(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य – “पेपर लीक मामले में डील…”।)
☆ व्यंग्य # 182 ☆ “पेपर लीक मामले में डील…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
पेपर लीक होने के बढ़ते मामले चिंता का विषय बने हुए हैं। इसके कारण कई मुख्यमंत्री और कुछ बड़े लोग बैकफुट पर आ जाते हैं। गांव के टपकती पाठशाला में उनकी पढ़ाई हुई थी, उन्होंने बचपन में पाठशाला के रिसते खपरों से लीकेज की कला सीख ली थी। पढ़ाई पूरी करके ‘लीकेज की राजनीति’ विषय में उनकी पीएचडी भी पूरी हो गई थी, इसलिए वे लीकेज की राजनीति से घबराते नहीं थे और प्रजातंत्र में लीकेज की राजनीति को प्राकृतिक विपदा जैसा मानते थे। हर पार्टी में लीकेज पकड़ने वालों का बड़ा महत्व होता है, तो चूंकि ये लीकेज की राजनीति के डाक्टरेट थे इसलिए इनकी पार्टी में इनके अच्छे जलवे थे। ‘लीक’ से हटकर अपनी अलग तरह की राजनीतिक चाल चलने में वे माहिर भी थे।
उनके दिन तब फिरे जब पूरे माहौल में लीकेज बबंडर बनके छा गया। परीक्षाओं के समय पर्चा लीक होने का मौसम गरमाया, डाटा लीक होने के किस्सों ने लोगों का मन भरमाया, शहरों में पाईप लाईन लीकेज की घटनाओं से हाहाकार मचा, चुनाव की तारीख लीक होने से मीडिया गरमाया। जब लीकेज की समस्या विकराल रूप लेने लगी तो उनकी पूछ परख ज्यादा बढ़ गई। प्रजातंत्र में लीकेज विषय पर की गई पीएचडी के जलवे और बढ़ गए और उन्हें गोपनीय विभाग (लीकेज अनुभाग) का मंत्री का पद मिल गया। केन्द्र में महत्वपूर्ण पद जिसमें पिछली सरकार के लूपहोल, रिसाव, लीकेज को ढूंढने का काम था और ताजे लीकेज घटनाक्रम में तीखी नजर रखनी थी।
दिनों दिन लीकेज विभाग का महत्व बढ़ने लगा। मंत्री जी लीकेज की राजनीति के खिलाड़ी बन गए थे। परीक्षाओं के पेपर धड़ाधड़ लीक करा दिए गए। जब पत्रकारों ने मंत्री जी से पर्चा लीक होने संबंधी सवाल किये तो मंत्री जी ने पत्रकारों को टालने के लिए तरह-तरह के न समझ आने वाले जवाबों की बरसात कर दी। कहने लगे – लीकेज का प्रॉब्लम सब जगह संक्रामक बीमारी की तरह फैल गया है, आपको याद नहीं है क्या अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डाटा लीकेज का मामला। आनलाईन लीकेज से डरकर चीन ने आनलाईन हंसी पर रोक लगा दी है। जहां तक परीक्षा के पेपर लीक होने का मामला है तो आप लोग कहेंगे तो अब वाटरप्रूफ पेपर छपवाने के आदेश कर देते हैं। मंत्री जी ने सोशल मीडिया पर लीक हो रहे मामलों पर चिंता व्यक्त की और मीडिया वालों से सहयोग की अपील की। प्रजातंत्र में टपका की समस्या पर गहन विचार विमर्श करते हुए पत्रकारों को बताया कि पिछली सरकार के लीकेज इतने अधिक पकड़ में आये हैं कि रिसाव रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। पिछली सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग की गड़बड़ी और भ्रष्टाचार से सरकारी क्वार्टरों में टपका, सीपेज, लीकेज के केस ज्यादा दर्ज हुए हैं।
नगर निगमों की पाइप लाइन में रोज बढ़ते लीकेज की समस्या पर विपक्ष जिम्मेदार है विपक्षी लोग नहीं चाहते कि जनता को रोज पानी मिले।
मीडिया वालों से हाथ जोड़कर मंत्री जी ने निवेदन किया कि हमारी पार्टी और हमारे मंत्री टपके और लीकेज की राजनीति नहीं करते, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त जांच एजेंसियां और कोर्ट के खास लोग हैं, इसलिए जो हुआ तो हुआ आप लोग लीकेज वाली बात से संबंधित सवाल अब हमसे न पूछें नहीं तो आप सबकी आंखों में लीकेज की समस्या बढ़ सकती है।
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# डरना छोड़ो… #”)
(संत श्री ज्ञानदेव महाराजांनी योगीराज चांगदेवांच्या कोर्या पत्राला दिलेलं उत्तर म्हणजे चांगदेव पासष्टी. संत ज्ञानदेवांच्या काळचं प्राकृत म्हणजेच मराठी आजच्या संदर्भात, सर्वसामान्य लोकांना कळायला अवघड आहे. म्हणून सुश्री शोभना आगाशे यांनी सध्या प्रचलित असलेल्या मराठीत या चांगदेव पासष्टीचं केलेलं रूपांतर प्रस्तुत करीत आहोत.)
