मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #117 – दत्तगुरु…! ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 117 – दत्तगुरु…! ☆

हा प्रत्येक श्वास माझा दत्तात्रेय गात आहे

दर्शनास गुरुदत्ता आतुरला जिव आहे…१

 

हे श्री गुरु दत्तात्रेया तू आहे चराचरात

भक्तास तारावयाला तू येतो कसा क्षणात …२

 

घेतसे मिटून डोळे मी तुझ्या दर्शनासाठी

चरणी ठेवतो माथा तुलाच पाहण्यासाठी…३

 

हे श्री गुरु दत्तात्रेया दे दर्शन तू मजला

गाणगापूरी आलो मी दत्ता तुला भेटण्याला..४

 

दिगंबरा दिगंबरा जयघोष होत आहे

तू दर्शन देता देवा आनंदला जिव आहे…५

 

दत्तात्रेया कृपा तुझी जन्माचे सार्थक झाले

जाहले दर्शन आणि आयुष्याचे सोने झाले…६

 

ह्या देहास माझ्या आता सेवा तुझीच घडावी

चरणावरीच तुझिया प्राण ज्योत ही विझावी..७

 

© सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#140 ☆ तन्मय दोहे – मायावी षड्यंत्र…2 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय “तन्मय दोहे – मायावी षड्यंत्र…2”)

☆  तन्मय साहित्य # 140 ☆

☆ तन्मय दोहे – मायावी षड्यंत्र…2 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जब से मेरे गाँव में, पहुँचे शहरी भाव।

भाई-चारे  प्रेम के, बुझने लगे अलाव।।

 

भूखों का मेला लगा, तरह-तरह की भूख।

जर,जमीन,यश, जिस्म की, जैसा जिसका रूख।।

 

खादी तन पर डालकर, बगुले  बनते हंस।

रच प्रपंच मिल कर रहे, लोकतंत्र विध्वंस।।

 

धर्म-पंथ के नाम पर, अलग-अलग है सोच

लोकतंत्र  लँगड़ा रहा, पड़ी  पाँव में  मोच।

 

वेतन-भत्ते सदन में, सह-सम्मति से पास।

दाई-जच्चा वे स्वयं, फिर क्यों रहें उदास।।

 

जिनके ज्यादा अंक है, अपराधों में खास।

है उनके ही   हाथ में, प्रजातंत्र  की  रास।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 32 ☆ बीता बचपन… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत  “बीता बचपन… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 32 ✒️

? गीत – बीता बचपन… — डॉ. सलमा जमाल ?

मन करता इक बार मैं फिर से ,

बीता बचपन जी लूं ।

चैंयां- मैंयां, छुपन- छुपाई ,

घोर-घोर रानी खेलूं ।।

 

अम्मा की मैं लाडली बेटी,

दादी की चंदा रानी ,

मामा- मामी गोदी उठाएं,

नानी कहती कहानी ,

दादा-नाना घोड़ा बनें ,

पिता की बाहों में सो लूं ।

मन करता ——————–।।

 

बस्ता दे शाला को भेजा ,

 छूटा घर और भाई ,

भाई- बहन और सखी सहेली,

के संग उमर बिताई ,

बोझ पढ़ाई और होमवर्क को,

एक बार फिर झेलूं ।

मन करता ——————।।

 

ईद, दीपावली, रक्षाबंधन ,

होली की पिचकारी,

शैतानी पर डांटते पड़ोसी,

 दुश्मन- दुनिया सारी,

बाग, खेत, सावन के झूले,

 झूल आकाश को छू लूं ।

मन करता —————-।।

 

हुई सयानी तो बाबुल ने,

मुझको किया है पराया,

चार कहार व डोली द्वार पे,

लाया किसी का जाया,

“सलमा” विदाई की बेला में,

सीने से लग रो लूं ।

मन करता —————-।।

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 40 – कॉमेडी – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख  “कॉमेडी…“।)   

☆ आलेख # 40 – कॉमेडी – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

जीवन में नवरस का होना ईश्वर के हाथ में है पर हास्यरस का होना आवश्यक है स्वास्थ्यप्रद मानसिकता के लिये. हास्यरस को स्थूल रूप से कॉमेडी भी कहा जाता है जिसका जीवन में प्रवेश, बचपन में देखे जाने वाले सर्कस के जोकर से शुरु होता है. इन्हें विदूषक भी कहा जाता है. ये अपनी वेशभूषा, भावभंगिमा से दर्शकों और विशेषकर बच्चों से तारतम्य स्थापित करते हैं. यहाँ शब्दों की आवश्कता नहीं होती.

