशाश्वत इंद्रियसुख॥६३॥

 

दिसते ते नसते, कारण ते नष्टते

नसते ते असते, परि नच दिसते

आत्मस्वरूपा त्या पाहण्या

गुरूपदेश घ्यावा ज्ञान वेचण्या॥६४॥

 

जाण तू निद्रेपलिकडे जे झोपणे

समजुनि जागृती पलिकडे जागणे

तुर्यावस्थेमध्ये या ओव्या रचणे

घडले गुरूकृपे ज्ञानदेव म्हणे॥६५॥

 

© सुश्री शोभना आगाशे

सांगली 

दूरभाष क्र. ९८५०२२८६५८

निवेदन- आज याबरोबरच चांगदेव पासष्टी हे सदर संपत आहे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #198 ☆ व्यंग्य – ‘अंतर्राष्ट्रीय कवि और ख़तरनाक समीक्षक’ ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य ‘अंतर्राष्ट्रीय कवि और ख़तरनाक समीक्षक’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 198 ☆

☆ व्यंग्य ☆ ‘अंतर्राष्ट्रीय कवि और ख़तरनाक समीक्षक’

नगर के जाने-माने अंतर्राष्ट्रीय कवि सरतारे लाल ‘निश्चिन्त’ सवेरे सवेरे टहलने निकले थे। जब से उन्हें दुबई और कनाडा के कवियों के साथ ऑनलाइन कविता-पाठ का मौका मिला था तब से वे छलाँग लगाकर स्थानीय से अंतर्राष्ट्रीय हो गये थे। कोविड के काल में कई स्थानीय स्तर के लेखक अंतर्राष्ट्रीय का पद पा गये। तब से ‘निश्चिन्त’ जी ने स्थायी रूप से अपने नाम के आगे ‘अंतर्राष्ट्रीय कवि’ चिपका लिया था।

‘निश्चिन्त’ जी उस दिन टहलते टहलते नगर के एक दूसरे कवि ‘आहत’ जी के घर पहुंच गये। आवाज़ दी तो ‘आहत’ जी बालकनी पर प्रकट हुए। ‘निश्चिन्त’ जी ने पूछा, ‘मेरे कविता-संग्रह पर कुछ लिखा क्या? चार छः लाइनें लिख देते तो कहीं छपने का जुगाड़ बैठाऊँ।’

‘आहत’ जी मूड़ खुजाते हुए बोले, ‘अरे क्या बताऊँ भैया। शादी-ब्याह में ऐसा फँसा कि लिखने का टाइम ही नहीं मिला। लेकिन निश्चिन्त रहें। मैंने आपका संग्रह गोकुल जी को दे दिया है। वे बढ़िया समीक्षा करते हैं। समझदार आदमी हैं। मैंने उन से निवेदन किया है कि जल्दी लिख दें।’

सुनकर ‘निश्चिन्त’ जी की आँखें कपार पर चढ़ गयीं। ठंड में भी माथे पर पसीना चुहचुहा आया। शरीर में झुरझुरी दौड़ने लगी। लगा कि वहीं भूमि पर गिर जायेंगे। ऊँचे स्वर में बोले, ‘अरे आपने उस हत्यारे को मेरी किताब क्यों दे दी? वह किताब को चीर-फाड़ कर रख देता है। सयानों का भी लिहाज नहीं करता। आपको याद नहीं उसी की समीक्षा के कारण नगर के प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय कवि ‘घायल’ जी को एक हफ्ते अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। यह आदमी दफा 302 के मुजरिम से कम नहीं है।’

‘आहत’ जी हँसकर बोले, ‘ऐसी कोई बात नहीं है। वह ज़बरदस्ती किसी की आलोचना नहीं करता। यह जरूर है कि वह बेलिहाज गुण- दोष के आधार पर लिखता है। उसकी अच्छी प्रतिष्ठा है। उसके लिखने से आपको फायदा ही होगा।’