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है मानवीय संवेदनाओं पर आधारित प्रत्येक पात्रों के चरित्र को सजीव चित्रित करती कहानी ‘निमंत्रण’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 187 ☆
☆ कहानी ☆ निमंत्रण ☆
(लेखक के कथा-संग्रह ‘जादू-टोना’ से)
रुकमनी चाची रोज़ शाम की तरह अपने दुआरे बैठीं नलके पर से पानी लेकर लौटतीं पड़ोसिनों से बतकहाव कर रही हैं। उनकी नातिनें दो-तीन बार पानी के बर्तन लेकर आ चुकी हैं। यह काम उन्हीं के जिम्मे है। रुकमनी चाची अब यह सब काम नहीं करतीं। बस इस टाइम दुआरे पर आकर जरूर बैठ जाती हैं ताकि पड़ोसिनों से आराम से बतकहाव हो सके। बात करने के लिए चटकती जीभ को चैन मिल जाता है। अड़ोस- पड़ोस की सारी जानकारी वहीं बैठे-बैठे मिल जाती है।
लेकिन आज रुकमनी चाची का मन थिर नहीं है। बात सुनते सुनते मन भटक जाता है। बात का छोर टूट जाता है। फिर सुध लौटती है तो पूछती हैं, ‘हाँ, तो क्या बताया दमोह वाली के आदमी के बारे में? ज्यादा नसा-पत्ती करने लगा है? क्या कहें, सब बिगड़ती के लच्छन हैं।’
रुकमनी चाची की उद्विग्नता का कारण यह है कि दस-बारह दिन बाद उनकी भतीजी सुषमा के बड़े बेटे की शादी है, लेकिन उन्हें अभी तक कोई सूचना नहीं मिली है। सुषमा उनकी बड़ी बहन की बेटी है, जो अब नहीं हैं। सुषमा के पति का सिविल लाइंस में बड़ा बंगला है। वे एस.पी. के पद पर हैं। रुकमनी चाची लोगों को बताते नहीं थकतीं कि एस.पी. साहब उनके दामाद हैं, भले ही उनकी गाड़ी रुकमनी चाची के दरवाजे पर साल दो साल में कभी दिखायी पड़ती है। रुकमनी चाची पड़ोसियों को सफाई देती हैं— ‘पुलिस में हैं तो फुरसत कहाँ मिलती है? दिन रात की भागदौड़ है। अब ऐसे में सुसमा गिरस्ती सँभाले कि हमारे पास आकर बैठे।’
लेकिन जैसे जैसे दिन गुज़रते जाते हैं, उनकी बेचैनी बढ़ती जाती है। निमंत्रन अभी तक क्यों नहीं आया? नहीं बुलाएँगे क्या? सोचते सोचते हाथ का काम रुक जाता है। दरवाज़े पर कान लगा रहता है। कोई खटका होते ही पहुँचती हैं कि कोई निमंत्रन लेकर तो नहीं आया।
उन्हें पता है कि एस.पी. साहब और उनके बेटे उनके परिवार को पसन्द नहीं करते। कल्चर का फर्क है, आर्थिक स्थिति का भी। कभी कोई अवसर-काज हुआ तो सुषमा अकेली आकर खानापूरी कर जाती है। एस.पी. साहब बड़ी मुश्किल से दर्शन देते हैं।
