हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 176 ☆ शिवोऽहम् ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 महादेव साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना आपको शीघ्र दी जाएगी 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

☆  संजय उवाच # 176 शिवोऽहम् ?

।। चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्।।

गुरु द्वारा परिचय पूछे जाने पर बाल्यावस्था में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा दिया गया उत्तर निर्वाण षटकम् कहलाया। वेद और वेदांतों का मानो सार है निर्वाण षटकम्। इसका पहला श्लोक कहता है,

मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं

न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।

न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः

चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥

मैं न मन हूँ, न बुद्धि, न ही अहंकार। मैं न श्रवणेंद्रिय (कान) हूँ, न स्वादेंद्रिय (जीभ), न घ्राणेंद्रिय (नाक) न ही दृश्येंद्रिय (आँखें)। मैं न आकाश हूँ, न पृथ्वी, न अग्नि, न ही वायु। मैं सदा शुद्ध आनंदमय चेतन हूँ, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ।

मनुष्य का अपेक्षित अस्तित्व शुद्ध आनंदमय चेतन ही है। आनंद से परमानंद की ओर जाने के लिए, चिदानंद से सच्चिदानंद की ओर जाने के लिए साधन है मनुष्य जीवन।

सर्वसामान्य मान्यता है कि यह यात्रा कठिन है। असामान्य यथार्थ यह  कि यही यात्रा सरल  है।

इस यात्रा को समझने के लिए वेदांतसार का सहारा लेते हैं जो कहता है कि अंत:करण और बहि:करण, इंद्रिय निग्रह के दो प्रकार हैं।  मन, बुद्धि और अहंकार अंत:करण में समाहित हैं। स्वाभाविक है कि अंत:करण की इंद्रियाँ देखी नहीं जा सकतीं, केवल अनुभव की जा सकती हैं। संकल्प- विकल्प की वृत्ति अर्थात मन, निश्चय-निर्णय की वृत्ति अर्थात बुद्धि एवं स्वार्थ-संकुचित भाव की वृत्ति अर्थात अंहकार। इच्छित का हठ करनेवाले मन, संशय निवारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली बुद्धि और अपने तक सीमित रहनेवाले अहंकार की परिधि में मनुष्य के अस्तित्व को समेटने का प्रयास हास्यास्पद है।

बहि:करण की दस इंद्रियाँ हैं। इनमें से चार इंद्रियों आँख, नाक, कान, जीभ तक मनुष्य जीवन को बांध देना और अधिक हास्यास्पद है।

सनातन दर्शन में जिसे अपरा चेतना कहा गया है, उसमें निर्वाण षटकम् के पहले श्लोक में निर्दिष्ट आकाश, भूमि, अग्नि, वायु, मन, बुद्धि, अहंकार जैसे स्थूल और सूक्ष्म दोनों तत्व सम्मिलित हैं। अपरा प्रकृति केवल जड़ पदार्थ या शव ही जन सकती है। परा चेतना या परम तत्व या चेतन तत्व या आत्मा का साथ ही उसे चैतन्य कर सकता है, चित्त में आनंद उपजा सकता है, चिदानंद कर सकता है।

आनंद प्राप्ति में दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। दृष्टिकोण में थोड़ा-सा परिवर्तन, जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाता है। मनुष्य का अहंकार जब उसे भास कराने लगता है कि उसमें सब हैं, तो यह भास, उसे घमंड से चूर कर देता है। दृष्टिकोण में परिवर्तन हो जाए तो वह धन, पद, कीर्ति पाता तो है पर उसके अहंकार से बचा रहता है। वह सबमें खुद को देखने लगता है। सबका दुख, उसका दुख होता है। सबका सुख, उसका सुख होता है। वह ‘मैं’ से ऊपर उठ जाता है।

