English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 14 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 14/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 14 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

उनके हाथों में मेहंदी लगाने

का यह फायदा हुआ

कि रात भर हम उनके

चेहरे से ज़ुल्फ हम हटाते रहे..

  

 The advantage of applying mehndi 

On her hands was that I kept on

Removing the tufts of hair from 

Her face throughout the night…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 अगर इश्क़ करो तो

अदब ए  वफ़ा भी सीखो

ये चंद दिनों की बेकरारी

मोहब्बत नहीं होती..

  

  If you love someone then

Learn to practise loyalty too

A few days of restlessness

Is not construed as love…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 उनके हाथों में मेहंदी लगाने का

ये फायदा हुआ…

की रात भर उनके चेहरे से

ज़ुल्फ हम हटाते रहे…

  

 Reward of applying mehndi on her

Hands was that I was privileged 

To remove the bangs of hair from 

Her face throughout the night…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 तेरी एक झलक ही काफ़ी 

है जीने के लिए पर दिल का 

मोह ही है सारी उम्र मिल 

जाये तो भी कम है

 

Your one glimpse alone is

Just enough to live for but it’s the 

Fascination of heart that finds

It less even if it get entire lifetime

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – भारतीय ज्योतिष शास्त्र भाग 2 – भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हस्तरेखा का महत्व ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  जनसामान्य  के  ज्ञानवर्धन के लिए भारतीय ज्योतिष विषय पर एक शोधपरक आलेख भारतीय ज्योतिष शास्त्र भाग 2  – भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हस्तरेखा का महत्व . भारतीय ज्योतिष शास्त्र के दोनों आलेखों के सम्पादन  सहयोग के लिए युवा ज्ञाता  श्री आशीष कुमार जी का हार्दिक आभार।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – भारतीय ज्योतिष शास्त्र भाग 2  – भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हस्तरेखा का महत्व

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हस्तरेखाओं का अलग ही महत्व है, व्यक्ति के कार्यशील हाथों तथा उसकी बनावट को देख कर बहुत कुछ जाना तथा समझा जा सकता है, हाथ व्यक्ति के शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है, पौराणिक मान्यता केअनुसार हमारे दिन की सुरूआत ही हाथों के दर्शन से होती है तथा हाथों के द्वारा किये गये शुभ कर्मों की शुरुआत ही दान धर्म से होती है जो जीवन में सुख शांति और समृद्धि के साथ-साथ सौहार्द का वातावरण भी सृजित करती है श्रद्धा से जुड़े हुए हाथ और झुके सिर विनम्रता सौम्यता तथा श्रद्धा का बोध कराते हैं जो हमारी संस्कृति के संवाहक है उनमें अलग ही आकर्षण होता है। पौराणिक नियम के अनुसार सर्वप्रथम व्यक्ति को निद्रा से जागने के बाद अपने हाथों को ही देखना चाहिए इससे व्यक्ति  मुखदर्शन के दोष से बच  सकता है इसलिए व्यक्ति को सुबह अपना हाथ ही देखना चाहिए।

कर दर्शन का मंत्र है—-

कराग्रे वसते लक्ष्मी ,कर मध्ये सरस्वती।

करमूले स्थितो ब्रह्मा  प्रभाते कर दर्शनम्।

अथवा

ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानूसषि भूमि सुतौ बुधश्च।

गुरूश्चशुक्रौ शनिराहु केतव: सर्वे ग्रहा शांतु कराभवंते।।

अर्थात् हाथ में धन की देवी लक्ष्मी विद्या की देवी सरस्वती तथा सृष्टि कर्ता ब्रह्मा का निवास है। तथा हाथ में ही नवग्रहों का निवास है उनकी आराधना से ग्रहों के कोप का समन होता है। इसीलिए भारतीय ज्योतिष में ये बड़ा महत्व पूर्ण हो जाता है एक कुशल हस्तरेखा विशेषज्ञ हाथों की बनावट रंग रूप आकृति प्रकृति तथा उनमें बनने मिटने वाली रेखा देख कर बहुत कुछ भविष्यवाणी कर सकता है। मणिबंध रेखा से ही हस्तनिर्माण की शुरुआत मानी जाती है हाथों में नवग्रहों का स्थान भी ज्योतिष विज्ञानियों द्वारा निर्धारित किया गया है। तथा हाथों में ही हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा और आयु रेखा होती है, जिसे देखकर मानव का जीवन काल हृदय की भावना तथा बुद्धिमत्ता का आकलन किया जाता है।

