हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा # 43 – शौक…  ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – शौक।)

☆ लघुकथा # 43 – शौक श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

विमला जी आज सुबह से काम को लेकर बड़ी परेशान थी।

कुछ बड़बड़ा रही थी और काम पर लगी थी।

मालती उसके साथ रोज नाच गाने में लगी रहती है।

ऐसा लगता है दोनों को कि बस जीवन में नाच गाना ही है…।

आज अच्छे से खबर लेती हूं..।

चलो अच्छा है याद तो आएगी।

काम करने भी जाना है दीदी के घर?

दीदी थोड़ा सा समय नाच गा लेती हूं खुश हो जाती हूं तो तुम्हारा क्या बिगड़ता है तुम भी आया करो, फ्रेश हो जाओगी।

तुम दोनों की तरह फुर्सत में नहीं हूं मुझे घर में बहुत काम  हैं।

घर में तो कोई  बच्चे  नहीं हैं, दिनभर नाच गाने में लगी रहती है।

झुमरी ने गुस्से से बोला-

देखो दीदी तुम किसी की जब तक परिस्थिति नहीं जानती हो तो उसके बारे में कुछ भी मत कहा करो।

सब घरों का काम छोड़ कर उसी के घर में काम करना।

ठीक है दीदी तुमसे तो वह दीदी लाख गुना अच्छी हैं ।

थोड़ी देर यदि खुश रहती हैं तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता है?

उनके बाल बच्चे नहीं हैं।

ऐसा उन्हें ताने मत दिया करो।

उनकी एक बिटिया है, जो गूंगी  है।

बहुत होशियार है दीदी उसको पढ़ाती हैं।

झुमरी की बातें विमला के मन में एक घाव कर गई ।

अच्छा चल कल से मैं भी नाचने आऊंगी……।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समीक्षा # 119 – श्रीकांत : नेटफ्लिक्स ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय चलचित्र समीक्षा श्रीकांत : नेटफ्लिक्स

☆ समीक्षा # 119 –  श्रीकांत : नेटफ्लिक्स ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

बहुत सी प्रेरणादायक और मेहनत से बनाई गई फिल्मों में ये फिल्म भी याद रखी जायेगी जो जन्मजात अंधत्व रूपी विकलांगता को मात देने वाले जुझारू, दृढसंकल्पित शख्स की सच्ची कहानी है जिसे अपने स्वाभाविक अभिनय के विशेषज्ञ “राजकुमार राव” ने अपने श्रेष्ठतम अभिनय से जीवंत बना दिया है।

वास्तविक शख्सियत “श्रीकांत बोलेरा” को उकेरता, उनका उत्कृष्ट अभिनय हमेशा याद किया जायेगा। श्रीकांत की मजबूत शख्सियत को दर्शाता ये डॉयलॉग फिल्म की यूएसपी है।

“जब सामना डर और चुनौतियों से होता है, तो दो ही रास्ते होते हैं, पहला चुनौतियों का मुकाबला करना या फिर रास्ता बदलकर याने कटमारकर भाग जाना” पर नेत्रहीन व्यक्ति के पास कट मारकर भागने का विकल्प नहीं होता। यही दुर्बलता फिर उसे आत्मशक्ति से सुसज्जित करती है और जुझारू बनाती है। महाभारत में हमने धृतराष्ट्र की अयोग्यता और निर्बलता देखी है पर अगर संकल्प शक्ति देखनी हो तो “श्रीकांत” देखिये जो सच्ची शख्सियत पर बनी है और नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है।

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 75 – प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 75 – प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

व्यर्थ शंका न पालकर रखिये 

अपना जज्बा सम्हालकर रखिये

*

प्यार तो शुद्ध दूध जैसा है 

कुछ भी, खट्टा न डालकर रखिये

*

काँच जैसा, ये टूट सकता है 

दिल, न ज्यादा उछालकर रखिये

*

शोले, चिन्गारियों से बनते हैं 

छोटी बातों को टालकर रखिये

*

मेरा दिल, ले तो जा रहे हो पर 

ठीक से देख-भाल कर रखिये

*

लग न जाये नजर जमाने की 

थोड़ा, घूँघट भी डालकर रखिये

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 148 – मनोज के दोहे – गांधी जी ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे – गांधी जी । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 148 – मनोज के दोहे – गांधी जी  ☆