जोकर की जीवनी पर तीन भागों, दो इंटरवल वाली चार घंटे की फिल्म सिर्फ राजकपूर ही बना सकते हैं. फिल्म का पहला भाग विश्व की किसी भी भाषा में बनी फिल्म से प्रतिस्पर्धा कर सकता था. मासूम बचपन और शिक्षिका के प्रति अज्ञात आकर्षण की संवेदना को बहुत खूबसूरती से फिल्मांकन करने में राजकपूर सिद्धहस्त थे. अभिनय की दृष्टि से अबोध ऋषिकपूर भी नहीं जानते होंगे कि स्वाभाविक अभिनय से सजी यह फिल्म उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक होगी. “शो मस्ट गो ऑन” इसी फिल्म की थीम थी और राजकपूर की संगीतकार शंकर जयकिशन के साथ अंतिम फिल्म भी यही थी यद्यपि जयकिशन पहले ही अनंत में विलीन हो चुके थे.

पर बात यहाँ सिर्फ फिल्मों की नहीं हो रही है, हास्यरस हमारा प्रमुख विषय है. कामेडी का अगला पड़ाव सर्कस से शिफ्ट होकर फिल्मों पर आता है और तरह तरह की कामेडी करने वाले, विभिन्न काया, भंगिमा और आवाज़ के स्वामी, हास्य अभिनेताओं की कामेडी से वास्ता पड़ता है. कभी सिचुएशनल कॉमेडी, कभी भाव भंगिमा, तो कभी असामान्य आवाज़ या नाकनक्श. गोप, जॉनीवाकर, आगा, मुकरी, राजेंद्र नाथ, मोहन चोटी, केश्टो मुखर्जी आदि बहुत सारे हास्य कलाकार थे पर सबसे सफल थे महमूद जिनकी फिल्म के नायक के साथ साथ खुद की कहानी भी समांतर चला करती थी और अभिनेत्री शोभाखोटे के साथ महमूद की सफल जोड़ी भी बन गई थी. बाद में यही महमूद फिल्म निर्माता बने और अमिताभ बच्चन और संगीतकार आर.डी.बर्मन को अपनी फिल्मों में मौका दिया. बांबे टू गोवा, अमिताभ बचन की सफल फिल्म थी और भूत बंगला राहुल देव बर्मन की.

क्रमशः…

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 141 ☆ सांज… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 141 ?

☆ सांज… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सांज अशी सजलेली

पसरली स्वर्ण लाली

क्षितिजावर आतुरतेने

शब्दांचे मंजुळ पक्षी!

 

सांज अशी नटलेली

जणू शेला पांघरलेली

शब्दांचा लेवून साज

अवतरली कोण नीलाक्षी?

 

सांज अशी मंतरलेली

शब्दकळाच अंथरलेली

 प्रतिभेच्या रुजाम्यावरची

अतिसुबक साजिरी नक्षी!

 

सांज अशी मोहरलेली

मोहरलेली घेवून रंग गुलाबी

शब्दांचे मेघ बरसले

अन तरारली गुलबक्षी!

 

सांज अशी अवतरली

अप्सराच कुणी थिरकली

फुलवून शब्द पिसारा

नाचली धुंद मयुराक्षी

 

सांज उतरली खाली

दशदिशात काजळलेली

शब्दांचे तोरण झुलते

गगनाच्या विशाल वक्षी !