एक चतुर हस्तरेखा विशेषज्ञ ही ठीक-ठाक भविष्य वाणी हाथ देख कर कर सकता है,रेखायें समय के साथ बनती तथा मिटती रहती है जो बहुत कुछ संकेत देती है। इनका संबंध मनोविज्ञान से भी बहुत गहराई से जुड़ा है। हाथों में स्थित नवग्रहों के उभरे अथवा दबे क्षेत्र तथा अनेक चिन्ह बहुत कुछ संकेत करते हैं उन्हें पढ़ना एक विशेषज्ञ हस्तरेखा विज्ञानी के लिए बहुत ही आसान है। जिस प्रकार जातक के जन्म के समय की खगोलीय स्थिति जन्मकुंडली में कालखंडों के ग्रहों नक्षत्रों के स्वभाव प्रभाव का अध्ययन करने में सहायक होती है। उसी प्रकार हस्तरेखा भी जातक के भूत भविष्य वर्तमान को दर्शाती है। इसका निर्धारण हस्तरेखा ही करती है। व्यक्ति बुद्धिहीन है अथवा बुद्धिमान यह तो हस्तरेखा विषेषज्ञ देखते भांप लेता है,क्योकि बुद्धिमान व्यक्ति का हाथ कोमलता युक्त लालिमा लिए होता है, वहीं मोटी बुद्धि वाले व्यक्ति का हाथ कठोर होता है तथा उसके हाथों की रेखाएं अस्पष्ट होती है। उसी प्रकार शारीरिक बनावट आदि भी हस्तरेखाओं के द्वारा भविष्य वाणी के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभातीं है जो विषय विशेषज्ञों के शोध की विषय वस्तु है।

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

विशेष – प्रस्तुत आलेख  के तथ्यात्मक आधार ज्योतिष शास्त्र की पुस्तकों पंचागों के तथ्य आधारित है भाषा शैली शब्द प्रवाह तथा विचार लेखक के अपने है, तथ्यो तथा शब्दों की त्रुटि संभव है, लेखक किसी भी प्रकार का दावा प्रतिदावा स्वीकार नहीं करता। पाठक स्वविवेक से इस विषय के समर्थन अथवा विरोध के लिए स्वतंत्र हैं, जो उनकी अपनी मान्यताओं तथा समझ पर निर्भर है।

 

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 19 ☆ राणी ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है  उनका एक श्रृंगारिक रचना  “राणी“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 19 ☆

☆ राणी

 

अगं नाव काय तुझं ये राणी

तुझा बिल्लोर चांदणीवाणी

तुझ्या नखऱ्यावरी,

वाहिन दुनिया सारी

चंद्र पुनवेचा देईन निशाणी।।

 

राग आलाय राणीला लटका

नको मारु गं  मानेला झटका

कर झटका दुरी,

हास गं पळभरी

तुझ्या हास्यात मी,पाणी पाणी।।

 

झोके कमरेला देऊ नको नाना

होई कलिजाचा खजिना रिकामा

पाहुनी सिंहकटी,

माझी फिरली मती

तुझ्या कमरेत,जादू दिवाणी।।

 

तुझ्या गजऱ्यात मन माझं अडलं

तुझ्या पिरमात  मन  माझं  पडलं

तुझ्या मनावरी,

तुझ्या तनावरी

राज्य करीन,मी राजावाणी।।

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ नामकरण ☆ श्री कमलेश भारतीय

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

आज प्रस्तुत है एक सार्थक लघुकथा  नामकरण । कृपया आत्मसात करें।

☆ लघुकथा : नामकरण    

 

कच्चे घर में जब दूसरी बार भी कन्या ने जन्म लिया तब चंदरभान घुटनों में सिर देकर दरवाजे की दहलीज  बैठ गया । बच्ची की किलकारियां सुनकर पड़ोसी ने खिड़की में से झांक कर पूछा -ऐ चंदरभान का खबर ए ,,,?

-देवी प्रगट भई इस बार भी ।

-चलो हौंसला रखो ।

-हां , हौसला इ तो रखेंगे बीस बरस तक । कौन आज ही डिग्री की रकम मांगी गयी है । डिग्री ही तो आई है । कुर्की जब्ती के ऑर्डर तो नहीं ।

-नाम का रखोगे ?

-लो । गरीब की लड़की का भी नाम होवे है का ? जिसने जो पुकार लिया सोई नाम हो गया । होती किसी अमीर की लड़की तो संभाल संभाल कर रखते और पुकार लेते ब्लैक मनी ।

दोनों इस नाम पर काफी देर तक हो हो करते हंसते रहे । भूल गये कि जच्चा बच्चा की खबर सुध लेनी चाहिए ।

पड़ोसी ने खिड़की बंद करने से पहले जैसे मनुहार करते हुए कहा -ऐ चंदरभान, कुछ तो नाम रखोगे इ । बताओ का रखोगे?

