हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆ संजय दृष्टि – मंगल पथ — कवि – स्व. प्रकाश दीक्षित ☆ समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

? संजय दृष्टि –  समीक्षा का शुक्रवार # 20 ?

? मंगल पथ — कवि – स्व. प्रकाश दीक्षित ?  समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ?

मंगल पथ- स्वयंप्रकाशित  कविताएँ

पुस्तक का नाम- मंगल पथ

विधा- कविता

कवि- स्व. प्रकाश दीक्षित

प्रकाशन- क्षितिज प्रकाशन, पुणे

? मंगल पथ- स्वयंप्रकाशित  कविताएँ  श्री संजय भारद्वाज ?

माना जाता है कि लेखन जब तक काग़ज़ पर नहीं उतरता, गर्भस्थ शिशु की तरह   लेखक की व्यक्तिगत अनुभूति होता है। काग़ज़ पर आने के बाद वह परिवार की परिधि में नाना प्रकार के लोगों से नानाविध संवाद साधता है। प्रकाशन की प्रक्रिया लेखन को   प्रकाश में लाती है और रचना समष्टिगत होकर विस्तार पाती है। इसे विडंबना या दैव प्रबलता ही मानना पड़ेगा कि अपनी रचनाओं से स्वयंप्रकाशित प्रकाश दीक्षित जी की रचनाएँ उनके देवलोक गमन के उपरांत ही पुस्तक के रूप में आ पाई हैं।

उपरोक्त कथन में कहीं निराशा का भाव अंतर्निहित नहीं है। अनेक सुप्रसिद्ध रचनाकार जिन्हें सदा पढ़ा जाता रहा है, अपने जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो सके, परंतु शरीर चले जाने के बाद भी उनके सृजन ने उन्हें सृष्टि पर बनाए रखा। सृष्टि पर मिले शरीर का जाना अर्थात आत्मा का ब्रह्म में विलीन होना। हमारी सनातन संस्कृति में ब्रह्म का एक रूप शब्द भी है। अतः सारस्वत दिवंगत शब्द का चोला ओढ़कर सदैव हमारे सम्मुख रहते हैं। एतदर्थ प्रस्तुत संग्रह पढ़ते समय अनेक बार ये अनुभूति होती है कि  साक्षात कवि द्वारा इसका पाठ किया जा रहा हो। काया मौन हुई तो शब्द मुखर हो उठे। यह सुखद है कि पार्थिव रूप से अनुपस्थित होते हुए भी दीक्षित जी इस संग्रह के हर पृष्ठ पर सूक्ष्म रूप से उपस्थित हैं।

इस संग्रह को  ॐ छंदावली, वचनामृत एवं गुरु-गोविंद तथा वेदों पर आधारित रचनाओं के तीन भागों में बाँटा गया है। सृष्टि में सर्वत्र ॐ का नाद है। जीवन की सारी गाथा ॐ के तीन अक्षरों- ‘अ’ से आविर्भाव, ‘उ’ से ऊर्जा तथा ‘म’ से मौन में समाहित है। यही कारण है कि ‘अ’ को ब्रह्मा, ‘उ’ को विष्णु तथा ‘म’ को महेश का द्योतक माना गया है। सारांश में ॐ ईश्वर का पर्यायवाची है। इस शब्दब्रह्म को मान्यता प्रदान करते हुए छांग्योपनिषद कहता है, ‘ॐ इत्येत अक्षरः।’ अर्थात्‌ ॐ अविनाशी, अव्यय एवं क्षरण रहित है। ॐ की अक्षरा महिमा का प्रगल्भ गान कवि ने ॐ छंदावली के अंतर्गत किया है। पूरे खण्ड में कवि का इस विषय में गहन अध्ययन स्पष्ट प्रतिपादित होता है। कुछ पंक्तियॉं दृष्टव्य हैं-