यूँ विचार करें करें कि जब कोई कहता है ‘मैं’ तो किसे सम्बोधित कर रहा होता है? स्वाभाविक है कि यह यह ‘मैं’ स्थूल रूप से दिखती देह है। तथापि यदि आत्मा न हो, चेतन स्वरूप न हो तो देह तो शव है। शव तो स्वयं को सम्बोधित नहीं कर सकता। चिदानंद चैतन्य, शव को शिव करता है  और जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के शब्द सृष्टि में चेतनस्वरूप की उपस्थिति का सत्य, सनातन प्रमाण बन जाते हैं।

इसीलिए कहा गया है, ‘शिवोहम्’,..मैं शिव हूँ..’मैं’ से शव का नहीं शिव का बोध होना चाहिए। यह बोध मानसपटल पर उतर आए तो यात्रा बहुत सरल हो जाती है।

यात्रा सरल हो या जटिल, इसमें अभ्यास की बड़ी भूमिका है। अभ्यास के पहले चरण में निरंतर बोलते, सुनते, गुनते रहिए, ‘शिवोऽहम्।’

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 128 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 128 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 128) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 128 ?

☆☆☆☆☆

ऐ पूछने वाले, तेरा

तहे दिल से शुक्रिया,

दर्द तो अब भी बाकी है,

मगर पहले से कम…!

☆☆ 

O’ asker, thank you from

the bottom of my heart…

Though the pain is still there,

but much less than before…!

☆☆☆☆☆

☆☆ Just couldn’t care less… ☆☆

मैं थक गया था बेवजह लोगों

की परवाह करते करते,

जब से बेखबर हुआ हूँ सबसे,

तमाम सुकून है अब जिंदगी में…!

☆☆ 

I was unnecessarily tired of

caring too much for the people…

Ever since became unmindful of them,

peace has descended in my life…!

☆☆☆☆☆

ये हवा यूँ ही ख़ाक छानती

फिरती  है  यहाँ,

या इसकी भी कोई चीज

खो  गई  है  यहाँ..!

☆☆

The wind just  wanders

around here aimlessly…

Or it, too, has lost

something around here..!

☆☆☆☆☆

अभी तो ये रौशनी सिर्फ

दो कदम  ही  गई  थी…

पर ना जाने किसकी नज़र

दीये  को  लग  गई ..!

☆☆

Light has not even started

dispelling the darkness

Someone has cast his

evil eye on the lamp…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 127 ☆ सॉनेट ~ शुभेच्छा ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित  सॉनेट “~ शुभेच्छा ~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 127 ☆ 

सॉनेट ~ शुभेच्छा ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

नहीं अन्य की, निज त्रुटि लेखें।

दोष मुक्त हो सकें ईश! हम।

सद्गुण औरों से नित सीखें।।

काम करें निष्काम सदा हम।।

नहीं सफलता पा खुश ज्यादा।

नहीं विफल हो वरें हताशा।

फिर फिर कोशिश खुद से वादा।।

पल पल मन में पले नवाशा।।

श्रम सीकर से नित्य नहाएँ।

बाधा से लड़ कदम बढ़ाएँ।

कर संतोष सदा सुख पाएँ।।

प्रभु के प्रति आभार जताएँ।।

आत्मदीप जल सब तम हर ले।

जग जग में उजियारा कर दे।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-२-२०२२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #156 ☆ भोजपुरी गीत  – नेह के बाती ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 156 ☆

☆ भोजपुरी गीत  – नेह के बाती ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

दीप दुआरे अंगना बारा,

जरै नेह के बाती से।

जगमग जोत जरै घर आंगन,

प्रेमवां उपजै छाती से।

 

छप्पर छानी   महल अटारी,  

कहीं अन्हेरिया रहि ना जाय।

आपस में मिल खुशी मनावा,

जाति धरम से बाहर आय।।

दीप दुआरे अंगना… ।।०१।।

 