-देख यार, इस देवी के भाग से हाथ में बरकत रही तो इसका नाम होगा लक्ष्मी । और अगर यह कच्चा घर भी टूटने फूटने लगा तो इसका नाम होगा कुलच्छनी ।

पड़ोसी ने ऐसे नामकरण की उम्मी द नहीं की थी । झट से खिड़की के दोनों पट आपस में टकराये और बंद हो गये ।

 

©  कमलेश भारतीय

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

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मराठी साहित्य – कविता ☆ दीनानाथा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता  “दीनानाथा।)

☆ दीनानाथा ☆

 

नाही झाली भेट तुझी

नाही वाचली मी गीता

माय बापाच्या चरणी

फक्त ठेवला मी माथा

 

तेथे भेट तुझी झाली

गाली हसला तू होता

माझ्या हाताला लागली

जणू तुकयाची गाथा

 

नाही व्हायचे वाल्मिकी

राम नाम गाता गाता

होवो श्रावणा सारखी

माझ्या आयुष्याची कथा

 

माझ्या भाग्याची थोरवी

कीर्ति आई यश पिता

हात त्यांचे डोईवरी

काय मागू दीनानाथा

 

माया मोहाची पायरी

नको घराला रे दाता

लालसेचा घडा मनी

त्याला घाततो पालथा

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के कलाकार # 12 – केदार शर्मा – 2 ☆ श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के कलाकार  : केदार शर्मा – 2 पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 12 ☆ 

☆ केदार शर्मा -2 ☆

उनकी आत्मकथा, द वन एंड लोनली केदार शर्मा को मरणोपरांत 2002 में प्रकाशित किया गया था, जिसे उनके बेटे विक्रम शर्मा ने संपादित किया था।

जिसमें उन्होंने पृथीराज कपूर के साथ सम्बंधों का खुलासा किया है।

मुंबई के रंजीत स्टूडियोज के लिए 1942 में केदार शर्मा ‘विषकन्या’ बना रहे थे। इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर, साधना बोस और सुरेंद्र नाथ प्रमुख भूमिका में थे। केदार शर्मा और पृथ्वीराज कपूर में कलकत्ता (अब कोलकाता) के दिनों से बहुत गहरी दोस्ती थी और दोनों एक दूसरे के सुख-दुख के साथी थे। बाद में दोनों कोलकाता से मुंबई आ गए थे। ‘विषकन्या’ की शूटिंग के दौरान केदार शर्मा ने इस बात को नोटिस किया कि पृथ्वीराज कपूर जब भी शूटिंग के लिए सेट पर पहुंचते तो वो बहुत उदास रहते हैं। शूटिंग के पहले और बाद में भी गुमसुम रहते हैं और सेट पर किसी से बातचीत नहीं करते। केदार शर्मा लगातार इस बात को नोट कर रहे थे लेकिन पृथ्वीराज कपूर से पूछ नहीं पा रहे थे।

एक दिन अवसर मिल ही गया। पृथ्वीराज कपूर शॉट देने के बाद सेट के एक कोने में जाकर बैठ गए। केदार शर्मा उनके पास पहुंचे, उनका हाथ पकड़कर बोले कि अगर इसमें बहुत व्यक्तिगत कुछ न हो तो मैं आपकी उदासी का कारण जानना चाहता हूं। मुझे लगता है कि आप किसी खास वजह से बेहद परेशान हैं। आप मुझ पर भरोसा रखकर उदासी की वजह बताइए, मैं उसको दूर करने की कोशिश करूंगा। इतना सुनकर पृथ्वीराज कपूर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सके और जोर से केदार का हाथ पकड़कर बोले, ‘केदार! मैं अपने बेटे राजू को लेकर बहुत चिंतित हूं। किशोरावस्था की उलझनों में वो मुझे भटकता हुआ लग रहा है, मैंने उसको पढ़ने के लिए कॉलेज भेजा लेकिन वहां पढ़ाई से ज्यादा वो लड़कियों में खो गया है।’ इतना बोलकर पृथ्वीराज कपूर चुप हो गए।

केदार शर्मा ने पृथ्वीराज कपूर के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘अपने बेटे को मुझे सौंप दो लेकिन एक वादा करो कि मेरे और उसके बीच दखलअंदाजी नहीं करोगे। मैं उसको रास्ते पर ले आऊंगा, ठीक उसी तरह जिस तरह से कोई गुरू अपने चेले को लेकर आता है। मैं उसको अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बनाने के लिए तैयार हूं।’ यह सुनकर पृथ्वीराज कपूर का दुख कुछ कम हुआ।

अगले दिन वो अपने बेटे राजू को लेकर केदार शर्मा के पास पहुंचे। कपूर खानदान की परंपरा के मुताबिक राजू ने केदार शर्मा के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। केदार शर्मा ने राजू को उनके बचपन के दिनों की याद दिलाई, जब वो कोलकाता में रहते थे और पिता के साथ स्टूडियो आते थे। एक दिन जब केदार शर्मा रील देख रहे थे तो राजू ने उनसे जानना चाहा था कि रील में कैद चित्र पर्दे पर चलने कैसे लगते हैं। तब केदार शर्मा ने राजू को कहा था कि एक दिन मैं तुम्हें इसका रहस्य बताऊंगा। अब केदार शर्मा ने राजू से कहा, ‘रील का रहस्य जानने का समय आ गया है। तुम अब मेरे साथ काम करो। आज से तुम मेरे असिस्टेंट डायरेक्टर हो।’

केदार शर्मा 1945 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा जो इंग्लैंड और हॉलीवुड की यात्रा की और चार्ली चैपलिन, वॉल्ट डिज्नी और सेसिल बी डीमिल से मिले।

