हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 178 ☆ “फेंन्स के इधर और उधर…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक  व्यंग्य – फेंन्स के इधर और उधर…”।)

☆ व्यंग्य  # 178 ☆ “फेंन्स के इधर और उधर…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

पाकिस्तानी सीमा से लगे हुए गांव का स्कूल है,स्कूल के नीचे बंकर बना हुआ है। सभी बच्चे टाटपट्टी बिछा कर पढ़ने बैठते हैं , फर्श गोबर से बच्चे लीप लेते हैं फिर सूख जाने पर टाट पट्टी बिछा के पढ़ने बैठ जाते हैं ,मास्टर जी छड़ी रखते हैं और टूटी कुर्सी में बैठ कर खैनी से तम्बाकू में चूना रगड़ रगड़ के नाक मे ऊंगली डाल के छींक मारते हैं फिर फटे झोले से स्लेट निकाल लेते हैं , ऐसा वे हर रोज करते हैं, कभी कभी पाकिस्तान सीमा से उस पार गोलीबारी की आवाज पर तुनक जाते हैं बड़े पंडित जी जैसई स्कूल में प्रवेश करते हैं सब बच्चे खड़े होकर पंडित जी को प्रणाम करते हैं , सीमा पार पाक के गांव के बच्चे भी इस स्कूल में पढ़ना चाहते हैं पर मास्टर जी छड़ी उठा कर दिखा देते हैं। पाक के बच्चे फेंन्स के उधर से पढ़ते बच्चों को ललचाई नजर से देखते हैं।

मास्टर जी तम्बाकू मलने में मस्त हैं। वक़्त बहुत मज़बूत होता है उसे काटो तो नहीं कटता, पर मास्टर जी थोड़ा वक्त तम्बाकू मलने में काट लेते हैं, पता नहीं क्यों उनका मन पढ़ाने में लगता नहीं हैं, हर दम बोरियत महसूस होती है ,स्कूल की दीवार में लिखी इबारत पढ़ने लगते हैं,

गांव के प्रायमरी स्कूल की दीवार में लिखा है।

“विद्या धनम् सर्व धनम् प्रधानम्”

 मास्टर जी छड़ी उठाकर मेज में पटकते हैं  छकौड़ी से पूछते हैं ‘विद्या धनम् सर्व धनम् प्रधानम्’ का असली मतलब बताओ ? 

छड़ी के डर से छकौड़ी खड़ा होकर कहता है- “सर, इसका अर्थ हुआ विद्या के लिए आया सारा धन गांव के प्रधान के लिए होता है।”

मास्टर जी ने छकौड़ी को शाबाशी दी, नये जमाने के लड़के सब समझते हैं।

पुन्नू की घंटी बजी, बच्चों के खाने की छुट्टी हो गई …। पाक के बच्चे फेंन्स के उधर से रोटी खाते बच्चों को ललचाई नजर से देखते हैं, छकौड़ी आधी रोटी लेकर फेन्स के उधर खड़े बिलाल को दे देता है, बिलाल खुश होकर हाथ मिलाता है रोते हुए बताता है हमारे यहां आटा नहीं मिलता,आटे के चक्कर में बड़ी बड़ी लाइन लगतीं हैं, गोलियां चलतीं हैं हमारी अम्मी के पास स्कूल की फीस का पैसा नहीं था इसलिए हमारा नाम स्कूल से काट दिया गया। हमारे यहां का राजा कहता था हम लोग भूखे भले रह लेंगे पर परमाणु बम जरूर बनाएंगे। हमारे यहां पेट्रोल डीजल की बहुत किल्लत रहती है, हमारा राजा कटोरा लिए फिरता है पर देश का इम्प्रेशन खराब है तो कोई लिफ्ट नहीं देता। बिलाल कई दिनों का भूखा था आधी रोटी दो सेकेण्ड में गुटक गया और दूसरे बच्चों के टिफिन की तरफ ललचाई नज़रों से देखने लगा जब तक पुन्नू की घंटी बज गई, लंच टाइम खत्म हो गया।

मास्टर जी बिना मन के कक्षा में प्रवेश करते हैं, मेज में छड़ी पटक कर कुर्सी में बैठ जाते हैं टाइम पास करना है तो छकौड़ी को खड़ा करके पूछते हैं छकौड़ी सब बच्चों को सच सच बताओ कि आज तुमने सच में क्या सोचा।

छकौड़ी बताता है कि सर हमारे मास्टर साब का पढ़ाने लिखाने में मन नहीं लगता, बेचारे सोलह किलोमीटर से आते हैं थक जाते होंगे, घर में भी कोई होगी जो तंग करती होगी। हमारा राजा भी अजीब चमत्कारी राजा है मंहगे कपड़े पहनकर सच्ची क्वालिटी का झूठ बोलता है, हाथ मटका मटका कर अनोखे सपने दिखाता है, अपनी बात रेडियो से छुपकर बोलता है, सब जगह तालियां पिटवा कर विरोधियों की लाई लुटवाई देता है। अस्सी करोड़ लोगों को फ्री राशन पानी देकर वोट बटोर लेता है। हमारे देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है।