© प्रभा सोनवणे

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मीप्रवासीनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २६ – भाग ३ -वास्को-डि-गामाचे हिरवे पोर्तुगाल ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २६ – भाग ३ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️  वास्को-डि-गामाचे हिरवे पोर्तुगाल ✈️

कोइंब्राहून ‘फातिमा’ इथे जाताना वाटेत दोन्ही बाजूला काळ्या द्राक्षांचे मळे होते. मुख्यतः वाइन बनविण्यासाठी या द्राक्षांचा उपयोग केला जातो.’फातिमा’ हे युरोपमधील लक्षावधी भाविकांचे श्रद्धास्थान आहे.फातिमा हे ‘मदर मेरी’चे स्वरुप मानले जाते .१९२२ मध्ये इथे  उभारण्यात आलेल्या चर्चचे १९५३मध्ये ‘बॅसिलिका ऑफ रोझॅरिओ’ या नावाने पुनर्निर्माण  झाले. त्याच्या ६५ मीटर उंच टॉवरवर सोनेरी, नक्षीदार राजमुकुट आहे व त्यावर क्रॉस चिन्ह आहे. त्या चर्चच्या भव्य आवारात एका वेळी दहा लाख लोक प्रार्थनेसाठी एकत्र येऊ शकतात. आवारातील एका विशिष्ट रस्त्यावरून तरुण- वृद्ध, स्त्री- पुरुष हातात रोझरी (जपमाळ) घेऊन गुडघ्यांवर चालत चर्चपर्यंत जात होते. ते फातिमाला केलेला नवस फेडण्यासाठी आले होते. जगाच्या पाठीवर कुठेही गेलं तरी माणसांच्या मनात असलेली श्रद्धा विविध स्वरूपात दिसते.माझ्या मनात आलं की,

पार्वती आणि अष्टभूजा

मेरी आणि फातिमा

रूपे सारी स्त्रीशक्तीची

देती बळ, आशिष आम्हाला

गाईडने सांगितले की आजही पोर्तुगालमध्ये मुलीचे नाव फातिमा ठेवले जाते व पोर्तुगीज भाषेत अनेक उर्दू शब्द आहेत.

पोर्तुगालमध्ये अनेक ठिकाणी रोमन  संस्कृतीच्या खुणा दिसून येतात. बाराव्या शतकापासून इथे ख्रिश्चन धर्माचा प्रसार झाला.आम्ही ‘इव्होरा’इथे गेलो होतो.इव्होराचा समावेश वर्ल्ड हेरिटेज मध्ये आहे. वैभवसंपन्न रोमन साम्राज्याच्या खुणा इथे जपण्यात आल्या आहेत. इथल्या उंच दगडी चौथऱ्यावरवरील नक्षीदार खांब हे रोमन देवता डायना हिच्या मंदिराचे आहेत. त्याच्यासमोर बाराव्या शतकात बांधलेले गॉथिक शैलीतील भव्य कॅथेड्रल आहे. सोळाव्या शतकात या कॅथेड्रलचे नूतनीकरण करण्यात आले. ओक वृक्षाचे लाकूड वापरून केलेले नक्षीदार खांब व पेंटिंग्स बघण्यासारखी आहेत.ओक वृक्षापासून बनविलेला सोळाव्या शतकातील ऑर्गन अजूनही वापरात आहे.

लिस्बन हे पोर्तुगालच्या राजधानीचे ठिकाण आहे.तसेच ते पोर्तुगालची सांस्कृतीक, शैक्षणिक व व्यापारी राजधानी आहे.तेगस नदीच्या मुखावर वसलेले, सात टेकड्यांचे मिळून बनलेले लिस्बन हे सुंदर शहर आहे. अटलांटिक महासागराला मिळणाऱ्या तेगस नदीचे पात्र इथे समुद्रासारखे रुंद आहे .पंधराव्या व सोळाव्या शतकातील राजांनी सागरी मोहिमांना पाठिंबा दिला. नव्या जगाचा शोध घेण्यासाठी अनेक धाडसी दर्यावर्दी जगप्रवासाला निघाले. प्रिन्स हेनरी हा स्वतः उत्तम साहसी दर्यावर्दी होता. या काळात सागरावर पोर्तुगीजांची सत्ता निर्माण झाली. लिस्बन हे व्यापारी केंद्र बनले. वास्को-डि-गामा याने दक्षिण आफ्रिकेच्या टोकाला ( Cape of good hope ) वळसा घालून इसवीसन १४९८ मध्ये भारताच्या पश्चिम किनाऱ्यावर कालिकत येथे पाऊल ठेवले. सोळाव्या शतकात पोर्तुगीज दर्यावर्दी चीन, जपान एवढेच नव्हे तर दक्षिण अमेरिकेतील ब्राझील इथेसुद्धा पोचले होते. ब्राझीलमध्ये अनेक वर्षे पोर्तुगिजांच्या वसाहती होत्या. आज जगातील वीस कोटीहून अधिक लोक पोर्तुगीज भाषा बोलतात.

