मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ गीतांजली भावार्थ … भाग 53 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी

? वाचताना वेचलेले ?

☆ गीतांजली भावार्थ …भाग 53 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

९९.

जेव्हा मी सुकाणू ठेवून देतो

तेव्हा ते तू घेण्याची वेळ आली आहे हे मी    जाणतो .

माझी धडपड व्यर्थ आहे. योग्य ते सत्वर करशीलच.

(सुकाणुवरचे) हात काढून घ्यायचे,पराभव स्वीकारायचा आणि माझ्या ऱ्हदयस्था, जिथं जसा आहेस, तिथं तसंच स्वस्थ राहायचं

हेच तुझं भाग्यध्येय आहे.

 

वाऱ्याच्या लहान झुळुकीबरोबरच माझे दीप विझून जातात. ते पेटविताना मी पुन्हा पुन्हा साऱ्या गोष्टी विसरून जातो.

 

पण या खेपेला शहाणपणानं मी अंधारात माझी (फाटकी) सतरंजी जमिनीवर पसरून वाट पाहात राहीन.

हे स्वामी, जेव्हा तुझी इच्छा असेल तेव्हा ये आणि बैस.

 

१००.

आकारहीन पूर्णत्व पावलेला मोती मिळावा,

ही आशा धरून मी सागरतळाशी बुडी मारतो.

 

हवेत (आणि पाण्यानं) जीर्ण झालेल्या

माझ्या या बोटीतून या बंदरातून त्या बंदरात

असा हा प्रवास व भटकणे आता पुरे.

अमरतत्वात मरण पावण्याची माझी आता आकांक्षा आहे.

 

स्वरहीन तंतूच्या संगीताचा जिथं उगम होतो त्या

खोलीविरहित विवराच्या सभागृहात माझ्या

जीवनाची वीणा मी घेऊन जाईन.

 

चिरंतनाच्या स्वरांशी माझ्या वीणेचे स्वर

मी जुळवून घेईन आणि तिचा अखेरचा स्वरझंकार जेव्हा थांबेल तेव्हा शांतीच्या पायाशी माझी शांत वीणा मी समर्पण करेन.

 

१०१.

माझ्या गीतातून सतत मी तुझा शोध घेतला.

त्यांनीच मला दारोदार फिरवलं. माझ्या जगाचा

स्पर्श व शोध मी घेत राहिलो.

 

मी जे काही शिकलो ते सर्व माझ्या गीतांनीच

मला शिकवलं.त्यांनीच मला पवित्र मार्ग दाखवले.

माझ्या ऱ्हदय क्षितिजाच्या वर उगवणारे

सारे तारे त्यांनीच मला दाखवले.

 

सुख-दु:खाच्या अद्भुत नगरीतील ते माझे

वाटाडे झाले, या प्रवासाच्या अखेरच्या सांजवेळी

कोणत्या प्रासादाच्या द्वाराशी त्यांनी मला आणले?

मराठी अनुवाद – गीतांजली (भावार्थ) – माधव नारायण कुलकर्णी

मूळ रचना– महाकवी मा. रवींद्रनाथ टागोर

 

प्रस्तुती– प्रेमा माधव कुलकर्णी

कोल्हापूर

7387678883

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #184 ☆ व्यंग्य – नेताजी का स्मृति-लोप ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  व्यंग्य ‘नेताजी का स्मृति-लोप’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 184 ☆

☆ व्यंग्य ☆ नेताजी का स्मृति-लोप

नेताजी अब सत्तर के हुए। उम्र बढ़ने के साथ नेताजी को डर लगता है कि कहीं चुनाव में टिकट से वंचित न कर दिये जाएँ। उनका कहना है कि नेता को आखिरी साँस तक जनता की सेवा का मौका मिलना चाहिए। अन्त में तिरंगे में लिपट कर न गये तो जीने का क्या मतलब?

