हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 268 ☆ व्यंग्य – तलाश बकरों की ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – ‘तलाश बकरों की’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 268 ☆

☆ व्यंग्य ☆ तलाश बकरों की

सरकार के सब विभागों ने ज़ोर-शोर से विज्ञापन निकाले हैं। विज्ञापन बकरों के लिए है, ऐसे लोगों के लिए जो हर विभाग में किसी बड़े लफड़े के लिए ज़िम्मेदारी लेंगे। दे विल टेक द ब्लेम फ़ाॅर एवरी बिग स्कैम ऑर मिसडूइंग।

दरअसल कई दिनों से विभागों में यह चर्चा चल रही थी कि सरकारी विभागों में कोई न कोई लफड़ा, कोई न कोई भ्रष्टाचार होता ही रहता है, जिससे बच पाना बहुत मुश्किल है। कौटिल्य के शब्द अक्सर दुहराए जाते रहे कि ‘जैसे जीभ पर रखा रस इच्छा हो या न हो, चखने में आ ही जाता है, इसी प्रकार राज्य के आर्थिक कार्यों में नियुक्त अधिकारी, इच्छा हो या न हो, राजकोष का कुछ न कुछ तो अपहरण करते ही हैं।’ आर्थिक भ्रष्टाचार के अलावा रेल दुर्घटनाएं, पुलों का ध्वस्त होना, परीक्षा- पेपर लीकेज जैसी घटनाएं होती हैं जिससे मंत्री-अफसर संकट में पड़ते हैं और ज़िम्मेदारी थोपने के लिए बकरे की तलाश की जाती है।

यह बात भी चलती थी कि जब लफड़ा  उजागर होता है तो आखिरी छोर पर बैठे सबसे जूनियर और सबसे निर्बल कर्मचारी के ऊपर ठीकरा फोड़ दिया जाता है और ऊपर के लोग चैन की सांस लेते हैं। कारण यह है कि नेताओं-मंत्रियों पर तो हाथ डाला नहीं जा सकता क्योंकि पार्टी की छवि खराब होगी और वोट खतरे में पड़ेंगे। अफसरों को पकड़ेंगे तो शासन चलाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए जूनियरमोस्ट को बलि का बकरा बना देना ही सबसे सुरक्षित होता है। इसी झंझट से मुक्ति पाने के लिए बकरों की सीधी भर्ती का निर्णय लिया गया।

अंग्रेज़ी में बलि के बकरे के लिए ‘स्केपगोट’ शब्द है जिसमें ‘गोट’ यानी ‘बकरा’ शब्द निहित है। ‘स्केपगोट’ शब्द की उत्पत्ति प्राचीन इज़राइल में हुई जहां पवित्र दिन पर एक बकरे के सिर पर समाज के सारे पाप आरोपित कर दिये जाते थे और फिर उसे जंगल में छोड़ दिया जाता था। इस तरह समाज साल भर के लिए पापमुक्त हो जाता था। यानी, ‘स्केपगोट’ वहां वही काम करता था जो हमारे यहां गंगाजी करती हैं।

गरीब, निर्बल लोग हमेशा रसूखदारों की गर्दन बचाने के लिए ‘स्केपगोट’ बनते रहे हैं। जैसे देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बकरे की बलि दी जाती थी, ऐसे ही किसी दुर्घटना के बाद जनता के गुस्से को शान्त करने के लिए किसी मरे- गिरे बकरे को सूली पर चढ़ा दिया जाता है। कहीं पढ़ा था कि रसूखदार लोग मजबूर लोगों को अपनी जगह जेल में सज़ा काटने के लिए स्थापित करवा देते हैं।

अंग्रेज़ी में एक और दिलचस्प शब्द ‘व्हिपिंग बाॅय’ आता है जो कई देशों में उन लड़कों के लिए प्रयोग होता था जो राजकुमारों और रसूखदार लोगों के बालकों के साथ स्कूल भेजे जाते थे और जिन्हें रसूखदार बच्चों की गलतियों की सज़ा दी जाती थी। कारण यह था कि मास्टर साहब की हैसियत रसूखदारों के बच्चों को सज़ा देने की नहीं होती थी।

विज्ञापन में लिखा गया कि बकरा सिर्फ बारहवीं पास हो ताकि दस्तखत  वस्तखत कर सके। उसे दफ्तर के बाबू के बराबर तनख्वाह मिलेगी। उसे दफ्तर आने-जाने से छूट मिलेगी, दो-चार दिन में कभी भी आकर हाज़िरी रजिस्टर में दस्तखत कर सकेगा।

उसकी ड्यूटी सिर्फ इतनी होगी कि जब विभाग में कोई बड़ा लफड़ा हो जिसमें अफसर और दूसरे कर्मचारियों के फंसने का डर हो तो वह बहादुरी से अपनी गर्दन आगे बढ़ाये और कहे, ‘सर, आई एम द कलप्रिट। आई टेक द ब्लेम।’

विज्ञापन में यह ज़िक्र किया गया कि नियुक्ति से पहले बकरे की मनोवैज्ञानिक जांच होगी ताकि वह ऐन मौके पर डर कर ज़िम्मेदारी लेने से पीछे न हट जाए।

विज्ञापन में यह भी बयान किया गया कि बकरे के सस्पेंड होने पर उसकी पगार में कोई कटौती नहीं की जाएगी और जेल जाने की नौबत आने पर पूरी तनख्वाह उसकी फेमिली को पहुंचायी जाएगी। इसके अलावा उसके फंसने पर उसे बचाने के लिए महकमे की तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।

इस नीति के बारे में पूछे जाने पर आला अफसर भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक ‘अंधेर नगरी’ का हवाला देते हैं जिसमें फांसी का फन्दा उसी के गले में डाला जाता था जिसके गले में वह अंट सकता था।

ताज़ा ख़बर यह है कि सिंधुदुर्ग में शिवाजी की 35 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित होने के एक साल के भीतर ज़मींदोज़ हो गयी है और उसके लिए मूर्तिकार की गिरफ्तारी हो गयी है। अब मूर्ति का प्रसाद पाने वाले ऊपर बैठे लोग निश्चिन्त हो सकते हैं। अब 60 फीट ऊंची नयी मूर्ति का टेंडर ज़ारी हो गया है। टेंडर में यह शर्त है कि मूर्ति 100 साल खड़ी रहनी चाहिए। उम्मीद है कि नये मूर्तिकार इस शर्त को खुशी-खुशी मान लेंगे क्योंकि 100 साल में वे खुद मूर्ति बनने लायक हो जाएंगे। बकौल  ‘ग़ालिब’, ‘ख़ाक हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक।’

उधर बिहार में पुल जितनी तेज़ी से बन रहे हैं उससे ज़्यादा तेज़ी से गिर रहे हैं। नतीजतन छोटे-मोटे बकरों को पकड़ कर लाज बचायी जा रही है, और जनता मजबूरी में नावों पर सवार होकर उनके पलटने से मर रही है। जब तक ज़िम्मेदारी ओढ़ने के लिए बकरे उपलब्ध हैं तब तक कोई चिन्ता की बात नहीं है।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 269 – मढ़ी न होती चामड़ी…! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 269 मढ़ी न होती चामड़ी…! ?

