English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 126 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 126 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 126) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 126 ?

☆☆☆☆☆

बेहद उलझे हुए रिश्तों को

छोड़ देना ही अच्छा,

क्योंकि  गांठों  में  कभी 

धागा  नहीं  ढूंढा  जाता..!

 ☆☆

It’s better to leave hopelessly

knotted relationships,

Because thread is never

looked for in the knots…!

☆☆☆☆☆

जंजीर बदली

जा  रही  थी,

मै समझा कि

रिहाई हो गई…

 ☆☆

The chain was

being changed…

I thought I have

been released…!

☆☆☆☆☆

हम भी कभी जलाते थे,

आँधियों  में  चिराग,

आज हम जमाने की

बहती हवा देख रहे हैं…

 ☆☆

We also used to burn

lamp in the storm,

today we are of the age

watching the wind blow…

☆☆☆☆☆

एक उम्र वो थी कि जादू

पर  भी यक़ीन होता था,

अब वो उम्र है कि हक़ीक़त    

पर  भी  शक़  होता  है…!

 ☆☆

There was an age that I used

to believe in magic too,

Now is the age when even

the reality is doubted…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 174 ☆ अनुभव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

☆  संजय उवाच # 174 अनुभव ?

बैंक की स्थानीय शाखा में जाना है। शाखा, बिज़नेस कॉम्प्लेक्स की पहली मंज़िल पर है। लिफ्ट की सुविधा न होने से विशेषकर बुज़ुर्गों को कष्ट होता है। सीढ़ियाँ चढ़ना आरम्भ ही कर रहा था कि देखा एक वयोवृद्ध माताजी धीरे-धीरे नीचे उतर रही हैं। उनका लगभग पचास वर्षीय बेटा और पंद्रह वर्षीय पोती पहले उतर चुके हैं। बेटा फोन पर बात करते हुए अपनी बेटी को दादी का हाथ पकड़ कर नीचे उतारने का निर्देश दे रहा है। दादी-पोती की गति में समन्वय नहीं सध पा रहा। व्यक्ति एकाएक बेटी पर चिल्लाया, ‘धीरे-धीरे उतार, दादी के घुटनों में दर्द उठता है।’ मैंने कहा, ‘पंद्रह साल की उम्र में बिटिया को कैसे पता कि घुटनों में दर्द भी होता है!’ व्यक्ति को बोध हुआ। वह आकर अपनी माँ को सीढ़ी उतरवाने लगा।

कहा जाता है, ‘जाके पाँव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई?’ जीवन में अनुभव का अनन्य महत्व है। अनुभव व्यक्ति को आधार प्रदान करता है। अनुभव की ज़मीन पर खड़ा मनुष्य डगमगाता नहीं। इस परिप्रेक्ष्य में अपनी कविता ‘अनुभव’ का संदर्भ स्मरण आता है-

ज़मीन से कुछ ऊपर

कदम उठाए चला था,

आसमान को मुट्ठी में

कैद करने का इरादा था,

अचानक-

ज़मीन ही खिसक गई,

ऊँचाई भी फिसल गई,

आसमान व्यंग्य से

मुझ पर हँस रहा था,

अपनी जग-हँसाई

मैं भी अनुभव कर रहा था,

किंतु अब फिर से

प्रयासों में जुटा हूँ,

इतनी-सी मुट्ठी,

उतना बड़ा आसमान है,

पर इस बार आसमान

भयभीत नज़र आता है,

अनुभव जीवन को

नये मार्ग दिखाता है,

जानता हूँ, अब

विजय सुनिश्चित है

क्योंकि इस बार मेरे कदम

ज़मीन से ऊपर नहीं

बल्कि ज़मीन पर हैं..!

