English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 111 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 111 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 111) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 111 ?

☆☆☆☆☆

कितना सुहाना लगता है

तुम्हारे शहर का मौसम,

अगर इजाज़त हो तो

मैं एक शाम चुरा लूं…

How endearing is the

weather of your city,

If allowed, then I’d like

to steal an evening…

☆☆☆☆☆

आओ गले मिल कर

ये देखें कि…

अब हम में

कितनी दूरी है…

Come, let’s hug each other

and check…

How much of distance is

left between us…!

☆☆☆☆☆

कभी लफ्जों में ना तलाश

करना वजूद मेरा…

मैं उतना लिख नहीं पाता

जितना तुम्हें चाहता हूँ …!

Never look for my

existence in the words,

I cannot write as

much as I want you…!

☆☆☆☆☆

कभी लफ्जों में ना तलाश

करना वजूद मेरा…

मैं उतना लिख नहीं पाता

जितना तुम्हें चाहता हूँ …!

Never look for my

existence in the words,

I cannot write as

much as I want you…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 158 ☆ नर में नारायण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

आज की साधना (नवरात्र साधना)

इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे।

अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे।

मंगल भव। 💥

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

पुनर्पाठ 🙏🏻

☆  संजय उवाच # 158 ☆ नर में नारायण ☆?

कई वर्ष पुरानी घटना है। शहर में खाद्यपदार्थों की प्रसिद्ध दुकान से कुछ पदार्थ बड़ी मात्रा में खरीदने थे‌। संभवत: कोई आयोजन रहा होगा। सुबह जल्दी वहाँ पहुँचा। दुकान खुलने में अभी कुछ समय बाकी था। समय बिताने की दृष्टि से टहलते हुए मैं दुकान के पिछवाड़े की ओर निकल गया। देखता हूँ कि वहाँ फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की लंबी कतार लगी हुई है। लगभग 30-40 बच्चे होंगे। कुछ समय बाद दुकान का पिछला दरवाज़ा खुला। खुद सेठ जी दरवाज़े पर खड़े थे। हर बच्चे को उन्होंने खाद्य पदार्थ का एक पैकेट देना आरंभ किया। मुश्किल से 10 मिनट में सारी प्रक्रिया हो गई। पीछे का दरवाज़ा बंद हुआ और आगे का शटर ग्राहकों के लिए खुल गया।

मालूम हुआ कि वर्षों से इस दुकान की यही परंपरा है। दुकान खोलने से पहले सुबह बने ताज़ा पदार्थों के छोटे-छोटे पैक बनाकर निर्धन बच्चों के बीच वितरित किए जाते हैं।

सेठ जी की यह साक्षात पूजा भीतर तक प्रभावित कर गई।

अथर्ववेद कहता है,

।।ॐ।। यो भूतं च भव्‍य च सर्व यश्‍चाधि‍ति‍ष्‍ठति‍।।
स्‍वर्यस्‍य च केवलं तस्‍मै ज्‍येष्‍ठाय ब्रह्मणे नम:।।

-(अथर्ववेद 10-8-1)

अर्थात जो भूत, भवि‍ष्‍य और सब में व्‍याप्त है, जो दि‍व्‍यलोक का भी अधि‍ष्‍ठाता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को प्रणाम है।

योगेश्वर का स्पष्ट उद्घोष है-

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।

(श्रीमद्भगवद्गीता-6.30)

अर्थात जो सबमें मुझे देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।

वस्तुत: हरेक की श्वास में ठाकुर जी का वास है। इस वास को जिसने जान और समझ लिया, वह दुकान का सेठजी हो गया।

… नर में नारायण देखने, जानने-समझ सकने का सामर्थ्य ईश्वर हरेक को दें।…तथास्तु!

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी   ☆  ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 110 ☆ ॐ – शारद स्तुति… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित ॐ – शारद स्तुति…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 110 ☆ 

☆ ॐ – शारद स्तुति… ☆

माँ शारदे!

भव-तार दे।

 

संतान को

नित प्यार दे।

 

हर कर अहं

उद्धार दे।

 

सिर हाथ धर

रिपु छार दे।

 

निज छाँव में

आगार दे।

 

पग-रज मुझे

उपहार दे।

 

आखर सिखा

आचार दे।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२५-९-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #142 ☆ मैं गंगा मां हूं – समाधि का वटवृक्ष ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 142 ☆

☆ ‌एक आत्म कथा – मैं गंगा मां हूं ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

हां हां पहचाना मुझे! मैं गंगा मां हूं।

मैं गंगा मां ही बोल रही हूं, क्या सुनाई दे रही है तुम्हें मेरी आवाज़?