नेताजी पिछले पंद्रह सालों में पाँच पार्टियाँ बदल चुके हैं। अब छठवीं में हैं। लोग उन्हें मौसम- विशेषज्ञ कहते हैं। वे हवा सूँघते रहते हैं। जैसे ही किसी दूसरी पार्टी के पावर में आने की संभावना दिखती है, वे बेचैनी से कसमसाने लगते हैं। कदम खुद-ब-खुद उस पार्टी की तरफ बढ़ने लगते हैं। फिर अपनी पार्टी में हज़ार खामियाँ दिखने लगती हैं।

नेता जी का कहना है कि पार्टी के सिद्धान्तों, उद्देश्यों से उन्हें कोई मतलब नहीं है। बस, जनता की सेवा का भरपूर मौका मिलना चाहिए। जिस पार्टी में जनता की सेवा का मौका न मिले उसे अविलंब छोड़ देना चाहिए। ‘तजिए ताहि कोटि बैरी सम, यद्यपि परम सनेही’। लेकिन उनसे ‘जनता की सेवा’ का अर्थ पूछने की हिम्मत किसी की नहीं होती क्योंकि ज़ाहिराना वे अपनी और अपने परिवार की ही सेवा करने के लिए बदनाम हैं।

फिलहाल नेताजी परेशानी में पड़ गये हैं। उनकी स्मरण-शक्ति कमज़ोर हो गयी है। भूल जाते हैं कि वे कितनी पार्टियों में और कब से कब तक रहे। एक डायरी में उन्होंने यह सारी जानकारी लिख रखी थी, लेकिन वे उस डायरी को रखने की जगह भी भूल गये हैं। पार्टी-परिवर्तन का इतिहास याद करने की कोशिश करते हैं तो सब गड्डमड्ड हो जाता है। नेताजी आतंकित हैं। कहीं उनकी वर्तमान पार्टी के हाई कमांड को उनकी हालत का पता चल गया तो क्या होगा? फिर कोई ऊँची कुर्सी या मलाईदार पद नहीं मिलेगा। आगे बेटों- बेटियों को पॉलिटिक्स में जमाने की कोशिश कर रहे हैं। बेटों को चालाकी, मिथ्या भाषण, पाखंड जैसे राजनीतिक गुण सिखा रहे हैं। लेकिन अगर उनकी अपनी स्थिति ही कमज़ोर हो गयी तो सन्तान को कौन पूछेगा?

हालत यह है कि कभी घर से निकलते हैं तो किसी पहले छोड़ी हुई पार्टी के दफ्तर में पहुँच जाते हैं और वहाँ बैठकर लोगों से प्रेमपूर्ण बातचीत और उस पार्टी की तारीफ करने लगते हैं। पार्टी के लोग उनका मुँह देखते रह जाते हैं। उन्हें लगने लगता है कि नेताजी शायद पुरानी पार्टी में वापस आना चाहते हैं। उनके बेटों को पता चलता है तो वे उनको वहाँ से उठा लाते हैं।

बेटे सलाह देते हैं कि उन्हें किसी मनोचिकित्सक को दिखाया जाए, लेकिन नेताजी हाथ उठा देते हैं। कहते हैं, ‘पार्टी हाई कमांड को यह बात मालूम हो गयी तो तुरन्त मुझे कचरेदान में डाल देंगे। मनोचिकित्सक के पास गया तो रिपोर्टर और कैमरेवाले सूँघते हुए पहुँच जाएँगे। न बाबा, मैं किसी डॉक्टर के पास नहीं जाऊँगा। पॉलिटिक्स में मनोचिकित्सक के पास जाने का मतलब खुदकुशी करना है।’

लाचार, बेटों ने उन्हें घर में ही रहने के लिए कह दिया है। उन पर चौबीस घंटे निगरानी रहती है। रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों से मिलने की मनाही है। बाहर जाएँ तो किसी बेटे के साथ ही जाएँ। बेटे खुद ही परेशान हैं क्योंकि पिताजी निर्बल हो गये तो पॉलिटिक्स में उनका कैरियर कैसे बनेगा?

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 131 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 131 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 131) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 131 ?

