मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ गीत ऋग्वेद : मण्डल १ – सूक्त २६ (अग्निसूक्त) : ऋचा १ ते ५ — मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त २६ (अग्निसूक्त) : ऋचा १ ते ५ — मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त २६ (अग्निसूक्त) – ऋचा १ ते ५

ऋषी – शुनःशेप आजीगर्ति : देवता – अग्नि

ऋग्वेदातील पहिल्या मंडलातील सव्विसाव्या  सूक्तात शुनःशेप आजीगर्ती  या ऋषींनी अग्नी देवतेला आवाहन केलेले  असल्याने हे अग्निसूक्त म्हणून ज्ञात आहे. आज मी आपल्यासाठी अग्निदेवतेला उद्देशून रचलेल्या पहिल्या पाच ऋचा आणि त्यांचे मराठी गीत रुपांतर सादर करीत आहे. 

मराठी भावानुवाद ::

वसि॑ष्वा॒ हि मि॑येध्य॒ वस्त्रा॑ण्यूर्जां पते । सेमं नो॑ अध्व॒रं य॑ज ॥ १ ॥

हे पंचाग्नी समर्थ देवा विभूषित व्हावे

दिव्य लेवुनीया वसनांना सज्ज होउनी यावे

भक्तीभावाने मांडियले आम्ही यज्ञाला 

तुम्हीच आता न्यावे यागा संपन्न सिद्धिला ||१||

नि नो॒ होता॒ वरे॑ण्यः॒ सदा॑ यविष्ठ॒ मन्म॑भिः । अग्ने॑ दि॒वित्म॑ता॒ वचः॑ ॥ २ ॥

अग्निदेवा हे चिरतरुणा दिव्यकांतिदेवा

स्तुतिस्तोत्रांनी अर्पण करितो अमुच्या भक्तीभावा

श्रवण करोनी या स्तोत्रांना यज्ञवेदी धावा

हविर्भाग हे सर्व देवतांना नेउनि पोचवा ||२||

आ हि ष्मा॑ सू॒नवे॑ पि॒तापिर्यज॑त्या॒पये॑ । सखा॒ सख्ये॒ वरे॑ण्यः ॥ ३ ॥

अपत्यासि तू असशी पित्यासम सगा सोयऱ्यांशी

जिवलग स्नेही तू तर असशी सखा होत मित्रांशी

गार्ह्यपत्य हे देवा तू तर अमुचाची असशी

कृपा करोनी यज्ञा अमुच्या सिद्धिप्रद नेशी ||३||

आ नो॑ ब॒र्ही रि॒शाद॑सो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । सीद॑न्तु॒ मनु॑षो यथा ॥ ४ ॥

यज्ञयाग संपन्न करण्या मनुज होई सिद्ध

आसन घेउनिया दर्भाचे आहुतीस सिद्ध 

मित्रा वरुणा आणि अर्यमा तुम्हासी आवाहन

प्रीतीने येऊनीया स्वीकारावे दर्भासन ||४|| 

पूर्व्य॑ होतर॒स्य नो॒ मन्द॑स्व स॒ख्यस्य॑ च । इ॒मा उ॒ षु श्रु॑धी॒ गिरः॑ ॥ ५ ॥

पुराणपुरुषा देवांच्या प्रति करिसि हवी अर्पण

तुमच्या चरणांवरती केला आम्ही हवी अर्पण

तुम्हासी लाभावा संतोष म्हणून हवी अर्पण

कृपा करावी आम्हांवरती प्रार्थना करा श्रवण ||५|| 

(या ऋचांचा व्हिडीओ  गीतरुपात युट्युबवर उपलब्ध आहे..या व्हिडीओची लिंक देखील मी शेवटी देत आहे. हा व्हिडीओ ऐकावा, लाईक करावा आणि सर्वदूर प्रसारित करावा. कृपया माझ्या या चॅनलला सबस्क्राईब करावे.)

https://youtu.be/cgy-mZszNew

Attachments area

Preview YouTube video Rugved Mandal 1 Sukta 26 Rucha 1 – 5

Rugved Mandal 1 Sukta 26 Rucha 1 – 5

अनुवादक : © डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

एम.डी., डी.जी.ओ.

