ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (9 दिसंबर से 15 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (9 दिसंबर से 15 दिसंबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

एक बार स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था जब तक जीना है तब तक सीखना है। मैं पंडित अनिल पांडे अपने आप को आज भी ज्योतिष का एक विद्यार्थी ही मानता हूं और यही मान करके मैं निरंतर विभिन्न प्रकार की फलादेश करता हूं। ईश्वर की कृपा से वे सत्य सिद्ध होते हैं जैसा कि अभी महाराष्ट्र के इलेक्शन में केवल मेरी ही भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई है।

इसी प्रकार साप्ताहिक राशिफल की श्रृंखला में भी मेरा यही प्रयास रहता है की आपको सही मार्गदर्शन प्राप्त हो जिससे आप सफलताएं प्राप्त कर सकें।

आज मैं आपको 9 दिसंबर से 15 दिसंबर 2024 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में बताऊंगा। राशिफल बताने के पहले मैं आपको इस सप्ताह जन्म हुए बच्चों के भविष्य के बारे में बताऊंगा।

इस सप्ताह के प्रारंभ से 9 तारीख की प्रातः 7:19 a.m तक जन्म लिए बच्चों की राशि कुंभ होगी। । यह बच्चे अपने कार्य में अत्यंत सफल रहेंगे और शत्रुओं को पराजित कर सकेंगे। 9 तारीख के प्रातः 7:19 am से 11 तारीख को 9:45 a.m तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मीन होगी। यह बच्चे अत्यंत भाग्यशाली होंगे। 11 तारीख को 9:45 am से 13 तारीख को 12:09 दिन तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मेष होगी। यह बच्चे सफलता के नए पायदान प्राप्त करेंगे अर्थात अत्यंत सफल रहेंगे। इसके उपरांत 13 तारीख के 12:09 दिन से 15 तारीख के 3:36 दिन तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि वृषभ होगी। यह बच्चे अपने माता-पिता की अत्यंत सेवा करेंगे और इनको बहुत सारी सफलताएं मिल सकेंगी। 15 तारीख के 3:36 दिन से लेकर सप्ताह के अंत तक जन्म लेने वाले बच्चों की राशि मिथुन रहेगी। यह बच्चे भाग्यशाली होंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का तथा आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपको सफलताएं मिलेंगी। धन प्राप्त होने की उम्मीद है। समाज में आपकी प्रतिष्ठा में थोड़ी कमी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 तारीख के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 9 और 10 तारीख को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। व्यापार में वृद्धि होगी। आपको स्वास्थ्य की कुछ तकलीफ हो सकती है। आपके पराक्रम में कमी आएगी। भाग्य आपका साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 13 तारीख के दोपहर से 14 और 15 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए अत्यंत शुभ है। 11, 12 और 13 तारीख की दोपहर तक आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और बृहस्पतिवार के दिन विष्णु भगवान के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके पास धन प्राप्ति का योग है भाग्य भी इस सप्ताह आपका साथ दे सकता है शत्रुओं को आप प्रयास करने पर पराजित कर सकते हैं कार्यालय में आपका विवाद हो सकता है इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 13 की दोपहर से लेखक 14 और 15 तारीख तक आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। आपके जीवनसाथी माता और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाग्य से आपको कम मदद मिलेगी। आपको अपने पुत्र से सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उचित है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार ठीक चलेगा। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। धन आने की उम्मीद की जा सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। जनता में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। शत्रुओं को आप पराजित कर सकेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 13 तारीख की दोपहर से 14 और 15 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए मंगल दायक है। आपके जो भी पेंडिंग कार्य हों कृपया इन तारीखों में कर लें। सफलता मिलेगी। 9 और 10 दिसंबर को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शिव चालीसा का प्रतिदिन कम से कम तीन बार पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई बहनों के साथ ठीक-ठाक संबंध रहेगा। आपको अपने संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। सामान्य धन आने का योग है। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 11, 12 और 13 दिसंबर को आपको कोई भी कार्य सावधान रहकर करना चाहिए। 14 और 15 दिसंबर को भाग्य की आपको विशेष रूप से मदद मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। धन आने का योग है। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 दिसंबर की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का कम से कम तीन बार पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जीवनसाथी को थोड़ी परेशानी हो सकती है। भाई बहनों के साथ अच्छे संबंध रहेंगे। माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। व्यापार ठीक चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 13 के दोपहर के बाद से 14 और 15 दिसंबर किसी भी कार्य को करने के लिए लाभ वर्धक हैं। 11, 12 और 13 की दोपहर तक आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। आपके पराक्रम में वृद्धि हो सकती है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी और पिताजी को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 दिसंबर मंगल दायक हैं। 13, 14 और 15 दिसंबर को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

अगर आप अविवाहित हैं तो इस सप्ताह विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे। इस सप्ताह आपके पास धन आने का भी अच्छा योग है। भाग्य आपका साथ देगा। लंबी दूरी की यात्रा हो सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 11, 12 और 13 की दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए शुभ है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पात्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। पिताजी और माताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कुछ समस्या हो सकती है। कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है। कार्यालय में आपकी प्रतिभा को सम्मान प्राप्त होगा। शत्रुओं को आप पराजित कर सकेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 13 की दोपहर से 14 और 15 दिसंबर लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। भाग्य के कारण आपके कई कार्य हो सकते हैं। धन आने का योग है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। कचहरी के कार्य अगर आप सावधानी पूर्वक करेंगे तो सफलता प्राप्त होने का पूर्ण अवसर है। इस सप्ताह आपके लिए 9 और 10 दिसंबर परिणाम दायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान दें। शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

 ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “बीते जो पल, पिता के संग” (संस्मरण) – लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “बीते जो पल, पिता के संग” (संस्मरण) – लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर ☆ समीक्षा – श्री कमलेश भारतीय ☆

पुस्तक : बीते जो पल, पिता के संग।

लेखिका : सुश्री सुदर्शन रत्नाकर

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली।

मूल्य : 400 रुपये। पृष्ठ : 142

☆ “सुदर्शन रत्नाकर का संस्मरण संकलन- जीवन के बीते पलों और पिता की खूबसूरत यादें” – कमलेश भारतीय ☆

अभी दस नवम्बर को हरियाणा लेखक मंच के वार्षिक सम्मेलन में अनेक पुस्तकें मिलीं‌, कुछ पढ़ पाऊं, कुछ लिख पाऊं उन पर, यही इच्छा लिए हुए! हर लेखक दूसरे लेखक को इसी उम्मीद से अपनी कृति उपहार में देता है कि वह संवेदनशील लेखक इसे पढ़ने का समय निकाल कर दो शब्द लिखेगा, कई बार मैं सुपात्र होता हूं, कई बार नहीं! यानी साफ बात सबकी किताबें पढ़ना किसी एक के बस की बात नहीं! सुदर्शन रत्नाकर के लिए मैं सुपात्र हूं क्योंकि धीरे धीरे इसे आज पढ़कर लिखने जा रहा हूं।

यह एक बेटी की यादें हैं अपने प्रिय नायक पिता के साथ! यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य भी है कि बेटियां पिता से तो बेटे मां से ज्यादा लगाव रखते हैं! कहां तक सच है, पता नहीं लेकिन सुदर्शन‌‌ ने पिता चौ राजकृष्ण बजाज के साथ और पिता ने पुत्री सुदर्शन के साथ अथाह प्यार किया, संस्कार दिये, संस्कारित किया, बेटों से  ज्यादा चाहा, दुलार दिया और बेटी की गलती पर भी दूसरों को समझाया, डांटा! हमेशा बेटी का पक्ष लिया! बेटी ने भी पिता को निराश नहीं किया, योग्य बनी और पिता का सिर ऊंचा किये रखा! कहां गुजरात मूल के लोग हरियाणा तक पहुच गये!

यही पल पल, बरसों की यादें हैं! मनाली, नैनीताल, बडखल झील के प्यारे प्यारे से संस्मरण हैं! चाहने वाला, सिर झुका कर प्यार करने वाला पति, प्यारे से बच्चे लेकिन जो शोख सी लड़की सुदर्शंन थी, वह साध्वी जैसे सफेद कपड़े पहनने लगी! जो शरारतें करती थी, भाइयों के साथ वह गंभीर‌ लेखिका बन गयी! अनेक गुण पिता से लिए और आज भी उनके आदर्शों पर चल रही है सुदर्शन‌‌!

एक पिता के पत्र पुत्री के नाम में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बहुत कुछ दिया, जिस पर भारत एक खोज सीरियल बन गया! एक पुत्री की यादें पिता के साथ भी पढ़ी जा सकती है, निश्चित रूप से!

