हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 148 ☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 148 ☆

☆ बाल कविता – आर्यन और नाना… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

याद बहुत करते हैं आर्यन

     मीठी – मीठी बात हैं करते।

नाना भी कम याद न करते

      फूलों की बरसात हैं करते।।

 

वीडियो कॉल मिलाएं नाना

    आर्यन मीठी बात बताए।

नाना के फोटो से पूँछें

     नाना जल्दी क्यों न आए।।

 

काम क्या ऐसा लगा आपको

     खेल खिलौने हमें न लाए।

खेलें – कूदें साथ – साथ हम

       बार – बार है याद सताए।।

 

 जो फोटो से मैंने पूछा

     सब बातें आप तक पहुँची थीं।

मुझे आज बतलाओ सच – सच

     क्या सपनों से भी ऊँची थीं।।

 

नाना ने कहा प्यारे आर्यन

  प्यारा संदेशा मुझे मिला है।

रोम – रोम मेरा हर्षित है

     कोमल मन से ह्रदय खिला है।।

 

 लाएँगे हम बहुत खिलौने

       याद मुझे भी बहुत सताती।

खेल करेंगे मिलकर दोनों

     छुक – छुक हमको रेल घुमाती।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #149 ☆ संत रोहिदास महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 149 ☆ संत रोहिदास महाराज… ☆ श्री सुजित कदम ☆

 रोहिदास महाराज

सुधारक संत कवी.

भक्ती गीते चळवळ

अध्यात्मिक दिशा नवी…! १

 

वाराणसी सीर गावी

गोवर्धन पुरामध्ये

जन्मा आले रोहिदास

चर्मकार कुलामध्ये… ! २

 

रविदास रोहिदास

अन्या सोळा उपनावे

महाराष्ट्र राजस्थान

पंजाबात नांव गाजे…! ३

 

देशहित जपणारे

रोहिदास संत कवी

दिली रहस्य वादाची

वैचारिक शक्ती नवी..! ४

 

कवी संत रोहिदास

अध्यात्मिक व्यक्तीमत्व

सुफी संत सहवास

सामाजिक ज्ञान तत्व…! ५

 

लक्षणीय योगदान

गुरू ग्रंथ साहिबात

रोहिदास साहित्याचा

समावेश जगतात…! ६

 

भेदाभेद टाळुनीया

दिला समता संदेश

कष्टकरी समाजात

मेहनत परमेश…! ७

 

भगवंत अंतरात

नको मग दुजे काही

सामाजिक सलोख्यात

सुख माणसांचे राही…! ८

 

मनुष्यास धर्म केंद्र

 दिशा वैचारिक मना

सर्व सुख प्राप्ती साठी

केला उपदेश जना…! ९

 

एकजूट समाजाची

समानता अधिकार

संत रोहिदास सांगे

श्रमशक्ती  मुलाधार…! १०

 

मन निर्मळ ठेवावे

ज्ञान गंगा अंतरात

केला निर्भय समाज

बोली भाषा अभंगात..! ११

 

संत मानवतावादी

देश आणि देव भक्ती

केले समाज कल्याण

दिली बंधुभाव शक्ती…! १२

 

पायवाट जीवनाची

नको असत्याचा संग

संत रोहिदास वाणी

ईश सेवेमध्ये दंग…! १३

 

चैत्र वैद्य चतुर्दशी

रोहिदास पुण्यतिथी

आहे चितोड गडात

पादत्राणे आजमिती…! १४

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – फुल किंवा पक्षी – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?फुल किंवा पक्षी ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

कळीचे हळुवार 

झाले फुल

फुल  इवले

झाडाचे मुल

पक्षापरी हे

फुल पाहूनी

आपसूक मना

पडते भुल

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #170 – कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “बहुत हुआ बुद्धि विलास…”)

☆  तन्मय साहित्य  #170 ☆

☆ कविता – बहुत हुआ बुद्धि विलास… 

लिखना-दिखना बहुत हुआ

अब पढ़ने की तैयारी है

जो भी लिखा गया है,उसको

अपनाने की बारी है।

 

खूब हुआ बुद्धि विलास

शब्दों के अगणित खेल निराले

कालीनों पर चले सदा

पर लिखते रहे पाँव के छाले,

क्षुब्ध संक्रमित हुई लेखनी

खुद ही खुद से हारी है…..

 

आत्म मुग्ध हो, यहाँ-वहाँ

फूले-फूले से रहे चहकते

मिल जाता चिंतन को आश्रय

तब शायद ऐसे न बहकते,

यश-कीर्ति से मोहित मन ये

अकथ असाध्य बीमारी है….

