English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 136 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 136 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 136) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 136  ?

☆☆☆☆☆

☆ Betrayal 

हिसाब में कच्चा होना भी

बड़ा दगा दे गया मुझे,

उसने मुझे ज़रा सा चाहा पर मैंने

खुद को पूरा दे दिया उसे…!

☆☆

Weakness in calculations

too betrayed me a lot…

She loved me a bit, but I gave

myself completely to her….!

☆☆☆☆

Life 

आप आए ज़िंदगी में, कुछ देर

ठहरे और फिर रवाना हो गए,

ज़िंदगी भी क्या है मुसाफिरों का

एक चंदरोज़ा ठिकाना ही तो है…

☆☆

You came into life, stayed

for a while and then left,

What’s life afterall, it’s only

a sojourn for the travelers…!

 ☆☆☆☆☆

Betrayal…
Painting credit: Captain Pravin Raghuvanshi
Medium: Oil colours on Oil paper

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 187 ☆ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 187 ☆ देह न बारम्बार ?

हमारे परिसर में मेट्रो ट्रेन का काम चल रहा है। इसके चलते घर लौटने के लिए एक किलोमीटर आगे जाकर एक पुलिया के अंडरपास से यू-टर्न लेना पड़ता है। यहाँ पास में कुछ मांसाहारी ढाबे हैं जो प्राणियों के अवशेष पुलिया के पास ही फेंक देते हैं। कौवों का हुजूम इन अवशेषों को लेकर यहाँ-वहाँ बैठा होता है और मारे दुर्गंध के उस मार्ग से निकलना कठिन होता है।

प्राणियों के अवशेष जीवन की क्षणभंगुरता का चित्र सामने खड़ा करते हैं। साथ ही चिंतन में विचार उठता है कि प्राण है तो ही देह सुगंधित है। चेतन तत्व का वास है तभी जीवन में सुवास है। अनित्य में नित्य है तो शरीर शेष है अन्यथा सब अवशेष है। इसे जीवन के विस्तृत क्षितिज पर देखें तो पाएँगे कि मनुष्य देह, आत्मा की यात्रा को सार्थक करने का साधन है।

विचार किया जाना चाहिए कि हम इस देहावधि को कैसे बिता रहे हैं? निरंतर दूसरों की आलोचना में व्यस्त रह कर…? दूसरों की प्रगति से कुढ़कर…? सदा कटु भाषा का प्रयोग करके…? वर्गभेद द्वारा…? वर्णभेद द्वारा…? स्त्री-पुरुष में अंतर करके…? आभासी या बनावटी जीवन जीकर…? आत्ममुग्धता का शिकार होकर.. ? ‘मैं और मेरा’ तक सीमित रह कर.. ? ये सारे तो कुछ लोकप्रिय (!) तरीके भर हैं जीने के। बाकी कटु सत्य तो यह है कि ‘मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना’ के बाद भी अधिकांश जन अपने तक सीमित होकर जीने के मामले में अभिन्न हैं।

कबीर ने लिखा है,

दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

दुर्लभ मनुष्य जीवन स्वर्ग (आनंद) और नर्क (विषाद) के बीच  मील का पत्थर है। ऊर्ध्वाधर यात्रा आनंद की ओर ले जाएगी। विरुद्ध दिशा में चले तो विषाद तक पहुँचेंगे।

वस्तुत: देह से मनुष्य होना एक बात है, आचरण से मनुष्य बनना दूसरी। पहली से दूसरी की यात्रा में जीवन का उत्कर्ष छिपा है। इस यात्रा पर अपनी एक रचना स्मरण हो आती है,

यात्रा में संचित होते जाते हैं शून्य,

कभी छोटे, कभी विशाल,

कभी स्मित, कभी विकराल,

विकल्प लागू होते हैं,

सिक्के के दो पहलू होते हैं,

सारे शून्य मिलकर ब्लैकहोल हो जाएँ

और गड़प जाएँ अस्तित्व,

या मथे जा सकें सभी निर्वात एकसाथ

पाएँ गर्भाधान नव कल्पित,

स्मरण रहे,

शून्य मथने से ही उमगा था ब्रह्मांड

और सिरजा था ब्रह्मा का निमित्त,

आदि या इति, स्रष्टा या सृष्टि

अपना निर्णय, अपने हाथ

अपना अस्तित्व, अपने साथ..!