संध्या भ्रमण के लिए मुझे सूनी सड़क के सूने फुटपाथ पसंद हैं। यद्यपि महानगर में यह पसंद स्वप्न से अधिक कुछ नहीं होती। तथापि भाग्यवश कैंटोन्मेंट प्रभाग में निवास होने के कारण ऐसी एकाध सड़कें बची हुई हैं। ऐसी ही तुलनात्मक रूप से सूनी एक सड़क के कम भीड़भाड़ वाले फुटपाथ पर भ्रमण कर रहा हूँ।

सूर्यास्त का समय है। डूबते सूरज के धुँधलके में  मनुष्य साये में बदलता दिखता है। साँझ और साया..! जीवन की साँझ और साया रह जाना! यूँ दिन भर साथ चलती परछाई भी साया होने के सत्य को इंगित कर रही होती है। सूर्योदय से सूर्यास्त की परिक्रमा दैनिक रूप से मनुष्य को नश्वरता का शाश्वत स्मरण कराती है।

अस्तु! भ्रमण जारी है। भ्रमण के साथ अवलोकन भी जारी है। मुझसे कुछ आगे एक युवक चल रहा है। वह सिगरेट का कश लेकर धुआँ आसमान की ओर छोड़ रहा है। देखता हूँ कि यह धुआँ एक आकार लेकर धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। धुएँ का  आकार देखकर अवाक हूँ। यह कंकाल का आकार है। मनुष्य द्वारा फूँका जाता धुआँ, मनुष्य को फूँकता धुआँ। कंकाल पर देह ओढ़ता मनुष्य, देह का ओढ़ना खींचकर मनुष्य को कंकाल करता धुआँ।

यूँ देखें तो देह का भौतिक अस्तित्व कंकाल पर ही टिका है। कंकाल आधार है, माँस-मज्जा  आधार पर चढ़ी सज्जा है। चमड़ी की सज्जा न होती तो क्या मनुष्य दैहिक आकर्षण में बंध पाता?

दृष्टांत  है कि एक गाँव में एक रूपसी अकेली रहती थी। गाँव के जमींदार का उसके रूप पर मन डोल गया। वासना से पीड़ित जमींदार उस स्त्री के घर पहुँचा। महिला ने प्राकृतिक चक्र की दुहाई देकर चार दिन बाद आने के लिए कहा। जमींदार के लौट जाने के बाद उस रूपसी ने  रेचक का बड़ी मात्रा में सेवन कर लिया। रेचक के प्रभाव के चलते उसे पुन:- पुन: शौच के लिए जाना पड़ा। स्थिति यह हुई कि सारा का सारा माँस शरीर से उतर गया और वह कंकाल मात्र रह गई। चार दिन बाद आया जमींदार उल्टे पैर लौट गया।

लोकोक्ति है,

सुंदर देह देखकर उपजत मन अनुराग।

मढ़ी न होती चामड़ी तो जीवित खाते काग।

प्रकृति सुंदर है। दैहिक सौंदर्य का आकर्षण भी स्वाभाविक है। तथापि आत्मिक सौंदर्य न हो तो दैहिक सौंदर्य व्यर्थ हो जाता है। सहज रूप से उगे गुलाब पुष्प की सुगंध नथुनों में गहरे तक समाती है। वहीं बड़े करीने से तैयार किए हाईब्रीड गुलाब दिखते तो सुंदर हैं पर सुगंध के नाम पर शून्य। सुगंध आत्मिकता है, शेष सब धुआँ है।

दूर श्मशान से धुआँ उठता देख रहा हूँ। किसी देह का ओढ़ना धुआँ-धुआँ हो रहा है। सबके लिए समान रूप से लागू इस नियम में बिरले ही होते हैं जो धुआँ होने के बाद भी अपनी आत्मिकता के कारण चिर स्मरणीय हो जाते हैं। दैहिक सौंदर्य के साथ मनुष्य आत्मिक सौंदर्य के प्रति भी सजग हो जाए तो धुआँ होने से पहले जग को सुवासित करेगा और आगे धुआँ इस सुवास को अनंत में प्रसरित करेगा।

हर मनुष्य आत्मिक सौंदर्य का धनी हो।…  तथास्तु!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥  मार्गशीर्ष साधना 16 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगी। साथ ही आत्म-परिष्कार एवं ध्यान-साधना भी चलेंगी💥

 🕉️ इस माह के संदर्भ में गीता में स्वयं भगवान ने कहा है, मासानां मार्गशीर्षो अहम्! अर्थात मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ। इस साधना के लिए मंत्र होगा-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

  इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 215 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

 

? Anonymous Litterateur of social media # 215 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 215) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 215 ?

☆☆☆☆☆

ख़ुद का दर्द महसूस होना

ज़िंदा होने का एक सबूत है..!

मग़र औरों के दर्द का अहसास होना 

ज़िंदादिल इंसान होने का सबूत है..!

☆☆

 To feel your own pain

Is a proof of being alive but

Proof of compassionate human

Is to feel the pain of others!

☆☆☆☆☆

काश एक ख्वाहिश पूरी हो

इबादत के बगैर

वो आके गले लगा ले

मेरी इजाजत के बगैर…

☆☆

If only one  wish could be fulfilled

Without offering the prayers

That she came and hugged me

Without my  permission…!

☆☆☆☆☆

दर्द की तुरपाइयों की 

नज़ाकत तो देखिये

एक धागा छेड़ते ही 

ज़ख्म पूरा खुल गया…

☆☆

Look at the tenderness of

the hemstitch of the pain…

Just disturbing one thread was

enough to open the whole wound!

☆☆☆☆☆

सूरज ढला तो कद से

ऊँचे हो गए साये

कभी पैरों से रौंदी थी

यहीं परछाइयां हमने..!

