हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 57 ☆ बाल कविता – गठरी सिर पर धरे सवेरा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं   “बाल कविता – गठरी सिर पर धरे सवेरा.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 57 ☆

☆ बाल कविता – गठरी सिर पर धरे सवेरा ☆ 

सूरज दादा की किरणों की

गठरी सिर पर धरे सवेरा।

धूप सुहानी तन को भाती

उसका स्वागत करे सवेरा।।

 

पंछी सारे बड़े मगन हैं

मीठे-मीठे गीत सुनाएँ।

कौवे काले पढ़ें ककहरा

काँव- काँव की धुन में गाएँ।।

 

ठंडी हवा शीत ऋतु मोहक

कुहरा छंटा धूप का सेहरा।।

 

मस्त कबूतर करें ठिठोली

मगन – मगन दाना चुग खाएँ।

तोते खाएँ सेव गुलाबी

नई – नई वे धुन में गाएँ।।

 

गुलदावदी है खिलकर झूमे

गेंदा का मनभावन डेरा।।

 

जागो प्यारे तुम भी जागो

जाड़े की ऋतु ठंडक लाई।

पालक, धनियाँ , गेंहूँ लहके

सँग मूँगफली गजक सुहाई।।

 

खाएँ – पीएँ रखें ध्यान हम

ईश्वर मन में भरें उजेरा।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 78 – श्रेय और प्रेय— ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज  श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना  श्रेय और प्रेय—-.)

☆  तन्मय साहित्य  #  78 ☆ श्रेय और प्रेय—- ☆ 

चलते-चलते भटके राह हम

यश-कीर्ति सम्मानों से  घिरे

बढ़ते ही जा रहे हैं, अंक

आभासी लुभाते प्रपंच।

 

श्रेय और प्रेय  के, दोनों  पथ  थे

लौकिक-अलौकिक दोनों रथ थे

सुविधाओं की चाहत

प्रेय  को  चुना  हमने

लौकिक पथ, मायावी मंच

आभासी लुभाते प्रपंच।

 

आकर्षण, तृष्णाओं  में  उलझे

अविवेकी मन, अब कैसे सुलझे

आत्ममुग्धता  में  हम

बन गए स्वघोषित ही

हुए निराला, दिनकर, पंत

आभासी लुभाते प्रपंच।

 

आँखों में मोतियाबिंद के जाले

ज्ञान  पर  अविद्या के, हैं  ताले

अंधियाति आँखों ने

समझौते  कर  लिए

मावस के, हो गए महन्त

आभासी लुभाते प्रपंच

 

हो गए प्रमादी, तन से, मन से

प्रदर्शन,अभिनय, झूठे मंचन से

तर्क औ’ वितर्कों के

स्वप्निले  पंखों  पर

उड़ने की चाह, दिग्दिगंत

आभासी लुभाते प्रपंच ।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -1 – नैनीताल ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है “कुमायूं -1 – नैनीताल ”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -1 – नैनीताल ☆

पहली मर्तबा, मैं कुमायूं अचानक ही, बिना किसी पूर्व योजना के चला गया था।हुआ यों कि  सितम्बर 2018 में चारधाम यात्रा  का विचार मन में उपजा और यात्रा की सारी तैयारियां हो गई थी, टिकिट खरीड लिए गए, क्लब महिन्द्रा-मसूरी में ठहरने हेतु आरक्षण करवा लिया गया था और यात्रा  की अन्य व्यवस्थाओं के लिए एजेंट से भी बातचीत पक्की हो गई थी कि अचानक उसने  फ़ोन पर बताया  कि चारधाम से चट्टाने खिसकने व भू स्खलन की खबरें आ रही है आप अपना टूर कैंसिल कर दें। लेकिन यात्रा का मन बन चुका था सो हम चल दिए। थोड़ा परिवर्तन हुआ और हमने अगले दस दिन तक मसूरी, करनताल, नौकुचियाताल, नैनीताल, कौसानी और हरिद्वार की यात्रा की।

