(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 22 – ☕ बोस्टन टी पार्टी ☕☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमारे देश में तो चाय पार्टी साधारण सी बात है। घर,मित्र मंडली, कार्यालय, हमेशा चाय के नाम पर ही चर्चा/विचार विमर्श करते हैं। एक पुराना फिल्मी गीत” तेरी मम्मी ने चाय पर बुलाया है” वर वधु के वैवाहिक संबंध भी चाय पर ही तय होने की परंपरा विगत कुछ दशक से प्रचलित हैं। चाय तो एक बहाना है, “मित्र को कुछ देर और बैठने का” वैसे “ठंडी चाय” का सेवन करने वालों को किसी बहाने की आवश्यकता ही नहीं होती हैं।
करीब तीन सौ वर्ष पूर्व ईस्ट इंडिया कंपनी चाय को पूरे यूरोप के निवासियों को इसकी लत लगा चुकी थी। अमेरिका भी इंगलैंड का उपनिषद था। उन्होंने अमेरिका में भी चाय का प्रचार/ प्रसार कर लोगों को इसके सेवन की आदत डाल रही थी। चाय पर अतिरिक्त कर लगा कर ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी आय को दिन दोगुना रात चौगुना करने की जुगत में थी।
अढ़ाई सौ वर्ष पूर्व बोस्टन के समुद्री किनारे पर तीन जहाज़ ईस्ट इंडिया कंपनी की चाय लेकर पहुंच चुके थे। स्थानीय अमरीकी लोगों ने इसका विरोध करते हुए स्वतंत्रता की मशाल जला दी थी। इंग्लैंड के विरोध में तीनों जहाज़ पर लदी हुई चाय पत्ती को समुद्र में विसर्जित कर दिया गया था। हमारे देश में भी 1857 का विद्रोह स्वतंत्रता प्राप्ति का पहला कदम था। वैसा ही इस देश में भी हुआ और आगे चल कर अमरीका, इंग्लैंड के चंगुल से आज़ाद हो गया।
देश भक्त और पुराने अमरीकी हमेशा चाय के स्थान पर कॉफी को प्राथमिकता देते हैं। ये ही कारण है, कि यहां पर चाय का सेवन, कॉफी से बहुत कम हैं। एशियाई देश के प्रवासी जो अधिकतर चाय के शौकीन होते है, यहां आकर चाय की कमी महसूस करते हैं।
बोस्टन में इसकी याद में उसी स्थान पर “बोस्टन टी पार्टी शिप्स म्यूज़ियम” स्थापित किया गया है।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – आपके हम कुछ नहीं…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 126 – गीत – आपके हम कुछ नहीं…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “क्या-क्या द्वन्द्व बतायें…”)
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – “आज के व्यंग्य लेखक के सामने चुनौती…”।)
☆ व्यंग्य # 175 ☆ चिन्तन – “आज के व्यंग्य लेखक के सामने चुनौती…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
आज के व्यंग्य लेखक के सामने सबसे बड़ी चुनौती सन् 2024 सामने है। आज डरे हुए व्यंग्य लेखकों का समय आ गया है। व्यंग्य लेखकों पर नजर रखी जा रही है। तीखे मारक व्यंग्य छापने वाले अखबार पत्रिकाओं के मालिकों पर नजर है। धीरे धीरे प्रिंट मीडिया व्यंग्य से परहेज़ करने लगे हैं। कुछ अखबारों से डेली आने वाले कार्य को बंद किया जा रहा है। बड़े नामी गिरामी व्यंग्यकार चिंतित हैं कि क्या 2024 के बाद व्यंग्य की ठठरी बंध जाएगी ? आज व्यंग्य लिखने वाले लोग डरे हुए क्यों लग रहे हैं ? आज सत्ता के पक्ष में लिखने वालों की भीड़ क्यों पैदा हो रही है ? आज के व्यंग्य लेखक के सामने व्यंग्य का स्वरूप, लक्ष्य और प्रयोजन अदृश्य क्यों हो गए हैं ?