इस पुस्तक में विभाजन से जूझते पिता हैं और विभाजन के बाद कैसे अपने सघर्ष और‌ जीवट से पिता ने परिवार का पालन पोषण किया, कैसे पैरों पर खड़ा किया सबको और संयुक्त परिवार आज भी आदर्श‌ हैं‌, यह सीख मिलती है पर अब सिर्फ यादें ही यादें हैं और यादों में जीती एक  बेटी!

कवर खूबसूरत है और पेपरबैक में होती तो बेहतर होता। सजिल्द‌ का मूल्य चार सौ है, जो आम पाठक की जेब से अधिक है।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-५ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-५ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

सुबह का नाश्ता और रात्रिभोज होटल के पैकेज में शामिल है। सभी एक साथ नाश्ता और रात्रिभोज करते हैं। वहीं अगली कार्ययोजना तय हो जाती है। राजेश जी का संदेश रात को ही प्राप्त हो गया था कि सुबह आठ बजे होटल के डाइनिंग एरिया में नाश्ता लेकर साढ़े आठ बजे बस में सवार होना है। नाश्ते में स्पंजी डोसा, इडली, बड़ा, पूड़ी, सब्ज़ी के अलावा ब्रेड बटर ऑमलेट भी थे। मीठे में सूजी का हलवा स्वादिष्ट लगा। नाश्ते के समय यह ध्यान रखना ज़रूरी होता है कि यदि सभी आइटम चखते जाएँ तो अति भोजन होना ही है। मुफ्त से लगने वाले यानी पैकेज में शामिल नाश्ता करते समय पर्यटक एक गलती अक्सर करते हैं। तुरंत पैसे तो देने नहीं हैं या पैसे तो दे ही चुके हैं। इसलिए खींच कर खा लेते हैं। जिसका परिणाम एक तो हाज़मा ख़राब और दूसरा जब बस में बैठकर नज़ारे देखना है तब सीट पर खर्राटे भरते हैं। हम तो खाने और सोने आए हैं। भूगोल-इतिहास किताबी बातें हैं। पर्यटन के दौरान इस प्रवृत्ति से बचेंगे तो घूमने का आनंद उठा पाएंगे। 

समूह में परस्पर स्नेहिल संबंध कायम हो गए हैं। समूह के सभी सदस्य सकारात्मक सोचधारी हैं। क्षुद्र स्वार्थ का द्वेषपूर्ण भाव या शिकायती लहजा किसी में भी नहीं दिखता। इस कारण पूरी यात्रा में अनबन जैसी बातें जो कि समूह प्रबंधन में अक्सर दिखती हैं, अब तक की यात्रा के दौरान नदारत हैं। सब हनुमान भक्ति में डूबे हैं। बस में सुबह की यात्रा अभिष के सस्वर हनुमान चालीसा गायन से शुरू होती है। बाक़ी सभी यात्री उनसे स्वर मिलाकर भक्तिपूर्वक गायन में हिस्सा लेते हैं। उसके बाद बीच-बीच में मज़ाक़ ठिठोलियों की फुहारें छूटती रहती हैं। कोई व्यक्तिगत निजी टिप्पणी नहीं होती है।

ड्राइवर के बराबर सीट पर बैठ ख़ुद डॉ.राजेश श्रीवास्तव समूह को नेतृत्व प्रदान करते हैं। उन्होंने गाइड चंदू को भी साथ बिठा लिया है। जिससे उन्हें पर्यटन स्थलों पर पहुँचने, रुकने और आगे बढ़ने में सुभीता है। उनके पीछे सिंगल सीट पर कंडक्टर की भूमिका में सुरेश पटवा सीटी बजाकर समूह को नियंत्रित करते हैं। उनके समानांतर कवियत्री रूपाली अपनी शिक्षिका मम्मी श्रीमती मंजु श्रीवास्तव के साथ हैं। उनके पीछे डॉ. जवाहर कर्णावत और अनुभूति शर्मा विराजमान हैं। उसके बाद घनश्याम मैथिल और अभिष श्रीवास्तव बैठे हैं। सिंगल सीट पर अरुण गुप्ता और उनके पीछे डॉक्टर दिनेश श्रीवास्तव जमे हैं। पिछली सीट पर श्री विजय शंकर चतुर्वेदी, श्री सनोज तिवारी, डॉ जयशंकर यादव और गोपेश बाजपेयी बैठे हैं।

आज हम्पी भ्रमण है। भूगोल इतिहास किसी भी पर्यटन की जान होते हैं। यदि इनका ज्ञान और भान न हो तो पर्यटन “ये खाया-वो खाया” और ‘ये खरीदा-वो खरीदा’ का मुरब्बा बनकर रह जाता है। हमने दक्षिण भारत का राजनीतिक भूगोल याद किया। दक्षिण भारत में पाँच राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के साथ तीन केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार, पुडुचेरी और लक्षद्वीप शामिल हैं। जहाँ की आबादी की भाषाएँ द्रविड़ परिवार की हैं। हिंदी सभी जगह समझी जाती है। हालाँकि राजनीति ने बहुत नीबू निचोया पर हिन्दुस्तानी कढ़ाई में हिंदी का खालिस दूध मद्धिम आँच में मलाईदार होता जा रहा है। राज्य की सीमाएँ आम तौर पर भाषाई आधार पर हैं।

श्रीराम ने भ्राता लक्ष्मण और सीता जी के साथ नासिक के पास पंचवटी में आरण्यक समय बिताया था। वहीं से रावण ने सीता जी का अपहरण किया था। जिनकी खोज में वे भटकते हुए श्रीराम-लक्ष्मण किष्किन्धा खंड के पम्पा क्षेत्र पहुँचे थे, जहाँ उनकी भेंट हनुमान जी से हुई थी। हम उसी स्थान पर हैं। श्री राम सेना सहित यहाँ से मदुरा होते हुए रामेश्वरम पहुँचे थे। रामायण काल में यह क्षेत्र बियाबान जंगल था। वानर मति और गति से ही इस क्षेत्र में पार पाया जा सकता था। गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों पूर्व से पश्चिम बहती हैं।

श्रीमती मंजू श्रीवास्तव और उनकी पुत्री रूपाली सबसे आगे की दोहरी सीट पर हैं। उनके बाजू वाली सिंगल सीट पर हम जमे हैं।  मंजू जी हमको पटवा भाई साहब बुलाने लगी हैं तो इस हिसाब से रूपाली ने हमसे मामाजी का रिश्ता बना लिया है। रूपाली ने पूछा – मामा जी, दक्षिण भारत का भूगोल-इतिहास  बताइए न। छेड़ने भर की देर थी। अपना रिकॉर्ड चालू हो गया।

सुनो रूपाली, दक्षिण भारत में छह  पारंपरिक भौगोलिक क्षेत्र हैं।

पीछे से आवाज आई, यह नहीं चलेगा। थोड़ा जोर से बोलिए, हम भी सुनेंगे। हमने तिरछा होकर वॉल्यूम तेज कर बोलना शुरू किया।

महाराष्ट्र से नीचे दक्षिण में उतरते ही कर्नाटक में- दक्कन के पठार का मैदानी क्षेत्र बयालुसीमे, केनरा या करावली तट, समुद्री तट और पठार के बीच सह्याद्रि पहाड़ियाँ मालेनाडु, गोदावरी नदी के उत्तर में स्थित क्षेत्र, मैसूर के आसपास दक्षिण कर्नाटक मुलकानाडु। धारवाड के आसपास उत्तरी कर्नाटक, जिस क्षेत्र में हम्पी स्थित है। कोंकण तटीय क्षेत्र, जिसमें तटीय महाराष्ट्र, गोवा और तटीय कर्नाटक का हिस्सा शामिल है। रायचूर दोआब, जिसमें ज्यादातर उत्तरी कर्नाटक, कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच का क्षेत्र तुलु नाडु, उडुपी और दक्षिण केनरा के तटीय जिले आते हैं।

जब हमने थोड़ी सांस ली तो अनुभूति बोलीं – आपको इतना याद कैसे रहता है। हमने कहा- हम भूलते नहीं है इसलिए याद रहता है। सब ठहाकर हँस दिए।