‘निश्चिन्त’ जी बिफर कर बोले, ‘भाड़ में गया फायदा। वह जाने कहाँ से खोद खोद कर गलतियाँ और कमजोरियाँ निकालता है। हम तो इसलिए किताब देते हैं कि तारीफ के दो बोल सुनने को मिलेंगे। इसीलिए किताबें मित्रों को ही दी जाती हैं और ‘सो कॉल्ड’ निष्पक्ष समीक्षकों से बचा जाता है। आपने मेरी किताब गलत आदमी को दे दी। आप आज ही मेरी किताब उससे वापस ले लें। मैं शाम को आऊँगा। देर होने पर कहीं उसने समीक्षा लिखकर कहीं छपवा दी तो मैं मारा जाऊँगा। जब तक किताब मेरे हाथ में नहीं आ जाएगी तब तक मुझे चैन नहीं मिलने वाला। आपने मेरा आज का पूरा दिन खराब कर दिया।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 145 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 145 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 145) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 145 ?

☆☆☆☆☆

दिल में जो दर्द है वो निगाहों

से है खुदबखुद अयाँ,

ये बात गर है कि जुबाँ से भले

ही हम  ना  करें  बयाँ..!

☆☆ 

The pain in the heart is visible

through the eyes, but it’s

something else, I may not say

anything with the tongue..!

☆☆☆☆☆

क्या लिखूं अपनी जिंदगी

के  बारे  में  दोस्तों,

वो लोग ही बिछड़ गए

जो अपने हुआ करते थे

☆☆

What should I write

about my life friends,

Those people who used to be

my very own got separated

☆☆☆☆☆

कैसे भला जाने कोई

ख़्वाबों  की  ताबीर,

आसमाँ पे बैठा हुआ

लिखता  है  वो  तक़दीर…

☆☆

How can one know the

interpretation of dreams,

When sitting in the sky 

He only writes the fate…

☆☆☆☆☆

Soulful love… 

कोई रूह को छूकर गुजरे

तो ही उसे चाहत कहना,

यूं तो जिस्म को छूकर

हवाएँ भी गुज़रा करती हैं…

☆☆

If someone passes by touching

the soul, then only call it love,

Otherwise even the wind

passes by touching the body…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 196 – बिन पानी सब सून ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 196 बिन पानी सब सून ?

जल जीवन के केंद्र में है। यह कहा जाए कि जीवन पानी की परिधि तक ही सीमित है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। नाभिनाल हटाने से लेकर मृतक को स्नान कराने तक सारी प्रक्रियाओं में जल है। अर्घ्य द्वारा  जल के अर्पण से तर्पण तक जल है। इतिहास साक्षी है कि पानी के अतिरिक्त अन्य किसी तत्व की उपलब्धता देखकर मानव ने बस्तियाँ नहीं बसाईं। पानी के स्रोत के इर्द-गिर्द नगर और महानगर बसे। प्रायः हर शहर में एकाध नदी, झील या प्राकृतिक जल संग्रह की उपस्थिति इस सत्य को शाश्वत बनाती है। भोजन ग्रहण करने से लेकर विसर्जन तक जल साथ है। यह सर्वव्यापकता उसे सोलह संस्कारों में अनिवार्य रूप से उपस्थित कराती है।  

जल प्राण का संचारी है। जल होगा तो धरती सिरजेगी। उसकी कोख में पड़ा बीज पल्लवित होगा। जल होगा तो धरती  शस्य-श्यामला होगी। जीवन की उत्पत्ति के विभिन्न धार्मिक सिद्धांत मानते हैं कि धरती की शस्य श्यामलता के समुचित उपभोग के लिए विधाता ने जीव सृष्टि को जना। विज्ञान अपनी सारी शक्ति से अन्य ग्रहों पर जल का अस्तित्व तलाशने में जुटा है। चूँकि किसी अन्य ग्रह पर जल उपलब्ध होने के पुख्ता प्रमाण अब नहीं मिले हैं, अतः वहाँ जीवन की संभावना नहीं है।  सुभाषितकारों ने भी जल को  पृथ्वी के त्रिरत्नों में से एक माना है-