नैनीताल की सुंदरता का केंद्र बिंदु यहॉ पर स्थित सुंदर नैनी झील है और झील के किनारे स्थित नैनादेवी का पौराणिक मंदिर। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती की बायीं आँख गिरी थी और  मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। कोरोना काल में मंदिर खाली था तो पंडितजी ने जजमान को सपरिवार देख, पूर्ण मनोयोग से पूजन अर्चन कराया। ऐसी ही पूजा हमने एक दिन पहले हिम सुता नंदा देवी, की अल्मोड़ा स्थित मंदिर में भी की और लगभग पन्द्रह मिनट तक पूजन और दर्शन का आनन्द लिया। कभी संयुक्त प्रांत (आज का उत्तर प्रदेश) की ग्रीष्म कालीन राजधानी रहा नैनीताल चारों ओर से सात पहाडियों से घिरा है और इस शहर के तीन हिस्से तालों के नाम पर हैं ऊपर की ओर मल्ली ताल, बीच में नैनीताल और आख़री छोर तल्ली ताल। अब मल्लीताल और तल्ली ताल, सपाट मैदान हैं और यहाँ बाज़ार सजता है और नैनीताल का स्वच्छ जल शहरवासियों की प्यास बुझाता है। शायद यही कारण है कि इसमें शहर का गंदा पानी नालों से बहकर नहीं आता। सुना था कि रात होते होते जब  पहाडों के ऊपर ढलानों पर जलते बल्बों तथा झील के किनारे लगे हुए अनेक बल्बों की रोशनी नैनीताल  के पानी पर पड़ती है तो माल रोड के किनारे घूमते हुए खरीददारी करने, चाट पकोड़ी खाने  और इस बड़ी झील को निहारने का मजा कुछ और ही होता  है। लेकिन हमें तो शाम ढले नौकुचियाताल, जहाँ हम ठहरे थे, वापस जाना था इसलिए हम इस आनंद को तब न ले सके और फिर जब नवम्बर 2020  के अखीर में हम पुन: कुमायूं की यात्रा पर गए तो इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक रात कडकडाती ठण्ड में नैनीताल में रुके और पहले मल्ली ताल का तिब्बती बाज़ार घूमा और फिर  देर शाम तक  माल रोड पर चहलकदमी करते हुए, खरीददारी और बीच बीच में  नैनी ताल की जगमगाहट से भरी सुन्दरता  को देखते रहे और फिर देर रात तक होटल से इस नयनाभिराम दृश्य को देखने का सुख रात्रिभोज के साथ लेते रहे।  हमने दोनों बार शाम ढले हल्की ठण्ड  के बीच चप्पू वाली नाव से नौकायान का मजा भी लिया, नौका चालक और घोड़े वाले मुसलमान हैं लेकिन बातें वे साफगोई से करते हैं और अपने ग्राहक का दिल जीतने का भरपूर प्रयास करते हैं।

