हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 54 ☆ बारिश ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “बारिश”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 54 ☆

☆  बारिश ☆

 

फिर वही खिलते हुए गुल,

फिर वही गीत गाती कोयल,

फिर वही बारिश,

फिर मेरा वो भीग जाने को मचल जाना

और फिर वही बूंदों में

किसी हमख़याल का अक्स…

 

बाहर बगीचे में निकली

तो बादल रुखसत ले ही रहे थे,

पर कुछ आखिरी बूँदें मेरे लब पर ठहर गयी

और मुझे मुहब्बत से भिगोने लगीं

और झाँकने लगा उससे वो अक्स…

 

मैंने मुस्कुराते हुए

लबों से उन बूंदों को हटा दिया,

कि मुहब्बत से लबरेज़ होने के लिए

नहीं थी ज़रूरत मुझे

या ही बूंदों की या ही बारिश की…

 

इंसान को बनाते वक़्त

ईश्वर मुहब्बत के पैग़ाम तो

यूँ ही उसके ज़हन में भर देता है,

पर उस राज़ से कुछ अनजान से

हम खोजते रहते हैं उसे यहाँ-वहाँ!

 

मेरा अब इस पैग़ाम से

यूँ रिश्ता बन गया था

कि जिगर में मेरे जब चाहूँ

बारिश हो जाया करती थी!

 

बगीचे की बारिश तो मात्र एक बहाना थी

खुश होने का!

असली बारिश तो गिरती ही रहनी चाहिए

जिगर के हर ज़रीन कोने में!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

 

मेरे मन की विफलता, तेरे मन का ताप ।

हैं लहरें एहसास की, कह जाती चुपचाप।।

 

मन को कसकर बांध लो, कड़ी परीक्षा द्वार ।

चाह रहा में हारना, तुम जीतो सरकार।।

 

नाम तुम्हारा कुछ नहीं, हम भी हैं बेनाम ।

अलग-अलग थे कब हुए, जाने केवल राम।।

 

आयु रूप की संपदा ,सब कुछ है बेमेल ।

एकाकी अर्पित हुआ, यह किस्मत का खेल।।

 

दिल के भीतर वायलिन, झंकृत है हर तार।

भावों का पूजार्चन, साधे    बंदनवार।।

 

बार-बार में कर रहा, तर्क और अनुमान।

सत्यापित कैसे करूं, जन्मों की पहचान।।

 

दो क्षण के सानिध्य ने, सौंप दिए मधुकोष।

तृषित आत्मा को मिला ,अद्वितीय परितोष।।

 

प्रेम तृषा की वासना, अद्भुत तिर्यक रेख।

चातक मन की चाहना, मौन मुग्ध आलेख।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ शेष कुशल # 14 ☆ व्यंग्य ☆ मासूम गुस्ताखियों से तामीर मोहब्बत का नायाब शाहकार ☆ श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक  व्यंग्य  मासूम गुस्ताखियों से तामीर मोहब्बत का नायाब शाहकार । इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 14 ☆

☆ व्यंग्य – मासूम गुस्ताखियों से तामीर मोहब्बत का नायाब शाहकार  ☆

दोस्तों, आज हम आपको बताते हैं कि कैसे एक आर्किटेक्ट एक बिल्डिंग का पूरा कैरेक्टर बदल सकता है. अब आप ताजमहल को ही लीजिये. कालिंदी किनारे, सुरम्य वातावरण में खड़ी की गई भव्य, खूबसूरत, नायाब इमारत को अपना रेजिडेंस बनाना कौन नहीं चाहेगा ? लेकिन शाहजहाँ ने ऐसा नहीं किया, उसने उसमें मकबरा बनाने का फैसला किया तो इसके पीछे एक महान आर्किटेक्ट की अहम् भूमिका रही है. इतिहास में जो अब तक दर्ज नहीं किया जा सका वो काल्पनिक किस्सा संक्षेप में कुछ इस तरह से है.

जैसा कि आपको पता ही है ताजमहल मुग़ल शासक शाहजहाँ ने क्रोनोलॉजी के हिसाब से अपनी बेगम क्रमांक दो मुमताज़-महल के मरने के बाद बनवाया था, मगर उसका शुरूआती इरादा इसे मकबरा बनाने का नहीं था. वो अपनी नेक्स्ट बेगम के साथ वहाँ एक थ्री बीएचके विथ लॉन एंड कवर्ड पार्किंग बनवाकर बाकी की जिंदगी सुकून से गुजारना चाहता था, मगर आर्किटेक्ट ने आलीशान इमारत तान दी. वो महज रसोईघर में संगेमरमर लगवाने के मूड में था, आर्किटेक्ट ने पूरी बिल्डिंग संगेमरमर की तामीर कर दी. आर्किटेक्चर की ये महान परम्परा आज भी जारी है – आप कॉम्प्लेक्स डिझाइन करवाईये आर्किटेक्ट होटल बना देगा, होटल कहेंगे तो अस्पताल तान देगा, और अस्पताल कहेंगे तो मॉल खड़ा कर देगा. कभी कभी तो किसी बिल्डिंग को देखकर आप हैरत में पड़ जाते हैं कि यार ऐसा बेहूदा स्ट्रक्चर खड़ा करने में कितनी बेवकूफियाँ लगीं होंगी. बहरहाल, पठ्ठे ने एक न्यारा सा बंगला बनाने के चक्कर में एक भव्य इमारत बना दी, तब भी वो इमारत रेजिडेंस के लायक नहीं बन सकी.

