मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 79 ☆ आसवांशी वैर ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 79 ☆ आसवांशी वैर ☆

का हजारो आसवांशी वैर केले ?

हे कसे गर्भात त्यांचे खून झाले ?

 

आसवे ही वाढती तुमच्याच देही

हा खरातर आसवांचा दोष नाही

 

ह्या मिठाला जागणाऱ्या आसवांना

पाहिले मी गूढ काही सांगतांना

 

भावना ह्या आसवांना भेटल्यावर

भेटल्याची खूण दिसते पापण्यांवर

 

हर्ष होता आसवांच्या हालचाली

जाणुनी घेण्यास आली ती खुशाली

 

हुंदका दाटून येता ती प्रवाही

सोडली ना साथ त्यांनी ही कधीही

 

वार देहावर कुठे झाला तरीही

भार वाही फक्त होती आसवे ही

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

याद  कदाचित कहीं पर, आई होगी खूब ।

इसलिए तो मन यहां, उतर आया है डूब।।

 

बंधन में बांध तुझे, क्या मेरा अधिकार।

यही अनुग्रह है बहुत, जतलाते हो प्यार ।।

 

कोई बंदिश कब रखी, रक्खा पूजा भाव ।

पूजन भी बंधन लगे, फूलों से भी घाव।।

 

मन पर भारी बोझ है, वातावरण मलीन।

अवश विवश – सा हो रहा, तन जैसे तटहीन ।।

 

डूब रहा हूं बिंदु में, दहक रही है देह।

नाग नहीं  दिखते कहीं, फन काढ़े संदेह ।।

 

ओ मन मेरे देख रे, मत हिम्मत तू हार ।

बुला रहा है राजपथ, छोड़ गली गलहार।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 31 – कई चित्र बादल के …☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “कई चित्र बादल के … । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 30– ।। अभिनव गीत ।। 

☆ कई चित्र बादल के … ☆

सूरज की किरनों को

ऐसे मत टाँक री

फिसल रहा आँखों से

इन्द्र का पिनाक* री

 

खुद की परछाई जो

दुविधा में छोटी है

उसको इतना छोटा

ऐसे मत आँक री

 

ऐंठ रही धूप तनिक

खड़ी कमर हाथ धरे

देखती दुपहरी को

ऊँची कर नाक री

(रेखाचित्र  – श्री राघवेंद्र तिवारी ) 

कई चित्र बादल के

बनते- बिगड़ते हैं

लगे दबा दशानन

बाली की काँख री

 

छाया छत से छूटी

टंगी दिखी छींके पर

लगा छींट छप्पर की

जा गिरी छमाक री

 

घिर आई शाम धूप

फुनगी पर पहुँच गई

पीली उम्मीद बची

एक-दो छटाँक री

 

हौले-हौले नभ में

उतर रहा चन्द्रमा

लगता है लटक रही

मैदा की गाँकरी

* पिनाक= धनुष, शिव जी का धनुष, यहाँ आशय सिर्फ धनुष से है!

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

26-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 77 ☆ व्यंग्य – अलबेले एडमिन सरकार ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक सार्थक व्यंग्य  “अलबेले एडमिन सरकार“। ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 77

☆ व्यंग्य – अलबेले एडमिन सरकार ☆

एडमिन तो एडमिन है। एडमिन नहीं रहेंगे तो व्यंग्य विधा का बंटाधार हो जाएगा, इसलिए ग्रुप में रहना है तो एडमिन से खुचड़ नहीं करना लल्लू। एडमिन जो कहे मान लेना, क्योंकि एडमिन सोशल मीडिया का सर्वशक्तिमान राजा होता है उसके तरकस में तरह-तरह के विषेले तीर रहते हैं,वह जब एडमिन बनता है तो अचानक उसके चमचे पैदा हो जाते हैं।उसका मोबाइल बिजी हो जाता है, उसे हर बात में सर सर कहना जरूरी है, कोई भरोसा नहीं वो किस बात से नाराज हो जाए और आपको ग्रुप से निकाल दे, इसलिए एडमिन जो कहे उसे सच  मान लो भले हर सदस्य को लगे कि ये सरासर झूठ है।अहंकारी एडमिन की आदत होती है वो किसी की नहीं सुनता। अनुशासन बनाए रखने की अपील करते करते किसी को भी निकाल देता है और किसी को भी जोड़ लेता है,वो सौंदर्य प्रेमी होता है इसलिए सुंदरता का सम्मान करता है और उनके सब खून माफ कर देता है।