☆☆☆☆☆

Walk Alone

सच कहने का अगर

इतना शौक है,

तो तन्हा चलने का भी

हौसला रखना…!

☆☆

If you are so fond of

telling the truth,

Then, have the courage

to walk all alone…!

☆☆☆☆ 

मेरी इक ज़िंदगी के कितने

हिस्सेदार  हैं  मगर,

किसी की  जिंदगी  में  मेरा

हिस्सा  क्यूँ  नहीं  होता…

हमारे लिए तो इस दुनिया

में खास वो ही लोग हैं….

जो वक्त आने पर अपना

कीमती वक्त दिया करते हैं..!

☆☆

There are umpteen

sharers of my life,

But I dont have any claim

in someone else’s life…!

For me those people   only

reside in my heart…

Who give their precious time

when the time comes..!

☆☆☆☆☆

Sleepless Soul

☆ 

तमन्नायें यूंही मचलती रहीं

रातें आँखों में ढलती रहीं,

जिस्म को तो नींद आती रही मगर

रूह करवट बदलती रही

☆☆ 

Yearnings kept on lingering but the

nights kept on passing in the eyes,

Body always fell asleep but the

sleepless soul kept tossing itself…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 180 ☆ शिवोऽहम्… (5) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 180 शिवोऽहम्… (5) ?

आत्मषटकम् पर मनन-चिंतन की प्रक्रिया में आज पाँचवें श्लोक पर विचार करेंगे। अपने परिचय के क्रम में अगला आयाम आदिगुरु शंकराचार्य कुछ यूँ रखते हैं,

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:

पिता नैव मे नैव माता न जन्म:

न बंधुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं

चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।।

इसका शाब्दिक अर्थ है कि न मुझे मृत्यु का भय है, न मुझमें जाति का कोई भेद है। न मेरा कोई पिता है, न कोई माता है, न ही मेरा जन्म हुआ है। न मेरा कोई भाई है, न कोई मित्र, न कोई गुरु  है और न ही कोई शिष्य। मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ।

मृत्यु के संदर्भ में देखें तो शंकराचार्य जी महाराज के कथन से स्पष्ट है कि देह छूटना आशंका नहीं होना चाहिए। यों भी यात्रा में पड़ाव आशंका नहीं हो सकता। यात्रा तो परमात्मा के अंश की है, यात्रा आत्मा की है। यात्रा के सनातन और यात्री के शाश्वत होने का प्रसंग आए और योगेश्वर उवाच स्मृति में न आए, यह संभव ही नहीं। भगवान गीतोपदेश में कहते हैं,

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।

आत्मा का किसी भी काल में न जन्म होता है और न ही मृत्यु। यह पूर्व न होकर, पुनः न रहनेवाला भी नहीं है। आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।

मैं मृत्यु नहीं हूँ, अत: स्वाभाविक है कि जन्म भी नहीं हूँ। जो कभी जन्मा ही नहीं, वह मरेगा कैसे? जो कभी मरा ही नहीं, वह जन्मेगा कैसे?..ओशो की समाधि पर लिखा है, ‘नेवर बॉर्न, नेवर डाइड, ऑनली विज़िटेड दिस प्लानेट अर्थ बिटविन….’ उन्होंने न कभी जन्म लिया, न उनकी कभी मृत्यु हुई। वे केवल फलां तिथि से फलां तिथि तक सौरग्रह धरती पर रहे।’

विचार करें तो बस यही अवस्था न्यूनाधिक हर जीवात्मा की है। स्पष्ट है कि केवल जन्म और मृत्यु तक सीमित रखकर जीवन नहीं देखा जा सकता।

पिता न होना अर्थात किसीके जन्म का कारक न बनना और माता न होना अर्थात किसीको जन्म देने का कारण न होना। जन्म से मृत्यु तक जीवात्मा द्वारा देह धारण  करने का कारण और कारक परमात्मा ही हैं। प्राप्त देह, यात्रा की निमित्त मात्र है।