मैं गंगा के किनारे पूर्णिमा के दिन रात्रि बेला में धवल चांदनी से युक्त निस्तब्ध  वातावरण में गंगा घाट पर अपनी ही धुन में खोया हुआ बैठा था, गंगा में चलने वाली नावों के चप्पुओं की गंगा जल में छप छप करती लहरों से अठखेलियां करती  आवाजों तथा गंगा की धाराओं से निकलने वाली कल-कल ध्वनियों में खोया हुआ था कि सहसा किसी नाव पर रखे रेडियो पर आकाशवाणी विविध भारती से बजने वाले गीत ने मेरा ध्यान आकर्षित किया————

*मानो तो मैं गंगा मां हूं,ना मानो तो बहता पानी*

और ये गीत मेरे मन की अतल गहराइयों में उतरता चला गया और उस चांदनी रात की धवल  जल धारा से एक आकृति प्रकट होती हुई जान पड़ी जो शायद उस मां गंगा की आत्मा थी। और अपने पुत्र भीष्म पितामह की तरह मुझसे  भी संवाद करने के लिए व्यग्र दिखाई दे रही थी। उनके चेहरे पर चिंता और विषाद की अनगिनत रेखाएं झलक रही थी। उनके दिल में जमाने भर का दर्द समाया हुआ था। जो बातों बातों में दिखा भी।

फर्क सिर्फ इतना था कि महाभारत कालीन भीष्म अपने हृदय की पीड़ा मां गंगा से कहते थे, लेकिन आज  मां गंगा स्वयं अपने धर्मपुत्र यानि मुझ लेखक सेअपने हृदय की पीड़ा व्यक्त करने को आतुर दिखी थी। वे मुझे ही संबोधित करते हुए बोल पड़ी थी।

लो सुन लो तुम भी मेरी व्यथा कथा,ताकि मेरे हृदय का बोझ थोडा़ सा हल्का हो जाय।

हां अगर तुम मानो तो मैं गंगा मां हूं, ना मानो तो बहता हुआ पानी हूं।

लेकिन मेरा दोनों ही रूप जनकल्याणकारी है। यदि मैं एक मां के रूप में आस्थावान लोगों से पूजित हो लोगों को अपनी ममता  प्यार  और दुलार देकर तारती हूं, औरउनके द्वारा पूजित हूं तो , नास्तिक लोगों के अनुसार बहते हुए जलधारा के रूप में इस मानव समुदाय को पीने के लिए शुद्ध जल  अन्न फूल फल भी उपलब्ध कराती रही हूं। इस तरह मेरा दोनों रूप लोक-मंगल कारी था।

 यूं तो मेरा जन्म पौराणिक कथाओं की मान्यता के अनुसार भगवान श्री हरी के चरणोदक से हुआ है। लेकिन रही मैं युगों-युगों तक ब्रह्मा जी के कमंडल में ही। उन्हीं दिनों परमपिता ब्रह्मा ने राजा भगीरथ के भगीरथ प्रयत्न से प्रसन्न होकर मुझे उनके पूर्वजों के तारने का लक्ष्य लेकर ब्रह्म लोक से अपने कमंडल से मुक्त कर दिया। जब प्रबल वेग से हर-हर करती पृथ्वी की तरफ चली तो सारी सृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई। प्रलय का दृश्य उपस्थित हो गया था।मेरा वेग रोकने की क्षमता सृष्टि के किसी प्राणी में नहीं थी। इसी लिए घबरा कर राजा भगीरथ एक बार  भगवान शिव की  शरण में चले गए, उस समय भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न हो मुझे अपनी जटाओं में उलझा लिया था। तथा राजा भगीरथ के आग्रह पर कुछ अंशों में मुझे मुक्त कर दिया था। मैं गोमुख से प्रकट हो गंगोत्री से होती हुई  उनके पुरखों (राजा सगर की) संततियों को तारने हेतु भगीरथ के पीछे पीछे चल पड़ी थी। और उनका तारन हार बनी  ऐसा पुराणों का मत है तथा इतिहास की गवाही।