आज हर कवि और कहानीकार अचानक व्यंग्य लिखकर यश कमाना चाह रहा है। भीड़ बढ़ रही है और भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता। मीडिया बिक चुका है कभी कभार कोई अच्छा व्यंग्य लिखा जाता है तो प्रिंट मीडिया में बैठे ठेकेदार उस अच्छे व्यंग्य में कांट छांट कर व्यंग्य की हत्या कर देते हैं।आचरण दूषित होने का फल आज सबसे ज्यादा कुछ व्यंग्यकारों पर दिख रहा है।
सत्ता-विरोधी तेवर दिखाने वाले ज्यादातर व्यंग्यकार व्यवहार में किसी पुरस्कार, पद, सम्मान के लोभ में उसी सत्ता के चरणों में झुके नजर आने लगे हैं। वह सत्ता फिर चाहे व्यक्ति की हो या पार्टी की।ऐसे लोगों ने शर्म बाजार में बेच दी है। आज अधिकांश व्यंग्य लेखक तटस्थता के चालाकी भरे चिंतन से प्रभावित हो रहे हैं।
तटस्थ आदमी को समयानुसार इधर या उधर, कहीं भी सरकने में आसानी होती है। वाट्स एप यूनिवर्सिटी में एडमिन बनकर बैठे तथाकथित व्यंग्यकार अपने अपने ज्ञान देकर व्यंग्य को मिक्सी में भी पीस रहे हैं। व्यंग्य का लेखक ‘इसकी सुने कि उसकी सुने’ के साथ भ्रमित है। कुल मिलाकर आज व्यंग्य के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद व्यंग्य है। लेखक लिख देता है और पाठक के ऊपर छोड़ देता है कि पाठक तय करें कि लिखा गया व्यंग्य है या नहीं।
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# अभी हम जिंदा है … #”)
साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत
(विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)
केन्द्र के प्रतिनिधि होगें गोस्वामी
मप्र राष्ट्र भाषा समिति के कार्यकारी मंत्री संचालक सुरेन्द्र बिहारी गोस्वामी ने 12वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में भाग लेने प्रस्थान किया।जहाँ वे ‘,भाषाई ज्ञान परम्परा का वैश्विक संदर्भ और हिन्दी विषय पर एक सत्र में संबोधित करेगे।
अठारवीं शरद व्याख्यान माला एवं सम्मान समारोह सम्पन्न
हिन्दी भवन में अठारहवीं शरद व्याख्यान माला एवं सम्मान समारोह सम्पन्न हुआ। व्याख्यान माला का विषय था -भारतीय ज्ञान परम्परा -युवापीढ़ी और सम्प्रेषण की समस्या। इस विषय पर श्री रामेश्वर मिश्र पंकज,प्रो.संजय द्विवेदी,,श्री मनोज श्रीवास्तव ,डाॅ.चारूदत्त पिंगले,प्रो.के.जी.सुरेश और प्रो.सुधीर कुमार (चण्डीगढ़ से आनलाइन) के व्याख्यान हुए।इस समारोह में श्री अग्निशेखर,डाॅ.कुसुम लता केडिया,प्रभा पारीख,,डाॅ,प्रभा पारीक ,डाॅ आनंदकुमार सिंह,श्रीमती रीता वर्मा,सुश्री अमिता नीरव तथा सुश्री सुषमा मुनीन्द्र को सम्मानित किया गया अंत में श्री अग्निशेखर ने सम्मानित की ओर से उत्तर दिया। समारोह का संचालन श्रीमती जया केतकी ने किया।
‘उत्कर्ष पाठशाला ‘ आयोजित
‘उत्कर्ष पाठशाला ‘ में अनुराधा शंकर ने कहा – युवा वही जिसमें ऊर्जा के साथ जानने के साथ जानने सीखने की भी ललक हो।
‘सप्रे संग्रहालय द्वारा पत्रकारिता की नई पीढ़ी के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य के लिये महिने के दूसरे शनिवार को ‘उत्कर्ष पाठशाला ‘का आयोजन किया जाता है।गाँधीवादी विचारक के अलावा जैव विविधता विशेषज्ञ बाबूलाल दहिया तथा करियर संचालक अभिषेक खरे ने भी बच्चों का मार्गदर्शन किया।
‘आधुनिक समस्याओं का मनोदार्शनिक समाधान’ विषय पर वार्ता