जीवन का चिर- सत्य यह, करना सबको कर्म।

जन्म लिया तो मृत्यु भी, समझें इसका मर्म।।

*

हैं अहिंसा सत्याग्रह, गांधी के प्रिय मंत्र।

डिगा सका न पथ उन्हें, ब्रिटिश हुकूमत तंत्र।।

*

सत्याग्रह की भूमिका, हिंसा कोसों दूर।

नहीं रक्त रंजित रहे, शांतिपूर्ण भरपूर।।

*

गांधी जी की सादगी, उतरी दिल के पार।

पहिन लँगोटी ने किया, जनमत को तैयार।।

*

समय-समय पर खोजता, हर युग अपनी राह।

सुखद शांति की कल्पना, हर मानव की चाह।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 170 ☆ “नीदरलैंड की लोक कथायें” – प्रस्तुती … डा ॠतु शर्मा ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है आपके द्वारा डा ॠतु शर्मा जी द्वारा प्रस्तुत नीदरलैंड की लोक कथायें पर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 171 ☆

“नीदरलैंड की लोक कथायें” – प्रस्तुती … डा ॠतु शर्मा ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक चर्चा

नीदरलैंड की लोक कथायें

हिन्दी प्रस्तुति डा ॠतु शर्मा

वंश पब्लिकेशन, रायपुर, भोपाल

पहला संस्करण २०२३

पृष्ठ १०८

मूल्य २५०रु

ISBN 978-81-19395-86-6

☆ लोक कथायें बच्चों के अवचेतन मन में संस्कारों का प्रतिरोपण भी करती हैं  ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

प्रत्येक संस्कृति में लोक कथायें पीढ़ियों से मौखिक रूप से कही जाने वाली कहानियों के रूप में प्रचलन में हैं। सामान्यतः परिवार के बुजुर्ग बच्चों को ये कहानियां सुनाया करते हैं और इस तरह बिना लिखे हुये भी सदियों से जन श्रुति साहित्य की ये कहानियां किंचित सामयिक परिवर्तनो के साथ यथावत चली आ रही है। इन कहानियों के मूल लेखक अज्ञात हैं। किन्तु लोक कथायें सांस्कृतिक परिचय देती हैं। आर्थर की लोक कथाओ को ईमानदारी, वफादारी और जिम्मेदारी के ब्रिटिश मूल्यों को अंग्रेजो की राष्ट्रीय पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। भारत में पंचतंत्र की कहानियां नैतिक शिक्षा की पाठशाला ही हैं, उनसे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का परिचय भी मिलता है। लोक कथायें बच्चों के अवचेतन मन में संस्कारों का प्रतिरोपण भी करती हैं। समय के साथ एकल परिवारों के चलते लोककथाओ के पीढ़ी दर पीढ़ी पारंपरिक प्रवाह पर विराम लग रहे हैं अतः नये प्रकाशन संसाधनो से उनका विस्तार आवश्यक हो चला है। विभिन्न भाषाओ में अनुवाद का महत्व निर्विवाद है। आज की ग्लोबल विलेज वाली दुनियां में अनुवाद अलग अलग संस्कृतियों को पहचानने के साथ ही सामाजिक सद्भाव के लिए भी महत्वपूर्ण है। अनुवाद ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जिसके जरिये क्षेत्रीयता के संकुचित दायरे टूटते हैं। यूरोपियन देशों में नीदरलैंड्स में फ्रांसीसी, अंग्रेज़ी और जर्मन भी समझी जाती है।

प्रस्तुत पुस्तक नीदरलैंड की लोक कथायें में डा ॠतु शर्मा ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य करते हुये छै लोककथायें नीदरलैंड से, दो स्वीडन से, इटली से तथा जर्मनी से एक एक कहानी चुनी। डा ॠतु शर्मा ने कोई लेखकीय नहीं लिखा है। यह स्पष्ट नहीं है कि ये लोककथायें लेखिका ने कहां से ले कर हिन्दी अनुवाद किया है। कहानियों को हिन्दी में बच्चों के लिये सहज सरल भाषा में प्रस्तुत करने में लेखिका को सफलता मिली है। यद्यपि कहानियों को किंचित अधिक विस्तार से कहा गया है। जादुई पोशाक, चांदी का सिक्का, बुद्धू दांनचे, स्वर्ग का उपवन, तिकोनी ठुड्डी वाला राजकुमार, और दो लैंपपोस्ट की प्रेम कहानी नीदर लैंड की कहानियां हैं। जिनके शीर्षक ही बता रहे हैं कि उनमें कल्पना, फैंटेसी, चांदी के सिक्के और लैंप पोस्ट जैंसी जड़ वस्तुओ का मानवीकरण, थोड़ी शिक्षा, थोड़ा कथा तत्व पढ़ने मिलता है। स्वीडन की लोककथायें नन्हीं ईदा के जादुई फूल और रेत वाला कहानीकार हैं। इटली की लोक कहानी तीन सिद्धांत और जर्मन लोक कथा तीन सोने के बाल के हिन्दी रूप पढ़ने मिले।