ओकर घर उंजियार करा,

जेकरे घर  में अन्हियारा बा।

भईया बना सहारा ओकर,   

जेकरे नाहीं सहारा बा।

साथे साथे खुशी मनावा,  

बाटा आउर मिठाई।

औ दुश्मन  के भी गले लगावा,  

हिया मिला के भाई।।

दीप दुआरे…।।०२।।

 

जब अइसन माहौल बनी,

त सच में खुशी मनइबा।

थोड़ा थोड़ा खुशी बांट के,

जादा खुशी तूं पइबा।

सबके आशीर्वाद से,  

जिनगी, तोहार बन जाई।।

दीप दुआरे…।।०३।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

(1-09-2021)

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ झाला फांदीचा चमचा… ☆ श्री प्रमोद जोशी ☆

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ?  झाला फांदीचा चमचा…  ?  श्री प्रमोद जोशी ☆

झाला फांदीचा चमचा,

नवनीत झाले ढग!

अशा लोण्याच्या ओढीने,

झाले बालकृष्ण जग!

कृष्ण रांगत येणार,

आली चमच्या पालवी!

अशा चित्रामुळे कळे,

जग कन्हैय्या चालवी!

निळ्या अनंतासमोर,

असे दिसताच लोणी!

सांगा बालकृष्णाविणा,

दुजे आठवे का कोणी?

चराचर बघे वाट,

कुठुनही यावा कान्हा!

निळ्या निळ्या आकाशाला,

पुन्हा पुन्हा फुटो पान्हा!

धुके लावी विरजण,

वारा घुसळतो दही!

निळ्या कागदावरती,

फांदी..ईश्वराची सही!

लोण्यावर किरणांची,

आहे नजर तेजस्वी!

वाट पहात कान्ह्याची,

त्यांची प्रतिक्षा ओजस्वी!

अनंताच्या भुकेसाठी,

घास व्यापतो आकाश!

सूर्य निरांजन होतो,

मग सात्विक प्रकाश!

चित्रकारा नमस्कार,

त्याची दृष्टी शोधी दिव्य!

साध्या फांदी नि ढगाना,

गोकुळाचे भवितव्य!

© श्री प्रमोद जोशी

देवगड.

9423513604

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #177 – 63 – “हमने तो शिद्दत से निभाए तुमसे रिश्ते…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हमने तो शिद्दत से निभाए तुमसे रिश्ते…”)

? ग़ज़ल # 63 – “हमने तो शिद्दत से निभाए तुमसे रिश्ते…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जब मुलाकात हुई तो की बेकार की बात,

कर लेते तुम हमसे थोड़ी प्यार की बात।  

क्यों बदलती इश्क़ की तासीर मौसम जैसी,

कभी इनकार की तो कभी इकरार की बात।

पास आकर बैठो कभी तो फ़ुरसत से तुम,

ताज़ा कर लें हम पहले इज़हार की बात।

हमने तो शिद्दत से निभाए तुमसे रिश्ते,

हमेशा परवान चढ़ी है दिलदार की बात।

मेरी बातें तुम अक्सर क्यों भूल जाते हो,

मगर याद रहती तुम्हें रिश्तेदार की बात। 

कीमतें चीजों की यूँ ही नहीं गिरती-चढ़तीं,

सियासत तय करती शेयर बाजार की बात।

फ़कत वादों के दम पर ज़िन्दगी नहीं चलती,

आतिश अक्सर सच लगी मयख्वार की बात।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 55 ☆।।सच्चा रिश्ता एक अनमोल अमानत  होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। सच्चा रिश्ता एक अनमोल अमानत  होता है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 55 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।। सच्चा रिश्ता एक अनमोल अमानत  होता है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

सच्चे  रिश्तों  के  लिए एहसास जरूरी  है।

हर   रिश्ते  को  मानना  खास  जरूरी  है।।

दिल   से  दिल  का  तार   मिला कर चलो।

रिश्तों में और कुछ नहीं विश्वास जरूरी है।।

[2]