उसके बाद से  अब तक मैंने  अच्छे-बुरे बहुत समय देखें, मैंने लोगों का श्रद्धा विश्वास और भरोसे से भरा हृदय देखा मैंने देखा कि किस प्रकार लोग अपना इहलोक और परलोक संवारने हेतु मुझमें  गोते लगाते और मेरा पावन जल पात्रों में भर कर देवताओं का अभिषेक तथा आचमन करने हेतु ले जाते थे। एक विश्वास ही उनके भीतर था, जो उन्हें अपने परिजनों के चिता की राख  को उनके तारण हेतु मुझमें प्रवाहित करने हेतु विवश करता था। लेकिन आज़ मैं विवश हूं। मुझे अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जीवन और मृत्यु की जद्दोजहद में इस आशा विश्वास और भरोसे के साथ जी रही हूं कि भविष्य में शायद इस मानव कुल में कोई महामानव भगीरथ बन पैदा हो और मेरा पूर्वकालिक स्वरूप वापस देकर मुझे नवजीवन दे दे। आज मैं मानवीय अत्याचारों से दुखी अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रही हूं।

मुझे खुद के भीतर की गंदगी और खुद का घिनौना रूप देख खुद से घृणा  तथा उबकाई आने लगी है। और इस सबका जिम्मेदार सामूहिक रूप से तुम्हारा मानव समाज ही  है।  कोई समय था जब मैं गोमुख से  अपनी धवलधार संग राजा भगीरथ के पीछे पीछे जड़ी बूटियों का सत  लेकर मंथर गति से चलती हुई मैदानी इलाकों से गुजर कर सागर से जा मिली थी और गंगासागर तीर्थ बन गई थी।उस समय हमारा मिलन देख देवता अति प्रसन्न हुए थे। तथा सागर ने अपनी बाहें पसार कर अपनी उत्ताल तरंगों से मेरा स्वागत किया था।अपनी उत्ताल तरंगों तथा मेरी कल कर की ध्वनि  सुनकर सागर भी सम्मोहित हो गया था तथा मेरे साथ छाई छप्पा  खेलते हुए एक दूसरे में समाहित हो मैंने अपना अस्तित्व गंवा दिया था और सागर बन बैठी थी।

 उस यात्रा के दौरान अनेक ऐसे संयोग बने जब अनेकों नद नाले आकर मुझमें समा गए। तब मुझे ऐसा लगता जैसे वे अपने पावन  जल से मेरा अभिषेक करना चाह रहे हों। लेकिन अब मैं क्या करूं, किसके पास जांऊ अपनी फरियाद लेकर। कौन है जो सुनेगा मेरी पीड़ा ,  क्यौ कि अब तो मेरे पुत्रों की आने वाली पिढियां गूंगी बहरी तथा  पाषाण हृदय पैदा हो रही है। उनका हृदय भी भावशून्य है। अब उन सबको मेरा यह बिगड़ा स्वरूप भी आंदोलित नहीं करता। लोगों ने जगह जगह बांध बना मेरी जीवन रेखा की जलधारा को छीन लिया। मुझमें गन्दे नाले का मल जल तथा औद्योगिक अपशिष्ट बहा कर  जिम्मेदार लोगों ने अवैध धन उगाही की मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। और मेरी सफाई के नाम पर  भ्रष्टाचार की एक नई अंतर्धारा बहा दी। मेरे सफाई के नाम पर अरबों खरबों लुटाए गए फिर भी मैं साफ नहीं हुई। क्योंकि मेरी सफाई के लिए जिस दृढ़ इक्षाशक्ति और इमानदार प्रयास की जरूरत थी वो नहीं हुआ उसके साथ ही अपनी मुक्ति का सपना संजोए मेरे पास आने वाली तुम्हारी पीढ़ियों के लोगों ने भी आस्था के नाम पर मुझे गंदा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मुझे लगता है कि लगभग सवा अरब की आबादी वाली सारी औलादें नाकारा हो गई है।

मैं तो सदियों सदियों से चिताओं की राख  लेकर लोगों को मोक्ष देती रही तथा श्रद्धा से समर्पित फूल मालाओं की डलियां लेती रही लेकिन कभी भी इतनी गन्दी नहीं थी।

आखिर इस देश के नीति-नियंताओं के समझ में यह साधारण सी बात कब आएगी?, मेरी गंदगी का कारणबने नालों कचरे कब रोके जाएंगे? 

मेरी  जीवनजलधारा  को अनवरत जलप्रवाह कब प्राप्त होगा?