हुआ ये कि रेजिडेंस शिफ्ट करने से पहले एक रोज़ बादशाह अपनी बेगम क्रमांक तीन के साथ मुआईना करने गये कि आखिर कैसा बना है नया आशियाना. उन्होंने पाया कि आर्किटेक्ट वॉश एरिया निकालना तो भूल ही गया. फटकारे जाने पर उसने कहा – ‘जहाँपनाह, नये डिजाईन के घरों में वॉश एरिया का चलन खत्म हो गया है. मुल्क में जो फिरंगी आना शुरू हुवे हैं उनसे पूछ लीजिये. विलायत में बने उनके घरों में वॉश एरिया नहीं होता. घर में कहीं भी वॉश करने की फ्रीडम बड़ी चीज़ है. और फिर आप तो ठहरे शहँशाह, जहाँ मन करे वॉश करें आप.’ मन तो किया बादशाह का कि इस खूबसूरत बहानेबाज़ी पर इस साले को इन्हीं दीवारों में जिंदा चुनवा दें. मगर वो मन मसोस कर रह गया.

हर कालखंड में आर्किटेक्ट कभी सिर्फ आर्किटेक्ट नहीं रहे, वे वकील भी होते हैं, अपने किये धरे के पक्ष में कैसी भी दलील दे सकते हैं. वे डिप्लोमेट भी होते हैं, आप उनके जवाब में कोई भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं. वे तर्कशास्त्री भी होते हैं, वे दरवाजे को खिड़की, खिड़की को झरोखा, झरोखे को उजालदान, उजालदान को दरीचा निरुपित कर सकते हैं. एक सफल आर्किटेक्ट उन सारी प्रमेयों को हल कर सकता है जो बड़े बड़े गणितज्ञ अभी तक नहीं कर पाये. उनके कुतर्क मालिक-ए-मकाँ की जेनुइन जरूरतों पर भारी पड़ते हैं.

बेगम ने रसोईघर का मुआईना करते हुवे पूछा – “यहाँ चूल्हा रखेंगे तो पानी का नल कहाँ लगेगा ?” बादशाह ने इस पर आर्किटेक्ट की ओर घूर कर देखा.

“जान की अमान हो जहाँपनाह, पीछे कालिंदी कल-कल बह रही हैं. बेगम साहिबा चाहेंगी तो हम उसकी एक पूरी नहर आपकी रसोई में से होती हुई बाहर की तरफ निकाल देंगे. चौबीस घंटे नेचुरल वाटर. रियाया में आपकी कुदरत से बेपनाह मोहब्बत का डंका बजने लगेगा.” बादशाह ने जान की अमानत नहीं दी होती तो अब तक तो सर कलम करवा दिया होता. आगे बढ़े – “और ये इतने बड़े बड़े गुसलखाने ? आरामखाना इतना छोटा और अटैच्ड गुसलख़ाना इतना बड़ा ?”

“जहाँपनाह, नाचीज़ आपके गुसलख़ाने में गाने का शौक से वाकिफ़ है. आप जब तक चाहें, जितना चाहें, घूम घूम कर गा सकें इसीलिये गुसलख़ाने आरामखानों से दोगुना बड़े रखे गये हैं.”

“और इसमें कमोड लगाने को कहा गया था तुम्हें वो.”

“जहाँपनाह, इन्डियन स्टाईल में घुटनों की एक्सरसाईज हो जाती है इसीलिए खुड्डीवाली लगवा दी है.” गुस्से में दांत पीस लेता बादशाह मगर मसूड़े कमजोर हो चले थे सो नहीं पीस पाया.

“और ये पार्किंग की जगह इतनी कम छोड़ी है, हम अपनी शाही बग्घी खड़ी कहाँ करेंगे ?”

“वो तो कोचवान आपको छोड़कर अपने घर ले जायेगा. पार्किंग में स्पेस वेस्ट क्यों करना जहाँपनाह.”

अब तक आगबबूला हो चुका था बादशाह. यही आर्किटेक्ट था जो पीछे पीछे चल रहे वजीर के मकान के काम लगा चुका था. उसने मौका मुनासिब जानकर पूछा – “जहाँपनाह भूस लाया हूँ साथ में, भरवा दूं इसकी खाल में ?”

आर्किटेक्ट ने बादशाह के लिये कुछेक ऐशगाहें बेगम से छुपाकर बनाईं थीं. राज़ खुल जाने के डर से उसने उस समय तो मना कर दिया मगर कहते हैं बाद में उसके हाथ कटवा दिये. सोचा कम से कम उसके हाथों अब और किसी के मकान का डिझाईन खराब न हो.