नैनीताल की सबसे ऊँची और आकर्षक चोटी है नैना पीक। इसे चीना पीक भी कहते हैं और यहाँ से डोरथी सीट से शहर व हिमालय के दर्शन होते हैं, पहली बार जब हम वहाँ गए तो  धुंध व बादलों के कारण हमारे भाग्य में यह विहंगम दृश्य नहीं था। पर दूसरी बार हमें  अंग्रेज कर्नल की पत्नी  के नाम से प्रसिद्द डोरोथी सीट से आसपास की पहाड़िया और पूरे क्षेत्र का विहंगम दृश्य हमने देखा। देवदार और चीड के घने जंगल वाली  ऊँची चड़ाई का मजा हमने घुड़सवारी कर लिया। पहली बार भले हम हिमालय को न निहार सके हों पर जब दूसरी बार गए तो पहले हिमालय दर्शन व्यू प्वाइंट से और फिर डोरोथी सीट से नंदा देवी पर्वत माला के दृश्य को अपनी दोनों आँखों में समेटा। दूध जैसी बर्फ से ढका हिमालय मन को लुभा लेनेवाला दृश्य आँखों के सामने  आजीवन तैरता रहता रहेगा । समुद्र तल से 2270 मीटर ऊँचा यह बिंदु यात्रियों के बीच बेहद लोकप्रिय स्थान है। नैनीताल से मैंने 100 किलोमीटर दूर स्थित हिमालय पर्वत की नंदा देवी पर्वतमाला के दर्शन किए। त्रिशूल पर्वत से शुरू यह लंबी पर्वत श्रृंखला मनमोहक है और लगभग 300 किलोमीटर लम्बी है । त्रिशूल पर्वत के बायीं ओर गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदार नाथ आदि पवित्र तीर्थ स्थल हैं तो दाई ओर नंदा कोट- जिसे माँ पार्वती का तकिया भी कहा जाता है, नंदा देवी  तथा इसके बाद पंचचुली की खूबसूरत चोटियाँ है जो नेपाल की सीमा तक फ़ैली हुई हैं। नंदादेवी पर्वत शिखर की उंचाई 25689 फीट है और कंचनचंघा के बाद यह भारत की सबसे ऊँची चोटी है। मैंने कश्मीर की पहलगाम वादियों से लेकर हिमाचल, उत्तराखंड और कलिम्पोंग व दार्जलिंग से हिमालय को अनेक बार निहारा है। साल 2018 के सितंबर माह में तो मसूरी और फिर कौसानी से भी हिम दर्शन का अवसर मिला। भाग्यवश कौसानी से मैंने नंदा देवी हिम शिखर व कलिमपोंग से कंचनचंघा को सूर्योदय के समय रक्तिम सौंदर्य में नहाते हुए भी देखा है। पर दुधिया रंग के चांदी से चमकते  हिमशिखर के जो  दर्शन मैंने नवंबर 2020 की कड़कड़ाती ठंड नैनीताल से किए वैसे कहीं और से देखने न मिले। यह विहंगम दृश्य मन को लुभाने वाला था। मैं भावविभोर होकर देखता ही रह गया। और जब चोटियों के बारे में समझ में न आया तो मजबूरन टेलीस्कोप वाले का सहारा लिया तथा सारे शिखरों के बारे में पूंछा, बिना टेलीस्कोप की सेवाएं लिए वह कहां बताने वाला था। उसने भी अपनी रोजी-रोटी वसूली और हमने भी न केवल हिमदर्शन किए वरन उससे फोटो भी खिंचवाई। मैं इस घड़ी को सौभाग्य का क्षण इसलिए मानता हूं कि 23नवंबर से लगातार बिनसर, अल्मोड़ा में मैं हिमालय को निहार रहा था पर पर्वत राज तो 27नवंबर को ही दिखाई दिए, मेरे पुत्र को वधु मिलने की वर्षगांठ के ठीक एक दिन पहले। डोरथी सीट के अलावा धोडी निचाई पर एक और स्थल है जहाँ से खुर्पाताल और हरे भरे दीखते हैं इन  खेतों में उम्दा किस्म का आलू पैदा होता है।पहाड़ पर एक जीरो पॉइंट भी हैं जहाँ सर्दियों में बर्फ जम जाती है तब डेढ़ महीने तक नौजवान जोड़े इस स्थान तक आते हैं क्योंकि डोरथी सीट तक जाने का रास्ता बंद हो जाता है। नीचे जहा घोड़े खड़े होते हैं वहाँ सड़क के उस पार एक और मनमोहक स्थल है लवर्स प्वाइंट जहाँ से  नैनीताल शहर की सुन्दरता देखी जा सकती है। इन पहाड़ियों से नैनी झील के अद्भुत नज़ारे दीखते हैं।

नैनीताल की खोज की भी अद्भुत कहानी है। पहाड़ी वाशिंदे, नए अंग्रेज हुकुमरानों को, अपनी इस पवित्र झील, जिसे तीन पौराणिक ऋषियों, अत्रेय,पुलस्त्य व पुलह ने अपनी प्यास बुझाने के लिए जमीन में एक छेद कर निर्मित किया था, का पता बताने के इच्छुक नहीं थे। तब अंग्रेज अफसर ने, एक पहाड़ी के सर पर भारी पत्थर रखकर, उसे नैनादेवी के मंदिर तक ले जाने का दंड दिया। कई दिनों तक अंग्रेज अफसर व उसकी टीम के अन्य सदस्यों को वह व्यक्ति, सर पर भारी पत्थर का बोझ ढोते हुए इधर उधर भटकाता रहा। अंततः हारकर अंग्रेजों की टोली को नैनीझील की ओर ले गया और इस प्रकार नैनीताल का पता उन्हें चला। अंग्रेजों को यह स्थल इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया और उनके गवर्नर का निवास, आज भी उस वैभव की याद दिलाता है।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 29 ☆ वीराना ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता वीराना। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 29 ☆ वीराना