उर्ध्वाधर या रसातल, चुनाव क्या होगा?  वैसे बिरला ही होगा जो अमृत और हलाहल में अंतर न कर सके।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

💥 अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक 💥

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 135 ☆ सॉनेट – हृदय गगरिया… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  “सॉनेट – हृदय गगरिया”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 135 ☆ 

☆ सॉनेट – हृदय गगरिया ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हृदय गगरिया रीती है प्रभु!

नेह नर्मदा जल छलकाओ।

जो बीती सो बीत गई विभु!

नैन नैन से तनिक मिलाओ।।

राम सिया में, सिया राम में।

अंतर अंतर बिसरा हेरे।

तुम्हीं समाए सकल धाम में।।

श्वास-श्वास तुमको हरि टेरे।।

कष्ट कंकरी मारे कान्हा।

राग-द्वेष की मटकी फोड़े।।

सद्भावों सँग रास रचाए।

भगति जसोदा तनिक न छोड़े।।

चित्र गुप्त जो प्रकट करो प्रभु।

चित्र गुप्त कर शरण धरो प्रभु।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०२२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

☆ राजकीय पत्रिकाओं का योगदान कितना ?

देश भर में राजकीय साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन लम्बे समय से हो रहा है। हरियाणा साहित्य अकादमी की हरिगंधा, हिमाचल से हिमप्रस्थ और गिरिराज साप्ताहिक, जम्मू कश्मीर से शिराजा, उत्तर प्रदेश सरकार की उत्तरप्रदेश, राजस्थान साहित्य अकादमी की मधुमति, दिल्ली से इंद्रप्रस्थ भारती, साहित्य अकादमी की समकालीन भारतीय साहित्य, पंजाब के भाषा विभाग से पंजाब सौरभ आदि पत्रिकायें मेरे ध्यान में हैं। इनके अतिरिक्त भी हो सकती हैं। इन पत्रिकाओं में हिमप्रस्थ और शीराजा ने तो विशेषांक भी दिये हैं और हरिगंधा भी महिला विशेषांक नियमित हर वर्ष मार्च माह में प्रकाशित करता है। समकालीन भारतीय साहित्य का तो हर अंक ही विशेषांक के समान होता है। इसी प्रकार केंद्र सरकार की ओर से आजकल भी एक चर्चित पत्रिका है। इसके बावजूद अनेक राजकीय पत्रिकायें लेखकों को दिये जाने वाले पारिश्रमिक से ही वार्षिक शुल्क काटने की पेशकश करती हैं और इस तरह इनकी सर्कुलेशन चलती रहती है जिसे अधिकांश लेखक पसंद तो नहीं करते लेकिन कुछ कह भी नहीं सकते ! क्या इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं ? इन पत्रिकाओं के प्रचार-प्रसार पर अलग से योजना बनाई जानी चाहिए। यह मेरा विचार है। यह मेरा अनुभव भी है जिन दिनों हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष के रूप में जिम्मेवारी मिली और कथा समय मासिक पत्रिका प्रकाशित की। तब इस परंपरा से कुछेक लेखकों ने जब इस तरह शुल्क काटने पर विरोध किया एक लेखक होने के नाते तब मुझे इसकी गंभीरता पता चली। दूसरे इन पत्रिकाओं का निरंतर चर्चा होना चाहिए। बुक स्टाॅल्ज पर रखी जानी चाहिएं। कुछ पत्रिकायें उपलब्ध हैं और बिक्री भी होती है। फिर भी और प्रयास किये जाने चाहिएं।

हिसार में चुपके चुपके महकी गजल :  पाठक मंच की ओर से गीत गजल का कार्यक्रम करवाया गया जिसमें गजल महकी और वह भी चुपके चुपके ! प्रसिद्ध गजल गायक व हिसार के ही मूल निवासी सुशील चावला, राजेश राजपालईशा खन्ना ने अपनी अपनी प्रस्तुतियां  देकर समां बांध दिया जबकि ये रिश्ता क्या कहलाता है, दिल दियां गल्लां, सास बिना ससुराल जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों की लेखिका मुनीष राजपाल ने अपनी लेखन कला व रंगमंच के सफर की शानदार जानकारी दी। सुशील चावला और मुनीषराजेश राजपाल संयोगवश शहर में थे और उन्हें पाठक मंच ने आमंत्रित कर लिया। कार्यक्रम की मुख्यातिथि प्रसिद्ध समाज सेविका पंकज संधीर थीं और उन्होंने कहा कि इस छोटे से कार्यक्रम ने मुझे बहुत ताजगी प्रदान की है और उन्हें यह भी खुशी है कि हिसार के कलाकार मुम्बई में अपनी पहचान ही नहीं बना रहे बल्कि मजबूती से कदम जमा रहे हैं। यह भी खुशी की बात है कि सीनियर माॅडल स्कूल के दो छात्र सुशील चावला और राजेश राजपाल ने कला क्षेत्र में कितना सफर तय कर लिया है। इनके प्रोजेक्ट में भी सहयोग देने का विश्वास दिलाया।