  • बेस्ट चिल्ड्रन्स फिल्म, अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह वेनिस में 1957 में जलदीप के लिए मिला था।
  • 1956: सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: जलदीप
  • भारतीय फिल्म निर्देशकों का एसोसिएशन लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
  • भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए 1982 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा स्वर्ण पुरस्कार
  • महाराष्ट्र सरकार का राज कपूर पुरस्कार (उनकी मृत्यु के बाद 1999 में सम्मानित)

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 2 ☆ शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( हम गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  के  हृदय से आभारी हैं जिन्होंने  ई- अभिव्यक्ति के लिए साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य धारा के लिए हमारे आग्रह को स्वीकारा।  अब हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं  आपकी कालजयी रचना  शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा.  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 2 ☆

☆ शासक वर्ग जहाँ नैतिक आचरणवान नहीं होगा ☆

 

शासक वर्ग जहाँ  नैतिक आचरणवान नहीं होगा

जनता से नैतिकता की आषा करना है धोखा।

 

देष गर्त में दुराचरण के नित गिरता जाता है,

आषा के आगे तम नित गहरा घिरता जाता है।

 

क्या भविष्य होगा भारत का है सब ओर उदासी,

जन अषांति बन क्रांति न कूदे उष्ण रक्त की प्यासी।

 

अभी समय है पथ पर आओं भूले भटके राही,

स्वार्थ सिद्धि हित नहीं देष हित बनो सबल सहभागी।

 

नहीं चाहिए रक्त धरा को, तुम दो इसे पसीना,

सुलभ हो सके हर जन को खुद और देष हित जीना।

 

मानव की सभ्यता बढ़ी है नहीं स्वार्थ के बल पर,

आदि काल से इस अणुयुग तक श्रमरथ पर ही चलकर।

 

स्वार्थ त्याग कर जो श्रम करते वें ही कुछ पाते है,

भूमिगर्भ से हीरे, सागर से मोती लाते है।

 

त्याग राष्ट्र का स्वास्थ्य शक्ति है, स्वार्थ बड़ी बीमारी,

सदा स्वार्थ से ही उठती है भारी अड़चन सारी।

 

अगर देष को अपने है उन्नत समर्थ बनाना,

स्वार्थ, त्याग, उत्तम, चरित्र सबको होगें अपनाना।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 42 ☆ फिर उग आया हूँ ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्राकृतिक पृष्टभूमि में रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “फिर उग आया हूँ। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 42 ☆

☆ फिर उग आया हूँ ☆

 

कट गया पर उग आया हूँ,

देख तेरे सहर में फिर आया हूँ ।

रात ही तो बीती थी कटने के बाद

मैं जिंदा हरा भरा दिल लाया हूँ ।

जड़ से उखाड़ दिया, धड़ से गिरा दिया

बाजू कटी है मेरी पर मैं खिल आया हूँ ।

देख तेरे सहर में फिर आया हूँ ।

 

© सुजाता काळे

7/7/20

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 55 ☆ संदेह और विश्वास ☆ डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  एक अत्यंत विचारणीय एवं प्रेरक आलेख संदेह और विश्वास। संदेह अथवा शक का कोई इलाज़ नहीं है और विश्वास हमें जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है।  यह डॉ मुक्ता जी के  जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )     

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 55 ☆

☆ संदेह और विश्वास

संदेह मुसीबत के पहाड़ों का निर्माण करता है और विश्वास पहाड़ों से भी रास्तों का निर्माण करता है। मन का संकल्प व शरीर का पराक्रम, यदि किसी काम में पूरी तरह लगा दिया जाए, तो सफलता निश्चित रूप से प्राप्त होकर रहेगी। सो! मंज़िल तक पहुंचने के लिए दृढ़-निश्चय, शारीरिक साहस व तन्मयता की आवश्यकता होती है। वैसे भी कबीर दास जी की यह पंक्तियां ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ‘ बहुत सार्थक हैं। काव्यशास्त्र में भी तीन शक्तियां स्वीकारी जाती हैं…प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास। प्रतिभा जन्मजात होती है, व्युत्पत्ति का संबंध शास्त्रों के अध्ययन से है और सिद्धहस्तता प्राप्ति के लिए बार-बार उस कार्य को करना अभ्यास के अंतर्गत आता है। तीनों का परिणाम चामत्कारिक होता है। सो! आवश्यकता है–मन को एकाग्र कर अपनी शारीरिक शक्तियों को संचित कर, उसमें लिप्त करने की। इस स्थिति में कोई भी आपदा या बाधा आपके पथ की अवरोधक नहीं बन सकती। हां! संदेह अवश्य मुसीबतों के पर्वतों का निर्माण करता है अर्थात् मन को संशय की स्थिति में लाकर छोड़ देता है; जिसके जंजाल से निकलने की कोई राह नहीं दिखाई पड़ती। वास्तव मेंं यह संशय, भूल-भुलैया अथवा अनिर्णय की स्थिति होती है, जिसमें मानव की मानसिक शक्ति कुंद हो जाती है। इसलिए शक़ को दोस्ती का शत्रु स्वीकारा गया है। यह गुप्त ढंग से ह्रदय में दस्तक देती है और अपना आशियां बना कर बैठ जाती है। उस स्थिति में उससे मुक्ति पाने का कोई मार्ग नज़र नहीं आता।