‘मनोर्दाशनिक समाधान ‘विषय पर डा. हरि सिंह गौर विवि सागर के दर्शनशास्त्र और मनोविज्ञान विभाग के एचओडी डाॅ.अम्बिका दत्त शर्मा ने शासकीय हमिदिया कालेज में ‘आधुनिक समस्याओं का मनोदार्शनिक समाधान’ विषय पर वक्तव्य दिया ‘हम जैसा ज्ञान उत्पादित करते हैं,वैसी हमारी दुनियां बनती है।’
राष्ट्रीय अलंकरण समारोह एवं कवि गोष्ठी का आयोजित
अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन एवं श्रीमती सुमन चतुर्वेदी मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अलंकरण समारोह एवं कवि गोष्ठी का आयोजन दिनांक 17 फरवरी को किया गया।जिसके मुख्य अतिथि थे- श्री विश्वास सारंग जी माननीय मंत्री,चिकित्सा शिक्षा एवं राहत पुनर्वास विभाग, मध्य प्रदेश। सारस्वत अतिथि थे डॉ. यतीन्द्र नाथ राही, वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि एवं विशिष्ठ अतिथि डॉ. रामवल्लभ आचार्य,वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि थे। अध्यक्षता डॉ. वीरेंद्र सिंह,राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन द्वारा की गई।
तुलसी साहित्य अकादमी की काव्यगोष्ठी सम्पन्न
तुलसी साहित्य अकादमी की काव्यगोष्ठी रविवार को सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई जिसमें बडी संख्या में कवि कवयित्रियों ने भाग लिया
डॉ जवाहर कर्नावट को भारत सरकार का विश्व हिन्दी सम्मान
भोपाल के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट को भारत सरकार का विश्व हिन्दी सम्मान फिजी में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में प्रदान किया गया।यह सम्मान वैश्विक स्तर पर हिन्दी को समृद्ध करने एवं 25देशों की 120वर्षो की हिन्दी पत्रकारिता पर गहन शोध करने के लिए दिया गया।
‘अच्छी कविता हमेशा लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ खड़ी रहती है – राजेश जोशी
मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कवि लेखक राजेश जोशी ने जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित ‘उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश कविता की जमीन दो ‘के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा -‘अच्छी कविता हमेशा लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ खड़ी रहती है।
‘कविता में उत्तर प्रदेश ‘ विषय पर केन्द्रित अपने शोधपरक वक्तव्य में प्रो.नलिन रंजन सिंह ने उत्तर प्रदेश की गौरवशाली काव्य परम्परा में समय और समाज की आवाज की विवेचना की।
‘यंग थिंकर्स फोरम ‘के रीडर्स क्लब द्वारा पुस्तक चर्चा
‘यंग थिंकर्स फोरम ‘के रीडर्स क्लब द्वारा विक्रम संपत की पुस्तक ‘सावरकर ‘तथा जय नंद कुमार की पुस्तक ‘लोक बिंयोन्ड फोक ‘पर बरकततुल्ला यूनिवर्सिटी की सहायक अध्यापिका सविता सिंह भदोरिया द्वारा समीक्षा की गई।बाद में समूह परिचर्चा भी की गई।
धर्मपाल शोधपीठ द्वारा व्याख्यान आयोजित
स्वराज वीथि में धर्मपाल शोधपीठ द्वारा विचारक एवं इतिहास विद धर्मपाल जी की जयंति पर व्याख्यान आयोजित किया गया जिसका विषय था ‘धर्मपाल की दृष्टि :वर्तमान राष्ट्रीय परिवेश में ‘।विषय के विभिन्न पहुलुओं पर प्रो.रामेश्वर मिश्र ‘पकंज ‘ ने अपना वक्तव्य दिया।
हिन्दी लेखिका संघ द्वारा काव्य गोष्ठी आयोजित