हमारे प्रवचन फिर शुरू हुए, आंध्र प्रदेश में- कम्मनडु – कृष्णा नदी के दक्षिण में नेल्लोर तक का क्षेत्र, कोनसीमा – गोदावरी जिले में गोदावरी नदी की सहायक नदियों के बीच का तटीय क्षेत्र, कोस्टा – आंध्र प्रदेश के तटीय जिले, रायलसीमा – जिसमें कुरनूल, कडप्पा, अनंतपुरम और चित्तूर जिले शामिल हैं। उत्तरांध्र – आंध्र प्रदेश का उत्तरी भाग, जिसमें तीन जिले श्रीकाकुलम, विजयनगरम और विशाखापत्तनम  शामिल हैं। वेलानाडु – अर्थात् गुंटूर से श्रीशैलम तक कृष्णा नदी के तट पर स्थित स्थान।

चलिए अब तमिलनाडु चलते हैं वहाँ- चेरा नाडु – पश्चिमी तमिलनाडु और अधिकांश आधुनिक केरल, कोंगु नाडु – कोयंबटूर के आसपास पश्चिमी तमिलनाडु, चेट्टिनाडु – शिवगंगा के आसपास दक्षिणी तमिलनाडु, चोल नाडु – तंजावुर के आसपास मध्य तमिलनाडु,  पलनाडु – उत्तरी तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के दक्षिणी जिले, पंड्या नाडु – मदुरै के आसपास दक्षिणी तमिलनाडु, उत्तरी सरकार – ब्रिटिश भारत में मद्रास राज्य में मुस्लिम प्रशासनिक इकाइयाँ, अर्थात् चिकाकोले, राजमुंदरी, एलोर, कोंडापल्ली और गुंटूर, टोंडाई नाडु – कांचीपुरम के आसपास उत्तरी तमिलनाडु, तिरुविथमकूर या त्रावणकोर- दक्षिणी केरल और तमिलनाडु का कन्याकुमारी जिला, दक्षिण मालाबार – केरल का उत्तर-मध्य क्षेत्र, जो कोरापुझा और भरतप्पुझा नदियों के बीच स्थित है।

इतने कठिन क्षेत्रों का नाम सुनते-सुनते कुछ साथी बाहर झांकने लगे थे। तब तक हमारा वर्णन केरल तटीय नाडू पर पहुँच चुके थे।

केरल- कोचीन – केरल का क्षेत्र जो भरतप्पुझा और पेरियार नदियों के बीच स्थित है, कभी-कभी पम्बा तक फैला हुआ है। उत्तरी मालाबार – जो मैंगलोर और कोझिकोड के बीच स्थित है, यह एझिमाला साम्राज्य, मुशिका राजवंश और कोलाथुनाडु की पूर्व त्रावणकोर रियासत थी।

अब सुनिए उस क्षेत्र को जिसे अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने सबसे पहले दबोचा था। अर्थात कोरोमंडल तट – दक्षिण तटीय आंध्र प्रदेश, उत्तरी तटीय तमिलनाडु और पुडुचेरी केंद्र शासित प्रदेश दक्कन पठार – आंतरिक महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक को कवर करने वाला पठारी क्षेत्र। इसमें मराठवाड़ा, विदर्भ, तेलंगाना, रायलसीमा, उत्तरी कर्नाटक और मैसूर क्षेत्र शामिल हैं।

अब चलते हैं द्वीप समूह- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के पूर्वी तट से बहुत दूर, बर्मा के तेनासेरिम तट के पास स्थित है। भारत की मुख्य भूमि का सबसे दक्षिणी छोर हिंद महासागर पर कन्याकुमारी (केप कोमोरिन) है। लक्षद्वीप के निचले मूंगा द्वीप भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट से दूर हैं। श्रीलंका दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है, जो पाक जलडमरूमध्य और श्रीराम के पुल के नाम से जाने जाने वाले निचले रेतीले मैदानों और द्वीपों की श्रृंखला द्वारा भारत से अलग किया गया है।

आज की योजना कुछ इस तरह है कि पहले तुंगभद्रा नदी किनारे गुफा दर्शन फिर हम्पी भ्रमण। अतः सबसे पहले कमलापुर पहुँचे, जहाँ तुंगभद्रा नदी के किनारे एक गुफा है। किंवदंती है कि लंका अभियान के बाद इसी गुफा में विजयी सेना की सभा में श्रीराम ने सुग्रीव का किष्किन्धा की गद्दी पर राज्यारोहण किया था। बाली का पुत्र अंगद भी दल बदल करके सुग्रीव की पार्टी से रक्षामंत्री बना था। गुफा में अंदर जाकर देखा कि शायद सुग्रीव वंश का कोई सांसद या विधायक अनुयायियों को जातिगत और वंशगत राजनीतिक समीकरण समझा रहा हो। परंतु वहाँ बोर्ड लगा था। सावधान, भारत की राजनीतिक गुत्थियों से भरी इस गुफा में आगे जाना मना है। कारोबार में लेनदेन बराबर होना चाहिए। धर्म के शोकेस मे धन का घुन लग चुका है।

क्रमशः… 

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆ गीत – ।।आज के नौनिहाल कल के कर्णधार होते हैं।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 139 ☆

☆ गीत – ।।आज के नौनिहाल कल के कर्णधार होते हैं।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।

मासूमियत में ईश्वर का आभास होता है।।

**

मन के सच्चे और मिट्टी  से कच्चे होते हैं।

जिस राह चलाओ उधर ही बच्चे होते हैं।।

बच्चों के ह्रदय चंचलता का निवास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

****

बचपन से ही सिखाना है बातें  अच्छी- अच्छी।

नींव बनाना है उनकी शुरू से ही सच्ची-सच्ची।।

बच्चे नौनिहाल कर्णधार निश्चल लिबास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

****

आज की जरूरत कि  मोबाइल से बचाना है।

बच्चों को संस्कार     संस्कृति सिखाना है।।

बड़ों से सीखते अच्छे बुरे का अहसास होता है।

बच्चों बचपन में प्रभु का वास होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 205 ☆ गजल – जियो और जीने दो… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “गजल – जियो और जीने दो। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 205 ☆ गजल – जियो और जीने दो ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

जियो और जीने दो सबको यह सिद्धांत सुहाना है

निश्चित हो जन हितकारी है औं जाना पहचाना है

इसके द्वारा ही जग मे सुख शांति हमेशा आती है

किंतु आज आतंकवाद का उभरा नया जमाना है

*

निर्दोषो का खून हो रहा गाँव गली शैतानी है

कब किसके संग कैसे क्या हो कोई नही ठिकाना है

जब होता सदभाव प्रेम है मिलता है आनंद तभी

हर बुराई को तज के मन से सहज भाव अपनाना है

*

तरस रहे है तडप रहे है दीन दुखी अंधियारों मे

स्नेह दीप ले सबको मन से सही राह दिखलाना है

बिन समझे जो भटक रहे है स्वार्थो के गलियारो मे

जीवन औ ममता का मतलब उन्हें साफ समझाना है

*

द्वेष हमेशा दुखदायी है प्रेमभाव सुखदाता है

आपस का संबंध मधुर कर जग को स्वर्ग बनाना है

सबको साथ लिये बढने से ही हो समृद्धि सहज

बैर भव रखने वालों को यह ही मंत्र पढाना है

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ विठ्ठल माऊली — लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर ☆

? इंद्रधनुष्य ?

☆ विठ्ठल माऊली — लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर

– – विठ्ठल हा असा एकमेव देव ज्याच्या हातात शस्त्र नाही

– – असा देव ज्याचा अवतार नाही अवतार नाही म्हणून जन्मस्थळ नाही 

– – जन्मस्थळ नाही म्हणून पुढल्या कटकटी नाहीत, वाद तंटे नाहीत.

– – असा देव ज्याला अमुक पद्धतीने पुजलं पाहिजे असं बंधन नाही.

– – असा देव ज्याला माऊली म्हटलं जातं….. देव आई असण्याचं हे उदाहरण दुर्मिळ.

– – असा देव जो शाप देत नाही, कोपत नाही, हाणामारी करत नाही.

– – कोणतीही विशिष्ट व्रतवैकल्य नाहीत.

– – कोणताही विशिष्ट नैवेद्य नाही.

– – कोणतीही आवडती फुले नाहीत.

– – कोणताही आवडता पोशाख नाही.

– – – जशी आई आपल्या मुलाचा राग, रुसवा, नाराजी, दुःख.. सगळं सहन करते तसा हा विठुराया आपल्या भक्तांचे राग, रुसवा, नाराजी, आणि दुःख सगळं सहन करतो. आणि म्हणूनच कदाचित – – – त्याला पुरुष असूनही माऊली म्हणत असावेत.

राम कृष्ण हरी.