दुर्भाग्यवश एडमिन को उसके अपने घर में मजाक झेलना पड़ता है और उसकी बीबी उसका मोबाइल तोड़ने की धमकी देती रहती है। बीबी बात बात में उसको डांटती है कि कैसा झक्की आदमी हैं कि दिनों रात मोबाइल में ऊंगली घिसता रहता है, घर के कोई काम नहीं करता और तिरछी ऊंगली करके घी चुरा लेता है। बाहर वालों से तो मक्खन लगी चिकनी चुपड़ी बात करता है और घर वालों के प्रति चिड़चिड़ा रहता है। इन दिनों व्यंग्य के ग्रुप बनाने का फैशन चला, एक व्यक्ति यदि दस बारह जगह एडमिन नहीं है तो कचरा व्यंंग्यकार कहलाता है।

एक व्यंग्य का घूमने वाला समूह बना था जिसमें सब अपने आपको नामी-गिरामी व्यंंग्यकार समझते थे, एक नेता टाइप का मेम्बर किसी बात पर बहस करने लगा तो उस ग्रुप के मठाधीश ने अपने तुंदियल एडमिन को आर्डर दिया कि इस नेता टाइप को तुरंत उठा कर फेंक दो ग्रुप से।‌ तुंदियल एडमिन ने उसे अर्श से फर्श पर पटक दिया। घायल नेता टाइप के उस आदमी ने विरोधियों के साथ मिलकर एक नया ग्रुप बना लिया जिसमें पुराने ग्रुप के सब मेम्बर को जोड़ लिया और सात आठ नामी-गिरामी हस्तियों को एडमिन बना दिया। ग्रुप चल निकला। लोग जुड़ते गए… अच्छा विचार विमर्श होता। जीवन में अनुशासन और मर्यादा की खूब बातें होती, फिर नेता जी टाइप का वो मुख्य एडमिन अन्य दंद- फंद के कामों में बिजी हो गया तो उसने दो बहुरुपिए एडमिन बना लिए ।वे प्रवचन देने में होशियार निकले। बढ़िया चलने लगा, समूह में नये नये प्रयोग होने लगे, और ढेर सारे लोग जुड़ते गए । अनुशासन बनाए रखने की तालीम होती रहती,नये नये विषयों पर शानदार प्रवचनों से व्यंंग्यकारों को नयी दृष्टि मिलने लगी, विसंगतियों और विद्रूपताओं पर ध्यान जाने लगा।

इसी दौरान एक महत्वाकांक्षी व्यंंग्यकारा का ग्रुप में प्रवेश हुआ। उनकी आदत थी कि वो हर बड़े व्यंंग्यकार के मेसेन्जर में घुस कर खुसुर फुसुर करती, तो बड़े नामी गिरामी ब्रांडेड व्यंंग्यकार गिल्ल हो जाते। सबको खूब मज़ा आने लगा, मुख्य एडमिन का ध्यान भंग हो गया, मुख्य एडमिन अचानक संभावनाएं तलाशने लगे। हर समूह में ऐसा देखा गया है कि मुख्य एडमिन को जो लोग पटा कर रखते हैं उन्हें ग्रुप में मलाई खाने की सुविधा रहती है। पता नहीं क्या बात हुई कि ऐन मौके पर अनुशासन सामने खड़ा हो गया और अनुशासन के चक्कर में धोखे से एक बहुरुपिए एडमिन ने उन व्यंग्यकारा को हल्की सजा सुना दी और कुछ दिन के लिए समूह से निकाल दिया, मुख्य एडमिन ने जब ये बात सुनी तो वो आगबबूला हो गया, रात को ढाई बजे सब एडमिनों को ग्रुप के बाहर का रास्ता दिखा दिया। दोनों बहुरुपिए एडमिनों ने रातों-रात एक नया ग्रुप बनाया, भगदड़ मच गई, सारे यहां से वहां हो गये। जब अकेले मुख्य एडमिन बचे तो उन्होंने बचे सदस्यों को भी बाहर कर अपने समूह का विसर्जन कर दिया। नये बने ग्रुप में धीरे धीरे मनमानी होने लगी, एडमिनों का अंहकार फूलने लगा, तो फिर यहां से कुछ लोग भागकर दूसरे ग्रुप में चले गए और कुछ ने अपने नये ग्रुप बनाकर एडमिन का सुख भोगने लगे, ऐसा क्रम चल रहा है और चलता रहेगा जब तक वाट्स अप बाबा के दरबार में एडमिनों को अपना नया दरबार लगाने की छूट मिलेगी।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
(टीप- रचना में व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।)
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 29 ☆ मोम का गुड्डा ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण  कविता  “मोम का गुड्डा”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 29 ☆ 