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 56 ☆ स्वतंत्र कविता – कुत्ता बेहतर है इंसान से… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण स्वतंत्र कविता कुत्ता बेहतर है इंसान से…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 56 ✒️

?  स्वतंत्र कविता – कुत्ता बेहतर है इंसान से… ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

आओ पाले ,

कुत्ते का बच्चा ,

बहुत प्यारा,वफ़ादार

और सच्चा—-

 

रोटी के सूखे

टुकड़े की आस

बैठा तक रहा है

देहरी के पास —-

 

मालिक से ग़द्दारी की ,

इसमें नहीं शक्ति ,

सभी ने स्वीकारी है ,

इसकी स्वामी भक्ति —-

 

रात भर भौं भौं

की सदाएं ,

शायद दे रहा है

मालिक को दुआएं —

 

और आदमी ???

नाम लेने से भी ,

लगता है पाप ।

दोस्त के मुंह पर

डालता है तेज़ाब ,

जिसका खाता है

उसकी आस्तीन का

बनता है सांप —-

 

इस दो पाए

जानवर से रखना दूरी

वरना मौक़ा पाते ही ,

भौंकेगा छूरी —-

 

आजकल के दोस्त भी

हो रहे हैवान से ,

आधुनिक युग में कुत्ता ,

बेहतर है इंसान से —-

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भक्ती – शक्ती ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

☆ भक्ती – शक्ती ☆ सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे ☆

(शिवराय आणि रामदास गुरु शिष्य जोडीवर आधारित कविता)

भक्ती शक्तीचा इतिहास सांगतो,

      महाराष्ट्र माझा !

सह्यगिरीच्या खोऱ्यात गर्जतो,

       छत्रपती राजा !

 

पावनभूमी महाराष्ट्राची,

      संत महंतांची !

जिथे जन्मली ज्ञानेश्वरी,

     अन् गाथा तुकयाची!

 

दासबोध निर्मिती झाली,

  सह्य गिरी कंदरी !

ज्ञान न् बोधाची शिदोरी,

   जनास मिळाली खरी !

 

 शिवरायांनी शौर्याने त्या,

   गडकिल्ले घेतले !

हिंदूंचा राजा बनुनी ,

   छत्रपती  जाहले !

 

 राज्य घातले झोळीमध्ये,

   राजा शिवरायांने ,

 आशीर्वादे समर्थ हाते,

   शिवबास दिले गुरुने !

 

 रामदास – शिवराय जोडीची,

   अपूर्व गाठ पडली!

 आनंदवनभुवनी गुरु शिष्य,

    समर्थ जोडी गाजली!

 

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 170 ☆ मिळे सन्मान शब्दांना… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 170 ?

मिळे सन्मान शब्दांना… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

मला सांगायचे आहे जरासे

इथे थांबायचे आहे जरासे

किती दुष्काळ सोसावा धरेने

अता बरसायचे आहे जरासे

नदीला पूर आल्याचे कळाले

तिला उसळायचे आहे जरासे

कधी बेधुंद जगताना मलाही

जगा विसरायचे आहे जरासे

मिळे सन्मान शब्दांना स्वतःच्या

तिथे मिरवायचे आहे जरासे

मला या वेढती लाटा सुनामी

मरण टाळायचे आहे जरासे

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मी प्रवासिनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 40 – भाग-2 – साद उत्तराखंडाची ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक 40 – भाग-2 ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ साद उत्तराखंडाची  ✈️

जिम कार्बेट ते रानीखेत हे अंतर तसं कंटाळवाणं आहे. रानीखेत हे भारतीय लष्करातील नावाजलेल्या कुमाऊँ रेजिमेंटचं मुख्य ठिकाण आहे. रानीखेतमधील कुमाऊँ रेजिमेंटच्या म्युझियममध्ये भारतीय लष्करातील धाडसी, निधड्या छातीच्या वीरांची यशोगाथा बघायला मिळते. दोन परमवीर चक्र व तीन अशोक चक्राचे मानकरी यात आहेत. रानीखेतहून कौसानीला जाताना रस्त्याच्या दोन्ही बाजूंच्या उतारावर सारख्या उंचीचा काळपट हिरवा गालिचा पसरल्यासारखे चहाचे मळे आहेत. कौसानीला चहाची फॅक्टरी पाहिली. तिथे विकत घेतलेला चहा मात्र आपल्याला न आवडणारा गुळमुळीत चवीचा निघाला. रानीखेत- कौसानी रस्त्यावर जंगलामध्ये लाल बुरांस म्हणजे होडोडेंड्रॉन वृक्षाची लालबुंद फुलं सतत दिसतात. या फुलांच्या गोडसर सरबताचा उन्हाळ्यात औषधासारखा उपयोग होतो अशी माहिती मिळाली. कौसानीतल्या आमच्या हॉटेलच्या बगीच्यात किंबहुना  तिथल्या बहुतांश बगीच्यात , हॉटेलात शोभेच्या जाड पानांची अनेक झाडे, कॅक्टसचे वेगवेगळे शोभिवंत प्रकार होते. यातील एका प्रकारच्या कॅक्टसच्या खोडांचा पल्प काढून त्यापासून प्लायवुड बनविले जाते असे तिथल्या हॉटेल मॅनेजरने सांगितले.