अजीब सा वीराना छा गया है आज,

माना परिवर्तन सृष्टि का नियम है मगर अब सब कुछ तो बदल गया,

कल तक जो आबाद थे आज वीरान हैं,

सैनिकों से सुसज्जित, तोप-घोड़ों की पदचाप से किले कभी  आबाद थे ||

महलों की भव्यता देखते ही बनती थी,

राजा रजवाड़ों का साम्राज्य, महलों सी आबाद थी सेठों की भव्य कोठियाँ,

खुशहाली और सादगी भरी थी लोगो में,

आबाद थी चौपाले, लोग  कहीं चौपड़ तो कहीं शतरंज खेलते दिखते थे ||

सब पुराने जमाने की बातें हो गयी,

किले महल कोठियाँ गांव और शहर की चौपाले अब सब वीरान हो गए,

सब तरफ वीराना ही वीराना है,

सूने किले-महल, कोठियाँ और बंगले अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा  रहे हैं ||

आज सब कुछ बदल गया,

मगर आज भी ये किले महल सब अपनी जगह मजबूती से खड़े हैं,

समय बड़ा बलवान है,

आज ये किले महल कोठियाँ सब अपनों के इन्तजार में शांत  खड़े हैं ||

मगर समय कुछ ऐसा बदल  गया,

ना राजा रहे ना उनका राज रहा, ना नौकर रहे ना उनके चाकर,

राजा रजवाड़ों का जमाना चला गया,

जो  महल और किले उनके हिस्से आये वे होटल में तब्दील हो   गए हैं ||

जिन महलों पर राजाओं को अभिमान था,

आज वे होटलो में तब्दील होकर आज आम आदमी के लिए उपलब्ध है,

जीवन कितना परिवर्तन शील है,

कल तक जो राजा थे वे खुद आज काम कर जीने को मजबूर हो गए हैं ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 81 – लेखनाने मला काय दिले …. ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा सोनवणे जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 81 ☆

☆ लेखनाने मला काय दिले …. ☆

(मैं निःशब्द हूँ और आपका आभारी भी हूँ ।  ई-अभिव्यक्ति मंच को मराठी साहित्य में एक स्थान दिलाने में  आपका साहित्यिक सहयोग अविस्मरणीय है।आज इस श्रृंखला में यह आपकी गौरवपूर्ण  81वीं रचना है। हम आपसे ऐसे ही साहित्यिक सहयोग की अपेक्षा करते हैं । आपकी लेखनी को सादर नमन ??)

आपण ब-यापैकी लिहितो हे मला शाळेत असतानाच समजले, आठवीत असताना मी वर्गाच्या हस्तलिखीतासाठी पहिल्यांदा एक हिंदी कविता आणि मराठी कथा लिहिली होती, नंतर अकरावीत असताना माझ्या हिंदी निबंधाचं बाईंनी खुप कौतुक केलं!

शाळेत असतानाच हिंदी कविता प्रकाशित झाल्या, रेडिओ लिसनर्स क्लबच्या रेडिओ पत्रिकांमधून! त्या कविता आवडल्याची झुमरी तलैय्या, राजबिराज (नेपाल) अशी कुठून कुठून पत्रं आली होती.

छापील प्रसिद्धी मला खुप लवकर मिळाली, कथा/कविता आवडल्याची पूर्वी पत्रे येत नंतर टेलिफोन – मोबाईल वर लोक आवर्जून कौतुक करतात. खुप छान वाटतं, युवा सकाळ, प्रभात,  चिंतन आदेश या साप्ताहिकातून सदरे लिहिली त्या लेखनाने खुप आनंद दिला, आकाशवाणी वरच्या श्रुतिका लेखनाने प्रसिद्धीआणि पैसा दोन्ही मिळालं, स्वराज्य मधल्या कवितेचं ऐंशी साली दहा रूपये मानधन मिळालं (ते आयुष्यातलं पहिलं मानधन) तेव्हा खुप आनंद झाला होता.