श्रीमद्भगवद्गीता में काया, मन और बुद्धि को जीवन में विभिन्न अनुभव प्राप्त करने का साधन कहा गया है। लोकोक्ति है कि अनुभव ऐसा शिक्षक है जो परीक्षा पहले लेता है और पाठ बाद में पढ़ाता है। यद्मपि अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता तथापि जीवन हर व्यक्ति को हर अनुभव ग्रहण करने का अवसर दे, यह आवश्यक नहीं। संक्षिप्त जीवन में बिना भोगे अनुभव ग्रहण करना हो तो बुज़ुर्गों के सम्पर्क में रहिए, उनसे संवाद कीजिए। अनुभव प्राप्ति का एक और प्रभावी साधन पुस्तकें भी हैं। अत: पुस्तकें पढ़ने की आदत डालिए, स्वयं को पठन  संस्कृति में ढालिए।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 125 ☆ नव गीत ~ क्यों करे? ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत  “~ क्यों करे?~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 125 ☆ 

☆ नव गीत ~ क्यों करे? ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

*

चर्चा में

चर्चित होने की चाह बहुत

कुछ करें?

क्यों करे?

*

तुम्हें कठघरे में आरोपों के

बेड़ा हमने।

हमें अगर तुम घेरो तो

भू-धरा लगे फटने।

तुमसे मुक्त कराना भारत

ठान लिया हमने।

‘गले लगे’ तुम,

‘गले पड़े’ कह वार किया हमने।

हम हैं

नफरत के सौदागर, डाह बहुत

कम करें?

क्यों करे?

*

हम चुनाव लड़ बने बड़े दल

तुम सत्ता झपटो।

नहीं मिले तो धमकाते हो

सड़कों पर निबटो।

अंग हमारे, छल से छीने 

बतलाते अपने।

वादों को जुमला कहते हो

नकली हैं नपने।

माँगो अगर बताओ खुद भी,

जाँच कमेटी गठित  

मिल करें?

क्यों करे?

*

चोर-चोर मौसेरे भाई

संगा-मित्ती है।

धूल आँख में झोंक रहे मिल

यारी पक्की है। 

नूराकुश्ती कर, भत्ते तो

बढ़वा लेते हो।

भूखा कृषक, अँगूठी सुख की

गढ़वा लेते हो।

नोटा नहीं, तुम्हें प्रतिनिधि

निज करे।  

क्यों करे?

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१४-१२-२०१८, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #154 ☆ भोजपुरी गीत  – इहै प्लास्टिक एक दिन‌ सबके मारी ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 154 ☆

☆ भोजपुरी गीत  – इहै प्लास्टिक एक दिन‌ सबके मारी ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

आज का मानव समाज सुविधा भोगी हो चला है साधन और सुविधाओं के चक्कर में मानव समाज मौत के मुहाने पर खड़ा है। गाहे-बगाहे न सड़ने वाले बजबजाते प्लास्टिक कचरे के तथा उसकी दुर्गंध से हर व्यक्ति परिचित हैं, ऐसे में आने वाले भयावह खतरे से सावधान रहने का संदेश यह भोजपुरी रचना देती है।उम्मीद है सभी भोजपुरी भाषा भाषी इस रचना को आत्मसात कर समसामयिक रचना का संदेश लोकहित में प्रसारित करेंगे।

पोलिएथ्रिन*  के आयल जमाना,

साधन आ सुविधा के खुलल खजाना।

पोलीथीन प्लास्टिक नाम बा एकर,

सड़वले से कचरा सड़े नाही जेकर।

साधन आ सुविधा इ केतना बनवलस,

केतना गिनाई नाम बहुतै कमइलस।

कपड़ा अ लत्ता दवाई मिठाई,

गाड़ी मोटर टीवी अ गद्दा रजाई।।

।।इहै प्लस्टिक एक दिन सबके मारी।।1।।

 

प्लास्टिक क पत्तल अ प्लास्टिक क दोना,

वोही क ओढ़ना वोही क बिछौना।

वो से छुटल नाहीं कौनो कोना,

जहां देखा प्लास्टिक बिकै बनिके सोना।

प्लस्टिक से सुविधा मिलै ढ़ेर सारी,

मिलै वाले दुख से ना केहू उबारी।

।।इहै प्लस्टिक एक दिन सबके मारी।।2।।

 