यदि मेरी जल धारा को मुक्त कर दिया जाए तथा नालों की गंदगी रोक दी जाए तो मेरी सफाई की जरूरत ही न पड़े।

तुम सब याद रखना यदि मेरी जलधारा मुक्त नहीं हुई तुम सबका राजनैतिक शह मात का खेल चलता रहा तो मैं तो एक दिन  अकालमृत्यु मरूंगी ही मेरी अंतरात्मा के अभिशाप  से तुम्हारी पीढ़ियां भी जल के अभाव में छटपटाते बिलबिलाते हुए मरेंगी। और मैं अतीत के इतिहास में दफन हो कर कालखंड के इतिहास का पन्ना बन कर रह जाउंगी। फिर तुम्हारी पिढियां मेरी मौत पर मातम मनाने का तमाशा करती दिखेंगी।

अब भी चेत जाओ ,हो सके तो मुझे जीवन देकर मौत से अपनी सुरक्षा कर लो। इस प्रकार संवाद करते हुए मां गंगा के चेहरे पर  आक्रोश छलकने  लगा कि सहसा गंगा घाट पर चलने वाले  प्रवचन पंडाल से यह ध्वनि सुनाई पड़ी——

जिय बिनु देह नदी बिनु बारी।

तैसई नाथ पुरुष बिनु नारी।।

जो जीवन के यथार्थ समझा गई थी।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #159 – 45 – “ज़िंदगी हसीन है ग़र…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ज़िंदगी हसीन है ग़र …”)

? ग़ज़ल # 45 – “ज़िंदगी हसीन है ग़र…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

ऐ-आदम तुमने अहल-ए-जहाँ में क्या-क्या देखा है,

ग़रीब अलमस्त मालदारों को बेवजह रोते देखा है।

काग़ज़ी है पैरहन तुम्हारा तराशा हुआ संदल बदन,

अच्छे-अच्छों नामचीनों को ज़मींदोज़ होते देखा है।

दिल में धड़कन है साँसों के आमद-ओ-सुद तक,

महामारी में लाखों की साँसों को घुटते देखा है।

देखो,बीमारी फैली है लोगों के मिलने-जुलने से,

कुम्भ मेले में लाखों भक्तों को उमड़ते देखा है।

आदमी को सिखाते रहे कि दो गज दूरी है ज़रूरी,

उन्ही को लाखों की रैली में नाक रगड़ते देखा है।

एक-एक साँस के हिसाब को तरसता है आदमी,

बेशुमार घने जंगलों की दौलत को लुटते देखा है।

कभी सुना था यहाँ ईमान व्यापार की कुंजी है,

अस्पतालों में दवाइयों का कालाबाज़ार देखा है।

बेशुमार माल-ओ-असबाब जमा करते लोग जहाँ में,

सिकंदर को दुनिया से ख़ाली हाथ रूखसत देखा है।

ज़िंदगी हसीन है ग़र अपने से हटकर सोच सको,

ख़ुदगर्ज़ नाख़ुदा को नाव सहित गर्क होते देखा है।

सुनो यार, होते होंगे सियासतदाँ बेशुमार ताकतवर

अटल इरादों को ‘आतिश’ एक वोट माँगते देखा है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 36 ☆ मुक्तक ।।मिट्टी का बदन और साँसें उधार की हैं।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।मिट्टी का बदन और साँसें उधार की हैं।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 36 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। मिट्टी का बदन और साँसें उधार की हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

मिट्टी   का   बदन   और   साँसे उधार   की    हैं।

जाने घमंड किस चीज़  का   बात विचार की है।।

आदमी बस इक  मेहमान  होता   कुछ दिन का।

नहीं उसकी हैसियत यहाँ पर जमींदार की   है।।

[2]

जिन्दगी  हमें  हर    मोड़    पर रोज़  आज़माती   है।

कुछ नया रोज़ हमें  बतलाती और   सिखलाती  है।।

सुनते नहीं हम बातअंतरात्मा की अपने ही स्वार्थ में।

ईश्वरीय  शक्तियाँ   भी  हमें   यह बात  जतलाती हैं।।

[3]

उम्मीद की ऊर्जा से अंधेरें   में भी रोशनी कर सकते हैं।

भीतर के उजाले से   हम  मन मस्तिष्क भर  सकते हैं।।

जो  कुछ  करते  हम  दूसरों    के   लिये   दुनिया      में।

उसी सरोकार से ही   हर   दर्द पर  हम लड़ सकते हैं।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 102 ☆’’…चलो माँ के दर्शन करें…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “.. चलो माँ के दर्शन करें…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा 102 ☆ गीत – “.. चलो माँ के दर्शन करें” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