अकार से विराट विश्व अग्नि आदि अर्थ होत,

उकार में हिरण्यगर्भ वायु तेज आ रहे।।

मकार से ईश्वर, आदित्य और प्राज्ञ आदि,

नाम सब ब्रह्म के हैं, ओऽम में समा रहे।

संस्कृत साहित्य, ज्ञान की अविरल धारा है। इसे सामूहिक दृष्टिहीनता ही कहेंगे कि निहित स्वार्थों और कथित आधुनिकता के हवाई गुणगान के चलते हमने संस्कृत साहित्य की घोर उपेक्षा की। उपेक्षा के इस स्वप्रेरित कुठाराघात ने आधुनिक पीढ़ी को अनेक मामलों में दिशाहीनता की स्थिति में ला छोड़ा है। ‘वचनामृत’ इस दिशाहीनता को सार्थक दिशा दिखाने का प्रयास है। इस खण्ड में संस्कृत के विभिन्न मंत्रों का पद्यानुवाद है। विशेषता यह है कि छंद रचते समय कवि ने व्याकरण और सर्जना का समन्वय भली-भाँति साधने का यत्न किया है। श्लोकों का चुनाव मनुष्य जीवन को समाजोपयोगी बनाने को दृष्टिगत रख कर किया गया है। विद्वता और नम्रता का अंतर्संबंध देखिए-

विद्या और मेघ संवर्द्धनकारी हों जो कर्म।

हे विद्वानो! करो क्रिया वह, यह जीवन का मर्म।।

जो भी चाहें शिक्षा-विद्या करो प्रीतियुत दान।

विद्या ग्रहण करो तुम उनसे जो कि अधिक विद्वान।।

तीसरा खण्ड गुरु-गोविंद व वेदों पर केंद्रित रखा गया है। वेद हमारे आद्यगुरु हैं। हमारी संस्कृति ने गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान दिया है। “गुरु गोबिंद दोउ खड़े’ हम सबको कंठस्थ है। पूरे खण्ड में ईश्वर, गुरु व वेदों के प्रति मानवंदना अक्षर-अक्षर में प्रतिध्वनित होती है। इस मानवंदना को श्रद्धा के साथ ज्ञान की पृष्ठभूमि मिली है। यथा-

वेदों में वारिधि लहराता, जीवन की समरसता का,

वेदों का हर मंत्र, गा रहा, गीत मनुज की समता का,

बल वैभव लख विपुल किसी का द्वेष दाह से नहीं जलें।

जीवन पथ पर नित्य निरंतर वेदों के अनुसार चलें।।

उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत संग्रह कवि के देहावसान के बाद उनके बेटी-जमाता के अथक प्रयास से प्रकाशित हुआ है। बेटियों को कम आँकनेवाले समाज के एक अंश की मानसिकता में परिवर्तन लाने के लिए यह एक उदाहरण है। 

आशा की जानी चाहिए कि “मंगलपथ’ की मांगलिक रचनाएँ पाठकों के हर वर्ग हेतु कल्याणकारी सिद्ध होंगी। 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #28 – गीत – नैनौं में प्रतिबिम्ब पिया का… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतनैनौं में प्रतिबिम्ब पिया का

? रचना संसार # 2 – गीत – नैनौं में प्रतिबिम्ब पिया का…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

नैनौं में प्रतिबिम्ब पिया का,

छवि प्यारी मन भाती है।

उमड़ा पारावार प्रेम का ,

याद तुम्हारी आती है।।

 **

सात जन्म का बंधन अपना,

जीवन भर की डोरी है।

प्रेम पिपासा पल पल बढ़ती,

तकती राह चकोरी है।।

कोयल कू कू प्यास जगाती,

हिय में आग लगाती है।

 *

नैनों में प्रतिबिम्ब पिया का,

छवि प्यारी मन भाती है।।

 **

बौराया मन इत उत डोले,

शाम सुहानी इतराती।

प्रेम बिना जीवन सूना है,

हुआ अँधेरा घबराती।।

कलिकाओं को मधुकर चूमे,

बैरन नींद सताती है।

 *

नैनों में प्रतिबिम्ब पिया का,

छवि प्यारी मन भाती है।।

 **

रह रह कर के अधर काँपते,

अंग अंग मचले मेरा।

कंचन सी इस काया में तो,

कामदेव का है डेरा ।।

क्रंदन सुन लो इस विरहिन का ,

गीत मिलन के गाती है।

नैनों में प्रतिबिम्ब पिया का,

छवि प्यारी मन भाती है।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #255 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 255 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

