मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #129 – काळोख…! ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 129 – काळोख…! ☆ श्री सुजित कदम ☆

काल पर्यंत

अंधाराला

 घाबरणारी

माझी माय

आज

माझ्या

डोळ्यांच्या आत

मिट्ट काळोखात

जाऊन बसलीय…!

पुन्हा कधीही

उजेडात

न येण्यासाठी…!

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#152 ☆ विजयदशमी पर्व विशेष – पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है विजयदशमी पर्व पर विशेष रचना  “पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ…”)

☆  तन्मय साहित्य # 152 ☆

☆ विजयदशमी पर्व विशेष – पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

पर्व दशहरा तमस दहन का

करें सुधार, स्वयं के मन का।

पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ

फिर दूजों को हम समझाएँ।

 

संस्कृति औ’ संस्कार हमारे

प्रेम शांति के बोल उचारे,

पर्वोत्सव ये परम्पराएँ

 

खूब ज्ञान की, बातें कर ली

लिख-लिख कई पोथियाँ भर ली,

नेह भाव खुद भी अपनाएँ

 

“पर उपदेश कुशल बहुतेरे”

नहीं काम के, तेरे – मेरे,

यही सीख तो हमें सिखाए।

 

प्रवचन औ’ उपदेश चले हैं

पर खुद स्वारथ के पुतले हैं,

जनसेवा को कदम बढ़ाएँ

 

रावण आज, जलेंगे काले

मन में व्यर्थ, भरम ये पाले,

मन के कलुषित भाव जलाएँ

 

कल से वही कृत्य फिर सारे

मिटे नहीं, मन के अँधियारे,

दुराग्रही, दंभी, मिट जाएँ।

 

परम्पराएँ आज निभा ली

अन्तर्मन खाली का खाली,

रावण मन का आज जलाएँ

 

हिलमिल रहें, परस्पर सारे

मिटे तमस, फैले उजियारे,

गीत प्रीत के मन से गाएँ।

 

चलो!आज अपने को तोलें

नेह किवाड़, हृदय के खोलें,

राम-राज्य वापस फिर आये।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 41 ☆ नवरात्र पर्व विशेष – कविता – कुष्मांडा देवी-… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ सलमा जमाल जी द्वारा नवरात्र पर्व पर रचित विशेष रचना  “कुष्मांडा देवी… ”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 41 ✒️

? नवरात्र पर्व विशेष – कविता – कुष्मांडा देवी-  डॉ. सलमा जमाल ?

(स्वतंत्र कविता)

नवरात्रि के चौथे दिन ,

कूष्मांडा की उपासना ।

विधि, मंत्र, भोग, पूजा से ,

दूर होती सभी यातना ।।

 

देवी की आठ भुजाएं ,

अष्ठभुजी कहलाती ,

धनुष, बाण ,कमल, कलश ,

चक्र – गदा – सुहाती ,

आठवें हाथ जपमाला ,

जिससे करें उपासना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

वाहन सिंह और निवास ,

सूर्य मंडल माना जाता ,

देवी को सूर्य देव की ,

ऊर्जा जाना जाता ,

यश,बल,आयु में वृद्धि हो,

करो मां की साधना ।

नवरात्रि ————————– ।।

 

करें स्मरण सांचे मन से ,

परिवार रहे खुशहाल ,

सुख – समृद्धि और निरोगता ,

रहे हज़ारों साल ,

मालपुए का भोग लगा ,

कपूर – गुलाब चढ़ावना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

बेल मूल पे चतुर्थी को ,

इत्र – मिट्टी – दही चढ़ाऐं ,

फल स्वरुप मनवांछित फल ,

“सलमा “भक्त जन पाऐं ,

जय कुष्मांडा मां कर दो,

पूर्ण सब की कामना ।

नवरात्रि ————————- ।।

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा कहानी # 51 – Representing People – 4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  कथा श्रंखला  “Representing People …“ की अगली कड़ी ।)   

☆ कथा कहानी  # 51 – Representing People – 4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

