संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य” में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार,साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… का अगला भाग )
मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 3
(2015 अक्टोबर – इस साल हमने स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को घूमने का कार्यक्रम बनाया। पिछले भाग में आपने पुर्तगाल यात्रा वृत्तांत पढ़ा। )
यात्रा वृत्तांत (स्पेन से जिबरॉल्टर) – भाग तीन
मलागा में चार दिन बिताने के बाद हम तीन दिन के लिए मोरक्को जानेवाले थे परंतु वहाँ उन दिनों राजनैतिक उथल-पुथल प्रारंभ हो गई थी। कुछ बम विस्फोट की भी खबरें मिली, इसलिए हमने वहाँ जाने का कार्यक्रम स्थगित किया। हमारी सारी बुकिंग कैंसल की गई,आर्थिक नुकसान हुआ पर कहते हैं न जान बची लाखों पाए -हमारे लिए उस समय यह निर्णय आवश्यक था। यह मुस्लिम बाहुल्य देश है। यहाँ ईसाई भी हैं पर माइनॉरिटी में और दो धर्मों के बीच कुछ विवाद छिड़े हुए थे।अतः इस उथल -पुथल में हमने मोरक्को न जाने का फैसला लिया। हमने रिसोर्ट में तीन दिन अधिक रहने के लिए व्यवस्था की। सौभाग्य से हमें जगह मिल गई ।अब हमारे पास तीन दिन हाथ में अधिक आ गए थे। हमने मलागा में रहकर कुछ और जगहें देखने का मन बना लिया।
कनाडा की शिक्षिकाओं ने दूसरे दिन जिबरॉल्टर जाने का कार्यक्रम बनाया था। इस स्थान की जानकारी मुझे उन दिनों हुई थी जब मैं अपने नाती को इतिहास पढ़ाते समय द्वितीय विश्वयुद्ध की जानकारी दे रही थी। इससे पूर्व मुझे इस स्थान की कोई जानकारी न थी। हमारा नाती तो जिबरॉल्टर जाने की बात सुनकर उछल पड़ा। हमने अपने रिसोर्ट के ग्रंथालय से जिबरॉल्टर की और अधिक ऐतिहासिक जानकारी हासिल की और ट्रैवेल डेस्क पर बैठे एजेंट से जाने की व्यवस्था भी की।
हमारे पास शैंगेन वीज़ा थी। जिबरॉल्टर यू.के. के अधीन आता है। वहाँ शैंगेन वीज़ा नहीं चलता। पर हमारी तकदीर अच्छी थी कि ट्रैवेल एजेंट ने बताया कि हमारी यात्रा के छह दिन पूर्व ही यह घोषणा की गई थी कि भारतीय जिबरॉल्टर पहुँचकर वीज़ा प्राप्त कर सकते हैं।
अठारह लोगों की बस में तीन सीटें मिल ही गईं और दूसरे दिन सुबह हम सात बजे जिबरॉल्टर के लिए रवाना हुए।
गाड़ी में हम तीन ही एशियाई और वह भी भारतीय थे। इससे पूर्व सभी एशियाई देशों को पहले से वीज़ा लेने की आवश्यकता होती रही है। अब यह बाध्यता का समाप्त होना अर्थात भारत के साथ स्पेन के सुदृढ़ आपसी संबंधों पर प्रकाश डालता है।
मलागा से जिबरॉल्टर की दूरी 135 किलोमीटर है। जिबरॉल्टर समुद्री तट पर बसा छोटा सा शहर है। जिबरॉल्टर छोटा सा शहर तो है पर साथ ही, यह ब्रिटेन के सशस्त्र सैनिकों और नौसेना का एक सशक्त आधार भी है। यह चट्टानी प्रायद्वीप से घिरा इलाका है साथ ही यहाँ कई गुफाएँ भी हैं।
यह पृथ्वी का एक ऐसा एयरप्लेन रनवे है जहाँ गाड़ियाँ और विमान दोनों ही चलते हुए दिखाई देते हैं। यात्रा के दौरान अचानक हमारी बस रुक गई और सामने ही विमान चलता दिखाई दिया। कुछ समय बाद विमान हमारे सिर के ऊपर से उड़ता दिखाई दिया। हमारे लिए यह एक अद्भुत अनुभव था!