दूसरी ओर विश्वास पहाड़ों में से भी रास्तों का निर्माण करता है। यहां हमारा संबंध आत्मविश्वास से है; जिसमें हर आपदा का सामना करने की क्षमता होती है, क्योंकि कोई भी समस्या इतनी बड़ी नहीं होती, जिसका समाधान न हो। चित्त की एकाग्रता इसकी प्राथमिक शर्त है और उस स्थिति में मन में संशय का प्रवेश निषिद्ध होना चाहिए। यदि किसी कारण संदेह हृदय में प्रवेश कर जाता है, कि ‘यदि ऐसा होता; तो वैसा होता… कहीं ऐसा-वैसा न हो जाए ‘ आदि अनेक आशंकाएं मन में अकारण जन्म लेती हैं और हमें पथ-विचलित करती हैं। सो! संदेह पर विश्वास द्वारा विजय प्राप्त की जा सकती है; जिसके लिए आवश्यकता है– चित्त की एकाग्रता व शारीरिक शक्तियों के एकाग्रता के अभ्यास की और यही अपनी मंज़िल तक पहुंचने का सबसे कारग़र उपाय व सर्वश्रेष्ठ साधन है। इसी संदर्भ में दिनकर जी का यह कथन बहुत सार्थक है–’ज़िंदगी के असली मज़े उनके लिए नहीं हैं, जो फूलों की छांह के नीचे खेलते व सोते हैं, बल्कि फूलों की छांह के नीचे यदि जीवन का स्वाद छिपा है, तो वह भी उन्हीं के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं, जिनका कंठ सूखा व ओंठ फटे और सारा शरीर पसीने से तर-ब-तर है। पानी में अमृत तत्व है; उसे वही जानता है, जो धूप में चलते-चलते सूख चुका है।’ इस उक्ति में शारीरिक पराक्रम की महत्ता को दर्शाते हुए कहा गया है कि यदि मानव परिश्रम करता है, तो पर्वतों में भी रास्ता बनाना भी कठिन नहीं। मुझे स्मरण हो रहा है दाना मांझी का प्रसंग, जो अपनी पत्नी के शव को कंधे पर लाद-कर पर्वतों के ऊबड़- खाबड़ रास्तों से अपने गांव तक ले गया। परंतु उसने दुर्गम पथ की कठिनाइयों को अनुभव करते हुए मीलों लंबी सड़क बनाकर एक मुक़ाम हासिल किया, जिसमें उसका स्वार्थ निहित नहीं था, बल्कि दूसरों के सुख-सुविधा के लिए पर्वतों को काट कर सपाट रास्ते का निर्माण करने की प्रबल इच्छा शक्ति थी। परंतु इस कार्य को सम्पन्न करने में उसे लंबे समय तक जूझना पड़ा।

सो! दिनकर जी भी श्रमिकों के साहस को सराहते हुए श्रम के महत्व को प्रतिपादित करते हैं कि जीवन के असली मज़े उन लोगों के लिए हैं, न कि उनके लिए जो फूलों की चाह में अपना जीवन सुख-पूर्वक गुज़ारते हैं। मानव को परिश्रम करने के पश्चात् जो सुक़ून की प्राप्ति होती है, वह अलौकिक आनंद प्रदान करती है।

‘बहुत आसान है/ ज़मीन पर मकां बना लेना/ दिल में जगह बनाने में/ उम्र गुज़र जाती है।’ सो! धरा पर बड़े-बड़े महल बना लेना तो आसान है, परंतु किसी के दिल में जगह बनाने में तमाम उम्र गुज़र जाती है। यह महल, चौबारे, मखमली बिस्तर, सुख-सुविधा के विविध उपादान दिल को सुक़ून प्रदान नहीं करते। मखमली बिस्तर पर लोगों को अक्सर करवटें बदलते देखा है और बड़े-बड़े आलीशान बंगलों में रहने वालों से हृदय से सुक़ून नदारद रहता है। एक छत के नीचे रहते हुए अजनबीपन का अहसास उनकी ज़िंदगी की हक़ीक़त बयां करने के लिए काफी है। वे नदी के द्वीप की भांति, अपने-अपने दायरे में कैद रहते हैं, जिसका मुख्य कारण है–संवादहीनता से उपजी संवेदनशून्यता और मिथ्या अहं की भावना, जो हमें  एक-दूसरे के क़रीब नहीं आने देती। इसका परिणाम हम तलाक़ की दिन-प्रतिदिन बढ़ती संख्या के रूप में देख सकते हैं। सिंगल पेरेंट के साथ एकांत की त्रासदी झेलते बच्चों को देख हृदय उद्वेलित हो उठता है। सो! इन असामान्य परिस्थितियों में उनका सर्वांगीण विकास कैसे संभव है?