रंग-बिरंगे  फूल   हैं,  मन  में  हर्ष   अपार।

महका-महका दृश्य यों, ठण्डी चले बयार।।

*

फूल पीठ पर हैं लदे, दो चक्कों पर भार।

मन  में  ऐसी कामना, बेचूँ  फूल हज़ार।।

*

मन  के  मधुवन  में  पुहुप, सबके  मन गुलजार।

निशिदिन रहे पुकारता, फिर-फिर सबके द्वार।।

*

फूलों   से   डोली   सजे, महके    वन्दनवार।

फूलों के ढिग लीजिए, सौरभ  का  उपहार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #237 ☆ मिट्टी वाले दिये जलाओ… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  कविता मिट्टी वाले दिये जलाओ आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 237 ☆

☆ मिट्टी वाले दिये जलाओ☆ श्री संतोष नेमा ☆

मिट्टी   वाले   दिये  जलाओ

हर गरीब का तमस मिटाओ

*

बैठ  कुम्हारिन ताक  रही  है

ग्राहक अपने  आंक  रही  है

आओ खरीद कर दिये उनके

उनका  भी  उत्साह  बढ़ाओ

मिट्टी   वाले   दिये  जलाओ

*

दिये में  भी  अब  लगा सेंसर

पानी  से जो  जलता  बेहतर

त्यागें अब चाइनीज दियों को

देशी  को  ही घर  पर  लाओ

मिट्टी    वाले   दिये  जलाओ

*

गली-गली   हर  चौराहों  पर

बिकते  दिये  हर   राहों   पर

इनके  घर   भी  हो  दीवाली

इनका  भी सब हाथ बटाओ

मिट्टी    वाले   दिये  जलाओ

*

हर   घर   में    संतोष   रहेगा

दिल  में  सबके   जोश  रहेगा

जब इनका दुख अपना समझें

तब मिलकर त्यौहार  मनाओ

मिट्टी    वाले   दिये  जलाओ

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 236 ☆ शब्द प्रवास… ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 236 – विजय साहित्य ?

☆ शब्द प्रवास ☆

अक्षरांचे एक बीज

कोणी काव्यात सांडले

जीवनाच्या पारंबीला

उभे आयुष्य टांगले…!

*

माय झाली त्याची कथा

बाप झाला कादंबरी.

अनुभव पाठीराखा

सुख दुःखाच्या संगरी…!

*

अक्षरांची झाली भाषा

भाषा साधते संवाद.

लेख, कविता, ललित

प्रतिभेची लाभे दाद…!

*

दिली शब्दांनीच कीर्ती

दिले शब्दांनीच धन

शब्दानांच जाणवले

लेखकाचे अंतर्मन…!

*

मिळालेले पुरस्कार

अंतरीचे शब्दमित्र

जीवलग दोस्तापरी

व्यासंगाचे शब्दचित्र…!

*

साहित्यिक प्रवासात

अर्धचंद्र गुणदोषा .

स्वभावाचा समतोल

असुयेच्या कंठशोषा…!

*

नाही शब्दांची कविता

नाही कविता अक्षर .

साधकाने वाचकाला

देणे द्यायचे नश्वर…!

*

साहित्याच्या दरबारी

कुणी नाही सान मोठा

प्रसिद्धीच्या लालसेत

होऊ नये शब्द खोटा…!

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ श्रीमद्‌भगवद्‌गीता — अध्याय १६ — दैवासुरसम्पद्विभागयोगः— (श्लोक १ ते १0) – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

☆ श्रीमद्‌भगवद्‌गीता — अध्याय १६ — दैवासुरसम्पद्विभागयोगः— (श्लोक १ ते १0) – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