सुशील चावला ने चुपके चुपके रात दिन, मांयें नी मेरिये, चम्बा कितनी कू दूर, मैंनू तेरा शबाब लै बैठा, चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला आदि विभिन्न रंग के गीत व गजल आदि सुनाये और वाह-वाह लूटी। इसी प्रकार डाॅ ईशा खन्ना ने उमराव जान की लोकप्रिय गजल -इन आखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं और आज जाने की जिद्द न करो जैसे बहुत कर्णप्रिय गीत/गजल प्रस्तुत किये। इसी प्रकार राजेश राजपाल ने आने वाला पल जाने वाला है गाकर सबको आनंदित कर दिया। राजेश राजपाल मुम्बई में फिल्म महोत्सव सीरियल निर्देशक हैं। इस अवसर पर अमरनाथ प्रसाद, पूनम चावला, राकेश मलिक, रश्मि, नीलम सुंडा, गीतकार सतीश कौशिक, नीलम भारती आदि मौजूद थे।

शुभतारिका के दो विशेषांक : हरियाणा के अम्बाला छावनी से पिछले पचास वर्ष से प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका शुभतारिका ने दो विशेषांकों की घोषणा की है – व्यंग्य विशेषांक और लघुकथा विशेषांक। सबसे दिलचस्प बात यह है कि संभवतः अकेली शुभतारिका ऐसी पत्रिका है जिसकी ओर से छठवाँ लघुकथा विशेषांक प्रकाशित किये जाने की घोषणा की गयी है। यह बहुत ही सराहनीय है।

विजय को सम्मान : दिल्ली के रंगकर्मी विजय को पुणे की संस्था ने रंगकर्म के क्षेत्र में किये गये योगदान के लिये सम्मानित किया है। बधाई

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ हे सुमना… ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

सौ. विद्या पराडकर

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

🍀 – हे सुमना… – 🍀 ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

उमलत फुलत गोड सुमन हे

जांभळ्या रंगाने नटले आहे

गोजिर्या साजिर्या मुग्ध कलिका

फुलन्यास त्या उत्सुक आहे 🍀

हिरवी,हिरवी नाजुक पाने

त्या पुष्पाला शोभत‌ आहे

तुला पाहुनी विलोभनीय सुमना

मी ही मनात खुलली आहे🍀

लावण्य तुझे ऐसे निरखित

प्रसन्न आहे विश्र्व सारे

निसर्गाची किमया अद्भुत

हे सुमना तव भाग्य न्यारे🍀

© सौ. विद्या पराडकर

वारजे  पुणे..

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #186 – 72 – “ तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा…”)

? ग़ज़ल # 72 – “तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

तू चाहता क्या और माँगता क्या है,

तू सच बता आख़िर चाहता क्या है।

उड़ चुका बहुत ख्वाहिशी फ़लक पर

अब रुक जा बेवज़ह उड़ता क्या है।

तेरी बेवफ़ाई के क़िस्से बहुत मशहूर,

बता तेरा मुहब्बत से वास्ता क्या है।

दराज खुला रखा लिफ़ाफ़ों के लिए,

तेरे हुजूम में वसूली हफ़्ता क्या है।

दिल में तेरे अभी भी जमा है मैल,

दूसरों के दिलों में झांकता क्या है।

तूने किया वही जो चाहा ताज़िंदगी,

तू बता  तुझे अब सालता क्या है।

तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा,

तेरी पत्तल में फैला रायता क्या है।

आ जकड़ा तुझे फ़ानी अहसासात ने,

मंज़ूर कर फ़ना अब भागता क्या है।

आतिश की असलियत सब जानते हैं,

फिर तू बेसिरपैर की हाँकता क्या है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 64 ☆ ।।नई पीढ़ी को सौंपनी है, शुद्ध स्वच्छ पर्यावरण की विरासत।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।नई पीढ़ी को सौंपनी है, शुद्ध स्वच्छ पर्यावरण की विरासत।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 64 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।नई पीढ़ी को सौंपनी है, शुद्ध स्वच्छ पर्यावरण की विरासत।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

(पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष रचना)

[1]

वृक्षों से ही हमारे जीवन में आती हरियाली है।

प्रकृति पोषित और हर ओर होती खुशहाली है।।

पर्यावरण सरंक्षण धुरी है जीवन के रक्षा की।

जानो तभी मनेगी नई पीढ़ी की होली दीवाली है।।

[2]

रक्षा पर्यावरण की तेरी मेरी सबकी जिम्मेदारी है।

हम अभी से हों समझदार इसी में होशियारी है।।

नहीं तो इस बर्बादी की होगी हमारी ही जवाबदारी।

यही आज समय का तकाजा और खबरदारी है।।

[3]

जो हम सिखायेंगे नई पीढ़ी वही करेगीआगे जाकर।

पर्यावरण के प्रति जागरूक होगी यह शिक्षा लाकर।।

आज कर्तव्य कि नई पीढ़ी को सौंपना स्वच्छ पर्यावरण।

अन्यथा आने वाली पीढ़ी दुःख भरेगी ये विरासत पाकर।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 128 ☆ “रेल पर दो कविताएं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित  – “रेल पर दो कविताएं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #128 ☆ कविता – “रेल पर दो कविताएं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

(16 अप्रेल, 1853 – यह दिवस ऐतिहासिक ,जब दौड़ी थी पटरी पर रेल पहली बार…)

[1]  रेल भारत में

परिवर्तन इस विश्व का आवश्यक व्यवहार

धीरे-धीरे सदा से बदल रहा संसार

सदी अट्ठारह तक रहा धार्मिक सोच प्रधान

 पर उसके उपरांत नित सबल हुआ विज्ञान

 

बदली दृष्टि जरूरतें उपजे नए विचार

यूरोप से चालू हुए नए नए अविष्कार

भूमि वायु जल अग्नि नभ प्रमुख तत्व ये पांच

इनके गुण और धर्म की शुरू हुई नई जांच

 

इनके चिंतन परीक्षण से उपजा नव ज्ञान

प्रकृति की समझ प्रयोग ही कहलाता विज्ञान

ज्यों ज्यों इस सदवृत्ति का बढ़ता गया रुझान

जग में नित होते गए नए सुखद निर्माण

 

चूल्हे पै चढ़ी जल भरी गंज का ढक्कन देख

जेम्स वाट की बुद्धि में उपजा नवल विवेक

उसे उठाकर गिराकर उड़ जाती जो भाप

जल को भाप में बदल शक्ति देता ताप

 

इसी प्रश्न में छुपा है रेल का आविष्कार

वाष्प इंजन सृजन का यह ही मूलाधार

समय-समय होते गए क्रमशः कई सुधार

इंजन पटरी मार्ग और डिब्बे बने हजार

 

रेल गाड़ियां चल पड़ी बढ़ा विश्व व्यापार

लाखों लोगों को मिले इससे नए रोजगार

यात्रा माल ढुलाई से कई हुए मालामाल

और बड़े क्या सुधार हो यह है सतत सवाल

 

आई अट्ठारह सौ सैंतीस में भारत पहली रेल

 धोने पत्थर सड़क के शुरू हुआ था खेल

शुरू हुआ मद्रास से रेलों का विस्तार

आज जो बढ़ हो गया है कि मी अड़सठ हजार

 

अब विद्युत से चल रही रेलवे कई हजार

कई फैक्ट्रियां बनाती पुर्जे विविध प्रकार

अब तो हर एक क्षेत्र में व्याप्त ज्ञान विज्ञान

लगता है विज्ञान ही है अब का भगवान

 

[2] रेल के प्रभाव

रेलगाड़ियों का हुआ ज्यों ज्यों अधिक प्रसार

सुगम हुई यात्राएं और बढा क्रमिक व्यापार

 आने जाने से बढा आपस में सद्भाव

 सुविधाएं बढ़ती गई घटते गए अभाव

 