पृथिव्याम्‌ त्रीनि रत्नानि जलमन्नम्‌ सुभाषितम्‌।

मनुष्य को ज्ञात चराचर में जल की सर्वव्यापकता तो विज्ञान सिद्ध है। वह ऐसा पदार्थ है जो ठोस, तरल और वाष्प तीनों रूपों में है। वह जल, थल और नभ तीनों में है। वह ब्रह्मांड के तीनों घटकों का समन्वयक है। वह “पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते  ‘का प्रमाणित संस्करण है। हिम से जल होना, जल से वायु होना और वायु का पुनः जल होकर हिम होना, प्रकृति के चक्र का सबसे सरल और खुली आँखों से दिखने वाला उदाहरण है। आत्मा की नश्वरता का आध्यात्मिक सिद्धांत हो या ऊर्जा के अक्षय रहने का वैज्ञानिक नियम, दोनों को  अंगद के पांव -सा प्रतिपादित करता-बहता रहता है जल।

भारतीय लोक जीवन में तो जल की महत्ता और सत्ता अपरंपार है। वह प्राणदायी नहीं अपितु प्राण है। वह प्रकृति के कण-कण में है। वह पानी के अभाव से निर्मित मरुस्थल में पैदा होनेवाले तरबूज के भीतर है, वह खारे सागर के किनारे लगे नारियल में मिठास का स्रोत बना बैठा है। प्रकृति के समान मनुष्य की देह में भी दो-तिहाई जल है। जल जीवन रस है। जल निराकार है। निराकार जल, चेतन तत्व की ऊर्जा  धारण करता है। जल प्रवाह है। प्रवाह चेतना को साकार करता है। जल परिस्थितियों से समरूप होने का अद्‌भुत उदाहरण है। पात्र मेंं ढलना उसका चरित्र और गुणधर्म है। वह ओस है, वह बूँद है, वह झरने में है, नदी, झील, तालाब, पोखर, ताल, तलैया, बावड़ी, कुएँ, कुईं  में है और वह सागर में भी है। वह धरती के भीतर है और धरती के ऊपर भी है। वह लघु है, वही प्रभु है। कहा गया है-“आकाशात पतितं तोयं यथा गच्छति सागरं।’ बूँद  वाष्पीकृत होकर समुद्र से बादल में जा छिपती है। सागर बूँद को तरसता है तो बादल बरसता है और लघुता से प्रभुता का चक्र अनवरत चलता है।

दुर्भाग्य से मनुष्य की लघुता ने केवल पनघट नहीं उजाड़े, कुओं को सींचनेवाले तालाबों और छोटे-मोटे प्राकृतिक स्रोतों को भी पाट दिया। तालाबों की कोख में रेत-सीमेंट उतारकर गगनचुम्बी इमारतें खड़ी कर दीं। बाल्टी से पानी खींचने के बजाय मोटर से पानी उलीचने की प्रक्रिया ने मनुष्य की मानसिकता में भयानक अंतर ला दिया है। बूँद-बूँद सहेजनेवाला समाज आज उछाल-उछाल कर पानी का नाश कर रहा है। सब जानते हैं कि प्राकृतिक संसाधन निर्माण नहीं किए जा सकते।  प्रकृति ने उन्हें रिसाइकिल करने की प्रक्रिया बना रखी है। बहुत आवश्यक है कि हम प्रकृति से जो ले रहे हैं, वह उसे लौटाते भी रहें।

रहीम ने लिखा है-

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून,

पानी गये न ऊबरे, मोती, मानस, चून।

विभिन्न संदर्भों  में इसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न हो सकती है किंतु पानी का यह प्रतीक जगत में जल की अनिवार्यता को प्रभावी रूप से रेखांकित करता है। पानी के बिना जीवन की कल्पना करते ही मुँह सूखने लगता है। जिसके अभाव की  कल्पना इतनी भयावह है, उसका यथार्थ कैसा होगा! यथार्थ के संदर्भ में अपनी कविता की दो पंक्तियाँ स्मरण हो आती हैं-

आदमी की आँख का जब मर जाता है पानी।

ख़तरे का निशान पार कर जाता है पानी।

आवश्यक है कि हम समय रहते चेत जाएँ ताकि आदमी की आँखें सजल रहें, प्रकृति में सदा पर्याप्त जल रहे।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 143 ☆ गीत – दिल आबाद कर रही यादें… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण गीत दिल आबाद कर रही यादें)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 143 ☆ 

☆ गीत – दिल आबाद कर रही यादें ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

गीत:

जब जग मुझ पर झूम हँसा

मैं दुनिया पर खूब हँसा

.