‘पृथ्वीचा मानदंड’ असे ज्याचे सार्थ वर्णन कवी कुलगुरू कालिदासाने केले आहे तो ‘हिमालयो नाम नगाधिराज’ म्हणजे भारताला निसर्गाकडून मिळालेलं फार मोठं वरदान आहे. जम्मू- काश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्कीम, ईशान्य भारतातील राज्ये आणि पश्चिम बंगाल या साऱ्यांना हिमालयाचा वरदहस्त लाभला आहे. अशा अफाट हिमालयाच्या उत्तुंग पहाड रांगांना वेगवेगळी नावे आहेत. धौलाधार, पीरपांजाल, कुमाऊँ ,गढवाल अशा विविध रांगांच्या अनंत हातांनी हिमालय आपल्याला बोलावत राहतो. एकदा हिमालयाच्या प्रेमात पडलं की अनेक वेळा तिथे जायचे योग येतात.

साधारण वीस- पंचवीस वर्षांपूर्वी चारधाम यात्रेचा बेत केला. हरिद्वारपासून हरिद्वारपर्यंत असं चारधाम प्रवासाचे बुकिंग गढवाल निगमतर्फे केलं होतं. यात्रा सुरू होण्याआधी चार दिवस डेहराडून एक्सप्रेसने डेहराडूनला पोहोचलो. डेहराडून ही उत्तराखंडाची राजधानी गंगा आणि यमुनेच्या खोऱ्यात वसली आहे. भरपूर पाऊस, आकाशाला भिडणारे वृक्ष, डोंगरउतारावरची छोटी छोटी घरं, नाना रंगांची फुलझाडं असणाऱ्या डेहराडूनमध्ये अनेक नावाजलेल्या शैक्षणिक संस्था आहेत. इंडियन मिलिटरी अकादमी, पेट्रोलियम रिसर्च इन्स्टिट्यूट, फॉरेस्ट रिसर्च इन्स्टिट्यूट, वाडिया इन्स्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जीऑलॉजी, वाइल्ड लाइफ इन्स्टिट्यूट अशा संस्था तसेच लष्कराला अनेक प्रकारचे साहित्य पुरविणारी ऑर्डनन्स फॅक्टरी आहे. आम्हाला फॉरेस्ट रिसर्च इन्स्टिट्यूट बघायला मिळाली. तिथे पुरातन मजबूत वृक्षांचे ओंडके गोल कापून ठेवले होते. त्या खोडांच्या अंतरेर्षांवरून त्या झाडाचं वय कितीशे वर्ष आहे, त्याचे उपयोग, सध्या या जातीचे किती वृक्ष आहेत अशी माहिती तिथे सांगितली.

तिथून मसुरीला गेलो. साधारण साडेसहा हजार फुटावरील मसुरीला हिल स्टेशन्सची राणी म्हणतात. स्क्रूसारख्या वळणावळणांचा मसुरीचा रस्ता केव्हा एकदा संपतो असं झालं होतं. डोंगरकपारीतली एकावर एक वसलेली चढती घरे पाहत मसुरीला पोहोचलो. मसूरी हेसुद्धा शैक्षणिक व औद्योगिक केंद्र आहे. इंडियन ॲडमिनिस्ट्रेटिव्ह सर्व्हिस (IAS) मधील यशस्वी उमेदवारांना इथे ‘लाल बहादूर शास्त्री नॅशनल अकॅडमी ऑफ ॲडमिनिस्ट्रेशन’मध्ये ट्रेनिंग दिलं जातं. सुप्रसिद्ध डून स्कूल तसेच मोठी ॲग्रीकल्चर यूनिव्हर्सिटी आहे. रोपवेने गनहिलला गेलो. इथून संपूर्ण मसुरी, डून व्हॅली व दूरवर हिमालयाच्या शिवालिक रेंजेस दिसतात. मसुरीला मोठे बगीचे व मासेमारीसाठी तलाव आहेत. इथून हिमालयातील लहान- मोठ्या ट्रेकिंगच्या मोहिमा सुरू होतात. त्यांचे बेस कॅम्पस् व ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट इथे आहे. आमचे सीडार लॉज खूप उंचावर होते. सभोवती घनदाट देवदार वृक्षांचे कडे होते. मसुरीहून दुसऱ्या दिवशी केम्प्टी फॉल्स बघायला गेलो. गोल गोल वळणांच्या रस्त्याने दरीच्या तळाशी पोहोचलो. खूप उंचावरून धबधबा कोसळत होता. त्याच्या थंडगार तुषारांनी सचैल स्नान झाले. हौशी प्रवाशांची गर्दी मुक्त मनाने निसर्गाच्या शॉवरबाथचाआनंद घेत होती.