लेखनाने मला आयुष्यात बरेच मोठे समाधान दिले आहे, मान मिळाला, अल्प स्वल्प का होईना मानधन मिळाले, स्वतःची ओळख निर्माण करता आली. मुख्य म्हणजे  अनेक संस्थांनी लेखिका, कवयित्री, गजलकार म्हणून नोंद घेऊन पुरस्कारही दिले!

सध्या ई अभिव्यक्ती वरचे लेखनही खुप समाधान देत आहे, मला ही संधी दिल्याबद्दल हेमंतजींचे आभार!

खरोखर लेखणी ने आयुष्याचे सार्थक केले, मी ज्या सामाजिक गटातून आले आहे तिथे इथवर येणं खुप मुश्किल होतं, त्या काळात बाईचं अस्तित्व चार भिंतीत बंदिस्त होतं आणि मी ते स्विकारलं होतं, अपेक्षा नसताना,फार आटापिटा न करता हातून लेखन झाले ही नियतीची कृपा!

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 66 ☆ चाहत-ए-नैरंग ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है “चाहत-ए-नैरंग”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 66 ☆

☆ चाहत-ए-नैरंग

न कोई ख़ुशी, न कोई गुमाँ

थी लगती ज़िंदगी धुंआ-धुंआ

 

खेले जैसे कोई बाज़ी ताश की

यूँ चलती जीस्त जैसे हो जुआ

 

दूर घाटियों तक आवाज़ चीरती

थीं नज़र ढूँढ़ रही कोई रहनुमा

 

थक गयी घुटना टेके हारकर

थी हुई न कुबूल कोई दुआ

 

जब कहीं झांका भीतर रूह के

यूँ लगा चाहत-ए-नैरंग हुआ

 

यूँ मुस्कुराकर खिल दिए गुल

हो जैसे मैंने मौला को छुआ

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 88 ☆ तिष्यरक्षिता – डा संजीव कुमार ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़  सकते हैं ।

आज प्रस्तुत है  “तिष्यरक्षिता” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – खण्ड काव्य – तिष्यरक्षिता# 88 ☆ 
 पुस्तक चर्चा

पुस्तक – खण्ड काव्य – तिष्यरक्षिता

लेखक –  डा संजीव कुमार 

IASBN – 9789389856859

वर्ष – २०२०

प्रकाशक – इंडिया नेट बुक्स गौतम बुद्ध नगर, दिल्ली

पृष्ठ – १३२

मूल्य – २०० रु

☆ पुस्तक चर्चा ☆ खण्ड काव्य – तिष्यरक्षिता  –  डा संजीव कुमार ☆ समीक्षा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆

नव प्रकाशित खण्ड काव्य तिष्यरक्षिता को समझने के लिये हमें तिष्यरक्षिता की कथा की किंचित पृष्ठभूमि की जानकारी जरूरी है. इसके लिये हमें काल्पनिक रूप से अवचेतन में स्वयं को चक्रवर्ती सम्राट अशोक के समय में उतारना होगा. अर्थात  304 बी सी ई से  232 बी सी ई की कालावधि, आज से कोई 2300 वर्षो पहले. तब के देश, काल, परिवेश, सामाजिक परिस्थितियो की समझ तिष्यरक्षिता के व्यवहार की नैतिकता व कथा के ताने बाने की किंचित जानकारी  लेखन के उद्देश्य व काव्य के साहित्यिक आनंद हेतु आवश्यक है.

ऐतिहासिक पात्रो पर केंद्रित अनेक रचनायें हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं. तिष्यरक्षिता, भारतीय मौर्य राजवंश के महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक की पांचवी पत्नी थी. जो मूलतः सम्राट की ही चौथी पत्नी असन्ध मित्रा की परिचारिका थी. उसके सौंदर्य से प्रभावित होकर अशोक ने आयु में बड़ा अंतर होते हुये भी उससे विवाह किया था. पाली साहित्य में उल्लेख मिलता है कि तिष्यरक्षिता बौद्ध धर्म की समर्थक नहीं थी.  वह स्वभाव से अत्यंत कामातुर थी.

