(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘राजनीति के रंगरूटों के लिए प्रशिक्षण योजना‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 264 ☆
☆ व्यंग्य ☆ राजनीति के रंगरूटों के लिए प्रशिक्षण योजना ☆
होशियार सिंह ‘देशप्रेमी’ अपनी ज़िन्दगी में बहुत से धंधे कर चुके हैं। धन भी काफी कमाया है। अब उनका रुझान राजनीति में प्रवेश के इच्छुक लोगों के लिए एक ट्रेनिंग स्कूल खोलने की तरफ है। उनका कहना है कि लोग बिना राजनीति की तबियत और उसके लिए ज़रूरी खूबियों को समझे उसमें जगह बनाने की कोशिश करते हैं और इसीलिए सारी ज़िन्दगी एक ही जगह पांव पीटते रह जाते हैं। हासिल कुछ नहीं होता।
एक मुलाकात में होशियार सिंह ने अपनी योजना पर तफ़सील से प्रकाश डाला। बताया कि पॉलिटिक्स का बुनियादी उसूल यह है कि कोई उसूल नहीं होना चाहिए। पॉलिटिक्स में उसूल पालने का मतलब अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना। उसूल वाला आदमी पॉलिटिक्स में नाकारा और नालायक माना जाता है। कोई उसे सीरियसली नहीं लेता, न कोई उसकी बातों को तरजीह देता है। इसलिए पॉलिटिक्स के प्रवेशार्थी को जल्दी से जल्दी उसूलों की बीमारी से मुक्त हो जाना चाहिए। ‘उसूल उतारे, भुइं धरे, तब पैठे (राजनीति के) घर माहिं।’
होशियार सिंह ने दूसरी बात बतायी कि पॉलिटिक्स के प्रवेशार्थी को रीढ़ झुकाने और पावरफुल लोगों के चरण छूने में कोताही नहीं करना चाहिए। सामने वाला भ्रष्ट है या बलात्कारी, चरण छूने वाले से उम्र में छोटा है या बड़ा, ये सब बातें मायने नहीं रखतीं। प्रवेशार्थी का लक्ष्य अर्जुन की तरह सब कुछ भूल कर चिड़िया की आंख पर होना चाहिए।
उनके अनुसार राजनीति के आदमी को अपने चेहरे को ऐसा रखना सीखना होगा कि कोई उसके मन का भाव न पढ़ सके। राजनीतिज्ञ का जीवन बहता पानी होता है। आज इस पार्टी के किनारे हैं, कल दूसरी पार्टी के किनारे। मन के भाव और इरादे छिपाने के लिए राजनीतिज्ञ को ‘पोकर फेस्ड’ होना चाहिए, यानी उसे जुआड़ी की तरह अपने चेहरे को भावशून्य रखना सीखना चाहिए ताकि अन्य खिलाड़ी उसके हाथ के पत्तों का अन्दाज़ न कर सकें।
आगे होशियार जी ने बताया कि राजनीति में आदमी को ‘थिक स्किन्ड’ यानी कुछ मोटी चमड़ी का होना चाहिए। कई बार ऊपर के नेताओं या जनता के हाथों अपमानित होना पड़ता है, अर्श से फर्श पर उतरना पड़ता है, लेकिन राजनीतिज्ञ को अपमान को दिल पर नहीं लेना चाहिए। ‘कभी न छोडें खेत’ की नीति पर चलना चाहिए। खुद्दारी और आत्मसम्मान को उठाकर परे रख देना चाहिए।
होशियार जी ने यह भी बताया कि वे प्रवेशार्थियों की ट्रेनिंग के लिए कुछ नाट्य-कर्मियों को भी बुलाएंगे जो उन्हें ज़रूरत पड़ने पर तुरन्त आंसू बहाने और बिना लज्जा के जनता के सामने झूठे वादे करने का अभ्यास कराएंगे। वे विपक्षियों के सच को तत्काल झूठा साबित करने का भी अभ्यास करेंगे।
एक और बात होशियार जी ने कृपापूर्वक बतायी कि पॉलिटिक्स में ‘वफादारी’ का रोग नहीं पालना चाहिए। पार्टी में रहो, लेकिन जब छोड़ना फायदे का सौदा लगे, एक झटके में, बेदिली से छोड़ दो। फिर पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं। ऐसा ही पुराने दोस्तों के मामले में भी करना चाहिए।
होशियार जी के हिसाब से एक बहुत ज़रूरी बात यह है कि राजनीतिज्ञ जब भी कहीं मुंह खोले, अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता की तारीफ में कसीदे ज़रूर पढ़े। यह उसके पद की सुरक्षा का रामबाण नुस्खा है। कई लोग भाषण देने से पहले प्रभु की स्तुति में श्लोक पढ़ते हैं। राजनीतिज्ञ के लिए हाई कमांड ही प्रभु होती है, उसी के हाथ में राजनीतिज्ञ का कैरियर, उसकी सुख-समृद्धि होती है। इसलिए ऊपर वालों (भगवान नहीं) से हमेशा सुर मिलाकर चलना चाहिए।
सावधानी हटते ही दुर्घटना घटती है और आदमी संसद से सड़क पर आ जाता है। इसलिए राजनीतिज्ञ को चौबीस घंटे चौकन्ना और जागरूक रहना चाहिए।
भाई होशियार सिंह ने अन्त में बताया की कई प्रवेशार्थी ‘जागृत अन्तरात्मा सिंड्रोम’ नामक रोग से पीड़ित होते हैं। उनकी अन्तरात्मा में बीच-बीच में पीड़ा होती है। ऐसे लोगों की अन्तरात्मा को सुलाने और शान्त करने के लिए देश के बड़े ‘एनेस्थीसिया’ विशेषज्ञों की राय ली जा रही है।
मैंने होशियार सिंह को उनकी योजना की सफलता के लिए शुभकामनाएं दीं कि वे भावी राजनीतिज्ञों में ज़रूरी खूबियां पैदा करके देश का भविष्य उज्ज्वल बनाने के अपने मिशन में कामयाब हों। साथ ही उन्हें आगाह किया कि राजनीति के रंगरूटों को ट्रेनिंग देते वक्त वे यह कभी न भूलें कि हमें जल्दी से जल्दी विश्वगुरू का दर्ज़ा प्राप्त करना है।
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 264 ☆ नर में नारायण…
कई वर्ष पुरानी घटना है। शहर में खाद्यपदार्थों की प्रसिद्ध दुकान से कुछ पदार्थ बड़ी मात्रा में खरीदने थे। संभवत: कोई आयोजन रहा होगा। सुबह जल्दी वहाँ पहुँचा। दुकान खुलने में अभी कुछ समय बाकी था। समय बिताने की दृष्टि से टहलते हुए मैं दुकान के पिछवाड़े की ओर निकल गया। देखता हूँ कि वहाँ फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की लंबी कतार लगी हुई है। लगभग 30-40 बच्चे होंगे। कुछ समय बाद दुकान का पिछला दरवाज़ा खुला। खुद सेठ जी दरवाज़े पर खड़े थे। हर बच्चे को उन्होंने खाद्य पदार्थ का एक पैकेट देना आरंभ किया। मुश्किल से 10 मिनट में सारी प्रक्रिया हो गई। पीछे का दरवाज़ा बंद हुआ और आगे का शटर ग्राहकों के लिए खुल गया।
मालूम हुआ कि वर्षों से इस दुकान की यही परंपरा है। दुकान खोलने से पहले सुबह बने ताज़ा पदार्थों के छोटे-छोटे पैक बनाकर निर्धन बच्चों के बीच वितरित किए जाते हैं।
सेठ जी की यह साक्षात पूजा भीतर तक प्रभावित कर गई।
अथर्ववेद कहता है,
।।ॐ।। यो भूतं च भव्य च सर्व यश्चाधितिष्ठति।।
स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम:।।
– (अथर्ववेद 10-8-1)
अर्थात जो भूत, भविष्य और सब में व्याप्त है, जो दिव्यलोक का भी अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को प्रणाम है।
योगेश्वर का स्पष्ट उद्घोष है-
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।
– (श्रीमद्भगवद्गीता-6.30)
अर्थात जो सबमें मुझे देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।
वस्तुत: हरेक की श्वास में ठाकुर जी का वास है। इस वास को जिसने जान और समझ लिया, वह दुकान का सेठजी हो गया।
… नर में नारायण देखने, जानने-समझ सकने का सामर्थ्य ईश्वर हरेक को दें।…तथास्तु!