न मार्ग का दर्शन, न मार्ग का अनुसरण.., न गुरु होना, न शिष्य होना। बंधु, मित्र न होना, रक्त का या परिचय का सम्बंध न होना। जगत के सम्बंधों तक सीमित नहीं है अस्तित्व। माता, पिता, गुरु, शिष्य, बंधु, मित्र इहलोक के नश्वर सम्बंध हैं जबकि जीवात्मा ईश्वर का आंशिक अवतरण है।

जातिभेद का उल्लेख करते हुए आदिगुरु स्पष्ट करते हैं कि मैं न कुलविशेष तक सीमित हूँ, न ही वंशविशेष हूँ।  ‘ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।’ …जाति का एक अर्थ उत्पत्ति भी है। जीवात्मा उत्पत्ति और विनाश से परे है।

जीवात्मा अपरिमेय संभावना है जिसे देह और मर्त्यलोक की आशंका तक सीमित कर हम अपने अस्तित्व को भूल रहे हैं। अपनी एक रचना स्मरण आ रही है,

संभावना क्षीण थी, आशंका घोर,

बायीं ओर से उठाकर, आशंका के सारे शून्य

धर दिये संभावना के दाहिनी ओर..,

गणना की संभावना खो गई,

संभावना अपरिमेय हो गई..!

मनुष्य अपने अस्तित्व की अपरिमेय संभावनाओं को पढ़ने लगे तो कह उठेगा,..‘मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ,…शिवोऽहम्।’

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 130 ☆ – गीत – ओ! मेरी रचना संतानों आओ… – ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  गीत “~ ओ! मेरी रचना संतानों आओ… ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 130 ☆ 

~ गीत ~ ओ! मेरी रचना संतानों आओ ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

ओ! मेरे प्यारे अरमानों,

आओ, तुम पर जान लुटाऊँ.

ओ! मेरे सपनों अनजानों-

तुमको मैं साकार बनाऊँ…

*

मैं हूँ पंख उड़ान तुम्हीं हो,

मैं हूँ खेत, मचान तुम्हीं हो.

मैं हूँ स्वर, सरगम हो तुम ही-

मैं अक्षर हूँ गान तुम्हीं हो.

ओ! मेरी निश्छल मुस्कानों

आओ, लब पर तुम्हें सजाऊँ…

*

मैं हूँ मधु, मधु गान तुम्हीं हो.

मैं हूँ शर संधान तुम्हीं हो.

जनम-जनम का अपना नाता-

मैं हूँ रस रसखान तुम्हीं हो.

ओ! मेरे निर्धन धनवानों आओ!

श्रम का पाठ पढाऊँ…

*

मैं हूँ तुच्छ, महान तुम्हीं हो.

मैं हूँ धरा, वितान तुम्हीं हो.

मैं हूँ षडरस मधुमय व्यंजन.

‘सलिल’ मान का पान तुम्हीं हो.

ओ! मेरी रचना संतानों आओ,

दस दिश तुम्हें गुंजाऊँ…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१०-३-२०१०, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – “मानवता सबसे बड़ा धर्म” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – “मानवता सबसे बड़ा धर्म” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

मानवता को जब मानोगे, तब जीने का मान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

जाति-पाँति में क्या रक्खा है, ये बेमानी बातें हैं।

मानव-मानव एक बराबर, ऊँचनीच सब घातें हैं।।

नित बराबरी को अपनाना, यह प्रभु का जयगान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल

पेट है भूखा,तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल

अंतर्मन में है करुणा तो,मानव गुण की खान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

धन-दौलत मत करो इकट्ठा, कुछ नहिं पाओगे

जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे

हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता नित यशगान है।।

 

शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा

वही जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा

देव नहीं,मानव कहलाऊँ, यही आज अरमान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