हिन्दी लेखिका संघ द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई जिसमें बडी संख्या में लेखिका संघ की सदस्याओं ने कविता पाठ किया l गोष्ठी की अध्यक्षा जया आर्य ने की।मुख्य अतिथि श्री चरणजीत सिंह कुकरेजा तथा विशिष्ट अतिथि गोकुल सोनी थे।यह गोष्ठी महर्षि दयानंद सरस्वती एवं छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्पित थी।
इस गोष्ठी का शुभारंभ संघ की अध्यक्षा कुमकुम गुप्ता के स्वागत भाषण से हुई।संचालन कमल चन्द्रा द्वारा किया गया
सलैया में बनेगा ‘पर्यावरण साहित्य केन्द्र
सलैया में बनेगा ‘पर्यावरण साहित्य केन्द्र ‘इसकी घोषणा पर्यावरण शिक्षा एवं संरक्षण समिति के अध्यक्ष आनंद पटेल ने की।इस केन्द्र का फायदा विद्यार्थियो को होगा जहाँ वे पर्यावरण से संबंधित पत्र पत्रिकाएं एवं पुस्तकें पढ़ सकेगे।
वरिष्ठ नागरिक मंच की भोपाल इकाई द्वारा आनलाइन मासिक काव्यगोष्ठी सम्पन्न
वरिष्ठ नागरिक मंच की भोपाल इकाई द्वारा आनलाइन मासिक काव्यगोष्ठी सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। जिसके मुख्य अतिथि गणेशदत्त बजाज तथा विशिष्ट अतिथि मोहन तिवारी थे। मंच की अध्यक्षा जया आर्य के स्वागत भाषण के बाद बीज वक्तव्य संतोष श्रीवास्तव द्वारा दिया गया।गोष्ठी का सुदंर संचालनजनक कुमारी ने किया।
न्यू साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था द्वारा काव्य गोष्ठी सम्पन्न
न्यू साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ने हिन्दी भवन में संस्था प्रमुख रमेशनंद के नेतृत्व में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जिसमें राजुरकर राज को श्रध्दांजलि दी गई।गोष्ठी की अध्यक्षता रीवा के अवध बिहारी पांडेय अवध ने की।मुख्य अतिथि डाॅ.रामसरोज द्विवेदी थे। संचालन आजम खान ने किया।
राजुरकर राज जी को विनम्र श्रद्धांजलि
रविवार को दुष्यन्त संग्रहालय में राजुरकर राज को भारी संख्या मे उनके प्रशंसकों ने श्रंद्धाञ्जली अर्पित की। प्रशंसकों में बुद्धिजीवियों के अतिरिक्त समाज के सभी वर्गो के सदस्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
मध्यप्रदेश लेखक संघ का उन्नतीसवा साहित्यकार सम्मान समारोह सम्पन्न
रविवार को मध्यप्रदेश लेखक संघ का उन्नतीसवा साहित्यकार सम्मान समारोह मानस भवन में हुआ,जिसमें चौबीस साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।समारोह की अध्यक्षता पूर्व सासंद रघुनन्दन शर्मा द्वारा की गई।मुख्य अतिथि थे टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे तथा सारस्वत अतिथि के रूप में सप्रे संग्रहालय के संस्थापक,वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर।
मंचपर प्रदेशाध्यक्ष डाॅ.रामवल्लभ आचार्य ,राजेन्द्र गट्टानी,कवि ऋषि श्रंगारी,प्रभुदयाल मिश्र तथा सुनील चतुर्वेदी भी उपस्थित रहे।सम्मान समारोह में प्रादेशिक संयुक्त सचिव डाॅ..प्रीति प्रवीण खरे कीउपस्थित उल्लेखनीय रही।
साभार – सुश्री मनोरमा पंत, भोपाल (मध्यप्रदेश)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
☆ विचार–पुष्प – भाग –५७ – नवा सूर्य ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆
‘स्वामी विवेकानंद’ यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका ‘विचार–पुष्प’.