इस बीच बेगम ने इसरार किया कि अब जैसा भी है उसी में शिफ्ट कर लेते हैं मगर इंटीरियर कराना पड़ेगा. बादशाह इंटीरियर का खर्च सोचकर ही डर गया. सोने से घड़ावन महँगी. इमारत से ज्यादा लागत इंटीरियर की. ताजमहल पूरा करने में एक बारगी तो पूरा खजाना खाली हो चला था. जो इंटीरियर कराता बादशाह तो उधार लेना पड़ता. अब उस समय आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक जैसी एजेंसियां तो थी नहीं कि सार्वभौम मुग़ल सल्तनत को आसान शर्तों पर लोन दे सके, कि लीजिये युवर मेजेस्टी हमने आपके लिये ईएमआई कम कर दी है और कोई प्रोसेसिंग शुल्क भी नहीं.

तब बादशाह ने एक अकलमंदी का काम किया. उसने फ़ौरन से पेश्तर रेजिडेंस शिफ्ट करने का फैसला रद्द किया. फिर ऊपर नीली छतरी की ओर देखकर मरहूम बेगम मुमताज़-महल को याद किया. बुदबुदाये – ‘बेगम ये इमारत हम आपके मकबरे के लिये मुकम्मल करते हैं. इस निकम्मे तामीरगार की वजह से हम इसमें रहने तो नहीं आ सकेंगे, अलबत्ता मरने के बाद आपके बगलगीर जरूर होंगे. हमारी मोहब्बत का यह बुलंद शाहकार क़ुबूल फरमायें.’

दोस्तों, इस तरह एक आर्किटेक्ट की कुछ मासूम गुस्ताखियों ने दुनिया को मोहब्बत का खूबसूरत स्मारक भेंट किया है. सो, द रियल ट्रिब्यूट गोज टू द आर्किटेक्ट.

 

© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 20 – ओ सुहागिन झील ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “ओ सुहागिन झील। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 20– ।। अभिनव गीत ।।

☆ ओ सुहागिन झील

लक्ष्य को संधान करते

देखता है नील

धनुष की डोरी चढ़ाते

काँपता है भील

 

कथन :: एक

बस अँगूठा ,तर्जनी की

पकड़ का यह संतुलन भर

आदमी की हिंस्र लोलुप

वृत्ति का उपयुक्त स्वर

 

या प्रतीक्षित परीक्षण का

मौन यह उपक्रम अनूठा

या कदाचित अनुभवों

की पुस्तिका अश्लील

 

कथन :: दो

पुण्य पापों की समीक्षा

के लिये उद्यत व्यवस्था

याक जंगल के नियम को

जाँचने कोई अवस्था

 

या प्रमाणों में कहीं

बचता बचाता झूठ कोई

दी गई जिसको यहाँ पर

फिर सुरक्षित ढील

 

कथन:: तीन

गहन हैं निश्चित यहाँ की

राजपोषित सब प्रथायें

फिर कहाँवन के प्रवर्तित

रूप पर कर लें सभायें

 

पैरव फैलाये थके हैं

सभी पाखी अकारण ही

जाँच लेतू भी स्वयं को

ओ! सुहागिन झील

याक=या कि

पैर व= पैर

© राघवेन्द्र तिवारी

27-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 66 ☆ आमने- सामने -1 ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है ।

आज से प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ  के अंतर्गत आमने -सामने शीर्षक से  आप सवाल सुप्रसिद्ध व्यंग्यकारों के और जवाब श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के  पढ़ सकेंगे। इस कड़ी में प्रस्तुत है  सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री प्रभाशंकर उपाध्याय जी के प्रश्नों के उत्तर । ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 66

☆ आमने-सामने  – 1 ☆ 

श्री प्रभाशंकर उपाध्याय, गंगानगर – आपने अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर किया। बैंक की अफसरी की। आपकी अभिरूचि व्यंग्य लेखन, काव्य और नाट्य में है। आपको निरंतर ‘ई-अभिव्यक्ति’ में पढता रहता हूँ ।

आपके संकलन- डांस इंडिया डांस के आवरण पृष्ठ पर एक बिजूका खेत में खड़ा हुआ चित्रित है। कोने में एक किसान अग्नि पर कुछ पका रहा है। इसे देखकर रंगमंच की प्रतीति होती है।

इसके बरबक्स, मेरी जिज्ञासा ‘चुटका’ के बारे में जानने की है, तनिक बताइए ?

जय प्रकाश पाण्डेय – 

पंडित प्रभाशंकर उपाध्याय जी आपने प्रश्न के माध्यम से पन्द्रह साल पहले का जूनूनी प्रसंग छेड़ दिया,प्रश्न के उत्तर की गहराई में जाने के लिए आपको चुटका परमाणु बिजली घर की लम्बी दास्तान पढ़ना पड़ेगी। जो इस प्रकार है…………….

पन्द्रह साल पहले मैं स्टेट बैंक की नारायणगंज (जिला – मण्डला) म. प्र. में शाखा प्रबंधक था। बैंक रिकवरी के सिलसिले में बियाबान जंगलों के बीच बसे चुटका गांव में जाना हुआ था। आजीवन कुंआरी कलकल बहती नर्मदा के किनारे बसे छोटे से गांव चुटका में फैली गरीबी, बेरोजगारी, निरक्षरता देखकर मन द्रवित हुआ । चुटका गांव की आंगन में रोटी सेंकती गरीब छोटी सी बालिका ने ऐसी प्रेरणा दी कि हमारे दिल दिमाग पर चुटका के लिए कुछ करने का भूत सवार हो गया। उस गरीब बेटी के एक वाक्य ने चुटका परमाणु बिजली घर बनाने के द्वार खोल दिए।

बैंक वसूली प्रयास ने इस करुण कहानी को जन्म दिया……..