☆☆

Setting sun elong☆☆☆☆☆ated the

Shadows bigger than the stature,

Thes’re the shadows which once

were trampled under my feet..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 214 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  दोहा सलिला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 214 ☆

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

निज माता की कीजिए, सेवा कहें न भार।

जगजननी तब कर कृपा, देंगी तुमको तार।।

*

जन्म ब्याह राखी तिलक गृह-प्रवेश त्योहार।

सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।

*

कोशिश करते ही रहें, कभी न मानें हार।

पहनाए मंजिल तभी, पुलक विजय का हार।।

*

डरकर कभी न दीजिए, मत मेरे सरकार।

मत दें मत सोचे बिना, चुनें सही सरकार।। 

*

कमी-गलतियों को करें, बिना हिचक स्वीकार।

मन-मंथन कर कीजिए, खुद में तुरत सुधार।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२.४.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

हमारे जीवन में आने वाली कई शिक्षाएं एक दूसरे के से भिन्न होती हैं। जैसे एक शिक्षा है सठे-साठ्यम् समाचरेत। अर्थात दुष्ट के साथ दुष्ट का व्यवहार करो। दूसरी शिक्षा है जो तू को कांटा बुये ताहि बोई तूं फूल। यह दोनों शिक्षाएं एक दूसरे के विरुद्ध है परंतु हमें समय-समय पर दोनों को मानना पड़ता है। इसी तरह से किस समय आपको सफलता प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए यह बताने के लिए आज मैं पंडित अनिल पाण्डेय 16 दिसंबर से 22 दिसंबर 2024 के राशिफल के साथ उपस्थित हूं।

राशिफल बताने के पहले मैं आपको इस सप्ताह जन्म लिए बच्चों के भविष्य के बारे में बताऊंगा।

सप्ताह के प्रारंभ से 17 तारीख को 8:48 रात तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मिथुन होगी। भाग्य इनका साथ देगा। एकाएक इनके काम बन जायेंगे। 17 तारीख को 8:48 रात से 20 तारीख को प्रातः काल 4:18 a. m. तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि कर्क होगी। इन बच्चों को अपने जीवनसाथी और अपनी संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। 20 दिसंबर के प्रातः काल 4:18 a. m. से लेकर 22 तारीख को 2:30 दिन तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि सिंह होगी। इन बच्चों को अपने जीवनसाथी से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। उनकी संतान बहुत ऊंचे पद तक पहुंचेगी। इनको भी बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी। 22 तारीख को 2:30 दिन से सप्ताह के अंत तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि कन्या होगी।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको अपने कार्यालय के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। भाग्य आपका साथ देगा। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जनता में आपकी प्रतिष्ठा अच्छी रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर अच्छे हैं। 22 दिसंबर को 2:00 बजे दोपहर के बाद से आपको सतर्क होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृष राशि

आपका व्यापार ठीक चलेगा। भाई बहनों के साथ थोड़ा बहुत तनाव हो सकता है। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। दुर्घटनाओं से आप बचेंगे। आपको अपने संतान का सहयोग थोड़ा कम मिलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 दिसंबर लाभदायक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें तथा बृहस्पतिवार को विष्णु भगवान या उनके किसी अवतार के मंदिर में जाकर पूजा पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। एकाएक आपके काम बन सकते हैं। कार्यालय में आप फालतू के बहस में ना पड़े। आपको अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। थोड़ा बहुत धन आने का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 तारीख किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह आपके पास विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। आपको अपने जीवनसाथी का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। संतान भी आपके साथ सहयोग करेगी। भाग्य से आपको कोई विशेष लाभ नहीं होगा। अगर आप प्रयास करेंगे तो शत्रुओं को आप परास्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर परिणाम दायक हैं। 16 और 17 दिसंबर को आपको सावधान होकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन कम से कम तीन माला गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

अगर आपके ऊपर किसी प्रकार का ऋण है तो उसमें कमी होगी। आपको कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है। जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपको इस सप्ताह अपने शत्रुओं से भी सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 तारीख लाभ वर्धक है। 18 और 19 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह भाग्य से आपको सामान्य मदद मिलेगी। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ अच्छा संबंध रहेगा। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर मंगलप्रद हैं। 20-21 और 22 तारीख को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार उत्तम चलेगा। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। आपके क्रोध में भी वृद्धि हो सकती है। जनता में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। धन आने की उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर मंगल दायक हैं। 22 दिसंबर को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द की दाल का दान दें। शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव की पूजा करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी को थोड़ी परेशानी हो सकती है। आपके व्यापार में वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ दे सकता है। धन आने की पूरी उम्मीद है। आपको अपने संतान से इस सप्ताह कोई सहयोग नहीं मिल पाएगा। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 दिसंबर अनुकूल हैं। इस सप्ताह आप 16 और 17 दिसंबर को सावधान रहकर कोई भी कार्य करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तथा शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने की उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में सावधानी से कार्य करें। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ सकती है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 18 और 19 दिसंबर को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ दे सकता है। लंबी यात्रा का भी योग बन सकता है। कार्यालय में आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। धन आने का योग है। कचहरी के कार्यों में प्रयास करने पर सफलता मिल सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 दिसंबर लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कचहरी के कार्यों में आपको सफलता मिलेगी। धन आने की उम्मीद है। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं। कार्यालय में आपका समय ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20, 21 और 22 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 18, 19 और 22 तारीख के दोपहर के बाद का समय सावधानी से कार्य करने का है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा मैं वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ देगा। धन आने का योग है। शत्रुओं से आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। माता-पिता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 दिसंबर लाभदायक हैं। 20-21 और 22 दिसंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #259 ☆ दर्द और समस्या… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख दर्द और समस्या। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 259 ☆

☆ दर्द और समस्या… ☆

“दर्द एक ऐसा संकेत है कि तुम ज़िंदा हो; समस्या एक संकेत है कि तुम मज़बूत हो;- परिवार, मित्र और संगठन एक संकेत हैं कि तुम अकेले नहीं हो’ में जीवन जीने की कला का संदेश निहित है। दु:ख हमारे जीवन का अभिन्न अंग है जो हमें अपने-परायों से अवगत कराता है। यह जीवन की कसौटी है जो मित्र-शत्रु, उचित-अनुचित, भाव-सद्भाव व मानव में निहित दैवीय गुणों प्रेम, स्नेह, करुणा, सहानुभूति व संवेदनशीलता का परिचायक है।