छकौड़ी धाराप्रवाह सच बोले जा रहा है बच्चे तालियां बजा रहे हैं तभी मास्टर जी छड़ी लेकर खड़े हो जाते हैं ताली बजाते हुए कहते हैं आज के बच्चे सब समझते हैं बात सही भी है कि अरबपतियों की बढ़ती संख्या अच्छी अर्थव्यवस्था का नहीं, खराब होती अर्थव्यवस्था का संकेत है। जो लोग कठिन परिश्रम करके देश के लिए भोजन उगा रहे हैं, इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रहे हैं, फैक्ट्रियों में काम कर रहे हैं उन्हें अपने बच्चे की फीस भरने, दवा खरीदने और दो वक्त का खाना जुटाने में संघर्ष करना पड़ रहा है, अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई लोकतंत्र को खोखला कर रही है।

फैन्स के उधर का अब्दुल 

1 किलो आटे के लिए 

रो रहा है, और

फैन्स के इधर का अब्दुल 

3 साल से फ्री का 

राशन खाकर 

राजा को कोस रहा है।

अचानक मेज में रखी छड़ी नीचे गिर गयी, फैन्स के उधर बच्चे की रोने की आवाज आ रही थी, बार्डर पर फैन्स के उधर के सैनिक बच्चे को बन्दूक की बट से मार रहे हैं, और फैन्स के इधर पुन्नू घंटी बजाने लगा है, स्कूल की छुट्टी हो गई।  इधर के बच्चे उधर के रोते बच्चों को देखकर भारत माता की जय के नारे लगाने लगते हैं फैन्स के उधर के सैनिक हंसते हुए आगे बढ़ जाते हैं, छकौड़ी दौड़कर बिलाल से हाथ मिला लेता है और कल दो रोटी देने का वायदा करता है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 120 ☆ # इतिहास… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी होली पर्व पर विशेष कविता “# इतिहास… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 119 ☆

☆ # इतिहास… # ☆ 

अरावली की पहाड़ियों में

गाईड के साथ घूमते हुए

हमने देखा प्राचीन किलों को

गगन को चूमते हुए

कितने कुशल कारीगरों ने

अपना कौशल दिखाया है

दुर्गम पहाड़ियों को काटकर

अद्भुत  किला बनाया है

पत्थर, चूना, गोंद से

क्या सुंदर इमारत बनाई है

जो सदियां बीत जाने पर भी

आज भी शान से लहराई है

क्या कारीगरी, इंजीनियरिंग है

जो आज भी अबूझ, विशालकाय

अप्रतिम, अवर्णनीय है

लेक, झरने, नयनाभिराम झीलें है

पर पानी के स्त्रोत का पता नहीं है

सारी झीलें, तालाब

पानी से लबालब है

जहां मनुष्य की सत्ता नहीं है

हर पत्थर जैसें कुछ बोलता है

अपने इतिहास को बतलाने

मुंह खोलता है

उन्हें अपने खंडहरों पर

आज भी गौरव, सम्मान है

अपने शौर्य, पराक्रम पर

प्रचंड पौरूष और मान है

बीते हुए कल की यह बेजोड़

भव्य कलाकृतियां

आज के युग में हमारी धरोहर हैं

हमारी शान, मान और इतिहास है

जिनकी गौरव गाथाएं

गाई जाती आज भी घर घर है/

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत 🌹

(विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

☆ डॉक्टर मनोज को रमन रिसर्च  फैलोशिप ☆

भोपाल के साइंटिस्ट डाॅ. मनोज कुमार गुप्ता को साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च काउंसिल की ओर से रमन रिसर्च फैलोशिप 2022-23के लिए सिलेक्ट किया गया ।यह फैलोशिप  इंजीनियरिंग साइंस के क्षेत्र  में दी गई  है ।

☆ भारतीय  कला और  एवं संस्कृति पर बुक लिखने में डाॅक्टर रंजन को लगे पाँच वर्ष ☆

2002 बैच के झारखंड कैडर के आइएएस डाॅ.रंजन ने तीन खंडों में कला संस्कृति के हर पक्ष को ध्यान  में रखकर पुस्तक  लिखी ।

“विज्ञान की गल्प  कथाएं लिखना चाहिए, ये  बच्चों का इमेजिनेशन बढ़ाती है  यह बात”टीनू का पुस्तकालय “पुस्तक  पर चर्चा करते हुए बाल कल्याण  एवं बाल साहित्य  शोध केन्द्र  में आदित्य अकादमी के निदेशक   विकास  दवे ने  कही ।मुख्य  अतिथि कुंकुम गुप्ता ने बच्चों को बाल कहानियाँ  पढ़ने पर जोर दिया ।सुमन ओबेराय  ने आज के मनोविज्ञान  के अनुसार  बाल साहित्य  लिखने के लिए  कहा ।इंदिरा त्रिवेदी ने कहा-बाल कहानियाँ सरल सहज और बच्चों की जिज्ञासा के अनुसार होनी चाहिए  ।

 लघुकथाकार  अपूर्व  सेन के नए लघुकथा संग्रह  ‘धुंध छँटते ही ‘ का लोकार्पण  वरिष्ठ  साहित्यकार  उर्मिला शिरीष  की अध्यक्षता में म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के बैनर तले हुआ ।