इ बाताबरन में प्रदूषण बढ़ाई,

न कौनों बिधि ओकर कचरा ओराइ।

ऐही खातिर आदत, तूं आपन सुधारा,

दूसर विकल्प खोजा, कइला किनारा।

समझा अ बूझा सब कर जीवन संवारा,

नाहीं त कवनो दिन बनबा बेचारा।

देखा इ सुरसा जस मुंह बवलस भारी,

धरती हुलिया कबौ ई बिगारी।

।।इहै प्लास्टिक एक दिन सबके मारी।।3।।

* प्लास्टिक का वैज्ञानिक नाम 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

(1-09-2021)

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्यिक गतिविधियाँ ☆ भोपाल से – सुश्री मनोरमा पंत 🌹

(विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

🌹🌹

हरिकृष्ण कामथ पर डाक विभाग  ने जारी किया एनवलप

सप्रे संग्रहालय की अनुशंसा पर  डाक विभाग  ने हाल में ही स्वतंत्रता सेनानी हरिविष्णु कामथ पर  स्पेशल एनवलप  जारी किया।

🌹🌹

जयशंकर प्रसाद :’महानता के आयाम’ पुस्तक का लोकार्पण

जयशंकर प्रसाद  पर प्रसिद्ध  साहित्यकार  एवं आलोचक डा.करूणाशंकर उपाध्याय द्वारा लिखित  पुस्तक का विमोचन  हिन्दी भवन में हुआ। कार्यक्रम  की अध्यक्षता पूर्व प्रशासनिक  अधिकारी एवं अक्षरा के संपादक मनोज श्रीवास्तव  ने की। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि-  “लेखक ने यह कृति लिखकर आलोचना को एक नई दृष्टि दी है।”  पुस्तक  पर साहित्यकार  प्रो. रामेश्वर  शुक्ल, प्रो.आनंद  प्रकाश त्रिपाठी, आनंद  कुमार सिंह, एवं सुधीर शर्मा ने अपने विचार  रखे।

🌹🌹

यंग थिंकर्स  फोरम  द्वारा 61वीं पुस्तक परिचर्चा का आयोजन  स्वामी विवेकानंद  लायब्रेरी में किया गया। इस अवसर पर निखिल समदरिया एवं सीताराम  गोयल की पुस्तक  ‘हिन्दु समाज संकटों के घेरे में ‘पर रागेश्वरी आँजना ने चर्चा की। हिंदुज्म फ्रिक्वेंसी आस्कड  कोश्चन ‘पर भी चर्चा हुई।

🌹🌹

भारत में उर्दू साहित्य  और भारतीयता विषय पर  लंदन में शोधपत्र प्रस्तुत करेगे डा.अंजुम

भोपाल के मशहूर शायर और साहित्यकार  डा.अंजुम बाराबंकवी लंदन  में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम  में ‘भारत में उर्दू  साहित्य  एवं भारतीयता’ विषय  पर अपना शोधपत्र भी प्रस्तुत करेगे। उनके द्वारा संपादित  पुस्तक  ‘सिग्नेचर’ का भी विमोचन किया जावेगा।

🌹🌹

अब एमपी कल्चर एप पर मिलेगी साहित्यिक  और सांस्कृतिक  कार्यक्रमों की जानकारी

राज्यपाल मंगवाई पटेल ने ‘एमपी ‘एप का बटन दबाकर उद्घाटन  किया। इस मौके पर संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर भी उपस्थित  थी। संचालक अदिति कुमार ने एप की विस्तृत  जानकारी दी।

इस अवसर परसंस्कृति विभाग के प्रतिष्ठित  सम्मान भी दिये गये। राष्ट्रीय कबीर सम्मान  डा. शोध पत्र दुबे को, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान  डॉ. सदानंद  प्रसाद गुप्त को, इकबाल सम्मान  सैयद तकी को तथा राष्ट्रीय  श्रमजीवी सम्मान  डा.श्री राम परिहार को दिये गये।