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
श्री लक्ष्मी-नारायण साधना सम्पन्न हुई । अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही दी जाएगी
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Anonymous Litterateur of social media # 211 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 211)
Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.
Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.
Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.
In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.
He is also an IIM Ahmedabad alumnus.
His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!
English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 211
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक ज्ञानवर्धक आलेख आलेख – रिपोर्ताज –क्या है रिपोर्ताज?)
रिपोर्ताज अंग्रेजी भाषा का शब्द है। रिपोर्ट किसी घटना के यथातथ्य वर्णन को कहते हैं। रिपोर्ट सामान्य रूप से समाचारपत्र के लिये लिखी जाती है और उसमें साहित्यिकता नहीं होती है। रिपोर्ट के कलात्मक तथा साहित्यिक रूप को रिपोर्ताज कहते हैं। रिपोर्ट का अर्थ सिर्फ़ सूचना देने तक ही सीमित भी किया जा सकता हैं, जबकि रिपोर्ताज हिंदी गद्य की एक प्रकीर्ण विधा हैं। इसके लेखन का भी एक विशिष्ट तरीका है। वास्तव में रेखाचित्र की शैली में प्रभावोत्पादक ढंग से लिखे जाने में ही रिपोर्ताज की सार्थकता है। आँखों देखी और कानों सुनी घटनाओं पर भी रिपोर्ताज लिखा जा सकता है। कल्पना के आधार पर रिपोर्ताज नहीं लिखा जा सकता है। घटना प्रधान होने के साथ ही रिपोर्ताज को कथातत्त्व से भी युक्त होना चाहिये।
रिपोर्ताज लेखक पत्रकार तथा कलाकार दोनों होता है। रिपोर्ताज लेखक के लिये आवश्यक है कि वह जनसाधारण के जीवन की सच्ची और सही जानकारी रखे। तभी रिपोर्ताज लेखक प्रभावोत्पादक ढंग से जनजीवन का इतिहास लिख सकता है।य ह किसी घटना को अपनी मानसिक छवि में ढालकर प्रस्तुत करने का तरीका है। रिपोर्ताज में घटना को कलात्मक और साहित्यिक रूप दिया जाता है। द्वितीय महायुद्ध में रिपोर्ताज की विधा पाश्चात्य साहित्य में बहुत लोकप्रिय हुई। विशेषकर रूसी तथा अंग्रेजी साहित्य में इसका प्रचलन रहा। हिन्दी साहित्य में विदेशी साहित्य के प्रभाव से रिपोर्ताज लिखने की शैली अधिक परिपक्व नहीं हो पाई है। शनैः-शनैः इस विधा में परिष्कार हो रहा है। सर्वश्री प्रकाशचन्द्र गुप्त, रांगेय राघव, प्रभाकर माचवे तथा अमृतराय आदि ने रोचक रिपोर्ताज लिखे हैं। हिन्दी में साहित्यिक, श्रेष्ठ रिपोर्ताज लिखे जाने की पूरी संभावनाएँ हैं।
रिपोर्ताज लिखते समय, इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
रिपोर्ताज में घटना प्रधान होना चाहिए, व्यक्ति नहीं।
रिपोर्ताज केवल वर्णनात्मक नहीं, कथात्मकता से भी युक्त होना चाहिए।
रिपोर्ताज में बहुमुखी कथ्य, चरित्र, संवाद, और प्रामाणिकता आवश्यक है।
रिपोर्ताज में भाषा और शैली प्रसंगानुकूल हो।
रिपोर्ताज के कुछ उदाहरण:
‘लक्ष्मीपुरा’ हिन्दी का पहला रिपोर्ताज माना गया है। इसका प्रकाशन सुमित्रानंदन पंत के संपादन में निकलने वाली ‘रूपाभ’ पत्रिका के दिसंबर, १९३८ ई. के अंक में हुआ था।
‘भूमिदर्शन की भूमिका’ शीर्षक रिपोर्ताज सन् १९६६ ई. में दक्षिण बिहार में पड़े सूखे से संबंधित है। यह रिपोर्ताज ६ टुकड़ों में ९ दिसम्बर १९६६ से लेकर १३ जनवरी १९६७ तक ‘दिनमान’ पत्र में छपा है। हिंदी के प्रमुख रिपोर्ताज मे ‘तूफानों के बीच’ (रांगेय राघव), प्लाट का मोर्चा (शमशेर बहादुर सिंह), युद्ध यात्रा (धर्मवीर भारती) आदि हैं। कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, विष्णु प्रभाकर, प्रभाकर माचवे, श्याम परमार, अमृतराय, रांगेय राघव तथा प्रकाश चन्द्र गुप्त आदि प्रसिद्ध रिपोर्ताजकार हैं
रिपोर्ट, किसी भी घटना का आंखों देखा वर्णन होता हैं। यह लिखित या मौखिक किसी भी रूप मे एवं भिन्न प्रारूप मे हो सकती हैं किंतु साहित्य के एक विशिष्ट प्रारूप मे लिखी गई रिपोर्ट को रिपोर्ताज कहा जाता हैं। रिपोर्ताज हिंदी पत्रकारिता से संबंधित विधा है।
रिपोर्ट किसी भी घटना का सिर्फ तथ्यात्मक वर्णन होता हैं, जबकि रिपोर्ताज घटना का कलात्मक वर्णन हैं।