☆ मनीष  बादल  के गजल संग्रह  का लोकार्पण ☆

मनीष  बादल  के गजल संग्रह  ‘दो मिसरों में’ का लोकार्पण  जनजातीय  संग्रहालय में लोकार्पण  हुआ ।

☆ सरोकार साहित्य संवाद की व्यंग गोष्ठी सम्पन्न ☆

भोपाल | सरोकार साहित्य संवाद की व्यंग्य गोष्ठी वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ.हरि जोशी की अध्यक्षता एवम वरिष्ठ साहित्यकार श्री देवेंद्र जैन के मुख्य आतिथ्य एवम वरिष्ठ कवि प्रो0 चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘ विदग्ध’ एवम वरिष्ठ कवि कथाकार श्री बलराम गुमाश्ता के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुई |

कार्यक्रम के प्रारम्भ में सरोकार साहित्य संवाद की और से संस्था के संस्थापक अध्यक्ष व्यंग्यकार श्री कुमार सुरेश ने स्वागत उदबोधन किया इस अवसर पर उन्होंने पुस्तकें भेंटकर मंचस्थ अतिथियों का स्वागत किया |

साहित्यकार घनश्याम मैथिल “अमृत” के संचालन में व्यंग्य गोष्ठी आरम्भ हुई जिसमें सर्वप्रथम व्यंग्यकार श्री कुमार सुरेश ने ‘सरकारी बैठक ‘ एवं ‘आम आदमी को वॉशरूम का सपना ‘ व्यंग्यों का प्रभावी वाचन किया, व्यंग्यकार श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव ने ‘किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन ‘ और ‘आदमी को मयस्सर नहीं इंसा होना ‘ सुनाकर उपस्थितजनों को भाव विभोर कर दिया |

अगले क्रम में व्यंग्यकार श्री अशोक व्यास ने समसामयिक व्यंग्य ‘होली के रंग बापू के संग ‘प्रस्तुत कर श्रोताओं को ताली बजाने पर विवश कर दिया ,इस व्यंग्य गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट के व्यंग्य ‘गरीब जो देखन चला ‘ को भी उपस्थितजनों का भरपूर आशीर्वाद मिला | इस गोष्ठी में वरिष्ठ कवियत्री कथाकार डॉ नीहारिका रश्मि के व्यंग्य ‘देशभक्ति ज़िंदाबाद ‘ को भी खूब पसंद किया गया |

श्री सुरेश पटवा ने उन्होंने ‘एक हिंदी सेवी की विदेश यात्रा ‘ व्यंग्य का पाठ किया | इसके पश्चात सुपरिचित व्यंग्यकार श्री विजी श्रीवास्तव ने ‘एक गधे को कुत्ते की मौत ‘ व्यंग्य का पाठ कर इस व्यंग्य गोष्ठी को यादगार बनाकर शिखर तक पहुंचा दिया |

इस आयोजन में डॉ हरि जोशी के आत्मकथा सङ्ग्रह ‘ तूफानों से घिरी ज़िन्दगी ” का लोकार्पण किया गया | इस अवसर पर आयोजन के मुख्य अतिथि श्री देवेंद्रकुमार जैन ने अपने उद्बोधन में व्यंग्य की बढ़ती स्वीकार्यता पर प्रकाश डाला और कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ हरि जोशी ने समकालीन व्यंग्य के समक्ष उपस्थित चुनोतियों की चर्चा की कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि कवि कथाकार श्री बलराम गुमाश्ता ने व्यंगकार को पक्ष अथवा विपक्ष में नहीं बल्कि प्रतिपक्ष की भूमिका निर्वहन की बात की ,इस आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो0चित्रभूषण श्रीवास्तव विदग्ध ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार साझा किए |

☆ शिखर साहित्य संगम भोपाल द्वारा होली विषय पर काव्य गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न ☆

शिखर साहित्य संगम भोपाल का आभासी पटल पर होली महोत्सव कार्यक्रम के अन्तर्गत होली विषय पर  काव्य गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ।कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ.वंदना मिश्र जी साहित्यकार पूर्व प्रधानाचार्य  हमीदिया स्कूल भोपाल ने की।

मुख्य अतिथि  उषा सक्सेना जी भोपाल लेखिका साहित्यकार थी। विशेष अतिथि डॉ हरिदत्त गौतम ‘अमर’ जी,मोदी नगर गाजियाबाद (उ. प्र.)थे। सरस्वती वंदना का पाठ डॉ प्रो.मंजरी अरविंद गुरु,रायगढ़ (छ. ग.)किया । सभी साहित्यकारों का स्वागतम अभिनन्दन एवम संचालन शिखर पटल के अध्यक्ष कवि अशोक गौतम ने किया। अंत में  सभी का आभार व्यक्त  कवि चन्द्रभान सिंह चन्दर  जी ने किया।

आज की विशेष  होली काव्य गोष्ठी में जिन कवि कवयित्रियों ने काव्य के रंग बिखेरे उनमें मनोरमा पंत जी,भोपाल, रेखा कापसे,  कुमुद जी, बिहारी लाल सोनी अनुज कवयित्री अनीता शरद झा,आशा सिंह कपूर ,अंजली कुमार, पद्मा तिवारी, उषा सक्सेना जी,सुनीता मुकर्जी  जी, मधुलिका सक्सेना ,डॉ प्रो. मंजंरी,डॉ हरिदत्त गौतम ,रामलाल द्विवेदी ,चन्द्रभान सिंह चन्दर, डॉ वंदना मिश्र  डॉ औरिना अदा जी,रागिनी मित्तलडॉ प्रियंका भट्ट जी, पुष्पा गुप्ता ,तथाकविअशोक गौतम भोपाल नेकाव्य पाठ किया।