रुकमनी चाची के पति शमशेर सिंह लंबे समय तक एक पुराने जागीरदार के यहाँ ‘केयरटेकर’ थे। तब उनका रुतबा देखते बनता था। वैसे तो काली टोपी पहनते थे, लेकिन कभी-कभी तुर्रेदार साफा बाँधते थे। कभी कोई खास मौका हो तो ‘बिरजिस’ (ब्रीचेज़) पहनते थे, साथ में चमचमाते जूते। तब उनकी मूँछें हमेशा ग्यारह बज कर पाँच बजाती थीं। फिर धीरे-धीरे जागीरदार साहब की खुद की मूँछें ढीली हो गयीं और ‘केयरटेकर’ साहब की मूँछें सवा नौ से घटते-घटते सात-पच्चीस पर आ गयीं। पुरानी यादों के नाम पर अलमारी में रखी धुँधली तस्वीरें ही रह गयी हैं, जिनमें शमशेर सिंह पुराने जागीरदार साहब के साथ विभिन्न मुद्राओं में दिखायी पड़ते हैं।
शमशेर सिंह अच्छे दिनों में घर में अपना रौब गालिब करने में लगे रहे। बड़े लोगों की संगत में उन्होंने बड़े लोगों की बहुत सी आदतें ग्रहण कर ली थीं। परिवार पर हुकुम चलाना वे अपना अधिकार समझते थे। उनका सोचना था कि उनकी उपस्थिति में परिवार में अदब और कायदे का वातावरण होना चाहिए और फालतू की चूँ- चपड़ नहीं होना चाहिए। परिवार के लोग उनके सामने भीगी बिल्ली बने रहें तो उन्हें बड़ा सुख मिलता था। रोज़ शाम को वे अकेले या किसी मित्र के साथ बोतल खोल कर बैठ जाते थे और उस वक्त घरवालों का सिर्फ यह कर्तव्य होता था कि वे गरज कर जिस चीज़ की फरमाइश करें वह तुरन्त हाज़िर कर दी जाए। अपनी दुनिया में मस्त रहने के कारण उन्होंने कभी बच्चों की पढ़ाई- लिखाई की तरफ ध्यान नहीं दिया। अब दिन पलटने के साथ उनका रौब भरभरा गया था। परिवार के द्वारा उपेक्षित वे अपने कोने में मौन बैठे हुक्का गुड़गुड़ाते रहते थे।
परिवार में अपनी ही चलाने वाले शमशेर सिंह ने सात संतानें पैदा की थीं। उन्हें इस बात का गर्व था कि इनमें से छः लड़के थे, बस एक पता नहीं कैसे लड़की हो गयी। पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान न देने के कारण सब छोटी मोटी नौकरियाँ या काम कर अपना गुज़र कर रहे थे। लेकिन शमशेर सिंह को इसका कोई मलाल नहीं था। उनका दृढ़ मत था कि सब अपना अपना प्रारब्ध लिखा कर लाते हैं और जो कुछ होता है प्रारब्ध के अनुसार होता है। उसमें कोई रत्ती भर फेरबदल नहीं कर सकता।
अब जैसे-जैसे सुषमा के बेटे की शादी की तारीख नज़दीक आती जाती है, रुकमनी चाची की धुकुर-पुकुर बढ़ती जाती है। क्या सचमुच नहीं बुलाएँगे? वे जानती हैं कि एस.पी. साहब उनके नाम पर मुँह बिचकाते हैं। कहते हैं, ‘शी इज़ ए वेरी टॉकेटिव लेडी।’ उनके बेटे भी रुकमनी चाची से कन्नी काटते हैं। कारण यह है कि वे कभी उनके घर जाती हैं तो दुनिया भर की रामायण लेकर बैठ जाती हैं। ऐसे लोगों के किस्से सुनाएँगीं जो मर-खप गये या जिन्हें कोई जानता नहीं। कोई रोग-दोष का ज़िक्र कर दे तो देसी नुस्खों से लेकर टोने-टोटके तक सब बता देंगीं। उनका टेप जो चालू होता है तो रुकने का नाम नहीं लेता। इसीलिए उनके पास बैठने वाले बिरले होते हैं। सब फटाफट पाँव छू कर दाहिने बायें हो जाते हैं। जो पाँव न छुए उसे रुकमनी चाची टेर कर बुलाती हैं और फिर पाँव आगे बढ़ा देती हैं।