लेखक : अज्ञात 

प्रस्तुती – श्री अनंत केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #258 ☆ याद व विवाद… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख याद व विवाद। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 258 ☆

☆ याद व विवाद… ☆

“भूलने की सारी बातें याद हैं/ इसलिए ज़िंदगी में विवाद है।” इंसान लौट जाना चाहता/ अतीत में/ जीना चाहता उन पलों को/ जो स्वर्णिम थे, मनोहारी थे/ खो जाना चाहता/ अतीत की मधुर स्मृतियों में/ अवगाहन करना चाहता, क्योंकि उनसे हृदय को सुक़ून मिलता है और वह उन चंद लम्हों का स्मरण कर उन्हें भरपूर जी लेना चाहता है। जो गुज़र गया, वह सदैव मनभावन व मनोहारी होता है। वर्तमान, जो आज है/ मन को भाता नहीं, क्योंकि उसकी असीमित आशाएं व आकांक्षाएं हृदय को कचोटती हैं, आहत करती हैं और चैन से बैठने नहीं देती। इसका मूल कारण है भविष्य के सुंदर स्वप्न संजोना। सो! वह उन कल्पनाओं में डूब जाना चाहता है और जीवन को सुंदर बनाना चाहता है।

भविष्य अनिश्चित है। कल कैसा होगा, कोई नहीं जानता। अतीत लौट नहीं सकता। इसलिए मानव के लिए वर्तमान अर्थात् आज में जीना श्रेयस्कर है। यदि वर्तमान सुंदर है, मनोरम है, तो वह अतीत को स्मरण नहीं करता। इसलिए वह कल्पनाओं के पंख लगा उन्मुक्त आकाश में विचरण करता है और उसका भविष्य स्वत: सुखद हो जाता है। परंतु ‘इंसान करता है प्रतीक्षा/ उन बीते पलों की/ अतीत के क्षणों की/ ढल चुकी सुरमई शामों की/ रंगीन बहारों की/ घर लौटते हुए परिंदों के चहचहाने की/ यह जानते हुए भी/ कि बीते पल/ लौट कर नहीं आते’– यह पंक्तियाँ ‘संसार दु:खालय है और ‘जीवन संध्या एक सिलसिला है/ आँसुओं का, दु:खों का, विषादों का/ अंतहीन सिसकियों का/ जहाँ इंसान को हर पल/ आंसुओं को पीकर/  मुस्कुराना पड़ता है/ मन सोचता है/ शायद लौट आएं/ वे मधुर क्षण/ होंठ फिर से/ प्रेम के मधुर तराने गुनगुनाएं/ वह हास-परिहास, माधुर्य/ साहचर्य व रमणीयता/ उसे दोबारा मिल जाए/ लौट आए सामंजस्यता/ उसके जीवन में/ परंतु सब प्रयास निष्फल व निरर्थक/ जो गुज़र गया/ उसे भूलना ही हितकर/ सदैव श्रेयस्कर/ यही सत्य है जीवन का, सृष्टि का। स्वरचित आँसू काव्य-संग्रह की उपरोक्त पंक्तियाँ इसी भाव को प्रेषित व पोषित करती हैं।

मानव अक्सर व्यर्थ की उन बातों का स्मरण करता है, जिन्हें याद करने से विवाद उत्पन्न होते हैं। न  उनका कोई लाभ नहीं होता है, न ही प्रयोजन। वे तत्वहीन व सारहीन होते हैं। इसलिए कहा जाता है कि मानव की प्रवृत्ति हंस की भांति नीर-क्षीर विवेकी होनी चाहिए। जो अच्छा मिले, उसे ग्रहण कर लें और जो आपके लिए अनुपयोगी है, उसका त्याग कर दीजिए। हमें चातक पक्षी की भांति स्वाति नक्षत्र की वर्षा की बूंदों को ग्रहण करना चाहिए, जो अनमोल मोती का रूपाकार ग्रहण कर लेती हैं। सो! जीवन में जो उपयोगी, लाभकारी व अनमोल है– उसे उसका ग्रहण कीजिए व अनमोल धरोहर की भांति संजो कर रखिए।

इसी प्रकार यदि मानव व्यर्थ की बातों में उलझा रहेगा; अपने मनो-मस्तिष्क में कचरा भर कर रखेगा, तो उसका शुभ व कल्याण कभी नहीं हो सकेगा, क्योंकि पुरानी, व्यर्थ व ऊल-ज़लूल बातों का स्मरण करने पर वाद-विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है, जो तनाव का कारण होती है। इसलिए जो गुज़र गया, उसे भूलने का संदेश अनुकरणीय है।

हमने अक्सर बुज़ुर्गों को अतीत की बातों को दोहराते हुए देखा है, जिसे बार-बार सुनने पर कोफ़्त होती है और बच्चे-बड़े अक्सर झल्ला उठते हैं। परंतु बड़ी उम्र के लोग इस तथ्य से अवगत नहीं होते कि सेवा-निवृत्ति के पश्चात् सब फ्यूज़्ड बल्ब हो जाते हैं। भले ही वे अपने सेवा काल में कितने ही बड़े पद पर आसीन रहे हों। वे इस तथ्य को स्वीकारने को लेशमात्र भी तत्पर नहीं होते। जीवन की साँध्य वेला में मानव को सदैव प्रभु स्मरण करना चाहिए, क्योंकि अंतकाल केवल प्रभु नाम ही साथ जाता है।

सो! मानव को विवाद की प्रवृत्ति को तज, संवाद की राह को अपनाना चाहिए। संवाद समन्वय, सामंजस्य व समरसता का संवाहक है और अनर्गल बातें अर्थात् विवाद पारस्परिक वैमनस्य को बढ़ावा देता है; दिलों में दरारें उत्पन्न करता है, जो समय के साथ दीवारों व विशालकाय दुर्ग का रूप धारण कर लेती हैं। एक अंतराल के पश्चात् मामला इतना बढ़ जाता है कि उस समस्या का समाधान ही नहीं निकल पाता। मानव सदैव उधेड़बुन में खोया रहता है;  हैरान-परेशान रहता है, जिसका अंत घातक की नहीं; जानलेवा भी हो सकता है।  आइए! हम वर्तमान में जीना प्रारंभ करें,  सुंदर स्वप्न संजोएं व भविष्य के प्रति आश्वस्त हों और उसे उज्ज्वल व सुंदर बनाएं। हम विवाद की राह को तज/ संवाद की राह अपनाएं/ भुला ग़िले-शिक़वे/ दिलों में क़रीबियाँ लाएं/  सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् की/ राह पर चल/ धरा को स्वर्ग बनाएं।

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© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – संस्मरण ☆ ☆ दस्तावेज़ # 3 – कनाडा से ~ कोंपल के कंधों पर चमकती धूप — ☆ डॉ. हंसा दीप ☆

डॉ. हंसा दीप

संक्षिप्त परिचय

यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत। पूर्व में यॉर्क यूनिवर्सिटी, टोरंटो में हिन्दी कोर्स डायरेक्टर एवं भारतीय विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक। चार उपन्यास व आठ कहानी संग्रह प्रकाशित। गुजराती, मराठी, बांग्ला, अंग्रेजी, उर्दू, तमिल एवं पंजाबी में पुस्तकों व रचनाओं का अनुवाद। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित। कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार 2020। राष्ट्रीय निर्मल वर्मा सम्मान।

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(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है कनाडा से डॉ. हंसा दीप जी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ “नौका विहार”।) 

☆ दस्तावेज़ # 3 – कनाडा से ~ कोंपल के कंधों पर चमकती धूप — ☆ डॉ. हंसा दीप  ☆ 

अलसुबह की ताज़ी बयार श्वास-दर-श्वास गुणित होती रही। ढलती शाम में उन सुवासित पलों को शब्दों में कैद करना मुझे रोमांचित कर गया। एक हल्की-सी दस्तक भर से स्मृतियों के पिटारे खुलकर कई अविश्वसनीय पलों को भी सामने ले आए। एक के बाद एक। यही तकरीबन 57-58 साल पहले का मेरा अपना गाँव। खालिस गाँव। टूटी-फूटी सड़कें, नीम के घने पेड़ और भीलों की बस्तियाँ। झोंपड़ियाँ भी, हवेलियाँ भी। कंगाल भी मालामाल भी। नंग-धड़ंग आदिवासी बच्चे और सेठों-साहूकारों के साफ-सुथरे बच्चों से लिपटती धूल-धूसरित हवाएँ।

मैं और छोटू, पूरे गाँव में भटक आते। पव्वा, गुल्ली-डंडा, लंगड़ी-लंगड़ी, खेलना और गाँव भर में छुपा-छुपी खेल के लिए दौड़ लगाना। न बीते कल की चिंता, न आने वाले कल की। बस आज खाया वही मीठा।