दर्द हमारी सहनशीलता की परीक्षा लेता है और मूल्यांकन करता है कि हम कितने संवेदनशील है तथा हमारी सोच कैसी है? छोटी सोच शंका को जन्म देती है और बड़ी सोच समाधान से अवगत कराती है। यदि सुनना सीख लिया तो सहना सीख जाओगे और सहना सीख लिया तो रहना सीख जाओगे। सो! दर्द हमारे जीवित होने का प्रमाण है और समस्या हमारी दृढ़ता की परिचायक है। समस्याएं हमारी परीक्षा लेती हैं। यह हमें अपनी आंतरिक शक्तियों से अवगत कराती हैं तथा उनसे हमारा साक्षात्कार कराती हैं कि हममें कितना धैर्य, साहस व दृढ़ता कायम है? हम विषम परिस्थितियों का सामना करने में कितने सक्षम है? समस्याएं हमारी प्रेरक हैं, जीवन का आधार व पथप्रदर्शक हैं। यदि राहों में अवरोध ना हो तो जीने का आनंद ही नहीं आता। हम अपनी जीवनी शक्ति अर्थात् ऊर्जा को पहचान नहीं पाते। सो! यदि जीवन समतल धरातल पर चलता रहता है तो हम अंतर्मन में निहित शक्तियों से अवगत नहीं हो पाते तथा जीने का वास्तविक आनंद प्राप्त नहीं कर सकते।

समय व प्रकृति परिवर्तनशील हैं और समय अविराम चलता रहता है। जीवन में सुख-दु:ख, हानि-लाभ, खुशी-ग़म, हँसी-रूदन समयानुसार  आते-जाते रहते हैं। संसार मिथ्या है तथा सृष्टि-नियंता के अतिरिक्त सब नश्वर है। सो! कभी मानव चाँदनी में अवगाहन कर प्रसन्न होता है तो कभी अमावस के घने अंधकार में जुगनूँ का प्रकाश पाकर कृतज्ञता ज्ञापित करता है। कभी भोर होते सूर्य की रश्मियाँ धरा पर कुँकुम बिखेर देती हैं और मलय वायु के झोंके मानव को मदमस्त बना देते हैं। मानव उन पलों में सुधबुध खो बैठता है। कभी सागर में उठती लहरें साहिल से टकराकर लौट जाती है, मानो कोई भक्त अपने प्रभु के चरण स्पर्श कर लौट जाता है और सागर अनमोल मोती, रत्न आदि साहिल पर दुआओं के रूप में छोड़ देता है। परंतु कभी-कभी सागर सुनामी के रूप में हृदय के क्रोध को भी प्रदर्शित करता है और सागर की आकाश को छूती लहरें अपनी राह में आने वाले समस्त पदार्थों को तहस-नहस कर बहा ले जाती हैं। चहुँओर उजाड़-सा भासता है, मानो मातम पसरा हो।

कभी-कभी भगवान भी हमें दु:खों के भँवर में फंसा कर हमारे धैर्य की परीक्षा लेते हैं। इससे ज्ञात होता है कि हम कितने अडिग, अचल, दृढ़  व मज़बूत हैं। यदि हम उस स्थिति में विचलित हो जाते हैं तो हम सामान्य मानव हैं और हममें साहस की कमी है; सहनशीलता हमसे कोसों दूर है। उस स्थिति में हमारी नौका सागर में डूबती-उतराती है और उसमें विलीन हो जाती है। दूसरे शब्दों में हम लहरों के थपेड़ों को सहन नहीं कर पाते और अंतत: डूब के सागर बन जाते हैं।

परिवार, मित्र व संगठन एक संकेत हैं कि तुम अकेले नहीं हो। वे सुख-दुःख व सम-विषम परिस्थितियों में आपके साथ खड़े रहते हैं। परिवार का हर सदस्य व सच्चे मित्र आपके हितैषी होते हैं। वे आपको मँझधार में छोड़कर कहीं नहीं जाते। वैसे भी मानव अपनी स्वार्थ वृत्ति व संकुचित दृष्टिकोण के कारण दु:ख बाँटने पर सुक़ून पाता है और सुख को एकांत में भोगना चाहता है। परंतु ‘हमारे मित्र हमें हर पल एहसास दिलाते हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं। आगे बढ़ो, बीता हुआ कल तुम्हारे मन में है और आने वाला कल तुम्हारे हाथ में है।’ अतीत लौटता नहीं और भविष्य अनिश्चित् है। परंतु आप वर्तमान में अथक परिश्रम द्वारा आगामी कल को सुंदर बना सकते हैं।

सत्य की नौका डगमगाती अवश्य है, परंतु डूबती नहीं। सत्य कटु होता है, परंतु शाश्वत् होता है। यह शिवम् व सुंदरम् भी होता। इसे सामने आने में समय तो लग सकता है, परंतु यह असंभव नहीं है। भले ही सत्य सात परदों के पीछे छिपा होता है, परंतु यह हकीक़त को सामने ला देता है। यह कल्याणकारी होता है तथा किसी का अहित नहीं करता। सबका मंगल भव की भावना  इसमें निहित रहती है। परिणामत: जीवन में कोई समस्या नहीं रहती।

वैसे भी हर प्रश्न का उत्तर व समस्या का समाधान होता है। आवश्यकता होती है– हमारी लग्न की, प्रयास की, परीक्षा की, अथक परिश्रम, धैर्य व साहस की। ‘संसार में असंभव शब्द तो मूर्खों के शब्दकोश में होता है।’ तुम सब कर सकते हो, जीवन का मूलमंत्र होना अपेक्षित है। मानव में असीम शक्तियां व्याप्त हैं, जिनके बल पर वह आगामी आपदाओं का सामना कर सकता है। इसलिए आत्मविश्वास की, सत्य का मूल्यांकन करने की, अपनी सुप्त अथवा विस्मृत शक्तियों को पहचानने की ज़रूरत है।

मानव का दर्द से अटूट रिश्ता है। हमें खुशियों को तलाशना है; खुद से मुलाक़ात करनी है। जब हम ख़ुद में ख़ुद को तलाशते हैं तो हमारे अंतर्मन में दिव्य शक्तियां संचरित हो जाती हैं। हम ‘शक्तिशाली  विजयी भव’ को स्वीकार जीवन- पथ पर अग्रसर होते हैं, क्योंकि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ तथा ‘आप जो चाहोगे वही अवश्य पाओगे।’

काँच की तरह होता है मन/ इसे जितना साफ रखोगे/ दुनिया उतनी आपको साफ दिखाई देगी’ के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि ‘तोरा मन दर्पण कहलाए/ भले-बुरे सब कर्मन को/ देखे और दिखाए।’ सो। सत्कर्म कीजिए, सदैव अच्छा सोचिए, अच्छा कीजिए। दुनिया रूपी रंगमंच पर मानव को अपना क़िरदार अवश्य निभाना पड़ता है, जो हमारे पूर्वजन्म के कर्मों पर आधारित होते हैं।