मो ९८९०११७७५४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 153 ☆ गुण बिनु बूंद न देहि… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “गुण बिनु बूंद न देहि…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 153 ☆

☆ गुण बिनु बूंद न देहि…

क्या आपने कभी सोचा कि हर सुंदर वस्तु की सुरक्षा हेतु प्रकृति ने कुछ न कुछ ऐसा क्यों बनाया जिससे उसके सौंदर्य को बचाया जा सके – जैसे फूल और काँटे का साथ।

किसी पौधे की पहचान उसके फल,फूल व उपयोगिता के आधार पर होती है। यादि पौधे में  काँटें हैं तो वे हमेशा बनें रहते हैं, जबकि फूल का अस्तित्व कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाता है।

ऐसा ही अक्सर मीठे वचन बोलने वाले लोगों के साथ भी देखा गया है। वे सब के साथ  मिलकर चलना चाहते हैं, इस चक्कर में सही,गलत का भेद भूलकर बस जो कमजोर दिखा उसी के तरफ चल दिए या कई नावों की सवारी करते हुए जीना ही उचित समझते हैं, वहीं दूसरी ओर कड़वे वचन बोलने वाला व्यक्ति कुछ क्षणों के लिए अप्रिय लगता है, पर जल्दी ही लोकप्रिय हो जाता है, क्योंकि  अप्रिय वचन मन को झकझोरने के साथ ही साथ ये सोचने पर विवश कर देते हैं कि कैसे परिस्थितियों में सुधार हो।

कहा भी गया है कि जहाँ ज्यादा मीठा होता है, वहाँ कीड़े पड़ जाते हैं। सच्चाई यही है कि मीठा रोग कड़वे करेले और नीम से ही ठीक होता है। खेतों और बगीचे की बाड़ी भी कटीले बबूल से ही बनती है।  रेतीले इलाकों में पानी की कमीं को पूरा करने हेतु पत्तियाँ काँटो में बदल जाती हैं। प्रकृति बहुत से ऐसे रूपांतरण समय के साथ- साथ जीव- जंतुओं, सजीव – निर्जीव में करती जा रही है।

बलिहारी नृप कूप की, गुण बिनु बूंद न देहि- ये अलंकृत पंक्ति सचमुच गुण के महत्व को दर्शाती है। कहीं गुण विशेषण के रूप में, तो कहीं कर्ता के रूप में रस्सी बन कर उपयोगी होता है। आत्मचिंतन से एक बात तो सिद्ध होती है कि जितना महत्व हमारे जीवन में फूलों का है उससे कहीं अधिक जीवन को सुचारू रूप से चलाए रखने में काँटों का भी है, इसलिए हमें सामंजस्य बनाते हुए फूल और काँटों की भाँति रहना चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #141 – “यात्रा वृतांत – बौद्ध धर्म की समृद्ध परंपराओं की धरोहर बाघ गुफाएं” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है बाल साहित्य  – “यात्रा वृतांत– बौद्ध धर्म की समृद्ध परंपराओं की धरोहर बाघ गुफाएं)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 141 ☆

 ☆ “यात्रा वृतांत– बौद्ध धर्म की समृद्ध परंपराओं की धरोहर बाघ गुफाएं” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

बाघ गुफाएं जैसा कि इनके नाम से विदित होता है कि ये बाघ के रहने की गुफाएं हैं। आपने ठीक पहचाना। इनका यह नाम इसी वजह से पड़ा है। ये गुफाएं अपनी प्राचीन समृद्ध परंपरा, अपनी संस्कृति और अपने समृद्ध इतिहास के पन्नों से 10 वीं शताब्दी में विलुप्त हो गई थी। या यूं कहें कि बौद्ध धर्म को भुला दिया जाने के कारण उनकी ऐतिहासिक धरोहर को भुला दिया गया था। इसी कारण इन गुफाओं में बाघ रहने लगे थे।

इतिहास की के आंधी पानी के थपेड़े खाकर यह जंगली इतिहास में तब्दील हो गई थी। जिसे मानव इतिहास की वर्तमान सभ्यता ने भुला दिया था। वह तो भला हो लेफ्टिनेंट डेंजरफील्ड का जिन्हों ने इन्हें खोज कर हमारे सम्मुख ला दिया। चूंकि ये गुफाएं बाघों के आवास का प्रमुख स्थान बन चुकी थी, इस कारण इन्हें बाघ गुफाएं कहा गया।