☆ अ. भा .कला मँदिर भोपाल द्वारा होली पर काव्य गोष्टी संपन्न ☆

अ. भा .कला मँदिर भोपाल द्वारा दिनाँक 11.  3. 2023 को ‘रंगोत्सव’ संस्था प्रमुख डाॅ. गौरी शंकर गौरीश  की अध्यक्षता में मनाया गया। समारोह  के मुख्य  अतिथि थे डाँ के जी सुरेश कुलपति माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि. वि,  विशिष्ट अतिथि श्री आलोक सँजर पूर्व साँसद म.प्र शासन ,और सारस्वत अतिथि थे डाँ सुरेन्द्र विहारी गोस्वामी पूर्व निर्देशक ग्रँथ अकादमी कार्यक्रम  का प्रारम्भ  अतुल शर्मा की सुदंर सगीतमयी सरस्वती वंदना से हुआ ।

सबसे पहले सँगीतमय फूलमार होली खेली गई। जिसे सरस्वती संगीत विद्यालय ने एक मनोहारी होली गीत  द्वारा जीवंत किया।फिर  बुँदेली होली, बृज की होली ,पारँपरिक होली एवं लोकगीतों  से पूरा सभागार  होली मय  हो गया ।कलाकार थेआशा श्रीवास्तव,सुधा दुबे,श्रीमती  रजनी वर्मा सुषमा   श्रीवास्तव ‘सजल’ राधारानी चौहान,और सभी के साथी ।राजेन्द्र  गट्टानी ,गोकुल सोनी,राकेश कुमार हैरत,    लोकगायक रामनरेश, तथावंदना खरे ने भी अपनी रचनाओं से सबको मंत्र मुग्ध  कर दिया ।

सभाध्यक्ष  गौरीशंकर  गौरीश  ने होली के महत्व को बताया ।मुख्य अतिथि श्रीके.जी .सुरेश ने अपने उद्बोधन  भाषण में कहा कि रंगोत्सव  जैसे कार्यक्रम  हमारी संस्कृति की पुष्टि करते हैं ।विशिष्ट  अतिथि आलोक संजर जी ने आज विद्वान  नहीं विद्यावान बनने की आवश्यकता है ।सारस्वत  अतिथि के रूप में गोस्वामी जी ने प्रमुख चार रंगों के माध्यम सप्रेम को परिभाषित  किया कि ईश्वर  के रंग में रंग जाना ही वास्तविक  प्रेम है ।

कार्यक्रम  का संचालन  हरिवल्लभ  जी शर्मा  एवं मधु शुक्ला ने किया तथा आभार प्रदर्शन मनोरमा पंत द्वारा किया गया ।

साभार – सुश्री मनोरमा पंत, भोपाल (मध्यप्रदेश) 

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 121 ☆ अभंग… (मित्र…) ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 121 ? 

☆ अभंग… (मित्र…)

सुखात दुःखात, साथ देतो खरा

तोच मित्र बरा, ऐसे जाणा.!!

 

कठीण समयी, पाठ जो नं दावी

मैत्री ती प्रभावी, प्राचीवर.!!

 

अडणी क्रियेला, धावून जो येतो

तोच प्रभवतो, मित्र छान.!!

 

स्वार्थी नी कपटी, लोभी ज्याची वृत्ती

करावी निवृत्ती, संगतेची.!!

 

पुरण-पोळीचा, ठेचा भाकरीचा

प्रश्न भावनेचा, ज्याचा त्याचा.!!

 

चंदन सुगंधी, पर-उपकारी

ऐसा मित्र तरी, भाव द्यावा.!!

 

तयाचे ऐकावे, तयाचे जाणावे

तया सुखवावे, सदैव हो.!!

 

कवी राज म्हणे, दूध साखरेचा

तैसा मित्रत्वाचा, संग हवा.!!

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार–पुष्प – भाग 60 – स्वामी विवेकानंदांचं राष्ट्र-ध्यान – लेखांक एक ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆

डाॅ.नयना कासखेडीकर

?  विविधा ?

☆ विचार–पुष्प – भाग 60 – स्वामी विवेकानंदांचं राष्ट्र-ध्यान – लेखांक एक ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर 

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

गुरु रामकृष्ण परमहंस यांच्याकडून संन्यासाची दीक्षा घेतल्यानंतर,  “आपल्याला सार्‍या मानवजातीला आध्यात्मिक प्रेरणा द्यायची आहे, तेंव्हा आपला भर तत्वांचा, मूल्यांचा, आणि विचारांचा प्रसार करण्यावर हवा. संन्यास घेतलेल्यांनी किरकोळ कर्मकांडात गुंतू  नये”. असे मत नरेंद्रनाथांचे होते. या मठातलं जीवन, साधनेला वाहिलेलं होतं. अभ्यासाबरोबर ते सर्व गुरुबंधुना पण ते प्रोत्साहित करू लागले की, भारत देश बघावा लागेल, समजून घ्यावा लागेल. लक्षावधी माणसांच्या जीवनातील विभिन्न थरांमध्ये काय वेदना आहेत, त्यांच्या आकांक्षा पूर्ण न होण्याची कारणे काय आहेत ते शोधावे लागेल. हे ध्येय समोर ठेऊन ,भारतीय मनुष्याच्या कल्याणाचे व्रत घेऊन स्वामी विवेकानंद यांचे हिंदुस्थानात भ्रमण सुरू झाले.