रिपोर्ताज साहित्य के निश्चित प्रारूप मे लिखे जाते हैं ताकि इसको पढ़ते समय पाठकों की रुचि बनी रहे।
रिपोर्ट नीरस भी हो सकती हैं, जबकि रिपोर्ताज मे लेखन की कलात्मकता इसे सरस बना देती हैं।
रिपोर्ट के लेखन की शैली सामान्य होती हैं, जबकि रिपोर्ताज लेखन की विशिष्ट शैली उसकी विषयवस्तु मे चित्रात्मकता का गुण उत्पन्न कर देती हैं। लेखन मे चित्रात्मकता, वह गुण होता हैं जिसके कारण रिपोर्ताज पढ़ते समय पाठकों के मस्तिष्क पटल पर घटना के चित्र उभरने लगते हैं। चित्रात्मकता पाठकों के कौतूहल को बढ़ा देती हैं, जिससे पाठक एक बार पढ़ना प्रारम्भ करने के बाद पूरा वृत्तांत पढ़कर ही चैन लेता हैं।
रिपोर्ताज, किसी घटना का रोचक एवं सजीव वर्णन होता हैं। लेखन में सजीवता एवं रोचकता उत्पन्न करने के लिए ही लेखक चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हैं। सहसा घटित होने वाली अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना ही इस विधा को जन्म देने का मुख्य कारण बन जाती है। रिपोर्ताज विधा पर सर्वप्रथम शास्त्रीय विवेचन श्री शिवदान सिंह चौहान ने मार्च 1941 मे प्रस्तुत किया था। हिन्दी मे रिपोर्ताज की विधा प्रारंभ करने का श्रेय हंस पत्रिका को है। जिसमें समाचार और विचार शीर्षक एक स्तम्भ की सृष्टि की गई। इस स्तम्भ मे प्रस्तुत सामग्री रिपोर्ताज ही होती हैं।
रिपोर्ताज का जन्म हिंदी में बहुत बाद में हुआ लेकिन भारतेंदुयुगीन साहित्य में इसकी कुछ विशेषताओं को देखा जा सकता है। उदाहरणस्वरूप, भारतेंदु ने स्वयं जनवरी, 1877 की ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ में दिल्ली दरबार का वर्णन किया है, जिसमें रिपोर्ताज की झलक देखी जा सकती है। रिपोर्ताज लेखन का प्रथम सायास प्रयास शिवदान सिंह चौहान द्वारा लिखित ‘लक्ष्मीपुरा’ को मान जा सकता है। यह सन् 1938 में ‘रूपाभ’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इसके कुछ समय बाद ही ‘हंस’ पत्रिका में उनका दूसरा रिपोर्ताज ‘मौत के खिलाफ ज़िन्दगी की लड़ाई’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य में यह प्रगतिशील साहित्य के आरंभ का काल भी था। कई प्रगतिशील लेखकों ने इस विधा को समृद्ध किया। शिवदान सिंह चौहान के अतिरिक्त अमृतराय और प्रकाशचंद गुप्त ने बड़े जीवंत रिपोर्ताजों की रचना की।
रांगेय राघव रिपोर्ताज की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ लेखक कहे जा सकते हैं। सन् 1946 में प्रकाशित ‘तूफानों के बीच में’ नामक रिपोर्ताज में इन्होंने बंगाल के अकाल का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। रांगेय राघव अपने रिपोर्ताजों में वास्तविक घटनाओं के बीच में से सजीव पात्रों की सृष्टि करते हैं। वे गरीबों और शोषितों के लिए प्रतिबद्ध लेखक हैं। इस पुस्तक के निर्धन और अकाल पीड़ित निरीह पात्रों में उनकी लेखकीय प्रतिबद्धता को देखा जा सकता है। लेखक विपदाग्रस्त मानवीयता के बीच संबल की तरह खड़ा दिखाई देता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के रिपोर्ताज लेखन का हिंदी में चलन बढ़ा। इस समय के लेखकों ने अभिव्यक्ति की विविध शैलियों को आधार बनाकर नए प्रयोग करने आरंभ कर दिए थे। रामनारायण उपाध्याय कृत ‘अमीर और गरीब’ रिपोर्ताज संग्रह में व्यंग्यात्मक शैली को आधार बनाकर समाज के शाश्वत विभाजन को चित्रित किया गया है। फणीश्वरनाथ रेणु के रिपोर्ताजों ने इस विधा को नई ताजगी दी। ‘)ण जल धन जल’ रिपोर्ताज संग्रह में बिहार के अकाल को अभिव्यक्ति मिली है और ‘नेपाली क्रांतिकथा’ में नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन को कथ्य बनाया गया है।
अन्य महत्वपूर्ण रिपोर्ताजों में भंदत आनंद कौसल्यायन कृत ‘देश की मिट्टी बुलाती है’, धर्मवीर भारती कृत ‘युद्धयात्रा’ और शमशेर बहादुर सिंह कृत ‘प्लाट का मोर्चा’ का नाम लिया जा सकता है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अपने समय की समस्याओं से जूझती जनता को हमारे लेखकों ने अपने रिपोर्ताजों में हमारे सामने प्रस्तुत किया है। लेकिन हिंदी रिपोर्ताज के बारे में यह भी सच है कि इस विधा को वह ऊँचाई नहीं मिल सकी जो कि इसे मिलनी चाहिए थी।
विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ?
☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (11 नवंबर से 17 नवंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆
आज मैं आपको आने वाले सप्ताह के राशिफल के बारे में बताऊंगा। 11 नवंबर से 17 नवंबर 2024 अर्थात विक्रम संवत 2081 शक संवत 1946 के अगहन कृष्ण पक्ष की द्वितीया तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल को लेकर उपस्थित हुआ हूं।
सबसे पहले इस सप्ताह में जन्म लेने वाले बालक और बालिकाओं के भविष्यफल के बारे में बताता हूं।
इस सप्ताह के प्रारंभ से 11 नवंबर की रात 11:02 PM तक के बच्चों की राशि कुंभ होगी। इनका एक अच्छा जीवनसाथी प्राप्त होगा। 11:02 पीएम के बाद से 14 नवंबर के 1:30AM तक जन्म लेने वाले बच्चों की चंद्र राशि मीन होगी। ये बच्चे भाग्यशाली होंगे। भाग्य उनका साथ देगा। इस समय से लेकर 16 तारीख को 3: 53AM तक जन्म लेने वाले बच्चों की जन्म राशि मेष होगी। इनके पास धन अच्छी मात्रा में आएगा। इस समय के उपरांत 18 नवंबर के 7:28 प्रातः तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि वृष होगी। यह बच्चे अपने जीवन भर अच्छी सुख सुविधाओं का उपयोग करेंगे।
आईए अब हम आपको राशिवार राशिफल बताते हैं।
मेष राशि
इस सप्ताह भाग्य से आपको मदद मिल सकती है। धन आएगा परंतु उसके रुकने की उम्मीद कम है। आपके सुख और प्रतिष्ठा में कमी आएगी, परंतु 14 और 15 नवंबर को आपके सुख और प्रतिष्ठा में थोड़ी वृद्धि हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। 16 और 17 तारीख को भी आपके पास धन आ सकता है। 12 और 13 तारीख को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह उड़द का दान करें और शनिवार को शनि मंदिर में जाकर पूजा करें सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।
वृष राशि
अगर आप पेट के रोग से पीड़ित है तो इस सप्ताह आपको उसमें लाभ हो सकता है। भाई बहनों के साथ तनाव होगा। सुख में वृद्धि होगी। पिताजी को कष्ट हो सकता है। कार्यालय के कार्यों में सचेत रहें। शत्रुओं और मानसिक कष्ट से आपको बचकर रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 11 और 16 तथा 17 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 14 और 15 नवंबर को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन प्रातः काल स्नान करने के उपरांत तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
मिथुन राशि
इस सप्ताह आपके खर्चों में कमी आएगी। कचहरी के कार्यों में थोड़ी सफलता मिल सकती है। धन आने की मात्रा में कमी होगी। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 16 और 17 नवंबर को अगर आप सावधानी पूर्वक कार्य करेंगे तो आपको सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
कर्क राशि
इस सप्ताह आपको व्यापार में लाभ हो सकता है। आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपका और आपके माता जी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। भाग्य से आपको कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी। संतान के स्वास्थ्य के बारे में भी सचेत रहें। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 16 और 17 नवंबर को अगर आप प्रयास करेंगे तो आपको धन लाभ हो सकता है। 11 नवंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का प्रतिदिन अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
सिंह राशि
इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या आ सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति में बदलाव होगा। भाई बहनों के साथ तनाव कायम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 11 और 16 तथा 17 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 12 और 13 नवंबर को आपको सावधान रहकर के ही कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
कन्या राशि
इस सप्ताह आप थोड़े से प्रयास में अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। भाग्य आपका साथ देगा। भाई बहनों के साथ संबंध तनावपूर्ण बने रहेंगे। माता और पिताजी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। शत्रु शांत नहीं रहेंगे। धन आने की मात्रा में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 नवंबर उत्साहप्रद है। इस सप्ताह के 11, 14 और 15 नवंबर को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।
तुला राशि
अगर आप मानसिक रूप से त्रस्त हैं तो इस सप्ताह आपको उसमें लाभ हो सकता है। धन आने की मात्रा में कमी आएगी। सामान्य रूप से आपका आपके जीवनसाथी का और आपके माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा कार्यालय में आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
वृश्चिक राशि
इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और आपके पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके सुख में थोड़ी कमी आएगी। भाग्य आपका साथ देगा। संतान से आपको लाभ प्राप्त नहीं होगा। इस सप्ताह आपके लिए 11 तथा 16 और 17 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 16 और 17 तारीख को आप सभी कार्यों में सफल रहेंगे। 14 और 15 तारीख को आपको कोई भी कार्य देखभाल कर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें और बृहस्पतिवार को रामचंद्र जी या कृष्ण भगवान के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।
धनु राशि
अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आएंगे। कचहरी के कार्यों में आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको धन लाभ होगा। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 नवंबर उत्साहप्रद हैं। 16 और 17 नवंबर को आपको कोई भी कार्य सावधानी से करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
मकर राशि
इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। लंबी यात्रा का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 14 और 15 नवंबर कार्यों के लिए लाभदायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।
कुंभ राशि
इस सप्ताह आपके जीवनसाथी और माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भाग्य के सहारे कोई भी कार्य न करें। इस सप्ताह आपके लिए 11, 16 और 17 नवंबर फलदायक है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।
मीन राशि
इस सप्ताह आपको अपने भाई बहनों से सहयोग प्राप्त हो सकता है। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 12 और 13 नवंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 11 नवंबर को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।
ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ आलेख ☆ सृष्टि की डायरी से – थोड़ी सी छांव☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
ये कैसा सच था ? यह मैं क्या पढ़ रहा था? यही सच था तो ऐसा क्यों था ? ये सृष्टि की डायरी के मात्र तीन पन्ने उसके जीवन का सच बयान कर रहे थे। सृष्टि एक प्राध्यापिका के साथ एक कवयित्री भी है और हम साहित्यिक गोष्ठियों में एकसाथ काव्य पाठ करते, मुलाकातें होतीं और सुनते सुनाते। इन्हीं गोष्ठियों में सृष्टि को लगा कि मैं उसकी कविताओं को रंग रूप दे सकता हूं और वह पहली बार घर आई और अपनी डायरी मुझे ऐसे सौंप गयी, जैसे कोई मां अपने नवजात शिशु को सौंप रही हो और बोली-सर ! मेरी इन कच्ची पक्की कविताओं को थोड़ा देख लीजिए। यदि आप कहेंगे तो एक कविता संग्रह मैं भी प्रकाशित करवा लूंगी !
इस तरह सृष्टि मेरे लिखने पढ़ने की मेज़ पर अपनी डायरी रखकर चली गयी थी। कुछ दिन डायरी ऐसे ही पड़ी रही, फिर एक दिन जैसे उसकी कविताओं ने चिड़ियों की तरह चहचहा कर मुझे अपनी ओर बुला लिया। मैंने डायरी में से कवितायें पढ़नी शुरू कीं और एक जगह कवितायें न होकर उसकी अपनी ज़िंदगी का सच मेरे सामने था, पूरे तीन पन्नों में लिखा हुआ ! क्या सृष्टि इन्हें डायरी सौंपते समय भूल गयी थी या वह इन पन्नों को मुझ तक पहुंचाना चाहती थी ? मैं कुछ समझ नहीं पाया लेकिन ये पन्ने करवा चौथ जैसे नारी के जीवन के महत्त्वपूर्ण दिन पर लिखे गये थे, इसलिए बहुत मायने रखते हैं ! वैसे तिथि को देखकर पता चला कि ये पन्ने पांच साल पहले लिखे गये थे यानी पांच साल से सरोज कितनी कशमकश में ज़िंदगी गुजार रही है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मैं आपके सामने सृष्टि की डायरी के पन्ने रखने जा रहा हूं-जस के तस !