जीवन का तो अर्थ प्यार है, अपनेपन का गहना है।

वह ही तो नित शोभित होता, जिसने इसको पहना है।।

जो जीवन को नहिं पहचाना, वह मानव अनजान है।

मानवता है धर्म बड़ा, मिलता जिससे यशगान है।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ साहित्य की दुनिया ☆ प्रस्तुति – श्री कमलेश भारतीय ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹 साहित्य की दुनिया – श्री कमलेश भारतीय  🌹

(साहित्य की अपनी दुनिया है जिसका अपना ही जादू है। देश भर में अब कितने ही लिटरेरी फेस्टिवल / पुस्तक मेले / साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने लगे हैं । यह बहुत ही स्वागत् योग्य है । हर सप्ताह आपको इन गतिविधियों की जानकारी देने की कोशिश ही है – साहित्य की दुनिया)

☆ माधव कौशिक साहित्य अकादमी अध्यक्ष

यह हमारे लिये बड़े गौरव व खुशी की बात है कि माधव कौशिक देश की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष बने । वे मूलतः हरियाणा की छोटी काशी कहे जाने वाले भिवानी से संबंध रखते हैं और काफी समय से चंडीगढ़ ही रहते हैं । एक सशक्त साहित्यकार और हरियाणा साहित्य अकादमी से अनेक बार पुरस्कृत । चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी हैं । पहले वे काफी वर्षों से साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे । अब वे विधिवत साहित्य अकादमी के अध्यक्ष बन गये । हमारी ओर से बधाई ।

कुरूक्षेत्र में ओमप्रकाश ग्रेवाल को याद किया : कुरूक्षेत्र के कैलाश नगर स्थित डॉ.ओम प्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान द्वारा एक ऐतिहासिक महत्व का अविस्मरणीय व्याख्यान करवाया गया जिसका विषय था – ‘ देश विभाजन : तब और अब’ व्याख्यान देने के लिए विख्यात विद्वान, देश और दुनिया की अनेक सर्वोत्तम उच्च शिक्षा संस्थाओं में रहे वर्तमान में अमेरिका की ओहायो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ. अमृतजीत सिंह विशेष रुप से कुरुक्षेत्र आमंत्रित थे । अमृतजीत सिंह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और डॉ. ग्रेवाल के विद्यार्थी रहे हैं । उन्होंने डॉ ग्रेवाल के साथ अपनी बहुत सी स्मृतियों को साझा किया। व्याख्यान शुरू करते हुए उन्होंने बताया कि सन् 1947 में देश की आजादी के साथ विभाजन की त्रासदी भी घटित हुई। इस समय हुए दंगे-फसादों में दस लाख से ऊपर निरपराध लोग मारे गए और एक करोड़ से ऊपर विस्थापित हुए । उस समय के दर्दनाक वृत्तांत बहुत हैं जिनमें हिंसा और नफरत है लेकिन उतने ही किस्से मोहब्बत, इन्सानियत, एक-दूसरे की हिफाज़त करने के भी हैं ।

डॉ सिंह ने कहा कि विभाजन दिल और दिमाग में जब तक खत्म नहीं होता तब तक यह निरंतर चलता रहेगा । उन्होंने कहा विभाजन 1984 में भी हुआ था 1994 में भी हुआ था 2002 में भी हुआ था और दिलों में तो यह अब भी जारी है। भीष्म साहनी और पाकिस्तानी लेखक इंतजार हुसैन के साहित्य का उदाहरण देकर उन्होंने विभाजन को खत्म करने के लिए कुछ सूत्र दिए । हमें नए सिरे से बेहतर भविष्य बनाने के लिए काम करना पड़ेगा उन्होंने बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए कहा कि वह देश आर्थिक व्यवस्था में हमसे बेहतर काम कर रहा है क्योंकि उसने विभाजन की राजनीति को छोड़ दिया है ।

बहस में सुरेन्द्र पाल सिंह ने लखविंदर पाल सिंह ग्रेवाल, प्रिंसिपल सहेमराज शर्मा, ओम सिंह अशफ़ाक, डॉ.टी.आर.कुण्डू, डॉ.दिनेश दधीचि, डॉ. रामेश्वर दास,दीपक वोहरा, विकास शर्मा,शशि प्रकाश,सुशील, डॉ. रविन्द्र गासो,मुरथल यूनिवर्सिटी से जसमिन्द्र,राहुल मलिक आदि ने गंभीर प्रश्न खड़े किए ।