परिव्राजक स्वामीजी सगळीकडे फिरून आता धारवाड, बंगलोर करत करत म्हैसूरला आले. म्हैसूर संस्थांचे दिवाण सर के. शेषाद्री अय्यर यांच्याकडे स्वामीजी राहिले होते. त्यांनी म्हैसूर संस्थानचे महाराज चामराजेंद्र वडियार यांचा परिचय करून दिल्यानंतर त्यांनी स्वामीजींना संस्थानचे खास अतिथि म्हणून राजवाड्यावर ठेऊन घेतले. एव्हढी सत्ता आणि वैभव असलेल्या या तरुण महाराजांना धर्म व तत्वज्ञान याविषयी आस्था होती. म्हैसूर हे भारतातील सर्वात मोठ्या संस्थांनांपैकी एक होते. इथे अनेक विषयांवर स्वामीजी बरोबर चर्चा आणि संवाद घडून येत.

महाराजांशी स्वामीजींचे चांगले निकटचे संबंध निर्माण झाले होते. त्यांनी एकदा स्वामीजींना विचारलं स्वामीजी मी आपल्यासाठी काय करावं ? त्यावर तासभर झालेल्या चर्चेत स्वामीजी म्हणाले, “भारताचा अध्यात्म विचार पाश्चात्य देशात पोहोचला पाहिजे आणि भारताने पाश्चात्यांकडून त्यांचे विज्ञान घेतले पाहिजे. आपल्या समजतील सर्वात खालच्या थरापर्यंत शिक्षण पोहोचले पाहिजे आणि धर्माची खरी तत्वे सामान्य माणसाला समजून सांगितली पाहिजेत. शिकागोला जाण्याचा विचार ही त्यांनी बोलून दाखवला होता, त्यांना स्वामीजींनी शिकागोहून पाठवलेल्या पत्रात म्हटले आहे “हे उदार महाराजा, मानवाचे जीवन फार अल्पकालीन आहे आणि या जगात हव्याशा वाटणार्‍या सुखाच्या गोष्टी केवळ क्षणभंगुर आहेत. पण जे इतरांसाठी जगतात तेच खर्‍या अर्थाने जगतात. भारतातील तुमच्यासारखा एखादा सत्ताधीश जर मनात आणेल, तर तो या देशाला आपल्या पायावर उभे करण्यासाठी महान कार्य करू शकेल. त्याचे नाव पुढच्या पिढ्यांत पोहोचेल आणि जनता अशा राजाबद्दल पूज्यभाव धरण करेल”. यावरून स्वामीजीं स्वत:साठी काहीही मागत नसत. इथून महाराजांचा निरोप घेऊन स्वामीजी केरळ प्रदेशात गेले.

त्रिचुर, कोडंगल्लूर,एर्नाकुलम, कोचीन इथे फिरले. केरळ, मलबार या भागातल्या जुनाट चालीरीती आणि ख्रिस्त धर्मी मिशनर्‍यांचा तिथे चाललेला धर्मप्रचार या गोष्टी स्वामीजींच्या लक्षात आल्या होत्या. त्यामुळे त्यांना वाटलं की हिंदू धर्माच्या दृष्टीने ही गोष्ट चांगली नाही. स्वामीजींना उत्तर भारतापेक्षा दक्षिण भारतात आलेले अनुभव वेगळे होते. त्यांच्या लक्षात आले की, दक्षिणेत पाद्री लोक खालच्या वर्गातील लाखो हिंदूंना ख्रिस्त धर्मात घेत आहेत. जवळ जवळ एक चतुर्थांश लोक ख्रिस्त धर्मात गेले आहेत.

कोचीनहून स्वामीजी त्रिवेंद्रमला आले. एर्नाकुलम पासून त्रिवेंद्रम सव्वा दोनशे किलोमीटर अंतरावर, बैलगाडी आणि पायी प्रवास करताना केरळचं निसर्ग वैभव त्यांना साथ करत होतं. आंबा, फणस, नारळ यांची घनदाट झाडी, लहान मोठ्या खाड्या, पक्षांचे मधुर आवाज असा रमणीय रस्ता स्वामीजी चालत होते.