……
आज इस करवाचौथ पर न मैं खुश हूं और न ही मेरे मन में कोई उमंग है ! न जीने को दिल करता है और न ही मरने को ! मैं अजीब सी स्थिति में जी रही हूं। मन में ढेरों सवाल उठ रहे हैं पर पूछूं तो किससे ? आज मेरी हालत ऐसी है कि किसी से भी अपने दिल की हालत बयान नहीं कर सकती ! बस, एक घुटन में जी रही हूं, जैसे किसी गैस चैम्बर में बंद कर दी गयी हूं। मैं सब बंधन तोड़कर आज़ाद होना चाहती हूं। पर पता नहीं ये परिवार, रीति रिवाज, समाज और मेरे संस्कार रास्ता रोके खड़े हैं मेरा ! सबके बीच बेबस हो जाती हूं। मेरे दो बेटे हैं, जिनसे मैं बहुत प्यार करती हूं। वे मेरे सबसे बड़े बंधन हैं। उनके लिए मैं अपनी जान भी दे सकती हूं। मैं उनसे कभी अलग नहीं हो सकती, वे मेरे अभिन्न अंग हैं।
आज करवाचौथ पर बहुत से बधाई के मैसेज भी आ रहे हैं, जो कह रहे हैं कि हर ब्याहता स्त्री अपने परिवार, कैरियर, खुशियों और अपनी आज़ादी को परिवार पर कुर्बान कर देती है, कर देनी चाहिए, ऐसे भी संकेत हैं। यदि स्त्री इन हदों के बाहर जाती है तो उसके अपने ही उसे लौटने व सही राह पर चलने की हिदायतें देने लगते हैं! यही नहीं उसे उसके इरादों को तोड़ने की कोशिश करते हैं।
क्या बताऊं, ईश्वर ने मुझे ऐसे व्यक्ति के साथ पवित्र बंधन में बांधा, जो बिल्कुल मुझसे विपरीत है जैसे कालिदास व विलोम ! न मेरे जैसी परवरिश न ही मेरे जैसे विचार ! दो विपरीत ध्रुव हों जैसे हम दोनों ! मुझे कोई सुकून नहीं मिला आज तक ! मैं घुट घुट कर जी रही हूं, जीती जा रही हू़। बस समय काट रही हूं। काटे नहीं कटते दिन, ये रात जैसी हालत है मेरी।
देख रही हू़ं कि आज अखबार में भी स्त्री के लिए करवाचौथ के महत्त्व पर पन्ने भरे पड़े हैं। करवाचौथ पर स्त्री को सजने संवरने के टिप्स दे रखे हैं पर मुझे किस, सजना के लिए सजना है जो मैं इन पन्नों को पढ़कर समय क्यों खराब करूं? पुरुष तो इतना ही चाहता है कि उसकी पत्नी सजे संवरे और दिन भर भूखी रहकर उसके नाम की माला जपती रहे। हर काम पति की मर्ज़ी से करे। वही काम करे, जिसमें पति की खुशी हो। बस, उसके कदमों पर चले, ज़रा भी इधर उधर न हो ! स्त्री का प्रभुत्व पुरुष को कभी स्वीकार नहीं, सदियों से ! वह करवाचौथ जैसे संस्कार और परंपरा के नाम पर स्त्री को उलझाये रखना चाहता है। हम महिलायें खुद कमा रही हैं लेकिन पति के उपहार की राह देखतीं भूखी रहकर दिन काट देती हैं ! पुरुष समाज ने बचपन से ही ऐसी सोच बना दी है हमारी ! ये संस्कार हमारे बंधन बनते चले गये। कोई भी महिला इन संस्कारों से बाहर नहीं जा सकती और जाये तो परिवार टूट जाये ! स्त्री अपने पति के इशारों पर नाचती है, समाज में पतिव्रता दिखाने के लिए।
हे ईश्वर ! मुझे इन बंधनों से मुक्ति दे दो !!
……..
ये कौन सी सृष्टि मेरे सामने थी ? ये सृष्टि का कौन सा चेहरा था ? साहित्यिक गोष्ठियों में वह बहुत शांत सी, हल्की सी मुस्कान बिखेरती मिलती थी। फिर यह सृष्टि मन की किन गुफाओं में कहां छिपी बैठी थी और कब से ? सच में हर इंसान के अनेक चेहरे होते हैं। सृष्टि का यह चेहरा मुझे झकझोर कर रख गया ! वह गोष्ठियों में थोड़ा सकुचाती हुई आती थी भाग लेने, जैसे कोई चोरी कर रही हो और पकड़े जाने के डर से परेशान भी रहती हो। तभी वह बार बार कहती थी कि सर ! संडे को रखा करो गोष्ठियां ! छुट्टी वाले दिन रखी गोष्ठी में वह सहज रहती थी लेकिन उसके शांत से चेहरे के पीछे इतने तूफान उमड़ते रहते होंगे, यह भेद आज ही खुला। मन की गुफाओं में हर आदमी कितना कुछ छिपाये रखता है ! फिर मैंने सृष्टि की कविताओं के विषयों पर ध्यान दिया तो और भी हैरान हो गया ! सृष्टि की कविताओं में असल में यही तीन पन्नों वाली बात बार बार आ रही थी-किसी बच्ची के साथ जन्म के बाद से ही भेदभाव समाज में, परिवार में और फिर यह भेदभाव शादी ब्याह के बाद भी बढ़ते चले जाना ! चाहे मायका हो या ससुराल नारी के मन की बात कोई सुनने को, मानने को तैयार नहीं ! न उसकी रूचियों का सम्मान और न ही उसकी भावनाओं की कद्र ! करे तो क्या करे ? जाये तो जाये कहां ? सृष्टि सचमुच घुट घुट कर जी रही थी, पल पल मर रही थी लेकिन बेटों से प्यार उसे जीने के लिए एक रास्ता, एक खूबसूरत बहाना बना हुआ था ! ये कवितायें उसके करवाचौथ वाले दिन लिखे तीन पन्नों की देखा जाये तो काव्यमयी अभिव्यक्ति कही जा सकती हैं। एक नन्ही बच्ची प्यार का थोड़ा सा आंचल मांग रही है, एक नारी अपने मन का करने की आज़ादी मांग रही है और किसी ऐसे अनदेखे संसार की कल्पना में खोई हुई है, जहां उसे अपने मन का करने की आज़ादी होगी ! ये कवितायें सृष्टि की छिपी हुईं, आधी अधूरी चाहतें कही जा सकती हैं ! नारी संघर्ष करे तो कैसे ? जैसे जीने की एक राह तलाश रही थी सृष्टि !
…….
आखिर मैंने डायरी में लिखीं सभी कवितायें पढ़ लीं और सृष्टि को बता दिया कि कवितायें पढ़ ली हैं और फुटनोट दे दिये हैं, किसी भी दिन आकर ले जाओ अपनी डायरी! सृष्टि ने कहा कि सर, किसी छुट्टी वाले दिन आ जाऊंगी और वह एक दिन फोन करके आ भी गयी !
थोड़े से जलपान के बाद मैंने उसकी डायरी के वे पन्ने खोलकर सृष्टि के सामने रख दिये !