इस तरह का साहित्य जितना ज्यादा प्रकाशित हो बेहतर है। वंश पब्लिकेशन, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश सहित हिन्दी बैल्ट के राज्यो में अपने नये नये प्रकाशनो के जरिये गरिमामय स्थान अर्जित कर रहा उदयीमान प्रकाशन है। वे उनके सिस्टर कन्सर्न ज्ञानमुद्रा के साथ लेखको के तथा किताबों के परिचय पर किताबें भी निकाल रहे हैँ। मेरी मंगल कामनाये। यह पुस्तक विश्व साहित्य को पढ़ने की दृष्टि से बहुउपयोगी और पठनीय है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 208 – माँ भगवती की आराधना ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है श्री गणेश वंदना “माँ भगवती की आराधना”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 208 ☆

🌹 माँ भगवती की आराधना 👏

मन में रख विश्वास सदा ही, भरती माँ झोली खाली है।

श्रद्धा से कर पूजन वंदन, आसन बैठी माँ काली है।।

दानव मारे चुन चुन कर के, वो रण चंडी कहलाती।

नरमुंडो की माला धारें, रक्त दंतिका दिखलाती।।

 *

जब चंड मुंड संघार करें, चामुंडा देवी नाम धरी।

मधुकैटभ को मारी मैया, शेरों वाली त्रिपुर सुन्दरी।।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, मैया को भेंट चढाना हैं।

घर घर जोत जली मैया की,नितश्रद्धा भक्ति बढाना है।।

 *

गौरी अंबा रुप भवानी, ये शिवा शक्ति कल्याणी हैं।

मांगों मैया से जी भर के ,शुभ इच्छित फल वरदानी हैं।।

लाल चुनरिया सर पर ओढ़े, माँथे बिंदिया की लाली है।

अधरों पर मुस्कान लिए है, दो नैना कजरा डाली है।।

 *

बनी जूही चंपा अरु चमेली, गूथें माला बलिहारी है।

कानों कुंडल चाँद सितारे, झूले मोती नग प्यारी है ।।

शेरों पर बैठी है माता,येअष्ट भुजाओं वाली है।

सच्चे मन जो कोई ध्याये, करती उनकी रखवाली है।।

 *

पूरी हलुवा भोग लगाते, सब कष्ट मिटाने वाली है।

सदा सुहागन करने वाली, वो खप्पर धारे काली है।।

नव दुर्गा आराधन कर लो, माता की सेवा न्यारी हैं।

उनके ही आँचल में पलते, सुंदर दुनिया फुलवारी हैं।।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 104 – देश-परदेश – सी सी टीवी कैमरा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 104 ☆ देश-परदेश – सी सी टीवी कैमरा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

दो दशक से अधिक समय हो गया, सीसी टीवी कैमरा को हमारे देश में पदार्पण किए हुए। वर्ष दो हज़ार में अजमेर शाखा में पदस्थापना के समय बैंक की शाखा में एक फ्रॉड में करीब सात लाख का नगद भुगतान हो गया था। शाखा प्रबंधक ने पास के एक हलवाई की दुकान पर लगे हुए सीसी टीवी कैमरे का मुआयना कर आने के लिए हमें कहा था।

हलवाई की रसोई दुकान के ऊपर थी जहां कर्मचारी मिठाई आदि बनाते थे, नीचे बिक्री होती थी, जहां मालिक बैठ कर गल्ला संभालने के साथ रसोई में लगे कैमरे से नज़र रखता था। हम रसोई में भी गए, और कर्मचारियों से बात की, वो परेशान से लगे, बोले पहले हम दिन के अनेक बार दूध पी जाते थे, एक दो मुट्ठी मेवें भी डकार जाते थे, अब सीसी टीवी से ये सब बंद हो गया है।

आजकल घर के अलावा गलियों, बाजारों आदि में भी कैमरे लग चुके हैं। कुछ दिन पूर्व एक मित्र के घर जाना हुआ, उनके घर के बाहर अलीगढ़ी ताला देख, यू टर्न लेकर घर आ गए। दूसरे दिन मित्र का फोन आया, तो बोला, बता कर आना चाहिए था। उसने हमें कैमरे में देख लिया था।