प्राचीन मालवा के महिष्मति अर्थात वर्तमान महेश्वर के महाराजा सुबंधु के एक ताम्रपत्र पर एक विशेष तथ्य का उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार महाराज सुबंधु ने बौद्ध विहार को विशेष अनुदान प्रदान किया था। जिसके अनसरण में गुफाओं का कल्याण कर कल्याण विहार की रचना की गई थी।

प्राचीन मालवा क्षेत्र तथा वर्तमान मध्यप्रदेश के धार जिले के कुक्षी तहसील में बाघ नामक नदी बहती है। यह नदी इंदौर से 60 किलोमीटर दूर बहती है। जिस के विंध्य पर्वत के दक्षिणी ढलान पा बाघ गांव के पास यह गुफाएं शैल पर उत्कीर्ण की गई है।

इस स्थान पर मेघनगर रेलवे स्टेशन से ट्रेन द्वारा तथा यहां से सड़क मार्ग से 42 किलोमीटर दूर, धार से 140 किलोमीटर दूर तथा कुक्षी से 18 किलोमीटर उत्तर में बस द्वारा या निजी साधन से यहां जाया जा सकता है। इंदौर और भोपाल से हवाई जहाज से यहां आ सकते हैं।

यह बाघ गुफाएं अजंता- एलोरा की तर्ज पर बनी हुई है। इन्हें एक ही शैल से उत्कीर्ण करके बनाया गया है। जिसे शैल उत्कीर्ण वास्तुकला कहते हैं। यह भवन निर्माण की उन्नत व पच्चीकारी की बेहतरीन शैली थी। जिसमें बिना नींव, छत और दीवार के एक ही शैल को तराश कर बरामदा, कक्ष, आराधना कक्ष, विहार, प्रार्थना स्थल आदि बनाए जाते हैं।

यह गुफाएं बौद्ध धर्म की अनुपम ऐतिहासिक धरोहर है। प्राचीन समय में बौद्ध भिक्षुओं के प्रचार-प्रसार, शिक्षा-दीक्षा, उपासना, अर्चना, निर्माण महा निर्माण, विहार, प्रति विहार, आराधना, ध्यान स्थल, ध्यान उपासना आदि के कक्ष, बरामदे, कमरे, प्रदक्षिणा स्थल को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

क्योंकि प्राचीन काल में समुद्र से व्यापार करने वाले व्यापारी इसी मार्ग से होकर जाते थे। इनके ठहरने, विश्राम करने तथा शिक्षा-दीक्षा के साथ-साथ उपासना करने के लिए आहार विहार के लिए यहां उत्तम व्यवस्था थी। इसलिए यह देश विदेश से जुड़ी हुई थी।

धार के कुक्षी में स्थित ये बाघ वफाएं भी इसी उद्देश्य बनाई गई थी। ये गुफाएँ प्राचीन मालवा प्रांत की शिक्षा-दीक्षा की बेहतरीन व्यवस्था को भी प्रदर्शित करती है। यहां 9 गुफाएं एक ही शैल पर अलग-अलग उत्कीर्ण की गई है। इन 9 गुफाओं में बौद्ध भिक्षुओं के आहार-विहार, उपदेश, प्रवचन, श्रवण के उद्देश्य से बनाई गई थी। वे यहां रहकर बौद्ध धर्म का अनुपालन कर उसका प्रचार-प्रसार कर सके।

इन 9 गुफाओं की अपनी-अपनी महत्ता और स्वरूप के हिसाब से इनमें लंबे-चौड़े बरामदे, कोठियां, शैलकृत स्तूप, चैत्य, बुद्ध प्रतिमा, बोधिसत्व, अलौकिक, मैत्रेय, नृत्यांगना, वाद्य कक्ष सहित अनेक पक्षों के दृश्यांकन अंकित है। इन 9 गुफाओं में से दो, तीन, चार, पांच एवं साथ में भित्ति चित्र बने हुए हैं। इन्हें सुरक्षा की दृष्टि से संरक्षित करके पृथक कर दिया गया है।

गुफा संख्या दो सर्व प्रसिद्ध भित्ति चित्र वाली गुफा है। इसमें पद्माणी बुद्ध का चित्र अंकित है। इस चित्र की मुखाकृति सौम्य है। इसका शरीर पुष्पा व आभूषण से सुसज्जित है। अर्धमूंदे हुए नेत्र उसकी सौम्यता को दुगुणित कर देते हैं।