सृष्टि को पन्ने देखते ही जैसे कुछ याद आया, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो और उसके चेहरे पर भी संकोच और लाज के रंग दिखने लगे ! कुछ देर बाद संयत होकर बोली-सर ! बस, उस दिन मैंने अपने मन का गुबार अपनी सखी डायरी को सुना दिया पर आपको डायरी देते इन पन्नों की ओर ध्यान न गया मेरा ! माफ कीजिये !
-पर ऐसा लिखना ही क्यों पड़ा सृष्टि?
मेरे अंदर का पत्रकार जाने कहां से निकल आया बाहर एकदम से !
-सर! ये बात मेरे बचपन से जुड़ी है।
-कैसे ?
-मैं नौवीं में पढ़ती थी और एक रात जब हम भाई बहन खा पीकर सो गये लेकिन मैं अधसोई सी थी, तब मेरे बाबा मां को कहने लगे कि बेटियां बड़ी हो गयी हैं, अब इनकी शादी करेंगे नहीं तो क्या पता क्या दिन दिखायें ! मैंने मन ही मन प्रण कर लिया कि मैं अपने बाबा का सिर कभी नीचा न होने दूंगी और फिर दसवीं पढ़ते पढ़ते मेरी और बड़ी बहन की एक ही घर में शादी हो गयी, ये दोनों सगे भाई थे। मैं पढ़ना चाहती थी लेकिन शादी कर एक तरह से मेरी राहें बंद करने की कोशिश की बाबा ने।
-फिर? बचपन की शादी कैसी लगी ?
-बिल्कुल वैसी ही जैसी महात्मा गांधी ने लिखा कस्तूरबा के बारे में कि अच्छे अच्छे कपड़े मिलेंगे और खेलने के लिए एक साथी !
-तो मिला फिर साथी ?
-नहीं न ! ये प्लस टू पढ़े थे और दिन भर दोस्तों के बीच बिताकर आते थके हारे ! नयी नवेली दुल्हन का चाव नहीं मन में ! फिर इनकी नौकरी लग गयी फौज में ! कभी लम्बी छुट्टी आते पर साथ आती मेरी सौतन शराब !
-फिर आगे कैसे पढ़ी सृष्टि?
-मैंने मना लिया ससुराल वालों को और काॅलेज में एडमिशन ले लिया। इससे मैं सासु की झिड़कियों से भी बच गयी। सासु यहां तक कहती कि इसे तो झाड़ू लगाना भी नहीं आता और घूंघट भी ढंग से नहीं निकालती ! ये आते तो काॅलेज थोड़ा मिस होता बाकी मैं ग्रेजुएशन ही नहीं बीएड भी कर गयी और प्राइवेट एम ए भी ! बीच में दो प्यारे प्यारे बेटे भी सौगात की तरह आये !
-कभी साथ नहीं गयी सृष्टि?
-गयी ! एकबार जिद्द करके गयी कि हमें भी अपने साथ ले चलो और कुछ समय रही पर बच्चों की पढ़ाई एक जगह टिक कर करवाने के लिए यहीं लौट आई और देखो बच्चे बन भी गये अच्छी जाॅब पर भी लग गये हैं !
-अब क्या फिक्र है सृष्टि?
-मेरी वही सौतन शराब इनके साथ लौट आई है रिटायरमेंट के बाद ! ये मेरे पास होते हुए भी जैसे मेरे पास नहीं होते ! ऊपर से शक का कीड़ा बढ़ता ही जा रहा है और बस, मैं तंग आ गयी इस, सबसे और लिख डाले ये पन्ने, कह डाला डायरी सखी को अपना सारा दुख दर्द ! एकबार तो मन हल्का कर लिया, सर पर आज…
-शक कैसा?
-बहुत शक्की हैं मेरे हसबैंड, सर! अब स्कूल में जाॅब कर रही हूं तो किसी क्लीग का दफ्तर के काम से फोन आयेगा और ये ढेरों सवाल करने लग जायेंगे ! अब गोष्ठियों में आऊं तो सवाल कौन हैं तेरे वहां? दूसरे दिन का अखबार दिखाती हूं कि ये थे मेरे वहां !
फिर सृष्टि की आवाज़ लड़खड़ाने लगी और फिर उसकी आंखें में आंसुओं की धारा बहने लगी ! मैंने उसे रोका नहीं लेकिन मेरा पत्रकार शर्मिंदा होकर रह गया, शायद वह लक्ष्मण रेखा लांघ गया था ! सृष्टि के जीवन में इस तरह झांकने का मेरा कोई अधिकार नहीं था। इसलिए भाग गया और मैं एक संवेदनशील व्यक्ति बन कर लौटा और सृष्टि के कंधे थपथपाते पूछा-अब क्या सृष्टि?
-बस, सर थोड़ी सी छांव चाहिए, पूरा जीवन धूप में नंगे पांव चलते चलते काट दिया ! पांवों पर तो नहीं मन पर न जाने कितने बोझ बढ़ते गये ! उफ्फ् !
मैं कुछ कह न सका और सृष्टि आंसुओं को समेटती, डायरी उठाकर चल दी !