गेल्या दिडदोन महिन्यांची काळरात्र संपून, आता नवा सूर्य उगवला होता.एप्रिलमध्ये मद्रास येथे घडलेल्या घटना विवेकानंद यांना कळता कळता दोन महीने लागले. जुलै प्रसन्नता घेऊन उजाडली. विवेकानंद मनातून सुखावले. त्यांच्या मनात एकच सल होती ती म्हणजे, अमेरिकेत परिचय झालेल्या लोकांसमोर आपली वैयक्तिक प्रतिमा खराब करण्याचा झालेला घृणास्पद प्रकार. पण वैयक्तिक पेक्षाही त्याच बरोबर हिंदू धर्माचीही प्रतिमा ? ती पुसून काढली तरच त्यांना आपल्या धर्माबद्दल पुढे काम करता येणार होतं. नाहीतर सुरू केलेलं काम, त्याचं काय भविष्य? आणि उज्ज्वल भारत घडवायच स्वप्न होतं ते ? म्हणून सत्य काय ते सर्वांना कळलं पाहिजे, त्या दृष्टीने त्यांचे गुरु बंधु ही कामाला लागले होते. विशेषत: अलासिंगा पेरूमल खूप धडपड करत होते.
मद्रासला एका जाहीर सभेचा आयोजन केलं गेलं . पंचायप्पा सभागृह खचाखच भरून गेलं होतं. अध्यक्ष होते दिवाण बहादुर एस सुब्रम्हण्यम अय्यर. राजा सर रामस्वामी मुदलीयार यांनी सूचना केली आणि विवेकानंद यांच्या अमेरिकेतल्या परिषदेत केलेल्या उज्ज्वल कामगिरीबद्दल अभिनंदनाचा ठराव मांडला, सी रायचंद्र रावसाहेब यांनी. त्या बरोबरच अमेरिकेतल्या नागरिकांना धन्यवाद देणारा ही ठराव मांडला गेला.रामनद च्या राजेसाहेबांनी अभिनंदनाची तार पाठवली. किती विशेष गोष्ट आहे की, ज्या व्यक्तीसाठी अभिनंदन म्हणून कार्यक्रम करायचा ती इथे प्रत्यक्षात हजर नाही पण तरी एव्हढा मोठा कार्यक्रम? त्याला मोठ्या संख्येने सर्व थरातील लोक उपस्थित राहिले होते. काय होतं हे सगळं? हिंदू धर्माच्या जागरणासाठी विवेकानंद यांनी केलेल्या कामाची ही तर फलनिष्पत्ती होती.
कलकत्त्यात अजून असं काही नियोजन झालं नव्हतं. पण शिकागो च्या सर्वधर्म परिषदेत उपस्थित असलेले धर्मपाल, आलमबझार मठात गेले आणि विवेकानंद यांच्या अमेरिकेतल्या सर्व कार्याचे व यशाचे वृत्त त्यांच्या गुरु बंधूंना सांगीतले. शिवाय धर्मपाल यांचे कलकत्त्यात, हिंदुधर्म अमेरिकेत आणि स्वामी विवेकानंद या विषयावर एक व्याख्यान आयोजित केले गेले. याला अध्यक्ष होते महाराजा बहादुर सर नरेंद्र कृष्ण, याशिवाय जपान मधील बुद्धधर्माचे प्रमुख आचार्य, उटोकी यांचे ही या सभेत भाषण झाले. हा कार्यक्रम मिनर्व्हा चित्रमंदिरात झाला. याला नामवंत लोक उपस्थित होते. हे सर्व वृत्त इंडियन मिरर मध्ये प्रसिद्ध झाले होते, आपोआपच विवेकानंद यांच्या विरुद्ध प्रचारा ला एक उत्तर दिलं गेलं होतं.सर्वधर्म परिषदेत स्वामीजींनी संगितले होते की, ‘हिंदुधर्माला बुद्ध धर्माची गरज आहे आणि बुद्ध धर्माला हिंदू धर्माची गरज आहे आणि हे ध्यानात घेऊन दोघांनी एकमेकांच्या हातात हात घालून पुढे गेले पाहिजे’. हे म्हणणे धर्मपाल यांना पटले होते हे आता सिद्ध झाले होते.