आया नवरात्रि का त्यौहार, चलो माँ के दर्शन करें

अंबे मां का लगा है दरबार, चलो माँ के दर्शन करें

 

माता के दरसन है पावन सुहावन

नैनों से झरता है करुणा का सावन

भक्तों की माँ ही आधार,

चलो माँ के दर्शन करें

 

माता के मंदिर की शोभा निराली

उड़ती ध्वजा लाल मन हरने वाली

खुला सबके लिये मां का द्वार,

चलो माँ के दर्शन करें

 

मंदिर में जलती सुहानी वो जोती

जो मन के सब मैल किरणो से धोती

माता सुनती हैं सबकी पुकार

चलो मां के दर्शन करें

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 109 – एक अच्छा मनुष्य बनाइएगा ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #109 🌻 एक अच्छा मनुष्य बनाइएगा 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

मैं बिस्तर पर से उठा,अचानक छाती में दर्द होने लगा मुझे… हार्ट की तकलीफ तो नहीं है. ..? ऐसे विचारों के साथ. ..मैं आगे वाले बैठक के कमरे में गया…मैंने नज़र की…कि मेरा परिवार मोबाइल में व्यस्त था…

मैंने … पत्नी को देखकर कहा…काव्या थोड़ा छाती में रोज से आज ज़्यादा दु:ख रहा है…डाक्टर को बताकर आता हूँ . ..

हां, मगर संभलकर जाना…काम हो तो फोन करना  मोबाइल में देखते देखते ही काव्या बोली…

मैं… एक्टिवा की चाबी लेकर पार्किंग में पहुँचा … पसीना,मुझे बहुत आ रहा था…एक्टिवा स्टार्ट नहीं हो रहा था…

ऐसे वक्त्त… हमारे घर का काम करने वाला ध्रुव सायकल लेकर आया… सायकल को ताला मारते ही उसे मैंने मेरे सामने खड़ा देखा…

क्यों साब? एक्टिवा चालू नहीं हो रहा है…मैंने कहा नहीं…

आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती साब… इतना पसीना क्यों आया है ?

साब… स्कूटर को किक इस हालत में नहीं मारते….मैं किक मारके चालू कर देता हूँ …ध्रुव ने एक ही किक मारकर एक्टिवा चालू कर दिया, साथ ही पूछा..साब अकेले जा रहे हो

मैंने कहा… हां

ऐसी हालत में अकेले नहीं जाते…चलिए मेरे पीछे बैठ जाइए…मैंने कहा तुम्हें एक्टिवा चलाना आता है? साब… गाड़ी का भी लाइसेंस है, चिंता  छोड़कर बैठ जाओ…

पास ही एक अस्पताल में हम पहुँचे, ध्रुव दौड़कर अंदर गया, और व्हील चेयर लेकर बाहर आया…

साब… अब चलना नहीं, इस कुर्सी पर बैठ जाओ..

ध्रुव के मोबाइल पर लगातार घंटियां बजती रही…मैं समझ गया था… फ्लैट में से सबके फोन आते होंगे..कि अब तक क्यों नहीं आया? ध्रुव ने आखिर थक कर किसी को कह दिया कि… आज नहीँ आ सकता….

ध्रुव डाक्टर के जैसे ही व्यवहार कर रहा था…उसे बगैर पूछे मालूम हो गया था कि, साब को हार्ट की तकलीफ हो रही है… लिफ्ट में से व्हील चेयर ICU कि तरफ लेकर गया….

डाक्टरों की टीम तो तैयार ही थी… मेरी तकलीफ सुनकर… सब टेस्ट शीघ्र ही किये… डाक्टर ने कहा, आप समय पर पहुँच गए हो….इस में भी आपने व्हील चेयर का उपयोग किया…वह आपके लिए बहुत फायदेमंद रहा…

अब… कोई भी प्रकार की राह देखना… वह आपके लिए हानिकारक होगी…इसलिए बिना देर किए हमें हार्ट का ऑपरेशन करके आपके ब्लोकेज जल्द ही दूर करने होंगे…इस फार्म पर आप के स्वजन के हस्ताक्षर की ज़रूरत है…डाक्टर ने ध्रुव को सामने देखा…