दोस्ती  का  अपना  एक  अंदाज  होता  है।

हर  सवाल का  देना      जवाब  होता  है।।

दोस्ती खून का नहीं  है यकीन का रिश्ता।।

ये एक रिश्ता हर एक से लाजवाब होता है।।

[3]

कभी अपने के आंख में आंसू न आने देना।

कभी किसी दोस्त को यूं मत गवानें देना।।

प्रेम की  नाजुक डोरी बहुत  होती मजबूत।

कभी  इस पर कोई दाग मत लगाने देना।।

[4]

सच्चा रिश्ता प्रभु की दी हुई नियामत होता है।

आपकी  खुशियों  की  वह  जमानत होता है।।

दोस्ती  कभी   टिकती  नहीं बिना निभाने के।

रखना संभाल कि अनमोल अमानत होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 119 ☆ ग़ज़ल – “दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #119 ☆  ग़ज़ल  – “दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

अब आ गई है दुनिया ये ऐसे मुकाम पै

जो खोखला है, बस टिका है तामझाम पै।।

दिखते जो है बड़े उन्हें वैसा न जानिये

कई तो बहुत ही बौने हैं पैसे के नाम पै।।

युनिवर्सिटी में इल्म की तासीर नहीं है

अब बिकती वहाँ डिग्रियाँ सरेआम दाम पै।।

आफिस हैं कई काम पै होता नहीं कोई

कुछ लेन देन हो तो है सब लोग काम पै।।

बाजारों में दुकानें है पर माल है घटिया

कीमत के हैं लेबल लगे ऊँचे तमाम पै।।

नेता है वजनदार वे रंगदार जो भी है

रंग जिनका सुबह और है, कुछ और शाम पै।।

तब्दीलियों का सिलसिला यों तेज हो गया

विश्वास बदलने लगे केवल इनाम पै।

सारी पुरानी बातें तो बस बात रह गई

अब तो सहज ईमान भी बिकता है दाम पै।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 140 – मंद वारा सुटला होता ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 140 – मंद वारा सुटला होता

मंद वारा सुटला होता, गंध फुलांचा दाटला होता।

आज तुझ्या आठवांनी कंठ मात्र दाटला होता।।धृ।।

हिरव्या गार वनराईला चमचमणारा ताज होता।

मखमली या कुरणांवरती मोतीयांचा साज होता।

चिमुकल्यां चोंचीत माझ्या,तुझ्या चोंचिचा आभास होता।।१।।

पहाटेलाच जागवत होतीस , झेप आकाशी घेत होतीस ।

अमृताचे कण चोचीत ,आनंदाने भरवत होतीस।

आमच्या चिमण्या डोळ्यांत ,स्वप्न फुलोरा फुलत होता ।।२।।

आनंद नद अपार होता, खोपा स्वर्ग बनला होता।

विधाताही लपून छपून , कौतुक सारे पाहात होता।

आज कसा काळाने वेध तुझा घेतला होता।।३।।

आता बाबा पहाटेला ऊठून काम सारं करत असतो।

लाडे लाडे बोलत असतो गाली गोड हसत असतो।

आज त्याच्या डोळ्यांचा कडं मात्र ओला होता।।४।   

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – पुस्तकांवर बोलू काही ☆ क्लिक ट्रिक – अर्चना देशपांडे जोशी ☆ परिचय – सौ. वीणा आशुतोष रारावीकर ☆

सौ. वीणा आशुतोष रारावीकर

 

 

 

☆ पुस्तकांवर बोलू काही ☆ 

☆  क्लिक ट्रिक – अर्चना देशपांडे जोशी ☆ परिचय – सौ. वीणा आशुतोष रारावीकर ☆ 

लेखिका : अर्चना देशपांडे जोशी. 

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन 

पृष्ठसंख्या : १२६ 

किंमत : रु. १७५/-  

सध्याच्या मोबाईलच्या जगात सर्वच जण फोटो काढत असतात आणि लाईक मिळवत असतात. “फोटो काढणे” हा एक खेळ झाला आहे. अशावेळी मनात शंका येते,  “फोटोग्राफी” ही कला म्हणून आता अस्तित्वात आहे का? याचे उत्तर आपल्याला अर्चना देशपांडे जोशी यांच्या ‘क्लिक ट्रिक’ या पुस्तकात मिळते. खरी फोटोग्राफी, मोबाईल फोटोग्राफी आणि आपले आयुष्य यांचा मेळ घालत, बत्तीस ललित लेखांची मालिका असलेले हे पुस्तक. ‘छायाचित्र कलेवरच सोप्पं भाष्य’ असे सांगत प्रस्तावनेलाच सुधीर गाडगीळसरांनी पुस्तकाविषयी उत्सुकता निर्माण केली आहे. तर विनायक पुराणिक सरांनी या पुस्तकाचे योग्य शब्दात वर्णन केले आहे. फोटो काढण्याची एक वेगळी नजर या पुस्तकातून मिळते, असे ते सांगतात. तर यापुढे जाऊन मला वाटते, फक्त फोटोच नाही, तर जीवनातील विविध प्रसंगाना वेगळ्या नजरेने बघण्याची दृष्टी यातून मिळते. ‘मनाला मुग्ध करणाऱ्या फोटोंचे मंत्र’ सांगतानाच लेखिकेने ‘आपल्या लक्षात न येणारे सध्याच्या मोबाईल फोटोग्राफीचे तोटे’ यावरही खरपूस भाष्य केले आहे.

हल्ली क्लिक करणे खूप सोप्पे झाले आहे. हवे तेवढे, हवे तसे दशसहस्र क्लिक सारेच सतत करत असतात. पण त्यातील उत्तम क्लिक कोणता झाला? या एका क्लिकचे महत्व आणि तो कसा घ्यायचा, कोणत्या गोष्टींकडे लक्ष द्यायचे .. प्रत्येक लेखातून याचा परिचय होत जातो.

सावली, प्रतिछाया, आपली प्रतिमा. एकच शब्द. अनेक वळणे घेत आपल्या समोर येतो. ‘आधीच उल्हास’ या लेखात फोटोच्या विषयाएवढेच, त्याच्या सीमारेखेचे महत्व सांगितले आहे. फोटोत जिवंतपणा आणण्यासाठी गरज असते थोडा विचार करण्याची आणि शोधक नजरेची. फोटो कंपोझीशनप्रमाणेच त्याच्या बॅकग्राऊंडचा देखील विचार केला पाहिजे. ट्रॅंगल कंपोझिशनची युक्ती स्टील लाईफ फोटोग्राफीप्रमाणे फूड फोटोग्राफीत देखील वापरली जाते. ‘झाले मोकळे आकाश’ या लेखातून वाईल्ड आणि टेली लेन्स मधला फरक सांगताना, लेखिका चिवड्याचे गंमतीशीर उदाहरण देते. कॅमेरा हा कॅनव्हास आणि लेन्स हा ब्रश आहे, हे जर लक्षात आले तर आपले आपणच कलात्मक, सुबक देखणे फोटो काढू शकतो. फोटो एकतर चांगला असतो किंवा नसतो. हल्ली बऱ्यापैकी फोटो सगळेच काढत असतात. फोटो तिथे आधीपासून असतो. तो काढण्यासाठी  नजरेबरोबर आपल्या बुध्दीला श्रम घ्यावे लागतात. म्हणजे नेमका फोटो काढल्याचा आनंद आपल्याला मिळतो, असे ‘तो तिथे आहे’ यामधून समजते. ‘जाड्या-रड्या’ तून फोटोग्राफीमधील वेट बॅलन्स म्हणजे काय? हे लेखिकेने नमूद केले आहे. निसर्गात चौकट जागोजागी असते. त्याचा योग्य उपयोग फोटोची चौकट ठरवताना केला पाहिजे. ‘प्रत्येक फोटो काढताना आधी विचार करावा लागतो. हल्ली फोटो काढून झाल्यावर विचार करत बसतात.’ ‘आखीव रेखीव’ मधील लेखिकेचे हे वाक्य आपल्याला विचार करायला लावते. नियम बनवावे लागतात कारण कोणीतरी नियमबाह्य वर्तन केलेले असते म्हणून. ब्रेकींग रूल्स फक्त कुठे आणि किती करायचे असतात, हे सत्य फक्त फोटोग्राफीत नाही तर जीवनात देखील शिकणे आवश्यक आहे. याची जाणीव ‘नियमातील अनियम’ यातून होते. आपल्याला ज्या ठिकाणी जायचे आहे, तिथला गृहपाठ करणे जरुरीचे आहे. आपल्याला ट्रिपला जायचे असेल तर हे जितके आवश्यक, तितकेच फोटोप्रवासासाठी कोणती सावधगिरी बाळगायाची हे लक्षात घेतले पाहिजे. पावसाळयात फोटोग्राफी करताना कोणती काळजी घ्यायची, याबद्दल लेखिकेने टिप्स दिल्या आहेत. स्ट्रीट फोटोग्राफी म्हणजे घटनेपलिकडे बघण्याची दृष्टि. ॲग्रीकल्चरल, आर्किटेक्चर आणि इंटीरीयर, मॉडेल, कल्चरल फोटोग्राफी आणि टुरिझम, ऐतिहासिक वास्तू, शिल्प व जंगल असे फोटोग्राफीतील विविध प्रकार आहेत. फोटोक्राफ्ट व कॅन्डीड फोटोग्राफी वाचून आपल्याला आश्चर्य वाटते.

फोटो येण्यासाठी प्रकाशयोजना, कंपोझीशन, ॲंगल, लेन्स, उत्तम गृहपाठ, आपली बुध्दी, विचार, कल्पनाशक्ती आणि नशीबाची साथ लागते. तरीही सर्वोत्तम फोटोसाठी उत्तम कॅमेरा हाच फोटोग्राफरचा उजवा हात असतो, असे लेखिका नमूद करते.

काळ नेहमी पुढे धावत असतो, पण फोटोग्राफीच्या कलेमध्ये काळाला पकडून ठेवायची कला आहे. कलेने ‘आपल्याला श्रीमंत व्हायचे आहे की समृध्द’ असा विचार आपल्याला करायला लावत, लेखिका समेवर येते. प्रत्येक कलेचा मान राखायला आपण सर्वांनी शिकले पाहिजे.

मोबईलला ठेवलेले फोटोबाईल हे नाव, योग्यच वाटते. नवीन तंत्रज्ञानाच्या युगात कलेतील सौंदर्य लोप पावत आहे, याची खंत लेखिकेला आहे. यासाठी तिने कॅमेऱ्याच्या माध्यमातून काढलेल्या फोटोंसाठी ‘फोटोफ्राय’ स्पर्धा सुरू केलेली आहे.

एखाद्या विस्तृत कुरणावर ससा मनसोक्त बागडत असतो तशी लेखिका आपल्या लेखात सर्वत्र पळताना दिसते. प्रत्येक लेखात एकेका शब्दांचे अर्थ लिहिताना अनेक अर्थ सहजपणे उलगडले आहेत. आणि त्यातून लेखिका अगदी नकळतपणे आयुष्यातील सत्य सांगून जाते. म्हणूनच फक्त फोटोग्राफी शिकणाऱ्या लोकांनी नव्हे तर आपण सर्व जण हे पुस्तक वाचू शकतो. 

फोटोग्राफी इतकाच लेखिकेचा मराठी कविता, चित्रकला याविषयांवर भरपूर अभ्यास झालेला दिसतो.

© सौ. वीणा आशुतोष रारावीकर

लोअर परेल, मुंबई

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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