संस्कृत श्लोक… 

अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः । 

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌ ॥ १ ॥

*

जया ठायी नाही भय अंतर्यामी जो निर्मलीन

योगी निरंतर दृढ आर्जवे स्वाध्याय तपाचरण ॥१॥ 

*

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्‌ । 

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्‌ ॥ २ ॥

*

अहिंसा सत्य अक्रोध त्याग शांती अक्रूरता 

करुणा अलोलुपता गात्रविवेक लज्जा मृदुता ॥२॥

*

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता । 

भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत ॥ ३ ॥

*

क्षमा तेज धैर्य अद्रोह निराभिमान नीतिमानता

लक्षणे ही जन्मजात दैवसंपन्नाची जाण भारता ॥३॥

*

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च । 

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्‌ ॥ ४ ॥

*

गर्व दंभ  अहंकार क्रोध कठोरता तथा अज्ञान

लक्षणे ही संपत्ती ही आसुरी पुरुषाची अर्जुन  ॥४॥

*

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता । 

मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥ ५ ॥

*

देवी संपदा मुक्तीदायक आसुरी होत बंधन

तव संपदा दैवी रे न करी शोक पंडुनंदन ॥५॥

*

द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिनदैव आसुर एव च । 

दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु ॥ ६ ॥

*

दैवी अथवा आसुरी केवळ मनुजाची प्रवृत्ती

कथिली दैवी तुजसी ऐक राक्षसी प्रकृती ॥६॥

*

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः । 

न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ॥ ७ ॥

*

राक्षसी मनुजा नाही विवेक प्रवृत्ती निवृत्ती

सदाचरण ना सत्य ठावे अंतर्बाह्य ना शुद्धी ॥७॥

*

असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्‌ । 

अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्‌ ॥ ८ ॥

*

जगदोत्पत्तीसी ईश्वर कारण  सर्वथैव असत्य

नर-मादी संभोग या जगताचे हेचि असे सत्य

जगरहाटी राहण्या अखंड काम हाचि कारण

दुजे सारे मिथ्या वदती आसुरी वृत्ती मनुजगण ॥८॥

*

एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः । 

प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः ॥ ९ ॥

*

मिथ्या ज्ञानाचा अवलंब मंद जयांची मती

अपकारी हे क्रूरकर्मी जगक्षय कारण होती ॥९॥

*

काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः । 

मोहाद्‌गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः ॥ १० ॥

*

गर्व दंभ अहंकार युक्त नर अतृप्त कामनाश्रित

भ्रष्ट आचरण अज्ञानी स्वीकारत मिथ्या सिद्धांत ॥१०॥

 

मराठी भावानुवाद  © डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

एम.डी., डी.जी.ओ.

मो ९८९०११७७५४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – प्रतिमेच्या पलिकडले ☆ “अरुणोदय…” ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆

श्री नंदकुमार पंडित वडेर

? प्रतिमेच्या पलिकडले ?

☆ “अरुणोदय…” ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर 

 झाडांच्या सावल्या नि कोवळ्या उन्हाचे कवडसे एकमेकांशी छापा पाणी खेळत राहीले तडागाच्या काठावर… वारा हलकासा मंद मंद पणे झाडांच्या फांद्या पानाआडून लपून बसून त्यांचा खेळ शांत चित्ताने बघत राहिला… मातृवात्सल्याने ओतप्रोत भरलेल्या तडागाचे जल त्यांचा हा खेळ चालेला पाहून आनंदाने उमटणारी हास्याची लकेर लहरी लहरीने त्याच्या गालावर पसरून राहिली… निशब्द झालेला परिसर महान तपस्वी प्रमाणे भास्कराच्या आगमानाला पूर्वदिशा लक्षून आपल्या ओंजळीने अर्ध्य देते झाले… पहाटेच्या दवबिंदूच्या शिडकाव्याच्या सिंचनाने सारी कोवळी हिरवीगार तृणपाती सचैल सुस्नात होऊन टवटवीत होऊन गेली… त्यांच्या अग्रा-अग्रावर हट्टी बालकाप्रमाणे पित्याच्या अंगाखांद्यावर बसावे तसे दवाचा नाजूक थेंब मला इथचं बसायच असा हट्ट धरून बसले.. भास्कराची सोनसळी खाली उतरून त्या तृणपातींच्या उबदार गुदगुल्या करून जाताना त्या अग्रावर च्या दव बिंदूला मोत्याप्रमाणे चमचमवीत राहिले… विजयाचा झळाळता शिरपेच मस्तकावर धारण केल्यासारखे ते प्रत्येक तृणपाती वरील दवबिंदू विजयाची मिरवणूक निघावी तसे जयजयकार करत आपापली मस्तके उंचावत राहिली… राज मार्गाच्या दुतर्फा वर सामान्य रयतेने दाटीवाटीने उभे राहून या विजयी सोहळ्याचं विहंगम दृश्य पाहत उभे राहावे तसे झाडाझुडपांची लता-वेलींची फांद्या पाने फुले नि फळे देखिल मानवंदना देण्यासाठी माना लवलवून झुकते राहिले… आणि आणि हळूहळू त्या मार्गावरून अरूणाने आपल्या शुभ्र धवल सप्त अश्वांचा रथ मार्गस्थ केला…. तेव्हा घरट्यातले किलबिल करणारे पक्षी त्या तांबड्या, पिवळ्या रंगीत आकाशाच्या मंडपात मुक्त विचरते झाले… आकाशीचा चंडोल निघाला अरुणाचा दूत होऊन अरुणाची आगमनाची वार्ता घेऊन… चरचरात चैतन्य फुलले… नि वसुंधरेचे कपोल रक्तिमेसारखे लालीने मोहरले…