मसुरीहून हरिद्वारला मुक्काम केला.  दुसऱ्या दिवशी ऋषिकेशला गेलो. तिथल्या झुलत्या पुलावरून पलीकडे गेल्यावर अनेक आश्रम होते. साधू, बैरागी, शेंडी ठेवलेले परदेशी साधक यांची तिथे गर्दी होती. इथे गंगेच्या खळाळत्या थंडगार पाण्याला खूप ओढ आहे. गंगाघाटाच्या कडेने बांधलेल्या लोखंडी साखळीला धरून गंगास्नानाचा आनंद घेतला. संध्याकाळी हरिद्वारला गंगेच्या घाटावर आरती करून दीप पूजा केली.

उत्तराखंड भाग २ समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 70 – गीत – हो सके तो स्वार्थ… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  गीत “हो सके तो स्वार्थ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 70 – गीत – हो सके तो स्वार्थ… ☆

हो सके तो स्वार्थ, नफरत को जलाओ ।

फूल-सी मुस्कान, अधरों पर सजाओ ।।

 

राह में आती मुसीबत सर्वदा है,

पार करना यह हमारी भी अदा है।

लोग हों निर्भीक पथ ऐसा बनाओ।

फूल-सी मुस्कान अधरों पर सजाओ।।

 

जिंदगी कितने दुखों में जी रही है।

और दुख के घूँट कितने पी रही है।

दुश्मनों की आँधियों से लड़ रहे जो।

हो सके तो हाथ कुछ अपने बढ़ाओ,

 

खिंचतीं जातीं हैं दीवारें देश में ,

खुद गईं हैं खाइयाँ अब परिवेश में।

भारती-संस्कृति को अपनी न भुलाओ,

जो भरा है द्वेष दिल में वह हटाओ।

 

तिमिर छाया है घना, चहुँ ओर देखो,

मौत के पंजे फँसी है भोर देखो।

इस घड़ी में कुछ नया करके दिखाओ,

फूल-सी मुस्कान अधरों में सजाओ।।

 

जो समय के साथ आगे नित बढ़ेगा,

मंजिलों की सीढ़ियाँ निर्भय चढ़ेगा।

प्रगति के हर द्वार को मिलकर बनाओ,

फूल-सी मुस्कान अधरों पर सजाओ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 128 – “काशी काबा दोनो पूरब में हैं जहां से” – अमेरिका यात्रा की डायरी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है आपके यात्रा वृत्तांत “काशी काबा दोनो पूरब में हैं जहां से” – अमेरिका यात्रा की डायरी पर आत्मकथ्य।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 128 ☆

☆ “काशी काबा दोनो पूरब में हैं जहां से” – अमेरिका यात्रा की डायरी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆

पुस्तक चर्चा

काशी काबा दोनो पूरब में हैं जहां से

(अमेरिका यात्रा की डायरी)

विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

प्रकाशक … नोशन प्रेस, चेन्नई

मूल्य 130 रु

पृष्ठ 100

अमेजन लिंक –काशी काबा दोनो पूरब में हैं जहां से

नोशन प्रेस लिंक – काशी काबा दोनो पूरब में हैं जहां से

 ई बुक के रूप में भी उपलब्ध

यात्रा  साहित्य की जननी होती है ,  संस्मरण और यात्रा वृतांत तो सीधे तौर पर यात्राओ का शब्द चित्रण ही हैं . जब पाठक प्रवाहमयी वर्णन शैली में यात्रा वृतांत पढ़ते हैं तो वे लेखक के साथ साथ उस स्थल की यात्रा का आनंद , बिना वहां गये ले सकते हैं जहां का वर्णन किया जाता है . यदि ट्रेवलाग से पाठक की जिज्ञासायें शांत होती हैं तो लेखन सार्थक होता है . यात्रा संस्मरण भौगोलिक दूरियों को कम कर देते हैं . यात्रा संस्मरण एक तरह से समय के ऐतिहासिक साक्ष्य दस्तावेज बन जाते हैं .

अमेरिका यात्रा के रोजमर्रा के ढ़ेर से अनछुये मुद्दों पर इस किताब मे लिखा गया है .  आज जब युवा रोजगार और शिक्षा के लिये लगातार भारत से अमेरिका जा रहे हैं , तब यह किताब ऐसे युवाओ को और उनके पास जाते माता पिता रिश्तेदारों को अमेरिकन जीवन शैली को बेहतर तरीके से समझने में मदद करती है . इस डायरी से अमेरिका के संदर्भ में हिन्दी पाठको का किंचित कौतुहल शांत हो सकेगा ।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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