इंडिया नेटबुक्स सम्मान : नोएडा में इंडिया नेटबुक्स के संचालक डाॅ संजीव कुमार ने पिछले रविवार लेखकों को सम्मानित प्रदान किये । सर्वोच्च सम्मान वरिष्ठ लेखिका चित्रा मुद्गलप्रताप सहगल को प्रदान किया गया । इनके अतिरिक्त देश भर से पचपन लेखकों /संपादकों को सम्मानित किया गया जिसमें जनसत्ता के संपादक मुकेश भारद्वाज उल्लेखनीय हैं । किसी भी प्रकाशन संस्थान द्वारा लेखकों को सम्मानित करना एक अच्छी परंपरा है जिसे संजीव कुमार निभा रहे हैं । इनके साथ डाॅ प्रेम जनमेजय भी एक सलाहकार की तरह जुटे हैं । पंजाब , चंडीगढ़ से लेकर छत्तीसगढ़, राजस्थान तक से लेखक इसमें भाग लेने आये । भव्य समारोह के लिए डाॅ संजीव कुमार को बधाई । पर सम्मान के लिए इतनी लम्बी सूची थोड़ी कम की जानी चाहिए जिससे इनकी गरिमा बनी रह सके ।

हिसार मे रंग आंगन नाट्योत्सव : हिसार में पिछले नौ वर्ष से रंगकर्मी मनीष जोशी अभिनय रंगमंच की ओर से रंग आंगन नाट्योत्सव का आयोजन करते हैं । इस फिर भी दस से सत्रह मार्च तक यह नाट्योत्सव आयोजित किया गया । इसमें मुम्बई से प्रसिद्ध एक्टर राजेंद्र गुप्ता और हिमानी शिवपुरी अपने नाटक -जीना इसी का नाम है के साथ हिसार आये । तुलसी सभागार में इसका प्रभावशाली मंचन हुआ । दोनों कलाकार बाद में बाल भवन में लोगों से खूब सहजता से मिले और नाटक भी देखा । इस नाट्योत्सव में असम , दिल्ली , पंजाब व हरियाणा से अनेक नाट्य दल अपनी नयी प्रस्तुतियां मंचित करने आये । इसमें एक दिन बच्चों के लिये कठपुतली शो भी रखा जाता है और प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना राखी जोशी भी अपनी छात्राओं को साथ एक शो देती हैं । इस नाट्योत्सव का अब हर साल हिसारवासियों को बेसब्री से इंतजार रहता है ।

दिल्ली में नट सम्राट : दिल्ली की नाट्य संस्था नट सम्राट के संस्थापक व रंगकर्मी श्याम कुमार ने नट सम्राट नाट्योत्सव का आयोजन किया । इसमें एक दर्जन साहित्यकारों व रंगकर्मियों को नट सम्राट सम्मान प्रदान किये गये जिनमें क्रिटिक अवाॅर्ड मुझे भी मिला । ये नाट्य संस्थायें नाटक की मशाल को जलाये हुए हैं
इसके लिये इनके जज्बे को सलाम ।

चित्रा मुद्गल और शशि पुरवार को सम्मान : मुम्बई निवासी सशक्त रचनाकार शशि पुरवार को महाराष्ट्र साहित्य अकादमी की ओर से नभदेव सम्मान दिये जाने की घोषणा हुई है । इसी अकादमी ने चित्रा मुद्गल को सर्वोच्च सम्मान देने की घोषणा भी की है ।

साभार – श्री कमलेश भारतीय, पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क – 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

(आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी द्वारा साहित्य की दुनिया के कुछ समाचार एवं गतिविधियां आप सभी प्रबुद्ध पाठकों तक पहुँचाने का सामयिक एवं सकारात्मक प्रयास। विभिन्न नगरों / महानगरों की विशिष्ट साहित्यिक गतिविधियों को आप तक पहुँचाने के लिए ई-अभिव्यक्ति कटिबद्ध है।)  