अपनापन, परवाह, आदर व व्यवहार वक्त की वह दौलत है, जिससे बड़ा किसी को देने के लिए कोई उपहार नहीं हो सकता है। सो! यह वे दैवीय गुण हैं, जिन्हें आप दूसरों को दे सकते हैं। यह अनमोल हैं और वक्त से बड़ी तो कोई दौलत हो ही नहीं सकती है। यदि आप किसी को चंद लम्हें देते हैं तो वे उसके हृदय की ऊहापोह को समाप्त करने में सक्षम होते हैं। उस स्थिति में आप अपनी अनमोल पूंजी अर्थात् उपहार उसे दे रहे हैं। किसी के हृदय की पीड़ा, दुख-दर्द को दूर करना सर्वोत्तम उपाय है। दुनिया में सुख बाँटिए व दु:खों का हरण कीजिए। आपदाओं व विषम परिस्थितियों में आप पर्वत की भांति अचल, अडिग व डटकर खड़े रहिए।

परिवार, मित्र व संगठन को महत्व दीजिए। सदैव मिलजुल कर अहं का त्याग कर जीवन-यापन कीजिए। अहं दिलों में दरारें उत्पन्न करता है। ‘फ़ासले दिलों के मिटा दीजिए। बेवजह न किसी से ग़िला कीजिए/ यह समाँ तो गुज़र जाएगा किसी ढब/ सबसे मिलजुल कर रहा कीजिए।’ दर्द, आपदाएं व समस्याएं स्वत: मिट जाएंगी और चहुँओर उल्लास व प्रसन्नता का साम्राज्य होगा।

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #32 – गीत – प्रेम अमिय का प्याला है।।… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – भावों की बहती सुरसरिता

? रचना संसार # 32 – गीत – प्रेम अमिय का प्याला है…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

अन्तर्मन की प्यास बुझाए

प्रेम अमिय का प्याला है।

वीणा की झंकार यही तो

सात सुरों की हाला है।।

कानों में मिश्री सी घोले,

पिया प्रेम की बाँसुरिया।

धुन सुनकर मैं इत उत डोलूँ,

जैसे कोई बावरिया।।

*

मधुरिम गीत प्रणय के गाती,

हिय में जलती ज्वाला है ।

अन्तर्मन की प्यास बुझाए,

प्रेम अमिय का प्याला है।।

त्याग प्रेम की मंजुल मूरत,

सुरभि दसों दिशि में फैली।

जीवन में नित करे उजाला,

सपन अलौकिक अठखेली।।

*

शुचि सुवास से साँसें महके,

नाचे मन मतवाला है।

अन्तर्मन की प्यास बुझाए,

प्रेम अमिय का प्याला है।।

 *

कहे भावना भाव घनेरे,

प्रीत निराली सी लागे।

पिया श्याम घन वर्षा करते,

उर हरियाली सी लागे।।

*

वसुधा अम्बर नेह निबंधन,

तुहिन कणों की माला है।

अन्तर्मन की प्यास बुझाए,

प्रेम अमिय का प्याला है।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆ संजय दृष्टि – स्मृतियों की गलियों से  — लेखिका – ऋता सिंह ☆ समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

? संजय दृष्टि –  समीक्षा का शुक्रवार # 23 ?

?स्मृतियों की गलियों से  — लेखिका – ऋता सिंह ?  समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ?

पुस्तक का नाम- स्मृतियों की गलियों से

विधा- संस्मरण

लेखिका- ऋता सिंह

प्रकाशन- क्षितिज प्रकाशन, पुणे

? स्मृतियों की गलियों से  श्री संजय भारद्वाज ?

सम्यक स्मरण अर्थात संस्मरण। स्मृति के आधार पर घटना, व्यक्ति, वस्तु का वर्णन संस्मरण कहलाता है। स्मृति, अतीत के कालखंड विशेष का आँखों देखा हाल होती है। घटना, व्यक्ति, वस्तु के साक्षात्कार के बिना आँखों देखा हाल संभव नहीं है। स्वाभाविक है कि संस्मरण रोचक शैली में स्मृति को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करता है। ‘स्मृतियों की गलियों से’, लेखिका के अनुभव-विश्व से उपजे ऐसे ही संस्मरणों का संग्रह है।

चित्रोपमता संस्मरण लेखन की शक्ति होती है। लेखक द्वारा जो लिखा गया है, उसका चित्र पाठक की आँख में बनना चाहिए। श्वान के एक पिल्लेे के संदर्भ में ‘भूले बिसरे दिन’ की प्रस्तुत पंक्तियाँ देखिए-‘अपनी पूँछ  को पकड़ने की कोशिश में दिन में न जाने कितनी बार वह गोल-गोल घूमा करता था पर पूँछ कभी भी उसकी पकड़ में न आती। उसकी यह कोशिश किसी तपस्वी की तरह एक नियम से बनी हुई चलती रहती थी।’…‘ जाने कहाँ गए वे दिन’ में उकेरा गया यह चित्र देखिए-‘मैंने फूलझाड़ू के दो छोटे टुकड़ों को क्रॉस के रूप में रखा, काठी के एक छोर पर कपास का एक गोला बनाकर लगाया, फिर उस कपास के गोले को पिताजी की पुरानी स़फेद धोती के टुकड़े से ढका और पतली सुतली से उस झाड़ू के साथ बाँध दिया। इस तरह उसे  सिर का आकार दिया गया। काजल से आँख, नाक, मुँह बनाया। इस तरह की कई गुड़ियाँ मैंने ईजाद कर डालीं।’

सुश्री ऋता सिंह

सत्यात्मकता या प्रामाणिकता संस्मरण का प्राण है। संस्मरण में कल्पना विन्यास वांछनीय नहीं होता। कल्पना की ओर बढ़ना अर्थात संस्मरण से दूर जाना।  प्रस्तुत संग्रह में लेखिका ने संस्मरण के प्राण-तत्व को चैतन्य रखा है। ‘जब पराये ही हो जाएँ अपने’ में वर्णित घटनाक्रम का एक अंश इसकी पुष्टि करता है-‘जाते समय उस बुज़ुर्ग से मैंने अपने बैग की निगरानी रखने के लिए प्रार्थना की। वैसे एयरपोर्ट पर अनएटेंडेड बैग्स की तलाशी ली जाती है। मेरे बैग पर मेरा नाम और घर का लैंडलाइन नंबर लिखा हुआ था। उन दिनों यही नियम प्रचलन में था।’

संस्मरण के पात्र सत्यात्मकता का लिटमस टेस्ट होते हैं। प्रस्तुत संग्रह के पात्र रोज़मर्रा के जीवन से आए हैं। इसके चलते पात्र परिचित लगते हैं और पाठक के साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं। ‘गटरू’ जैसे चरित्र इसकी बानगी हैं। 