रुकमनी चाची कई रिश्तेदारों को फोन करके पूछ चुकी हैं कि उनको निमंत्रन-पत्र मिला या नहीं। कोई कह देता है कि उसके पास भी नहीं पहुँचा तो उन्हें ढाढ़स हो जाता है। जब कोई बताता है कि उसके पास पहुँच गया तो उनका मन खिन्न हो जाता है। फिर बड़ी देर तक उनका मन किसी काम में नहीं लगता।
चैन नहीं पड़ता तो बेटों से पूछती हैं, ‘कहीं अरुन वरुन मिले क्या?’ अरुण वरुण सुषमा के बेटे हैं।
जवाब मिलता है, ‘नहीं मिले।’
चाची पूछती हैं, ‘कभी वहाँ जाना नहीं हुआ?’
बेटे कहते हैं, ‘किसलिए जाना है? वहाँ क्या काम?’
रुकमनी चाची चुप हो जाती हैं। बेटे सच कहते हैं। कोई और रिश्तेदार होता तो काम-धाम के लिए उन्हें बुला लेता, लेकिन एस.पी. साहब को आदमियों की क्या कमी? बिना बुलाये लोग दौड़ते फिर रहे होंगे।
रुकमनी चाची का मन मथता रहता है। ब्याह-शादी में नहीं जाएँगीं तो कैसे चलेगा? दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार जुटेंगे। सब का हालचाल मिलेगा। एक बार बिछुड़े तो पता नहीं दुबारा मिलना हो या न हो। उन जैसे बहुत से पके आम हैं। कब टपक जाएँ पता नहीं। एक आदमी आएगा तो उससे दस आदमियों की खबर मिलेगी। लोग यहाँ तक आएँ और उनसे भेंट न हो, यह तो बहुत गलत बात होगी। लेकिन यह सुसमा मरी निमंत्रन- पत्र नहीं भेजेगी तो कैसे जाएँगीं?
बेटे उनकी हालत देखकर चुटकी लेते हैं— ‘नहीं आया न निमंत्रन पत्र? सुसमा बिटिया के बड़े गुन गाती रहती थीं।’
रुकमनी चाची आहत होकर कहती हैं, ‘नहीं बुलाते तो न बुलाएँ। हमें क्या फरक पड़ता है? वे पैसे वाले हैं तो अपने घर में बैठे रहें। घर के सयानों को नहीं बुलाएँगे तो चार आदमी उन्हीं को कहेंगे।’
लेकिन जब शादी के तीन चार दिन ही बचे तो रुकमनी चाची का धीरज टूट गया। एक दिन चुपचाप रिक्शा करके सुषमा के घर पहुँच गयीं। अन्दर पहुँचीं तो सुषमा ने पाँव छुए। चाची उदासीनता का अभिनय करके बोलीं, ‘इधर बजार गयी थी। बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं था। सोचा हाल-चाल पूछ लें।’
सुषमा बोली, ‘मौसी, शादी में सब लोग आइएगा।’
रुकमनी चाची व्यंग्य से बोलीं, ‘आ जाएँगे। निमंत्रन तो मिला नहीं।’
सुषमा का मुँह उतर गया। उसने छोटे बेटे वरुण को आवाज़ दी। वरुण ने रुकमनी चाची को देखकर दाँतों में जीभ दबायी।
सुषमा ने पूछा, ‘मौसी का कार्ड नहीं पहुँचाया?’