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ मी घर बांधतो घरासारखं… कवि- अज्ञात ☆ प्रस्तुती सुश्री मीनल केळकर ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?  मी घर बांधतो घरासारखं… कवि- अज्ञात ? ☆ प्रस्तुती सुश्री मीनल केळकर

मी घर बांधतो घरासारखं

आणि

हा पक्षी माझ्याच घरात घर बांधतोय त्याच्या मनासारखं

 

मी विचारलं त्याला , “बाबारे, ना तुझ्या नावाचा सातबारा,

ना तुझ्या नावाचं मुखत्यारपत्र!”

तर म्हणतो कसा,

 

“अरे सोपं असतं का कुणाच्या घरात जागा करणं 

आणि कुणाच्या मनात घर करणं”

 

माझं घर तर काड्यांचं आहे.

तुझं घर माडीचं आहे!

 

नात्यांची घट्ट वीण, विणत गेली नाही, तर

माडीचं घर सुद्धा काडीमोलाचं असतं!

 

मला नेहमी वाटायचं माझ्यामुळेच त्या पक्ष्यांचं घर झालं.

आता वाटतंय.

त्याच्यामुळेच माझं विचारांचं प्लास्टर पक्क झालं.

 

आता त्याचा चिवचिवाट माझ्यासाठी पसायदान असते.

तो डोळे झाकून घरट्यात बसला, की समाधिस्त आणि समृद्ध वाटतो.

 

त्या पक्षाने शिकवलं मला…

 

एका घराची दोन घरं होण्यापेक्षा घरात घर करुन राहाणं

 

आणि

 

दुसऱ्याच्या मनात घर करुन राहणं कधीही चांगलं….. 

 

कवि – अज्ञात 

प्रस्तुती – सुश्री मीनल केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #181 – 67 – “अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है …”)

? ग़ज़ल # 67 – “अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

किस तरफ़ जा रही नई नस्ल भटक कर,

कब्र में अश्क़ बहाती मरियम सुबक कर।

तकता मुझे कौन मुहब्बत भरी नज़र से,

किसने मुझे देखा खिड़की से दुबक कर।

भूचाल सा आया है फिर कोई मेरे अंदर,

निकले मुँह से ग़लत  लफ़्ज़ अटक कर।

होने लगा जब  शोर ज्यादा  मेरे  अंदर,

मैं ख़ुद से बहुत दूर जा बैठा छिटक कर।

अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है मेरा दिल,

आतिश देखा जाएगा चाँद से चिपक कर।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 59 ☆ ।। जिन्दगी अभी बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। जिन्दगी अभी बाकी है ।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 59 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। जिन्दगी अभी बाकी है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

नई उड़ान नए आगाज़   का वक़्त बाकी है।

नई सोच किसी नए साज का वक़्त बाकी है।।

अभी तो खेली है बस पहली पारी जीवन की।

दूसरी पारी का  खुलना राज़ अभी बाकी है।।

[2]

अधूरी हसरतों को नए परवाज़ अभी देना है।

जो पीछे छूट गए उनको आवाज़ अभी देना है।।

अभी तक जो सुप्त  ललक लगन कई कामों की।

जगाकर उस जोश कोअपनाआज अभी देना है।।

[3]

देश समाज के लिए सरोकार अभी निभाना है।

बढ़करआगे कुछ नया करके दिखाना है।।

अभी उम्र गर साठ   की  हुई तो क्या बात।

नई नई मंजिलों पर लगानाअभी निशाना है।।

[4]

बहुत दूर जाना कि जिंदगी अभी बाकी है।

जोशो जनून का जाम खुद बनेगा साकी है।।

बच्चों परिवार को दिखाना हरअच्छा रास्ता।

जिस पल ठहरे बनेगा जीवन बैसाखी है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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