☆ मोम का गुड्डा ☆

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

दिन में सूरज जैसा रूप क्या कहूँ,

रात की चाँदनी जैसी कोमलता क्या कहूँ,

सुन्दर सजीला रूप क्या कहूँ।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

वर्षों किया इंतज़ार क्या कहूँ,

हर दिन हर पल रो-रो कर काटे क्या कहूँ,

इतनी खुशियों की सौगात लेकर आया है क्या कहूँ।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

इतना प्यार मुझे दिया है क्या कहूँ,

मेरे मोम के गुड्डे में प्यार करने वाला दिल है,

मेरे मोम के गुड्डे में खेलने, कूदने वाला नटखट मन है।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

पल में हँसने, पल में रोने वाला मासूम मन है,

हर्ष उल्लास से भरता सुन्दर तन है,

वो मोम का गुड्डा कोई और नहीं मेरा प्यारा बेटा आरुष है।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ,

इस सौगात के लिए भगवान् का धन्यवाद क्या कहूँ,

न जाने कितने जन्मों से कितने रिश्तों में हमसाथ था वो आरुष है क्या कहूँ,

कभी वो मेरा बेटा, भाई, बहन के रिश्तों में बंधा था, सूरज की पहली किरण (आरुष) क्या कहूँ।

 

मेरे मोम के गुड्डे की बात क्या कहूँ,

उसकी फूलों जैसी मुस्कान क्या कहूँ।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #24 ☆ नयी सदी का सूरज ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एकअतिसुन्दर कविता “नयी सदी का सूरज”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 24 ☆ 

☆ नयी सदी का सूरज ☆ 

नयी सदी का सूरज निकला

दूर हुआ है अंधेरा

कली कली बन फूल खिल गई

महकें है उपवन सारा

पंछी कैसे चहक रहे हैं

भ्रमर रस पीकर बहक रहे हैं

यौवन के मद में डूबे

दो प्रेमी देखों

लहक रहे हैं

नयी उमंगे हैं

नयी तरंगें हैं

नयी सोच है

सपनें रंग बिरंगे हैं

आंखों में एक उम्मीद बंधी है

दिल में एक आशा जगी है

फूल ही फूल खिलेंगे अब तो

सपनों की झड़ी लगी है

घनघोर अंधेरे से निकले है

हिमखंड अभी नहीं पिघले है

दूषित हवायें बह रही है

भयभीत करती कह रही है

खतरा अभी टला नहीं है

मास्क के बिना भला नहीं है

दो फीट की दूरी है जरूरी

‘कोविड’ ने कौन है जिसको

छला नहीं है

मित्रों,

यह ऐसा नववर्ष हो

सबके चेहरे पर हर्ष हो

सच हो जाये सबके सपने

हम सबका उत्कर्ष हो

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 31 ☆ कांदा पोहे… ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 31 ☆ 

☆ कांदा पोहे… ☆

 

प्रथम मान मिळतो ज्यांना

कांदा पोहे म्हणतात त्यांना…

 

पाहुणे आले कांदे पोहे

भूक लागली कांदा पोहे…

 

सोयरीक जुळते नवीन जेव्हा

कांदा पोहे तेव्हा तेव्हा…

 

कांदा चिरावा मस्त

त्यात हिरवे वाटाणे रास्त…

 

हिरवी मिरची सवे कोथिंबीर

जिरेपूड आणि तेल धार…

 