वो अपने कैमरे की तारीफ़ में कसीदे पढ़ कर उस पर खर्च की गई राशि से अपनी रईसी प्रमाणित करने के लिए प्रयासरत था। हमने उससे पूछा क्या तुम्हारे कैमरे में कभी चलती हुई चीटियां दिखती हैं क्या ? वो बोला नहीं कुत्ते बिल्ली अवश्य दिख जाते हैं।

उसने जिज्ञासा से पूछा ये चीटियां दिखने का क्या उपयोग होता होगा ? हमने उससे कहा, कि हमारे कैमरे में पड़ोस के घर में जाती हुई चींटियां भी दिखती है, इसका मतलब पड़ोसी के यहां कुछ ताजा ताजा मीठा बन रहा है। बाज़ार की दुकानों में से तो जिंदा कीड़े निकलते हैं, इसलिए लोग घर में निर्मित ताज़ा मीठा ही खाना पसंद करते हैं।

विगत माह एक बहुत बड़े आदमी के यहां विवाह में जाना हुआ, स्टेज पर भीड़ को देखते हुए बिना लिफाफा दिए हुए, भोजन ग्रहण कर वापिस आ गए। कुछ दिन पूर्व विवाह परिवार से एक व्यक्ति मिला, और नाराज़ होकर बोला, आप विवाह में पधारे नहीं, हमने स्वास्थ्य का हवाला देकर, किनारा काट लिया। बात आई गई हो गई। एक दिन विवाह वाले घर से उनके मुनीम का फोन आया, और कहने लगा, जब आप विवाह में आए थे, तो फिर मना क्यों किया। हमने कैमरे में आपको वापिस जाते हुए देखा है, और लिफाफा भी आपकी कमीज की ऊपरी जेब में स्पष्ट दिख रहा है। हमें तो “काटों तो खून नहीं”।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #258 ☆ चांदण झूला… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 258 ?

☆ चांदण झूला… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

 किती येउदे दुःखे त्यांना शिंगावरती घेऊ

बुडणाराला उडी मारुनी काठावरती घेऊ

*

मी नेत्याचा दास कोडगा कायम श्रद्धा त्यावर

घोटाळेही केले त्याने अंगावरती घेऊ

*

दोघामधला सूर ताल जर कधी बिघडुनी गेला

समजुतीने पुनःश्च त्याला तालावरती घेऊ

*

सुगंध मोहक या देहाला वेड लावतो आहे

प्रेमापोटी गुलाबास त्या ओठांवरती घेऊ

*

होय शिवाचे शूर मावळे तलवारीशी खेळू

नात्यामधल्या गद्दाराला भाल्यावरती घेऊ

*

तुकडे तुकडे करणारे हे नकोत नेते आम्हा

देशासाठी झटेल त्याला डोक्यावरती घेऊ

*

चल वस्तीला जाऊ तेथे असेल चांदण झूला

एक देखणा असा बंगला चंद्रावरती घेऊ

 

© श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 210 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 210 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

और

क्या विचार

उठ रहे होंगे

माधवी के मन में,

शायद कोई नहीं जानता ।

शायद सब जानते हैं

सब जानते होंगे

किन्तु

छाई रही शब्द हीनता

तना रहा

मौन का वितान ।

(शायद

चल रहा था।

सत् असत्

अहं, प्रतिष्ठा

शील

लज्जा और

ग्लानि क

मनोयुद्ध)

ग्लानि से

उबरने

कर्तव्य बोध से

प्रेरित हुए ययाति ।

रचा माधवी का स्वयंवर |

देश देशान्तर के

राजा

राजकुमार

ऋषि कुमार

सभी हुए एकत्र ।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 211 – “वक्त क्यों झुर्रियाँ टटोलता है…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत वक्त क्यों झुर्रियाँ टटोलता है...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 211 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “वक्त क्यों झुर्रियाँ टटोलता है...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

सच कहूँ  “सत्य”

यहाँ बोलता है ।

वक्त क्यों झुर्रियाँ

टटोलता है ॥

 

जो हंसता हूँ तो

कान हिलते हैं ।

बाद चुपचाप

होंठ मिलते हैं ।

 

आईना देखदेख

डोलता है ॥

 

सर्द जुल्फें

उड़ान भरती हैं ।

बदलियाँ बूँद –

बूँद झरती हैं ।

 

कपाट ज्यों ललाट

खोलता है ॥

 

दृश्य भर आँख

भी चमकती है ।

लाज तब यहाँ

पर खटकती है ।

 

जिसका अंदाज

कोई तौलता है ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

06-10-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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