वरुण बोला, ‘आठ दस कार्ड रह गये हैं। उधर जाना नहीं हुआ। आज पहुँच जाएँगे।’
चाची उम्मीद से उसकी तरफ देखकर बोलीं, ‘पक्का पहुँचाओगे या फिर भूल जाओगे?’
वरुण कान छू कर बोला, ‘आज पक्का। हंड्रेड परसेंट।’
रुकमनी चाची सुषमा से बोलीं, ‘मैं तो यहीं ले लेती, लेकिन घर में सब लोगों को अच्छा नहीं लगेगा।’
कार्ड पहुँचने का आश्वासन पाकर चाची खुश हो गयीं। चिन्ता मिट गयी। चलने लगीं तो एक बार फिर वरुण से बोलीं, ‘कितनी देर में आओगे?’
वरुण बोला, ‘आप चलिए। मैं पीछे-पीछे पहुँचता हूँ।’
रुकमनी चाची रिक्शे पर बैठ कर चल दीं। मन मगन था। अब वे कल्पना में डूबी थीं कि शादी में कौन-कौन मिलेगा और क्या-क्या बातें होंगी। बस एक चिन्ता उन्हें रह रह कर सता रही थी कि कहीं घर वालों को यह पता न लग जाए कि वे निमंत्रन-पत्र की जानकारी लेने सुषमा के घर पहुँची थीं।
Anonymous Litterateur of Social Media# 134 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 134)
Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.
Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.
In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.
Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.
हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 185☆ विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्
न चोरहार्यं न च राजहार्यं
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥
जिसे चोर चुरा नहीं सकता, राजा छीन नहीं सकता, भाई बांट नहीं सकता, जिसका किसी तरह का कोई अतिरिक्त भार अनुभव नहीं होता, व्यय करने पर जो नित्य बढ़ता है, ऐसा विद्या रूपी धन सभी प्रकार के धनों में श्रेष्ठ है।
विद्या-धन से समृद्ध होना अर्थात केवल काग़ज़ पर छपा पढ़कर रट्टू तोता बनना नहीं होता। विद्या-धन वह, जो जानकारी से होते हुए ज्ञान तक ले जाए। यदि विद्या यह यात्रा नहीं कराती तो साक्षर व्यक्ति भी अज्ञानी ही कहलाता है।
एक लोकप्रिय प्रसंग है। एक साक्षर विद्वान, यात्रा पर थे। उन दिनों पदयात्रा हुआ करती थी। मार्ग में उन्हें तीव्र प्यास लगी। वे समीप के गाँव में पहुँचे। एक महिला कुएँ पर पानी भर रही थी।
विद्वान ने महिला से पीने के लिए जल मांगा। महिला ने कहा, “जल तो मिल जाएगा परंतु मैंने आपको आज से पूर्व कभी गाँव में नहीं देखा। कृपा करके अपना परिचय दीजिए।” ग्रामीण महिला को अपना परिचय देना विद्वान को अपमानास्पद लगा। तथापि सूखते कंठ की विवशता थी। किसी तरह स्वयं को नियंत्रित रखते हुए कहा, “मैं अतिथि हूँ।” महिला हँस पड़ी। बोली, “अतिथि तो दो ही होते हैं, धन और यौवन।” विद्वान महोदय कुछ विस्मित हुए। तब भी साक्षरता का अहंकार झुकने को तैयार नहीं था। तनिक झुंझला कर बोले,”मैं सहनशील हूँ।”। महिला फिर हँसी। बोली, “संसार में सहनशील तो दो ही हैं। एक पृथ्वी माता जो सारे अत्याचार सहकर, सबका बोझ उठाकर भी अन्न देती है। दूसरा वृक्ष जो पत्थर की चोट खाकर भी फल देता है।”