अशोक की तीसरी पत्नी पद्मावती का पुत्र  कुणाल था. जिसकी  आँखें बहुत सुंदर थीं. सम्राट अशोक ने अघोषित रूप से कुणाल को अपना उत्तराधिकारी मान लिया था. कुणाल तिष्यरक्षिता का समवयस्क था. उसकी आंखो पर मुग्ध होकर उसने उससे प्रणय प्रस्ताव किया. किंतु कुणाल ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया.  तिष्यरक्षिता अपने सौंदर्य के इस अपमान  को भुला न सकी.  जब एक बार अशोक बीमार पड़ा तब तिष्यरक्षिता ने उसकी  सेवा कर उससे मुंह मांगा वर प्राप्त करने का वचन  ले लिया. एक बार तक्षशिला में विद्रोह होने पर जब कुणाल उसे दबाने के लिए भेजा गया तब तिष्यरक्षियता ने अपने वरदान में सम्राट, अशोक की राजमुद्रा प्राप्तकर तक्षशिला के मंत्रियों को कुणाल की आँखें निकाल लेने तथा उसे मार डालने की मुद्रांकित आज्ञा लिख भेजी.  इस हेतु अनिच्छुक मंत्रियों ने जनप्रिय कुणाल की आँखें तो निकलवा ली परंतु उसके प्राण छोड़ दिए.  अशोक को जब इसका पता चला तो उसने तिष्यरक्षिता को दंडस्वरूप जीवित जला देने की आज्ञा दी.

त्रिया चरित्र की यही कथा खण्ड काव्य का रोचक कथानक है. जिसमें इतिहास, मनोविज्ञान, साहित्यिक कल्पना सभी कुछ समाहित करते हुये डा संजीव कुमार ने पठनीय, विचारणीय, मनन करने योग्य, प्रश्नचिन्ह खड़े करता खण्ड काव्य लिखा है. उन्होने अपनी वैचारिक उहापोह को अभिव्यक्त करने के लिये  अकविता को विधा के रूप में चुना है.तत्सम शब्दो का प्रवाहमान प्रयोग कर  १६ लम्बी भाव अकविताओ में मनोव्यथा की सारी कथा बड़ी कुशलता से कह डाली है.

कुछ पंक्तियां उधृत करता हूं

क्रोध भरी नारी

होती है कठिन,

और प्रतिशोध के लिये

वह ठान ले, तो

परिणाम हो सकते हैं

महाभयंकर.

वह हो प्रणय निवेदक तो

कुछ भी कर सकती है वह

क्रोध में प्रतिशोध में

या

यूं तो मनुष्य सोचता है

मैं शक्तिमान

मैं सुखशाली

मैं मेधामय

मैं बलशाली

पर सत्य ही है

जीवन में कोई कितना भी

सोचे मन में सब नियति का है

निश्चित विधान.

राम के समय में रावण की बहन सूर्पनखा, पौराणिक संदर्भो में अहिल्या की कथा, गुरू पत्नी पर मोहित चंद्रमा की कथा, कृष्ण के समय में महाभारत के अनेकानेक विवाहेतर संबंध, स्त्री पुरुष संबंधो की आज की मान्य सामाजिक नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह हैं. दूसरी ओर वर्तमान स्त्री स्वातंत्र्य के पाश्चात्य मापदण्डो में भी सामाजिक बंधनो को तोड़ डालने की उच्छृंखलता इस खण्ड काव्य की कथा वस्तु को प्रासंगिक बना देती है. पढ़िये और स्वयं निर्णय कीजीये की तिष्यरक्षिता कितनी सही थी कितनी गलत. उसकी शारीरिक भूख कितनी नैतिक थी कितनी अनैतिक. उसकी प्रतिशोध की भावना कुंठा थी या स्त्री मनोविज्ञान ? ऐसे सवालो से जूझने को छोड़ता कण्ड काव्य लिखने हेतु डा संजीव बधाई के सुपात्र हैं.

 

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 74 – लघुकथा –बेरोजगार …. ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत एकअतिसुन्दर सार्थक लघुकथा  “बेरोजगार….।  समाज में  सस्वचित्र प्रदर्शन या दिखावे की पराकाष्ठा हो गई है जिसे बेहद सुन्दर तरीके से श्रीमती सिद्धेश्वरी जी ने अपनी लघुकथा में वर्णित किया है। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी  की लेखनी को सदर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 74 ☆

? लघुकथा – बेरोजगार  …. ?