यह बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं को प्रदर्शित करते हैं। यहां बुद्ध, धर्म चक्र, उपदेशक, बोधिसत्व, निर्माण, महानिर्वाण, प्रभामंडल, स्थिति प्रज्ञा की बेहतरीन मुद्रा में स्थित है।

इसी तरह गुफा संख्या दो को पांडव गुफा कहते हैं। गुफा संख्या 4 रंगमहल कहलाती है। तीसरे नंबर की गुफा हाथीखाना कहलाती है। गुफा संख्या 4 और 5 बेहतरीन अवस्था में है। इनमें से कुछ चित्र स्पष्ट है। कुछ प्राय नष्ट व धुँधले हो गए हैं।

चौथी गुफा जिसे रंगमहल कहते हैं। वह एक चैत्य स्थल है। वहां बौद्ध भिक्षुओं के स्मृति चिन्ह, अवशेष व प्रतीक संरक्षित रखे जाते थे। यहां पर बुद्ध की पद्मासन लगी प्रतिमा स्थापित है। यह अस्पष्ट होती जा रही है।

पांचवी गुफा में अनेक चित्र हैं। बुद्ध का सुंदर चित्र स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। शेष चित्र धुँधले हो गए हैं। इस गुफा में 5 कमरे हैं। इनमें चित्रांकन किया गया है। इसमें फल, फूल, पत्तियां, बेल, बूटे, कमल, पशु, पक्षी का यथा स्थान चित्रण हुआ है।

इन गुफाओं के चित्रों की कुछ अन्य विशेषताएं भी है। इनमें बौद्ध धर्म के अलावा भी जीवन के विविध आयामों का चित्रांकन हुआ है। इसमें नृत्य, गायन, अश्वरोहण, गजा रोहण, प्रेम, विरह, दुख, संताप आदि का अंकन बखूबी देखा जा सकता है।

प्रकृति का चित्रण इसके अंदर अद्भुत रूप से समाया हुआ है। फूल, लता, पत्तियां, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि का रोचक समन्वय चित्रों में देखा जा सकता है।

जीवन के विविध आयाम यथा- सुख-दुख, संताप, रोष, प्रेम के साथ-साथ लज्जा, वात्सल्य, प्रेम, ममता, विनय, स्नेह,शीलता, शौर्य, दीनता, लाचारी, भय, शांत, श्रंगार, हर्ष रूद्र,वीर आदि भाव को चित्रों में महसूस किया जा सकता है।

आप से आग्रह हैं कि आप गुफाओं को देखने और महसूस करने के लिए इनकी सैर अवश्य करें। ताकि आप हमारी अपनी विरासत का जान कर, इसकी पुरातन वास्तु भवन शैली की तन मन में सहेज सके। ताकि आप और हम भारत की प्राचीन धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक विरासत को जान समझ सके।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

03-02-2023 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #2 ☆ कविता – “बेबस वन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #2 ☆

 ☆ कविता ☆ “बेबस वन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

वैसे तो मैं मायूस नहीं होता

बेबसी के वन से खफा नहीं होता

दर्द को जीतना जरूरी है

जीतकर भी हारना यहां का रिवाज़ है ।

 

दौर तो आयेंगे, दौर तो जाएंगे

मौसम भी कभी तो मिट जाएंगे

पहले मिटकर ही फिर बना हूं

मौसम सड़क का अभी भूला नहीं हूं ।

 

हां कभी कुछ पल आते है

जो बेहद बेबस करते है

इलाज उनके जानता हूं

दवा भी शौक से पीता  हूं ।

 

पत्थर दिल बनना पड़ता है

किलों से दिल को जोड़ना पड़ता है

गर बेबसी के वन में जिंदा रहना है

तो वनराज बनके ही रहना पड़ता है ।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 164 ☆ बाल कविता – सुंदर नीड़ बनाती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 164 ☆

☆ बाल कविता – सुंदर नीड़ बनाती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

बुद्धिमान है बया चिरैया

मेहनत की है थाती।

तिनके – तिनके चुनकर लाए

सुंदर नीड़ बनाती।।

 

आँधी – बर्षा सब कुछ झेले

उसका नीड़ निराला।

लटका रहता लालटेन – सा

करता सदा उजाला।।

 

बुनकर को भी मात दे रही

प्यारी बया चिरइया।

जो देखे वह दंग रह जाए

करता था – था थइया।।

 