©  नंदकुमार पंडित वडेर

विश्रामबाग, सांगली

मोबाईल-99209 78470 ईमेल –[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 219 ☆ जागृति विचारों से… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना जागृति विचारों से। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 219 ☆ जागृति विचारों से

आपसी मेलमिलाप ही हर त्योहारों का मुख्य उद्देश्य होता है । सब कुछ भूलकर नए सिरे से जीवन जीने की कोशिश करना है तो पंच दिवस के शुभ अवसर पर देरी न करें परन्तु इतना अवश्य है कि जब तक मन में क्षमा का भाव न हो तब तक आप किसी के साथ भले ही स्नेह पूर्ण व्यवहार करें पर वो समय मिलते ही फिर गलती करेगा क्योंकि उसे पता है दीपावली पर माफी मिली अब जी भर गलती करो होली पर फिर अभयदान मिलेगा ।

एक तरफा व्यवहार ज्यादा दिनों तक नहीं चलता है । फिर भी कोशिश करते रहें, परिणाम शुभ होंगे । हमारे त्योहारों की यही विशेषता है कि ये श्रद्धा,विश्वास,आस्था व सोलह संस्कारों को जागृत करते हैं …।

नेक कर्म नेक राह, एकता की होय चाह
खुशियों की डोर बना, मेलजोल कीजिए।

जन -जन मिलकर, साथ- साथ चलकर
जागरण समाज में, प्रण यही लीजिए ।।

मोतियों का बना हार, जिसमें हो सोना तार
गले में सोहेगा तभी, खूब दान दीजिए ।

सबको ही साथ लिए, पास जो भी रहा दिए
जीवन जरूरी सदा, शुद्ध जल पीजिए ।।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # 27 – सपनों की बातें ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ ☆

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

(डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार, बाल साहित्य लेखक, और कवि हैं। उन्होंने तेलंगाना सरकार के लिए प्राथमिक स्कूल, कॉलेज, और विश्वविद्यालय स्तर पर कुल 55 पुस्तकों को लिखने, संपादन करने, और समन्वय करने में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनके ऑनलाइन संपादन में आचार्य रामचंद्र शुक्ला के कामों के ऑनलाइन संस्करणों का संपादन शामिल है। व्यंग्यकार डॉ. सुरेश कुमार मिश्र ने शिक्षक की मौत पर साहित्य आजतक चैनल पर आठ लाख से अधिक पढ़े, देखे और सुने गई प्रसिद्ध व्यंग्यकार के रूप में अपनी पहचान स्थापित की है। तेलंगाना हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार द्वारा श्रेष्ठ नवयुवा रचनाकार सम्मान, 2021 (तेलंगाना, भारत, के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के करकमलों से), व्यंग्य यात्रा रवींद्रनाथ त्यागी सोपान सम्मान (आदरणीय सूर्यबाला जी, प्रेम जनमेजय जी, प्रताप सहगल जी, कमल किशोर गोयनका जी के करकमलों से), साहित्य सृजन सम्मान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करकमलों से और अन्य कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठात्मक सम्मान प्राप्त हुए हैं। आप प्रत्येक गुरुवार डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – चुभते तीर में उनकी अप्रतिम व्यंग्य रचनाओं को आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय व्यंग्य रचना सपनों की बातें)  