मैंने कहा, बेटे, दस्तखत करने आते है? साब इतनी बड़ी जवाबदारी मुझ पर न रखो…

बेटे… तुम्हारी कोई जवाबदारी नहीं है… तुम्हारे साथ भले ही लहू का संबंध नहीं है… फिर भी बगैर कहे तुमने तुम्हारी जवाबदारी पूरी की, वह जवाबदारी हकीकत में मेरे परिवार की थी…एक और जवाबदारी पूरी कर दो बेटा, मैं नीचे लिखकर सही करके लिख दूंगा कि मुझे कुछ भी होगा तो जवाबदारी मेरी है, ध्रुव ने सिर्फ मेरे कहने पर ही हस्ताक्षर  किये हैं, बस अब. ..

और हां, घर फोन लगा कर खबर कर दो…

बस, उसी समय मेरे सामने, मेरी पत्नी काव्या का मोबाइल ध्रुव के मोबाइल पर आया. वह शांति से काव्या को सुनने लगा…

थोड़ी देर के बाद ध्रुव बोला, मैडम, आपको पगार काटने का हो तो काटना, निकालने का हो तो निकाल दो, मगर अभी अस्पताल ऑपरेशन शुरु होने के पहले पहुँच जाओ। हां मैडम, मैं साब को अस्पताल लेकर आया हूँ। डाक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी कर ली है, और राह देखने की कोई जरूरत नहीं है…

मैंने कहा, बेटा घर से फोन था…?

हाँ साब.

मैंने मन में सोचा, काव्या तुम किसकी पगार काटने की बात कर रही है, और किस को निकालने की बात कर रही हो? आँखों में आंसू के साथ ध्रुव के कंधे पर हाथ रख कर, मैं बोला, बेटा चिंता नहीं करते।।

मैं एक संस्था में सेवाएं देता हूं, वे बुज़ुर्ग लोगों को सहारा देते हैं, वहां तुम जैसे ही व्यक्तियों की ज़रूरत है।

तुम्हारा काम बरतन कपड़े धोने का नहीं है, तुम्हारा काम तो समाज सेवा का है… बेटा… पगार मिलेगा, इसलिए चिंता ना करना।

ऑपरेशन बाद, मैं होश में आया… मेरे सामने मेरा पूरा परिवार नतमस्तक खड़ा था, मैं आँखों में आंसू के साथ बोला, ध्रुव कहाँ है?

काव्या बोली-: वो अभी ही छुट्टी लेकर गांव गया, कहता था, उसके पिताजी हार्ट अटैक में गुज़र गऐ है… 15 दिन के बाद फिर से आयेगा।

अब मुझे समझ में आया कि उसको मेरे में उसका बाप दिखता होगा…

हे प्रभु, मुझे बचाकर आपने उसके बाप को उठा लिया!

पूरा परिवार हाथ जोड़कर, मूक नतमस्तक माफी मांग रहा था…

एक मोबाइल की लत (व्यसन)…अपने व्यक्ति को अपने दिल से कितना दूर लेकर जाता है… वह परिवार देख रहा था….यही नहीं मोबाइल आज घर घर कलह का कारण भी बन गया है

डाक्टर ने आकर कहा, सब से पहले यह बताइए ध्रुव भाई आप के क्या लगते?

मैंने कहा डाक्टर साहब, कुछ संबंधों के नाम या गहराई तक न जाएं तो ही बेहतर होगा उससे संबंध की गरिमा बनी रहेगी।

बस मैं इतना ही कहूंगा कि, वो आपात स्थिति में मेरे लिए फरिश्ता बन कर आया था!

पिन्टू बोला :- हमको माफ करो पप्पा… जो फर्ज़ हमारा था, वह ध्रुव ने पूरा किया, वह हमारे लिए शर्मजनक है, अब से ऐसी भूल भविष्य में कभी भी नहीं होगी. ..