अतीत के प्रति मनुष्य के मन में विशेष आकर्षण सदा रहता है। बकौल निदा फाज़ली, ‘मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है।’ इस खोए हुए सोना अर्थात अतीत की स्मृति के आधार पर होने वाले लेखन में आत्मीय संबंध और वैयक्तिकता की भूमिकाएँ भी महत्वपूर्ण होती हैं। ‘गुलमोहर का पेड़’ नामक संस्मरण से यह उदाहरण देखिए-‘अपने घर की खिड़की पर लोहे की सलाखों को पकड़कर फेंस के उस पार के गुलमोहर के वृक्ष को मैं अक्सर निहारा करता था। प्रतिदिन उसे देखते-देखते मेरा उससे एक अटूट संबंध-सा स्थापित हो गया था। विभिन्न छटाओं का उसका रूप मुझे बहुत भाता रहा।’ इसका उत्कर्ष भी द्रष्टव्य है-‘गुलमोहर के तने से लिपटकर खूब रोया। फिर न जाने मुझे क्या सूझा, मैंने उसके तने से कई टहनियाँ कुल्हाड़ी मारकर छाँट दी, मानो अपने भीतर का क्रोध उस पर ही व्यक्त कर रहा था।… अचानक उस पर खिला एक फूल मेरी हथेली पर आ गिरा। फूल सूखा-सा था। ठीक बाबा और माँ के बीच के टूटे, सूखे रिश्तों की तरह।’

लेखिका, शिक्षिका हैं। स्थान का वर्णन करते हुए तत्संबंधी ऐतिहासिक व अन्य जानकारियाँ पाठक तक पहुँचाना उनका मूल स्वभाव है। इस मूल का एक उदाहरण देखिए- ‘लोथल, दो हजार सात सौ साल पुराना एक बंदरगाह था। यहाँ छोटे जहाजों के द्वारा आकर व्यापार किया जाता था। यह ऐतिहासिक स्थल है जो पुरातत्व विभाग के उत्खनन द्वारा खोजा गया है।’

कथात्मकथा बनी रहे तो ही संस्मरण रोचक हो पाता है। पढ़ते समय पाठक के मन में ‘वॉट नेक्स्ट’ याने ‘आगे क्या हुआ’ का भाव प्रबलता से बना रहना चाहिए। प्रस्तुत संग्रह के अनेक संस्मरणों में कथात्मकता प्रभावी रूप से व्यक्त हुई है।

भारतीय संस्कृति कहती है, ‘मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना।’ किसी घटना के अनेक साक्षी हो सकते हैं। घटना के अवलोकन, अनुभूति और अभिव्यक्ति का प्रत्येक का तरीका अलग होता है। इन संस्मरणों की एक विशेषता यह है कि लेखिका इनके माध्यम से घटना को ज्यों का त्यों सामने रख देती हैं। स्वयं अभिव्यक्त तो होती हैं पर सामान्यत: किसी प्रकार का वैचारिक अधिष्ठान पाठकों पर थोपती नहीं। ये सारे संस्मरण मुक्तोत्तरी प्रश्नों की भाँति हैं। पाठक अपनी दृष्टि से घटना को ग्रहण करने और अपने निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए स्वतंत्र है।

इन संस्मरणों के माध्यम से विविध विषय एवं आयाम प्रकट हुए हैं। आशा की जानी चाहिए कि पाठक इन संस्मरणों को अपने जीवन के निकट अनुभव करेगा। यह अनुभव ही लेखिका की सफलता की कसौटी भी होगा।

भविष्य की यशस्वी यात्रा के लिए लेखिका को अशेष मंगलकामनाएँ।

लेखक को अनंत शुभकामनाएँ।

© संजय भारद्वाज  

नाटककार-निर्देशक

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – संस्मरण ☆ दस्तावेज़ # 4 – 1971 की कक्षा: सेंट गेब्रियल स्कूल, रांझी, जबलपुर (Class of 1971: St. Gabriel’s School, Ranjhi, Jabalpur) ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆

श्री जगत सिंह बिष्ट

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।

– श्री जगत सिंह बिष्ट 

(ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से “दस्तावेज़” श्रृंखला कुछ पुरानी अमूल्य यादें सहेजने का प्रयास है। दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित। इस शृंखला में अगला दस्तावेज़  “1971 की कक्षा: सेंट गेब्रियल स्कूल, रांझी, जबलपुर।)

☆  दस्तावेज़ – 1971 की कक्षा: सेंट गेब्रियल स्कूल, रांझी, जबलपुर ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

“यह सबसे अच्छे समय का दौर था, यह सबसे बुरे समय का दौर था, यह बुद्धिमानी का युग था, यह मूर्खता का युग था…”

चार्ल्स डिकेंस, ए टेल ऑफ़ टू सिटीज़

इन शब्दों की गूंज, तब के उन्नींदे शहर जबलपुर के उपनगर रांझी की गलियों में, महसूस होती थी। यह 1971 का समय था—सादगी और गहरे बदलाव का युग। बाहरी दुनिया में उथल-पुथल थी, परंतु सेंट गेब्रियल स्कूल परिसर के अंदर शिक्षा का अभयारण्य फल-फूल रहा था। वर्ष 1971 की कक्षा के छात्र एक ऐसे युग में जी रहे थे, जिसमें मासूमियत का आकर्षण और असीम संभावनाओं का अनंत आकाश था। हर पाठ ज्ञान से भरा था, हर खेल टीम भावना से खेला जाता था और हर पल यादों की छाप छोड़ जाता था।

एक विरासत की शुरुआत

वर्ष 1959 में, मॉन्टफोर्ट ब्रदर्स ऑफ सेंट गेब्रियल द्वारा स्थापित सेंट गेब्रियल स्कूल, रांझी के पूर्वी छोर पर स्थित था। इसके एक ओर आयुध निर्माणी खमरिया का विस्तृत परिक्षेत्र था और दूसरी ओर मानेगांव की प्राकृतिक सुंदरता। इसकी विनम्र शुरुआत एक छोटे से परिसर में हुई। वर्षों बाद अब यह आधुनिक, समग्र शिक्षा का प्रकाशस्तंभ बन गया है।

सेंट गेब्रियल में शिक्षा केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं थी। यह जिज्ञासा जगाने, करुणा प्रज्ज्वलित करने, और समय की कसौटी पर खरे उतरने वाले जीवन मूल्यों को सिखाने का प्रयास था। ज्ञान को एक बोझ की तरह नहीं बल्कि एक उपहार के रूप में प्रदान किया गया। छात्रों को स्वप्न देखना, दृढ़ता, और जीवन को साहस और गरिमा के साथ स्वीकार करना सिखाया गया।

मूल्यों का अनूठा संगम

1971 की कक्षा जब इस शिक्षा के मार्ग पर चली, तो उन्हें विनम्रता और विवेक, साहस और निष्पक्षता के गुणों से पोषित किया गया। उनके ‘अल्मा माटर’ ने उन्हें तर्क और भावना दोनों का मूल्य समझाया। यह एक ऐसी शिक्षा थी जो छात्रों को जीवन में उद्देश्य, दृढ़ता और कृतज्ञता का भाव प्रदान करती थी।