कड़कड़ाती ठंडक और नर्मदा नदी का किनारा। बड़े ही दान दाता दिखने लगते हैं आजकल।

कुछ थोड़ा बहुत सामान और जरूरत की वस्तु देने से फोटो लेकर और बड़े प्यार से बात कर उसकी गरिमा और बड़ा कर प्रदर्शन का चलन जोरों पर है।

जिससे कोई भी अछूता नहीं है। सदा की भांति एक नर्मदा भक्त जो हमेशा ठंड में कपड़ों का दान किया करता था। ऐसा उनका मानना था। पर दिखावा कभी नहीं किया करता, बस भोले की कृपा और माई नर्मदा की इच्छा कह कर आगे बढ़ता जाता था।

घाट पर ऊपर से नीचे सभी उसको पहचानते थे क्योंकि ठंड बहुत थी और वह उस दिन साड़ी और कुछ गरम स्वेटर लेकर गया हुआ था और कान टोपी मफलर बुजुर्गों के लिए बांट रहा था।

सुबह 7:00 बजे का समय था ठंड से सभी सिकुड़े, जो भी  फटे कपड़े रखे थे। कोई सोया कोई बैठा सभी के हाथ पांव ढके हुए थे।

महानुभाव बांटते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। सभी हाथ आगे बढ़ा कर ले रहे थे। अचानक दो हाथ आगे फटे कंबल से बाहर आए। महानुभाव ने पूछा… आप महात्मा है या साध्वी? आपको कौन सा कपड़ा दूं, तो अंदर से आवाज आई… मैं एक पढ़ा-लिखा ‘बेरोजगार’ हूँ। क्या? मेरे लिए कुछ कर सकते हैं? बांटने वालों को जोरदार झटका लगा वह बिना कुछ कहे आगे चल पड़े।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 80 ☆ माणसा तू महान आहेस ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 80 ☆ माणसा तू महान आहेस ☆

माणसा तू महान आहेस

तू भुंकू शकतोस कुत्र्यासारखा

तू कावळ्यांसारखी कावकावही करतोस

कधीकधी डोमकावळ्या सारखाही वागतोस

खरंच माणसा तू महान आहेस…

 

मोरासारखा पदरपिसारा फुलवून नाचू शकतोस

डूख धरून बसू शकतोस नागासारखा

चित्त्याच्या वेगाने धावतोय तुझा मेंदू

खरंच माणसा तू महान आहेस…

 

शाखाहारी प्राण्यांसारखा पालाही खातोस आणि

सिंहासारखं मांस भक्षणही करतोस

हिंस्त्र प्राणी शिकार करतात पोटासाठी

तू मात्र स्वतःच्या स्वार्थी अहंकारापोटी

चालतोस गोळ्या, असहाय्य प्राण्यांवर,

कधीकधी आपल्या आप्तांवर सुद्धा

खरंच माणसा तू महान आहेस…

 

खरंच माणसा तू माणूस आहेस का जनावर ?

हेच कळत नाही, अजून आम्हा प्राण्यांना

पण तरीही

खरंच माणसा तू महान आहेस…

कारण संशोधनाची किमया

देवानं फक्त तुलाच बहाल केली आहे

म्हणूनच तू महान आहेस

म्हणूनच तू महान आहेस…!

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

दिन घंटे या मिनट हों, पल-पल रहते पास ।

फिर से जीवित हो गया, पाकर यह एहसास।।

 

चाहे हों जितने सजग, चाहे रहें सचेत।

संकेतों के भी परे, होते कुछ संकेत ।।

 

शब्दों की असमर्थता, होते अर्थ महीन।

संवेदन की तरलता, होती सीमाहीन ।।

 

प्रीति लालिमा आपकी, करा चुकी है स्नान ।

लगे पताका प्रीति की, लाल रंग परिधान।।

 

कर्णफूल है कान में, ग्रीवा में गलहार ।

अपने अपने दोनों हाथ में, रचा लिया है प्यार ।।

 

केश राशि में हैं गुंथे, सुमन सपन सुकुमार।

अधर अर्गला खोल दूं, इतना दो अधिकार।।

 

क्या बतलाएं किस तरह, काटी  सारी रैन।

यादों का  था काफिला, पहरे पर थे नैन।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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