कन्याकुमारी भारत वर्षाच्या दक्षिणेचे शेवटचे टोक. त्रिवेंद्रम हून नव्वद किलोमीटर. २४ डिसेंबरला त्रिवेंद्रमहून स्वामीजी निघाले आणि कन्याकुमारीला पोहोचले. संपूर्ण वंदेमातरम  या गीतातलं मातृभूमीचं वर्णन स्वामीजींनी ऐन तारुण्यात ऐकलं होतं. याच वर्णनाचा भारत देश स्वामीजींनी पूर्वेकडून पश्चिमेकडे आणि उत्तरेकडून दक्षिणेकडे हजारो किलोमीटर प्रवास करून पालथा घातला होता. डोळ्यात साठवून ठेवला होता.वर्तमानकालीन भारताचं विराट दर्शन त्यांना घडलं होतं. शतकानुशतके आपला समाज निद्रितवस्थेत आहे आणि तो आपला वारसा विसरला आहे,रूढी परंपरा यांचा दास झाला आहे असं भीषण चित्र त्यांना दिसत होतं. अशी ही स्वदेशाची आगळीवेगळी यात्रा  करायला त्यांना अडीच वर्ष लागली होती. कन्याकुमारीच्या आपल्या मातृभूमीच्या दक्षिण टोकावरच्या खळाळत्या लाटांच्या हिंदुमहासागराला ते भेटणार होते आणि या अथांग सागराला वंदन करून आपल्या विराट भ्रमणाची पूर्तता करणार होते. 

क्रमशः…

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

 vichar-vishva.blogspot.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ गीतांजली भावार्थ … भाग 52 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी

? वाचताना वेचलेले ?

☆ गीतांजली भावार्थ …भाग 52 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

९७.

मी जेव्हा तुझ्याबरोबर खेळत होतो,

तेव्हा तू कोण आहेस ते मी विचारलं नाही.

लज्जा आणि भीतीचा लवलेश माझ्या मनात नव्हता.

माझं जीवन चैतन्यमय होतं.

 

माझ्या मित्रासारखा तू मला सकाळी

लवकर उठवायचास,

गवताच्या पात्यां-पात्यांतून पळताना

माझ्यापुढं असायचास.

 

त्या वेळी तू जी गीतं गाण्यास,

त्यांचा अर्थ मी समजून घेतला नाही.

मी माझ्या आवाजात गात राहिलो.

त्या गाण्याच्या तालावर माझे ऱ्हदय नाचायचं.

 

खेळायची वेळ आता संपलीय.

आता माझ्यावर ही काय वेळ एकदम आलीय?

 

तुझ्या पायाशी सर्व नजरा वळल्या आणि

शांत तारकांतून सारं जग

आश्चर्यचकित होऊन पाहात आहे.

 

९८.

माझ्या पराभवाच्या पुष्पमाला व विजयचिन्हांनी

मी तुझा सन्मान करीन.

अपराजित होऊन निसटणं माझ्या कुवतीत नव्हतं.

 

माझा गर्व नष्ट होईल.

असह्य दु:खात माझं जीवन संपेल,

पोकळ बासरीप्रमाणं माझ्या ऱ्हदयातून सुस्काऱ्यांचे स्वर निघतील,

दगडातून अश्रू वाहतील याची मला खात्री होती.

 

कमळाच्या सहस्र पाकळ्या कायमपणे मिटून राहणार नाहीत.

मधाच्या गुप्त जागा खुल्या होतील, हे मला ठाऊक होतं.

 

निळ्या आकाशातून एक डोळा माझ्याकडे

टक लावून पाहिल आणि शांततेत मला बोलवेल.

माझं असं काहीच असणार नाही, काहीच नाही.

केवळ मृत्यूच तुझ्या पायी मला मिळेल.

 

मराठी अनुवाद – गीतांजली (भावार्थ) – माधव नारायण कुलकर्णी

मूळ रचना– महाकवी मा. रवींद्रनाथ टागोर

 

प्रस्तुती– प्रेमा माधव कुलकर्णी

कोल्हापूर

7387678883

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #183 ☆ व्यंग्य – जवानी की दीवानगी ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  व्यंग्य ‘जवानी की दीवानगी’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 183 ☆

☆ व्यंग्य ☆ जवानी की दीवानगी

धर्म के अनुसार हमारी ज़िन्दगी में चार आश्रम बताए गये हैं। ब्रम्हचर्य से शुरू कीजिए और सन्यास से होते हुए शालीनता से ज़िन्दगी से बाहर हो जाइए। समझदार लोग इस क्रम को स्वीकार करते हैं, लेकिन कुछ लोग ज़िन्दगी में ‘रेवर्स गियर’ लगाने में लगे रहते हैं। कोशिश करते हैं कि उम्र का सिलसिला जवानी से आगे न बढ़े। इसी चक्कर में अपनी रंगाई-पुताई करते रहते हैं, जैसे कि रंगाई-पुताई से पुरानी इमारत फिर नयी हो जाएगी। उम्र किसी बरजोर घोड़ी की तरह भागती जाती है और वे रस्सी पकड़े घिसटते जाते हैं।