खुश रहे परिवार के सँग में

गीत खुशी के गाए।

जीवन जीना एक कला है

सबको पाठ पढ़ाए।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #165 ☆ संत भानुदास… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 165 ☆ संत भानुदास☆ श्री सुजित कदम ☆

एकनाथ पणजोबा

नामांकित संतकवी

थोर संत भानुदास 

ऋचा अभंगाची नवी…! १

 

सुर्यपुजा उपासक

भक्त विठ्ठलाचे खास

मुखी पांडुरंग नाम

हरिभक्ती सहवास…! २

 

मिळविली यश कीर्ती

कापडाच्या व्यापारात

संत भानुदास भक्त

पांडुरंग अंतरात…! ३

 

मनामध्ये भक्ती भाव

दृढ निश्चयाचे बळ

संत भानुदास रूप

परमार्थ चळवळ…! ४

 

परकीय आक्रमणे

तांडे यवनांचे आले

मठ देवळे फोडून

पीर दर्गे  फार झाले…! ५

 

नाना अभंग आख्याने

भानुदास ग्रंथ सार

भक्तीभाव प्रबोधन

मनी विठ्ठल साकार…! ६

 

सेवाभावी भानुदास

प्रासादिक केली भक्ती

पांडुरंग आशीर्वादे

अभंगात दैवी शक्ती…! ७

 

भव्य देऊळ बांधले

राजा कृष्ण राय याने

नाम विठ्ठल स्वामींचे

शिलालेख कौशल्याने..! ८

 

नेली विजय नगरी

पांडुरंग पुजा मूर्ती

भानुदास प्रयत्नाने

पंढरीत विठू मूर्ती…! ९

 

घाली विठ्ठला साकडे

चला जाऊ पंढरीस

धीर धरा भानुदास

सांगे विठू समयास…! १०

 

तुळशीच्या हारासह

घाली गळा रत्नहार

विठ्ठलाने भानुदासा

दिला दैवी उपहार…! ११

 

गळी ‌हार‌ पाहुनीया

ठरवीले दासां चोर

झाली पांडुरंग कृपा

विठू भक्ती ठरे थोर…! १२

 

बंदी केला भानुदास

मृत्यू दंड सुनावला

व्यर्थ आळ भक्तांवर

पांडुरंग रागावला…! १३

 

सोडूनीया राजधानी

विठू आला पंढरीत

भानुदास दोषमुक्त

लीन झालासे वारीत…! १४

 

भानुदास आळवणी

विठू भानुदासा सवे

पांडुरंग पुजा मुर्ती

परतले रुप नवे…! १५

 

भानुदासी कुळामध्ये

पुन्हा जन्मे जगन्नाथ

विष्णु देव अवतार

तेची संत एकनाथ….! १६

 

पंढरीत महाद्वारी

गरुडाच्या मंडपात

संत भानुदास रूप

चिरंतन पादुकात….! १७

 

कार्तिकाची एकादशी

पुण्यतिथी महोत्सव

संत भानुदास स्मृती

परंपरा रथोत्सव….! १८

 

© श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – भंगारवाला…– ☆ श्री सुनीत मुळे ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? – भंगारवाला… – ? ☆ श्री सुनीत मुळे ☆

(हायफाय हॉलबाहेर बेपर्वा श्रीमंतीनं फेकलेल्या अर्ध्या रित्या पाण्याच्या बाटल्या भंगारवाला झाडांच्या मुळात ओतत होता. एक संवेदनशील फोटो आणि काव्य रचना…)

वरवर बघता वाटत असेल,

याचा धंदा केवळ भंगार !

उपेक्षेच्या जगण्यालाही,

याने केला आहे शृंगार !

वजन कमी करण्यासाठी,

पाणी ओततो मुळावर !

आतमधे सजली माणसं,

अतृप्तीच्या सुळावर !

भंगारवाला नसेल तर,

बकाल होईल सगळं जग !

ए.सी.ची तर वृत्ती अशीच,

आत गारवा,बाहेर धग !

ओझं कमी करण्यासाठी,

ओतलं नाही वाटेल तिथं !

त्याचा सद् भाव ओतत गेला,

तहानलेली झाडं जिथं !

सावलीवरती हक्क सांगत,

झाडाजवळ थांबत नाही !

माझ्यामुळेच जगलंय असं,

स्वतःलाही सांगत नाही !

“निष्काम कर्म ” गीतेमधलं,

कळलेला हा पार्थ आहे !