लौकिक और अलौकिक दुनिया के बीच झूलता बचपन। नन्हीं बच्ची की आँखों से देखे ऐसे कई लम्हे जिनमें विस्मय, कौतूहल, भय और विश्वास एक साथ हाथ थामे रहते। लौकिक दुनिया में जीते-जागते इंसान थे। भूख, गरीबी और शोषण से त्रस्त, अपने अस्तित्व से लड़ते आदिवासी। भीलों और साहूकारों की ऐसी दुनिया जहाँ बिल्ली और चूहे का खेल अपनी भूमिका बदलता रहता। दिन भर जिनसे मजदूरी करवाकर साहूकार अपनी तिजोरी भरते, रात में वे ही उनका माल-ताल लूट कर ले जाते।

इस हाथ ले, उस हाथ दे। दिन में सेठों की सेवा में भुट्टे हों या हरे चने के गट्ठर, हर सीजन की पैदावार भर-भर कर दे जाते। सेठों के परिवार खा-पीकर लंबी डकार जरूर लेते लेकिन रात में चैन की नींद न सो पाते। अगर मानसून ने साथ दिया और फसल ठीक-ठाक हुई तो चोरी-चकारी कम होती लेकिन जिस वर्ष फसलें चौपट होतीं, भीलों को खाने के लाले पड़ जाते। तब पेट भरने का एकमात्र सहारा सेठों को लूटना होता। लूटपाट, खौफ और दहशत से भरा गाँव। जीजी (माँ) के शब्द होते- “ई भीलड़ा रा डर से मरेला बी आँख्या खोली दे।” (इन भीलों के भय से मुर्दे भी जाग जाएँ।) 

न पुलिस का भय, न कानून का। पुलिस थी कहाँ! बाबा आदम के जमाने के दो कमरों में पुलिस थाना था। एक ओर छोटे-छोटे सेल थे कैदियों के लिए। और शेष दो में एक मेज, कुछ फाइलें और सोने का एक बिस्तर। मरियल से एक-दो पुलिसवाले ड्यूटी बजाते। भीलों के सामने कहीं नहीं लगते। बगैर हील-हुज्जत के माल मिल जाता तो आदिवासी होने के बावजूद भील मार-काट कम करते। न मिलने पर किसी को भी मार-काट कर लूट लेना उनके बाएँ हाथ का खेल था। एकजुट होकर साहूकारों के ब्याज से मुक्त होने का यही आसान तरीका था उनके लिए।  

गाँव में हमारा घर हवेली-सा था। सबसे बड़ा। यानि सबसे ज्यादा पैसा। यानि सबसे ज्यादा लूटपाट का डर। नीचे हमारी अनाज की बहुत बड़ी दुकान थी और अनाज के बोरे खाली करने-भरने के लिए कई आदिवासी हम्माल आते थे। हष्ट-पुष्ट, ऊँची कद-काठी के भील, पीठ पर बोरियाँ लादे मुझ जैसी बित्ती भर की बच्ची को भी छोटी सेठानी कहते। अपना लोटा लाकर मुझसे पानी जरूर माँगते। मैं दौड़-दौड़ कर जाती और मटके का ठंडा पानी लाकर उनका लोटा भर देती। पानी पीकर गले में लिपटे गंदे गमछे से पसीना पोंछकर फिर से काम पर लग जाते। जीजी रोटियाँ बनाकर उन्हें खाने देतीं जिन्हें वे बड़े चाव से प्याज के टुकड़े के साथ खा लेते। सबके लिए दोपहर की चाय भी बनती। कम दूध और ज्यादा पानी वाली चाय। शक्कर डबल। जीजी कहतीं- “बापड़ा खून-पसीनो एक करे। मीठी चा पीवेगा तो घणो काम करेगा।” (बेचारे इतना खून-पसीना बहाते हैं। मीठी चाय पीकर खूब काम करेंगे।)

पाँच भाई-बहनों के परिवार में हम दोनों छोटे भाई-बहन बहुत लाड़ले थे। मेरे बाद कोई बेटी नहीं और छोटू के बाद कोई बेटा नहीं। पूर्णविराम का महत्व हम दोनों बच्चों के व्यक्तित्व में झलकता था। हम ज्यादातर जीजी-दासाब (मम्मी-पापा) के आसपास ही मँडराते रहते। मानो उन दोनों पर सिर्फ हमारा अधिकार हो। अपनी हवेली के एक सिरे से दूसरे सिरे तक दौड़ते-भागते हम, हर पल जी भरकर जीते। आम के मौसम में घर में पाल डलती (कच्चे आमों के ढेर को सूखे चारे में रखकर पकाना)। रोज बाल्टी भर पानी लेकर बैठना और चुन-चुन कर पके आम बाल्टी में डालते जाना। ललचायी आँखें पलक झपकते ही रस भरे आम को गुठली में बदलते देखतीं। घर के अहाते में मूँगफली के बड़े ढेर से चुन-चुनकर मूँगफली खाना और छिलकों को बाकायदा ढेर से बाहर फेंकना।    

मालवी-मारवाड़ी-भीली जैसी बोलियों के साथ धाराप्रवाह गुजराती और हिन्दी भाषा हम सभी भाई-बहनों ने जैसे घुट्टी में पी ली थी। कभी भी, किसी से भी अलग-अलग बोलियाँ बोलने-समझने में सकुचाते नहीं। भीलों से भीली में खूब बतियाते। भील-भीलनी मालवी लहजे में भीलड़ा-भीलड़ी हो जाते। मालवी की मिठास में किसी के भी नाम के आगे ड़ा-ड़ी-ड़ो लगाकर बोलना अपनेपन का अहसास होना। गधे या बुद्धू लड़के को गदेड़ो, और लड़की बेवकूफ हो तो गदेड़ी। यहाँ तक कि बरतन कपड़े करती भीलनी दीतू को भी दीतूड़ी कहते। कभी नाराजगी जाहिर करनी होती तो दीतूड़ी को दीतूट्टी कहते। आज भी हम सब भाई-बहन आपस में मालवी में बात करते हुए घर में जितने छोटे हैं सबके नाम के पीछे ड़ा-ड़ी-ड़ो लगाते हैं। टोनूड़ा, मीनूड़ी, रौनूड़ो…।

उस साल पानी नहीं गिरा था। धरती अनगिनत टुकड़ों में फट-सी गई थी। फसलें चौपट थीं। धान उगा नहीं। सेठों का धंधा ठप्प। धंधा नहीं तो भीलों के लिए मजदूरी भी नहीं। बस यही था खुली लूटपाट का समय। अब डाके पड़ने लगे। चोरी-चकारी तो आम बात थी ही लेकिन जब किसी अमीर के यहाँ चोरों की भीड़ आकर घर खाली कर जाए, मालमत्ते के साथ घर का सारा सामान यहाँ तक कि बर्तन-भांडे भी ले जाए, वह डाका होता। भीलों के समूह एकजुट होकर पूरी फोर्स के साथ ढोल-ढमाके बजाते आते। सारा कैश, जेवर और घर से जो उठा-उठा कर ले जा सकते, ले जाते। तब तक बैंक व्यवस्था पर लोगों का विश्वास जमा नहीं था। साहूकार अपना सारा कैश, कीमती चीजें घर में ही रखता था।

दो दिन पहले पास के गाँव कल्याणपुरा में अरबपति मामाजी के घर डाका पड़ा था। मामाजी के खास आसामी (ग्राहक) उन्हें लूट गए थे। करोड़ों का माल नगदी-जेवरात सब चला गया था। वहाँ से आई खबरों से हम सब डरे हुए थे। घर में दासाब के होते राहत मिलती। खबरों का खौफ कभी जीजी के पल्लू को पकड़कर कम होता तो कभी दासाब का कुरता पकड़कर। डरे-सहमे हम दोनों उनके आसपास ही सोते। नींद लगते न लगते, ढोल बजने शुरू हो जाते।

दासाब खिड़की की ओट से बाहर से आती ढोल की आवाजों का जायजा लेकर कहते- “बच्चों, डरो मत। चोर अपने घर की तरफ नहीं आ रहे। वो तो दूसरी ओर जा रहे हैं।”

लेकिन ये हमें समझाने के लिए होता क्योंकि वो स्वयं खड़े होकर आवाज दूर जाने तक सोते नहीं। घुप्प अंधेरे में कुछ दिखाई न देता होगा क्योंकि उस समय हमारे गाँव में बिजली आई ही थी। जो आती कम, जाती ज्यादा थी। चोरी-डाके की तमाम आशंकाओं के बावजूद कभी हमारे घर डाका नहीं पड़ा। हाँ, हर दो-तीन माह में हमारी भैंस चोरी हो जाती थी। दासाब की जिद थी कि घर में भैंस हो और सभी बच्चे घर का दूध पीएँ। सो हमारी हवेली के बंद पिछवाड़े में एक भैंस बँधी रहती। उन्हें ये भी पता होता था कि अपनी भैंस दो-तीन महीने ही रहेगी, बाद में चोर ले जाएँगे। और ऐसा ही होता। हर दो-तीन माह के भीतर भैंस चोरी हो जाती।