सत्तर के दशक में ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित फिल्म आई थी, “नमकहराम” राजेश खन्ना,अमिताभ बच्चन,ए.के.हंगल और रेखा की.राजेश खन्ना उस वक्त के सुपर स्टार थे और अमिताभ नये उभरते सितारे.फिल्म में दो किरदार थे,दोनों बहुत गहरे मित्र,कॉलेज के सहपाठी, एक के पिता अमीर उद्योगपति और दूसरा हमारी सत्तर के दशक की फिल्मों का नायक जो आमतौर पर गरीब परिवार का ही होता था और इस फिल्म में पिता से भी वंचित. फिल्म के अंत में इस पात्र की मृत्यु हो जाती है. फिल्म आनंद के आनंद भी राजेश खन्ना ही थे जो फिल्म के क्लाइमेक्स में मरकर भी किरदार को अमर कर गये थे.अमिताभ बच्चन के अंदर छुपे भावी महानायक के पांव ,पालने में  यानी इस फिल्म से ही नज़र आने लगे थे.कुछ फिल्में थियेटर से बाहर निकलने के बाद भी दिलोदिमाग से निकल नहीं पातीं.आनंद और डॉक्टर भास्कर के पात्रों ने फिल्म आनंद को अपने युग की अविस्मरणीय फिल्म बना दिया.नायक ने मृत्यु का वरण किया पर पात्र और फिल्म दोनों ही अमर हो गये. जब ऋषिकेश मुखर्जी फिल्म नमकहराम बना रहे थे तो उन्होंने सुपर स्टार राजेश खन्ना को दोनों भूमिकाएं ऑफर की ,राजेश खन्ना ने “आनंद ” की सफलता से प्रभावित होकर ,गरीब युवक की भूमिका चुनी जो अंत में नियोजित दुर्घटना में काल कलवित हो जाता है.ये फिल्म भी बहुत सराही गई, अमिताभ बच्चन ने अपने उद्योगपति पुत्र के किरदार को अपने कुशल अभिनय से जीवंत कर दिया और दर्शकों की पसंद बन गये.फिल्म नमकहराम एक फिल्म नहीं आहट थी एक सुपर स्टार के उदय होने और दूसरे सुपर स्टार के जाने की.ये कहानी थी उम्मीदों के परवान चढ़ने की और अहंकार के कारण एक सुपर स्टार के शिखर से पतन की ओर बढ़ने की. नमकहराम फिल्म की कहानी का उत्तरार्द्ध एक छद्म मज़दूर नेता के हृदय परिवर्तन पर केंद्रित था.शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब अमिताभ अपने पिता की फैक्ट्री संभालने आते हैं तो उनके उग्र स्वभाव का सामना होता है मज़दूर नेता ए.के.हंगल से जो अपने साथियों की मांगों के संदर्भ में अमिताभ को संगठन की ताकतका एहसास करा देते हैं उद्योगपति पुत्र का अहम् ये बरदाश्त नहीं कर पाता और एक कुटिल नीति के तहत राजेश खन्ना को एक उभरते हुये मज़दूर नेता के रूप में प्रत्यारोपित किया जाता है जो रहता तो मज़दूरों की बस्ती में है पर यारी निभाने के कारण बैठता है पूंजीपतियों की गोद में.जो मांगे हंगल लेकर आते हैं वो नामंजूर और फिर वही इस प्लांटेड नेता की छद्म उग्रता के कारण मान ली जाती हैं.कुछ पाना,भले ही षडयंत्र हो पर इस राजेश खन्ना के पात्र को लोकप्रिय बनाता है जो अंततः हंगल को यूनियन के चुनावों में पराजित कर देता है.ये प्रायोजित विजय,लगती तो है पर वास्तविक जीत नहीं होती क्योंकि इसका आधार ही व्यक्तिगत स्वार्थ और षडयंत्र होते हैं.पर समय के साथ जब राजेश खन्ना, मज़दूर बस्ती में रहकर उनकी जिंदगी, उनकी समस्याओं से रूबरू होते हैं तो न केवल उन्हें मजदूर नेता हंगल की निष्ठा, समर्पण और मेहनत का अहसास होता है बल्कि उनके पात्र का हृदय परिवर्तन होता है.हंगल उन्हें सच्चाई का रास्ता दिखाते हैं और ये नकली नेता,एक संवेदनशील प्रतिनिधित्व की ओर कदम दर कदम सफर तय करता है.जब अमिताभ अभिनीत पात्र का इस संवेदनशील प्रतिनिधि से सामना होता है तो आक्रोश और आहत अमिताभ, राजेश खन्ना के लिये जो शब्द प्रयुक्त करते हैं वो होता है “नमक हराम” पर हम और आप जिन्होंने बहुत कुछ अनुभव किया है,अच्छी तरह समझते हैं कि निष्ठा और समर्पण क्या है और छद्म प्रतिनिधित्व क्या है.सवाल तो हमेशा यही रहता है कि चाहे वो फिल्म हो या वास्तविकता, कि ये नमक रूपी ऊर्जा और शक्ति कहां से मिलती है.इस ऊर्जा और शक्ति के स्त्रोत की उपेक्षा ही है नमक रूपी विश्वासघात. अंतहीनता ही इसकी विशेषता है क्योंकि युद्घ काल की संभावना कभी समाप्त नहीं होती. ये शायद अंत नहीं है.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 152 ☆ चेतना… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 152 ?

