श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है विजयदशमी पर्व पर विशेष रचना “पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ…”)
☆ तन्मय साहित्य # 152 ☆
☆ विजयदशमी पर्व विशेष – पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
पर्व दशहरा तमस दहन का
करें सुधार, स्वयं के मन का।
पहले खुद को पाठ पढ़ाएँ
फिर दूजों को हम समझाएँ।
संस्कृति औ’ संस्कार हमारे
प्रेम शांति के बोल उचारे,
पर्वोत्सव ये परम्पराएँ
खूब ज्ञान की, बातें कर ली
लिख-लिख कई पोथियाँ भर ली,
नेह भाव खुद भी अपनाएँ
“पर उपदेश कुशल बहुतेरे”
नहीं काम के, तेरे – मेरे,
यही सीख तो हमें सिखाए।
प्रवचन औ’ उपदेश चले हैं
पर खुद स्वारथ के पुतले हैं,
जनसेवा को कदम बढ़ाएँ
रावण आज, जलेंगे काले
मन में व्यर्थ, भरम ये पाले,
मन के कलुषित भाव जलाएँ
कल से वही कृत्य फिर सारे
मिटे नहीं, मन के अँधियारे,
दुराग्रही, दंभी, मिट जाएँ।
परम्पराएँ आज निभा ली
अन्तर्मन खाली का खाली,
रावण मन का आज जलाएँ
हिलमिल रहें, परस्पर सारे
मिटे तमस, फैले उजियारे,
गीत प्रीत के मन से गाएँ।
चलो!आज अपने को तोलें
नेह किवाड़, हृदय के खोलें,
राम-राज्य वापस फिर आये।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