बेटा, जवाबदारी और नसीहत (सलाह) लोगों को देने के लिए ही होती है…

जब लेने की घड़ी आये, तब लोग ऊपर नीचे (या बग़ल झाकते है) हो जातें है।

अब रही मोबाइल की बात…

बेटे, एक निर्जीव खिलोने ने, जीवित खिलोने को गुलाम कर दिया है, समय आ गया है, कि उसका मर्यादित उपयोग करना है।

नहीं तो…. परिवार, समाज और राष्ट्र को उसके गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे और उसकी कीमत चुकाने को तैयार रहना पड़ेगा।

बेटे और बेटियों को बड़ा अधिकारी या व्यापारी बंनाने की जगह एक अच्छा मनुष्य बनाइएगा।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 अक्टूबर से 9 अक्टूबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (3 अक्टूबर से 9 अक्टूबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम आप सभी को नवरात्रि, बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार विजयदशमी  और शरद पूर्णिमा की ढेर सारी बधाई। मां शारदा से प्रार्थना है कि वे निरंतर आप सभी का कल्याण करें।

मैं हूं पंडित अनिल पाण्डेय और अब आपके सामने है  3 अक्टूबर से 9 अक्टूबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के अश्वनी शुक्ल पक्ष की अष्टमी से अश्वनी शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक के सप्ताह का साप्ताहिक राशिफल

इस सप्ताह के आरंभ में चंद्रमा धनु राशि का रहेगा। उसके उपरांत मकर और कुंभ से गोचर करता हुआ 8 अक्टूबर को दिन के 11:44 से मीन राशि में प्रवेश करेगा। इस सप्ताह सूर्य शुक्र और बुध कन्या राशि में रहेंगे, मंगल मेष राशि में, गुरु,शनि और राहु  क्रमशः मीन मकर और मेष राशि में वक्री रहेंगे। आइए अब हम राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह  आपके संतान की उन्नति संभव है। भाग्य आपका साथ देगा। दुर्घटना हो सकती है। कृपया  सावधान रहें। शत्रु परास्त होंगे। इस सप्ताह आपके लिए 4 और 5 अक्टूबर फलदायक हैं। 8 और 9 अक्टूबर को आप बहुत कम कार्यों में सफल रहेंगे। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिदेव की शनिवार को पूजा करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके संतान का प्रमोशन संभव है। धन की मात्रा बढ़ेगी। व्यापार में उन्नति होगी। सुख सामग्री में वृद्धि होगी। आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। भाग्य कम साथ देगा।।  इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 अक्टूबर उत्तम है। 6 और 7 अक्टूबर को आप के अधिकांश कार्य सफल रहेंगे। इसके विपरीत 3 अक्टूबर को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

आपके सुख में वृद्धि होगी। माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा।  अगर आप कोई बड़ा व्यापार प्लान कर रहे हैं तो उसको प्रारंभ भी कर सकते हैं। अगर आप कर्मचारी या अधिकारी हैं तो आपका समय ठीक है कचहरी के कार्यों में आप सफल नहीं रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 3 अक्टूबर और 8 तथा 9 अक्टूबर श्रेष्ठ है। 4 और 5 अक्टूबर को आप कई कार्यों में और असफल होंगे। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गुरुवार को भगवान राम या कृष्ण के मंदिर में जाकर पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