‘पहाड़ियों की तरह/खामोश हैं/ आज के संबंध/ जब तक हम न पुकारें/ उधर से आवाज़ भी नहीं आती’–ऐसे परिवारों की मन:स्थिति को उजागर करता है, जहां स्नेह-सौहार्द के स्थान पर अविश्वास, संशय व संदेह ने अपना आशियां बना रखा है। आजकल अति-व्यस्तता के कारण अंतहीन मौन अथवा गहन सन्नाटा छाया रहता है। मुझे स्मरण हो रही हैं इरफ़ान राही सैदपुरी की यह पंक्तियां, ‘हमारी बात सुनने की/ फुर्सत कहां तुमको/ बस कहते रहते हो/ अभी मसरूफ़ बहुत हूं’ उजागर करता है आज के समाज की त्रासदी को, जहां हर अहंनिष्ठ इंसान समयाभाव की बात कहता है; दिखावा-मात्र है। वास्तव में हम जिससे स्नेह करते हैं, जिस कार्य को करने की हमारे हृदय में तमन्ना होती है; उसके लिए हमारे पास समयाभाव नहीं होता। सो! जिसने जहान में दूसरों की खुशी में खुशी देखने का हुनर सीख लिया…वह इंसान कभी भी दु:खी नहीं हो सकता। दु:ख का मूल कारण है, इच्छाओं की पूर्ति न होना। अतृप्त इच्छाओं के कारण क्रोध बढ़ता है और इच्छाएं पूरी होने पर लोभ बढ़ता है। इसलिए धैर्यपूर्वक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है। राह बड़ी सीधी है और मोड़ तो मन के हैं। अहं के कारण मन में ऊहापोह की स्थिति बनी रहती है और वह आजीवन इच्छाओं के मायाजाल से मुक्त नहीं हो पाता और उनकी पूर्ति-हित गलत राहों पर चल निकलता है, जिसका परिणाम भयंकर होता है। इसका दोष भी वह सृष्टि-नियंता के माथे मढ़ता है। ‘न जाने वह कैसे मुकद्दर की किताब लिख देता है/ सांसें गिनती की ख्वाहिशें बे-हिसाब लिख देता है।’ इसके लिए दोषी हम खुद हैं, क्योंकि हम सुरसा की भांति बढ़ती इच्छाओं पर अंकुश नहीं लगाते, बल्कि उनकी पूर्ति में अपना पूरा जीवन खपा देते हैं। परंतु इच्छाएं कहां पूर्ण होती हैं। प्रसाद जी का यह पद,’ ज्ञान दूर, कुछ क्रिया भिन्न है/ इच्छा क्यों पूरी हो मन की/ एक दूसरे से मिल न सके/ यह विडंबना है जीवन की।’ हमें आवश्यकता है इच्छा-पूर्ति के लिए ज्ञान की और उस राह पर चल कर कर्म करने की, ताकि जीवन में सामंजस्य स्थापित हो सके। इसलिए ‘ख्याल रखने वाले को ढूंढिए/ इस्तेमाल करने वाले तो तुम्हें/ स्वयं ही ढूंढ ही लेंगे।’ इसलिए उस प्रभु को ढूंढने की चेष्टा कीजिए और उसकी कृपादृष्टि पाने कि हर संभव प्रयास कीजिए। उसे बाहर ढूंढने की आवश्यकता नहीं है, वह तो तुम्हारे मन में बसता है। इसलिए कहा गया है कि ‘तलाश न कर मुझे ज़मीन और आसमान की गर्दिशों में/ अगर तेरे दिल में नहीं, तो कहीं भी नहीं मैं।’ परंतु बावरा मन उसे पाने के लिए दर-दर की खाक़ छानता है। मृग की भांति कस्तूरी की महक के पीछे-पीछे दौड़ता है, जबकि वह उसकी नाभि में निहित होती है। यही दशा तो सब मन की होती है। वह भी प्रभु को मंदिर, मस्जिद आदि में ढूंढता रहता है और कई जन्मों तक उसकी भटकन समाप्त नहीं हो पाती। इसलिए भरोसा रखो ख़ुदा पर, अपनी ख़ुदी पर…आप अनंत शक्तियों के स्वामी हैं। ज़रूरत है- उन्हें जानने की, स्वयं को पहचानने की। जिस दिन तुम पर खुद पर भरोसा करने लगोगे, खुदा को अपने बहुत क़रीब पाओगे, क्योंकि तुम में और उसमें कोई भेद नहीं है। वह आत्मा के रूप में आपके भीतर ही स्थित है। पंच तत्वों से निर्मित शरीर अंत में पंच-तत्वों में विलीन हो जाता है। सो! दुनिया में असंभव कुछ नहीं, दृढ़- निश्चय व प्रबल इच्छा-शक्ति की दरक़ार है। इसलिए लक्ष्य निर्धारित कर लग जाइए उसकी पूर्ति में, तल्लीनता से, पूरे जोशो-ख़रोश से। सो,! शक़ को अपने हृदय में घर न बनाने दें, मंज़िलें बाहें फैला कर आपका स्वागत करेंगी और समस्त दैवीय शक्तियां तुम्हारा अभिनंदन करने को आतुर दिखाई पड़ेंगी। अंत में मैं यही कहना चाहूंगी, ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। ‘इस संसार में आप जो चाहते हैं, आप पाने में समर्थ हैं।’