विद्यालय ने कला और सौंदर्य के प्रति गहरी समझ भी विकसित की। ब्रदर फ्रेडरिक ने रसायन विज्ञान को सिद्धांत और अभ्यास की एक सुखद जुगलबंदी में बदल दिया। शर्मा सर और श्रीवास्तव सर ने छात्रों को हिंदी साहित्य की मनोहारी छटा से रूबरू किया, जबकि पंडित सर और लाजरस सर ने संस्कृत के श्लोक सिखाए। मैडम प्रेम खेड़ा और खरे सर ने धैर्य और कुशलता के साथ गणित की चुनौतियों को हल करना सिखाया।

खेल केवल खेल नहीं थे, यहां चरित्र का निर्माण होता था। इस्लाम सर, दिनकर सर और चौधरी सर जैसे प्रशिक्षकों ने छात्रों को प्रेरित किया कि वे पसीना बहाएं और विजय प्राप्त करें। प्रयास में ही जीत निहित होती है।

भविष्य को आकार देने वाले शिक्षक

सेंट गेब्रियल में शिक्षक गण असाधारण थे। ब्रदर जॉन बॉस्को और इंग्लैंड से आए। जॉन पीक ने अंग्रेजी व्याकरण और साहित्य में छात्रों की उत्कृष्टता को परिभाषित किया। फ्रांसिस डेविड सर ने अपनी नाटकीय प्रतिभा और मधुर आवाज से छात्रों की रचनात्मकता को प्रेरित किया।

सामाजिक अध्ययन के गंभीर पाठ शुक्ला सर और ब्रदर जोसेफ ने पढ़ाए, जबकि सामान्य विज्ञान मैडम ओ. डी’सूजा और सेबेस्टियन सर ने पढ़ाया। ये शिक्षक केवल अध्यापक नहीं थे; ये चरित्र के मूर्तिकार थे, जिन्होंने युवा मनों को जिम्मेदार और सहानुभूति से परिपूर्ण नागरिक बनने के लिए प्रेरित किया।

1971 की कक्षा का जज़्बा

1971 की कक्षा प्रतिभा, दृढ़ता और मित्रता का एक अद्भुत सम्मिश्रण थी। प्रत्येक नाम के साथ एक कहानी जुड़ी थी, प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी छाप छोड़ी। शांता ने अपनी मधुर आवाज से, और शोभा ने अपने आकर्षक नृत्यों से सांस्कृतिक आयोजनों को जीवंत किया। जूड ने अपनी वाक्पटुता से श्रोताओं को मोहित किया, जबकि चंदन ने टेबल टेनिस के क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल की।

फुटबॉल के मैदान पर, कैश्मीर, प्रबीर, महेंद्र और अल्बर्ट ने टीम भावना और प्रतिभा का प्रदर्शन किया। क्रिकेट के उत्साही जगत, राजन और सौमेन ने खेल को जीवंत बना दिया। शिवाजी, रविशंकर और विजय ने स्वस्थ शैक्षणिक प्रतिद्वंद्विता में भाग लिया और अपने साथियों को ऊंचे लक्ष्यों के लिए प्रेरित किया।

कक्षा के बाहर, दोस्ती और भाईचारे का माहौल था। बिजॉय, महेंद्र, सुबीर और श्याम ने हंसी-मजाक से सभी के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी। ऐन्सली, हर्दित, और शैलेंद्र जैसे अन्य लोगों ने शिष्टाचार और विनम्रता का उदाहरण प्रस्तुत किया।

आजीवन आभार

पीछे मुड़कर देखें तो 1971 की कक्षा सेंट गेब्रियल स्कूल के प्रति अथाह आभार व्यक्त करती है। यह केवल एक संस्थान नहीं था; यह वह प्रयोगशाला थी जहां मूल्यों को तराशा गया और अनुशासन के साथ सपनों को आकार दिया गया। इसने छात्रों को न केवल सफलता की ओर अग्रसर किया, बल्कि सार्थक जीवन जीने की कला भी सिखलाई।

सकारात्मक मनोविज्ञान के अनुसार, सुखद यादों का पोषण करने से आनंद, कृतज्ञता और दृढ़ता विकसित होती है। सेंट गेब्रियल में साझा की गई हंसी, सीखे गए पाठ और बनाई गई दोस्ती उनके दिलों में हमेशा के लिए अंकित हैं।

सम्मान सूची

1971 की कक्षा:

ऐन्सली निबलेट, अल्बर्ट फिलिप्स, अविनाश गायकवाड़, बरकत सिंह, बिजॉय मुखर्जी, कैश्मीर फर्नांडिस, चंद्र बाबू, चंदन नियोगी, हर्दित सिंह, जगत सिंह बिष्ट, जूड पेस, कमल किशोर, के.एस. राजन, कुमुद चक्रपाणि, महेंद्र परमार, मुकुंदन मेनन, रामचंद्र सिंह, रविशंकर कृष्णन, रेबेका मलिक, प्रबीर मित्रा, राल्फ टेट, रीता बसाक, रीता भम्बानी, सैमुअल वॉकर, शैलेंद्र कुमार, शांता मूर्ति, शिवाजी घोष, शोभा पवार, श्याम मंडल, सौमेन दासगुप्ता, सुबीर भट्टाचार्य, तपस रॉय, थॉमस एलेक्ज़ेंडर, विजय नायर और तुषार कांति बनर्जी।

एक स्थायी विरासत

नेल्सन मंडेला के शब्दों में, “शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं।” सेंट गेब्रियल स्कूल ने अपनी शाश्वत मूल्यों को पोषित करने वाली भावना के साथ 1971 की कक्षा को यादों का एक खजाना और ऐसा आधार प्रदान किया, जिसने उन्हें दुनिया को बदलने में, अपना योगदान देने के लिए सक्षम बनाया।

इसलिए, वर्ष 1971 के छात्र-छात्राओं की गाथा, इसका जीवंत प्रमाण है कि समग्र शिक्षा न केवल मस्तिष्क को विकसित करती है बल्कि हृदय और आत्मा का भी भरपूर पोषण करती है। ये छात्र आजीवन गर्व से स्वयं को “गैब्रिएलाइट बैच 1971” कहेंगे।

Class of 1971: St. Gabriel’s School, Ranjhi, जबलपुर

“It was the best of times, it was the worst of times, it was the age of wisdom, it was the age of foolishness…”

– Charles Dickens, A Tale of Two Cities

In the small, sleepy town of Jabalpur, nestled within the quiet suburb of Ranjhi, these immortal words seemed to echo through the corridors of life. It was 1971, a time of both simplicity and profound change, when the world outside felt tumultuous, yet within the walls of St. Gabriel’s School, a sanctuary of learning flourished. The students of the Class of 1971 lived in an era that bore the charm of innocence and the promise of limitless possibilities—a time when every lesson carried the weight of wisdom, every game played was a masterclass in teamwork, and every moment was tinged with nostalgia even as it unfolded.