आफिस से रोज पत्र मिल रहे थे ,……. रिकवरी हेतु भारी भरकम टार्गेट दिया गया था । कहते है – ” वसूली केम्प गाँव -गाँव में लगाएं, तहसीलदार के दस्तखत वाला वसूली नोटिस भेजें ….. कुर्की करवाएं ……और दिन -रात वसूली हेतु गाँव-गाँव के चक्कर लगाएं , … हर वीक वसूली के फिगर भेजें ,…. और ‘रिकवरी -प्रयास ‘ के नित -नए तरीके आजमाएँ ………. । बड़े साहब टूर में जब-जब आते है ….. तो कहते है -” तुम्हारे एरिया में २६ गाँव है , और रिकवरी फिगर २६ रूपये भी नहीं है , धमकी जैसे देते है ……. कुछ नहीं सुनते है , कहते है – की पूरे देश में सूखा है … पूरे देश में ओले पड़े है ….. पूरे देश में गरीबी है ……हर जगह बीमारी है पर हर तरफ से वसूली के अच्छे आंकड़े मिल रहे है और आप बहानेबाजी के आंकड़े पस्तुत कर रहे है, कह रहे है की आदिवासी इलाका है गरीबी खूब है ………….कुल मिलाकर आप लगता है कि प्रयास ही नहीं कर रहे है …….आखें तरेर कर न जाने क्या -क्या धमकी ……… ।

तो उसको समझ में यही आया की वसूली हेतु बहुत प्रेशर है और अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा …….. सो उसने चपरासी से वसूली से संबधित सभी रजिस्टर निकलवाये , ….. नोटिस बनवाये …कोटवारों और सरपंचों की बैठक बुलाकर बैंक की चिंता बताई । बैठक में शहर से मंगवाया हुआ रसीला-मीठा, कुरकुरे नमकीन, ‘फास्ट-फ़ूड’ आदि का भरपूर इंतजाम करवाया ताकि सरपंच एवम कोटवार खुश हो जाएँ … बैठक में उसने निवेदन किया की अपने इलाका का रिकवरी का फिगर बहुत ख़राब है कृपया मदद करवाएं, बैठक में दो पार्टी के सरपंच थे …आपसी -बहस ….थोड़ी खुचड़ और विरोध तो होना ही थ , सभी का कहना था की पूरे २६ गाँव जंगलों के पथरीले इलाके के आदिवासी गरीब गाँव है ,घर -घर में गरीबी पसरी है फसलों को ओलों की मर पडी है …मलेरिया बुखार ने गाँव-गाँव में डेरा डाल रखा है ,….. जान बचाने के चक्कर में सब पैसे डॉक्टर और दवाई की दुकान में जा रहा है ….ऐसे में किसान मजदूर कहाँ से पैसे लायें … चुनाव भी आस पास नहीं है कि चुनाव के बहाने इधर-उधर से पैसा मिले …….. सब ने खाया पिया और ”जय राम जी की ” कह के चल दिए और हम देखते ही रह गए ……. ।

दूसरे दिन उसने सोचा-सबने डट के खाया पिया है तो खाये पिए का कुछ तो असर होगा ,थोड़ी बहुत वसूली तो आयेगी …….. यदि हर गाँव से एक आदमी भी हर वीक आया तो महीने भर में करीब १०४ लोगों से वसूली तो आयेगी ऐसा सोचते हुए वह रोमांचित हो गया ….. उसने अपने आपको शाबासी दी ,और उत्साहित होकर उसने मोटर सायकिल निकाली और ”रिकवरी प्रयास ” हेतु वह चल पड़ा गाँव की ओर ………… जंगल के कंकड़ पत्थरों से टकराती ….. घाट-घाट कूदती फांदती … टेडी-मेढी पगडंडियों में भूलती – भटकती मोटर साईकिल किसी तरह पहुची एक गाँव तक ……… ।

सोचा कोई जाना पहचाना चेहरा दिखेगा तो रोब मारते हुए ”रिकवरी धमकी” दे मारूंगा, सो मोटर साईकिल रोक कर वह थोडा देर खड़ा रहा , फिर गली के ओर-छोर तक चक्कर लगाया …………. वसूली रजिस्टर निकलकर नाम पढ़े  ………… कुछ बुदबुदाया …….उसे साहब की याद आयी …..फिर गरीबी को उसने गालियाँ बकी………पलट कर फिर इधर-उधर देखा ……..कोई नहीं दिखा । गाँव की गलियों में अजीब तरह का सन्नाटा और डरावनी खामोशी फैली पडी थी , कोई दूर दूर तक नहीं दिख रहा था , ………… ।

कोई नहीं दिखा तो सामने वाले घर में खांसते – खखारते हुए वह घुस गया ,अन्दर जा कर उसने देखा ….दस-बारह साल की लडकी आँगन के चूल्हे में रोटी पका रही है , रोटी पकाते निरीह …… अनगढ़ हाथ और अधपकी रोटी पर नजर पड़ते ही उसने ” धमकी ” स्टाइल में लडकी को दम दी ……. ऐ लडकी ! तुमने रोटी तवे पर एक ही तरफ सेंकी है , कच्ची रह जायेगी ? ……………. लडकी के हाथ रुक गए ,…पलट कर देखा , सहमी सहमी सी बोल उठी ………… बाबूजी रोटी दोनों तरफ सेंकती तो जल्दी पक जायेगी और जल्दी पक जायेगी तो ……. जल्दी पच जायेगी ….फिर और आटा कहाँ से पाएंगे …..?