या दोन्ही ठिकाणी झालेल्या सभांचे वृत्त प्रसिद्ध झालेले ही वृत्त आणि ठरावांच्या संमत झालेल्या प्रती अलासिंगा यांनी अमेरिकेतिल वृत्तपत्रांना पाठवल्या.प्रा.राइट,मिसेस बॅगले आणि मिसेस हेल यांनाही प्रती पाठवल्या गेल्या, औगस्टच्या बोस्टन इव्हिंनिंग ट्रान्सस्क्रिप्ट मध्ये मद्रासला झालेल्या सभेचे वृत्त आले. हे स्वामीजींना कळले. तसेच शिकागो इंटर ओशन यातही गौरवपूर्ण असा अग्रलेख प्रसिद्ध झाला. हजारो मैल दूर, एकट्या असणार्या,सनातनी ख्रिस्ती धर्माच्या प्रचारकांच्या विरुद्ध लढणार्या विवेकानंद यांना हे समजल्यानंतर हायसे वाटले. थोडा शीण हलका झाला. या नेटाने केलेल्या कामाबद्दल त्यांनी अलासिंगा यांचे कौतुक केले.
आणि ….. मग इतर लोकांना पण जाग आली. आता मद्रास नंतर कुंभकोणम, बंगलोर या ठिकाणी सुद्धा अशा सभा झाल्या. मधल्या दोन महिन्यात सारी सामसुम होती. त्यावेळी विवेकानंद यांनी मिसेस हेल यांना पत्र लिहिले आणि विनवणी केली की, “मला आईसारखे समजून घ्या म्हणून, वात्सल्याची विनवणी! माणूस अशा प्रसंगी किती एकाकी पडतो, त्याची मानसिक स्थिति कशी होते, अशा प्रसंगामुळे नैराश्य आणणारी खरी स्थिति होती. अशाच काळात आधार हवा असतो.अशाच मनस्थितीत विवेकानंद मिसेस बॅगले यांच्या कडे त्यांनी बोलावलं म्हणून अनिस्क्वामला गेले.जवळ जवळ २० दिवस तिथे राहिले . याचवेळी प्रा. राइट पण तिथे होते. योगायोगाने भारतातील वृत्ते पोहोचली ती या दोघांनंही समजली. या आधी जुनागडच्या दिवाण साहेबांनी प्रा. राइट यांना आणि मिसेस हेल यांनाही पत्रे लिहिली होती ती मिळाली होती. त्यात विवेकानंद यांना असलेला भारतीयांचा पाठिंबा लिहिला होता.पाठोपाठ म्हैसूरच्या राजांचेही पत्र आले. हे राइट आणि बॅगले यांना दिसल्यामुळे विवेकानंद समाधानी झाले.