🌹🌹

अखिल भारतीय  कलामंदिर की शरद /बंसत काव्य गोष्ठी सम्पन्न  हुई जिसके विशिष्ट  अतिथि कवि ऋषि श्रंगारी थे। अध्यक्षता रघुनन्दन  शर्मा ने की। गोष्ठी में संस्था के अध्यक्ष  गोरी शंकर  गौरीश, सीमा हरि, हरिवल्लभ  जी, विश्व नाथ, अशोक कुमार,  अशोक धमेनियाँ, अशोक व्यास, शिवकुमार, कमलकिशोर दुबे, दिनेश जी,मनोरमा पंत एवं मधु शुक्ला  ने सरस  कविताएं पढी।

🌹🌹

 

लघुकथा शोध संस्थान  के पुस्तक  पखवाड़े के द्वितीय  चरण में  छः पुस्तकों की समीक्षा हो चुकी है-

तख्त की ताकत- लेखक हेमन्त  शिवनारायण  उपाध्याय  समीक्षक  कांता राय

पोटली – लेखिका  सीमा व्यास  समीक्षक  अन्तरा करवड़

अध्यक्ष  – अशोक भाटिया

मुख्य अतिथि – सुभाष  नीरव

कठघरे में हम सब – लेखक गोकुल सोनी

कथ्य तथ्य – डा.गिरिजेश सक्सेना

समीक्षक  द्वय – उपमा शर्मा, जया केतकी

अध्यक्ष  – हरि जोशी

मुख्य अतिथि – दयाराम  वर्मा

जिन्दगी के हिसाबों की एक किताब  लेखिका -नीहारिका रश्मि

नासमझ मन भज मन -लेखिका डा.मालती बंसत 

समीक्षक  -घनश्याम  मैथिल,  मनोरमा पंत

अध्यक्ष  -डा.मोहन तिवारी  मुख्य  अतिथि -गोकुल सोनी

🌹 🌹

साभार – सुश्री मनोरमा पंत, भोपाल (मध्यप्रदेश) 

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – सोनेरी किरणे धरतीवर – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?सोनेरी किरणे धरतीवर? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

रविराज अस्ताला जाता

धरतीवर तम हळुहळू येतो

 पांधरूनी काळी शाल जगी

कुशीतली उब सकलांना देतो

निद्रीस्त  होती, विश्रांती घेती

श्रमणारे जीव आपोआप

काही ठिकाणी अंधारातच

चोरटेपणाने फिरते पाप

 पूर्वदिशेला दिनकर येता

 तमस हळू निघूनी जातो

 सोनेरी किरणे धरतीवर

 कणकण उजळीत रहातो

चित्र साभार –सुश्री नीलांबरी शिर्के

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #175 – 61 – “लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए…”)

? ग़ज़ल # 61 – “लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मुझे न कट्टर हिंदू न मुसलमान चाहिए,

उदार हिंदू और उदार मुसलमान चाहिए।

नफ़रत भरे दिलों में खिलता कँटीला खार,

मुझे प्यार भरे गुलों का गुलिस्तान चाहिए।

उतार कर फेंको धर्मों का अहंकारी नक़ाब,

मुझे सभ्य समानता का संविधान चाहिए।

जो हो चुका वो बदलने वाला नहीं अब,

नहीं काल्पनिक अखंड हिंदुस्तान चाहिए।

आपस में लड़े तो मारे जाएँगे हम सभी,

लोगों को जोड़ सके वो मेहरबान चाहिए।

नफ़रती पौधों की नर्सरी में खिलते काँटे,

काँटों में फूल उगा दे वो क़द्रदान चाहिए।

न हों आबाद खार ओ खस की महफ़िलें,

दिलों में गीत ग़ज़ल का अरमान चाहिए।

अंगड़ाई लें राम रहीम के दोआबी तराने,

ख़ंजर जिसे प्यारे नहीं वो शैतान चाहिए।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 53 ☆ मुक्तक ।। बहुत कुछ करके जाना है बस चार दिन की कहानी जिंदगानी में ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।बहुत कुछ करके जाना है बस चार दिन की कहानी जिंदगानी में।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 53 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।बहुत कुछ करके जाना है बस चार दिन की कहानी जिंदगानी में।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सपनों का टूटना और बनना ही तो जिंदगानी है।