दासाब कहा करते थे- “चोट्टे घर के अंदर नहीं आ सकते। पिछवाड़े से भले ही भैंस ले जाएँ।  

प्रश्नों की लंबी कतार मेरे सामने होती। मैं यह न समझ पाती कि चोर कैसे घर में नहीं घुस सकते! पुलिस तो खड़ी नहीं है बाहर। और फिर पुलिस तो कभी भैंस को भी वापस नहीं ला पाई, फिर चोरों का क्या बिगाड़ लेगी! रात में ड्यूटी पर खर्राटे भरते पुलिस वालों को इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि ढोल-नगाड़े बजाकर भील चोरी करने आ रहे हैं।  

मैं सोचती, शायद चोर दासाब से डरते होंगे। उनकी आवाज इतनी बुलंद थी कि एक जोर की आवाज या उनकी खाँसी से सब सतर्क हो जाते। बड़े भाई-बहन भी डर जाते थे। मैं नहीं डरती थी क्योंकि मुझे कई विशेषाधिकार प्राप्त थे। मसलन, उनकी कई छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखना। वे नीचे दुकान में खाना खाते थे जबकि किचन ऊपर था। किचन क्या था, बहुत बड़ा हाल था। उस हवेली में कोई छोटा कमरा था ही नहीं, कई बड़े-बड़े हाल थे। मैं हर बार दौड़कर ऊपर जाती और गरम रोटी लेकर आती। धोबी के घर से उनके झकाझक सफेद कुरते-पाजामे बगैर सिलवटों के उन तक पहुँचाने का काम भी मेरा ही था।

जब वे बाजार कुछ लेने जाते, मुझे अपनी उँगली पकड़कर साथ ले जाते। धुली हुई घेरदार फ्राक पहने मेरी ठसक ऐसी होती जैसे दासाब की नहीं, आसमान में चमकते सूरज की उँगली पकड़कर चल रही होऊँ। कंधों पर आकर धूप ठहर जाती। बिखरती धूप के साए खिलखिलाने लगते। वो अलमस्त अनुभूति कभी मद्धम नहीं हुई। सिलसिला आज भी जारी है जब मैं अपने नाती-नातिन की उँगली पकड़कर चलती हूँ। टोरंटो की बर्फ के कणों से धूप परावर्तित होकर समूची ताकत से मुस्कुराती है। रोल बदलने के बावजूद चाल की ठसक कायम है।

भैंस के चोरी हो जाने के बाद हम दोनों छोटे बच्चों को पंडित के पास भेजा जाता। यह तफ़्तीश निकालने के लिए कि भैंस किस दिशा में गई। पंडित, गिरधावर जी अपना पोथा खोलते, हमारी जेब से निकले पैसे पोथे के पन्नों पर विराजमान होते ही उनकी गणना शुरू हो जाती। ग्रहों की गणना करते पंडित जी बताते कि भैंस, पूरब दिशा में गई है। फिर कहते, पहले पश्चिम में गई थी पर अब वापस पूरब दिशा की ओर मुड़ गई है। बिल्कुल वैसे ही जैसे आज हमारे सीसीटीवी कैमरे हमें दिशा-निर्देश देते हैं। 

दासाब पुलिस थाने रिपोर्ट लिखाने जरूर जाते और कह आते कि पूरब दिशा में ढूँढने जाओ। पुलिस वाले आश्वासन के साथ रिपोर्ट लिख लेते। मैं कई दिनों तक टकटकी लगाए देखती रहती कि हमारी भैंस लौट आएगी। भैंस लौटकर कभी वापस नहीं आती, मगर दासाब फिर से नई भैंस खरीद लेते। अच्छी सेहत वाली। खूब दूध देती। ज्यादातर दही जमाकर मक्खन निकाल लेते। घी बन जाता। बड़े मटकों में रस्सी से बँधी लंबी मथनी पर हम सब हाथ चलाते। घूम-घूमकर, मटक-मटक कर दही मथना एक तरह से खेल था। मथनी खूब खिंचने के बाद भी मक्खन की झलक तक नहीं दिखती क्योंकि ताकत तो हममें थी नहीं। फिर दीतूड़ी हाथ आजमाती, उसके ताकतवर चार हाथ पड़ते न पड़ते मक्खन के थक्के ऊपर तैरने लग जाते। बड़ी-सी कढ़ाही में मक्खन का हर एक दूधिया कण इकट्ठा होता जाता। कढ़ाही आँच पर चढ़ते ही पूरी हवेली शुद्ध घी की महक से सराबोर हो जाती।

मथनी बाहर भी न आ पाती और तत्काल गाँव में खबर फैल जाती- “आज सेठ के घर छाछ बनी है।” मुफ्त में छाछ लेने वालों की भीड़ लग जाती हमारे घर। छाछ वितरण का काम मैं पूरी जिम्मेदारी से निभाती। छोटे से बर्तन से निकाल-निकाल कर लोगों के पतीले छाछ से लबालब भर देती। मेरे लिए यह एक जिम्मेदारी से भरे काम के साथ रोचक समय होता था। बाँटने की खुशी मेरे चेहरे से टपकती।

बीच-बीच में जीजी आकर सावधान करतीं कि बाकी लोगों को खाली न जाना पड़े। मैं छाछ देने में कंजूसी करने लगती तो बर्तन पकड़े सामने वाले की आवाज आती- “ए, थोड़ी और डाल दे न बेटा। आज खाटो (खट्टी कढ़ी) बनेगो।” लोगों के बर्तनों को ताजी, सफेद-झक छाछ से भर देना और उनकी आँखों से बरसते प्यार को स्वीकारना, मुझे बहुत भाता।

चोरी-डाके-लूटपाट के साथ हमारी हवेली में हॉरर दृश्यों की भरमार थी। अलौकिक दुनिया के कई रूप देखे मैंने। हमारा घर गाँव वालों के लिए भुतहा हवेली के रूप में भी जाना जाता था। उन घटनाओं का बयान करना, अंधविश्वास को बढ़ाना है। शिक्षित होकर भी उन घटनाओं को खंगालना विचलित करता है जिनका तार्किक उत्तर आज तक न मिला और शायद मिलेगा भी नहीं।

अपनी आँखों से गुजरे वे पल विज्ञान के विरुद्ध जाकर कभी भयभीत करते, कभी अलौकिक शक्तियों से परिचय कराते तो कभी आत्मविश्वास को बढ़ाते। आज तकनीकी युग में उन क्षणों की सच्चाई पर विश्वास करना सहज और स्वाभाविक बिल्कुल नहीं लगता, लेकिन वे पल अभी भी पीछा करते हैं। कई बार स्वयं को पिछड़ा हुआ कहकर इनके आगोश से मुक्त होने की कोशिश भी की लेकिन जो अपनी आँखों से देखा, जाना और समझा, उसे आज तक नकार नहीं पाई। बगैर किसी लाग-लपेट के वे क्षण मेरे सामने से ऐसे गुजरने लगते जैसे आज की ही बात हो। आँखों से देखा सच और उसमें जीने का अनुभव था, किसी तर्क की कोई गुंजाइश नहीं थी।

कई राज और उनमें छुपी जानी-अनजानी शक्तियों की चर्चा गाँव वाले करते। हवेली में रात में लोग बरतनों के गिरने की आवाज सुनते। रस्ते चलता आदमी भूले-से रात के अँधेरे में हवेली की किसी दीवार के पास पेशाब के लिए खड़ा हो जाता तो कोई उनके पीछे दौड़ता था। नाग-सर्प देवता के लिए तो हमारी हवेली जैसे स्वर्ग थी। रात के अँधेरे में हवेली के आसपास से गुजरने वालों को जगह-जगह नाग दिखते थे। मोटे-काले-लंबे नाग। छनन-छनन आवाजें सुनाई देती थीं। भड़-भड़ कुछ गिरने की आवाजें रोज की बातें थीं। हम गहरी नींद सो रहे होते और बाहर से गुजरने वाले ये सब देखते-सुनते हवेली से दूर भागने की कोशिश करते।