☆ चेतना… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

 कशी सांग आता करू अर्चना

करावी कशी सांग आराधना

 

तुझी मूर्त आहे मनीमानसी

असे प्रीत माझी खरी साधना

 

करू मी कशाला व्रते ,याचना

असे श्वास माझा तुझी प्रार्थना

 

 भवानी तुला काय मागू पुन्हा

तुला माहिती नेमक्या भावना

 

 असे स्वामिनी तू कुळाची सदा

  वसे नित्य देही तुझी चेतना

 

तुझी सेविका मी तुझी बालिका

महामाय,रक्षी अशा बंधना

 

उभा जन्म लाभो तुझी सावली

अखेरीस स्वीकार ही वंदना !!

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 53 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  द्वारा आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।

✍ मनोज साहित्य # 53 – मनोज के दोहे….  

1 कृतार्थ

मन कृतार्थ तब हो गया, मिला मित्र संदेश।

याद किया परदेश में, मिला सुखद परिवेश।।

2 कलकंठी

कलकंठी-आवाज सुन, दिल आनंद विभोर।

वन-उपवन में गूँजता, नाच उठा मन मोर।।

3 कुंदन

दमक रहा कुंदन सरिस, मुखड़ा चंद्र किशोर।

यौवन का यह रूप है, आत्ममुग्ध चहुँ ओर।।

4 गुंजार

चीता का सुन आगमन, भारत में उन्मेश।

कोयल की गुंजार से, झंकृत मध्य प्रदेश।।

5 घनमाला

घनमाला आकाश में, छाई है चहुँ ओर।

बरस रहे हैं भूमि पर, जैसे आत्मविभोर।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

24-9-2022

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग -5 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 5 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्वान चर्चा

विश्व में उन सभी स्थानों पर जहां मानव जाति पाई जाती है, श्वान भी साथ में ही बसते हैं। महाभारत ग्रंथ में भी युधिष्ठिर और उनके श्वान भक्ति का संदर्भ आज भी लिया जाता हैं।

महाभारत का आरंभ और अंत भी श्वान कथा से ही होता हैं।                             

प्रातः और सायं भ्रमण के समय यहां अमेरिका की धरती पर भी अपने मालिकों के साथ भ्रमण करते हुए पाए जाते हैं। हमारे देश में अमीरों के श्वान तो उनके सेवकों के भरोसे ही रहते हैं। कुछ सेवक तो उनके दूध में पानी मिला कर हेराफेरी करने में भी अग्रणी होते हैं, और उनको उद्यान में घुमाने के समय चैन को बेंच से बांध कर स्वयं व्हाट्स ऐप में हमारे जैसे फुरसतियों  के किस्से पढ़ते रहते हैं।

यहां पर श्वान को भ्रमण के समय चैन/ रस्सी बांध कर ही ले जाना अनिवार्य हैं। यहां अधिकतर श्वानोंं की चैन पतंग की चरखी नुमा यंत्र से नियंत्रित रहती हैं। ढील देने से चैन की लंबाई बढ़ जाती हैं।         

श्वानों   की नई नई नस्लें देख कर आश्चर्य  भी होता हैं। बस दिल में एक कसक है, यहां हमारे देश जैसे सड़कों पर घूमते हुए  कारों के पीछे दौड़ते हुए श्वान नहीं दिखे, शायद देसी श्वान की नस्ल को यहां की जलवायु में जीवन असंभव होगा। हमारे देश के अमीर लोग तो ठंडे प्रदेशों के श्वान के लिए पूर्णतः वातानुकूलित व्यवस्था करवा लेते हैं। हो सकता है, यहां के अमीर भी हमारे यहां के देसी श्वान पालते हो और उनके लिए गर्म जलवायु की व्यवस्था करवा लेते हों।

श्वान को घर से बाहर घुमाने लाए हुए सभी व्यक्तियों के हाथ में प्लास्टिक की थैली देखकर प्रथम तो अजीब सा प्रतीत हुआ, बाद में देखा इसका उपयोग उसके द्वारा त्यागे हुए मल को उठाने के लिए किया जाता हैं। सफाई  को बनाए रखने में ये एक महत्वपूर्ण व्यवस्था हैं। कुछ स्थानों पर मुफ्त प्लास्टिक थैली उपलब्ध भी होती हैं। हमारे देश के श्वान पालक इन सब से कब संज्ञान लेंगें?