मीठ आणि हळद मिळते

खाणाऱ्यांची झोप पळते…

 

असा होतो बेत मस्त

जसा मिळावा, दोस्तास दोस्त…

 

महाराष्ट्राचे हे स्वादिष्ट व्यंजन

मानून घ्या तुम्ही गोड करुनि मन…

 

© कवी म. मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 80 ☆ व्यंग्य – मरम्मत वाली सड़क ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक  बेहद सार्थक व्यंग्य  ‘मरम्मत वाली सड़क। सर, जब मैंने आपकी मरम्मत वाली सड़क की कल्पना की तो उसके पास ही तालाब भी नहीं मिला जिसका जिक्र है किन्तु, पता चला है उसमें मछली पालन भी हो रहा है और उससे सिंचाई भी ?इस सार्थक व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 80 ☆

☆ व्यंग्य – मरम्मत वाली सड़क

छोटा इंजीनियर और ठेकेदार सरपंच की पौर में दो खटियों पर धरे हैं। कागज पर गाँव तक एक सड़क बनी है, उसी की मरम्मत के सिलसिले में आये हैं। सबेरे से तीन चार घंटे भटकते रहे, लेकिन सड़क कहीं हो तो मिले। आजकल गाँवों में भी ढाबे खुल गये हैं जहाँ अंडा-मुर्गी से लेकर अंग्रेजी दारू तक सब मिल जाता है, सो सुस्वादु भोजन करके सरपंच की खटिया पर झपकी ले रहे हैं। गाँव की सेवा के लिए आये हैं तो और कहाँ जाएं? कहने की ज़रूरत नहीं कि ढाबे का बिल ठेकेदार साहब ने चुकाया।

सरपंच जी पधारे तो इंजीनियर साहब ने उबासी लेते हुए अपना दुखड़ा रोया—‘सबेरे से ढूँढ़ते ढूँढ़ते पाँव टूट गये। इन ससुरी सड़कों के साथ यही मुश्किल है। बन तो जाती हैं लेकिन मिलती नहीं। हमारे कागजों में साफ लिखा है कि सड़क सन चार में बनी थी। तीन साल पहले मरम्मत हुई थी, तब भी नहीं मिली थी। इंजीनियर सत्संगी साहब आये थे, ढूँढ़ ढूँढ़ कर परेशान हो गये। आखिरकार, बिना मिले ही मरम्मत करनी पड़ी।’

इंजीनियर साहब ठेकेदार साहब का परिचय कराते हैं, कहते हैं, ‘ये हमारे ठेकेदार साहब हैं। इन्हीं को मरम्मत का ठेका मिला है। ये हमारे लिए ठेकेदार नहीं, भगवान हैं, गरीबपरवर हैं, करुणानिधान हैं। कितने कर्मचारियों की बेटियों की शादी इन्होंने करायी, कितने कर्मचारियों को जेल जाने से बचाया। बड़े बड़े लोगों के ड्राइंगरूम में इनकी पैठ है। बड़े बड़े अफसरों के दफ्तर में बिना घंटी बजाये घुस जाते हैं। संकट में सब इन्हीं को याद करते हैं। डिपार्टमेंट में इनकी इज्जत बड़े साहब से ज्यादा है। बड़े साहब से क्या मिलने वाला है?

‘एक अफसर दत्ता साहब आये थे। अपने को बड़ा ईमानदार समझते थे। इनको धमकी दे दी कि ब्लैकलिस्ट कर देंगे। इनके पक्ष में पूरे डिपार्टमेंट ने हड़ताल कर दी। कहा कि दत्ता साहब भ्रष्ट हैं। उनका ट्रांसफर हो गया। फेयरवेल तक नहीं हुई। हमारे ठेकेदार साहब को कोई हिला नहीं सकता। ऐसा प्रताप है इनका। देश के विकास का तो हमें ठीक से पता नहीं, लेकिन कर्मचारियों का विकास ठेकेदारों की कृपा से ही हो रहा है।’

सरपंच जी ने श्रद्धाभाव से ठेकेदार साहब को देखा। ठेकेदार साहब ने गद्गद होकर हाथ जोड़े।