हम अपनी छोटी-सी बस से जिबरॉल्टर पहुँचे। फिर वहाँ से आगे गुफाओं में जाने के लिए वहाँ की निर्धारित बसों में बैठकर हम ऊपरी गुफाओं में पहुँचे। ये संकरी और घुमावदार पहाड़ी रास्तों से गुजरती सड़कों पर की गई अद्भुत यात्रा थी। बस में लगी काँच की खिड़कियाँ बहुत बड़े आकार थीं जिस कारण मार्ग के आगे, पीछे, ऊपर ,नीचे की सड़कें स्पष्ट नज़र आ रही थी।
जैसे बस ऊपर चढ़ती सड़क संकरी महसूस होने लगती। एक भय भी मन में घर करता रहा। हम सबकी हालत देख गाइड ने तुरंत कहा कि सड़क घुमावदार,संकरी और चढ़ाईवाली होने के कारण ही विशेष प्रशिक्षित चालकों के साथ यात्रियों को वहाँ ले जाया जाता है। वहाँ गाड़ी या बस चलाना सबके बस की बात नहीं। एकबार में एक ही बस ऊपर जाती है। दो घंटे गाइड के साथ गुफाएँ देखकर बस नीचे उतरती है और तब दूसरी बस रवाना होती है।बस चालक ही गाइड के रूप में काम करता है। इस कारण प्रत्येक ट्रिप में अलग चालक होते हैं। चालक का गाइड होना अर्थात उस स्थान के प्रति लगाव, समर्पण की भावना भी जुड़ी रहती है।
बसें ऑटोमोटिक होती हैं और समय का पूरा ध्यान रखा जाता है। दूसरी बस प्रस्थान के लिए नीचे यात्रियों के साथ तैयार रहती है। इतना परफेक्ट समय की पाबंदी और अनुशासन देखकर यात्री होने के नाते हमारा मन अत्यंत प्रसन्न हो उठा।
ऊपर गुफाओं में हमें घुमाया गया।यहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के समय तकरीबन बीस हज़ार लोग रहते थे।बच्चों के लिए छोटा सा स्कूल बनाया गया था ताकि उन्हें युद्ध के भय से दूर रखा जाए तथा वे व्यस्त रहें। बेकरी थी। सैनिकों के सोने के लिए लोहे के बेड रखे गए थे। दिन में कुछ युद्ध करते तो कुछ सोते और रात को कुछ तैनात रहते तो दिन में ड्यूटी करनेवाली सेना आराम करती। गुफाएँ काफी गहरी थीं। कुछ गुफाओं में आज भी सैनिक रहते हैं।
गाइड ने हमें यह भी बताया कि जिबरॉल्टर में बड़ी संख्या में सिंधी भाषी रहते हैं।ये लोग आज के पाकिस्तान के सिंध इलाका से व्यापार करने के लिए गए थे तब भारत का विभाजन नहीं हुआ था। और आज भी वे वहीं बसे हैं।वहाँ हिंदू मंदिर भी है।
कई अच्छी जानकारी और ऐतिहासिक स्थान देखकर हम मलागा लौट आए।
आज स्पेन के विभिन्न शहरों में भी बड़ी संख्या में सिंधी व्यापारी वर्ग रहता है।
सभी स्थानों पर भारतीयों का बोलबाला और सम्मान देखकर मन गदगद हो उठा।
हमारी यह यात्रा सुखद, जानकारी पूर्ण और आनंददायी रही। ढेर सारे अनुभवों के साथ हम अपने नाती के साथ स्वदेश लौट आए।
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 30 ☆ देश-परदेश – ट्विन टावर (नोएडा) ☆ श्री राकेश कुमार ☆
पूरी दुनिया में रविवार को फुरसतवार भी कहा जाता हैं। अट्ठाईस तारीख, हम बैंक पेंशनर के लिए भी भी बड़ा महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि हर सत्ताईस तारीख़ को पेंशन की राशि खातों में जमा होती है, इसलिए अगला दिन बाजार से आने वाले माह के लिए सामान खरीदने से लेकर सुविधाओं के बिलों का भुगतान और ना जाने कितने काम रहते है, पेंशन मिलने के बाद।
जेब (खाते) में आई हुई राशि को सुनियोजित ढंग से खर्चे को बिना चर्चा किए हुए अपनी महीने भर का गुज़ारा “आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया” से पूरा करना ही हमारे जैसे सेवानिवृत्त लोगों का जीवन रह गया हैं।
