मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #157 ☆ खडा मिठाचा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 157 ?

खडा मिठाचा

तो आकाशी भिरभिरणारा पतंग होता

रस्त्यावरती आला झाला भणंग होता

 

मठ नावाचा महाल त्याने उभारलेला

काल पाहिले तेव्हा तर तो मलंग होता

 

गंमत म्हणुनी खडा मारुनी जरा पाहिले

क्षणात उठला त्या पाण्यावर तरंग होता

 

काय जाहले भाग्य बदलते कसे अचानक

तरटा जागी आज चंदनी पलंग होता

 

चार दिसाची सत्ता असते आता कळले

आज गुजरला खूपच बाका प्रसंग होता

 

माझी गरिबी सोशिक होती तुझ्यासारखी

मुखात कायम तू जपलेला अभंग होता

 

घरात माझ्या तेलच नव्हते फोडणीस पण

खडा मिठाचा वरणामधला खमंग होता

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग 9 ☆ सौ. अमृता देशपांडे ☆

सौ. अमृता देशपांडे

? विविधा ?

☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग – 9 ☆ सौ. अमृता देशपांडे  

सध्याच्या digital युगाच्या झपाट्याने बदलत असलेल्या वेगानं पुढे जाणा-या जगात धावताना माणसाच्या संवेदना बोथट झाल्या आहेत की काय असे वाटू लागले आहे. जे नैसर्गिक होतं ते कृत्रिम झाले आहे. हल्ली रडावंसं वाटतं असताना रडलं तर लोक हसतील किंवा आपण कमकुवत ठरू म्हणून लोक रडण्याचं टाळतात, डोळ्यातलं पाणी परतवून लावतात. तेव्हा ते रडणारं ह्रदय घाबरतं आणि आपलं काम करताना त्याचाही तोल ढळतो. ह्रदयाच्या आजाराचं आणि अकार्यक्षमतेचं हे सुद्धा एक कारण असू शकतं. मन व शरीर यांची एकरूपता म्हणजे तंदुरुस्ती. अशी निरामय तंदुरुस्ती हवी असेल तर संवेदना बोथट होणार नाहीत याची काळजी घेतली पाहिजे. शारिरीक व मानसिक सुदृढतेसाठी आचार-विचार, आहार-विहार या सह हसू आणि आसू दोन्ही आवश्यक आहेत.

देवाने सृष्टी निर्माण करताना डोळ्यात पाण्याची देणगी दिली आहे. 

गाई म्हशी, कुत्रे घोडे, याकडे, हत्ती असे पशू रडून आपल्या भावना व्यक्त करतात. त्यांना अश्रू आवरण्याची बुद्धी नाही म्हणून ह्रदयाचे दुखणे नाही. या दैवी देणगी चा प्रसंगी अडवणूक  करून,  नाकारून आपण अपमान तर करत नाही ना असा विचार मनात येतो.

थोडक्यात काय तर आपल्या भावना आणि मन खुलेपणाने योग्य वेळी योग्य प्रकारे व्यक्त होणे महत्वाचे. सुख-दुःख, हसू-आसू, ऊन- सावली यांचं कुळ एकच. नैसर्गिकता. दुःख न मागता येतंच, सावली आपल्याला हवीच असते. मग आसू का नाकारायचे? ते सकारात्मतेने अंगिकारून व्यक्त करावेत. मन हलकं होतं……..

(क्रमशः… प्रत्येक मंगळवारी)

© सौ. अमृता देशपांडे 

पर्वरी – गोवा

9822176170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 107 – दोहे – श्याम समर्पिता मीरा से..(मीरा दोहावली) ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके दोहे – श्याम समर्पिता मीरा से..(मीरा दोहावली)।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 107 – दोहे – श्याम समर्पिता मीरा से..(मीरा दोहावली) ✍

सुमिरन मीरा नाम का, बजे हृदय के तार।

 प्रेम भक्ति के सिंधु में, उठे ज्वार ही ज्वार।।

✍

चिन्मय वाणी प्रेम की, गोपी प्रेम प्रतीति ।

मीरा ने आरंभ की, नई प्रीति की रीति ।।

✍

मीरा दासी श्याम की, कृष्णमयीअनमोल ।

जगत प्रबोधित कर रही, घूँघट के पट खोल ।।

✍

मोर मुकुट वंशी हृदय, नेह-निलय घनश्याम ।

नाचे मीरा बावरी, ले गिरधर का नाम।।

✍

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 109 – “घर में सहमी…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “घर में सहमी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 109 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “घर में सहमी” || ☆