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ चुभते तीर # 27 – सपनों की बातें ☆ डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ 

(तेलंगाना साहित्य अकादमी से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

हरिद्वार के एक छोटे से चाय की दुकान पर, रमेश, सुरेश और किशोर तीनों बैठे हुए थे। मगर किशोर थोड़ी दूर, एक कुर्सी पर अकेला बैठा था।

“सुना तुमने!” रमेश ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।

“क्या?” सुरेश ने उत्सुकता से पूछा।

“कल हमारे माननीय परिवहन मंत्री कह रहे थे कि हमारे देश में नई इलेक्ट्रिक गाड़ियों का प्रोजेक्ट शुरू हो रहा है। इस पर तो विपक्षियों की छाती पर सांप लोट रहा है!” रमेश ने आंखों में चमक लाते हुए कहा।

“अरे, गाड़ी से याद आया, तुम्हारी पुरानी मोटरसाइकिल कहाँ गई?” सुरेश ने सवाल दागा।

काफी दिन हो गए थे जब से रमेश मोटरसाइकिल पर नजर नहीं आया था। वह अक्सर उसी पर बैठकर जोर-जोर से गाने गाते हुए निकलता था।

“बेच दी!” रमेश ने धीमे स्वर में कहा।

“बेच दी! मगर क्यों?” सुरेश ने चौंकते हुए पूछा।

रमेश ने चुप्पी साध ली।

“क्यों भाई? बोलोगे या चुप रहोगे?” मैंने दुबारा पूछा।

“वो क्या है कि, भाई साहब, आवाज बहुत करती थी!” रमेश ने हल्की आवाज में कहा।

मैंने रमेश की आंखों में झांका।

“मोटरसाइकिल को मारिए गोली! अब तो सीधे इलेक्ट्रिक गाड़ी में चलेंगे भाई साहब!” रमेश अचानक से तड़का।

“हाँ, और इलेक्ट्रिक गाड़ी में तो बस चार्जिंग की बात करनी होगी, पेट्रोल भरवाने की तो कोई बात ही नहीं!” सुरेश ने जोर से हंसते हुए कहा।

“आप बुढ़ा गए हैं, आपको कुछ मालूम नहीं!” रमेश ने दांत पीसते हुए कहा।

फिर मैंने रमेश को देखते हुए कहा, “अरे, इधर वो ससुरी मोटरसाइकिल कुछ ज्यादा ही आवाज करने लगी थी भाई!”

इसी बीच किशोर ने अपने मोबाइल पर कुछ दिखाने की कोशिश की। उसने मोबाइल की आवाज पूरी तेज कर दी। मैंने देखा ‘गैंग ऑफ वासेपुर’ फिल्म का एक टुकड़ा चल रहा था, जिसमें एक विधायक अपने गुर्गे को गाली देते हुए कह रहा था, “अब तो सच बोल दे @#₹&”

यह देखकर मेरी हंसी छूट गई।

रमेश अचानक से उठा और किशोर की ओर लपका। किशोर ने मुंह से “वूम-वूम” की आवाज निकालते हुए दौड़ लगा दी।

“अरे, जाने दो!” मैंने हंसी को रोकते हुए कहा।

रमेश ने जोर से कहा, “अगर हाथ लग गया तो सीधे टेंटुवा ही दबाएंगे, बुढ़ऊ का…सत्य अन्वेषक बने हैं!”

यह सुनकर किशोर ने अपनी भागने की गति और मुंह से निकलती मोटरसाइकिल की आवाज दोनों तेज कर दीं।

इस बीच, रमेश की उत्सुकता बढ़ती गई। उसने अपने हाथ में चाय का कप लिया और चाय की गरमागरमी में हल्की-सी गुनगुनाहट की, “अगर इलेक्ट्रिक गाड़ी बन गई, तो मैं भी उसी पर बैठकर दिल्ली जाऊंगा। वहां जाकर एक बार मटर पनीर का मजा लेना तो बनता है!”

सुरेश ने मुस्कराते हुए कहा, “लेकिन भाई, इलेक्ट्रिक गाड़ी में बैठकर तुम्हें चार्जिंग तो करानी पड़ेगी, और वो भी ठीक जगह पर!”