रंग न बदला, ढंग न बदला

अहं वहं का जंग न बदला

दिल उदार पर हाथ हमेशा

ज्यों का त्यों है तंग न बदला

दिल आबाद कर रही यादें

शूल विरह का खूब धँसा

.

मैंने उसको, उसने मुझको

ताँका-झाँका किसने-किसको

कौन कहेगा दिल का किस्सा?

पूछा तो दिल बोला खिसको

जब देखे दिलवर के तेवर

हिम्मत टूटी कहाँ फँसा?

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२६-५-२०२३, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – सराव… – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– सराव…– ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

शिक्षण आता बास झालं  

कार्यक्रम  करावे म्हणतो

माईक धरून गाण्याचा

म्हणून सराव करतो.

रसिकांसमोर तसंच जाणं 

खरं म्हणजे धाडस आहे

लपून छपून सराव करणे

सध्या माझे चालू आहे

माईकशी मेळ जमला की

कार्यक्रम  करणार  बरं 

ऐकायला सगळे याल ना !

सांगा अगदी खरं  खरं  

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #195 – 81 – “कल न जाने फिर क्या हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “कल न जाने फिर क्या हो…”)

? ग़ज़ल # 81 – “कल न जाने फिर क्या हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

आओ मौज मनालें कल न जाने फिर क्या हो,

आ जा हंसलें गालें कल न जानें फिर क्या हो।

सूरज ढ़लने  लगा  छाया तो लम्बी होनी है,

आ जाम लगा लें कल न जाने फिर क्या हो।

रात अमावस वाली है अंधकार भी लाज़िम है,

तुमको गले लगालें कल न जाने फिर क्या हो।

लहरें आलिंगन करतीं झील किनारे आ गई हैं,

आ मन को डुबा लें कल न जाने फिर क्या हो

सरसों फूली बसंती गोद हरी भरी दिखती है,

पीली चूनर लहरा लें कल न जाने फिर क्याहो

बिखरी पलाश लालिमा महुआ की मादक गंध,

फाग सुर में गालें कल न जानें फिर क्या हो।

भुला दो वो बातें जो पीड़ा  देतीं  हो “आतिश”,

दिन जीभर जी लें कल न जाने फिर क्या हो।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 73 ☆ कविता – ।। शब्द, प्रेम की लकीर देते हैं या फिर कलेजा चीर देते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ कविता ☆ ।। शब्द, प्रेम की लकीर देते हैं या फिर कलेजा चीर देते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

।।विधा।।  मुक्तक।।

[1]

शब्द तीर तलवार देते घाव  आपार हैं।

मत बोलो कटु कि कटार    सी धार है।।

समस्या निदान नहीं तो रिश्ते तार तार।

तब सुलह नहीं  अंत में होती तकरार है।।

[2]

शब्दों से दिखता मनुष्य का संस्कार है।

आपके प्रभाव का ये सटीक आधार है।।

कुशब्द स्थान निशब्द रह जाओ हमेशा।

दोनों को लगती ठेस दिल जार जार है।।

[3]

शब्दों के दाँत नहीं काटते बहुत जोर से।

शब्द बांट देते भाई भाई को हर छोर से।।

मर्यादा में ही बोलो  ज्यादा भी मत बोलो।

दोस्ती में गिरह लग  जाती हर ओर से।।

[4]

मीठी जुबानआदमी को मिली नियामत है।

मानव लोकप्रियता मिली जैसे जमानत है।।

जंग नहीं बस जुबां से होती दिलों पे हकूमत।

खराब व्यवहार केवल   लाता कयामत है।।

[5]

कोशिश करो  बस दिल में उतर जाने की।

कोशिश हो सबकीआपके उधर जाने की।।

वाणी वचन  आपकीं पूंजी है सबसे बड़ी।

कोशिश न हो बस दिल से उतर जाने की।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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