अँधियारे के

इस किबाड़ में

वे गुण सूचक-

सूत्र सभी हैं,

जो पहाड़ में-

 

रहा किये हैं

सब पेड़ों में

शहर, ग्राम

कस्बे खेड़ों में

 

सूखी-सूखी

लिये पसलियाँ

बिन पानी

भीगे अषाढ़ में

 

ताका करती

कई कनखियों

की परतों से

निकल बदलियों-

 

से गिर चमकी

तड़ित अकेली

अस्त व्यस्त सी

किस उजाड़ में

 

रूपदर्शना

सगुन-लता के

सुरमे के रंग

पगी दिशा के-

 

घर में सहमी

मौन खड़ी है

कामदेव की

कठिन आड़ में

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लघुकथा # 156 ☆ “कुर्सी का सवाल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “कुर्सी का सवाल”)  

☆ लघुकथा # 156 ☆ “कुर्सी का सवाल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

नेता जी हमसे हमेशा भाषण लिखवाते हैं फिर सुबह चार बजे उठकर भाषण को चिल्ला चिल्ला कर रटते हैं। आज के भाषण में हमने तुलसीदास जी की ये चौपाई का जिक्र कर दिया……

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

नेताजी ने इस चौपाई को सौ बार पढ़ा पर उन्हें याद नहीं हो रही थी और न इसका मतलब समझ आ रहा था तो उन्होंने चुपके से फोन करके हमें अकेले में बुलाया और कहने लगे इस बार के भाषण में ये क्या लिख दिया है हमारे समझ में नहीं आ रहा है, इसका असली मतलब बताइये। हमने कहा कि तुलसीदास जी ने इन चार लाइनों में कहा है कि  मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से  प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है ।

नेताजी कुछ सोचते रहे फिर बोले – नाश हो जाता है तो कोई बात नहीं, हमारी कुर्सी तो सलामत रहेगी न……..?

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 99 ☆ # कितने दूर, कितने पास… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “#कितने दूर, कितने पास…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 99 ☆

☆ # कितने दूर, कितने पास… # ☆ 

सुबह सुबह मार्निंग वाक में

घूमते हुए

ठंडी ठंडी शुद्ध हवा को

चूमते हुए

हमारा पुराना रिटायर्ड मित्र मिला

बातों का चल पड़ा सिलसिला

उसी समय उसके अमेरिका वाले

पुत्र का फोन काल आया

हमारा मित्र खुशी से मुस्कुराया

पुत्र ने पूछा,’ पापा ! आप और मम्मी कैसे हैं ?

दोनों की तबीयत कैसी है ?

मित्र ने कहा,’ सब बढ़िया है

आप लोग भी खुश रहो,

मुस्कुराते रहो ‘

 

कुछ देर बाद दूसरे पुत्र का फोन आया,

पापा,’ आपकी तबियत कैसी है?

शुगर नार्मल है या पहले जैसी है?

मित्र ने कहा – यार, मस्त हूँ 

अपने आप में व्यस्त हूँ

कल ही चेक कराया है,

सब नार्मल आया है

सब खा पी रहा हूँ,

मस्ती में जी रहा हूँ.

मित्र ने बताया यह एयर फोर्स में है,

हमको प्यारा मोस्ट है,

श्रीनगर में पोस्ट है

 

दोनों बेटे सुबह सुबह फोन करते हैं,

हाल चाल पूछते रहते हैं,

दोनों बड़े सुशील समझदार बच्चे हैं,

यार, मुझसे तो दोनों अच्छे हैं

मैंने कहा,’ भाई तुम भाग्यवान हो,

किस्मत वाले इन्सान हो

तुम्हे जीते जी मोक्ष मिल गया है

जीवन में ही स्वर्ग खिल गया है

वरना –

आज के युग में

बच्चे माँ-बाप को बोझ कहते हैं

बुढ़ापे में लोग क्या क्या सहते हैं

साथ में रहकर भी

माँ-बाप को कोई पूछता नहीं है

बीबी बच्चे के सिवा उनको

कुछ सूझता नहीं है

हमारे जैसे कितने साथ रहकर भी

बच्चों से कितने दूर हैं

यह बात बहुत ही खास है

कि

तुम्हारे बच्चे देश-विदेश में रहकर भी ,

तुम्हारे कितने पास है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 99 ☆ तूच आहे मनोहरा… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

 

?  हे शब्द अंतरीचे # 99 ? 