हमारे कानों में पड़ती ये बातें आम थीं। हम बच्चे आश्वस्त थे कि हमारे घर में ऐसा कुछ नहीं होता। होता भी हो तो ‘वो’ बाहर वालों को ही डराते हैं। हमें कभी कुछ नहीं करते। जीजी-दासाब ने हम दोनों छोटे बच्चों को खूब अच्छी तरह समझा कर रखा था कि कुछ भी डरने जैसा दिखे, तो हाथ जोड़ कर खड़े हो जाना। डरना मत। बस इतना कहना कि हम आपके घर वाले हैं।  

हवेली के कई हिस्सों से मुझे केंचुलियाँ मिलती थीं क्योंकि दिन भर हवेली में सबसे ज्यादा ऊपर-नीचे दौड़ने वाली मैं ही थी। नजर भी बहुत तेज थी। मैं सँभालकर ले जाती जीजी के पास। जीजी कहतीं- “चोला बदले नाग देवता। पूजा रा पाट पे रक्खी दो।”

एक बार दूध के तपेले के पीछे मुझे नाग जैसी बड़ी-सी परछाई दिखी। तुरंत दौड़कर जीजी को बताया। उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर वहाँ एक दीपक लगवाया, प्रार्थना की। कहा- “छोरा-छोरी डरी रिया, आप किरपा करो। वापस पधार जाओ।”   

वो दिन और आज का दिन, फिर मुझे कभी कुछ नहीं दिखा। जीजी की हिम्मत हौसला देती। हाँ, अकेले कभी रात-बिरात घर के पिछवाड़े जाने की हिम्मत नहीं कर पाते। पूरी हवेली में एक ही शौचालय था जो पिछवाड़े था। भैंस के खूँटे के पास। वहाँ तक पहुँचने में पूरी हवेली का लंबा सफर तय करना पड़ता था। रात में कोई वहाँ अकेला नहीं जाता। बड़े भाई-बहन भी जीजी के साथ या दासाब के साथ ही जाते।

हमारे यहाँ कोई भी शुभ कार्य या कोई त्योहार होता, हमें सख्त ताकीद थी कि पहले घर के देवताओं के लिए भोजन परोसो। वह थाली दिन भर पूजा के पाट पर रहती। शाम तक गाय और कुत्ते को खिला देते। कभी किसी ने गलती से भी उस नियम को नहीं तोड़ा। एक बार इस बड़ी हवेली का एक हिस्सा किराए से दिया था। वह परिवार वहाँ कुछ ही महीने टिका और डर के मारे छोड़ कर चला गया। छोड़ने के बाद हमें जो भी बताया, वह अविश्वसनीय नहीं था हमारे लिए।

दासाब कहते थे वे हमारे पुरखे हैं, जो अपने घर को छोड़ नहीं पाए। आज, जीजी-दासाब-बड़े-छोटे भाई नहीं हैं पर हम घर के जितने लोग बचे हैं, सबके पास ऐसी कई स्मृतियाँ कैद हैं। जब भी मिलते हैं रात के दो-तीन बजे तक बैठकर नयी पीढ़ी को ये सब सुनाते हैं। आज वह हवेली बिक गई है। दिन में वहाँ स्कूल चलता है। रात में आज भी वहाँ कोई नहीं रहता।

मेरी सारी सोच-समझ की शक्ति धराशायी हो जाती जब वह दृश्य मेरे सामने आता। उस शाम हवेली के बीच वाले हिस्से में चाचाजी के घर धड़ाधड़ पत्थर आने लगे थे। एकाध मिनट के अंतराल से एक पत्थर आता, आवाज होती और नीचे पड़ा दिखाई देता। पत्थर कहाँ से आ रहे थे, कौन फेंक रहा था, आज तक यह रहस्य नहीं खुला।

परिवार के साथ वहाँ इकट्ठा हो रहे गाँव के लोग इस घटना के साक्षी थे। फुसफुसा रहे थे कि सेठ का घर किसी बड़े संकट में है। भीड़ भयभीत थी, घरवाले भी। क्रोध शांत करने के लिए उसी समय धूप-दीप किया गया। सवेरे उठकर बड़ी पूजा करने का निवेदन किया गया। घर के हर सदस्य ने जोर से किसी भी गलती के लिए क्षमा माँगी। थोड़ी देर में पत्थर आने बंद हुए। किसी ने एक शंका जाहिर की कि ये पत्थर चोर फेंक रहे होंगे। लेकिन एक ही आकार के सारे पत्थरों का, एक ही जगह पर आकर गिरना संभव नहीं था। वह दृश्य मेरी आँखों में आज तक ऐसा सुरक्षित है कि कभी मैं उसे डिलीट न कर पाई।

समय के सारथी उन पलों की मुट्ठी में कैद था खुले आसमान का टुकड़ा। उसी को पकड़े रखा। जिन चमकीले-धूपीले पलों को बड़ों के साथ जीया, अब अपने नाती-नातिन के साथ जीती हूँ। उन्हें अपने बचपन की बातें सुनाती हूँ तो कहते हैं- “वाह नानी, तब भी था सुपर पावर!”

और फिर सुपर पावर की कई-कई किताबें पढ़ चुके वे मुझे आज के सुपर पावर के किस्से सुना-सुनाकर चौंकाते हैं।

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© डॉ. हंसा दीप

संपर्क – Dr. Hansa Deep, 22 Farrell Avenue, North York, Toronto, ON – M2R1C8 – Canada

दूरभाष – 001 + 647 213 1817

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆ संजय दृष्टि – जीवनोत्सव — कवयित्री – गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय — ☆ समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

? संजय दृष्टि –  समीक्षा का शुक्रवार # 22 ?

? जीवनोत्सव  — कवयित्री – गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय ?  समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ?

पुस्तक का नाम : जीवनोत्सव

विधा – कविता

कवयित्री – गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय

प्रकाशन – क्षितिज प्रकाशन, पुणे

? अस्तित्व का उत्सव : जीवनोत्सव  श्री संजय भारद्वाज ?

दर्शन कहता है कि दृष्टि में सृष्टि छिपी है। किसीकी दृष्टि में जीवन बोझिल है तो किसीके लिए मनुष्य जीवन का हर क्षण एक उत्सव है। बकौल ओशो, मनुष्य का पूरा अस्तित्व ही एक उत्सव है।

अस्तित्व के इस उत्सव में भी दृष्टि पुन: अपनी भूमिका निभाती है। किसी के लिए पात्र, जल से आधा भरा है, किसीके लिए पात्र आधा रिक्त है। रिक्त में रिक्थ देख सकने का भाव ही अस्तित्व की उत्सवधर्मिता का सम्मान करना है। यह भाव बिरलों को ही मिलता है। शिक्षिका-कवयित्री गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय इस भाव की धनी हैं। प्रस्तुत कवितासंग्रह का लगभग हर पृष्ठ  इसका साक्षी है।

गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय का यह प्रथम कविता संग्रह है। वे जीवन के हर पक्ष में हरितिमा की अनुभूति करती हैं। अनुभूति को अभिव्यक्ति प्रदान करने वाली माँ शारदा की वंदना से संग्रह का आरम्भ होता है।

*मुक्तकों, छंदों में, गीतों में, मेरी कविताओं में,

भावों को उत्थान दे पाती कृपा तेरी है,

होकर ॠणी, बन कर कृतज्ञ, हर कण को, सृष्टि के

सदा, हृदय से सम्मान दे पाती कृपा तेरी है।*

सृष्टि के हर कण को सम्मान देने की बात महत्वपूर्ण है। वस्तुतः सृष्टि में हर चराचर अनुपम है। अतः हर इकाई, हर व्यक्ति आदर का पात्र है।

*बस तुम ही तुम हो तो फिर क्या तुम हो?

बस हम ही हम हैं तो फिर क्या हम हैं?

समग्रता से ही संपूर्णता है,

दोनों की सत्ता सिमटे तो हम हैं।*

अनुपमेयता का यह सूत्र कुछ यूँ सम्मान पाता है।

*सबका अपना विकास है ,

सबकी अपनी गति है।

खिलते अपने समय सभी,

सबकी अपनी उन्नति है।*

सबके खिलने में ही, उत्सव का आनंद है। ‘जीवनोत्सव’ इंद्रधनुषी है। इस इंद्रधनुष में सबसे गहरा रंग प्रकृति का है।

यत्र-तत्र सर्वत्र खिले हैं,

न-उपवन, हर डाली

वसुधा की शोभा तो देखो,

अद्भुत छटा निराली!