सहज हुआ आवागमन नियम भी बने उदार

 बदला हर एक देश औ बदल चला संसार

लेन-देन में वृद्धि हुई खुले नए बाजार

लाभ मिला हर व्यक्ति को बढ़े नए रोजगार

 

 शुरु में अपने देश में कई थे रेल के गेज

इससे कुछ असुविधाएं थीं थे क्षेत्रीय विभेद

प्रमुख लाइने एक हुई बदल रहे अब गेज

एक गेज होंगे तभी  प्रगति भी होगी तेज

 

आगे एंजिन से जुड़े डिब्बे भरे अनेक करते

करते लंबी यात्रा बनकर गाड़ी एक

दर्शक को दिखता सदा  रेल क मोहक रूप

खड़ी हो या हो दौड़ती दिखती रेल अनूप

 

रेल दौड़ती सुनाती एक लयात्मक गीत

बच्चों को लगता मधुर वह ध्वनि मय  संगीत

रेल मार्ग में जहां भी होता अधिक घुमाव

 वहां निरखना रेल को रचता मनहर भाव

 

 नयन देखते दृश्य हैं मन पाता आनन्द

सुंदर दृश्यों को सदा करते सभी पसंद

रेल ने ही विकसित किया पर्यटन उद्योग

 तीर्थाटन भी बन गया एक सुखदाई योग

 

समय और व्यय बचाने  प्रचलित कई हैं रेल

राजधानी, दुरंतो, संपर्क क्रांति या मेल

स्टेशन बनता जहाँ होता बड़ा प्रभाव

 रेल आर्थिक ही नहीं लाती कई बदलाव

 

रेल पहुँच देती बदल सारा ही परिवेश

सामाजिक बदलाव से बनता सुंदर देश

 छू जाती जिस भाग को आती जाती रेल

होने लगता प्रगति का वहीं मनोहर खेल

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 149 – बाळ गीत – ताई ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 149 – बाळ गीत – ताई ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

ताई माझी गुणांची

आहे मोठ्या मनाची ।

लहान-थोर साऱ्यांची

काळजी घेते सर्वांची।

मंजुळ तिचा गळा

गाते जणू कोकिळा।

वाजवून खळखुळुा

समजावते बाळा।

काम करते झरझर

पुस्तक वाचते सरसर।

सारेच करतात वरवर।

सर्वांनाच घालत असते

मायेची तिच्या पाखर।

नाही तिथे काहीच उणे

तिच्या विना घर सुने।

घरात फुलते सदाच

तिचे हास्य चांदणे।

तिचेच हास्य चांदणे।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ “जिजी” – लेखिका सौ राधिका भांडारकर ☆ परिचय – सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆

सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

?पुस्तकावर बोलू काही?

☆ “जिजी” – लेखिका सौ राधिका भांडारकर ☆ परिचय – सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆ 

पुस्तक परिचय

पुस्तकाचे नाव ~ जिजी 

लेखिका ~ सौ.राधिका भांडारकर,वाकड,पुणे.

प्रकाशिका ~ डाॅ.सौ.स्नेहसुधा कुलकर्णी.

नीहारा प्रकाशन, सदाशीव पेठ, पुणे.

मुद्रक ~ पालवी मुद्रणालय, सदाशीव पेठ, पुणे.

मूल्य ~ ₹१००/—

सौ राधिका भांडारकर

“जीजी” या पुस्तकाचा प्रकाशन सोहळा नुकताच दि.२६ मार्च २०२३ रोजी गुणवंतांच्या उपस्थितीत सुरेख पद्धतीने संपन्न झाला.

अवघ्या ८८ पृष्ठांचे हे पुस्तक जसजशी वाचत गेले तसतशी त्यांत मनाने पार डुंबून गेले,शेवटचे पान वाचेपर्यंत एका जागेवर या पुस्तकाने खिळवून ठेवले.एका  आजीची ही कहाणी अत्यंत ह्रदयद्रावक आणि कुठेतरी भेदून जाणारी…!जीजीचे संपूर्ण चरित्र यात रेखाटले असले तरी ते आत्मचरित्र नाही,किंवा चरित्र या साहित्यप्रकारातही मोडणारे नाही असे मला वाटते.

हे पुस्तक म्हणजे जीजीने स्वतः लिहीलेली तिची कहाणी वाचताना लेखिकेच्या भावनांचा

झालेला हा कल्लोळ आहे.त्यामुळे पुस्तकातील एकेक शब्द,एकेक ओळ वाचकाच्या ह्रदयाला जाऊन भिडते.