वह अपराध बोध से भर गया …… ऑंखें नम होती देख उसने लडकी के हाथ में आटा खरीदने के लिए १००/- का नोट पकडाया … और मोटर सायकिल चालू कर वापस बैंक की तरफ चल पड़ा ……………..

रास्ते में नर्मदा के किनारे अलग अलग साइज के गढ्ढे खुदे दिखे तो जिज्ञासा हुई कि नर्मदा के किनारे ये गढ्ढे क्यों  ? गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि सन् 1983 में यहां एक उड़न खटोले से चार-पांच लोग उतरे थे गढ्ढे खुदवाये और गढ्ढों के भीतर से पानी मिट्टी और थोड़े पत्थर ले गए थे और जाते-जाते कह गए थे कि यहां आगे चलकर बिजली घर बनेगा। बात आयी और गई और सन् 2006 तक कुछ नहीं हुआ हमने शाखा लौटकर इन्टरनेट पर बहुत खोज की चुटका परमाणु बिजली घर के बारे में पर सन् 2005 तक कुछ जानकारी नहीं मिली। चुटका के लिए कुछ करने का हमारे अंदर जुनून सवार हो गया था जिला कार्यालय से छुटपुट जानकारी के आधार पर हमने सम्पादक के नाम पत्र लिखे जो हिन्दुस्तान टाइम्स, एमपी क्रोनिकल, नवभारत आदि में छपे। इन्टरनेट पर पत्र डाला सबने देखा सबसे ज्यादा पढ़ा गया….. लोग चौकन्ने हुए।

हमने नारायणगंज में “चुटका जागृति मंच” का निर्माण किया और इस नाम से इंटरनेट पर ब्लॉग बनाकर चुटका में बिजली घर बनाए जाने की मांग उठाई। चालीस गांव के लोगों से ऊर्जा विभाग को पोस्ट कार्ड लिख लिख भिजवाए। तीन हजार स्टिकर छपवाकर बसों ट्रेनों और सभी जगह के सार्वजनिक स्थलों पर लगवाए। चुटका में परमाणु घर बनाने की मांग सबंधी बच्चों की प्रभात फेरी लगवायी, म. प्र. के मुख्य मंत्री के नाम पंजीकृत डाक से पत्र भेजे। पत्र पत्रिकाओं में लेख लिखे। इस प्रकार पांच साल ये विभिन्न प्रकार के अभियान चलाये गये।

जबलपुर विश्वविद्यालय के एक सेमिनार में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ काकोड़कर आये तो चुटका जागृति मंच की ओर से उन्हें ज्ञापन सौंपा और व्यक्तिगत चर्चा की उन्होंने आश्वासन दिया तब उम्मीदें बढ़ीं। डॉ काकोड़कर ने बताया कि वे भी मध्यप्रदेश के गांव के निवासी हैं और इस योजना का पता कर कोशिश करेंगे कि उनके रिटायर होने के पहले बिजलीघर बनाने की सरकार घोषणा कर दे और वही हुआ लगातार हमारे प्रयास रंग लाये और मध्य भारत के प्रथम परमाणु बिजली घर को चुटका में बनाए जाने की घोषणा हुई।

मन में गुबार बनके उठा जुनून हवा में कुलांचे भर गया। सच्चे मन से किए गए प्रयासों को निश्चित सफलता मिलती है इसका ज्ञान हुआ। बाद में भले राजनैतिक पार्टियों के जनप्रतिनिधियों ने अपने अपने तरीके से श्रेय लेने की पब्लिसिटी करवाई पर ये भी शतप्रतिशत सही है कि जब इस अभियान का श्रीगणेश किया गया था तो इस योजना की जानकारी जिले के किसी भी जनप्रतिनिधि को नहीं थी और जब हमने ये अभियान चलाया था तो ये लोग हंसी उड़ा रहे थे। पर चुटका के आंगन में कच्ची रोटी सेंकती वो सात-आठ साल की गरीब बेटी ने अपने एक वाक्य के उत्तर से ऐसी पीड़ा छोड़ दी थी कि जुनून बनकर चुटका में परमाणु बिजली घर बनने का रास्ता प्रशस्त हुआ। वह चुटका जहां बिजली के तार नहीं पहुंचे थे आवागमन के कोई साधन नहीं थे, जहां कोई प्राण छोड़ देता था तो कफन का टुकड़ा लेने तीस मील पैदल जाना पड़ता था। मंथर गति से चुटका में परमाणु बिजली घर बनाने का कार्य चल रहा है। प्रत्येक गरीब के घर से एक व्यक्ति को रोजगार देने कहा गया है जमीनों के उचित दाम गरीबों के देने के वादे हुए हैं,जमीन के कंपनसेशन देने की कार्यवाही हो गई है। चुटका से बनी बिजली से मध्य भारत के जगमगाने की उम्मीदें पूरी होने की तैयारियां चल रहीं हैं।