☆ तूच आहे मनोहरा… ☆

कृष्णा केशवा माधवा,

आलो शरण मी तुला

नको अंत पाहू माझा

घोर लागला जीवाला…०१

तूच आहे मनोहरा

माझा सदैव कैवारी

नको मला काही दुजे

बहू त्रासलो संसारी…०२

किती जन्म वाया गेले

माझे मला न कळले

गणित अवघड पहा

नाही कोडे, कधीच सुटले…०३

चालू जन्म माझा कृष्णा

तुझ्याचं लेखी लागावा

राज जीवनाचे कठीण

धाव मोहना, समयाला…०४

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार – पुष्प – भाग ३६ – परिव्राजक १४ – मध्यभारत ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆

डाॅ.नयना कासखेडीकर

?  विविधा ?

☆ विचार – पुष्प – भाग ३६ – परिव्राजक १४ – मध्यभारत ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर 

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

जुनागडहून स्वामीजी पालिताणा, नडियाद, बडोदा इथे फिरले. जुनागडच्या दिवाण साहेबांनी बडोद्याला जाताना ज्यांच्या नावे परिचय पत्र दिलं होतं ते बहादुर मणीभाई यांनी बडोद्याला स्वामीजींची व्यवस्था केली होती. तिथून स्वामीजी लिमडीच्या ठाकूर साहेबांखातर महाबळेश्वरला गेले. ठाकुर साहेबांनी स्वामीजींकडून दीक्षा घेतली होती. तिथे ते एक दीड महिना राहिले. त्या काळात महाबळेश्वर हे एक श्रीमंत व्यापारी आणि धनवंत संस्थानिक यांचं, दिवस आरामात घालवण्याचं एक ठिकाण मानलं जात होतं. इथला मुक्काम आणि ठाकूर यांची भेट आटोपून, ते पुण्याहून ते खांडवा इथं गेले आणि तिथले वकील हरीदास चटर्जी यांच्याकडे उतरले. दोन दिवसातच त्यांना स्वामीजी एक केवळ सामान्य बंगाली साधू नसून, ते असाधारण असं श्रेष्ठ व्यक्तिमत्व आहे हे कळलं. तिथे अनेक बंगाली लोक राहत होते, त्यांचीही स्वामीजींची ओळख झाली. काही वकील, न्यायाधीश, संस्कृतचे अभ्यासक असे लोक भेटल्यानंतर स्वामीजींचे उपनिषदातील वचनांवर भाष्य, संगीतावरील प्रभुत्व, आणि एकूणच त्यांचे प्रभावी व्यक्तिमत्व यामुळे हे लोक भारावून गेले होते.(खांडवा म्हटलं की आठवण झाली ती अशोक कुमार, अनुप कुमार आणि किशोर कुमार गांगुली यांची, हे सिनेसृष्टीतले गाजलेले कलावंत सुद्धा या खांडव्याचेच राहणारे.)

खांडव्याहून स्वामीजींनी इन्दौर, उज्जैन, महेश्वर, ओंकारेश्वर या ठिकाणी भेटी दिल्या. भारतातल्या  बारा ज्योतिर्लिंगापैकी एक शिवाचे स्थान असलेले उज्जैन शहर, महाकवी कालीदासांचे उज्जैन, दानशूर आणि कर्तृत्ववान असलेल्या अहिल्यादेवी होळकर यांचे  इन्दौर आणि महेश्वर, अशी पवित्र आणि प्रसिद्ध ठिकाणं पाह्यला मिळाल्याने स्वामीजींना खूप आनंद झाला. ही ठिकाणं फिरताना स्वामीजींना खेडोपाड्यातली गरीबी दिसली. पण त्या माणसांच्या मनाची सात्विकता आणि स्वभावातला गोडवा पण दिसला. हीच आपली खरी संस्कृती आहे हे पुन्हा एकदा सिद्ध झालं. याच्याच बळावर आपल्या देशाचं पुनरुत्थान घडवून आणता येईल असा विश्वास त्यांना वाटला होता. कारण त्यांना भारतातील सामान्य जनतेचं प्रत्यक्ष दर्शन झालं होतं.

या भागात त्यांनी जे पाहिलं आणि त्यांना जाणवलं ते वर्णन आपल्या दिवाण साहेबांच्या प्रवास वार्तापत्रात ते करतात. ते म्हणतात, “एक गोष्ट मला अतिशय खेदकारक वाटली ती म्हणजे, या भागातील सामान्य माणसांना संस्कृत वा अन्य कशाचेही ज्ञान नाही. काही आंधळ्या श्रद्धा आणि रूढी यांचे गाठोडे हाच काय तो सारा यांचा धर्म आहे आणि त्यातील सर्व कल्पना, काय खावे, काय प्यावे, किंवा स्नान कसे करावे एव्हढ्या मर्यादेत सामावल्या आहेत. धर्माच्या नावाखाली काहीही सांगत राहणारे आणि वेदातील खर्‍या तत्वांचा गंध नसलेले स्वार्थी व आप्पलपोटे लोक समाजाच्या अवनतीला जबाबदार आहेत”.

हा प्रवास संपवून स्वामीजी पुन्हा खांडव्याला हरीदास चटर्जी यांच्याकडे आले. हरीदास पण स्वामीजींच्या व्यक्तिमत्वावर भारावून गेले होते. त्यातच शिकागो इथं जागतिक सर्वधर्म परिषद भरणार आहे ही बातमी त्यांना समजली होती. हरीदास बाबू स्वामीजींना म्हणाले, आपण शिकागोला जाऊन हिंदू धर्माचे प्रतिनिधित्व करावे. हा विषय स्वामीजींच्या समोर याआधी पण मांडला गेला होता. धर्मपरिषद म्हणजे, विचार मांडण्यासाठी योग्य व्यासपीठ. पण स्वामीजी म्हणाले, प्रवास खर्चाची व्यवस्था होईल तर मी जाईन. धर्म परिषदेला जायला तयार असल्याची इच्छा स्वामीजींनी पहिल्यांदाच व्यक्त केली होती.

हरीदास बाबूंचे भाऊ मुंबईत राहत होते. हरीदास बाबूंनी स्वामीजींना परिचय पत्र दिलं आणि सांगितलं की, माझे बंधू तुमची मुंबईत, बॅरिस्टर शेठ रामदास छबिलदास यांची ओळख करून देतील. त्यांची यासाठी काही मदत होऊ शकते. मध्यप्रदेशातली भ्रमंती संपवून स्वामीजी मुंबईला आले. हरीदास बाबूंच्या भावाने ठरल्याप्रमाणे स्वामीजींचा छबिलदास यांच्याशी परिचय करून दिला. छबिलदास यांनी तर स्वामीजींना आपल्या घरीच आस्थेने ठेऊन घेतले. छबिलदास आर्यसमाजी होते. स्वामीजी जवळ जवळ दोन महीने मुंबईत होते. छबिलदासांकडे स्वामीजींना काही संस्कृत ग्रंथ वाचायला मिळाले त्यामुळे ते खुश होते. छबिलदास एकदा स्वामीजींना म्हणाले, “अवतार कल्पना आणि ईश्वराचे साकार रूप यांना वेदांतात काहीही आधार नाही. तुम्ही तो काढून दाखवा मी आर्य समाज सोडून देईन”. आश्चर्य म्हणजे स्वामीजींनी त्यांना ते पटवून दिलं आणि छबिलदास यांनी आर्यसमाज खरंच सोडला. यामुळे त्यांच्या मनात स्वामीजींबद्दल खूप आदर निर्माण झाला हे ओघाने आलेच.

आता स्वामीजी मुंबईहून पुण्याला जायला निघणार होते. छबिलदास त्यांना सोडायला स्टेशनवर आले होते. रेल्वेच्या ज्या डब्यात स्वामीजी चढले त्याच डब्यात योगायोगाने बाळ गंगाधर टिळक चढले होते. ते छबिलदास यांच्या जवळचे परिचयाचे असल्याने त्यांनी स्वामीजींचा परिचय करून दिला आणि यांची व्यवस्था आपल्या घरी करावी असे टिळकांना सांगीतले. बाळ गंगाधर टिळक नुकतेच राजकीय क्षेत्रात सक्रिय झाले होते. तर स्वामीजींना राजकारणाशी काहीही कर्तव्य नव्हते पण, हिंदूधर्माविषयी प्रेम, संस्कृत धर्म ग्रंथांचा अभ्यास, भारतीय संस्कृतीचा जाज्वल्य अभिमान, अद्वैतवेदांताचा पुरस्कार या गोष्टी दोघांमध्ये समान होत्या. तसच भगवद्गीते विषयी प्रेम हा एक समान धागा होता. देशप्रेमाचे दोघांचे मार्ग फक्त वेगळे होते. दोघांचा रेल्वेच्या एकाच डब्यातून मुंबई–पुणे प्रवास सुरू झाला.