इंजीनियर साहब बोले, ‘बड़ी परेशानी होती है। यहाँ से साठ सत्तर किलोमीटर पर एक तालाब है। दो तीन साल पहले उसे गहरा करने और घाट बनाने का काम निकला था। हमारे एक साथी दो दिन तक उसे ढूँढ़ते रहे, लेकिन उसे नहीं मिलना था सो नहीं मिला। लाचार ऐसे ही काम पूरा करना पड़ा।’

सरपंच जी आश्चर्य से बोले, ‘बिना मिले ही काम हो गया? ‘

इंजीनियर साहब दुखी भाव से बोले, ‘क्या करें? एलाटमेंट हो गया तो क्या उसे ‘लैप्स’ हो जाने दें? कितनी मुश्किल से एलाटमेंट होता है। पूरे डिपार्टमेंट के पेट का सवाल है। नीचे से लेकर ऊपर तक सब एलाटमेंट का इंतजार करते हैं। तो अब सड़क न मिले तो क्या सब के पेट पर लात मार दें? ये हमारे ठेकेदार साहब कैसे पलेंगे, और ये नहीं पलेंगे तो हम कैसे पलेंगे? इसलिए मरम्मत तो होगी, सड़क को जब मिलना हो मिलती रहे।’

शाम को इंजीनियर साहब और ठेकेदार साहब गाँव का निरीक्षण करने निकले। देखा, सड़कें, तालाब और बिल्डिंग बनाने की बहुत गुंजाइश है। विकास बहुत कम हुआ है इसलिए बहुत से कामों को अंजाम दिया जा सकता है। सर्वे करके रिपोर्ट बना ली जाए, बाकी काम डिपार्टमेंट में हो जाएगा। ठेकेदार साहब सहमत हैं। दफ्तर में बैठे बैठे सब काम हो जाएगा। यहाँ पैसा खर्च करने की ज़रूरत नहीं है। लौट कर साहब लोगों से बात करनी पड़ेगी।

लौट कर इंजीनियर साहब सरपंच से बोले, ‘यहाँ तो काम की बहुत गुंजाइश है। एक बार काम हो जाए तो मरम्मत चलती रहेगी। सब पलते रहेंगे।’

फिर बोले, ‘पाँच सात मजदूरों को बुला लें। कागजों पर अँगूठा लगवा लेते हैं। सड़क की मरम्मत का काम पुख्ता करना पड़ेगा। लोकल लोगों के सहयोग के बिना काम नहीं चलेगा। लेकिन हम किसी के साथ अन्याय नहीं करेंगे। अँगूठा लगाने के बदले सभी को एक दिन की मजूरी दी जाएगी। किसी का हक छीना नहीं जाएगा। जैसे हमारा पेट, वैसेइ उनका।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 35 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 35 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 35) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 35☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हम तो खयाल

रखेँगे अपना…

तुम हमें खयालों

में बनाये रखना…!

 

I’ll surely take

care of myself…

You just keep me

in your thoughts…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सुकून की तलाश

तो हमेशा सब को है….

जिसे तलाश नहीं

वो ही सुकून से है…!

 

Everyone is in quest

of the eternal peace…

One who isn’t indulged in

search is already relaxed!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तेरी  धड़कनों  में

अगर  मैं  नहीं…

तो  यकीं  कर…

मै  कहीं  नहीं…!

 

If I am not there

in your heartbeats

Then  believe  me,

I don’t exist anywhere!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

दोस्तों के नाम का एक ख़त

जेब में  रख  कर  क्या चला

क़रीब से गुज़रने वाले पूछते हैं,

यार, तेरे इत्र  का  नाम  क्या है…!!

 

When I moved with a letter

with friends names in pocket

Passerby kept asking me,

Dear, what’s the name of the

perfume you’re wearing…!!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 36 ☆ छंद सप्तक ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘छंद सप्तक। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 36 ☆ 

☆ छंद सप्तक ☆ 

*

शुभगति

कुछ तो कहो

चुप मत रहो

करवट बदल-

दुःख मत सहो

*

छवि

बन मनु महान

कर नित्य दान

तू हो न हीन-

निज यश बखान

*

गंग

मत भूल जाना

वादा निभाना

सीकर बहाना

गंगा नहाना

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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