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #158 ☆ खट्याळ वारा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 158 ?

☆ खट्याळ वारा… 

दुसऱ्यासाठी भरून माझं मन येईल का ?

नभासारखं मातीत ते विरून जाईल का ?

 

कधीतरी या देहाच माझ्या झाड होईल का ?

तरूसारखी शीतल छाया देता येईल का ?

 

माझ्यामधला खट्याळ वारा श्वास होईल का ?

हृदयी थोडीशी जागा मज घेता येईल का ?

 

दीन दुबळ्यांची भूक समजून घेईल का ?

जात्यामधली भरड थोडी होता येईल का ?

 

पार करुनी दगड धोंडे जाता येईल का ?

शुद्ध वाहते तशीच माझी नदी होईल का ?

 

कोकिळ गातो तसेच मला गाता येईल का ?

लता, रफीचा आवाज मला होता येईल का ?

 

डबक्यातून बाहेर मला जाता येईल का ?

मिठीत सागरा तुझ्या मला येता येईल का ?

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग 10 ☆ सौ. अमृता देशपांडे ☆

सौ. अमृता देशपांडे

 

? विविधा ?

☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग – 10 ☆ सौ. अमृता देशपांडे  

” श्यामची आई ” या साने गुरुजींच्या पुस्तकाच्या प्रस्तावनेत आचार्य प्र.के.अत्रे लिहितात,” साने गुरुजींनी श्यामची आई हे पुस्तक आपल्या आसवांनी लिहून काढले. त्यातले प्रत्येक अक्षर न् अक्षर गुरुजींनी गहिवरल्या अंतःकरणाने आणि डबडलेल्या डोळ्यांनी लिहिले आहे. त्यातले प्रत्येक वाक्य गळ्यातून अन् दाबून ठेवलेल्या हुंदक्यातून निर्माण झाले आहे.

गुरुजींच्या जीवनाचा झरा शक्य तितका निर्मळ ठेवण्याची आटोकाट काळजी तिने घेतली. मन कशाने स्वच्छ करता येईल ? अश्रूंनी…म्हणून अश्रूंचे हौद परमेश्वराने डोळ्यांजवळ भरून ठेवले आहेत.’ असुवन जल सींच सींच प्रेमवेलि बोई ‘ हा अश्रूंच्या पाण्याने मन शुध्द करून त्यात प्रेम आणि भक्ती ची वेल वाढवण्याचा मीराबाईचा मंत्र गुरूजींना त्यांच्या आईनेच शिकवला. आपल्या जीवनवेलीला आत्मशुद्धीच्या आसवांचे शिंपण घालावयाला आईने गुरुजींना लहानपणापासून शिकवले. अश्रूंचा इतका उदात्त आणि सुंदर अर्थ कालातीत आहे,
” मिळतिल कवने, मिळतिल दुर्मिळ तत्त्वांचे बोल
दिव्य अश्रूंनो! तुम्हांपुढति परि
ते सगळे फोल……

समाप्त 🙏🏻

© सौ. अमृता देशपांडे 

पर्वरी – गोवा

9822176170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 108 – सुमित्र के दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सुमित्र के दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 108 – सुमित्र के दोहे  ✍

 

हे ! चेतन हे! ज्योतिर्मय, परम शक्ति के रूप ।

कितनी संज्ञा,विशेषण, कितने विविध स्वरूप।।

*

राम रूप में पधारे, कृष्ण रूप अवतार ।

राधा, मीरा, जानकी, रूपों का विस्तार।।

*

कठिन ज्ञान की साधना, निर्गुण का संधान ।

रूप लुभाता ह्रदय को , करुणा कृपा निधान।।

*

राघव माधव तुम्हीं हो, सृष्टि चेतना केंद्र ।

तुम ही विराजे प्रलय में, करुणा जगत गजेंद्र।।

*

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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