विद्वान की झुंझलाहट और हठ दोनों ही बढ़ चले। इस बार कहा, “सुनो, मैं हठी हूँ।” महिला ने ठहाका लगाया। बोली, “जगत में हठी तो दो ही हैं, हमारे नाखून और बाल। कितना ही काटो, फिर-फिर बढ़ जाते हैं। इनके हठ के आगे अन्य सारे हठ तुच्छ हैं।” अंतत: विद्वान को अपनी लघुता की अनुभूति हुई। इस बार विनम्रता से कहा, “देवी सत्य कहूँ, मुझे लगता है कि साक्षरता के अहंकार में ज्ञान से मैं वंचित रहा। वास्तविक ज्ञानी तो आप हैं। अब मुझे अपना परिचय मिला है। वस्तुत: मैं अज्ञानी हूँ।” विद्वान को आश्चर्य हुआ कि महिला इस बार भी हँसी। कहा, “जगत में अज्ञानी दो ही हैं। ऐसा राजा या राजवंशी जो बिना किसी योग्यता के राज करना चाहता है। दूसरे वे दरबारी जो राजा के अनुचित निर्णय में भी उसे प्रसन्न रखने के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं।”
साक्षर अब ज्ञानमार्ग पर प्रशस्त हुआ। इस प्रसंग के पात्रों का उल्लेख अनेकदा महान कवि कालिदास और माँ सरस्वती के बीच संवाद के रूप में भी होता है।
प्रसंग नहीं, प्रसंग से प्राप्त प्रेरणा, प्रेरित होकर ज्ञानार्जन के पथ पर चलना महत्वपूर्ण है। ज्ञान का पथ अविराम है। ज्ञान का पथ ज्ञान की अकूत संपदा तक ले जाता है।
विद्या के सार्थक ग्रहण ओर समुचित क्रियान्वयन से उपजी ज्ञान की संपदा शाश्वत होती है। एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी, एक युग से अगले युग, उसके अगले युग तक, समय के आरंभ से समय के विराम तक बची रहती है ज्ञान की जननी विद्या। इसीलिए कहा गया है, ‘विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।’
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही
💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी।💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित “दोहा सलिला – मन के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 133 ☆
☆ दोहा सलिला – मन के दोहे… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)
☆ उत्तर प्रदेश पत्रिका का मन्नू भंडारी विशेषांक ☆
मन्नू भंडारी की याद किसे नहीं और कौन भूल सकता है इन्हें ? ‘रजनीगंधा’ फिल्म की याद है ? यह उन्हीं की कहानी पर आधारित थी । ‘रजनी’ जैसा लोकप्रिय धारावाहिक मन्नू भंडारी ने लिखा । ‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसे उपन्यास भी इनके खूब चर्चित रहे । ‘आपका बंटी’ उपन्यास प्रसिद्ध लेखक मोहन राकेश के जीवन पर आधारित है और वे भी कुछ न कह सके ! राजेंद्र यादव के साथ बरसों रहने के बाद जीवन के आखिरी दौर में अलग होने का साहस दिखाया । छह गज साड़ी और लाल बिंदी से दूर से ही पहचानी जाती थीं । बेटी रचना यादव ने आखिर अपनी मां पर स॔स्मरण लिखा – छह गज का अनंत विस्तार ! ये सब पढ़ने को मिलेगा उत्तर प्रदेश नामक पत्रिका में जिसका मन्नू भंडारी विशेषांक आया है । सुधा अरोड़ा जैसी वरिष्ठ कथाकार ने एक प्रकार से ठान लिया था कि यह विशेषांक बिना रचना यादव के संस्मरण के नहीं जायेगा । और वे सफल रहीं क्योंकि मौसी जो हैं रचना की ! सुधा अरोड़ा की कवितायें भी खूब है मन्नू भंडारी पर । दोनों कोलकाता से हैं लेकिन मज़ेदार बात कि कभी कोलकाता में नहीं मिलीं । दिल्ली में मिलीं । दोनों में जो प्रेम और समर्पण है वह आज लेखक