धन्यवाद उपाध्याय जी, इस बहाने आपने पुरानी यादों को हमसे संस्मरण रूप में लिखवा लिया। आपकी गहराई से पड़ताल और अपडेट जानकारियों के लिए हम आश्चर्यचकित हैं।आदरणीय उपाध्याय जी आपके पास सूक्ष्म दृष्टि और तिरछी नजर है,आप चीजों को सही नाम से बुलाते हैं एवं सही ढंग से पकड़ते हैं। आपने अपने विस्तृत फलक लिए प्रश्न में बहुत सी चीजें सही पकड़ी है, बैंक की नौकरी करते हुए हमने पच्चीसों साल सामाजिक सेवा कार्यों से जुड़े रहे। लम्बे समय तक एसबीआई आरसेटी के डायरेक्टर के रूप में कार्य करते हुए नक्सल प्रभावित पिछड़े आदिवासी जिले के सुदूर अंचलों के ग़रीबी रेखा से नीचे के करीब 3500-4000 युवक युवतियों का हार्ड स्किल डेवलपमेंट एवं साफ्ट स्किल डेवलपमेंट करके उन्हें रोजगार से लगाकर एक अच्छे नागरिक बनने में सहयोग किया।देश की पहली माइक्रो फाइनेंस ब्रांच के मेनेजर रहते हुए म.प्र.के अनेक जिलों की 90 हजार गरीब महिलाओं को स्वसहायता समूहों के मार्फत वित्त पोषित कर महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य किया, ऐसे अनेक उल्लेखनीय कार्य की लंबी लिस्ट है,पर आपने चूंकि अपने प्रश्न के मार्फत छेड़ दिया इसीलिए थोड़ा सा लिखना पड़ा।

अन्य भाई इसको पढ़कर आत्मप्रशंसा न मानें, ऐसा निवेदन है।

क्रमशः ……..  2

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ निधि की कलम से # 23 ☆ खुशियाँ ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  “खुशियाँ ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 23 ☆ 

☆ खुशियाँ 

 

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया.

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

हर दिन कुछ और रंगों से रंगाया,

हर शाम हसीन फूलों की इत्र में महकाया,

हर पल हँसा और हँसाया,

हर मौसम को रंगीन बनाया,

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

यादों ने जीवन को रंगीन बनाया,

ठोकरों ने उसे और भी मजबूत बनाया,

प्यार के आँगन ने जीवन के श्रृंगार को पूरा कराया,

नन्हे बालक ने आकर मातृत्व का बोध कराया,

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

यूँ ही ज़िंदगी गुजरी चली जा रही है,

हर खुशी को सब मुकाम समझ लेते हैं,

मुकाम मिलने पर एक और राह ढूंढ लेते हैं,

रास्ते कटते जाते है, मंजिले मिलती जाती हैं,

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

खुशियाँ पूरी होती हैं, एक और नई मिल जाती है,

खुशियों की चादर द्रौपदी के चीर सी लंबी होती जाती है,

धीरे-धीरे उम्र कटती जाती है,

खुशियों की चादर का छोर नहीं मिलता,

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

चलो इस जीवन इसी पल हम जी लें,

अपने आप को खुशियों की चादर से ढँक लें,

सपनों के सितारों में, और सुख की रौशनी में खो जाना है,

जीवन का खजाना मिट्टी से मिल मिट्टी में मिल जाना हैं

खुशियों की चादर को, यादों के धागों से बनाया,

सपनों के सितारों को, प्यार की रौशनी से सजाया।

 

©  डॉ निधि जैन,

पुणे

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #13 ☆ मोहरे ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “मोहरे”।  खेल चाहे जिंदगी का हो या शतरंज की बिसात, हम और हमारे आस पास मोहरे, चाल, शाह और मात विचारणीय है।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 13 ☆ 

☆ मोहरे ☆ 

मोहरों की बिसात

ही क्या है

चाहे सफेद हो या काले

खिलाड़ी जैसे चाल चलेगा

वैसे है वो दौड़ने वाले

हाथी, घोड़ा, ऊंट, प्यादा

या हो शातिर वजीर

सबकी चाल निराली है

हर चाल ऐसी मारक है

जैसे मात होने वाली है

मंझे हुए हैं सभी खिलाड़ी

मंझा हुआ है इनका खेल

एक दूसरे के चिर प्रतिद्वंद्वी

कैसे होगा इनका मेल

नई नई रणनीतियाॅ

चतुराई भरी चालें

नये नये उभरते खिलाड़ी

कोई मुगालता ना पालें

अपने अपने मोहरों से

लगे हुए हैं

देने शह और मात

रच रहे नित नए षड़यंत्र

विनाशकारी घात-प्रतिघात

अपने मोहरों पर

यह व्यर्थ का अभिमान है

शतरंज का खेल है जीवन

बेबस हर इंसान हैं

शतरंज का जो है निपुण खिलाड़ी

उसके मोहरों की

कोई समझ ना पाए चाल

वो पल भर में शह दे दे

वो पल भर में दे दे मात

 