“जीवन”देऊन,भंगार घ्यायचं,

केवढा उंच स्वार्थ आहे !

पाणी विकत घ्यायचं आणि,

अर्ध पिऊन फेकून द्यायचं !

कृतज्ञता / कृतघ्नता,

याचं भान केव्हा कसं यायचं?

डिग्रीपेक्षा नेहमीच तर,

दृष्टी हवी अशी साक्षर !

भंगारवाला अंतर्धान नि,

अवतीर्ण होतो ईश्वर !

कवी : अज्ञात

प्रस्तुती : सुनीत मुळे 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #186 – कविता – सशंकित नई पौध है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय पर्यावरण विषयक कविता  “सशंकित नई पौध है)

☆  तन्मय साहित्य  #186 ☆

☆ सशंकित नई पौध है☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

अब विपक्ष का काम, सिर्फ करना विरोध है

साँच-झूठ की सोच, किसी को नहीं बोध है

दिखता है सबको, विरोध में राजयोग है।

 

वे कहते ही रहे हमेशा

अपने मन की

इन्हें फिक्र है अपने जन-धन

और स्वजन की

सत्ता लोलुपता से

दोनों संक्रमणित हैं,

भूले हैं दुख-व्यथा

निरीह आम जन-जन की

व्याधि यह असाध्य, जिसको भी लगा रोग है

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…..

 

हाथों में दी रास, नियंत्रण को

इस रथ की

किंतु सारथी को ही नहीं पहचान

कंटकिय दुर्गम पथ की

वे फूले हैं, फहराने में

विजय पताका

इधर विरासत को लेकर

ये भ्रमित विगत की

जन मन है बेचैन सशंकित नई पौध है

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…..

 

जो कुर्सी पर बैठे हैं

दिग्विजयी बनकर

दूजे भी हारे मन मारे घूम रहे हैं

यूँ ही तन कर

एक पूर्व इक वर्तमान

दोनों, कुर्सी के इच्छाधारी

आँखें बंद दिखे नहीं इनको

बेबस जनता की लाचारी

चले सियासत के हथकंडे, नए शोध हैं

दिखता है सबको विरोध में राजयोग है।…

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 11 ☆ … सूरज सगा कहाँ है? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सूरज सगा कहाँ है…?।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 11 ☆ यायावर यात्राएँ… सूरज सगा कहाँ है ? ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

घेर हमें अँधियारे बैठे

जाने कब होगा भुन्सारा

सूरज अपना सगा कहाँ है?

 

जले अधबुझे दिए लिए

अब भी चलती पगडंडी

सड़कें लील गईं खेतों को

फसल बिकी सब मंडी

 

गाँव गली आँगन चौबारा

निठुर दलिद्दर भगा कहाँ है?

 

रिश्ते गँधियाते हैं

संबंधों में धार नहीं है

मँझधारों में नैया

हाथों में पतवार नहीं है

 

डूब चुका है पुच्छल तारा

चाँद-चाँदनी पगा कहाँ है?

 

नहीं जागती हैं चौपालें

जगता है सन्नाटा

अपनेपन से ज़्यादा महँगा

हुआ दाल व आटा

 

कैसे होगा राम गुजारा

भाग अभी तक जगा कहाँ है?

          ***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 67 ☆ ग़ज़ल – लौट आओ साजन… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है पर्यावरण दिवस पर आपकी एक भावप्रवण ग़ज़ल लौट आओ साजन…

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 67 ✒️

?  ग़ज़ल – लौट आओ साजन… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

तन्हा रातें गुज़ारीं ,

करवट बदल – बदल के ।

अब लौट आओ साजन ,

क़हक़शां पे चलके ।।

ताउम्र साथ मेरा ,

तुमने निभाया होता ।

मझधार में छोड़ा ,

क्या हाल होंगे कल के ।।

तन्हा —————–

तुमको हो मुबारक ,

ख़ुदा का प्यारा होना ।

आऊंगी पास तेरे ,

एक दिन साथ अजल के

तन्हा —————–

तेरी सलामती की ,

मांगी हज़ार दुआएं ।

रह गए हो हमदम ,

तस्वीर में बदल के ।।

तन्हा —————–

बन जाए ना तमाशा ,

मेरी मोहब्बत का ।

ख़ामोश हुए अल्फ़ाज़ ,

सलमा की ग़ज़ल के ।।

तन्हा —————–

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares