श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है “सन्तोष के दोहे…चाँद”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 143 ☆
☆ सन्तोष के दोहे…चाँद ☆ श्री संतोष नेमा ☆
बाँटे शीतल चाँदनी, दाग रखे खुद पास
रोशन करता जहां को, किये बिना कुछ आस
लिखते कवि,शायर सभी, देकर उपमा खूब
सदा देखते चाँद में, सपनों का महबूब
करती खूब शिकायतें, दे देकर संदेश
बिरहन ताके चाँद को, पिया गए परदेश
ईद दिवाली, होलिका, करवा का त्योहार
सभी निहारें चाँद को, विनती करें पुकार
तनहा तारों में रहे, किंतु अलग पहचान
घटता, बढ़ता समय से, सदा चाँद का मान
हर क्रम में है एक तिथि, एक अमावस रात
आभा पूर्ण बिखेरता,दे पूनम सौगात
सही धर्म निरपेक्षता, सिखलाता सारंग
सबको ही प्यारे लगें, विविध कला के रंग
लहरें सागर में उठें, आते हैं तूफान
संचालित ये चन्द्र से, जाने सकल जहान
सूर्य,चन्द्र की चाल ही, ज्योतिष का आधार
ग्रहण सभी हम मापते, ग्रह-नक्षत्र विचार
साझा करते चाँद से, व्याकुल मन की बात
झर कर कहती चाँदनी,काबू रख जज़्बात
चंदा मामा ले चले, तारों की बारात
हर्षित होता बालमन, देख दूधिया रात
शरद पूर्णिमा यामिनी, सुंदर दिखे शशांक
सुधा बाँटता सभी को,रहता याद दिनांक
देख सँवरती यामिनी,रचा कृष्ण ने रास
षोडस कला बिखेर कर,शशि उर है उल्लास
उज्ज्वल शीतल चाँदनी, उजियारे के गीत
कम होती रवि की तपन, दस्तक देती शीत
मन को लगें लुभावने, सभी चाँद के रूप
देते हैं “संतोष” ये, मिलती ख़ुशी अनूप
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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