आपका अपने भाइयों और बहनों से संबंध में अच्छे रहेंगे। भाग्य ठीक-ठाक है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। धन आने का  मामूली योग है। आपको चाहिए कि आप अपने वाणी पर नियंत्रण रखें। जिससे आपका अपने अधिकारी से लड़ाई ना हो। इस सप्ताह आपके लिए 4 और 5 अक्टूबर शुभ और मंगलकारी हैं। 3 अक्टूबर 6 अक्टूबर और 7 अक्टूबर को आपको कोई भी कार्य सचेत होकर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार को हनुमान जी का दर्शन और पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का उत्तम योग है। व्यापार  मैं वृद्धि होगी। नए शत्रु बनेंगे। भाग्य के स्थान पर परिश्रम पर विश्वास करें। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा परंतु पिताजी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 अक्टूबर आनंद वर्धक है। इस सप्ताह आपको कोई भी कार्य सावधान होकर ही करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंध में वृद्धि होगी। आपके व्यापार में वृद्धि हो सकती है। भाइयों से संबंध अच्छा रहेगा। कचहरी में विजय प्राप्त होगी। सुख में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 3 अक्टूबर तथा 8 और 9 अक्टूबर लाभदायक हैं। 6 और 7 अक्टूबर को आपको सावधान रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह कचहरी के कार्यों में आपको अद्भुत रूप से सफलता प्राप्त होगी। अगर आपके ऊपर कर्ज है तो कृपया प्रयास करें। कर्जे से मुक्ति संभव है। वाहन चलाते समय सावधान रहें। धन आ सकता है। भाइयों से संबंध अच्छा रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 4 और 5 अक्टूबर लाभदायक हैं। 8 और 9 अक्टूबर को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। व्यापार उत्तम चलेगा।। पत्नी को पीड़ा हो सकती है। आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। बच्चों से संबंध ठीक रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 अक्टूबर मंगल दायक हैं। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह घर की बनी पहली रोटी गौमाता को दें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। आप के सम्मान में वृद्धि होगी। अगर आप व्यापारी हैं तो आपका व्यापार अच्छा चलेगा। अधिकारियों से आपके संबंध अच्छे रहेंगे। संतान से संबंध थोड़ा खराब हो सकते हैं। मुकदमे में आपको सफलता मिल सकती है। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। भाग्य आपका सामान्य है। इस सप्ताह आपके लिए 3 अक्टूबर तथा 8 और 9 अक्टूबर उत्तम फलदायक है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह माताजी के स्वास्थ्य के लिए गुरुवार को भगवान राम या कृष्ण के मंदिर में जाकर पूजन करें तथा पूरे सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें। आपको यह कार्य पूरे वर्ष करना चाहिए। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका अच्छा है। आपके जो भी कार्य लंबित हैं उनको करने का प्रयास करें। भाग्य आपकी मदद करेगा। आपका व्यापार भी बढ़ेगा। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। कर्ज से आप की मुक्ति हो सकती है। धन आने का सामान्य योग है। इस सप्ताह आपके लिए 4 और 5 अक्टूबर सफलता दायक हैं। 3 अक्टूबर को  आपको कई कार्यों में असफलता प्राप्त हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप रूद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो कार्यालय में आपका अच्छा प्रभाव रहेगा। गलत रास्ते से धन आने का योग है। भाग्य ठीक है। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 अक्टूबर उत्तम और लाभप्रद है। 6 और 7 अक्टूबर को आप अधिकांश कार्यों में सफल रहेंगे। इसलिए आपको चाहिए कि जो कार्य नहीं हो रहे हैं उनको 6 और 7 अक्टूबर को करने का प्रयास करें। 4 और 5 अक्टूबर को आप कई कार्यों में असफल हो सकते हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रात काल स्नान करने के उपरांत सूर्य भगवान को लाल पुष्प और अक्षत के साथ में जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

मीन राशि के  जिन जातकों का अभी विवाह नहीं हुआ है उनके विवाह का उत्तम योग है। अच्छे-अच्छे प्रस्ताव आएंगे। भाइयों बहनों से तनाव हो सकता है। धन प्राप्त होने में बाधा आएगी। जीवनसाथी को कई सफलताएं मिल सकती हैं। व्यापार उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 3 अक्टूबर तथा 8 और 9 अक्टूबर सफलता के दिन है। 6 और 7 अक्टूबर को आपको संभल कर रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

राजनिति अनिश्चितता ओं का खेल है। अगर आपको इस संबंध में कोई भविष्यवाणी जानना है तो आप मेरे व्हाट्सएप  फोन नंबर  89595 94400 पर लिखकर व्हाट्सएप कर सकते हैं।  हम परिणाम बताने का प्रयास करेंगे।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 122 – बाळ गीत – कडाक्याची थंडी ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 122 – बाळ गीत – कडाक्याची थंडी ☆

थंडी पडली  कडाक्याची

हुडहुडी भरली कायमची।।धृ।।

 

आलारामचा बाई नसता धाक।

सर्दीने लालेलाल झाले नाक।

संधी नामी शाळा बुडवायची ।।१।।

 

सुंठ मिर्याचा गरम गरम चहा।

गोडगोड शिर्याची चव वाहा!

आईला चुकवून खेळायची।।२।

 

छानछान स्वेटर टोपी मऊ।

बाबाही सारखेच आणती खाऊ।

आजीही छान छान थोपटायची।।३।।

 

शेकोटी शेकण्याची मजाच भारी।

अणंात जमून शेकतात सारी।

खूप खूप धमाल करायाची।।४।।

 

दादाला मुळीच नाही हो अक्कल।

गोळ्या खान्याची लढवली शक्कल।

सारी मजाच घालवली थंडीची।।५।। ं

 

ताई म्हणाली दवाखान्यात जाऊ।

डॉक्टर कडून तपासून घेऊ।

वाटच पकडली मी शाळेची ।।६।।

 

नकोच शाळा बुडवायची….।

हूडहुडी भरली कायमची,…..।  

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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