“हां, और सबसे जरूरी बात, चार्जिंग करने से पहले हमेशा अपनी बैटरी चेक कर लेना!” रमेश ने मजाक करते हुए कहा।

तीनों दोस्त इसी तरह हंसते-मुस्कुराते रहे। मोटरसाइकिल और इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बातें करते हुए, उन्होंने अपनी पुरानी यादों को ताजा किया और फिर से चाय की चुस्की लेने लगे।

एक साधारण से चाय की दुकान पर, तीनों दोस्तों ने मोटरसाइकिल और पुराने दिनों की यादों में खोकर, एक नई कहानी बुन डाली। कहीं न कहीं, यह उनकी दोस्ती की मिठास को और भी गहरा कर गया।

आखिरकार, यह एक इलेक्ट्रिक गाड़ी की कहानी नहीं थी, बल्कि एक दोस्ती की यात्रा थी, जो हमेशा के लिए दिलों में बस गई।

© डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

संपर्क : चरवाणीः +91 73 8657 8657, ई-मेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 312 ☆ आलेख – “आपदा प्रबंधंन और सक्षम हो…” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 313 ☆

?  आलेख – आपदा प्रबंधंन और सक्षम हो…  ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

आपदा प्रबंधंन का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि आज अनेक संस्थायें इस विषय में एम.बी.ए. सहित अनेक पाठ्यक्रम चला रहे है। जापान या अन्य विकसित देशों में आबादी का घनत्व भारत की तुलना में बहुत कम है। अतः वहाॅं आपदा प्रबंधंन अपेक्षाकृत सरल है। हमारी आबादी ही हमारी सबसे बड़ी आपदा है, किंतु दूसरी ओर छोटे-छोटे बिखरे हुए गांवों की बढी संख्या से बना भारत हमें आपदा के समय किसी बडे नुकसान से बचाता भी है।

आम नागरिकों में आपदा के समय किये जाने वाले व्यवहार की शिक्षा बहुत आवश्यक है। संकट के समय संयत व धैर्यपूर्ण व्यवहार से संकट का हल सरलता से निकाला जा सकता है। नये समय में प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ मनुष्य निर्मित यांत्रिक आकस्मिकता से उत्पन्न दुर्घटनाओं की समस्यायें बडी होती जा रही है। जैसे भोपाल गैस त्रासदी हुई थी तथा हाल ही जापान में न्यूक्लियर रियेक्टर में विस्फोट की घटना हुई है। खदान दुर्घटनायें, विमान, रेल व सडक दुर्घटनायें आंतकवादी तथा युद्ध की आपदायें हमारी स्वंय की तेज जीवन शैली से उत्पन्न आपदायें है। प्राकृतिक आपदाओं में बाढ, चक्रवात, भूकंप, सुनामी, आग की दुर्घटनायें सारे देष में जब-तब होती रहती है। इनसे निपटने के लिये सामान्य प्रशासन, पुलिस, अग्निशमन व स्वास्थ्य सेवाओं को ही सरकारी तौर पर प्रयुक्त किया जाता है। जरूरत है कि आपदा प्रबंधंन हेतु अलग से एक विभाग का गठन किया जाये।

हवाई जहाज में बम की अफवाह ,फायर ब्रिगेड व एम्बुलेंस से झूठी खबरों के द्वारा मजाक करना, लोगो के असंवेदनशील व्यवहार का प्रतीक है। भेडिया आया भेडिया आया वाला मजाक कभी बहुत मंहगा भी पड सकता है। इंटरनेट, मोबाइल व रेडियो के माध्यम से आपदा प्रबंधंन में नये प्रयोग किये जा रहे है। हमें यही कामना करनी चाहिए कि आपदा प्रबंधंन इतना सक्षम हो जिससे दुर्घटनायें हो ही नहीं। जो लोग सोशल मीडिया की तेजी  का दुरुपयोग कर अफवाह फैलाने का कुकृत्य करने का दुस्साहस करते हैं उन्हें तुरंत कड़ी से कड़ी सजा की व्यवस्था ही उन्हें कुछ हद तक रोक सकती है।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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