The Origins of a Legacy

Established in 1959 by the Montfort Brothers of Saint Gabriel, St. Gabriel’s School stood at the eastern end of Ranjhi, bordered by the expansive Ordnance Factory Khamaria Estate on one side and the rustic beauty of Manegaon on the other. Humble beginnings shaped its character; the modest campus whispered tales of grit and dreams. Yet, over the years, it evolved into a beacon of modern education, carrying forward the mission of holistic learning.

Education at St. Gabriel’s was never confined to textbooks. It sought to awaken curiosity, ignite compassion, and instill values that stood the test of time. Knowledge was imparted not as a burden but as a gift; it was laced with the art of living. Students were taught to dream, to persevere, and to embrace the duality of life with courage and grace.

A Unique Blend of Values

As the Class of 1971 stepped onto this path of learning, they were nurtured with the virtues of humility and prudence, bravery and fairness. Their Alma Mater taught them to value both logic and emotion, to harmonize the scientific with the spiritual. It was an education that breathed life into Positive Psychology’s principles long before the term existed—imbuing students with a sense of purpose, resilience, and gratitude.

The school also fostered a deep appreciation for art and beauty. Brother Frederick made Chemistry a delightful symphony of theory and practice. Sharma Sir and Shrivastava Sir transported students into the enchanting world of Hindi literature, while Pandit Sir and Lazarus Sir unveiled the mysteries of Sanskrit. Ms. Prem Kheda and Khare Sir unknotted the challenges of Mathematics with patience and precision.

Sports, too, were more than just games; they were arenas where character was forged. Coaches like Islam Sir, Dinkar Sir, and Chaudhary Sir inspired their students to sweat, strive, and triumph, teaching them that victory lay as much in the effort as in the outcome.

The Teachers Who Shaped Futures

St. Gabriel’s boasted a pantheon of extraordinary educators. Brother John Bosco and the Englishman, John Peek, epitomized excellence in language, molding students’ command of English grammar and literature. Francis David Sir inspired an entire generation with his theatrical flair and melodious voice, unlocking creative potential in his pupils.

From the earnest teachings of Social Studies by Shukla Sir and Brother Joseph to the life lessons woven into General Science by Ms. O. D’Souza and Sebastian Sir, every lesson carried a deeper meaning. These teachers were not merely instructors; they were sculptors of character, shaping young minds into responsible and empathetic citizens.

The Spirit of the Class of 1971

The Class of 1971 was a constellation of talent, resilience, and camaraderie. Each name carried a story, each individual left a mark. Shanta, with her divine voice, and Shobha, with her dazzling Bollywood dances, brought joy to cultural gatherings. Jude mesmerized audiences with his eloquence, while Chandan dominated the table tennis arena with finesse.

On the football field, players like Kashmir, Prabir, Mahendra, and Albert exhibited teamwork and flair, while cricket enthusiasts such as Jagat, Rajan, and Soumen brought the game alive. Shivaji, Ravi Shankar, and Vijay engaged in healthy academic rivalries, inspiring peers to aim higher.

Outside the classroom, camaraderie thrived. Bijoy, Mahendra, Subir, and Shyam were the jesters who kept spirits high, reminding everyone of the power of shared laughter. Others, like Ainsley, Hardit, and Shailendra, exuded a quiet dignity, embodying politeness and humility.

A Lifetime of Gratitude

Looking back, the Class of 1971 owes an immeasurable debt of gratitude to St. Gabriel’s School. It was not merely an institution; it was a crucible where values were forged, and dreams were tempered with discipline. It gave its students not only the tools to succeed but the wisdom to live meaningful lives.

As Positive Psychology emphasizes, cherishing fond memories cultivates joy, gratitude, and resilience. The laughter shared, the lessons learned, and the friendships formed at St. Gabriel’s remain etched in the hearts of its alumni, illuminating their paths long after the school bell ceased to ring.

Roll Call of Honour

Class of 1971:

Ainsley Niblett, Albert Phillips, Avinash Gaikwad, Barkat Singh, Bijoy Mukherjee, Cashmir Fernandes, Chandra Babu, Chandan Neogi, Hardit Singh, Jagat Singh Bisht, Jude Paise, Kamal Kishore, K.S. Rajan, Kumud Chakrapani, Mahendra Parmar, Mukundan Menon, Ramchandra Singh, Ravi Shankar Krishnan, Rebecca Mullick, Prabir Mitra, Ralph Tate, Rita Basak, Rita Bhambani, Samuel Walker, Shailendra Kumar, Shanta Murthy, Shivaji Ghosh, Shobha Pawar, Shyam Mandal, Soumen Dasgupta, Subir Bhattacharya, Tapas Roy, Thomas Alexander, Tushar Kanti Banerji and Vijay Nair.

An Enduring Legacy

In the words of Nelson Mandela, “Education is the most powerful weapon which you can use to change the world.” St. Gabriel’s School, with its timeless values and nurturing ethos, gifted the Class of 1971 a treasure trove of memories and a foundation that would empower them to change the world in ways big and small.

And so, the story of the Class of 1971 remains an enduring testament to the power of education to shape not just minds but hearts and souls. For they were, and always will be, the proud sons and daughters of St. Gabriel’s School, Ranjhi, Jabalpur.

(Photo courtesy – Social media)

🙏💐 सेंट गेब्रियल स्कूल – आजीवन आभार 💐🙏

© जगत सिंह बिष्ट

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #259 ☆ भावना के दोहे – – दुष्यन्त उवाच☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे दुष्यन्त उवाच )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 259 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – दुष्यन्त उवाच ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

आओ बैठो पास तुम, सुन लो मेरी बात।

कहना तुमको है बहुत, बड़ी सुहानी रात।।

शकुन्तले! तुम रूपसी, तुमको रहा निहार।

तुम हो मेरी प्रेमिका, दिल में प्यार अपार।।

प्रेम कुंज ऐसे सजा, अनुपम लगे विहार।

करता हूँ तुमसे शुभे, भाव भरी मनुहार।।

जड़ित अँगूठी देखकर, होता हर्ष अपार।

सुध तुम इतनी भूलती, डूबी जल की धार।।

परिणय मेरे के साथ में, देखो निज शृंगार।

नैन तुम्हारे कह रहे, झलक रहा है प्यार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

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