इसवीसन १७५५ मध्ये झालेल्या भयंकर भूकंपाने लिस्बन शहराची प्रचंड हानी झाली. त्यातून नवे शहर उभारण्यात आले. काटकोनात वळणारे रुंद रस्ते, सलग, सारख्या आकाराच्या इमारती, प्रवेशद्वाराजवळील भक्कम खांब, कमानी, बिल्डिंगवरील पुतळे, नक्षीकाम अशी शहर रचना नंतर सर्व युरोपभर पसरली. तेगस नदीवरील पुलाच्या दक्षिण टोकाला ८२ मीटर उंचीवर २८ मीटर उंचीचा ‘क्रिस्तो रे’ म्हणजे येशू ख्रिस्ताचा दोन्ही हात फैलावलेला भव्य पुतळा आहे. या पुतळ्याजवळील लिफ्टने वर जाऊन लिस्बनचे उत्तुंग दर्शन घेण्याची सोयही आहे.

तेगस नदीवरील या ब्रिजला ‘२५एप्रिल ब्रिज’ असेच नाव आहे. हा ब्रिज जगातील तेविसावा मोठा सस्पेन्शन ब्रिज आहे. पोर्तुगालमध्ये दर वर्षी २५ एप्रिलला ‘नॅशनल हॉलिडे ऑफ फ्रीडम डे’ साजरा केला जातो. २५ एप्रिल १९७४ पूर्वी जवळजवळ ३५ वर्षे हुकूमशहा सालाझार याची एकतंत्री राजवट होती. नंतर निवडून आलेल्या लोकप्रतिनिधींचे राज्य सुरू झाले.

संध्याकाळी आम्ही तेगस नदीकिनारी फिरायला गेलो. नदीवरून संथपणे जाणाऱ्या केबल कारमधून अतिशय सुंदर चित्रासारखे विहंगम दृश्य दिसत होते. नदीचे रुंद पात्र, त्यावरील निळसर लाटा, नदीकडेचे निळ्या- पिवळ्या फुलांनी बहरलेले जॅकारंडा वृक्ष,पाम, ऑलिव्ह,संत्री, बदाम,मॅग्नेलिया  यांची झाडे, जॉगिंग ट्रॅक वरील स्त्री-पुरुष, हिरव्या बगीच्यात खेळणारी मुले, रेस्टॉरंटमध्ये निवांतपणे खाद्य- पेयांचा आस्वाद घेणारे स्त्री-पुरुष असे नयनरम्य  दृश्य दिसत होते.

केबल कारमधून उतरल्यावर तिथल्या भव्य वास्को-द-गामा मॉलमध्ये विंडो शॉपिंग केले. इथल्या रस्त्यावरच्या बऱ्याच इमारतींना जहाजासारखा, जहाजाच्या शिडासारखा आकार दिला आहे. इथल्या भव्य ओरिएंट स्टेशनवरून रेल्वे, बस आणि मेट्रो यांचे जाळे शहरभर पसरलेले आहे. या मोकळ्या, रूंद, उंचावरील  स्टेशनचे  कलापूर्ण छप्पर मेटलचे असून त्याला स्टीलचे खांब व काही ठिकाणी हिरवट काचा आहेत. या सार्‍याचा आकार निरनिराळ्या झाडांच्या फांद्यांसारखा,बुंध्यांसारखा केलेला आहे.