अत्यंत सुस्थितीत वाढलेली,सधन कुटुंबात विवाह होऊन आलेल्या जीजीला तिच्या पुढील आयुष्यात नशीबाने अल्पवयात वैधव्य आल्याने,तिने समाजाशी धीराने आणि आत्मविश्वासाने कसा लढा दिला,तिच्या एकमेव पुत्राला उत्तम प्रकारे कसे घडविले हे वाचताना डोळ्यातील आसवे थांबत नाहीत.

अतिशय प्रभावी शब्दांकन…..!अगदी तिर्‍हाईत,अपरिचित वाचकाच्या

नजरेसमोरही ही जीजी उभी रहाते.

सुरवातीलाच राधिकाताई लिहितात,”एक व्यक्ती म्हणून तिला वाचायचं होतं,तिचा शोध घ्यायचा होता.तिच्यातलं स्त्रीत्व जाणायचं होतं.तिच्यातली शक्ती जाणायची होती.आमच्या व्यतिरिक्त तिच्या शब्दातून बघायचं होतं.”

“खरंच बोराच्या झाडासारखंच होतं ना तिचं आयुष्य! काटेरी रक्तबंबाळ करणारं!पण तिने मात्र रुतलेल्या काट्याचा विचार न करता गोड बोरांचाच आनंद उपभोगला.”

ह्या अशाप्रकारच्या लेखनाने जीजी वाचायची वाचकांची उत्सुकता ताणते.त्यामुळे पुस्तक खाली ठेवावेसे वाटत नाही.

जीजीची कहाणी सांगत असताना राधिकाताईंचा जीजीसोबतचा वास आणि घेतलेले अनुभव ह्यामुळे वर्तमान काळात वावरल्यासारखे वाटते.आजही जीजी सोबत आहे असा विचार मनात येऊन काहीतरी आत्मीक बळ आल्यासारखे वाटते.

जीजीचे तिच्या पाचही नातींवरचे नितांत प्रेम हे लेखिकेने स्वानुभवावरून फार समर्थ  शब्दात प्रदर्शीत केले आहे.प्रत्येकच वाचकाला जीजी वाचत असताना स्वतःची आजी कोणत्या ना कोणत्या रूपात दिसल्याशिवाय रहाणार नाही हे निश्चित!त्यामुळे ह्या पुस्तकाविषयी कुठेतरी आत्मीयता वाटते.

१०० वर्षापूर्वीच्या काळातील जीजी आणि तिने दिलेले आधुनिक संस्कार या विषयी राधिकाताई सांगतात,”मुलीच्या जातीला हे शोभत नाही बरे?असा पळपुटा,मळकट,कडू संस्कार मात्र तिने आमच्यावर कधीही केला नाही.आयुष्यात अनेक चढउतार आले,रस्ते काही नेहमीच गुळगुळीत नव्हते,दगड,खडे,काटे सारे टोचले.अपरंपार अश्रू गाळले पण कणा नाही मोडला,”जीजीने तिच्या कुटुंबाला(मुलगा/सून आणि पाच नाती) समर्थ बनविले.

राधिकाताईंच्या प्रभावी लेखनशैलीमुळे जीजी प्रत्येकाला आपली वाटते हेच या व्यक्तीचित्रणाचे यश आहे.

सर्वांनी वाचावे आणि जीवनात सकारात्मकतेचा बोध घ्यावा असे हे पुस्तक जीजी.

पुस्तकाच्या मुखपृष्ठासंबंधी थोडेसे~ मुखपृष्ठावर ज्या काही ओळी छापलेल्या दिसतात ते जीजीचे हस्ताक्षर आहे आणि तिच्या फोटोचे स्केच तिची सगळ्यात

धाकटी नात,जिचे तीन महिन्यापूर्वीच निधन झाले ती उषा ढगे हिने केले आहे.

जीजीच्या बाकीच्या चार नातींनीही त्यांच्या व जीजीच्या एकत्रीत सहवासाचे विविध अनुभव लिहीले आहेत.

राधिकाताईंची ही वाटचाल अशीच सतत चालत राहो आणि त्यांची विविध विषयावरील पुस्तके झपाट्याने प्रकाशित होवोत ह्या माझ्या त्यांना शुभेच्छा!

पुस्तक परिचय – सुश्री अरुणा मुल्हेरकर 

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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