 © डॉ.नयना कासखेडीकर

क्रमशः…

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

 vichar-vishva.blogspot.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ गीतांजली भावार्थ … भाग 30 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी

? वाचताना वेचलेले ?

☆ गीतांजली भावार्थ …भाग 30 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

४४.

छाया प्रकाशाचा लपंडाव जिथं चालला आहे,

वसंतामागोमाग वर्षाऋतूंच आगमन जिथं होतंय

त्या ठिकाणी बसावं,

तो लपंडाव, ते आगमन पहावं,

यात मला आनंद आहे.

 

 अज्ञात आकाशातून

 शुभवार्ता आणणाऱ्या दूतांनो. . . !

 रस्त्यावरून वेगानं जाण्यापूर्वी मला दर्शन द्या.

 

माझं ऱ्हदय भरून आलंय..

वाहणाऱ्या वाऱ्याचा श्वास किती मधुर आहे!

 

पहाट प्रहरापासून संध्यासमयापर्यंत

मी माझ्या दाराशी वाट पहात बसलो आहे,

तुझ्या दर्शनाचा सुखद क्षण

अचानक येणार आहे, हे मला ठाऊक आहे.

 

तोपर्यंत मी एकटाच स्वतः साठी हसत, गात राहणार आहे.

तुझ्या आश्वासनाचा मधुर गंध

आसमंतात दरवळून राहणार आहे.

 

४५.

तो येईल, तो येईल, तो येईलच. . . . .

त्याच्या पावलांचा नि:शब्द आवाज

तुला ऐकू येत नाही?

 

क्षणाक्षणाला आणि प्रत्येक युगात,

दिवसा – रात्री तो येतच असतो.

 

मनाच्या कोपऱ्यात एका भावावस्थेत

मी किती गीतं गायली

प्रत्येक गीतामधून एकच स्वर उमटतो –

‘ तो येत आहे, तो येत आहे, तो येतच आहे. . . ‘

 

सूर्यप्रकाशाच्या स्वच्छ एप्रिल महिन्यातल्या

सुगंधीत दिवसांत,रानावनातून,

‘तो येतो,तो येतो, तो येतच असतो. . . . ‘

 

जूलै महिन्याच्या पावसाळ्या रात्रीच्या

उदासीनतेत गडगडणाऱ्या मेघांच्या रथातून

‘तो येतो, तो येतो, तो येतच असतो. . . . ‘

 

एकामागून एक येणाऱ्या

त्याच्या पावलांचा ठसा

माझ्या ऱ्हदयावर उमटत राहतो

आणि त्याच्या सुवर्णमय पदस्पर्शाने

माझा आनंद पुलकित होत राहतो.

मराठी अनुवाद – गीतांजली (भावार्थ) – माधव नारायण कुलकर्णी

मूळ रचना– महाकवी मा. रवींद्रनाथ टागोर

 

प्रस्तुती– प्रेमा माधव कुलकर्णी

कोल्हापूर

7387678883

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #160 ☆ व्यंग्य – पच्चीस परसेंट  का वादा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य ‘पच्चीस परसेंट  का वादा’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 160 ☆

☆ व्यंग्य – पच्चीस परसेंट  का वादा

सबसे पहले हमारा परनाम लीजिए क्योंकि आप ठहरे व्होटर और हम ठहरे उम्मीदवार। उम्मीदवार का धरम बनता है व्होटर को परनाम करने का। हम हैं सीधे-सादे आदमी, इसलिए हम सीधी-सादी बात करेंगे। फालतू का फरफंद हमें आता नहीं,कि एक घंटा भर तक आपको बंबई- कलकत्ता घुमाएँ, उसके बाद मतलब की बात पर आएँ।

तो हम यह निवेदन करने आये हैं कि अब की बार चुनाव में बंसीधर को व्होट मत दीजिए, हमें दीजिए, यानी मुरलीधर को। अब आप कहेंगे कि क्यों दीजिए भई मुरलीधर को? तो हमारा निवेदन है कि हमें बंसीधर के कोई खास सिकायत नहीं। सिकायत यही है कि उन्होंने छेत्र की परगति के लिए कोई काम नहीं किया। अब छेत्र परगति नहीं करेगा तो देस कैसे परगति करेगा?