याला उत्तर म्हणून विवेकानंद मन्मथनाथ भट्टाचार्य यांना लिहितात, “अमेरिकेतील स्त्रिया आणि पुरुष, तेथील चालीरीती आणि सामाजिक जीवन यावर सुरुवात करून ते म्हणतात, मद्रासला झालेला सभेचा वृत्तान्त देणारे सारे कागदपत्र व्यवस्थित मिळाले. शत्रू आता चूप झाला आहे. असे पहा की, येथील अनेक कुटुंबामधून मी एक अपरिचित तरुण असूनही त्यांच्या घरातील तरुण मुलींच्या बरोबर मला मोकळेपणाने वावरू देतात. आणि माझेच एक देशबांधव असलेले मजुमदार मी एक ठक आहे असे सांगत असताना ते त्याकडे लक्षही देत नाहीत, केव्हढ्या मोठ्या मनाची माणसे आहेत ही. मी शंभर एक जन्म घेतले तरी त्यांच्या या ऋणातून मुक्त होऊ शकणार नाही.हा उभा देश आता मला ओळखतो. चर्चमधील काही सुशिक्षित धर्मोपाध्याय यांनाही माझे विचार मानवतात. बहुसंख्यांना मान्य होत नाहीत. पण ते स्वाभाविक आहे. माझ्याविरुद्ध गरळ ओकून मजुमदार येथील समाजात त्यांना याआधी असलेली, तीन चतुर्थांश लोकप्रियता गमावून बसले आहेत. माझी जर कोणी निंदा केली, तर येथील सर्व स्त्रिया त्याचा धिक्कार करतात. या पत्राची कोठेही वाच्यता करू नये. तुम्हीही समजू शकाल की, तोंडाने कोणताही शब्द उच्चारताना मला अतिशय सावध राहावयास हवे. माझ्यावर प्रत्येकाचे लक्ष आहे. विशेषता मिशनरी लोकांचे”
“कलकत्त्यामद्धे माझ्या भाषणाचे वृत्त छापले आहे त्यात राजकीय पद्धतीने माझे विचार व्यक्त होतील अशा पद्धतीने सादर केले आहेत. मी राजकरणी नाही आणि चळवळ करणारा कुणी नाही मी चिंता करतो फक्त, भारताच्या आत्म्याची, त्याच्या स्वत्वाची, ती जाग आली की सर्व गोष्टी आपोआप होतील.कलकत्त्यातील मंडळींना सूचना द्यावी की, माझी भाषणे व लेखन यांना खोटेपणाने कोणताही राजकीय अर्थ चिटकवला जाऊ नये. हा सारा मूर्खपणा आहे”. असे त्यांनी अलासिंगना कळवले आहे.
यानंतर सप्टेंबरला कलकत्ता येथे ही विवेकानंद यांच्या कामगिरीवर शिक्कामोर्तब करणारि प्रचंड सभा झाली. यासाठी अभेदानंद यांनी घरोघरी जाऊन पैसे गोळा केले होते.अपार कष्ट घेतले. सर्व थरातील चार हजार नागरिक याला उपस्थित होते .राष्ट्रीय पातळीवरील विवेकानंदांच्या गौरवाचा हा कार्यक्रम होता. अध्यक्ष होते, पियारी मोहन मुखर्जी . कळकतत्यातील थोर व नामवंत व्यक्ति. दुसरे होते कळकतत्यातील नामवंत संस्कृत महाविद्यालयाचे प्राचार्य माहेश्चंद्र न्यायरत्न . याची दखल इंडियन मिरर ने खूप छान घेतली .यात अभिनंदांनचे ठराव तर होतेच, पण कलकत्त्याच्या नागरिकांनी विवेकानंद यांना लिहिलेली पत्रे होती. कलकत्ता ही विवेकानंद यांची जन्मभूमी होती त्यामुळे या घटनेला खूप महत्व होतच .शिवाय असत्य प्रचार केलेल्या प्रतापचंद्र मजुमदार यांचीही कर्मभूमि होती. ब्राह्मसमाजाचे धर्मपीठ पण कलकत्ताच होते. हे वृत्त विवेकानंद यांच्या हातात पडले आणि ते कृतकृत्य झाले बस्स…. जगन्मातेचा विजय झाला होता.आपलीम मातृभूमी आपल्या पाठीशी उभी आहे अशा पूर्ण विश्वासाने स्वामी विवेकानंद यांच्या डोळ्यातून, हेल भगिनींना हे कळवताना अश्रूंचा पूर लोटला होता. मनस्ताप आणि निराशा काळाच्या पडद्याआड गेलं आणि नव्या चैतन्याने. उत्साहाने विवेकानंद ताजेतवाने झाले पुढच्या कार्याला लागायचे होते ना? गुरुबंधूंना ते म्हणतात, “तुम्ही सारे कंबर कसून जर माझ्याभोवती उभे राहिलात तर, सारे जग जरी एकत्र आले तरी आपल्याला त्याचे भय मानण्याचे कारण नाही”. असा यानंतर उगवलेला नवा सूर्य त्यांना आत्मविश्वास देत होता.