ख्वाबों का बिखरना संवरना ही तो निशानी है।।

हमारे अंतरद्वंद आत्मविश्वास की परीक्षा है यह।

प्रभु की कितनी  ही  बेमिसाल कारस्तानी है।।

[2]

जिंदगी चार दिन की बस जैसे आनी जानी है।

मतकरो काम हो जिससे किसी को परेशानी है।।

जिंदगी आजमाती है हर तरह के इम्तिहान से।

यूं ही नहीं बनती दुनिया किसी की दीवानी है।।

[3]

समय की धारा में यह  उम्र यूं बह जाती है।

करते अच्छा काम तो  यादगार कहलाती है।।

हाथ की लकीरों नहीं अपने हाथ इसे बनाना।

यूं ही चले गए तो इक कसक सी रह जाती है।।

[4]

जाना तो है एक दिन पर निशान छोड़कर जाना।

हरेक पासअपने दिल का मेहमान छोड़कर जाना।।

बना कर जाना एक कोना हर दिल दिमाग में।

कुछ और नहीं अपनी पहचान छोड़कर जाना।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 117 ☆ ग़ज़ल – “यहाँ जो आज हैं नाजिर…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “यहाँ जो आज हैं नाजिर…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #118 ☆  ग़ज़ल  – “यहाँ जो आज हैं नाजिर…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

खुशी मिलती हमेशा सबको, खुद के ही सहारों में।

परेशानी हुआ करती सभी को इन्तजारों में।।

 

किसी के भी सहारे का, कभी भी कोई भरोसा क्या,

न रह पाये यहाँ वे भी जो थे परवरदिगारों में।।

 

यहाँ जो आज हैं नाजिर न रह पाएंगे कल हाजिर

बदलती रहती है दुनियां नये दिन नये नजारों में।।

 

किसी के कल के बारे में कहा कुछ जा नहीं सकता

बहुत  बदलाव आते हैं समय के संग विचारों में।।

 

किसी के दिल की बातों को कोई कब जान पाया है?

किया करती हैं बातें जब निगाहें तक इशारों में।।

 

बड़ा मुश्किल है कुछ भी भाँप पाना थाह इस दिल की

सचाई को छुपायें रखता है जो अंधकारों में।।

 

हजारों बार धोखे उनसे भी मिलते जो अपने हैं

समझता आया दिल जिनको कि अपने जाँनिसारों में।।

 

भला इससे यही है अपने खुद पै भरोसा करना

बनिस्बत बेवजह होना खड़े खुद बेकरारों में।।

 

जो अपनी दम पै खुद उठ के बड़े होते हैं दुनिया में

उन्हीं को मान मिलता है चुनिन्दा कुछ सितारों में।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 138– वणव्यात चांदण ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 138 – वणव्यात चांदण ☆

तुझ्या हास्यानं रे  फुललं वैशाख वणव्यात चांदणं।

विसरले सारे दुःख अन् उघडे पडलेले गोंदणं ।।धृ।।

गेला सोडून रे धनी गेल डोईचं छप्पर।

भरण्या पोटाची गार भटकंती ही दारोदार।

लाभे दैवानेच तुला समजदारीचं देणं।।१।।

कुणी देईना रे काम कशी रे दुनियादारी।

नजरेच्या विषापरी सापाची ही जात बरी।

याला पाहून रे फुले तुझ्या हास्याचं चांदणं।।२।।

रोजचाच नवा गाव रोज तोच नवा खेळ।

दमडी दमडीत रे कसा बसेल जीवनाचा मेळ।

कसा आणू दूध भात कसा आणू रे खेळणं।।३।।

नसे पायात खेटर पायपीट दिसभर।

घेऊ कशी सांग राजा तुला झालरी टोपरं।

करपलं झळांनी या गोजिरं, हे बालपणं।।४।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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