पोर्तुगाल भाग २ समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – संत तुकाराम – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के 

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ? – संत तुकाराम –  ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के 

तुकारामाचे अभंग

त्यात वेगळाले रंग

आठशे बत्तीस विषय

अभंगांचे अंतरंग—-

माझिया मुखाने

नाही मी बोलत

मजलागी बोलवितो

सखा भगवंत—-

सामान्यांची भाषा

तुकाराम बोले

म्हणूनी.सकलांना

ते वाटती आपुले—-

जगण्याचे सार

सांगे तुकाराम

करी निरसन

मनातला भ्रम—–

तत्वज्ञानी भाषा

तुका न वापरी

अभंग पोहोचले

त्याचे घरीदारी—–

अंधश्रद्धेवर तुका

सदा करीत प्रहार

नवसाने नाही होत

कधी कुणा पोर—–

सर्वसामान्यांचा तुका

सर्वा वाटतो आपला

संतांचिया मेळ्यामधे

तुका कळस जाहला—-

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 112 –“लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन (व्यंग्य संकलन)” – लेखक – श्री रण विजय राव ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है लेखक… श्री रण विजय राव जी के व्यंग्य संकलन  “लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन ” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 112 ☆

☆ “लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन (व्यंग्य संकलन)” – लेखक – श्री रण विजय राव ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

पुस्तक चर्चा

लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन (व्यंग्य संकलन)

व्यंग्यकार  … श्री रण विजय राव

प्रकाशक .. भावना प्रकाशन , दिल्ली

मूल्य ३२५ रु , पृष्ठ १२८

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , भोपाल

हमारे परिवेश तथा हमारे क्रिया कलापों का, हमारे सोच विचार और लेखन पर प्रभाव पड़ता ही है. रण विजय राव लोकसभा सचिवालय में सम्पादक हैं.  स्पष्ट समझा जा सकता है कि वे रोजमर्रा के अपने कामकाज में लोकतंत्र के असंपादित नग्न स्वरूप से रूबरू हो रहे हैं. वे जन संचार में पोस्ट ग्रेजुएट विद्वान हैं. उनकी वैचारिक उर्वरा चेतना में रचनात्मक अभिव्यक्ति  की  अपार क्षमता नैसर्गिक है. २९ धारदार सम सामयिक चुटीले व्यंग्य लेखों पर स्वनाम धन्य सुस्थापित प्रतिष्ठित व्यंग्यकार सर्वश्री हरीश नवल, प्रेमजनमेजय, फारूख अफरीदी जी की भूमिका, प्रस्तावना, आवरण टीप के साथ ही समकालीन चर्चित १९ व्यंग्यकारो की प्रतिक्रियायें भी पुस्तक में समाहित हैं. ये सारी समीक्षात्मक टिप्पणियां स्वयमेव ही रण विजय राव के व्यंग्य कर्म की विशद व्याख्यायें हैं. जो एक सर्वथा नये पाठक को भी पुस्तक और लेखक से सरलता से मिलवा देती हैं. यद्यपि रण विजय जी हिन्दी पाठको के लिये कतई नये नहीं हैं, क्योंकि वे सोशल मीडीया में सक्रिय हैं, यू ट्यूबर भी हैं, और यत्र तत्र प्रकाशित होते ही रहते हैं.

कोई २० बरस पहले मेरा व्यंग्य संग्रह रामभरोसे प्रकाशित हुआ था, जिसमें मैंने आम भारतीय को राम भरोसे प्रतिपादित किया था. प्रत्येक व्यंग्यकार किंबहुना उन्हीं मनोभावों से दोचार होता है, रण विजय जी रामखिलावन नाम का लोकव्यापीकरण भारत के एक आम नागरिक के रूप में करने में  सफल हुये हैं. दुखद है कि तमाम सरकारो की ढ़ेरों योजनाओ के बाद भी परसाई के भोलाराम का जीव के समय से आज तक इस आम आदमी के आधारभूत हालात बदल नही रहे हैं. इस आम आदमी की बदलती समस्याओ को ढ़ूंढ़ कर अपने समय को रेखांकित करते व्यंग्यकार बस लिखे  जा रहे हैं.

बड़े पते की बातें पढ़ने में आईं है इस पुस्तक में मसलन ” जिंदगी के सारे मंहगे सबक सस्ते लोगों से ही सीखे हैं विशेषकर तब जब रामखिलावन नशे में होकर भी नशे में नहीं था. “