© श्याम खापर्डे 

18/10/2020

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 20 ☆ मधुर बासरीचे स्वर… ☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 20 ☆ 

☆ मधुर बासरीचे स्वर … ☆

मधुर बासरीचे स्वर

गोकुळात घुमले

गाई वासरे गोपाल

हर्षभरीत झाले…

 

दूध काढता गोपिका

हात तो थांबला

डोईवर घागर पाणी

एकीचा तोल गेला…

 

वासरू गोंडस,

गाईस पिण्या विसरले

फक्त बासरीच्या स्वरात

स्वानंदी रममाण झाले…

 

अशी ही जादूगिरी

त्या मुरलीची झाली

कृष्ण वाजविता सहज

समग्र सृष्टी मोहरली…

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 69 ☆ व्यंग्य – शोकसभा में सियासतदान ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है एक  अतिसुन्दर व्यंग्य रचना  ‘शोकसभा में सियासतदान’।  डॉ परिहार जी ने आखिर यह  पढ़ ही लिया कि मन और  जुबान में ज्यादा दूरी नहीं होती। विश्वास न हो तो यह व्यंग्य पढ़ लीजिये। इस सार्थक व्यंग्य  के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 69 ☆

☆ व्यंग्य – शोकसभा में सियासतदान

बाबू भाई तेहत्तर साल की पकी उम्र तक इस असार संसार को रौंद और खौंद कर विदा हुए थे, उन्हीं का शान्ति-पाठ आयोजित था। बाबू भाई परिवार को खूब माल-मत्ता देकर गये थे। उनके पुण्य-प्रताप से परिवार के सभी सदस्य आगे और कमाई बटोरने की स्थिति में पहुँच गये थे, इसलिए सभी के मन में दिवंगत के प्रति अपार श्रद्धा और ओठों पर दुआएं थीं। सब यही चाहते थे कि बाबू भाई की पवित्र आत्मा को परमात्मा के चरणों में स्थान मिले और वे आगे उस तरह के फसादों में न पड़ें जैसे वे ज़िन्दगी भर करते रहे थे।

शान्ति-पाठ में बाबू भाई के नाते- रिश्तेदार,बंधु-बांधव इकट्ठे थे। जो इस दुनिया को अपना ‘परमानेंट हेडक्वार्टर’ समझे हुए थे वे भी आज मजबूरन जीवन की क्षणभंगुरता का उपदेश सुनने को उपस्थित थे। सभा में आचार्य जी के अलावा सभी वक्ताओं के भाषणों का लुब्बो- लुवाब यही था कि संसार माया है, शरीर नश्वर है, एक दिन सब नष्ट हो जाने वाला है, इसलिए संसार से मन हटा कर प्रभु में लौ लगाना ही समझदारी की बात है। सब ये बातें रोज रोज टीवी पर और शोकसभाओं में सुन सुन कर भूलते रहते थे, लेकिन आज इस तरह गंभीर होकर बैठे थे जैसे सभा से उठते ही सब छोड़-छाड़ कर हिमालय की किसी कन्दरा में जा बैठेंगे। कई वक्ताओं का हिन्दी- ज्ञान शोचनीय था। वे बार बार ‘आचार्य जी’ को ‘अचार जी’ कह कर संबोधित कर रहे थे।

सभा खत्म होने को थी कि अचानक कक्ष में राजनीति की गंध फैल गयी। सब ने सूँघ कर इधर उधर देखा। कुछ समझ में नहीं आया।  ‘अचार जी’ पिछले दरवाजे की तरफ देखकर कुछ अस्थिर हो रहे थे। सब ने उधर नज़रें घुमायीं। देखा, शहर के खुर्राट राजनीतिज्ञ पोपट भाई चेहरे पर भारी गंभीरता ओढ़े दरवाजे पर जूते उतार रहे थे। सब का मन बिगड़ गया। अब यहाँ भी पाखंड फैलेगा। लेकिन जो पोपट भाई के कृपाकांक्षी थे वे प्रसन्न और सक्रिय हुए और उन्हें सादर अगली पंक्ति में ले आये।

पोपट भाई हिसाब से शान्ति-पाठ की समाप्ति के वक्त आये थे ताकि उनका वक्तव्य भी हो जाए और फालतू बैठना भी न पड़े।

जल्दी ही उन्हें माइक पर बुलाया गया। बोलने को खड़े हुए तो आधे मिनट आँखें बन्द किए मौन खड़े रहे, मुँह से बोल नहीं फूटा। फिर ‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः’ से भाषण शुरू किया।

बोले—‘भाइयो और बहनो, लोगों को यह भरम है कि राजनीतिज्ञ जहाँ जाता है वहाँ राजनीति ही बोलता है, लेकिन मैं आपका यह भरम दूर करना चाहता हूँ। मैं यहाँ राजनीति करने नहीं, स्वर्गीय बाबू भाई को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देने आया हूँ। बाबू भाई एक महान आत्मा  थे, उनके संसार छोड़ने से हमारे नगर की अपूरणीय क्षति हुई है। उनके ऊपर बहुत आरोप लगते थे, कई केस भी उन पर चले, लेकिन वे सभी राजनीति से प्रेरित थे। बाबू भाई एक महान समाजसेवी और देशभक्त थे।