बाबा रामदेव अपने च्यवनप्राश के प्रचार में बताते हैं कि महर्षि च्यवन इस औषधि का सेवन करके बूढ़े से जवान हो गये थे। बाबा यह नहीं बताते कि उनका च्यवनप्राश खाकर कितने बूढ़े जवान हुए। उन्हें बूढ़े से जवान हो जाने वाले लोगों का फोटो चस्पाँ करना चाहिए और फोटो के नीचे ‘च्यवनप्राश के सेवन से पहले’ और ‘च्यवनप्राश के सेवन के बाद’ लिखना चाहिए। अनेक कंपनियाँ दीर्घकाल से च्यवनप्राश बनाती रही हैं, लेकिन अभी तक ऐसी जानकारी नहीं मिली कि कोई बूढ़ा अपनी टेकने की लाठी छोड़कर छलाँगें भरने लगा हो।हमारे देश में जवानी की ज़बरदस्त ललक रही है। सयाने महाकवि केशवदास अपने श्वेत केशों को इसलिए कोसने लगे थे कि उनकी पोतियों की उम्र की  ‘चंद्रवदन मृगलोचनी’ कन्याएं उन्हें ‘बाबा’ कहकर पुकारने लगी थीं। अब श्वेतकेशी व्यक्ति को कन्याएं ‘बाबा’ न कहें तो क्या कहें? उस वक्त अगर कोई ‘हेयर डाई’ उपलब्ध होता तो शायद महाकवि यह छीछालेदर कराने वाला दोहा लिखने से बच जाते। ज़ाहिर है कि वे अपने को रीतिकाल के प्रवाह में बहने से नहीं बचा पाये।
पुराणों में राजा ययाति की कथा मिलती है जिन्होंने अपने पुत्र से उसकी जवानी माँग ली थी। ययाति दलितों के गुरु शुक्राचार्य के शाप से असमय ही वृद्ध हो गये थे। बार-बार उनकी मृत्यु की घड़ी आती थी और बार-बार वे यम से अनुनय- विनय करके घड़ी को टाल देते थे। अंततः यम ने उनके सामने शर्त रखी कि आगे वे तभी जीवित रह सकते हैं जब वे अपने किसी पुत्र से उसकी जवानी माँग लें। उनके पाँच पुत्रों में से सबसे छोटा पुरु ही उन्हें अपनी जवानी देने को राज़ी हुआ और राजा पुत्र की जवानी पाकर भोग-विलास में डूब गये। अंततः उन्हें पश्चाताप हुआ और उन्होंने पुरु को उसका यौवन लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया।

ऐसे ही पिता के आज्ञाकारी भीष्म पितामह और हम्मीर हो गये हैं। भीष्म के पिता राजा शांतनु सत्यवती पर अनुरक्त हो गये थे और उससे विवाह करना चाहते थे, किंतु सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी कि सत्यवती की संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी हो। परिणामतः पितृभक्त भीष्म ने आजीवन अविवाहित रहने का प्रण ले लिया। प्रसन्न होकर पिता ने उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया। हम्मीर के बारे में कथा है कि उन्होंने अपने लिए आये विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा कर उस कन्या की शादी अपने पिता से करवा दी क्योंकि उनके पिता ने परिहास में प्रस्ताव लाने वाले से कह दिया था कि उनके (पिता के) लिए भला विवाह प्रस्ताव कौन लाएगा?

ऐसे ही एक पितृभक्त राजा मोरध्वज के पुत्र ताम्रध्वज थे जिन्होंने पिता के आदेश पर अपने को आरे से चिरवा दिया था। व्यंग के पितृपुरुष हरिशंकर परसाई ऐसी पितृभक्ति के पक्षधर नहीं थे। अपनी रचना ‘कंधे श्रवण कुमार के’ में उन्होंने मोरध्वज की कथा के विषय में लिखा, ‘कथा के इस अन्त ने कितनी पीढ़ियों को आरे से चिरवा दिया होगा।’
जवानी को पकडे रहने की इसी  ख्वाहिश में ब्यूटी पार्लर, कॉस्मेटिक सर्जरी, एंटी एजिंग क्रीम का धंधा दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ रहा है। ‘शो बिज़नेस’ में बुढ़ापे का बड़ा ख़ौफ़ होता है क्योंकि बुढ़ापा धंधे को चौपट करने वाला होता है। एक फिल्म अभिनेत्री के बारे में पढ़ा था कि उन्होंने अपने चेहरे पर बुढ़ापे के चिन्हों को रोकने के लिए 29 बार सर्जरी करवायी, लेकिन फिर भी वे बुढ़ापे को प्रकट होने से रोक नहीं पायीं।

जवानी को बरकरार रखने की कोशिश में लगे लोगों को यह समझ में नहीं आता कि दुनिया में यदि बुढ़ापे और मृत्यु की तरफ बढ़ती यात्रा रुक जाएगी तो दुनिया की हालत क्या हो जाएगी। अंग्रेज़ कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग समझदार थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता में लिखा, ‘मेरे साथ बूढ़े हो। जीवन का सर्वश्रेष्ठ अभी होने को है, जीवन का वह अंतिम चरण जिसके लिए प्रथम चरण निर्मित हुआ।’ अमेरिकन कवयित्री एमिली डिकिंसन ने लिखा, ‘उम्र बीतने के साथ हम पुराने नहीं होते, बल्कि नये होते चले जाते हैं।’

परसाई जी अपनी रचना ‘पहला सफेद बाल’ में देश की नयी पीढ़ी को संबोधित करते हुए ययाति के संदर्भ में लिखते हैं, ‘हमें तुमसे कुछ नहीं चाहिए। ययाति जैसे स्वार्थी हम नहीं हैं जो पुत्र की जवानी लेकर युवा हो गया था। बाल के साथ उसने मुँह भी काला कर लिया।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 129 ☆ सॉनेट – शारदा वंदना – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  सॉनेट “~ शारदा वंदना ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 130 ☆ 

सॉनेट ~ शारदा वंदना ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आँख खुली तब, चोट लगी जब

मन सितार का तार बना बज

शारद के चरणों की पा रज

रतब करते, मौन न कर तब

ढीला बेसुर, कसा टूटता

राग-विराग रहे सम मैया!