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२ ☆ श्री सुरेश पटवा
हम हम्पी जा रहे हैं तो इसकी थोड़ी जानकारी लेना आवश्यक है। हम्पी कर्नाटक के बेल्लारी ज़िले में स्थित है। जो कर्नाटक राज्य के कई प्रमुख जगहों जैसे बंगलुरू, हुबली, हॉस्पेट, बेलारी, रायचूर आदि से राष्ट्रीय राजमार्ग 63 द्वारा जुड़ा हुआ है। यह जगह बंगलुरू से 380 किलोमीटर और हुबली से 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हम्पी रेल मार्ग द्वारा कई प्रमुख शहरों जैसे बंगलुरू, हुबली, बेलगम, गोवा, तिरुपति, विजयवाड़ा, गंटूर, गंटकल, हैदराबाद और मिराज आदि से जुड़ा हुआ है। तुंगभद्रा नदी के किनारे रामायण कालीन हनुमान जी की जन्मस्थली की पहचान किष्किधा के रूप में की गई है।
हम भोपाल से हवाई उड़ान द्वारा मुंबई होते हुए हुबली पहुँचेंगे। हुबली से बस द्वारा हम्पी यात्रा होगी। हमने 28 सितंबर 2023 को वायुयान ने भोपाल हवाई पट्टी से से उड़ान भरी। यदि आप भोपाल से मुंबई की यात्रा रेल द्वारा कर रहे होते तो आपको सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वत श्रेणियों के मध्य से प्रवाहित होती नर्मदा और ताप्ती नदियों को पार करके पुराने खानदेश इलाक़े से गुजरना पड़ता। वायुयान में भी रास्ता तो वही है परंतु यह इलाक़ा आसमान में उड़कर पार करना था। शुरू में विमान कम ऊँचाई पर होने से नीचे जाने पहचाने स्थान चिन्हित करते रहे कि नर्मदा नदी प्रवाहित है। आगे गोदावरी नदी चौड़े पाठ के साथ प्रवाहित होते दिखी। गोदावरी नदी को “दक्षिण गंगा” के रूप में भी जाना जाता है। यह नदी महाराष्ट्र में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले लगभग 1465 किमी. की दूरी तय करती है। यह महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा राज्यों से होकर बहती है। गोदावरी नदी के तट पर नासिक, नांदेड़ और भद्राचलम महत्वपूर्ण शहर हैं। ऋषि गौतम से संबंध जुड़े जाने के कारण इसे गौतमी के नाम से भी जाना जाता हैं। वहीं से पश्चिमी घाट की पर्वत श्रेणी भी नज़र आई। जब विमान मुंबई विमानतल पर उतरने लगा तब कल्याण क्रीक का समुद्री विस्तार दिखा। लगा विमान समुद्र पर ही उतर रहा है। अचानक उड़ान पट्टी नज़र आई और हम एक हल्के झटके के साथ आसमान से ज़मीन पर थे।
दस बजे मुंबई हवाई अड्डे पर उतरे। हमारा लगेज हमको सीधा हुबली में मिलेगा। हम लोग हैंडबैग लेकर मस्तानी चाल से सुस्ताने की जगह ढूँढने लगे। हवाई यात्रा में सवारी अधिक थकान महसूस करती हैं, क्योंकि वे गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के विपरीत कम आक्सीजन के साथ जड़ से कटे खुले आसमान में रहते हैं। हुबली उड़ान चेक इन दोपहर अढ़ाई बजे शुरू होगी। समूह ने प्रतीक्षा लाउँज में ठीक सी जगह देखकर अड्डा जमाया। घर से साथ लाया ख़ाना सभी साथियों ने मिलबाँट कर खाया। इसके बाद अच्छी चाय मिल गई। फिर कुछ ने बारी-बारी से आराम कुर्सी पर एक लेट लगाई। कुछ ने झपकी को थपकी देकर दुलार किया। कुछ मोबाइल में घुस मोबाइल रहे। कुछ मोबाइल होकर आसपास के नज़ारों से आँखें सेंकते रहे। इस तरह सभी काम से लगे रहे। ख़ाली कोई नहीं बैठा। ‘कर्मप्रधान विश्व करी राखा’ अनुसार प्रत्येक जीव कर्मरत रहा।
सूचना पटल ने बताया कि मुंबई से हुबली उड़ान दो बजकर पचास मिनट पर उड़ेगी। जिसकी बोर्डिंग एक बजकर तीस मिनट से होनी है। हम लोग डेढ़ बजे सुरक्षा जाँच करवा कर इंतज़ार लॉबी में पहुँचे। वहाँ गज़ब की बदइन्तज़ामी थी। हमारा बोर्डिंग गेट 11 प्रदर्शित हो रहा था। 11 से 20 गेट की इंतज़ार लॉबी में क़रीबन 150-200 सवारियों के लिए मुश्किल से 60-70 कुर्सियाँ थीं। लोग कुर्सियों की घात लगाए यहाँ-वहाँ घूम रहे थे। कुर्सी ख़ाली होते ही लपक लेते थे। कुछ लोग बाजू की कुर्सियों पर बैग रखकर बैठे थे। उन्हें हटवाने में खड़े लोगों की कुर्सियों पर जमी सवारियों से झंझट हो रही थी। एकमात्र पुरुष बाथरूम मरम्मत हेतु बंद था। महिला प्रसाधन चालू था। वैकल्पिक बाथरूम बहुत दूर गेट नंबर एक के पास बताया जा रहा था। हमने वरिष्ठ नागरिक का तुरुप पत्ता चला तो वहाँ के स्टाफ़ ने एक गुप्त बाथरूम की तरफ़ इशारा करते हुए हमारी समस्या का निदान कर दिया। हमारी समस्या का निदान होने भर की देर थी। फिर तो सभी साथियों ने उसका उपयोग किया। बोर्डिंग शुरू हुई तो सवारियों को गेट से हवाई जहाज तक ढोने वाली बस नहीं आ रही थी। यात्रियों द्वारा शिकायती रुख़ अख़्तियार करने पर बस का आना आरम्भ हुआ। हम लोग हवाई जहाज़ में लदकर रवाना हुए।
मुंबई से हमारी यात्रा वेस्टर्न घाट से होकर दक्षिण प्रायःद्वीप याने पेनिनसुला पर होनी थी। दक्षिण भारत एक विशाल उल्टे त्रिकोण के आकार का प्रायःद्वीप (Peninsula) है, जो पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और उत्तर में विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमालाओं से घिरा है जबकि त्रिकोण के कोने पर दक्षिण में अथाह हिन्द महासागर लहराता है, जहां श्रीलंका मुख्य भारतीय प्रायःद्वीप से टपक कर लटका हुआ सा प्रतीत होता है। जहाज ने रनवे पर पहुँच जगह बनाई। पायलट के कुछ बुदबुदाने के साथ गतिमान जहाज झटके से उठा और हवा में तैरने लगा। बाहर के नजारे दिखने लगे।
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 201 ☆ अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
(डा. मुक्ता जीहरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से हम आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख घाव और लगाव। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 256 ☆
☆ घाव और लगाव… ☆