‘लोगों का यह सोचना बिलकुल गलत है कि राजनीतिज्ञ जहाँ भी जाता है वहाँ राजनीति के मतलब से जाता है और राजनीति की बात करता है। मैं तो यहाँ बाबू भाई को अपनी श्रद्धांजलि देने आया हूँ।  मैं यहाँ खड़े होकर कह सकता था कि मेरी पार्टी ने जनता की बड़ी सेवा की, जनता के लिए बहुत काम किया,लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि यह वक्त उन सब बातों का नहीं है। अभी तो हमें बाबू भाई की आत्मा की शान्ति के लिए परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करनी है।

‘कोई राजनीतिज्ञ ऐसा मूरख नहीं होता कि श्रद्धांजलि-सभा में राजनीति की बातें करने लगे। ऐसी बेवकूफी विरोधी पार्टी वाले ही कर सकते हैं। हम कभी नहीं कर सकते। हर जगह एक ही राग अलापना और मौके की नज़ाकत को न समझना मूर्खों का काम है। हमसे ऐसी गलती कभी नहीं हो सकती। मैं चाहता तो कह सकता था कि पहले गाँवों में चौबीस घंटे में चार घंटे बिजली मिलती थी, अब हमारी पार्टी के शासन में छः घंटे मिलती है। पहले सड़कें इतनी खराब थीं कि रोज आठ-दस एक्सीडेंट होते थे, अब मुश्किल से तीन- चार होते हैं। दो साल पहले रिश्वतखोरी के अठारह सौ मामले दर्ज हुए थे, इस साल यह संख्या घट कर बारह सौ पर आ गयी है। कुछ लोग कहते हैं कि इस की वजह यह है कि रोकने और पकड़ने वाले भी भ्रष्ट हो गये हैं, लेकिन ये सब बरगलाने वाली बातें हैं।

‘मैं यह भी कह सकता था कि हमने सरकारी स्कूलों की छतों के सारे टपके बन्द करा दिये हैं,अब उनमें एक बूँद पानी भी नहीं टपकता। इस मरम्मत पर हमने इस शहर में ही दस करोड़ रुपये खर्च किये हैं। इस खर्च को लेकर भी विरोधी हमारी आलोचना करते हैं, लेकिन हम विचलित होने वाले नहीं। हम हर स्कूल को टपकामुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। स्कूलों की इमारतों की खस्ता हालत की जानकारी हमें है और जान-माल का कोई नुकसान होने से पहले कार्यवाही करने का निश्चय हमने कर लिया है। फिलहाल हमने सारी क्लासें स्कूल बिल्डिंग से बाहर मैदान में लगाने के आदेश दे दिये हैं। इससे विद्यार्थियों को खुली हवा में पढ़ने-लिखने का मौका मिलेगा, जो उनके स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है।

‘आप तो जानते ही हैं कि हमारा प्रदेश उद्योगों की दृष्टि से बहुत पिछड़ा है,यहाँ बहुत गरीबी और बेरोजगारी है। उद्योगों को बढ़ाने और गरीबी बेरोजगारी को दूर करने के तरीकों का अध्ययन करने के लिए हमारे सारे विधायक अमेरिका और इंगलैंड की तीन महीने की यात्रा पर जा रहे हैं। हमें विश्वास है कि उसके बाद यहाँ उद्योगों की भारी बढ़ोत्तरी होगी और गरीबी बेरोजगारी जड़ से खत्म हो जाएगी। मेरी नौजवान भाइयों से अपील है कि जैसे इतने दिन धीरज रखा, थोड़े दिन और रखें। सब्र का फल मीठा होता है।

‘लेकिन जैसा कि मैंने कहा, यह मौका ये सब बातें कहने का नहीं है। अभी चुनाव सिर पर है और मैं आपसे कह सकता था कि आप लोग एकजुट होकर हमारी पार्टी को वोट दें और विरोधी पार्टियों को धूल चटायें, लेकिन अभी मैं यह सब नहीं कहूँगा। अभी तो वक्त बाबू भाई की महान आत्मा को श्रद्धांजलि देने का है। ओम शान्तिः शान्तिः। ‘

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 25 ☆ बिटिया की नोक-झोंक ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी  की एक रचना  बिटिया की नोक-झोंक। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 25 ☆ 

☆ बिटिया की नोक-झोंक ☆ 

बिटिया की नोक-झोंक

ताजा पुरवैया सी

?

अम्मा सम टोंक रही

चाहे जब रोक रही

ठुमक मचल करवा जिद

पूरी, झट बाँह गही

तितली सम उड़े, खेल

ता ता ता थैया सी

बिटिया की नोकझोंक

ताजी पुरवैया सी

?

धरती पर धरती पग

हाथों आकाश उठा

बाधा को पटक-पटक

तारे हँस रही दिखा

बेशऊर लोगों को

चुभे भटकटैया सी

बिटिया की नोंकझोंक

ताजी पुरवैया सी

?

बात मान-मनवाती

इठलाती-इतराती

बिन कहे मुसीबत में

आप कवच बन जाती

अब न मूक राधा यह

मुखर है कन्हैया सी

बिटिया की नोकझोंक

ताजा पुरवैया सी

?

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

३-५-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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