ले लो कैंया, दो निज छैंया

बीजांकुर पा नमी फूटता

माता! तुम ही भाग्य विधाता

नाद-ताल-ध्वनि भाषा दाता

जन्म जन्म का तुमसे नाता

अँखियाँ छवि-दर्शन की प्यासी

झलक दिखाओ श्वास-निवासी!

अंब! आत्म हो ब्रह्म-निवासी

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१०-३-२०२३, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 179 ☆शिवोऽहम्*… (4) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 179 शिवोऽहम्*…(4) ?

आदिगुरु शंकराचार्य महाराज के आत्मषटकम् को निर्वाणषटकम् क्यों कहा गया, इसकी प्रतीति चौथे श्लोक में होती है। यह श्लोक कहता है,

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं

न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञः।

अहम् भोजनं नैव भोज्यम् न भोक्ता

चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।

मैं न पुण्य से बँधा हूँ और न ही पाप से। मैं सुख और दुख से भी विलग हूँ, इन सबसे मुक्त हूँ। अर्थ स्पष्ट है कि आत्मस्वरूप सद्कर्म या दुष्कर्म नहीं करता। इनसे उत्पन्न होनेवाले कर्मफल से भी कोई सम्बंध नहीं रखता।

मंत्रोच्चारण, तीर्थाटन, ज्ञानार्जन, यजन कर्म सभी को सामान्यतः आत्मस्वरूप का अधिष्ठान माना गया है। षटकम् की अगली पंक्ति  सीमाबद्ध को असीम करती है। यह असीम, सीमित शब्दों में कुछ यूँ अभिव्यक्त होता है, ‘मैं न मंत्र हूँ, न तीर्थ, न ही ज्ञान या यज्ञ।’ भावार्थ है कि आत्मस्वरूप का प्रवास कर्म और कर्मानुभूति से आगे हो चुका है।

मंत्र, तीर्थ, ज्ञान, यज्ञ, पाप, पुण्य, सुख, दुखादि कर्मों पर चिंतन करें तो पाएँगे कि वैदिक दर्शन हर कर्म के नाना प्रकारों का वर्णन करता है। तथापि तत्सम्बंधी विस्तार में जाना इस लघु आलेख में संभव नहीं।

आगे आदिगुरु का कथन विस्तार पाता है, ‘मैं न भोजन हूँ, न भोग का आनंद, न ही भोक्ता।’ अर्थात साधन, साध्य और सिद्धि से ऊँचे उठ जाना। विचार के पार, उर्ध्वाधार। कुछ न होना पर सब कुछ होना का साक्षात्कार है यह। एक अर्थ में देखें तो यही निर्वाण है, यही शून्य है।

वस्तुत: शून्य में गहन तृष्णा है, साथ ही गहरी तृप्ति है। शून्य परमानंद का आलाप है। इसे सुनने के लिए कानों को ट्यून करना होगा। अपने विराट शून्य को निहारने और उसकी विराटता में अंकुरित होती सृष्टि देख सकने की दृष्टि विकसित करनी होगी।  शून्य के परमानंद को अनुभव करने के लिए शून्य में जाना होगा।… अपने शून्य का रसपान करें। शून्य में शून्य उँड़ेलें, शून्य से शून्य उलीचें। तत्पश्चात आकलन करें कि शून्य पाया या शून्य खोया?

 शून्य अवगाहित करती सृष्टि,

शून्य उकेरने की टिटिहरी कृति,

शून्य के सम्मुख हाँफती सीमाएँ

अगाध शून्य की  अशेष गाथाएँ,

साधो…!

अथाह की कुछ थाह मिली

या फिर शून्य ही हाथ लगा?

 साधक एक बार शून्यावस्था में पहुँच जाए तो स्वत: कह उठता है, ‘मैं सदा शुद्ध आनंदमय चेतन हूँ, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ, शिवोऽहम्..!’

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ निसर्गातील रंगपंचमी…  ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल 

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

☆ ? निसर्गातील रंगपंचमी… ? ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल

अंबर जेधवा कृष्ण होते

लीला सगळ्या तेथे दावते

अंबर रंगीत ल्याली धरा

रंग उडवित राधा होते॥

अंतर दोघांचे एक होता

साद दोघांची मन ऐकते

अंतर सरते नकळत

अंतरंग प्रेमात रंगते॥

रंग पिचकारी रोखलेली

कृष्णांग इंद्रधनू भासते

रंग दावी कृष्णही राधेला

तरंगात ती भान हरते॥

पंचमी निसर्गाची अद्भुत

बारामाही किमया घडते

पंच मी होते अजाणताच

राधा कृष्ण तयास बोलते॥

धुलवड आज निसर्गाची

वातावरण का भारावते

धूल वड सरमिसळत

धार होऊन सळसळते॥

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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