चंद फ़ासला ज़रूर रखिए/ हर रिश्ते के दरमियान/ क्योंकि नहीं भूलती दो चीज़ें/ चाहे जितना भुलाओ/ एक घाव और दूसरा लगाव– गुलज़ार का यह कथन सोचने को विवश करता है तथा अनुकरणीय है। मानव दो चीज़ों को जीवन में लाख भुलाने पर भी नहीं भूल सकता– चाहे वे वाणी द्वारा प्रदत ज़ख़्म हों या शारीरिक घाव। यह दोनों ही शारीरिक पीड़ा व मानसिक आघात पहुँचाते हैं। प्रथम कमान से निकला हुआ तीर बहुत घातक होता है, उसी प्रकार मुख से नि:सृत शब्द भी हृदय को ता-उम्र कचोटते व आहत करते हैं। शरीर के ज़ख़्म तो एक अंतराल के पश्चात् भर जाते हैं, परंतु हृदय के ज़ख़्म एक अंतराल के पश्चात् भी हृदय को निरंतर सालते रहते हैं।
शायद गुलज़ार ने इसीलिए रिश्तों में फ़ासला रखने का संदेश प्रेषित किया है। यदि हम किसी पर बहुत अधिक विश्वास करते हैं और उसे अपना अंतरंग साथी स्वीकार लेते हैं; उसके बिना पलभर के लिए रहना भी हमें ग़वारा नहीं होता और उससे दूर रहने की कल्पना भी मानव के लिए असंभव व असहनीय हो जाती है।
‘रिश्ते सदा चंदन की तरह रखने चाहिए/ चाहे टुकड़े हज़ार भी हो जाएं, पर सुगंध ना जाए।’ रिश्तों में भले ही कोई लाख सेंध लगाने का प्रयास करे, परंतु उसे सफलता न प्राप्त हो। उसकी ज़र्रे-ज़र्रे से चंदन की भांति महक आए। जैसे इत्र का प्रयोग करने पर अंगुलियाँ महक जाती हैं, वैसे ही उनकी महक स्वतः दूसरों तक पहुँच जाती है तथा सबका हृदय प्रफुल्लित करती है।
यदि कोई आपकी भावनाओं को समझ कर भी तकलीफ़ पहुंचाता है तो वह आपका हितैषी कभी हो नहीं सकता। इसलिए आजकल अपने व पराये में भेद करना व दूसरे के मनोभावों को समझना अत्यंत कठिन हो गया है। हर इंसान मुखौटा धारण करके जी रहा है। सो! उसके हृदय की बातों को समझना भी दुष्कर हो गया है। केवल आईना ही सत्य को दर्शाता है। यदि उस पर मैल चढ़ी हो, तो भी उसका वास्तविक रूप दिखाई नहीं पड़ता है। रिश्ते भी काँच की भांति नाज़ुक होते हैं, जो ज़रा-सी ठोकर लगते ही दरक़ जाते हैं। इसलिए उन्हें संभाल कर रखना अत्यंत आवश्यक होता है। परंतु आजकल तो ऐसा प्रतीत होता है, मानो रिश्तों को ग्रहण लग गया है; कोई भी रिश्ता पावन नहीं रहा, क्योंकि हर रिश्ता स्वार्थ पर आधारित है।
‘अपेक्षाएं जहाँ खत्म होती है, सुक़ून वहीं से शुरू होता है। वैसे तो अपेक्षा व उपेक्षा दोनों ही रिश्तों में मलाल उत्पन्न करती हैं और मानव आजीवन मैं और तू के भँवर में फँसा रहता है। रिश्ते प्यार व त्याग पर आधारित होते हैं। जब हमारे हृदय में किसी के प्रति लगाव होगा, तो हम उस पर सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर होंगे। आसक्ति जिसके प्रति भी होती है, कारग़र होती है। प्रभु के प्रति आसक्ति भाव मानव को भवसागर से पार उतरने का सामर्थ्य प्रदान करता है। आसक्ति में मैं का भाव नहीं रहता अर्थात् अहं भाव तिरोहित हो जाता है, जो श्लाघनीय है। इसके परिणाम-स्वरूप रिश्तों में प्रगाढ़ता स्वत: आ जाती है और स्व-पर का भाव समाप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम उससे दूर रहने की कल्पना मात्र भी नहीं कर सकते। वैसे संसार में श्रेष्ठ संबंध भक्त और भगवान का होता है, जिसमें कोई भी एक- दूसरे का मन दु:खाने की कल्पना नहीं कर सकता।
अभिमान की ताकत फ़रिश्तों को भी शैतान बना देती है, लेकिन नम्रता भी कम शक्तिशाली नहीं होती है। वह साधारण मानव को भी फ़रिश्ता बना देती है। इसलिए जब बात रिश्तों की हो, तो सिर झुका कर जियो और जब उसूलों की हो, तो सिर उठाकर जिओ। यदि मानव के स्वभाव में निपुणता व विनम्रता है, तो वह ग़ैरों को भी अपना बनाने का सामर्थ्य रखता है। यदि वह अहंनिष्ठ है; अपनों से भी गुरेज़ करता है, तो एक अंतराल के पश्चात् उसके आत्मज तक उससे किनारा कर लेते हैं तथा खून के रिश्ते भी पलभर में दरक़ जाते हैं।
इंसान का सबसे बड़ा गुरु वक्त होता है, क्योंकि जो हमें वक्त सिखा सकता है; कोई नहीं सिखा सकता। ‘वह शख्स जो झुक के तुमसे मिला होगा/ यक़ीनन उसका क़द तुमसे बड़ा होगा।’ सो! विनम्रता का गुण मानव को सब की नज़रों में ऊँचा उठा देता है। ‘अंधेरों की साज़िशें रोज़-रोज़ होती हैं/ फिर भी उजाले की जीत हर सुबह होती है।’ यदि मानव दृढ़-प्रतिज्ञ है, आत्मविश्वास उसकी धरोहर है, तो वह सदैव विजयी रहता है अर्थात् मुक़द्दर का सिकंदर रहता है। परंतु घाव व लगाव एक ऐसा ज़हर है, जो मानव को उसके चंगुल से मुक्त नहीं होने देते। यदि वह एक सीमा में है, स्वार्थ के दायरे से बाहर है, तो हितकर है, अन्यथा हर वस्तु की अति खराब होती है; हानिकारक होती है। जैसे अधिक नमक रक्तचाप व चीनी मधुमेह को बढ़ा देती है। सो! जीवन में समन्वय व सामंजस्यता रखना आवश्यक है। वह जीवन में समरसता लाती है। स्थिति बदलना जब मुमक़िन न हो, तो स्वयं को बदल लीजिए; सब कुछ अपने आप बदल जाएगा।
एहसास के रिश्ते दस्तक के मोहताज नहीं होते। वे खुशबू की तरह होते हैं, जो बंद दरवाज़े से भी गुज़र जाते हैं। जीवन में किसी की खुशी का कारण बनो। यह ज़िंदगी का सबसे सुंदर एहसास है। इसलिए शिक़ायतें कम, शुक्रिया अधिक करने की आदत बनाइए; जीने की राह स्वत: बदल जाएगी। अपेक्षा और उपेक्षा के जंजाल से बचकर रहिए, जिंदगी सँवर जाएगी तथा समझ में आ जाएगी। रिश्तों में दूरी बनाए रखिए, क्योंकि घाव आजीवन नासूर-सम रिसते हैं और अतिरिक्त आसक्ति व लगाव पलभर में पेंतरा बदल लेते हैं और मानव को कटघरे में खड़ा कर देते हैं।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जो पीछे छूट गया है, उसका दु:ख मनाने की जगह जो आपके पास से उसका आनंद उठाना सीखें, क्योंकि ‘ढल जाती है हर चीज़ अपने वक्त पर/ बस भाव व लगाव ही है, जो कभी बूढ़ा नहीं होता। अक्सर किसी को समझने के लिए भाषा की आवश्यकता नहीं होती, कभी-कभी उसका व्यवहार सब कुछ अभिव्यक्त कर देता है। मनुष्य जैसे ही अपने व्यवहार में उदारता व प्रेम का परिचय देता है अर्थात् समावेश करता है, तो उसके आसपास का जगत् भी सुंदर हो जाता है।