“हम सब यथा स्थितिवादी हो गये हैं, हम मानने लगे हैं कि कुछ भी बदल नहीं सकता “

“अंगूर की बेटी का महत्व तो तब पता चला जब कोरोना काल में मयखाने बंद होने से देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने लगी ” रण विजय राव का रामखिलावन आनलाइन फ्राड से भी रूबरू होता है, वह सिर पर सपने लादे खाली हाथ गांव लौट पड़ता है. कोरोना काल के घटना क्रम पर बारीक नजर से संवेदनशील, बोधगम्य, सरल भाषाई विन्यास के साथ लेखन किया है, रण विजय जी ने. चैनलो की बिग ब्रेकिंग, एक्सक्लूजिव, सबसे पहले मेरे चैनल पर तीखा तंज किया गया है, रामखेलावन को  लोकतंत्र की मर्यादाओ का जो खयाल आता है, काश वह उलजलूल बहस में देश को उलझाते टी आर पी बढ़ाते चैनलो को होता तो बेहतर होता. प्रत्येक व्यंग्य महज कटाक्ष ही नही करता अंतिम पैरे में वह एक सकारात्मक स्वरूप में पूरा होता है. वे विकास के कथित एनकाउंटर पर लिखते हैं, विकास मरते नहीं. . . भाषा से खिलंदड़ी करते हुये वे कोरोना जनित शब्दों प्लाज्मा डोनेशन, कम्युनिटी स्प्रेड जैसी उपमाओ का अच्छा प्रयोग करते हैं. प्रश्नोत्तर शैली में सीधी बात रामखेलावन से किंचित नया कम प्रयुक्त अभिव्यक्ति शैली है. व्हाट्सअप के मायाजाल में आज समाज बुरी तरह उलझ गया है, असंपादित सूचनाओ, फेक न्यूज, अविश्वसनीयता चरम पर है, व्हाट्सअप से दुरुपयोग से समाज को बचाने का उपाय ढ़ूढ़ने की जरूरत हैं. वर्तमान हालात पर यह पैरा पढ़िये ” जनता को लोकतंत्र के खतरे का डर दिखाया जाता है, इससे जनता न डरे तो दंगा करा दिया जाता है, एक कौम को दूसरी कौम से डराया जाता है, सरकार विपक्ष के घोटालो से डराती है, डरे नहीं कि गए. ” समझते बहुत हैं पर रण विजय राव ने लिखा, अच्छी तरह संप्रेषित भी किया. आप पढ़िये मनन कीजीये.

हिन्दी के पाठको के लिये यह जानना ही किताब की प्रकाशकीय गुणवत्ता के प्रति आश्वस्ति देता है कि लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन, भावना प्रकाशन से छपी है.  पुस्तक पठनीय सामग्री के साथ-साथ  मुद्रण के स्तर पर भी स्तरीय, त्रुटि रहित है. मैं इसे खरीद कर पढ़ने के लिये अनुशंसित करता हूं.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 130 – कविता ☆ आलिंगन ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “आलिंगन”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 130 ☆

☆ कविता ☆ आलिंगन 🌨️🌿

बादल भी करते हैं बातें,

बरस- बरस कर काटी रातें।

चौपालों में बैठ के जोगी,

गीत मल्हार प्रेम से गाते।।

 

देख धरा की व्याकुल तपन,

लिए नैनों में अनेक सपन।

आलिंगन करने को आतुर,

बांहें फैलाए बादल आते।।

 

पंछी अब जोड़े हैं तिनका,

माला फेरते जोगी मनका।

महल अटारी खूब बनाया,

ये जीवन हैं चार दिनों का।।

 

धरा भी अब तो डोल रही,

मानवता अब नहीं कहीं।

असत्य का बोलबाला,

सत्य कहीं दिखता नहीं।।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे पांडुरंगा ☆ सौ. विद्या पराडकर

सौ. विद्या पराडकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ हे पांडुरंगा ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

मन माझे पांडुरंग

गात होते अंग अंग

 

भक्ती भाव मनी नाचला

हर्ष भाव मनी खेळला

पंढरीची चन्द्र भागा वाहते अथांग

 

ज्ञानबा, तुकाराम गजर जाहला

टाळी वाजविता बुक्का उडाला

वारकरी नाचण्यात झाले दंग

 

कासे पीतांबर कटीवरी हात

गळ्यामध्ये शोभे वैजयंती माळ

भक्तांसाठी तू सगुण रुपात दंग

 

तव चरणी  आस देवा

सतत करु दे तव धावा

माऊली मी तुझे बाळ राहो अभंग

 

© सौ. विद्या पराडकर

पुणे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares
image_print