हमारी सिकायत यही है कि बंसीधर ने छेत्र की परगति पर एक्को पैसा खरच नहीं किया। कुछ अपनी परगति पर खरच किया, बाकी अफसर-अमला की परगति पर खरच हो गया। अब ये तो गलत काम हो गया है ना? आप छेत्र पर एक्को पैसा खरच नहीं करेंगे तो छेत्र कैसे परगति करेगा और देस कैसे परगति करेगा? इसलिए हमारा जी दुखी है।

अब आप कहेंगे कि मुरलीधर, कल तक तो बंसीधर के गलबाँही डाले फिरते थे,आज सिकायत करते हो। तो आपका कहना वाजिब है। लेकिन मामला सिद्धांत का बन गया है। जब सिद्धांत के खिलाफ बात जाने लगेगी तब भला कौन बरदास्त करेगा?

हमारा कहना यह है कि भाई, छेत्र की परगति के लिए जो पैसा मिलता है उसका पच्चीस परसेंट जरूर छेत्र पर खरच होना चाहिए। पच्चीस परसेंट भी खरच नहीं होगा तो छेत्र तो एक्को तरक्की नहीं करेगा ना? इसलिए पच्चीस परसेंट छेत्र पर खरच होना ही चाहिए।

बाकी पचत्तर परसेंट नेता और अफसर- अमला अपनी परगति पर खरच कर सकता है। यह तो एकदम जायज बात है। सोचिए, नेता सार्वजनिक जीवन में किस लिए आया है? भाड़ झोंकने आया है क्या? जो नेता अपनी और अपने नाते-रिस्तेदारों की परगति न कर पाए वो देस की परगति क्या खाके करेगा? तो भई नेता तो अपनी परगति करेगा।
अफसर-अमला अपनी परगति नहीं करेगा तो काम कैसे करेगा? सूखी तनखा में काम करेगा क्या? मोटर चलाने के लिए पेटरोल-डीजल नहीं लगेगा? तब? तनखा से कोई काम करने की ताकत आती है क्या? तनखा तो सबको मिलती है, लेकिन सब के ऊपर तो देस की परगति का भार नहीं होता। तब?

तो पचत्तर परसेंट नेता और अफसर- अमला अपनी परगति पर खरच कर सकता है। बाकी पच्चीस परसेंट छेत्र पर हर हालत में खरच होना चाहिए। इसमें कोई गड़बड़ हम बरदास्त नहीं करेंगे। बंसीधर ने यही गड़बड़ किया कि सेंट परसेंट पैसा अपनी परगति पर खरच कर लिया। इसलिए हमारा बंसीधर से बिरोध है। हम आपसे क्या बताएँ कि जाने कितनी योजनाओं का पैसा बंसीधर के पास आया और उन्होंने पूरा का पूरा अपनी परगति पर खरच कर लिया। एकदम गलत काम हो गया। अब आप ये मत पूछिए कि कौन-कौन योजनाओं का पैसा आया था, क्योंकि हम ये न बताएँगे। बात ये है कि कल के दिन हमीं  चुने जाएँगे और आप हमसे पूछने लगे कि फलाँ- फलाँ योजना में कितना-कितना पैसा आया तो हम मुस्किल में पड़ जाएँगे। इसलिए आप बस इतना समझ लीजिए कि बंसीधर ने बहुत सी योजनाओं का सेंट परसेंट पैसा अपनी परगति पर खरच कर लिया।

तो हमारा आपसे वादा है कि हम पच्चीस परसेंट पैसा छेत्र की परगति पर जरूर खर्च करेंगे। ये फरफंद नहीं है, आपको दिखायी पड़ेगा कि पच्चीस परसेंट पैसा खरच हुआ है। हाथ कंगन को आरसी क्या? तो आप हमारा बिसवास कीजिए और अपना व्होट हमीं को दीजिए, यानी मुरलीधर को। पच्चीस परसेंट का हमारा आपसे वादा है। हम कसम-वसम तो न खाएँगे क्योंकि कसम खाएँगे तो आप समझेंगे कि झूठ बोल रहे हैं। इसलिए हम कसम न खाएँगे। वादा जरूर करते हैं।

अंत में आप से निवेदन है कि हमें व्होट दीजिए और देस से भरस्टाचार खतम करने में हमारी मदद कीजिए। अब एक बार ताली तो बजा दीजिए। हम आपसे इतना बड़ा वादा कर रहे हैं और आप बस हमें मुटुर मुटुर निहारे जा रहे हैं।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print