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ किसलय की कलम से # 8 ☆ चतुर्मास के पर्व, स्वास्थ्य व सावधानियाँ ☆ डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

`डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तंत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं। अब आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित एक समसामयिक, सार्थक एवं अनुकरणीय आलेख  चतुर्मास के पर्व, स्वास्थ्य व सावधानियाँ।)

☆ किसलय की कलम से # 8 ☆

☆ चतुर्मास के पर्व, स्वास्थ्य व सावधानियाँ☆

वर्ष के जिस कालखंड में श्री हरि विष्णु शयन करते हैं, सनातन मतानुसार उस अवधि को चतुर्मास, चौमासा, पावस अथवा सामान्य रूप से वर्षाऋतु कहते है। हिन्दी पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी से हरि प्रबोधिनी एकादशी तक के समय को चतुर्मास कहते हैं। मुख्यरूप से वर्ष में शीत, गर्मी व वर्षा नामक तीन ऋतुएँ होती हैं। प्रत्येक ऋतु चार-चार माह की होती है, उनमें से यह चार मास की वर्षाऋतु विभिन्न विशेषताओं के कारण सबसे महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। ग्रीष्म की तपन के पश्चात वर्षा का आगमन धरा को तृप्त करता है। प्रकृति को पेड़-पौधों व हरियाली से समृद्ध करता है। कृषकों के लिए वर्षा सबसे महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि संपूर्ण कृषि होने वाली वर्षा पर ही निर्भर करती है। कहने का तात्पर्य यह है कि वर्षा का प्रभाव पूरी शीत ऋतु व गर्मी में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करती है।

ऋतु परिवर्तन का प्रभाव मनुष्यों के शरीर व मन-मस्तिष्क पर भी पड़ता है। हमारे पूर्वजों एवं ऋषि-मुनियों ने गहन साधना, विशद चिंतन-मनन व अध्ययन के उपरांत ऋतुसंगत पर्व, व्रत व उपवासों को नियत किया है, जिससे हमारे व प्रकृति के मध्य स्वस्थ सामंजस्य बना रहे। हम ऋतु के अनुरूप स्वयं को ढाल सकें और हमें किसी भी तरह का कष्ट अथवा बीमारियों का सामना न करना पड़े। वर्षाकाल अथवा पावस एक ऐसा कालखंड होता है जब भारतीय जनमानस खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों का वर्ष के अन्य दिनों की अपेक्षा घर से निकलना बहुत कम हो जाता है। कृषि कार्य जहाँ बिल्कुल कम होते हैं, वहीं वर्षा के कारण घर के बाहर काम करना अथवा व्यवसाय भी कम हो जाता है।

ठंडे मौसम व वर्षा के कारण मनुष्यों की पाचन शक्ति (मेटाबॉलिज्म) तो कम होती ही है, पाचन में सहायक एंजाइम की कमी भी होने लगती है। डाइसटेस व पेप्सिन 37 सेंटीग्रेड से अधिक तापमान पर ही ज्यादा सक्रिय रहते हैं। हमारे यहाँ मौसम के विशद अध्ययन के पश्चात ही पर्व व पथ्य निर्धारित किए गए हैं। इनका अनुकरण करने से हम अनेक बीमारियों से बचने के साथ-साथ स्वयं को स्वस्थ भी रख सकते हैं। पर्वों तथा व्रतों में उपवास रखने तथा उपवास के दौरान ऋतु अनुसार निर्धारित पथ्य से हम हानिकारक खाद्य पदार्थों के सेवन से बच सकते हैं क्योंकि हमारे पूर्व-प्रबुद्धों द्वारा ऐसी भोजन सामग्री का ही चयन किया गया है जो हमारे शरीर की परिस्थितियों के अनुरूप जरूरतें पूरी करने में सक्षम होती हैं।