यहां पूरे देश में कुछ अलग ही माहौल है, चर्चा तो सिर्फ ट्विन टॉवर की हो रही हैं। हमारा मीडिया कुछ दिन पूर्व से ही घटना स्थल पर डेरा डाल कर बैठा हुआ था।
प्रशासन, पुलिस, अग्निशमन, पॉल्यूशन विभाग, सड़क यातायात से लेकर वायु मार्ग पता नहीं कितने और विशेषज्ञ प्रकार के प्राणी इस कार्य को अंजाम करने में लगे होंगे।
दस किलोमीटर दायरे तक में रहने वाले निवासी दहशत में हैं। सी सी टी वी लोगों ने अपने घरों में लगाकर दूर से इस घटना को कैद किया। नजदीक के सुरक्षित एरिया में दृश्य का नज़ारा बड़ी बड़ी दूरबीन से देखा गया। खान पान में स्थानीय लोगों ने “गुड” का सेवन कर लिया था, ताकि वातावरण की धूल का उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर ना पड़े। आसपास की दवा की दुकानों ने एलर्जी से बचाव की दवाइयां मंगवा कर स्टॉक कर ली थी, ताकि वहां रहने वालों को अपातकाल में कोई कठिनाई ना हो।
दिल्ली और लखनऊ के कुछ बड़े टुअर ऑपरेटर ने इसको प्रोत्साहित करने के लिए पूरी बस जिसमें चारों तरफ कांच लगा हुआ है के द्वारा ट्रिप के माध्यम से इस नज़ारे को नजदीक से दिखाने के झूठे प्रचार भी कर रहे हैं।
टावर गिराने की कार्यवाही होते ही, “मीडिया दूत” और कैमरा चालक धूल और गुब्बार की परवाह किए बिना मलबे के बिलकुल पास तक घुस गए। वैसे इनको “मीडिया घुसक” की संज्ञा भी दी जाती है। ब्लास्ट का बटन किसने दबाया, उनके मन में उस समय क्या चल रहा था, पता नहीं कितनी बातें उगलवाने में इनका तजुर्बा रहता है।
ऐसा बताया जा रहा है, वहां आस पास मेले जैसा माहौल था, तो खाने पीने के स्टाल भी अवश्य लगे होंगें, बच्चों ने झूले झूल कर गिरते हुए टावर का मज़ा लिया होगा।
क्रिकेट खेल प्रेमियों का कहना है, एशिया कप में, भारत की जीत होनी निश्चित थी, इसलिए ये तो अग्रिम जश्न के टशन थे। वैसे पड़ोसी देश पाकिस्तान में आज पुराने टीवी सेट की बड़ी मांग थी, इसी के मद्देनज़र दिल्ली के बड़े कबाड़ियों ने यहां से पुराने टीवी सेट वहां भेज कर चांदी काट ली थी।
नोएडा निवासी मित्र को फोन कर वहां का हाल चाल पूछा था। बातचीत में उसने बताया की उसके बेटे की दिसंबर में शादी है, शादी का स्थान पूछने पर उसने बताया था कि जहां ट्विन टॉवर है, उसके धराशायी होने के बाद उसी खाली प्लॉट में ही शामियाना लगा कर वहीं करेगा। इतनी दूरदृष्टि हम भारतीयों में ही होती है। पुरानी कहावत है “शहर बसा नहीं और चोर पहले आ गए”।
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना– यह गुलाब सा गात…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 135 – यह गुलाब सा गात…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “आँख में ठिठका प्रणय…”)
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “मन में मायका…”।)
☆ कविता # 183 ☆ “मन में मायका…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मुक्ति दाता… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 125 ☆
☆ # मुक्ति दाता… # ☆
(बाबासाहेब डॉ आंबेडकर की जयंती के अवसर पर समर्पित रचना)