बिरादरी में देखने को नहीं मिलता । वैसे इस अंक में ममता कालिया का संस्मरण भी बहुत खूबसूरत है- मन्नू भंडारी ने अपने शीर्ष रचनात्मक वर्षों में कमतर और कमज़ोर लेखिकाओं को अपने व्यक्तित्व और कृतित्व पर हावी होते देखा । कम दवा से कोई नहीं मरता, कम प्रेम से जरूर मर जाता है । यह बहुत बड़ा सच लिख दिया ममता कालिया ने ! सुधा अरोड़ा का संसमरण – मेरी डायरी के पन्नों में मन्नू दी भी बहुत शानदार है । यह अंक सचमुच पठनीय है । संग्रहणीय है । जिसने भी मुझे यह भेजा उसको दिल से आभार।
हिमालय मंच : हिमाचल की सीमाओं से बाहर तक फैले हैं कथाकार एस आर हरनोट । शिमला जब भी इन वर्षों में जाना हुआ, हरनोट से मुलाकात और विचार विमर्श जरूर हुआ । किताबों का आदान प्रदान भी । बुक कैफे के बंद होने पर भी खूब आंदोलन किया । वे हिमालय साहित्य मंच नाम से पिछले बारह वर्षों से जैसे एक आंदोलन ही चले रहे हैं । कभी रेल साहित्य यात्रा से तो कभी गेयटी थियेटर में तो कभी रोटरी हाॅल में ! कभी विनोद गुप्ता के साथ ! कुछ न कुछ क्रियेटिव करते रहते हैं । सचमुच आज हिंदी साहित्य को ऐसे एक्टिविस्ट चाहिएं जो न सिर्फ लिखें बल्कि नयी पीढ़ी को भी आगे बढ़ाने में सहयोग दें । हरनोट यह काम बहुत खूबसूरती से कर रहे हैं । शुभकामनाएं।
हरियाणा साहित्य व सांस्कृतिक अकादमी :डाॅ कुलदीप अग्निहोत्री को हरियाणा साहित्य व संस्कृतिक अकादमी का कार्यकारी उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है और उन्होंने कार्यभार भी संभाल लिया । वे इससे पहले केंद्रीय विद्यालय, धर्मशाला के कुलपति व पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं । पंजाब के नवांशहर के गांव मुकंदपुर के मूल निवासी डां अग्निहोत्री एक समाचार एजेंसी के प्रमुख भी रहे । पत्रकारिता और साहित्य से जुडे व्यक्तित्व । बधाई ।
भिवानी में नाटयोत्सव :मीरा कल्चरल सोसायटी की ओर से विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर तीन दिवसीय नाट्योत्सव आयोजित किया गया । तीनों दिन नाटक तो मंचित हूए और एक एक व्यक्तित्व को सम्मानित भी किया गया जिसमें खुशकिस्मती से मैं भी एक रहा और दूसरे रहे महेश वाशिष्ठ व जगबीर राठी । सोनू रोंझिया की कोशिश को सलाम । कोरोना के बाद यह आयोजन कर पाये और आगे जारी रखने की घोषणा की है । पार्क और रामसजीवनकी प्रेम कथा जैसे नाटक मंचित किये गये । खुद सोनू ने रामसजीवन की प्रेम कथा का निर्देशन किया । कुरूक्षेत्र के विकास शर्मा ने पहले दिन पार्क का मंचन किया । इस तरह हिसार के बाद भिवानी का नाटयोत्सव भी खूब चर्चा में है ।
राजगढ़ में लघुकथा सम्मेलन: राजस्थान के राजगढ़ जैसे छोटे से शहर में राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से दो दिवसीय राष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है । देश भर से सक्रिय लघुकथाकार आमंत्रित हैं । देखिये कैसा आयोजन होता है । फिलहाल तो शुभकामनायें !
साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “कई सुखनवर कहते हैं…”।)
ग़ज़ल # 70 – “कई सुखनवर कहते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’