पावस में हरियाली तीज, नागपंचमी, हरतालिका, प्रकाश उत्सव, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी, संतान सप्तमी, कृष्ण जन्माष्टमी, श्रावण सोमवार जैसे पर्वों पर अलग-अलग दिनचर्या, भोजन वह फलाहार का विधान है। शहद, पपीता, गुड़, मसाले (सोंठ, कालीमिर्च, दालचीनी, तेजपत्र, जीरा, पिप्पली, धनियाँ, अजवाइन, राई, हींग), पंचगव्य, कंद, मेवे आदि के यथा निर्देशित उपयोग से हमारे शारीरिक विकार शरीर से बाहर होते हैं और पाचन शक्ति बढ़ती है। इनसे हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति में भी वृद्धि होती है। इस काल में कम भोजन करने व कभी-कभी उपवास रखने पर शरीर में ऑटोफागी नाम की सफाई प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिससे एक ओर शरीर की अनावश्यक कोशिकाएँ शरीर से बाहर होने लगती हैं वहीं दूसरी ओर नवीन कोशिकाओं के निर्माण में भी गति आती है। उपवास से शरीर के फैटी टिशुओं को विखंडित करने वाले हारमोन्स भी निकलते हैं, जिससे शरीर की चर्बी कम होती है अर्थात वजन कम होता है।

यह तो हम सभी जानते हैं कि व्रत उपवास व श्रम से पाचनशक्ति वर्धक जठराग्नि (डाइजेस्टिव फायर) भी बढ़ती है। हमारे पूर्वजों, वैद्यों, मौसम विज्ञानियों ने ऐसे अनेक प्रामाणिक ग्रंथ, सूक्तियाँ, दोहे, कविताएँ आदि लिखी हैं जो ऋतु परिवर्तन होने पर हमारे स्वास्थ्य व पथ्य हेतु अत्यंत उपयोगी हैं। हम घाघ कवि को ही ले लें, उन्होंने लिखा है:-

चैते गुड़, बैसाखे तेल,

जेठे पंथ, असाढ़े बेल।

सावन साग, भादों दही,

क्वाँर करेला, कातिक मही।

अगहन जीरा, पूसे धना,

माघे मिश्री, फागुन चना।

ई बारह जो देय बचाय

वहि घर वैद्य, कबौं न जाए

वर्षाऋतु में अधिकतर हरी एवं पत्तेदार सब्जियों में कीट व रोग बढ़ जाते हैं। कीटों की प्रजनन गति तेज हो जाती है। ये कीट प्रमुखतः पत्तियों पर ही ज्यादा पनपते हैं। कीट सब्जियों के अंदर जाकर उन्हें दूषित तथा हानिकारक भी बनाते हैं। कुछ सब्जियों में विषैलापन बढ़ जाता है। वर्षाऋतु में खासतौर पर गंदा पानी, कीचड़, सूर्य प्रकाश की कमी, सीलन, विभिन्न कीट पतंगे, साँप, बिच्छू भी हमें तरह-तरह से हानि पहुँचाते हैं। विषैले तथा गंदगी फैलाने वाले जीव-जन्तु भी घरों में व खाद्य पदार्थों में बढ़ने लगते हैं। जीवाणु व विषाणु भी श्वास तथा भोजन के माध्यम से हमें बीमार बनाते हैं। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, हैज़ा आदि मच्छरों व मक्खियों की वृद्धि का ही दुष्परिणाम होता है। चर्मरोग, अतिसार (डायरिया), पीलिया जैसे रोग भी दूषित पानी व दूषित भोजन से होते हैं। इस अवधि में घर तथा बाहर दोनों जगहों पर आवागमन के दौरान विशेष सावधानी व सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए। वर्षा ऋतु में गंदे कुएँ, तालाब, पोखर, नहरों, नदियों तथा इनके समीप कम गहरे हैंडपंप आदि का पानी पीने से बचना चाहिए। साथ ही बीमार व्यक्ति का मल-मूत्र उल्टी आदि खुले स्थानों अथवा इन जलाशयों में नहीं डालना चाहिए। भोजन सदैव ताजा, गर्म, स्वच्छ एवं पौष्टिक ही खाना चाहिए। इन दिनों हमें फिल्टर, आर.ओ. अथवा आवश्यक मिनरल युक्त जल ही पीना चाहिए। पहले से कटे फल-फूल नहीं खाना चाहिए। बिना हाथ धोए खाना नहीं खाना चाहिए। बच्चों को बोतल से दूध पिलाने व बासी भोजन खाने से बचना भी वर्षाकाल की बीमारियों से सावधानी बरतना ही कहलाएगा।

इस तरह यदि आप चतुर्मास में स्वयं को स्वस्थ, सुखी व प्रसन्न रखना चाहते हैं तब आपको चौमासे के पर्वों पर उपवास रखना होगा। पर्वों पर सुझाया गया फलाहार अथवा भोजन संतुलित मात्रा में करना होगा। खानपान के साथ-साथ घर की स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान देना होगा। घर में अथवा घर के बाहर प्रदूषण, सीलन, भीगने व घर को शुष्क रखने का प्रयास करना भी जरूरी है। वक्त के साथ हमारी जीवन शैली में व्यापक परिवर्तन आए हैं, लेकिन नए-नए किस्म के प्रदूषण व संक्रमण भी बढ़े हैं। इसलिए हमें स्वविवेक व वैज्ञानिक तथ्यपरक दिशा-निर्देशों के अनुरूप सुरक्षा व सावधानी अपनानी होगी, तभी हम चतुर्मास में नीरोग तथा प्रसन्न रह पायेंगे।

 

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

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