वयित्री गहन प्रकृति प्रेमी हैं। पर्यावरण का निरंतर हो रहा विनाश हर सजग नागरिक की चिंता और वेदना का कारण है। स्वाभाविक है कि यह वेदना कवयित्री की लेखनी से शब्द पाती-

जो मुफ़्त है और प्राप्त है,

अक्सर वही अज्ञात है।

अभिशप्त ना कर दो उसे,

जो मिल रही सौगात है।

सनातन दर्शन काया को पंचमहाभूतों से निर्मित बताता है। जीवन के लिए अनिवार्य इन महाभूतों को प्रकृति ने नि:शुल्क प्रदान किया है। मनुष्य द्वारा, प्राणतत्वों का आत्मघाती विनाश अनेक प्रश्न उत्पन्न करता है-

इतिहास ना बन जाएँ संसाधन,

प्राप्त का अब तो करें अभिवादन,

ऐसा ना हो मानव की अति से,

दूभर हो इस वसुधा पर जीवन।

वसुधा और वसुधा पर जीवन बचाने का आह्वान कभी प्रश्नवाचक  तो कभी विधानार्थक रूप में आकर झिंझोड़ता है-

इतनी सुंदर धरा को सोचो

यदि हम नहीं बचाएँगे-

तो क्या छोड़ कर जाएँगे,

क्या छोड़ कर जाएँगे?

……………………….

बंद करो दूषण का नर्तन,

बंद करो विकृति का वर्तन।

कसो कमर हे युग-निर्माता,

करने को अब युग परिवर्तन!

कवयित्री शिक्षिका हैं। उनके चिंतन के केंद्र में विद्यार्थी का होना स्वाभाविक है। संग्रह की अनेक कविताओं में विद्यार्थियों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष संदेश हैं। कुछ बानगियाँ देखिए-

स्मरण रहे तुम्हें,

तुम्हारा जीवन स्वयं एक उत्सव है!

इस उत्सव की अलख

सदा अपने भीतर जलाए रखना…!

अपने वर्तमान में उत्साह का एक बीज उगाए रखना!

इस ‘जीवनोत्सव’ को सदा अपने अंदर मनाए रखना…

……………………….

तुम्हारे कर्म से ही तेज

फैलेगा उजाले-सा,

स्वयं ही सिद्ध, होकर पूर्ण,

छलकोगे जो प्याले-सा!

विद्यार्थियों को संदेश देने वाली कवयित्री को अपने शिक्षकों, गुरुओं का स्मरण न हो, ऐसा नहीं हो सकता। गुरुजनों के प्रति यह मान ‘कृतज्ञ’ कविता में प्रकट हुआ है।

मायका स्त्री-जीवन का नंदनवन है। मायके की स्मृतियाँ, स्त्री की सबसे बड़ी धरोहर हैं। पिता को संबोधित कविता, ‘पापा, अब मैं सब्ज़ी काट लेती हूँ’, स्मृतियों में बसी अल्हड़ युवती से परिपक्व माँ होने की यात्रा है। परिपक्वता माता-पिता के प्रति यूँ सम्मान प्रकट करती है-

माता-पिता बड़े स्वार्थी होते हैं,

एक नींद के लिए ही,

वे सारे ख़्वाब पिरोते हैं।

नींद उन्हें यह, तब ही आया करती है,

जब उनके बच्चे, संतुष्ट हो सोते हैं!

स्त्रीत्व, विधाता का सर्वोत्तम वरदान है। तथापि स्त्री होना, दूब-सा निर्मूल होकर पुन: जड़ें जमाना, पुन: पल्ववित होना है। स्त्रीत्व का यह सदाहरी रंग देखिए-

सूखकर फिर से

हरी हो जाती है यह दूब,

विछिन्न होकर फिर से

भरी हो जाती है यह दूब!

स्त्री के अपरिमेय अस्तित्व की यह सारगर्भित व्याख्या देखिए-

मैं, मेरे शब्दों से आगे,

और मेरे रूप से परे हूँ,

क्या मेरे मौन से आगे भी

पढ़ सकते हो मुझे?

स्त्री का मौन भी अथाह है। इस अथाह का श्रेय भी स्वयं न लेकर वह अपने जीवनसंगी को देती है। यही स्त्री के प्रेम की उत्कटता है। नेह की यह अभिव्यक्ति देखिए-

कहूंँ या ना कहूंँ तुमसे,

रखना स्मरण यह तुम।

मेरे मौन में तुम हो,

मेरी हर व्यंजना में हो।

हर पूजा में तुम हो..!

नेह किसीको अपना जैसा बनाने के लिए नहीं, अपितु जो जैसा है, उसे वैसा स्वीकार करने के लिए होता है। विश्वास को साहचर्य का सूत्र बताती ये पंक्तियाँ अनुकरणीय हैं-

ख़ूबी का क्या, ख़ामी का क्या,

तुझ में भी है, मुझ में भी है,

बस प्रेम में ही विश्वास रहे,

हर बात टटोला नहीं करते!

संग्रह की दो कविताएँ आंचलिक बोली में हैं। इनमें भी पौधा लगाने की बात है। आज जब आभिजात्य पैसा बोने में लगा है, लोक ही है जो पौधा उगा रहा है, पेड़ बढ़ा रहा है, पर्यावरण बचा रहा है। लोकभाषा और पर्यावरण दोनों का संवर्धन करता आंचलिक बोली का यह पुट इस संग्रह की पठनीयता में गुड़ की मिठास घोलता है।

देहावस्था का प्राकृतिक चक्र अपरिहार्य है, हरेक पर लागू होता है। समय के प्रवाह में वृद्ध व्यक्ति शनैः-शनै: घर, परिवार, समाज द्वारा उपेक्षित होने लगता है। आनंद की बात है कि इस संग्रह में दादी, नानी के लिए कविता है, अनुभव की घनी छाँव में बैठने का संदेश है-

पास बैठा करो उनके भी तुम कभी

आते जाते मिलेंगी दुआएंँ कई।

देख कर ही तुम्हें जीते हैं वे, सुनो!

उनकी मौजूदगी में शिफ़ाएंँ कई!

कविता अवलोकन से उपजती है। अवलोकन, संवेदना को जगाता है। संवेदना, अनुभूति में बदलती है, अनुभूति अभिव्यक्ति बनकर बहती है। सहज शब्दों में वर्णित कथ्य में बसा कवित्व, मन के कैनवास पर अ-लिखे सुभाषित-सा अंकित हो जाता है-

अपने घोसले

खोने के डर से,

उसी में छुपती,

वह डरी चिड़िया!

बुज़ुर्गों के साथ नौनिहालों पर पर केंद्रित कुछ बाल कविताएँ भी इसी संग्रह में पढ़ने को मिल जाएँगी। इस तरह हर पीढ़ी को कुछ दे सकने का प्रयास संग्रह की कविताओं के माध्यम से किया गया है। 

प्रस्तुत कविताओ में आस्था के रंग हैं, रिश्तों की चर्चा है, शिक्षकों की समस्याओं पर ध्यानाकर्षण है। पर्यावरण, विद्यार्थी, स्त्री तो मुख्य स्वर हैं ही। जीवन के अनेक रंगों का यह समुच्चय इस संग्रह को जीवनोत्सव में परिवर्तित कर देता है।

गौतमी चतुर्वेदी पाण्डेय लिखती रहें, पर्यावरण के संवर्धन के लिए कार्य करती रहें, यही कामना है। आशा है कि जीवनोत्सव के अन्य कई रंग भी भविष्य में उनकी आनेवाली पुस्तकों में देखने को मिलेंगे। अनेकानेक शुभाशंसाएँ।

© संजय भारद्वाज  

नाटककार-निर्देशक

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #31 – गीत – भावों की बहती सुरसरिता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतभावों की बहती सुरसरिता

? रचना संसार # 31 – गीत – भावों की बहती सुरसरिता…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

☆ 

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।

पूनम की संध्या बेला में,

सप्त सुरों में यदि तुम गाते।।

 *

प्रीत सुधा रसधारा बहती,

घोर अमावस भी छट जाती।

उजियारा फिर जग में होता,

पूनम की ये रात सुहाती।।

मधुरिम बोल मधुर धुन सुनते,

पुष्प देवता भी बरसाते।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

 *

पावन छुअन सजन की पाकर,

अंग- अंग संदल हो जाता।

धरती अंबर से मिल जाती,

झंकृत रोम -रोम हो जाता।।

अलि करते गुंजार मनोहर,,

सजन लाज से हम सकुचाते।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

 *

 मादक इन नयनों में खोकर,

 छंद छंद रस गागर भरता।

 आल्हादित कण- कण हो जाता,

 अलंकार से सृजन निखरता।।

 रति सा सुंदर रूप देखकर ,

 कामदेव बन मुझे लुभाते ।

 *

भावों की बहती सुरसरिता,

कमल पुष्प से हम खिल जाते।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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